शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

धिक्कार है ऐसे तुच्छ कन्या पूजन को जिसमें कन्याओं के प्रति कोई संवेदना ही न हो !

   हम कन्याएँ भी पूजते हैं गौएँ भी पूजते हैं दोनों पर अत्याचार होते रहते हैं फिर भी हम सहते  रहते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं। बंधुओ !हमारी इस कायरता पर हमें धिक्कार है !हमारे जितना प्राणलोलुप और कौन हो सकता है !क्या हमें इतना कायर होना चाहिए ?

   हम कन्याएँ भी पूजते हैं गौएँ भी पूजते हैं दोनों से अपने सुख शांति समृद्धि के वरदान और आशीर्वाद माँगते हैं किन्तु कन्याओं या गऊओं पर कितना भी अत्याचार हो हम दो चार दिन सरकार को कोस कर चुप हो जाते हैं लानत है हमारे  ऐसे कन्या प्रेम एवं गो निष्ठा को !हमारे अलावा और कौन इतना मक्कार हो सकता है कि वो जिसे पूजता हो मजाल है कि उसका कोई अपमान कर जाए ! हैं तो और लोग भी उनके निष्ठा पुरुष की पोशाक की नक़ल करके किसी ने पोशाक पहन ली थी तो उन सिद्धांत प्रिय जीवित विचार वाले लोगों ने न केवल पोशाक उतरवा दी थी अपितु माफी माँगने के लिए बाध्य कर दिया था कहाँ वो और कहाँ हम जिनकी गउओं की ,कन्याओं की दुर्दशा हो रही है यह देखकर भी हम जिन्दा हैं हमें धिक्कार है !हमारे मंदिरों  में भगवान के नाम पर साईं पत्थर पुजवा दिए गए हम सह रहे हैं ये हमारे धर्म का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है !

    कन्याओं को देवी मानने वाले देश की संयमी संतानो ! छोटी छोटी बच्चियों पर इतने बड़े बड़े अत्याचार बलात्कार ! आखिर कब तक सहते रहोगे ?कब तक देखोगे सरकारों की ओर ?

   क्या आपका अपना निजी कोई दायित्व नहीं है कन्याओं के प्रति ? बच्चियाँ आपकी हैं स्वाभाविक है कि लगाव भी आपको ही होगा यह जानते हुए भी इन्हें कानून के भरोसे छोड़कर बिलकुल निश्चिंत हो गए आप !कानून की जिम्मेदारी जिनकी है वे या तो सरकार हैं या सरकारी कर्मचारी !ईमानदारी पूर्वक दायित्व निर्वाह करना न सरकार के बश का है और न ही सरकारी लोगों के बश का फिर इनके भरोसे कैसे छोड़ दीं अपनी दुलारी पियारी कन्याएँ ! 

  बंधुओं ! आज नवरात्रि की पवित्र नवमी है माता सिद्धिदात्री का दिन है आज कन्या पूजन का पवित्र दिन है आज कन्याओं के प्रति पवित्र एवं पूज्य भाव निर्माण करने का दिन है। 

  आखिर संस्कारों की दृष्टि से हम इतना क्यों पिछड़ते जा रहे हैं अब समय आ गया है जब हर नर नारी के लिए संकल्प लेने का दिन है कि कन्याओं के पूजन के इस पवित्र पर्व पर  कन्याओं की सुरक्षा का कोई कार्यक्रम रखा जाता या बलात्कारों एवं भ्रूण हत्या के  विरुद्ध जन जागृति का कोई कार्यक्रम रखा जाता तो कन्याओं की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत अधिक प्रभावी हो सकता था कन्याओं के हिस्से के इस दिन का सदुपयोग कन्याओं की सुरक्षा के प्रति होता तो और अधिक अच्छा होता !आज कन्याओं की सुरक्षा के लिए,भ्रूण हत्या रोकने के लिए,बलात्कार रोकने के लिए समाज प्रधानमंत्री जी के तत्वावधान में संकल्प लेता या समाज को इसके लिए प्रेरित किया गया होता या कन्यारक्षासेना या कन्यारक्षादल जैसे सक्रिय संगठनों का गठन किया गया होता तो स्वच्छ भारत के साथ साथ पवित्र भारत का संकल्प भी पूरा हो सकता था !   

     बंधुओ ! हर नवरात्रों के नवमे दिन कुछ कन्याओं को भोजन करा देने से ,कुछ कपड़े कुछ गिफ्ट दे देने से कुछ टॉफी चॉकलेट और पैसे देकर पूज ली जाने वाली कन्याएँ तुम्हें कितने बड़े बड़े आशीर्वाद देकर जाती हैं कभी सोचा है,कन्याएँ तुम्हारे जीवन के लिए मंगल कामनाएँ करती हैं तुम्हें सुख शान्ति का वरदान देकर जाती हैं तुम खूब फूलो फलो उनका तुम्हारे प्रति ये भाव ! और तुमने उन्हें नपुंसक सरकारों और घूसखोर अधिकारियों और सरकारी सुरक्षाकर्मियों के भरोसे छोड़ रखा है ! कितनी भयंकर लापरवाही कर रहे हो तुम किसी दिन बहुत पछताओगे स्थिति यदि यही रही तो किसी दिन तरस जाओगे कन्याओं के दर्शन को। 

  क्या आपको पता नहीं है कि जिन सरकारी कर्मचारियों ने भारी भरकम सैलरी लेकर भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों की, सरकारी डाक सेवाओं की,मोबाईल सेवाओं की एवं चिकित्सा व्यवस्थाओं की भद्द पिटवा रखी है बेइज्जती करवा रखी है इसके बाद भी वे सरकारी लोग अपने काम से संतुष्ट हैं ऐसे सरकारी लोगों की सुरक्षा के भरोसे कन्याओं को रखना कहाँ की समझदारी है।  

   भला हो प्राइवेट स्कूलों का,प्राइवेट कोरिअर का,मोबाइल कंपनियों एवं प्राइवेट नर्सिंग होमों का जो सरकारी से कई गुना अधिक अच्छी सेवाएँ सरकार की अपेक्षा बहुत कम पैसों में उपलब्ध करवाते हैं यहाँ तक कि सरकारी वाले भी प्राइवेट सेवाओं का ही मजा लूटते हैं ये भी सरकारी कर्मचारियों पर भरोसा नहीं करते हैं। ऐसी सरकारों के धन से ही तो पुलिस विभाग भी पोषित है इनमें भी तो सरकारी खून ही है इनसे भी अपेक्षा ऐसी क्यों करनी कि ये लोग कोई चमत्कार कर देंगे ! ये आशा करना ही अदूरदर्शिता है अज्ञानता है । 

   दूसरी बात अन्य क्षेत्रों में सरकारी लोगों की अकर्मण्यता ढकने के लिए तो प्राइवेट विभाग हैं जैसे सरकारी स्कूलों के लिए  प्राइवेट स्कूल अादि आदि ऐसे ही कई अन्य क्षेत्रों में भी हैं किन्तु पुलिस विभाग के पास तो यह सुविधा भी नहीं है फिर भी इनसे ईमानदारी पूर्वक काम करने की अपेक्षा करना क्या कन्याओं के प्रति अपनी गैर जिम्मेदारी नहीं है !

    मुझे तो ऐसा लगता है कि  सरकारी कर्मचारी सरकार पर पड़ा  पिछले किसी जन्म का अपना  बकाया इस जन्म में वसूलने आए हुए हैं इसीलिए सैलरी बड़ी बड़ी और काम का तो भगवान ही मालिक है। मजे की बात तो यह है कि सरकारें इनके काम से हमेंशा खुश रहती हैं इसीलिए इतनी भारी भरकम सैलरी देने के बाद भी सरकारें इन्हें महँगाई भत्ता आदि आदि और भी न जाने क्या क्या हर साल देती रहती हैं फिर भी इनकी सैलरी बढ़ाती रहती हैं आखिर किसलिए !सच्चाई तो ये है कि सरकारों और सरकारी कर्मचारियों में आपसी अंडर स्टैंडिंग इतनी अच्छी होती है कि सरकारें केवल योजनाएँ बनाती हैं सरकारी कर्मचारी उनका हौसला बढ़ाते रहते हैं। वैसे तो सरकारी कर्मचारी न कुछ करना चाहते हैं और न ही सरकारें उनसे कुछ करवाना चाहती हैं !सरकाराधिपतियों को भाषण देने की लत होती है और सरकारी कर्मचारियों को सुनने की इसी खूबी की उन्हें सैलरी मिलती है इसीबल पर पदोन्नतियाँ होती रहती हैं इसीबल पर सरकारों  में सम्मिलित लोग खुश हैं इसमें जनता से न तो सरकारों को कोई मतलब होता है और न ही सरकारी कर्मचारियों को इतना सब होते देखने पर भी आश्चर्य है कि जनता ने सरकार से आशा लगा रखी है कि ये सरकारें और ये लापरवाह सरकारी कर्मचारी हमारी कन्याओं की सुरक्षा करेंगे !

   बंधुओ ! कन्याओं की सुरक्षा बहुत जरूरी है !बच्चियों को सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता जैसे सरकारी विभागों को अन्य जगहों पर प्राइवेट विभागों ने सँभाल रखा है वैसे ही कन्याओं की सुरक्षा हेतु पुलिस विभाग की मदद करने के लिए भी कृपा पूर्वक जनता को आगे आना चाहिए और सुरक्षा करनी चाहिए अपनी अपनी कन्यकाओं की ! यही वास्तविक कन्या पूजन होगा ।

  बच्चियों के साथ इतने बड़े बड़े इतने लोमहर्षक अत्याचार वो भी हमारे देश में वो भी हम सबके जीवित रहते वो सब कुछ हम सब देख रहे हैं फिर भी ऐसे पापी जिन्दा हैं और हम सब मिलकर भी ऐसे पापियों का सामना नहीं कर सकते आखिर क्यों ? 

  तीन तीन वर्ष तक की बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कारों और भ्रूण हत्या के जघन्यतम अपराधों ने समाज को हिलाकर रख दिया है सद्यः प्रसूत बच्चियाँ अस्पतालों में,मंदिरों में ,रेलवे स्टेशनों पर लोग छोड़कर भाग जाते हैं और तो क्या कहें कूड़े दानों में फ़ेंक कर चले जाते हैं शौचालय में फ़ेंक दी जाती हैं बच्चियाँ  | आखिर कौन समझेगा कन्याओं की इस वेदना को ?

  

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