मैंने सुना है कि हनुमान जी की पूजा करने से महान पराक्रम अर्थात शक्ति
मिलती है विद्या बुद्धि मिलती है,क्योंकि वो वीर हैं बुद्धिमान हैं ज्ञानी
हैं इसलिए सब कुछ दे सकते हैं दूसरी ओर साईं हैं उनके पास अपना बुढ़ापा
छोड़कर और कुछ भी नहीं है तो साईं अपने भक्तों पर कृपा करेंगे तो बुढ़ापा ही
देंगे !
जब साईं की पूजा का इतना प्रचार प्रसार नहीं था तब समाज में इतना दुराचार भी नहीं था !
आज के बीस वर्ष पहले साईं पूजा का इतना प्रचार नहीं था तो समाज में इतने अपराध भी नहीं होते थे और न ही बलात्कारों की इतनी घटनाएँ ही सुनाई पड़ती थीं किन्तु जैसे जैसे मंदिरों में साईं की घुस पैठ बढ़ रही है वैसे वैसे उनका प्रचार प्रसार भी बढ़ रहा है वैसे वैसे अपराध भी बढ़ रहे हैं बलात्कार भी आखिर क्यों ? क्योंकि ऐसे वैसे जोड़े अन्य मंदिरों की अपेक्षा साईं के यहाँ अधिक जाते हैं !इनका आपस में कोई सम्बन्ध तो नहीं!
प्यार करना गलत नहीं किन्तु माता पिता को विश्वास में लेकर क्यों न किया जाए वो तथाकथित प्यार !आखिर किसी के माता पिता अपनी संतानों का बुरा क्यों सोचेंगे ?
साईं की पूजा प्रचार से पहले न इतनी घूस थी न इतने घोटाले न इतना भ्रष्टाचार !
जैसे जैसे साईं का चढ़ावा और चंदा बढ़ रहा है वैसे वैसे घूस ,घोटाले ,भ्रष्टाचार तो बढ़ ही रहा है मिलावट खोरी भी बढ़ रही है क्योंकि साईं संप्रदाय में गलत काम को रोकने के लिए कोई धर्म शास्त्र तो है नहीं !वैसे भी चढ़ावा या चंदा में चढ़ने वाला करोड़ों रूपया ग़रीबों का कैसे हो सकता है !
जो भगवान के मंदिरों में चढ़ावा चढ़ता है वो पुराने मंदिर होने के कारण उनके भक्तों की संख्या बहुत अधिक होती है दूसरा वहाँ गलत धन का चढ़ावा रोकने के लिए धर्म शास्त्रों का विधान भी है!
यहाँ तो वही एक साईं चरित्र है उसी को ओढो चाहें बिछाओ !
माता पिता अपने बच्चे पालने के लिए कितना संघर्ष करते हैं कितना मान अपमान सहते हैं कितना परिश्रम करते हैं अपनी सारी खुशियाँ शौक शान अपने बच्चों पर न्यौछावर कर देते हैं अपनी सारी इच्छाएँ एवं अपने सारे सपने अपने बच्चों की भावनाओं पर तौल देते हैं और वो बच्चे माता पिता से छिप कर खेलें प्रेम का खेल !और घट ही जाए कोई दुर्घटना तो भोगेगा कौन वही माता पिता !ऐसे देव तुल्य माता पिता से छिपकर प्रेम करना और अपने जीवन पर खेल जाना क्या उनका आप पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए जिनके लिए एक मात्र तुम्हीं सब कुछ हो !क्या उन्हें इतना अधिकार भी नहीं है कि पूछ सकें बेटा तुम्हारे साथ क्या हुआ ?
प्रेम के जाल में फँस कर बच्चों के साथ कोई दुर्घटना घटे तो वो बेचारे पूछ भी नहीं सकते कि बेटा क्या हुआ तुम्हारे साथ ? वो दुःख आजीवन भोगते हैं माता पिता !ऐसे देव तुल्य माता पिता से छिपकर प्रेम
करना और अपने जीवन पर खेल जाना क्या उनका आप पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए
जिनके लिए एक मात्र तुम्हीं सब कुछ हो !क्या उन्हें इतना अधिकार भी नहीं है कि पूछ सकें बेटा तुम्हारे साथ क्या हुआ ?
प्रेम का खेल खेलते खेलते प्रेमिका रूठ जाए कर दे बलात्कार का केस उसकी फाँसी जैसी सजा आखिर आजीवन भोगनी किसे पड़ती है माता पिता को !ऐसे देव तुल्य माता पिता से छिपकर प्रेम
करना और अपने जीवन पर खेल जाना क्या उनका आप पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए
जिनके लिए एक मात्र तुम्हीं सब कुछ हो !क्या उन्हें इतना अधिकार भी नहीं है कि पूछ सकें बेटा तुम्हारे साथ क्या हुआ ?
बेटी खेले प्रेम का खेल प्रेमी रूठ जाए और खेल जाए उसकी जान पर खेल सारे जीवन भोगना किसे पड़ेगा माता पिता को !ऐसे देव तुल्य माता पिता से छिपकर प्रेम
करना और अपने जीवन पर खेल जाना क्या उनका आप पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए
जिनके लिए एक मात्र तुम्हीं सब कुछ हो !क्या उन्हें इतना अधिकार भी नहीं है कि पूछ सकें बेटा तुम्हारे साथ क्या हुआ ?
लड़के लड़कियाँ खेलैं प्रेम का खेल और दोनों कर लेते हैं आत्म हत्या तो आजीवन भोगना किसे पड़ता है माता पिता को !ऐसे देव तुल्य माता पिता से छिपकर प्रेम
करना और अपने जीवन पर खेल जाना क्या उनका आप पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए
जिनके लिए एक मात्र तुम्हीं सब कुछ हो !क्या उन्हें इतना अधिकार भी नहीं है कि पूछ सकें बेटा तुम्हारे साथ क्या हुआ ?
प्रेम पथ के पथिकों से प्रार्थना है कि मैं उनके प्रेम भाव का द्रोही नहीं हूँ ऐसा समझकर मेरे शब्दों को पढ़ें जो बच्चे बच्चियाँ प्रेम पथ पर शहीद हुए हैं उनके माता पिता ज्योतिषी होने के नाते दुखी होकर मेरे पास आते हैं मैं अनेकों प्रयत्न करता हूँ किन्तु उनके आँसू सुखा नहीं पाता हूँ ये उस दुखी ज्योतिषी की पीड़ा है जिनकी पीड़ा से परेशान होकर मुझे एक दिन में कई कई बार भावनात्मक रूप से मारना पड़ता है !अब नहीं चाहता कि किसी ऐसे रोते हुए माता पिता को देखूं इसलिए प्रेम पथिकों से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि इन विषयों पर आप भी विचार करें ठीक लगे तो मानें अन्यथा राम राम !हम अपना दायित्व निभाते रहेंगे !आगे आपकी मर्जी !!!
क्या हम आप मिलकर एक अच्छे एवं मिलान सार समाज का निर्माण नहीं कर सकते !
सरकारों के आगे बार बार क्यों गिड़गिड़ाते हैं ?अपने संतोष के लिए एक सरकार से दुखी होकर दूसरी सरकार बना लेते हैं दूसरी के बाद तीसरी किन्तु सारी समस्याएँ तो जहाँ की तहाँ बनी रहती हैं कानून व्यवस्था ठीक करने के लिए हम सरकारें बदलते हैं किन्तु सरकार बदल जाने पर भी कानून व्यवस्था सुधरने के बजाए बिगड़ रही है आखिर क्यों ?महँगाई घटने की बजाए बढ़ रही है आखिर क्यों ?संबंध बनने के बजाए बिगड़ रहे हैं आखिर क्यों? बीमारियाँ घटने के बजाए बढ़ रही हैं आखिर क्यों ?अपराध बलात्कार घटने के बजाए बढ़ रहे हैं आखिर क्यों ?
इन सभी बातों का समाधान सरकारों के पास न होकर अपितु धर्म शास्त्रों में है किन्तु समाज धर्म शास्त्र पढ़ता नहीं है जो पढ़ते हैं वो समझाना नहीं चाहते हैं और जो समझाना चाहते हैं उनसे हम समझना नहीं चाहते क्योंकि वो तत्व तबला ढोलक आदि संगीत के साथ समझ में आ नहीं सकता उसके बिना हमें मजा नहीं आती !याद रखिए कोई डाक्टर आपका कितना भी परिचित क्यों न हो किन्तु आपरेशन वो भी ब्लेड से ही करेगा यदि वो फूल से करने लगे तो समझो आपरेशन हुआ ही नहीं क्योंकि फूल काटेगा कैसे ?इसी प्रकार से धर्म और अध्यात्म में मनोरंजन खोजना ठीक आदत नहीं है !
साईं तो चन्दन लगाते नहीं थे फिर साईं वाले कैसे लगाते हैं ?इसका मतलब उन्हें साईं पर भरोसा नहीं है !
क्या हम आप मिलकर एक अच्छे एवं मिलान सार समाज का निर्माण नहीं कर सकते !
सरकारों के आगे बार बार क्यों गिड़गिड़ाते हैं ?अपने संतोष के लिए एक सरकार से दुखी होकर दूसरी सरकार बना लेते हैं दूसरी के बाद तीसरी किन्तु सारी समस्याएँ तो जहाँ की तहाँ बनी रहती हैं कानून व्यवस्था ठीक करने के लिए हम सरकारें बदलते हैं किन्तु सरकार बदल जाने पर भी कानून व्यवस्था सुधरने के बजाए बिगड़ रही है आखिर क्यों ?महँगाई घटने की बजाए बढ़ रही है आखिर क्यों ?संबंध बनने के बजाए बिगड़ रहे हैं आखिर क्यों? बीमारियाँ घटने के बजाए बढ़ रही हैं आखिर क्यों ?अपराध बलात्कार घटने के बजाए बढ़ रहे हैं आखिर क्यों ?
इन सभी बातों का समाधान सरकारों के पास न होकर अपितु धर्म शास्त्रों में है किन्तु समाज धर्म शास्त्र पढ़ता नहीं है जो पढ़ते हैं वो समझाना नहीं चाहते हैं और जो समझाना चाहते हैं उनसे हम समझना नहीं चाहते क्योंकि वो तत्व तबला ढोलक आदि संगीत के साथ समझ में आ नहीं सकता उसके बिना हमें मजा नहीं आती !याद रखिए कोई डाक्टर आपका कितना भी परिचित क्यों न हो किन्तु आपरेशन वो भी ब्लेड से ही करेगा यदि वो फूल से करने लगे तो समझो आपरेशन हुआ ही नहीं क्योंकि फूल काटेगा कैसे ?इसी प्रकार से धर्म और अध्यात्म में मनोरंजन खोजना ठीक आदत नहीं है !
साईं तो चन्दन लगाते नहीं थे फिर साईं वाले कैसे लगाते हैं ?इसका मतलब उन्हें साईं पर भरोसा नहीं है !
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आजकल साईं वाले भी चन्दन वंदन लगाने लगे हैं ताकि समाज उन्हें भी सनातन
धर्मी हिन्दू ही मानता रहे किन्तु ऐसा कैसे हो सकता है या तो साईं के रहो
या श्री राम के ,साईं चन्दन लगाते नहीं थे जबकि श्री राम तो लगाते थे
क्योंकि श्री राम सनातन धर्मी थे जबकि साईं होते तो वो भी लगाते ! इसलिए
बिना पेंदी के लोटों के द्वारा किया जा रहा धार्मिक घाल मेल ठीक नहीं है
इससे समाज में भ्रम पैदा होता है !
पहले
साईं पर कोई विश्वास नहीं करता था इसलिए उनका भी बेडा पार करने के लिए उनके
भी नाम के साथ ये लोग राम लगाने लगे अर्थात 'साईंराम' कहने लगे ! वैसे भी
श्री राम के बिना उद्धार किसी का नहीं होता है वह साईं ही क्यों न हों ! हो
सकता है साईं भूत न बन जाएँ इस भय से साईं को साईं राम कहा जाने लगा हो
ताकि उनका भी उद्धार हो जाए !
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