बंधुओ ! विश्व में हमारे योग की
पोल खुले उससे पहले हमें सुधर जाना चाहिए !
यदि हाथ पैर मोड़ना मरोड़ना और शरीर को लचीला बनाना ही योग है तो फिर इन भाइयों को योग का विश्वगुरु मान लेना चाहिए क्या !
बंधुओ !नेट से उठाए गए इन सभी चित्रों की सत्यता के हमारे पास कोई प्रमाण नहीं हैं हमने तो उदाहरण के रूप में ये उद्धृत किए हैं कि क्या योग वास्तव में इतना आसान होता है कि जिस योगबल की शास्त्रों में अमित महिमा समझाई गई है वो यही योग है क्या या कुछ और !
हमें
व्यायाम को व्यायाम कहने में शर्म क्यों आती है और योग के लिए योग सिद्ध साधकों की
खोज क्यों न की जाए !आखिर योग के नाम पर कब तक बिकेगा डालडा !और इस
व्यायामी योग में ऐसा क्या है जो
स्कूलों में भी इसे पढ़ाया जाएगा ! सुना है
कि इसके लिए अलग से शिक्षक भी रखे जाएँगे , कक्षाएँ भी चलेंगी !सरकारी
स्कूलों के बच्चों और उनके माता पिता को इस योग की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी वो
मेहनत मजदूरी करने वाले परिश्रम के पसीने से पवित्र लोग ऐसे योगकर्ताओं
की ओर देखेंगे भी क्यों उनके हिसाब से ये योग नहीं अपितु रईसत के चोचले हैं
खेतों में काम करने वाले परिश्रम के पसीने से पवित्र किसानों का क्या भला करेगा यह योग ! और
जिस दिन किसान मजदूर भी ऐसा शारीरिक योग करने लायक हो जाएँगे उस दिन उनके बच्चे भी सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे अपितु प्राइवेट
स्कूलों में पढ़ने लगेंगे !इसलिए ऐसा योग कृपा करके प्राइवेट स्कूलों में ही लागू किया जाता तो अच्छा होता !
वैसे तो छोटे बच्चों को बचपन में खेलने का स्वतंत्र अवसर मिले तो उन्हें शारीरिक योग की आवश्यकता कभी नहीं पड़ेगी और मानसिक शुद्धि के लिए ऐसे योगों में कुछ होता नहीं है इसलिए विश्व में हमारे योग की पोल खुले उससे पहले हमें सुधर जाना चाहिए !भलाई इसी में हैं बाकि अपनी अपनी इच्छा !
योगाश्रम के योगसिद्ध साधक
बंधुओ !महर्षि पतंजलि से पूछा गया कि योग के लिए आसन कैसा होना चाहिए तो उन्होंने कहा ' स्थिर सुखमासनम् ' उन्होंने बैठने का तरीका तो साधक की इच्छा पर छोड़ दिया !किंतु आज योग के कलाकारों ने आसन समझाने के नाम पर शरीर को जैसे तैसे मोड़ना मरोड़ना सिखाना शुरू कर दिया है कि योग आज ध्यान धारणा समाधि की ओर भले ही प्रेरित न कर पा रहा हो किंतु कसरत सिखाने वालों ने जब से व्यायाम को योग कहना शुरू किया है तब से और कुछ हुआ हो या न हुआ हो किन्तु उद्योग बन गया है योग !
यदि शरीर को मोड़ना मरोड़ना ही योग है तो नट नर्तकों को भी मान
लिया जाए
योगगुरु !वे क्या बुरे हैं ? योग कला नहीं है और न ही है व्यायाम !इसलिए
योग को योग रहने दिया जाए और व्यायाम को व्यायाम !योग को क्यों किया जाए
बदनाम ?
बंधुओ ! मेहनत मजदूरी करके परिश्रम पूर्वक कमाने खाने वालों के कहाँ निकलते हैं पेट ! ये हाथ पैर हिलाने वाले योग तो पैसे वालों के चोचले हैं जो नौकरों चाकरों पर आश्रित जिंदगी जीने वाले आराम पसंद दुनियाँ के कुछ स्वयंभू बादशाहों के पेट पिचकाने के लिए कसरतों व्यायामों को योग बता दिया गया !जब व्यायाम को योग कहना शुरू कर ही दिया गया है तो शहरों में जगह जगह खुले जिमों को क्या योगपीठ मान लिया जाए ! कुछ लोगों ने योग को कला समझा तो ऐसे कलाकारों ने बड़ी सफाई से कलाकारी पूर्वक अपने शरीर और अंगों को मोड़ा मरोड़ा पेट फुलाया पिचकाया शरीर को विभिन्न अंगों पर संतुलित किया इस प्रकार से कसरत व्यायाम आदि के निरंतर अभ्यास से शरीर को लचीला बनाया और समाज के सामने योग के नाम से परोस दिया ! तो क्या इन्हें योग गुरू मान लिया जाए बंधुओ ! क्या आपको याद है कि अखाड़े में लड़ने वाले पहलवान भी तो अपने शरीरों को ऐसे ही सुगठित बनाते हैं तो क्या अब उन पहलवानों को योगी कहने लगा जाएगा ! और उन अखाड़ों को योगाश्रम मान लिया जाएगा!see more... https://www.youtube.com/watch?v=---ebbk38z4
यदि हाथ पैर मोड़ना मरोड़ना और शरीर को लचीला बनाना ही योग है तो फिर इन भाइयों को योग का विश्वगुरु मान लेना चाहिए क्या !
बंधुओ !नेट से उठाए गए इन सभी चित्रों की सत्यता के हमारे पास कोई प्रमाण नहीं हैं हमने तो उदाहरण के रूप में ये उद्धृत किए हैं कि क्या योग वास्तव में इतना आसान होता है कि जिस योगबल की शास्त्रों में अमित महिमा समझाई गई है वो यही योग है क्या या कुछ और !
योगगुरु गजानन देव जी महाराज योगगुरु श्वानदेव जी महाराज योगगुरु स्वामीकपीश्वरदेव जी महाराज |
वैसे तो छोटे बच्चों को बचपन में खेलने का स्वतंत्र अवसर मिले तो उन्हें शारीरिक योग की आवश्यकता कभी नहीं पड़ेगी और मानसिक शुद्धि के लिए ऐसे योगों में कुछ होता नहीं है इसलिए विश्व में हमारे योग की पोल खुले उससे पहले हमें सुधर जाना चाहिए !भलाई इसी में हैं बाकि अपनी अपनी इच्छा !
योगाश्रम के योगसिद्ध साधक
बंधुओ !महर्षि पतंजलि से पूछा गया कि योग के लिए आसन कैसा होना चाहिए तो उन्होंने कहा ' स्थिर सुखमासनम् ' उन्होंने बैठने का तरीका तो साधक की इच्छा पर छोड़ दिया !किंतु आज योग के कलाकारों ने आसन समझाने के नाम पर शरीर को जैसे तैसे मोड़ना मरोड़ना सिखाना शुरू कर दिया है कि योग आज ध्यान धारणा समाधि की ओर भले ही प्रेरित न कर पा रहा हो किंतु कसरत सिखाने वालों ने जब से व्यायाम को योग कहना शुरू किया है तब से और कुछ हुआ हो या न हुआ हो किन्तु उद्योग बन गया है योग !
यदि शरीर को मोड़ना मरोड़ना ही योग है तो नट नर्तकों को भी मान
योग साधक की सीख |
बंधुओ ! मेहनत मजदूरी करके परिश्रम पूर्वक कमाने खाने वालों के कहाँ निकलते हैं पेट ! ये हाथ पैर हिलाने वाले योग तो पैसे वालों के चोचले हैं जो नौकरों चाकरों पर आश्रित जिंदगी जीने वाले आराम पसंद दुनियाँ के कुछ स्वयंभू बादशाहों के पेट पिचकाने के लिए कसरतों व्यायामों को योग बता दिया गया !जब व्यायाम को योग कहना शुरू कर ही दिया गया है तो शहरों में जगह जगह खुले जिमों को क्या योगपीठ मान लिया जाए ! कुछ लोगों ने योग को कला समझा तो ऐसे कलाकारों ने बड़ी सफाई से कलाकारी पूर्वक अपने शरीर और अंगों को मोड़ा मरोड़ा पेट फुलाया पिचकाया शरीर को विभिन्न अंगों पर संतुलित किया इस प्रकार से कसरत व्यायाम आदि के निरंतर अभ्यास से शरीर को लचीला बनाया और समाज के सामने योग के नाम से परोस दिया ! तो क्या इन्हें योग गुरू मान लिया जाए बंधुओ ! क्या आपको याद है कि अखाड़े में लड़ने वाले पहलवान भी तो अपने शरीरों को ऐसे ही सुगठित बनाते हैं तो क्या अब उन पहलवानों को योगी कहने लगा जाएगा ! और उन अखाड़ों को योगाश्रम मान लिया जाएगा!see more... https://www.youtube.com/watch?v=---ebbk38z4
फिल्म या नाटक के कलाकार अपने शरीरों को अपने रोल के हिसाब से पतला मोटा
सुगठित सुन्दर आकर्षक आदि बना लेते हैं तो फिल्मी कलाकरों को क्या योगी कहा
जाने लगेगा ?
नृत्य कला में प्रवीण लोग अपने शरीर का एक एक अंग मोड़ मरोड़ लेते हैं शरीर
को समेटने फैलाने की अद्भुत कला होती है उनमें !किंतु ऐसे नर्तक नर्तकियों
को क्या योगी कहा जाने लगेगा ?और नृत्यांगणों को योगमंच !
सर्कस में काम करने वाले कलाकार कैसे कैसे करतब दिखाते हैं शरीरों पर
कितना अद्भुत नियंत्रण होता है उनका ,गेंद की तरह उछाल देते हैं अपने शरीर
किंतु उनकी इस शारीरिक कुशलता को देखकर उन्हें योगी कह दिया जाना कहाँ तक
ठीक है ?see more .... https://www.youtube.com/watch?v=Llx-m0FBZ8U
इनका मुख्य पेशा है। इनकी स्त्रियाँ खूबसूरत
होने के साथ साथ हाव-भाव प्रदर्शन करके नृत्य व गायन में काफी प्रवीण होती
हैं तो क्या ये लोग योगी हो गए ! see more ..... https://www.youtube.com/watch?v=XH0OoEsWKAg
इसलिए व्यायाम केवल व्यायाम है और कला केवल कला है पहलवानी और जिम अलगबात है इनसे योग जैसी दिव्य साधनात्मिका विद्या की तुलना कैसे की जा सकती है !
योग और व्यायाम में पर्याप्त अंतर है योग शरीर का नहीं अपितु मन का
व्यायाम है योग चौराहों और शिविरों में नहीं हो सकता वो तो एकांत और निर्जन
या शांत स्थान में किया जाता है योग सामान्य क्रिया नहीं अपितु विशिष्ट
साधना है योग का सबंध तन से नहीं अपितु मन से है इसीलिए योग मन को स्वच्छ
और स्वस्थ करता है योग मानसिक क्रियाओं का विशिष्ट अभ्यास है योग मन को
नियंत्रित करने का महान विज्ञान है !योग को शारीरिक उठा पटक के नजरिए से
नहीं देखा जाना चाहिए !
गीता के अध्याय 6 में भगवान श्री कृष्ण ने बताया है कि योग कैसे करना चाहिए आप स्वयं देखिए -
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः। उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥ अध्याय 6 \१२
भावार्थ : योग के अभ्यास के लिये
मनुष्य को एकान्त स्थान में पवित्र भूमि में न तो बहुत ऊँचा और न ही बहुत
नीचा, कुशा के आसन पर मुलायम वस्त्र या मृगछाला बिछाकर, उस पर
दृड़ता-पूर्वक बैठकर, मन को एक बिन्दु पर स्थित करके, चित्त(मन) और इन्द्रिओं
की क्रियाओं को वश में रखते हुए अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास
करना चाहिये। (१२)
बंधुओ ! भगवान श्रीकृष्ण ने योग के विषय में साफ साफ कहा है कि अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करना चाहिए !उन्होंने आगे समझाया कि योग करना कैसे चाहिए -
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः ।सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥ (१३)
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥ (१४)
भावार्थ : योग के अभ्यास के लिये
मनुष्य को अपने शरीर, गर्दन तथा सिर को अचल और स्थिर रखकर, नासिका(नाक)के आगे
के सिरे पर दृष्टि स्थित करके, इधर-उधर अन्य दिशाओं को न देखता हुआ, बिना
किसी भय से, इन्द्रिय विषयों से मुक्त ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित, मन को
भली-भाँति शांत करके, मुझे अपना लक्ष्य बनाकर और मेरे ही आश्रय होकर, अपने
मन को मुझमें स्थिर करके, मनुष्य को अपने हृदय में मेरा ही चिन्तन करना
चाहिये। (१३,१४)
इसी विषय में पढ़ें ये लेख -- योग क्या है ?योग में भी भ्रष्टाचार है क्या !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/06/blog-post_20.html
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