Gay Marriage समलैंगिकों का विवाह क्यों,इनका इलाज क्यों नहीं ? समलैंगिकता एक रोग है जो जन्म से संतान में होता है । फैलता कैसे है जानिए जो इलाज से ठीक हो सकती है
विवाह पीढ़ी परिवर्तन की पवित्र प्रक्रिया एवं युग निर्माण का आधार है जो समलैंगिकता में संभव नहीं है ।
होता कैसे और किसको है की बीमारी होने के कारण ती
आयुर्वेद में पाँच प्रकार के नपुंसकों का वर्णन है ईर्ष्यक, आसेक्य, कुम्भीक, सुगंधि, षंड !इन पाँचों नपुंसकों में से 'कुम्भीक' नामक ही समलैंगिक होता है !लिखा गया है -
स्वे गुदे ब्रह्मचर्याद् यः स्त्रीषु पुंवत प्रवर्तते !स कुम्भीक इति ज्ञेयो गुद्योनिश्च स स्मृतः ||
लिखा गया है कि जो माता पिता संसर्ग(सेक्स ) करते समय यदि पिता का वीर्य पहले स्खलित हो जाए और माता का बाद में हो इससे माता में जो सम्भोग इच्छा अधूरी रह जाती है ऐसे गर्भों से जन्म लेने वाली संताने कुम्भीक नामक नपुंसक होती हैं ये हमेंशा अल्पवीर्य रहने के कारण जब किसी पुरुष से गुदा मैथुन अर्थात समलैंगिक संबंध स्थापित करती हैं तब इनमें पुंसत्व या स्त्रीत्व का भाव जगता है इसी लिए इन्हें समलैंगिक संबंधों की आवश्यकता होती है । ऐसे लोगों में वीर्य की अल्पता का यदि इलाज हो जाए तो इस बीमारी को ठीक भी किया जा सकता है । हें अपने पुंसत्व का ज्ञान होता है
सेक्स तो पशुओं से भी हो सकता है वहाँ तो संतान भी संभव है किंतु सहज संतान का जन्म संभव न होने से पशुओं और मनुष्यों के विवाह संभव नहीं हैं !तो क्या उनके साथ भी विवाह किया जाएगा !
विवाह केवल सेक्स समझौता ही नहीं अपितु विवाह युग निर्माण का आधार है जहाँ सहज संतान संभव वही विवाह अन्यथा
भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। इसलिए कहा गया है 'धन्यो गृहस्थाश्रमः'। सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं। वहीं अपने संसाधनों से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रमों के साधकों को वाञ्छित सहयोग देते रहते हैं। ऐसे सद्गृहस्थ बनाने के लिए विवाह को रूढ़ियों-कुरीतियों से मुक्त कराकर श्रेष्ठ संस्कार के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्क है। युग निर्माण के अन्तर्गत विवाह संस्कार के पारिवारिक एवं सामूहिक प्रयोग सफल और उपयोगी सिद्ध हुए हैं। हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक
आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। क्यों इनका इलाज क्यों नहीं !
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रम्हचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है। हिंदू विवाह में शारीरिक संम्बंध केवल वंश वृद्धि के उद्देश्य से ही होता है।
विवाह के प्रकार
1. ब्रह्म विवाह
दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना 'ब्रह्म विवाह' कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का "Arranged Marriage" 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।
2. दैव विवाह
किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह' कहलाता है।
3. आर्श विवाह
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना 'अर्श विवाह' कहलाता है।
4. प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता है।
5. गंधर्व विवाह
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था. उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना।
6. असुर विवाह
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।
7. राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।
8. पैशाच विवाह
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है।
इन्हें भी देखें
हिन्दू धर्म में; सद्गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है।
विवाह पीढ़ी परिवर्तन की पवित्र प्रक्रिया एवं युग निर्माण का आधार है जो समलैंगिकता में संभव नहीं है ।
होता कैसे और किसको है की बीमारी होने के कारण ती
आयुर्वेद में पाँच प्रकार के नपुंसकों का वर्णन है ईर्ष्यक, आसेक्य, कुम्भीक, सुगंधि, षंड !इन पाँचों नपुंसकों में से 'कुम्भीक' नामक ही समलैंगिक होता है !लिखा गया है -
स्वे गुदे ब्रह्मचर्याद् यः स्त्रीषु पुंवत प्रवर्तते !स कुम्भीक इति ज्ञेयो गुद्योनिश्च स स्मृतः ||
लिखा गया है कि जो माता पिता संसर्ग(सेक्स ) करते समय यदि पिता का वीर्य पहले स्खलित हो जाए और माता का बाद में हो इससे माता में जो सम्भोग इच्छा अधूरी रह जाती है ऐसे गर्भों से जन्म लेने वाली संताने कुम्भीक नामक नपुंसक होती हैं ये हमेंशा अल्पवीर्य रहने के कारण जब किसी पुरुष से गुदा मैथुन अर्थात समलैंगिक संबंध स्थापित करती हैं तब इनमें पुंसत्व या स्त्रीत्व का भाव जगता है इसी लिए इन्हें समलैंगिक संबंधों की आवश्यकता होती है । ऐसे लोगों में वीर्य की अल्पता का यदि इलाज हो जाए तो इस बीमारी को ठीक भी किया जा सकता है । हें अपने पुंसत्व का ज्ञान होता है
सेक्स तो पशुओं से भी हो सकता है वहाँ तो संतान भी संभव है किंतु सहज संतान का जन्म संभव न होने से पशुओं और मनुष्यों के विवाह संभव नहीं हैं !तो क्या उनके साथ भी विवाह किया जाएगा !
विवाह केवल सेक्स समझौता ही नहीं अपितु विवाह युग निर्माण का आधार है जहाँ सहज संतान संभव वही विवाह अन्यथा
भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। इसलिए कहा गया है 'धन्यो गृहस्थाश्रमः'। सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं। वहीं अपने संसाधनों से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रमों के साधकों को वाञ्छित सहयोग देते रहते हैं। ऐसे सद्गृहस्थ बनाने के लिए विवाह को रूढ़ियों-कुरीतियों से मुक्त कराकर श्रेष्ठ संस्कार के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्क है। युग निर्माण के अन्तर्गत विवाह संस्कार के पारिवारिक एवं सामूहिक प्रयोग सफल और उपयोगी सिद्ध हुए हैं। हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक
आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। क्यों इनका इलाज क्यों नहीं !
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रम्हचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है। हिंदू विवाह में शारीरिक संम्बंध केवल वंश वृद्धि के उद्देश्य से ही होता है।
विवाह के प्रकार
1. ब्रह्म विवाह
दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना 'ब्रह्म विवाह' कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का "Arranged Marriage" 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।
2. दैव विवाह
किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह' कहलाता है।
3. आर्श विवाह
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना 'अर्श विवाह' कहलाता है।
4. प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता है।
5. गंधर्व विवाह
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था. उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" बना।
6. असुर विवाह
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है।
7. राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।
8. पैशाच विवाह
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है।
इन्हें भी देखें
हिन्दू धर्म में; सद्गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है।
संस्कार प्रयोजन
अनुक्रम |
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