रविवार, 28 सितंबर 2014

आरक्षण !

       
             जातिगत आरक्षण एक आनुबंशिक बीमारी है !
     जो जातियाँ कहती हैं कि सवर्णों ने  हमारा शोषण किया था इसलिए हम गरीब हैं वो यह क्यों नहीं सोचते हैं कि पिछले साठ वर्षों से आरक्षण नामक डंक मार मार कर सवर्णों के अधिकार चूस रहे हैं सवर्णों का शोषण वो कर रहे हैं इसके बाद भी जो जहाँ था वो वहीँ है अर्थात सवर्ण आज भी अपने परिश्रम के बलपर स्वाभिमान पूर्वक रह ले रहे हैं और माँगने वाले आज भी माँग ही रहे हैं ! ठीक ही कहा गया है -
      दो. सब कुछ बदलत समय से बदलत नाहिं स्वभाव ।
           श्वान पूछ ऊपर रहे कितनो पकरि  घुमाव ॥


     जो लोग आरक्षण के बिना अपने घरकी रसोई नहीं चला पाते वे  आरक्षण लेकर प्रधानमंत्री  यदि बन भी जाएँ तो देश कैसे चला लेंगे ?

                         जिनके शरीर स्वस्थ हैं उन्हें आरक्षण किस बात का !
       यदि हम स्वयं ही ऐसा मान लेते हैं कि हमारे शरीरों में वैसा मन ,बुद्धि ,सदाचरण, त्याग, तपस्या और परिश्रमशीलता नहीं है जो सवर्णों में है इसलिए हमें आगे बढ़ने के लिए आरक्षण जैसी वैसाखी चाहिए फिर यह मान लेने में क्या बुराई है कि हम सवर्णों की बराबरी अपने बलपर न कर पाने के कारण हमारा उनसे कोई मुकावला ही नहीं है और जातियाँ कल्पित नहीं अपितु सच हैं तब तो ऐसा है यदि ऐसा न होता तो अपने बलपर आगे बढ़ने में क्या बुराई थी अब तो साठ वर्ष तक का आरक्षण भी पचाया जा चुका है क्या गरीब सवर्ण अपने संघर्ष के बल पर आगे नहीं बढ़ जाते हैं !ठीक ही कहा गया है कि पूर्ण निष्ठा के साथ प्रयास करने से ही विकास होता है केवल मनोरथ पल लेने से नहीं -
                               उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः 


                       दलितों की गरीबत का ठीकरा सवर्णों पर फोड़ना कहाँ तक उचित है ?
    अपनी कमजोरियों के कारण अपने काम धंधे में असफल रहने वाले जिनके पूर्वज अपनी संतानों के कान में कहकर चले गए हैं कि सवर्णों ने हमारा शोषण किया था इसीलिए हम तरक्की नहीं कर सके उनसे तभी पूछा जाना चाहिए था कि संख्या में तो आप लोग सवर्णों से अधिक थे फिर आपने शोषण सहा क्यों ? इससे सारी सच्चाई सामने आ जाती और खुल जाता सारा पोल ! दूध का दूध हो जाता और पानी का पानी !  

                           जातियाँ सच हैं या झूठ पहले इसका निर्णय हो फिर आरक्षण की व्यवस्था हो !
     यदि किसी की श्रेष्ठता जातिगत नहीं हो सकती तो किसी का शोषण भी जातिगत नहीं हो सकता और किसी के लिए आरक्षण भी जातिगत नहीं हो सकता और किसी को गलियां भी जातिगत नहीं दी जा सकतीं किन्तु यदि कोई जाति को मोहरा बना कर केवल अपनी तरक्की तो करना चाहता है बाकी कार्यों के लिए जातियों से घृणा करता है ये किसी भी न्याय मंच पर सच नहीं ठहराया जा सकता है !       



       

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