'नमस्कार' हो या 'नमस्ते' इन शब्दों का प्रयोग किसी के भी सामने किया जाए किन्तु हमेंशा इनका अर्थ होता है ईश्वर के लिए नमन !किसी के द्वारा किए गए नमस्ते को जो लोग मानते हैं कि ये मेरे लिए किया गया है वे भारी भ्रम में हैं ! जानिए कैसे ?
नमस्कार -
नमस्कार या नमस्ते शब्द का
प्रयोग किसी व्यक्ति के लिए भी किया जाए तो भी उसका अभिप्राय ईश्वर को नमन
ही होता है बिलकुल उसी तरह जैसे हम किसी को राम राम कहते हैं बदले में वो
भी राम राम कह देता है । देखें कैसे -
नमस्कार यह शब्द संस्कृत व्याकरण से सम्बंधित है इसमें नमः -
कार दो वर्ण समूह मिलते हैं नमः शब्द का अर्थ तो नमन करना होता है
किन्तु ये देवी देवताओं को नमन करने के अर्थ में ही प्रयोग विधान मिलता है
।
' कार' शब्द का अर्थ यहाँ नहीं है अपितु कार शब्द का
अर्थ भी नमः की ही पूर्ति करता है । जो लोग संस्कृत जानते हैं उन्हें पता
होगा कि संस्कृत में वर्णों का नाम पुकारने के लिए भी उसके पीछे कार लगते
हैं जैसे ककार का अर्थ 'क' एवं खकार का अर्थ ख होता है उसी प्रकार इकार
उकार आदि का अर्थ भी इ और उ होता है इसीप्रकार नमस्कार का अर्थ भी नमः ही
है विसर्ग को व्याकरण नियमानुशार आधा 'स' हो जाता है ऐसे बनता है
'नमस्कार' शब्द ।
जो लोग चर्मकार और कुम्भकार
मालाकार आदि की तरह नमस्कार शब्द को मानते हैं वो ठीक नहीं है क्योंकि
इसमें अर्थ निकलेगा 'करने वाला' किन्तु ऐसे अर्थ को नमस्कार के प्रसंग में
कैसे प्रासंगिक माना जा सकता है !जैसे - दिनेश नमस्कार करता है इसका अर्थ
यह तो नहीं ही हो सकता है कि दिनेश नमः कर्म करने वाला या नमः का काम करने
वाला है !
चूँकि नमः और श्री ये दोनों शब्द ईश्वरवाची
हैं इसलिए इनका प्रयोग किसी के लिए भी कर लिया जाए किन्तु इनकी गति ईश्वर
की ओर ही रहती है अर्थात लक्ष्य ईश्वर ही होता है।जैसे 'श्री' का अर्थ
लक्ष्मी है और लक्ष्मी केवल भगवान विष्णु के लिए ही हैं किसी और के लिए नहीं
उसी प्रकार से 'नमः ' केवल भगवान के लिए है किसी और के लिए नहीं !
महर्षि पाणिनि ने एक सूत्र लिखा -
" नमःस्वस्ति स्वाहा स्वधा अलं वषड् योगाच्च " 2 \3 \16 अर्थात नमः,स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलं ,वषड् आदि शब्दों का प्रयोग मनुष्यों के लिए नहीं किया जाता है ।
आज कल कुछ लोग गुरुपूजन आदि में भी नमः शब्द का प्रयोग करने लगे हैं
जैसे 'गुरुवे नमः ' किन्तु यहाँ गुरु शब्द को भी उसी देव भावना से माना
गया है ।
इसलिए नमस्कार शब्द नमः का
ही स्वरूप होने से 'ईश्वर को नमन हो' यही अर्थ लेना ही चाहिए ,इसीलिए
सामने वाला भी प्रत्युत्तर में नमस्कार हो यही बोलता है उसके भी कहने का
अभिप्राय
'ईश्वर को नमन हो' यही होता है, किन्तु जो लोग ऐसा मानते हैं कि नमस्कार
शब्द का अर्थ सामने वाले को नमस्कार करना होता है वो भ्रम में हैं इसीलिए
वो
इसमें बड़े छोटे की गणित लगाया करते हैं अर्थात अपने से छोटों को नमस्कार
हम कैसे करें !जबकि यदि भाव ईश्वर को नमस्कार करना है तो कोई किसी को करे
क्या अंतर पड़ता है । इसका एक भाव यह भी है कि हम ईश्वर को नमस्कार करते
हैं तो चार चीजें बढ़ती हैं आयु विद्या यश और बल किन्तु जब हम किसी और को
नमस्कार करते हैं तो बदले में वो भी नमस्कार करता है तो उसका भी आधा पुण्य
अपने को मिल जाता है किन्तु अपने से छोटों को कुछ देना चाहिए उनका हिस्सा
लेना नहीं इसलिए उनका आधा पुण्य लेने की भावना ही क्यों रखनी अतएव नियम
बनाया गया कि छोटे लोग अपने से बड़ों को अभिवादन करें ताकि उससे पैदा हुआ
आधा पुण्य छोटों को मिल जावे !इसी उदात्त भावना से अपने यहाँ इस शब्द का
प्रचलन है !जो लोग किसी बहुत छोटे या गरीब व्यक्ति के किए हुए नमस्कार का
यह सोच कर उत्तर नहीं देते हैं कि इसने हमें नमस्कार किया है वो तो ठीक है
किन्तु मैं उसे नमस्कार क्यों करूँ मैं बड़ा हूँ धनी हूँ ब्राहण हूँ पंडित
हूँ महात्मा हूँ या और भी बहुत कुछ हूँ इसलिए वो किसी के द्वारा किए गए
नमस्कार का निरादर करते हैं उसका उन्हें पाप लगता है !
हमें संस्कृत का यह श्लोक
कभी नहीं भूलना चाहिए कि जैसे धरती पर कहीं भी बरसा हुआ पानी समुद्र में
ही जाता है उसी प्रकार से किसी को भी किया गया नमस्कार केशव अर्थात श्री
कृष्ण को ही मिलता है
यथा-
सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रतिगच्छति ।
आदि आदि ।
इसी प्रकार से नमस्ते शब्द है
नमः - ते
ते = सः , तौ , ते
सः =वह
तौ =वे दोनों
ते =वे सब
यहाँ नमस्ते में 'ते ' इसलिए है कि किसी को सम्मान देने के लिए बहुबचन का प्रयोग किया जाता है-
" आदरार्थे बहुबचनम् " उसी नियम
से यहाँ 'ते' का प्रयोग किया गया है ,किन्तु इतना तो निश्चित है कि 'ते'
का अर्थ 'वे' है इसलिए 'नमस्ते' शब्द का अर्थ हुआ कि 'उसको' नमस्कार है जबकि नमस्ते वो सामने वाले को कर रहा होता है और सामने वाले के लिए 'उसको'का प्रयोग हो नहीं सकता है इसलिए 'उसको' शब्द का संकेत ही ईश्वर की ओर है !
अतएव 'नमस्ते' हो या 'नमस्कार ' इन शब्दों का अर्थ होता है ईश्वर को नमन ।
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