रविवार, 11 जनवरी 2015

शिखरिणी

अजानन् दाहातम्यं पततु शलभस्तीव्रदहने स मीनोऽप्यज्ञानाद् बडिशयुतमश्नातु पिशितम्।
विजानंतोऽप्येते वयमिह विपज्जालजटिलान्
न मुञ्चामः कामानहह गहनो मोहमहिमा।
आग का स्वभाव जलाकर भस्म करना है। यह तथ्य न जानने के कारण परवाना दीये की लौ पर जल मरता है तो जलता-मरता रहे, मछली भी मूर्खता में कांटे-समेत मांस निगल-मरे तो निगलती रहे, परंतु यह कितने दुःख की बात है कि लोभ के ऐसे भयंकर परिणामों को जानते हुए भी हम मुसीबतों के जटिल जाल में फंसाने वाली काम-वासनाओं को नहीं छोड़ते। मोहमाया की ताकत सचमुच अगाध है

   

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