उमर साहब !या बात आप किस हैसियत से कह रहे हैं ?
आपके अंदर न तो प्रशासक के गुण हैं और न ही आप धार्मिक हैं !यदि आप प्रशासक होते तो आपको एक सांसद की भी मजबूरी समझनी चाहिए थी और यदि आप धार्मिक होते तो धन लेकर जो काम किया जाता है उसमें गैर जिम्मेदारी से काम करना पाप माना जाता है तो आप के द्वारा उसे भी ईमानदारी पूर्वक काम करने की सलाह दी जानी चाहिए थी !
किन्तु आपको कर्तव्य पालन के क्षेत्र में भी संप्रदाय दिखाई पड़ रहा है कितनी गन्दी सोच के धनी हैं आप ! आखिर आप सोच समझ कर क्यों नहीं बोल रहे हैं या ऐसे ऊल जुलूल बयान देकर समाज में सांप्रदायिक आग लगाना चाहते हैं आप !आपके इस बयान को देखकर तो लगता है कि आपमें उस गंभीर सोच का ही अभाव है जो एक प्रशासक में होनी चाहिए!
यहाँ दो बातें समझनी पड़ेंगी पहली बात एक आदमी रोटी रोज खाता है किन्तु किसी नियम के कारण उस दिन उस समय रोटी नहीं खाना चाहता है उसे रोटी खिलाया जाना दूसरा जिसने कभी मीट न खाया हो उसे मीट खिलाने की तुलना इस रोटी वाले प्रकरण से कैसे की जा सकती है क्योंकि संस्कारी हिन्दू तो मीट को मृतक शरीर मानते हैं जिसे छूने मात्र से वो अशुद्धि की कल्पना करते हैं इसलिए रोटी और मीट की तुलना इस प्रकारण में करना बुद्धि हीनों का काम है !
उमर इस समय चुने हुए मुख्यमंत्री होने के नाते आप शासक हैं और शासक का न कोई धर्म होता है और न ही जाति वो तो केवल शासक होता है और सेवा भावना ही उसका कर्तव्य(धर्म ) होता है अपनी सेवा भावना से उसे सबका दिल जीतना होता है इसलिए प्रशासक को इतना गंभीर रहना होता है ।
उमर साहब !एक कर्मचारी की गलती पर एक सांसद को उसकी गलती का एहसास करने का अधिकार भी नहीं है इसका मतलब क्या ये नहीं है कि या तो अपनी उचित बात भी कहना बंद करो अन्यथा किसी भी गलती को धार्मिक विवाद बना दिया जाएगा !
किसी भी धर्म के कर्मचारी का रोजा रखना या किसी और प्रकार का व्रत रखना यदि धर्म है तो अपना काम ईमानदारी और जिम्मेदारी पूर्वक करना धर्म नहीं होना चाहिए क्या ?
जिस काम के बदले किसी को धन दिया जा रहा है उससे ईमानदारी और जिम्मेदारी पूर्वक काम लेना अधर्म है क्या ?अच्छा काम करने के लिए प्रेरित करने को अधर्म कैसे कहा जा सकता है ? यदि महाराष्ट्र सदन के भोजन की गुणवत्ता में दिनोंदिन बिगाड़ होता चला जा रहा था उसके लिए यदि वास्तव में वही व्यक्ति जिम्मेदार था तो उसकी कार्य पद्धति पर प्रश्न उठाना गलत है क्या !रही बात जबर्दस्ती मुख में खाना खिलाने की तो ये सामान्य सा प्रश्न है कि एक आदमी कहता है कि खाना अच्छा नहीं है और बनाने वाला कहता है कि अच्छा है तो उसे बिना खिलाए ये कैसे समझाया जाए कि ये खाना कैसा है !
रही बात धर्म विशेष का होने की तो जरूरी नहीं कि उस धर्म में सभी लोग रोजा रखते ही हों फिर भी यदि ऐसी कुछ जानकारी सांसद महोदय को पहले से थी तो संयम बरता जाना चाहिए था क्योंकि ऐसा कोई नहीं चाहेगा कि किसी भी धर्मवान व्यक्ति को उसके धर्म पालन से डिगाया जाए !
अब रही बात भोजन की गुणवत्ता की तो जब इसका सामना एक सांसद जैसे अधिकार संपन्न व्यक्ति को करना पड़ सकता है तो अन्य लोगों के साथ क्या होता होगा !इसका अनुमान भी लगाया जाना चाहिए!
यदि धर्म की बात बीच में न लाई जाए तो उस सांसद को क्या कैंटीन के सुपरवाइजर की गलतियों को सह जाना चाहिए था !यदि वो ऐसा कर भी लेते फिर इसी प्रकार की लापरवाही किसी और के साथ होती तो क्या यह नहीं कहा जाता कि यह उस कैंटीन की स्थिति है जहाँ बड़े बड़े सांसद भी भोजन करते हैं !उस परिस्थिति में सांसदों पर क्या क्या और कैसे कैसे आरोप नहीं लगाए जाते ! सुपरवाइजर के साथ सांसद के द्वारा किए गए व्यवहार को पूरी तरह अभद्र कैसे कहा जा सकता है आखिर उसी का भोजन उसी को खिलाया गया है !यदि सुपरवाइजर का रोजा न होता तो भी सांसद का आचरण इतना ही गलत माना जाता क्या !
क्या भोजन की गुणवत्ता में सुधार की इच्छा रखना सांसद का अधिकार नहीं है !क्या उत्तम भोजन उपलब्ध करवाना उस सुपरवाइजर की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए ?
बंधुओ ! यदि किसी व्यक्ति का धर्म हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई आदि कुछ भी है उसे यदि अपने धर्म से इतना लगाव है कि वो अपना जीवन केवल धर्म के आधार पर ही जीना चाहता है तो चुप होकर अपने घर बैठकर अपने धर्म का पालन करना चाहिए या अपना काम अपने हिसाब से करना चाहिए किन्तु किसी काम के बदले दूसरे से धन लेना और फिर उसके हिसाब से काम न करना ये धर्म कैसे कहा जा सकता है !यदि किसी का काम करके या कहीं नौकरी करके सैलरी या और प्रकार से उस काम के बदले धन लेना ही है तो उस काम को उसी की इच्छा और रूचि के अनुशार अच्छे प्रकार से करना भी अपना धर्म होता है ऐसे स्थलों पर हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई आदि सारे धर्म गौण हो जाते हैं क्योंकि कार्यस्थल पर केवल कर्तव्य ही धर्म होता है !
यदि ऐसा नहीं होगा तो कल कोई हिन्दू सैनिक लड़ाई में जाने से बचने के लिए हनुमान चालीसा लेकर पढ़ने लगेगा फिर उसे किस नियम से उठाया जाएगा ?क्योंकि उठाने में हिन्दू धर्म का अपमान होगा तो क्या उस सैनिक को पूजा से उठाया नहीं जाना चाहिए ?
किसी के यहाँ आग लग गई हो और फायर ब्रिगेड का ड्राइवर पूजा कर रहा हो तो क्या उसे बोलाया नहीं जाना चाहिए !
यदि डाक्टर किसी का आपरेशन कर रहा हो उसी बीच उसकी पूजा का समय हो जाए तो क्या उसे आपरेशन जल्दी जल्दी निपटा देना चाहिए या बीच में छोड़ देना चाहिए और कोई उसे रोके तो धर्म का अपमान माना जाना चाहिए !
किसी की दूकान में लकड़ी का काम हो रहा था अगले दिन ओपनिंग होनी थी कारपेंटर को मुख माँगी दिहाड़ी पर तय करके पूरे दिन के लिए लाया गया किन्तु वह काम बीच में ही छोड़कर दोपहर में जाने लगा जब उससे कहा गया कि आज काम पूरा करना है तो उसने कहा कि काम पूरा हो या न हो किन्तु जब तक हमारे रोजा चलते हैं तब तक हमारा नियम है कि हम लंच तक ही काम करते हैं पूरे दिन नहीं करते ,यह सुनकर घर वालों ने उसे यह कहकर बहुत समझाया कि आज हर हालत में काम पूरा करना है कुछ कीजिए तो उसने कहा कि दिन में एक बजे के बाद हम जो काम करेंगे उसका ओबर टाईम देना होगा वो भी डबल दिहाड़ी देनी होगी काम चाहें जितनी देर में समाप्त हो जाए ! बंधुओ !क्या उसका ये आचरण धर्म सम्मत है ?
मित्रो !यदि किसी की लापरवाही और गैर जिम्मेदारी को धर्म का ताना बाना ओढ़ने की छूट दी गई तो नवरात्र में हर हिन्दू अकर्मण्य हो जाएगा आखिर नवरात्र व्रत होगा तो उसे व्रती होने के लिए कर्तव्य पालन में छूट मिलनी चाहिए क्या?
हिन्दुओं में तो हर दिन कोई न कोई व्रत और त्यौहार होता है जिस दिन किसी भ्रष्टाचार में पकड़े जाएँगे तो वो कोई जवाब ही नहीं देंगे क्योंकि हिन्दुओं में मौन भी एक व्रत होता है ! तब तो सर्विस के झंझट से पूर्णतः मुक्ति पाने के लिए शिक्षक भी मौन व्रती हो जाएँगे !क्या ये ठीक रहेगा !
इसलिए मेरा निवेदन किसी भी धर्म को मानने के वाले के लिए है कि जिससे जिस काम के लिए धन लो उसका वो काम तयशुदा मानकों के आधार पर करो यदि उनका उल्लंघन करने के लिए हम स्वतन्त्र हैं तो सामने वाले से भी बहुत ईमानदार और सहनशील आचरण की आशा नहीं की जानी चाहिए !किसी भी व्यक्ति के लिए कर्तव्य पालन में धर्म को बीच में लाया जाना बिलकुल निंदनीय है !इसकी अनुमति नहीं मिलनी चाहिए फिर भी किसी के साथ अन्याय हो तो उसे न्याय दिलाने की कोशिश होनी ही चाहिए किन्तु कर्तव्य पालन की भावना का गला घोटकर नहीं ! कर्तव्य निष्ठा में कमी सबसे बड़ा अपराध होता है ।
कोई भी व्यक्ति अपना काम ठीक से करे यह उसका धर्म होता है और यदि उसके काम से वो सम्बंधित सदस्य संतुष्ट नहीं हैं जिसके या जिनके लिए वो काम किया जा रहा है तो काम करने वाले को अपने काम के बदले धन लेना या वहाँ की सैलरी उठाना भी पाप है !क्योंकि जिस काम के लिए सैलरी दी जाती है उसके अनुकूल यदि हम काम ही नहीं कर पाए तो हमें खुद उस काम से हाथ जोड़ लेने चाहिए यदि ऐसा करने का साहस हम में नहीं है तो हम धार्मिक नहीं हैं ऐसा व्यक्ति किसी भी धर्म का क्यों न हो ! ऐसी कमाई के द्वारा प्राप्त धन से मिले भोजन का ग्रास (कौर ) जब ऐसा कोई व्यक्ति तोड़ता है तो उसके हाथ काँपते क्यों नहीं हैं हैं उसकी आत्मा धिक्कारती क्यों नहीं है !
इस बात पर बिना किसी पूर्वाग्रह के उदारता पूर्वक विचार किया जाना चाहिए
कि शिव सेना सांसद का क्रोध भोजन की गुणवत्ता बिगड़ने के कारण वहाँ के
जिम्मेदार सदस्य पर था न कि किसी धर्म विशेष के व्यक्ति पर दूसरी बात मुख
में रोटी खिलाना उस भोजन का स्वाद एहसास करना था न कि रोजा तोड़वाना !
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