कितनी सुन्दर और स्वादिष्ट होगी वह स्वप्न सुंदरी मैगी !वाह !! बाबाओं को काम मिलेगा समाज को कम दाम पर शुद्धसामान मिलेगा !
जनता जहर खाने से बचेगी ब्यापारियों को ब्यापार के संस्कार मिलेंगे
हमारा नारा होगा "ब्यापार से पहले हरिद्वार"पहले साधू संत बनें तब करें
ब्यापार !भगवान ने चाहा तो अगर गंगा जमुना में जहाज चलने लगे तो फिर धर्म
नगरियों से धर्म चले न चले व्यापार चमक उठेगा !समाज के सारे प्रोडक्ट साधू
संतों के नाम से बनेंगे बिकेंगे उनकी एक फोटो ऊपर लगी होगी फिर जहरीला होने
पर भी जहरीलेपन की गुंजाइश ही नहीं रहेगी !अगर कभी कुछ संयोगवश
ऐसा हो ही गया तो संतों के प्रसाद के लिए तो परमात्मा भी तरसता होगा बस उसी
भावना से इस नश्वर शरीर से क्या मोह करना !इसलिए साधुओं की मैगी में गुण
ही गुण होंगे कितनी सुन्दर और स्वादिष्ट होगी वह स्वप्न सुंदरी मैगी !वाह
!!
क्यों नहीं बिलकुल साधुओं के पास अब और काम क्या हैं वैसे भी साधू वही जो सब कुछ कर सके वो न्यूडल बनाना ही क्यों न हो ! और जो न बना सके वो साधू किस बात का !वैसे भी बेकार में पड़े रहने से अच्छा है कुछ तो किया जाए !
"बड़े भाग मानुष तन पावा " इसे सुर दुर्लभ कहा गया है !' साथ ही बताया गया है कि कई लोग साधू तो बन जाते हैं किंतु पूर्व जन्मार्जित कर्मों के प्रभाव से कुछ साधु लोग जैसे विरक्ति आदि आचरणों का पालन नहीं कर पाते हैं तो अपना मैगी बनाया करेंगे ,बहुमूल्य मानव शरीर का सदुपयोग तो होगा यथा -
यथा - दो.पूर्व जन्म के पाप से हरी चर्चा न सोहात !!
ऐसे लोग या तो धंधा व्यापार करें या फिर राजनीति !तीर्थों में बस कर भजन करने में प्रवृत्ति तो होती नहीं है बेकार की चुगली चपाटी में समय बिताने से अच्छा है कि कुछ करें ! खाली दिमाग .... !
मैंगी कुरकुरे बनावें गुब्बारे फुलावें सैलून चलावें सैलून में शुद्धि बहुत जरूरी है कभी कोई किसी के गले में ब्लेड मार दे आज के युग में किसका विश्वास ! किंतु 'जहाँ बाबा वहाँ भरोस' और भी जो कुछ बनाना है सो सब कुछ बनावें हाँ जिस काम के लिए साधू हुए थे वो न कर पावें तो न सही उसे छोड़कर और जो कुछ कर पावें सो सब कुछ करें ! कुल मिलाकर सधुअई की जितनी ....... करवानी हो सब करवावें उठा न धरें !हद है भारत के सनातनी वैराग्य की इतनी दुर्दशा क्या इसे विरक्ति कहा जाएगा ! क्या संन्यास यही है क्या अपने पुराने ऋषि मुनियों की भी अब इसी तरह की मार्केटिंग होगी !स्थिति यदि यही रही तो थोड़े दिन बाद लोग पूछने लगेंगे कि जैमिनि अंगिरा व्यास विश्वामित्र के प्रोडक्ट मार्किट में नहीं हैं तो वो साधू किस बात के !इसका मतलब उन्हें समाज की चिंता ही नहीं थी ! बंधुओ !बाबा लोग एक तरफ तो कहते हैं कि हम अपने प्रोडक्ट पर प्रॉफिट बहुत कम लेते हैं दूसरी तरफ संपत्ति के अम्बार लगें हैं !कहीं तो कुछ गड़बड़ है ! कुलमिलाकर समाज से सच छिपाया जा रहा है !
अरे जब सारे सांसारिक प्रपंचों में ही फँसना था तो सधुअई जरूरी क्या थी !मार्केट में उपलब्ध पेय पदार्थ तब तक जहरीले बताए जा रहे थे जब तक अपनों का प्रचार करना था आज तो उनकी अपने स्वप्नों की सरकार है यदि वे पेयपदार्थ जहरीले थे तो उनपर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा दिया जाता !
आज बात मैगी की यदि वो इतनी ही घातक थी तो अभी तक बिक क्यों रही थी उससे किसका क्या नुक्सान हुआ है दूसरा कुछ लोग जाँच करके कह रहे हैं कि ठीक है कुछ लोग गलत बता रहे हैं ममता जी अभी भी उसे सही मान रही हैं !कहीं जाँच रिपोर्ट पास कर रही हैं और कहीं फेल ये चक्कर क्या है जाँच रिपोर्टों की जाँच भी होनी चाहिए कि आखिर ये अंतर क्यों ?दूसरा मार्केट के अन्य उत्पादों की भी जाँच होनी चाहिए साथ ही मैगी की जाँच में कितना बिलम्ब हुआ इस बात की भी जाँच होनी चाहिए उन अधिकारियों की भी जाँच होनी चाहिए कि जिनकी यह जाँच करने की जिम्मेदारी थी आज सारे देश में अचानक ख़राब हो गई मैगी अभी तक ख़राब थी नहीं या जाँच की लापरवाही के कारण पता नहीं लग पाई !इसकी भी जाँच हो |
साधू संत सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं क्या और यदि हाँ तो गृहस्थी में रहकर भी तो किए जा सकते थे सामाजिक कार्य !see more....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/04/blog-post_12.html
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