शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

शिवसेना और भाजपा का गठबंधन आखिर टूटा क्यों ?और अब चल पाएगा कैसे ?

        अमित शाह और दित्य ठाकरे ने बिगाड़ा सारा खेल - ज्योतिष !

       जिन दो लोगों का नाम एक अक्षर से प्रारम्भ हुआ हो वो दो  दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक तभी तक रह सकते हैं जब तक इन दोनों के मन में किसी एक चीज को पाने की इच्छा एक ही साथ न हो जाए !अन्यथा छूट जाते हैं और भयंकर रूप से छूटते हैं ।आप स्वयं देखिए -

           राजग में रेंद्र मोदी के आने से नितीश कुमार छोड़ गए!

सपा में खिलेश के आने से मरसिंह छूट गए !और जब तक मर सिंह थे तो जम को छूटना पड़ा था अब खिलेश के साथ भी जम को छूटने की नौबत कई  बार आ चुकी उधर मर सिंह भी मिताभ जी निल अम्बानी आदि लोगों से छूटे ! ऐसे और बहुत सारे उदाहरण हैं तो मित शाह और दित्य ठाकरे कैसे रह सकते थे साथ साथ ?इन्हें तो अलग अलग होना  ही था ,और  देखिए -

इसी प्रकारऔर भी उदहारण हैं -       
               कलराजमिश्र-कल्याण सिंह  
                       ओबामा-ओसामा   
               अरूण जेटली- अभिषेकमनुसिंघवी
                     मायावती-मनुवाद
                         नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी 
         लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद 
              परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान 
                        भाजपा-भारतवर्ष  
                मनमोहन-ममता-मायावती    
                   उमाभारती -   उत्तर प्रदेश 
       अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव 
      अमर सिंह - अनिलअंबानी - अमिताभबच्चन 
 प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन  आदि और भी हैं -
न्नाहजारे-अग्निवेष-अरविंद-असीम त्रिवेदी -    

    बंधुओं ,जो लोग किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर ज्योतिष को विज्ञान नहीं मानते हैं उन्हें मैं मानने के लिए बाध्य भी नहीं करता हूँ किन्तु वैचारिक दृष्टि से जीवित लोग जो ज्योतिष को अपने मन बुद्धि एवं तर्कों से सोच कर मानना चाहते हों उनके लिए प्रस्तुत है यह विषय वस्तु!

 ( नाम विज्ञान ज्योतिष का बहुत बड़ा विज्ञान  है जो सात प्रकार से देखा जाता है जिसका चुनावों में बहुत महत्त्व होता है किस पार्टी से जुड़ना है उसके अध्यक्ष के साथ ताल मेल कैसा रहेगा , जिसके सामने चुनाव लड़ना है उसके साथ ताल मेल एवं  जिस देश ,प्रदेश या संसदीय सीट से चुनाव लड़ना होता है उसका प्रभाव , जिस पार्टी एवं प्रत्याशी को प्रमुख रूप से पराजित करना हो उसे देखने के कई प्रकारों  एवं उनसे निपटने के उपायों में से केवल एक प्रकार की चर्चा यहाँ कर रहे हैं आप भी ध्यान दीजिए और देखिए कि ज्योतिष के नाम विज्ञान का कितना प्रभाव मानव जीवन पर होता है हमारे राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान में ऐसे ही विषयों को शोध की विषय वास्तु बनाते हैं ।)

     अब आप स्वयं समझिए कि कुछ कुंडलियाँ ऐसी होती हैं जिनमें ये योग पड़ता है जो मर सिंह जी के साथ लगा हुआ है । ऐसी परिस्थिति में ज्योतिषशास्त्र के अनुशार अपने नाम के पहले अक्षर  वाले लोग अपने लिए बहुत भारी होते हैं फिर भी ऐसे लोग उन्हीं के चक्कर में बार बार फँसते जाते हैं और अपना सब कुछ गवाँते चले जाते हैं फिर भी इस बीमारी से दूर नहीं होना चाहते  हैं ऐसा कुयोग कई लोगों की कुंडली में होता है जिसके अनेक उदाहरण नीचे दिए गए हैं कितना उठापटक हुआ उनके कारण समाज में या उनके जीवन में किन्तु अज्ञान के कारण वे समझ नहीं पाए !

    अब अमर सिंह जी को ही लें इनकी भी जितने लोगों से मित्रता हुई है वो सब अक्षर वालों से ही हुई मिताभबच्चन  निलअंबानी  भिषेक बच्चन आदिऔर सब से सम्बंध बिगड़े !मुलायम सिंह जी अ वाले नहीं थे तो उनसे निभती रही किन्तु जम खान से नहीं पटी और मर सिंह के प्रभाव से ही उन्हें बाहर कर दिया गया किन्तु सपा में जब  खिलेश का प्रभाव  बढ़ा तो मर सिंह बाहर कर दिए गए इसी प्रकार से बाहर तो जम खान भी कर दिए जाते किन्तु ठहरे एक मात्र मुश्लिम चेहरा इसलिए मुलायम सिंह जी ने मजबूरी में ही सही उन्हें बेमन भी पकड़ तो रखा है जब कि अखिलेश सरकार बनने से लेकर जब तक चलेगी तब तक वो सरकार के लिए समस्याएँ ही खड़ी करते रहेंगे !

    जहाँ तक बात यप्रदा जी की है ज्योतिषीय दोष के कारण ही उनकी  याबच्चन जी से नहीं बननी थी चूँकि अमर सिंह जी ने यप्रदा जी का पक्ष लेते रहे इसीलिए यप्रदा जी के साथ साथ मर सिंह जी से भी याबच्चन जी ने दूरी बना ली !इसी क्रम में उधर मर सिंह जी एवं मिताभ बच्चन जी एवं भिषेक बच्चन जी का  अ  टकरा गया इस प्रकार से बढ़ गई पारिवारिक दूरी और सम्बन्ध बिगड़ते चले गए !

    जहाँ तक अमर सिंह जी के विषय की बात है मुलायम सिंह जी यदि चाहते तो वो अमर सिंह जी को भी पकड़ कर रख सकते थे क्योंकि मुलायम सिंह जी का अमर सिंह जी से कोई निजी विरोध आज भी नहीं होना चाहिए ज्योतिष के अनुशार वे दोनों आज भी एक दूसरे से स्नेह करते हैं किन्तु बीच वाले जो लोग अपने स्वार्थ साधन एवं निजी भलाई के कारण मुलायम सिंह जी एवं अमर सिंह जी को दूर रखना चाहते हैं उन्हें चिन्हित करके यदि ये दोनों लोग स्वयं पहल करें तो आज भी दोनों लोगों के आपसी सम्बन्ध सुखद हो सकते हैं !  रही बात मर सिंह एवं जीत सिंह की जो नया नया गठ बंधन हुआ है उसमे मर सिंह जी को और तो कुछ मिलना नहीं है केवल इतना सर्टिफिकेट  अवश्य मिल जाएगा कि मर सिंह हैं ही ऐसे कि उनसे किसी की पटरी ही नहीं खाती है । इस प्रकार से यह नूतन गठबंधन दिन पार कर लेगा तो महीने नहीं बीतेंगे महीने बीते तो वर्ष बिताना कठिन होगा !बाकी हमारी शुभ कामनाएँ हैं कि चले हजारों साल यह गठबंधन !

     वैसे भी मर सिंह जी भी अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल जमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु खिलेश  यादव का प्रभाव बढ़ते ही मरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब खिलेश के साथ जमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता।पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश  में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है !

       अमिताभ बच्चन एवं अमरसिंह की मधुर मित्रता आज भी चल सकती है !चूँकि मरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। जैसेः- जमखान मिताभबच्चन  निलअंबानी  भिषेक बच्चन आदि।

    यहाँ ज्योतिष एक बहुत बड़ा कारण है। किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा -पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है। इसलिए कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है। 

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि। इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।

इसीप्रकार जैसे -

     अन्नाहजारे-अग्निवेष-अरविंद-असीम त्रिवेदी 

जब को एक साथ नहीं रखा जा सका तो  नितीशकुमार-नरेंद्रमोदी-नितिनगडकरी को एक साथ कैसे रखा जा सकता था? मोदी जी का प्रभाव बढ़ते ही  नितिनगडकरी को पहले ही इसी के तहत अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था ।इसके अलावा जो कारण बनाए गए वो सब तो राजनीति में चला ही करता है।

  इसीप्रकार फिर मोदी जी का प्रभाव बढ़ते ही  नितीशकुमार जी को भी राजग से हटना पड़ सकता है। अभी भी समय है नितीशकुमार जी  एवं नरेंद्रमोदी जी को आमने सामने पड़ने एवं पारस्परिक वाद विवाद से बचाया जाना चाहिए।श्री शरद यादव जी एवं श्री राजनाथ सिंह जी को आगे आकर आपसी बातचीत से राजग की रक्षा कर लेनी चाहिए!

     इसी प्रकार जैसे भारत वर्ष में  भाजपा राजग बनाकर ही सत्ता में आ पाने में सफल हो सकी।जबकि इससे कम सदस्य संख्या वाले एवं अटलजी से  कमजोर व्यक्तित्व वाले लोग भी यहाँ प्रधानमंत्री बनते रहे हैं।कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भी अच्छी तरह से चल भी रही हैं ।जैसे - दिल्ली में ही देखें भाजपा के चार विजयों  के  समूह का एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करना आगामी चुनावों में राजनैतिक भविष्य  के लिए चिंता प्रद हैं।इसी कारण से पहले भी कांग्रेस विजय पाती रही है।                   विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी 

      विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी   

   न्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे न्ना हजारे, रविंदकेजरीवाल,सीमत्रिवेदी एवं ग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त किया जा सकता था। इसमें ग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से भिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता रूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए भिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात पर रूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही नहीं थी। दूसरी  ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे।  अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अन्नाहजारे  से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग  ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।      

    रामदेव -

  रामलीला मैदान में पहुँचने से पहले तो रामदेव को मंत्री गण  मनाने पहुँचे फिर रामलीला मैदान में पहुँचने के बाद राहुल को ये पसंद नहीं आया तो रामदेव वहाँ से भगाए गए।

   दूसरी बार फिर रामदेव रामलीला मैदान पहुँचे इसके बाद राजीवगाँधी स्टेडियम जा रहे थे फिर राहुल को पसंद न आता और  लाठी डंडे चल सकते थे किन्तु अम्बेडकर स्टेडियम ने बचा लिया। 

     इसप्रकार से जब रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया तो राहुल और राजनाथ राम मंदिर का समर्थन कितना या कितने मन से करेंगे कैसे कहा जा सकता है? राम मंदिर प्रमुख रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज एवं उस समय के डी.एम. रामशरण श्रीवास्तव के और राम मंदिर इन तीनों का आपसी तालमेल सन 1990 में अच्छा नहीं रहा परिणामतः संघर्ष चाहें जितना रहा हो किन्तु मंदिर निर्माण की दिशा में कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

    राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है 

हमारे यहाँ ज्योतिष संबंधी सेवाएँ लेने के लिए- see more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_10.html

 


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