गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

अधिकारी अधिकारी होते हैं वो बड़ों बड़ों को लगा लेते हैं लाइन में !भले वो मंत्री ही क्यों न हों !!

पढ़े लिखे अधिकारियों की विद्या का सम्मान करते हुए से पढ़े लिखे नेता ही करा पाते हैं अपने काम !
   बिना पढ़े लिखे नेता तो अक्सर रौब दिखाने के लिए आते हैं राजनीति में तो रौब देखना अधिकारियों की लोकतांत्रिक मजबूरी होती है किंतु वो जो काम बताते हैं अधिकारी उसी में पेंच फँसा देते हैं वो तो गंगा किनारे के पण्डे हैं जिनके बिना गंगा स्नान सफल कहाँ होता है इसीप्रकार से उन्हें तो हर मंत्री पाँच वर्ष ढोना होता है सबको पता है कि किसी बैग में घुसा नया बंदर कुछ दिन तो उछलकूद करता ही है धीरे धीरे सुधर जाता है यही हालत नए नए बने मंत्रियों की होती है धीरे धीरे सब सुधर जाते हैं और मानने लगते हैं अपने अपने अधिकारियों की बात ! इसलिए वो ऐसा कोई काम होने ही नहीं देते जिससे उन अँगूठा  टेकों को यश मिले क्योंकि अच्छा काम करने पर भी यश उन्हें तो मिलना नहीं होता है जो अधिकारी काम करते हैं इसलिए उनकी प्रतिष्ठा न बढ़ सके इसका वो पूरा ध्यान रखते हैं ऐसे नेताओं और अधिकारियों के बीच पिसती रहती है जनता ! यदि नेताओं में भी शिक्षा अनिवार्य हो जाए तो मिट सकती हैं ये दूरियाँ और हो सकते हैं जनता के कार्य आसान !

बिना पढ़े लिखे नेता पढ़े लिखे विद्वान अफसरों पर अंकुश लगाने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं !इसीलिए आज हर सरकारी विभाग फेल है ! सुशिक्षित एवं जनसेवाव्रती लोगों की राजनैतिक पार्टियों में कोई पूछ नहीं होती है !भर्ती भ्रष्टाचारी और अशिक्षित लोग किए जाएँगे और बातें ईमानदारी की !कैसे भरोसा किया जाए इन नेताओं पर कि ये करना क्या चाहते हैं !

     राजनीति गधों को घोड़े जैसा दिखने का शार्टकट माध्यम है किंतु नेताओं के चींपों चींपों बोलने और भ्रष्टाचार का बोझा ढोने के स्वभाव को बदला नहीं जा सकता !वैसे भी जिन्हें खुद उठने बैठने बोलने या ना थूक पूछने की सभ्यता अफसर सिखाते हों ऐसे दिमागी खोखले नेताओं की बातों की अफसर अनसुनी न करें तो क्या करें !

      इसीलिए नेता लोग योग्य ,ईमानदार ,स्वाभिमानी और जनसेवाव्रती लोगों को पहले तो राजनीति में घुसने ही नहीं देते हैं और किसी प्रकार से यदि घुस भी गए तो ठहरने नहीं देते हैं कोई न कोई जुगाड़ लगाकर किनारे कर देते हैं !

     बंधुओ !अफसर बनने के लिए एक से एक कठिन परीक्षाएँ देनी होती हैं किन्तु मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बनने के लिए न कोई परीक्षा न कोई पढ़ाई और पढ़ लिखकर करना भी क्या अफसर लोग खुद नेता जी हिस्सा पहुँचा आते हैं नेता जी के बंगले पर !सत्ता अपने हाथ में तो भय किसका !नोटों के बोरे अफसर लोग घर में लाकर जहाँ चाहें फ़ेंक कर चले जाएँ !यही कारण है कि राजनीति में घुसते समय जिनकी जेब में अपना किराया नहीं होता वे कुछ ही वर्षों में अरबों खरबों में खेलने लगते हैं ।

   पढ़े लिखे ईमानदार टाइप लगने वाले नेताओं को कौन पूछता है राजनीति में अपराधी और खूंखार टाइप के लोगों के लिए हर पार्टी प्राण देती है राजनीति में आज भी उनकी भारी डिमांड है !आपके भाषणों में गालियाँ या औरों की निंदा जितने अच्छे ढंग से पिरोई गई हो आप उतने कुशल वक्त माने जाएँगे !

  हर पार्टी के लोगों को मैंने यह कहते  सुना है कि वो राजनैतिक शुद्धि के लिए पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।जिससे देश में ईमानदार राजनीति का वातावरण बनाया जा सके।

   यह सुनकर मैंने भी अपने अंदर झाँका और अपने अंदर भी राजनैतिक योग्यता की खोज की तो मुझे लगा कि   कि मैंने भी दो विषय से आचार्य (एम.ए.)  दो  विषय से अलग से एम.ए. एवं बी.एच.यू. से पीएच.डी की है।करीब100किताबें लिखी हैं यद्यपि सारी अभी प्रकाशित नहीं हो पाई हैं इनमें कई काव्य ग्रंथ भी हैं।प्रवचन भाषण आदि करने ही होते हैं । आरक्षण आंदोलन से आहत होकर मैंने आजीवन सरकार से नौकरी न मॉंगने का व्रत लिया हुआ है। वैसे भी ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने का प्रयास करता रहा  हूँ। फिलहाल अभी तक निष्कलंक जीवन है यह कहने में हमें कोई संकोच नहीं हैं।      

     हर पार्टी पढ़े लिखे ईमानदार योग्य लोगों को राजनीति में अपने साथ जोड़ने की बात करती है किन्तु यदि आप अपने को बहुत पढ़ा लिखा और बहुत ईमानदार समझकर राजनीति में जुड़ने की इच्छा से किसी बड़ी पार्टी के प्रमुखों से मिलना चाहते हैं तो जरूरी नहीं कि वो आप से मिल भी लें मिलें तो बात भी कर लें बातकरें तो अपने साथ जोड़ें भी और जोड़ें तो आपकी योग्यता के अनुरूप काम भी दें जहाँ आप अपनी योग्यता का उपयोग जन सेवा के लिए करते हुए समाज के कुछ काम भी आ सकें !

     अबकी बार दिल्ली के राजनैतिक चुनावों में हिंदूवादी संस्कारवान पार्टी के एक नेता जी के पास उनसे समय लेकर मिलने गया तो मुश्किल में तो वो सामने आए बहुत जल्दी में थे बोले बताओ !तो मैं अपनी लिखी हुई कुछ किताबें लेकर गया था वो उन्हें भेंट करनी चाहीं तो उसमें हमारी दोहा चौपाइयों में लिखी  गई दुर्गासप्तशती भी थी जिसे उन्होंने जैसे तैसे पकड़ तो लिया हाथ के हाथ उठाकर किन्हीं मिसेजगुप्ता को यह अहाते हुए दे दिन कि अपने घर लेते जाना !इधर हमारी ओर देखते हुए नेता जी ने कहा कि तो आप राजनीति  जुड़ना चाहते हैं तो मैंने कहा हाँ ,सोच रहा हूँ कि सरकारी और निगम स्कूलों में बच्चों के भविष्य के साथ बहुत खिलवाड़ हो रहा है तो उनके बीच जाकर काम करूँ शायद शिक्षा  सुधार में कुछ मेरा भी योगदान हो सके!तो उन्होंने कहा इसक़ाम के लिए आपको राजनीति में जुड़ने की क्या जरूरत !ये तो वैसे भी कर सकते हैं मैंने कहा वैसे तो कर ही रहा हूँ किंतु बच्चों के हित में करने योग्य नैतिक बातें भी शिक्षक मानने से मना कर देते हैं इसलिए निगम से लेकर शीर्ष सत्ता तक आपकी पार्टी का बर्चस्व है इसलिए आपके साथ जुड़ने से कुछ तो उन्हें सत्ता के दबाव में सही सलाहें स्वीकार करनी होंगी या इतनी आसानी से इंकार नहीं कर पाएँगे !तो वो हँसे और कहने लगे कि स्कूलों का न कुछ तुम कर सकते हो और न मैं ये ऐसे ही चलेंगे !और राजनीति में तुम लोगों से मिलो जुलो काम करते रहो बाक़ी ठीक है वैसे भी तुम चंडी पाठ वाले ठहरे जबकि यहाँ राजनीति में तो रंडी पाठ का बोल बाला है तुम्हीं देखो क्या कुछ कर पाओगे !ऐसा सुनकर मैं चला आया !    
    इस प्रकार से अपनी शैक्षणिक सामर्थ्य  का राजनैतिक दृष्टि से देशहित में सदुपयोग करना चाहता था, इसी दृष्टि से मैंने लगभग हर पार्टी से संपर्क करने के लिए सबको पत्र लिखे अपनी पुस्तकें भेजीं अपने डिग्री प्रमाणपत्र भेजे फोन पर भी संपर्क करने का प्रयास किया,किंतु कहीं किसी ने हमसे मिलने के लिए रुचि नहीं ली।किसी ने हमें पत्रोत्तर देना भी ठीक नहीं समझा।कई जगह तो दो दो बार पत्र डाले किंतु कहीं कोई चर्चा न हो सकी किसी ने मुझे पत्र लिखने लायक या फोन करने लायक नहीं समझा मिलने की बात तो बहुत दूर की है।
      हमारे राष्ट्रपति जी दुर्गा जी के भक्त हैं यह सुनकर उन्हें अपनी दोहा चौपाई में लिखी दुर्गा सप्तशती की पुस्तकें  भेंट करके अपनी कुछ बात निवेदन करने का मन बनाया किंतु वहॉं पुस्तकें एवं पत्र भेजने के बाद भी उसके उत्तर में कोई पत्र नहीं आया ।
   इसके बाद कुछ हिंदू संगठनों से  इसलिए संपर्क किया कि मेरी धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से है शायद  वहीं हमारा या हमारी शिक्षा का जनहित में शैक्षणिक सदुपयोग हो सके तो अच्छा होगा वहॉं के बड़े बड़े लोगों ने हमसे मिलना ठीक नहीं समझा,उनसे छोटे लोगों को हमारी शिक्षा में कोई प्रत्यक्ष रुचि नहीं हुई, यद्यपि वहॉ मुझे इसलिए उन्होंने संपर्क में बने रहने को कहा ताकि हमारी समाज में जो गुडबिल है उसे संगठन के हित में आर्थिक रूप से कैस किया जा सके ऐसा उन्होंने कहा भी!यहॉं से इसी प्रकार के यदा कदा फोन भी आये जिनमें मैंने पैसे के कारण अपनी सीमा में ही रूचि ली !
   इसके बाद निष्कलंक जीवन बेदाग चारि़त्र का नारा देने वाले एक सामाजिक संगठन से जुड़ने के लिए वहॉं के मुखिया को अपना साहित्य भेजा और मिलने के लिए पत्र के माध्यम से समय मॉंगा किंतु वहॉं से भी मुझे कोई जवाब नहीं आया, इसके बाद ब्लाग पर बैठ कर चुपचाप मैं अपने बिचार लिखने लगा।

     बी.पी.सिंह जी की सरकार के समय में राजनेताओं के आधारहीन अदूरदर्शी फैसलों से सारा समाज आहत था आरक्षण से लेकर श्री राम मंदिर आन्दोलन तक उसी समय की उपज थे और दोनों में निरपराध लोग मारे गए!उस समय के बाद राज नीति धीरे धीरे प्रदूषित होती चली जा रही है।बहुत दिन बाद जब अटल जी की सरकार आई उसमें तो देश वासियों के प्रति अपनापन दिखा जिसमें जनता को सुख सुविधाएँ मिलती दिखीं भी जनता की जरूरत की चीजें जनता की आर्थिक क्षमता के अनुशार उपलब्ध कराने का प्रयास हुआ।इसके अलावा तो आँकड़ों और आश्वासनों का खेल चलता रहता है जनता मरे मरती रहे,महँगाई बढ़े बढ़ती रहे अपराध बढ़ें बढ़ते रहें, सरकारें बड़ी बेशर्मी से पूरे देश में सुख चैन के आँकड़े लेकर प्रेस कांफ्रेंस करती रहती हैं ये जनता की पीड़ा से अपरिचित सरकारें या यूँ कह लें कि जनता से दूर रहकर केवल चुनावी खेल खेलने वाली सरकारें कभी भी समाज एवं देश हित में नहीं हो सकती हैं इन्हें अपने काम पर भरोसा ही नहीं होता है इसलिए हर चुनाव केवल उन्माद फैलाकर जीतना चाहती हैं!इन राजनैतिक दलों का उद्देश्य ही जन सेवा न होकर कैसे भी सत्ता में बने रहना होता है सत्ता  से हटते ही चेहरे की चमक चली जाती है। ये भावना ठीक नहीं है हर राजनेता के मनमें समाज के लिए स्थाई सेवा भाव तो चाहिए ही जो अधिकांश नेताओं में नहीं दिखता ऐसे में उन्माद फैलाकर चुनाव जीतने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प दिखता भी नहीं है जातिगत आरक्षण के रूप में बी.पी.सिंह जी ने भी उसी शार्टकट का ही सहारा लिया जो समाज के लिए दुखद साबित हुआ!

    इसी राजनैतिक कुचाल से आहत होकर बेरोजगारी के भय से युवा वर्ग न केवल घबड़ा गया अपितु आरक्षण के समर्थन और विरोध में संघर्ष पूर्ण आन्दोलनों में कूद पड़ा !जिस प्रकार से एक साथ एक कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के समूह भी एक दूसरे से लड़ रहे थे जाति व्यूहों में बँट चुका था सारा देश !कितना दारुण दृश्य था वह! जब बड़ी संख्या में छात्र आत्म दाह करने पर मजबूर हो रहे थे! उसी समय में पटना में आरक्षण विरोधी छात्रों पर सरकारी मशीनरी ने गोली चलाई जिसमें कई छात्र घायल हुए थे इसी में एक छात्र श्री शैलेन्द्र सिंह जी मारे गए थे जिनका दाह संस्कार वाराणसी के हरिश्चंद घाट पर किया गया था उस समय वहाँ बहुत भीड़ उमड़ी थी जिसमे बहुत सारे लोग रो रहे थे बड़ा भावुक वातावरण था मैं भी उसी भीड़ में खड़े रो रहा था !वह विद्यार्थी जीवन था मैंने उसी भावुकता  वश अपने मन में ही एक व्रत ले लिया कि अब मैं कभी सरकार से नौकरी नहीं मागूँगा !!!उसके बाद ईश्वर की कृपा से इतना पढ़ने के बाद भी आज तक सरकारी नौकरी के लिए किसी प्रपत्र पर कभी साइन तक भी नहीं किए हैं ये बात हमारे सैकड़ों मित्रों को पता है। मुझे लगा कि मैं भी तो उसी सवर्ण जाति से हूँ जिस पर दबाने कुचलने एवं शोषण करने के आरोप लगाए जा रहे हैं! हम सवर्णों के अधिकारों के लिए ही तो शैलेन्द्र सिंह जी का बलिदान हुआ है!

    इसके बाद आर्थिक तंगी और धनाभाव से होने वाली बहुत   सारी समस्याओं का सामना तो करना ही था जो  सपरिवार मैं आज तक कर भी रहा हूँ !बचपन में पिता जी का देहांत हो गया था संघर्ष पूर्ण जीवन जीते जीते माता जी भी असमय में ही चल बसीं ! कुल मिलाकर परिस्थियाँ अच्छी नहीं थीं।केवल विद्या का साथ था।शैक्षणिक शोषण भी समाज के अर्थ संपन्न लोगों ने करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी परिस्थितियों का लाभ तो चालाक और सक्षम  लोग उठा ही लेते हैं!

     मुझे लगा कि जब अब नौकरी करनी नहीं है तो शिक्षा का समाज हित में ही सदुपयोग किया जाए और जन जागरण किया जाए कि किसी जाति के पीछे रह जाने में सवर्णों का कोई हाथ नहीं है ये राजनेताओं के द्वारा गढ़े गए किस्से हैं। इस प्रकार आपसी भाईचारे की भावना भरना हमारा लक्ष्य था जिसके लिए कुछ प्राइवेट   संगठनों से जुड़ा तो देखा समाज सेवा तो कहाँ वो लोग समाज से केवल धन इकट्ठा करने की बात किया करते और सोचते भी यही थे!मुझे लगा कि यही करना है तो किसी राजनैतिक दल से जुड़ जाता हूँ सभी दलों और यथासंभव यथा सुलभ नेताओं से संपर्क किया किन्तु किसी ने मुझमें समाज सेवा के वो गुण नहीं पाए जो एक राजनेता में होने चाहिए!मेरे व्रती,शिक्षित ,सदाचारी,त्याग पूर्ण समाजसेवी जीवन की बातें कहाँ पसंद की जाती हैं राजनीति में? वहाँ तो ऐसी बातें लिखकर भाषणों में पढ़ने के काम आती हैं। 

    

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