शनिवार, 9 अगस्त 2014

अब अटल आडवाणी जी के चित्र तक कम दिखने लगे हैं भाजपा की चुनावी प्रचार सामग्री पर !आखिर क्यों ?

   कार्यकर्ताओं से भरी पुरी  भाजपा अब केवल दो लोगों में समिटती जा रही है आखिर क्यों, बाकी लोग क्या इतने बेकार हैं !देश की भावुक जनता अपने वृद्ध नेताओं का भी बहुत सम्मान करती है उन्हें भी सम्मानित स्थान पर ही देखना चाहती है जबकि पार्टी का वर्तमान रुख उनके इस विश्वास पर खरा नहीं उतर पा रहा है !

   भाजपा की पहचान माने जाने वाले बयोवृद्ध नेता लोग घर बैठा दिए गए आखिर क्यों सुना है कि अटल आडवाणी जी के चित्र भी छोटे कर दिए गए हैं ! जोशी जी जैसे कर्मठ एवं विद्वान लोग शांत कर दिए  गए हैं आखिर क्यों बनाई जा रही है पुराने नेताओं से दूरी !क्या वे इतने बूढ़े हो गए हैं !देश की भावुक जनता नहीं पचा पा रही है इसे !

  मेरी पीड़ा से जरूरी नहीं कि हर कोई इससे सहमत हो फिर भी क्षमा याचना के साथ !

        बंधुओ ! हम आम आदमी हैं हमें अपना कमाना और अपना खाना है हर दल और हर नेता सत्ता में आने के लिए बड़े बड़े लालच देता है किन्तु सत्ता में आने पर मौन हो जाता है जनता अपनी रफ्तार से चलती रहती है आखिर क्यों करनी किसी से आशा !

      मैं आज  एक टी.वी.चैनल पर समाचार सुन रहा था तो पत्रकार ने बताया कि भाजपा की बैठक के लिए बनाए गए पोस्टरों पर नए नेतृत्व की अपेक्षा अटल आडवाणी जी के चित्र छोटे कर दिए गए हैं ! यदि ऐसा है तो यह सुन कर मुझे निजी तौर पर थोड़ी सी पीड़ा हुई साथ ही मुझे पार्टी के लिए किया गया अटल आडवाणी जोशी जी जैसे भाजपा की पहचान मने जाने वाले लोगों का विशाल योगदान याद आ गया और साथ ही विरोधियों का पराभव करने वाला उन महापुरुषों का अनुपमेय पराक्रम !!

      अडवाणी जी की रथयात्रा एवं सत्ता की ड्योढ़ी तक पहुँचने के बाद भी सांप्रदायिक सांप्रदायिक कहकर विभिन्न दलों के द्वारा जब पार्टी का उपहास उड़ाया जा रहा था उस समय तेरह दिनों का ताज हँसते हुए यही सोच कर उतार दिया गया  होगा कि सभी दल जो करें करने दो किन्तु हमारे उत्तराधिकारी अवश्य समझेंगे हमारी इस पीडा को ! यह सब सोचकर आज मुझे लगा कि विरोधी लोग लाख प्रयास करके भी इन दोनों दमकते सूर्यों के चित्र चाह कर भी छोटे नहीं कर सके थे । हमें नहीं पता कि ये संकेत है या सन्देश ! किन्तु उनके चित्र भी बड़े किए जा सकते तो और अच्छा होता  न जाने कागज़ कम पड़  गया था या स्याही या बनाने वाले ने ही मना  कर दिया था रही होगी उनकी भी कोई मजबूरी किन्तु यदि उनके भी चित्र बड़े होते तो और अच्छा लगता !बड़ों का सम्मान भी हो जाता, देखने में और अधिक अच्छा लगता और बड़ों को महत्त्व देने का सांस्कृतिक संदेश भी दिया जा सकता था !खैर ,हम ठहरे आम आदमी हम तो अपने हिसाब से सोचते हैं किन्तु बड़े लोगों की बड़ी सोच होती है ऐसा करने में भी उनका होगा कोई बड़प्पन ! जरूरी नहीं कि वो आम लोगों को भी समझ में आवे !

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