कोई
मुस्लिम यदि खुदा के अलावा किसी और के सामने सर झुका दे तो क्या वो
मुशलमान नहीं रह जाता ?
बंधुओ
! कुछ महीनों पहले आप लोगों ने एक चित्र देखा होगा जिसमें प्राण संकट में
आने पर एक मुशलमान बालक एक सिंह के सामने सिर झुका कर हाथ जोड़कर प्राणों
की भीख माँग रहा था !दुर्भाग्यवश उस पर शेर ने हमला किया और उसका बहुमूल्य जीवन बचाया नहीं
जा सका !मुझे नहीं पता उसके बाद उसका शरीर मिला या नहीं मिल पाया किंतु
ऐसी किसी भी घटनाओं में यदि शव मिल जाता है तो उसका अंतिम संस्कार इस्लाम
धर्म के अनुसार करना चाहिए या नहीं क्योंकि अल्ला के अलावा किसी और अर्थात
शेर के सामने सिर झुका देने के बाद भी वो मुसलमान रहा या नहीं और उसका
अंतिम संस्कार इस्लामिक रीति रिवाज से किया जाना चाहिए या नहीं ?
मुशलमान बंधु खुदा के अलावा किसी और के सामने शिर नहीं झुका सकते इसलिए योग दिवस पर सूर्य के सामने कैसे झुकावें सिर ?
मुस्लिम बंधु नमाज पढ़ते वक्त भी तो शिर झुकाते हैं जिस ओर झुकाते हैं उस ओर केवल खुदा ही होता है क्या ?और इसकी क्या गारंटी कि उस ओर सूरज भगवान नहीं होते होंगे ! हो न हो उस समय उसी ओर सूरज हों जिस ओर वो सर झुका रहे हों तब क्या करेंगे और यदि ऐसा न भी हो तो भी दिन में जितना प्रकाश होता है वो सब भगवान सूर्य का ही होता है ऐसी परिस्थिति में आप किसी भी ओर नमस्कार करें वो भगवान सूर्य के लिए ही माना जाएगा !वैसे भी खुदा या भगवान इस दुनियाँ में हर जगह पहरा तो नहीं देते की उनको पता लग जाए कि कौन अच्छा और कौन बुरा काम कर रहा है यहाँ तक कि हम लोग जो पूजा या नमाज करते हैं उसे भी दिन में प्रकाश रूप में कण कण में व्याप्त भगवान सूर्य एवं रात में भगवान चंद्र ही प्रत्यक्ष देखने वाले होते हैं उन्हीं की गवाही पर हमारा वो पुण्य या पाप कर्म प्रारब्ध बनता है जो हमें आगे चलकर सुख या दुःख रूप में भोगना पड़ता है ऐसे सर्व सक्षम भगवान सूर्य और चंद्र को नमन करने में क्या बुराई है ये साक्षात ईश्वर स्वरूप ही हैं ।
इसी प्रकार से नमाज करते समय भी हमें सोचना होगा कि हम किसको या किस ओर सिर झुकाते हैं?मेरी समझ में ऐसा कुछ निश्चित तो नहीं होता होगा कि अमुक दिशा में सिर झुकाया जाएगा अमुक में नहीं !और जिस ओर झुकाते हैं ऐसा भी नहीं कि उसके सामने पहले पूरा मैदान साफ करवाया जाता होगा कि जब हम नमाज करते समय सर झुकावें उस समय कोई या कुछ भी सामने न पड़े क्योंकि हम खुदा के अलावा किसी और को शिर नहीं झुका सकते !
बंधुओ !यदि हम खुदा को ही सिर झुकाते हैं तो कैसे !क्या जिस ओर हम सर झुकाते हैं खुदा केवल उधर ही होता है तो जहाँ दूसरे लोग सर झुका रहे होंगे वहाँ खुदा कैसे पहुँचेगा !उसमें भी हो सकता है कि वो लोग किसी और दिशा में शिर झुका रहे हों !ऐसी परिस्थिति में हमें मनना ही पड़ेगा कि खुदा या ईश्वर सब जगह कण कण में व्याप्त है और यदि ऐसा है तो सूर्य में भी व्याप्त है ऐसा मान लेने में क्या बुराई है !
वैसे भी नमाज के समय सर झुकाने से जैसे और बहुत सारी चीजें सामने पड़ती हैं हम उनकी परवाह नहीं करते तो हम सूर्य की परवाह क्यों कर रहे हैं हम तो खुदा के भाव से ही सर झुकाते रहें इसमें क्या आपत्ति होनी चाहिए ?
यदि माना जाए कि जिधर सर झुकाते हैं उधर बहुत सारी चीजें होने से खुदा का ध्यान करके झुकाते हैं इसलिए वहाँ ध्यान का फल होता है । बंधुओ !यदि धरती पर सर झुकाते समय हम खुदा का ध्यान कर सकते हैं तो सूर्य की और सर झुकाते समय हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते !
अब आप जानिए कि शास्त्रों की नजर में योग है क्या और किया कैसे जाए
महर्षि पतञ्जलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' (योगः चित्तवृत्तिनिरोधः)
के रूप में परिभाषित किया है। शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ
अंगों वाले योग का एक मार्ग विस्तार से बताया है। अष्टांग योग (आठ अंगों
वाला योग), को आठ अलग-अलग चरणों वाला मार्ग नहीं समझना चाहिए; यह आठ आयामों
वाला मार्ग है जिसमें आठों आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है। योग के
ये आठ अंग हैं:
१) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि
अष्टांग
योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार)
'बहिरंग' और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) 'अंतरंग' नाम से प्रसिद्ध
हैं।
यम :-
ये पांच प्रकार का माना जाता है : (क) अहिंसा, (ख) सत्य, (ग) अस्तेय (चोरी
न करना अर्थात् दूसरे के द्रव्य के लिए स्पृहा न रखना),।
नियम :-
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय (मोक्षशास्त्र का अनुशलीन या प्रणव का जप) तथा
ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में भक्तिपूर्वक सब कर्मों का समर्पण करना)।
आसन:- सुख देनेवाले बैठने के प्रकार स्थिर सुखमासनम् जो देहस्थिरता की साधना है।
प्राणायाम :-
श्वास प्रश्वास की गति के विच्छेद का नाम प्राणायाम है। बाहरी वायु का
लेना श्वास और भीतरी वायु का बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है। प्राणायाम
प्राणस्थैर्य की साधना है। इसके अभ्यास से प्राण में स्थिरता आती है और
साधक अपने मन की स्थिरता के लिए अग्रसर होता है।
इसके बाद मन को स्थिर करने की तीन साधनाएँ हैं -
प्रत्याहार:-
प्राणस्थैर्य और मन:स्थैर्य की मध्यवर्ती साधना का नाम 'प्रत्याहार' है।
प्राणायाम द्वारा प्राण के अपेक्षाकृत शांत होने पर मन का बहिर्मुख भाव
स्वभावत: कम हो जाता है। फल यह होता है कि इंद्रियाँ अपने बाहरी विषयों से
हटकर अंतर्मुखी होने लगती हैं ।
धारणा :-
इससे मन की बहिर्मुखी गति निरुद्ध हो जाती है और अंतर्मुख होकर स्थिर होने
की चेष्टा करता है। इसी चेष्टा की आरंभिक दशा का नाम धारणा है। देह के
किसी अंग पर (जैसे हृदय में, नासिका के अग्रभाग पर) अथवा बाह्यपदार्थ पर
(जैसे इष्टदेवता की मूर्ति आदि पर) चित्त को लगाना 'धारणा' कहलाता है ।
देशबन्धश्चितस्य धारणा; योगसूत्र 3.1
ध्यान:-
ध्यान तो धारणा के आगे की दशा है। जब उस देशविशेष में ध्येय वस्तु का
ज्ञान एकाकार रूप से प्रवाहित होता है, तब उसे 'ध्यान' कहते हैं। धारणा और
ध्यान दोनों दशाओं में वृत्तिप्रवाह विद्यमान रहता है, परंतु अंतर यह है कि
धारणा में एक वृत्ति से विरुद्ध वृत्ति का भी उदय होता है, परंतु ध्यान में सदृशवृत्ति का ही प्रवाह रहता है, विसदृश का नहीं।
समाधि :-
ध्यान की परिपक्वावस्था का नाम ही समाधि है। चित्त आलंबन के आकार में
प्रतिभासित होता है, अपना स्वरूप शून्यवत् हो जाता है और एकमात्र आलंबन ही
प्रकाशित होता है। यही समाधि की दशा कहलाती है। अंतिम तीनों अंगों का
सामूहिक नाम 'संयम' है जिसके जिसके जीतने का फल है विवेक ख्याति का आलोक या
प्रकाश। समाधि के बाद प्रज्ञा का उदय होता है और यही योग का अंतिम लक्ष्य
है।
मैंने सुना है कि योग को विश्व में प्रचारित करने के लिए उसकी कुछ सर्जरी की जा रही है!योग पर उपद्रव क्यों और क्यों की जा रही है योग की सर्जरी ?
बंधुओ
!यदि उस योग को विश्व में मान्यता मिल ही गई जिसका योग से कोई संबंध ही न
रहा तो योग के प्रचार का क्या फायदा फिर तो योग भी धर्म निरपेक्ष हो जाएगा
फिर ऐसे योग के प्रचार प्रसार का क्या लाभ ?इसलिए योग की सर्जरी करने से
अच्छा है कि योग को योग ही रहने दिया जाए !जिन लोगों ने नेता मंत्री एवं
उद्योगपति बनने के चक्कर में योग जैसी दिव्य साधना को ही दाँव पर लगा दिया
और मिटा दिया योग और व्यायाम के अंतर को !ऐसे लोगों की कृपा से ही आज
कसरती व्यायामी लोग अपने को योगी कहने लगे हैं ये प्राच्य विद्याओं का
दुर्भाग्य है !
सुना है कि योग से ॐ
को या सूर्य नमस्कार को ही हटा दिया जाएगा किंतु क्यों और योग को सेक्युलर बनाने की इतनी
आवश्यकता भी क्या है ?यदि उसकी पहचान को ही कम कर दिया गया तो ऐसे योग का
महत्त्व ही क्या रह जाएगा !दूध से मलाई निकाल लेने के बाद भी दूध क्या दूध
रह जाता है !
बंधुओ!योग तन से आत्मभाव की ओर बढ़ने की दिव्य विद्या है इसका निरंतर
अभ्यास करने से मनुष्य दिव्यता की ओर बढ़ता चला जाता है कोई सच्चा योगी किसी सम्राट
के साम्राज्य को भी तुच्छ समझता है बड़े बड़े राजा अपने रजवाड़े अपना साम्राज्य उसके
चरणों में चढ़ाने के लिए उतावले रहते हैं किंतु वो उनकी ओर देखता तक नहीं है।
कोई योगी दवाएँ क्यों बेचेगा वो तो जिस पर कृपा करना चाहेगा उसे आशीर्वाद
दे देगा और वो ठीक हो जाएगा !वास्तव में योगियों अद्भुत क्षमता होती है।
योगियों का कोई बाल बाँका तक नहीं कर सकता ।
मृत्यु भी योगियों का कुछ बिगाड़ नहीं सकती है फिर उन्हें भय किससे होगा !
भगवान शिव ने शिव संहिता में कहा
है कि संसार के बड़े बड़े बिषैले जीव जंतु भी योगी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते
उनके शरीर को उनकी इच्छा के बिना काटा नहीं जा सकता और न ही छेदा सकता है
यहाँ तक कि मृत्यु का समय समीप समझकर योग सिद्ध महापुरुष प्राणवायु को
ब्रह्मांड में खींच लेते हैं उस समय यमराज को भी निराश होकर लौट जाना पड़ता
है उधर फिर उन्हें एक नया आयुष्य मिल जाता है वो फिर उस आयुष्य का भोग करते
हैं योगी ,दोबारा जब मृत्यु का समय समीप आता है तो फिर उसी प्रकार से
यमराज को निराश करके अपनी आयु बचा लेते हैं और उनका जब तक मन होता है तब तक
इस धरती पर स्वतंत्र भावना से विचरण करते हैं यमराज कुपित होकर भी जिन
योगियों का बाल भी बाँका नहीं कर सकते ये सच्चे योगी की पहचान है योग सिद्ध
महापुरुष तो विश्वजनों के सात्विक हृदयों पर आसीन होते हैं ऐसे योगियों को
नित्य नमन !
बंधुओ! जो लोग अपने को कहते तो योगी हों और मरने से इतना डरते हों कि अपनी
सुरक्षा के लिए सरकार से गिड़गिड़ाते फिरते हों ऐसे लोगों को योगी कैसे माना जा
सकता है ऐसा करने से योगियों का अपमान होता होगा क्योंकि सच्चा योगी
मृत्यु से भयभीत नहीं हो सकता !
इन सब अच्छाइयों के कारण ही योग अनंत काल से विश्व में बंदनीय रहा है ।
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