मंगलवार, 23 सितंबर 2014

बंधुओ ! दुर्गासप्तशती से जन जन को जोड़ने में जरूरी है आपका भी योगदान !

    सरल हिंदी दोहा चौपाइयों में लिखी गई दुर्गासप्तशती को अब घर घर एवं जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पहल में आप भी जुड़ें और करें इस कार्य के प्रचार प्रसार में सहयोग !

      पंडित पुजारियों एवं हमारे जैसे हमारे और भी भाई बंधुओं समेत जब हम कुछ लोग ही यदि धर्म की सारी चौधराहट सँभाल लेंगे तो बाक़ी समाज भटकेगा ही, कहीं तो जाएगा ही, किसी को तो मानेगा ही, जो इन्हें सरल दिखेगा ये उसे मानेंगे, जो इन्हें मानेगा ये उसे मानेंगे!

     इसलिए उस आम समाज को धर्म से जोड़े रखने के लिए कोई पहल की जानी चाहिए उसी दिशा में की गई यह एक छोटी सी पहल ! आप सभी बंधुओं के सहयोग की अपेक्षा -

     बंधुओ !आप सबको पता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रों में करना होता है किन्तु दुर्गा सप्तशती संस्कृत भाषा में होने के कारण जो लोग संस्कृत जानते हैं वो तो कर लेते हैं संस्कृत में इसका पाठ किन्तु जो संस्कृत नहीं जानते हैं उनमें कुछ धनी वर्ग होता है वो पंडितों से अपने घर में पाठ करवा  लेता है किन्तु जो लोग संस्कृत भी नहीं जानते हैं और उनके पास धन भी नहीं होता है वो आखिर कैसे पूजा करें भगवती की ?

     उनके लिए कुछ लोगों ने हिंदी कविता में भी दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति नाम से कुछ लिखने की कोशिश की है किन्तु उसमें  छंद भंग दोष तो है ही साथ ही विषय वस्तु भी आधी चौथाई ही ली गई है एवं कुछ ने तो हर पृष्ठ पर अपना नाम एवं अपना चित्र दिया हुआ है जो ठीक नहीं है बीच बीच में भी ऐसा ही किया गया है यह विधा ठीक न होने पर भी लोग इसका पाठ करते हैं क्योंकि उनके पास ऐसी चीजों के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है कुछ लोग राम चरित मानस आदि का नवाह पाठ आदि करते देखे जाते हैं !कुछ लोग ऐसी ही परिस्थितियों को कैस करते हुए साईं देवी टाइप किसी पूजा स्तुति आदि को गाने बजाने लगते हैं और भोले भाले लोग ऐसा ही सब कुछ करने भी लगते हैं !

     यही सब कुछ देख कर मुझे कई मित्रों ने रामचरित मानस की शैली में अर्थात दोहा चौपाई में लिखने के लिए प्रेरित किया और मुझे भी इसकी आवश्यकता लगी तो मैंने प्रयास पूर्वक संस्कृत दुर्गा सप्तशती की प्रामाणिकता बनाए एवं बचाए रखते हुए श्री रामचरित मानस की शैली में अर्थात दोहा चौपाइयों  में श्री  दुर्गा सप्तशती को लिखा है और प्रकाशित किया है इस पुस्तक को तीन रूपों में अत्यंत उत्तम कागज, छपाई आदि का प्रयोग करते हुए प्रकाशित किया गया है। 

   इनमें से पहली दुर्गासप्तशती नाम से प्रकाशित की गई है इसमें गीताप्रेस की दुर्गासप्तशती की पुस्तक की तरह ही अर्थ सहित प्रकाशित किया गया है इसमें अंतर केवल इतना है कि संस्कृत श्लोकों की जगह उसी का भावार्थ लेकर हिंदी दोहा चौपाइयों में उन्हीं श्लोकों के अनुवाद के रूप में किया गया है इसका मूल्य 51रूपए रखा गया है। 

     दूसरी दुर्गापाठ नाम से प्रकाशित की गई है इसमें पहले की तरह ही संपूर्ण दुर्गासप्तशती ही है अंतर केवल इतना है कि इसमें हिन्दी अर्थ नहीं लिखे गए हैं बाक़ी सब कुछ वैसी ही संपूर्ण है इसकी लागत कम करने के लिए ऐसा किया गया है इसका मूल्य 31 रुपए रखा गया है ।

    तीसरी दुर्गास्तुति नाम से प्रकाशित है जिनके पास समय का अभाव होता है इसलिए वे वो संपूर्ण दुर्गासप्तशती का पाठ प्रतिदिन नहीं कर सकते हैं ऐसे व्यस्त लोगों के लिए दोहा चौपाइयों में ही नव देवियों के लिए नव स्तुतियाँ लिखी गई हैं जैसे नवरात्र के पहले दिन के लिए शैलपुत्री दूसरे दिन के लिए ब्रह्मचारिणी आदि की स्तुतियाँ हैं जिन्हें प्रतिदिन के हिसाब से लोग पढ़ सकते हैं ऐसा विचार  करके नव स्तुतियों को दोहा चौपाइयों   में ही लिखा गया है इसका मूल्य 21रूपए रखा गया है ।

     लागत मूल्य पर ये पुस्तकें  उपलब्ध करवाने के लिए इन तीन में से किसी भी एक पुस्तक की 100 प्रतियाँ मँगवाने पर 20 प्रतिशत डिस्काउंट काट दिया जाता है 250 या उससे अधिक प्रतियाँ मँगवाने पर 30 प्रतिशत डिस्काउंट काट दिया जाता है।

      बंधुओ ! ये पुस्तकें  आज देश के लगभग 200 शहरों कस्बों की दुकानों में उपलब्ध हैं किन्तु पुस्तकों की क्वालिटी अच्छी होने के कारण लागत अधिक आना स्वाभाविक है इससे दुकानदारों का उतना डिस्काउंट नहीं बन पाटा है जितना उन्हें चाहिए इसलिए वो इन्हें प्रचारित करने में रूचि  नहीं लेते हैं और समाज को पता नहीं है । 

     अतः आप सभी सनातन धर्मी बंधुओं से निवेदन है कि आप यदि हमारी सोच से सहमत हों एवं आपको भी उचित लगे और इन्हें प्रचारित करने में आप भी सहयोग करना चाहें तो आप इस लिंक को अपने मित्रों में शेयर कर सकते हैं या और जिस किसी भी प्रकार से सहयोग कर सकते हों उसके लिए आप सभी बंधुओं से सहयोग की अपेक्षा है ।

     आप हमारी प्रार्थना इस रूप में भी स्वीकार कर सकते हैं कि यदि आपको भगवती ने सक्षम बनाया है तो आप कुछ पैसे इन पुस्तकों के प्रचार हेतु दान कर सकते हैं जिनसे धर्म क्षेत्रों में इन पुस्तकों का निःशुल्क वितरण किया जा सके यदि आप क्रय करके स्वयं वितरण करना चाहें तो और अधिक प्रसन्नता की बात है !आपके पैसों का इसी कार्य में उपयोग होगा इस बात पर आप विश्वास कर सकते हैं हमारे संस्थान का कार्य व्यवसाय नहीं अपितु धर्म रक्षा हेतु समाज में जन जागरण करते हुए सजीव समाज का निर्माण करना है आप सबके सहयोग के बिना यह कार्य किसी एक व्यक्ति के लिए बड़ा एवं असंभव सा लगता है यह जानते हुए भी हम तो ईश्वर के सहारे निकले हैं आप में से जो जिस रूप में भी जुड़ना चाहे जुड़े अपेक्षा सबसे है सबका स्वागत है ।

     आप में से कुछ बंधु बहनों से ऐसे सहयोग की भी अपेक्षा है कि आप   लोग हमारे धर्मकार्यों की मदद ऐसे भी कर सकते हैं जैसे मैंने कुछ जगहों पर इन्हीं दुर्गा पुस्तकों के सामूहिक पाठ का कार्य क्रम भी चलवाया है जिसमें सभी स्त्री पुरुष मिलजुल कर बाजे गाजे से या वैसे इसी दुर्गा सप्तशती के 100 या 1000 पाठ नवरात्रों में या जन्मदिन आदि या तिथि त्यौहार के अवसरों पर वैसे भी कर लेते हैं अंतिम में हवन कर लेते हैं भंडारा कर लेते हैं इससे सभी लोगों को पाठ करने में सम्मिलित होने का सौभाग्य तो मिलता ही है और बिना किसी विशेष खर्चे के हिंदी विधा से शतचंडी या सहस्र चंडी यज्ञ का विधान करने का लाभ भी होता है  इससे संस्कार सुधरते हैं साथ ही साथ समाज तरह तरह के पाखंडों में भ्रमित होने से बच जाता है । अगर कुछ मित्र इस प्रकार के आयोजन आयोजित करके भी हमारा सहयोग करना चाहें तो उनके लिए अग्रिम कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ । 

      वैसे भी सनातन धर्मियों पर साईंयों ईसाइयों इस्लामियों आदि सबकी निगाहें गड़ी हैं कोई शिक्षा कोई दीक्षा कोई चिकित्सा या कोई अन्य प्रकार के सेवा आदि कार्यों के माध्यम से भोले भाले सनातन धर्मियों को बहलाने फुसलाने की कोशिश कर रहा है ऐसे में बहुत आवश्यकता ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों को चलाने की है जिनमें जनता की सीधी भागीदारी हो जिससे किसी और की निंदा करने के बजाए सनातन धर्मियों का भटकाव रोका जा सके !

      इन पुस्तकों को प्राप्त करने के लिए आप सीधे हमारे राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान से संपर्क कर सकते हैं संस्थान के प्रचार कार्यों से जुड़ सकते हैं सुझाव दे सकते हैं आप हमारे मोबाइल 9811226973 पर संपर्क कर सकते हैं ।पुस्तकें मँगवाने के लिए अपेक्षित धनराशि भेजने या हमारे अकाउंट में जमा करने के बाद 10 दिनों के अंदर कभी भी पुस्तकें यहाँ से भेज दी जाती हैं । 

                                    अकाउंट डिटेल -

              शेष नारायण वाजपेयी , SBI,  खाता संख्या 10152713661

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  अब दुर्गासप्तशती आदि भी रामचरितमानस एवं सुंदरकांड की ही  तरह हिंदी दोहा चौपाई में पढ़िए राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की ओर से  शास्त्रीय ज्ञानविज्ञान  को घर घर जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पहल में  आप भी सहयोगी बनें-

 राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान

k-71,Chhachhi Building Krishna Nagar  Delhi -51

         Ph.09811226973,011-22002689



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