शनिवार, 20 जून 2015

प्रधानमंत्री श्री मोदी जी आपके सफलीभूत योग प्रयास के लिए आपको अनंतानंत बधाइयाँ !

   बंधुओ ! योगदिवस पर आप सभी को शारीरिक मानसिक आदि रूपों से सम्मिलित होने पर बहुत बहुत बधाई !  
   बधाई मोदी जी आपको आपकी  अध्यात्म विद्याओं की रूचि और महत्वपूर्ण प्रयास ने आज विश्व को योग विद्या की ओर प्रेरित किया है ! इसके लिए आपकी  जितनी भी  प्रशंसा की जाए कम है। 
   प्रधान मंत्री जी !आप से देश  के उन लोगों को बहुत कुछ सीखने की जरूरत है जो विदेश जाते हैं और वहाँ से संस्कारों के नाम पार कुछ न कुछ समेटे चले आते हैं कोई बेलेंटाइन ले लाया तो कोई जन्म दिन पर केक काटने जैसी कुसंस्कृति तो कोई ऊटपटांग पहनावा समेट  कर चला आता है फिर भारतीय टेलीविजनों पर बैठकर देश वासियों को यह कहते हुए कोसने लगता है कि हम कितने पुराण पंथी या पोंगा पंथी या रूढ़िवादी हैं इसीलिए पिछड़ते जा रहे हैं ऐसी हीन  भावना से ग्रस्त होकर स्वदेशी विदेश घुमक्कड़ों ने हमेंशा देश वासियों का मनोबल गिराया है । 
   उसके विपरीत मोदी जी आपने  विश्व को अपनी संस्कृति की ओर प्रभावित किया है यह आपका विशिष्ट श्रेणी का पुरुषार्थ है ! इसके लिए राजनैतिक भेदभावना से ऊपर उठकर हर देश प्रेमी को आपकी सराहना करनी ही चाहिए ! 
   आज जब भारत में रहने वाले भारतीय हिंदुओं ने केवल इसलिए अपनी चोटियाँ कटवा डालीं कि उन्हें कहीं कोई रूढ़िवादी न समझ ले उस युग में उन विदेशी लोगों का  विराट समूह जो भारतीय संस्कृति से तटस्थ रहना पसंद करता था , उन सबके सामने विकास और बहादुरी बखाने जाने योग्य मंच पर जब मोदी जी आप ने निर्भीकता पूर्वक अपनी संस्कृति जन्य योगदिवस  के प्रस्ताव को रखा था यह सामान्य साहस एवं अध्यात्म लगाव नहीं कहा जा सकता इस पर वहाँ सदस्य देशों की प्रतिक्रिया कुछ भी हो सकती थी किंतु वह सहने के लिए वहाँ माँ भारती  का दुलारा तैयार था और आपके इस साहसिक प्रयास को फलीभूत होते देख आज मैं प्रेम विभोर हूँ । 
    आज सुबह कार्यक्रम में मोदी जी आपकी सहज विनम्र एवं शालीन उपस्थिति ने व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत प्रभावित किया है साथ ही आपके संक्षिप्त भाषण के सजीव अंशों ने योग के प्रति फैली इस अवधारणा को निर्मूल कर दिया है कि योग केवल कसरत और व्यायाम मात्र है आपने कहा कि कसरत और व्यायाम तो योग को प्रारम्भ करते समय सुरताल मिलाने के लिए किए  जाने वाले संगीत आयोजनों की प्रारंभिक जुगलबंदी की तरह है जो योगविज्ञान की दृष्टि से एक कण मात्र है बाक़ी योग तो अत्यंत विराट सागर है प्रधानमंत्री जी !आपकी इस सारगर्भित बात और उदाहरण ने प्रेमपूर्वक समाज को वह समझा दिया है कि योगविद्या से जुड़कर केवल कसरत  तक सीमित न रह जाओ अपितु योग की दिव्यता के प्रिय पथिक बनिए और झांकिए अपने अंतर्जगत को और अब जातिसम्प्रदायों से ऊपर उठकर रोकिए अपने बनावटी अहम को और बढ़ने दीजिए आत्मा को परमात्मा की ओर! सँभालिए अपने अपने लोक परलोक की दिव्यता को और लीजिए जीवन का आनंद साथ ही पहचानिए लोकोत्तर देश !
      मोदी जी !इस पुनीत कृत्य के लिए आपको पुनः पुनः बधाई !साधुवाद !आभार !कृतज्ञता आदि !
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