रविवार, 23 अगस्त 2015

सेक्स मुक्त वैराग्य या फिर सेक्स युक्त वैराग्य ? धन के लोभी एवं श्रृंगार के शौकीन बाबाओं से हो सकता है कभी भी खतरा !

   सेक्स रहित वैराग्य तो संजीवनी है किंतु सेक्स सहित वैराग्य से बिगड़ रहा है समाज !
 सेक्स विहीन वैराग्य ही टूटते समाज एवं विखरते परिवारों को बचा सकता है अब संस्कारों को सुधारने की प्रेरणा आखिर किससे ली जाए !
     दान के पैसों से दुकानदारी करने या प्रपंच फैलाने वाले बाबाओं का भरोसा करना कठिन है ! दान का दुरुपयोग करना दानवता है!साधू संतों जैसी धार्मिक वेषभूषा बनाकर कैसे कैसे धंधों में लिप्त रहने लगे हैं आज आधुनिक अशास्त्रीय हाईटेक 'दादी' 'बाबा' लोग !
        कोई सेक्स  बेच  जा रहा है तो कोई दे रहा है सेक्स  की दवाएँ तो कहीं आश्रमी वातावरण बनाकर बेची जा रही हैं सेक्स सुविधाएँ ! 
      घर गृहस्थी से शारीरिक रूप से असंतुष्ट कुछ स्त्रीपुरुष या ऐय्यास प्रवृत्ति के कुछ धन संपन्न लोग या कामबासना से बेचैन शर्मदार परिवारों के अविवाहित लड़के - लड़कियाँ अपनी अधूरी सेक्सचाहतों को पूरा करने के लिए लेते हैं धर्म और धार्मिकों का सहारा !ऐसे लोग किसी हाईटेक बाजारू बाबा के चेला चेली बन जाते हैं जहाँ भक्तों को सुविधाएँ प्रदान करने के लिए समय समय पर सत्संग या योग शिविर लगाए जाते हैं जिनमें खाने पीने  रहने ठहरने की पूरी व्यवस्था प्रदान की जाती है सामाजिक दृष्टि से बदनामी जैसी बातों से डरने वाले लोग ऐसे शिविरों में मनचाहे भोग भोगने पहुँचा करते हैं अक्सर !
       ऐसे आश्रम, कुटिया, संस्कारसदन या साधनाभवन जैसे धार्मिक नामों वाले स्थल कुछ शहरों में लोगों ने स्वयं बनाए हुए हैं जहाँ मनाई जाती हैं प्रतिदिन रँगरेलियाँ !ऐसे स्थलों के गेट या बाउंडरीवाल पर किसी पॉपुलर बाबा की फोटो लगा ली जाती है और लिख लिए जाते हैं धार्मिक स्लोगन बिलकुल आश्रमों जैसा माहौल बना दिया जाता है फिर चाहें लड़के आवें या लड़कियाँ स्त्री आवें या पुरुष और मनाई जाएँ कितनी भी ऐय्यासियाँ !न घर वाले शक करते हैं न देखने  में ख़राब लगता है और न सुनने वालों को बुरा लगता है कि "मैं तो प्रतिदिन शाम को 5 बजे आश्रम चला जाता हूँ "बोलने सुनने में ऐसे वाक्य कितने अच्छे लगते हैं । 
        ऐसे मायावी स्थलों में साफ सफाई से लेकर सारा मेंटिनेंस खर्च यहाँ आने जाने रहने ठहरने वाले सारे सेक्सालु लोग ही बहन करते हैं।बाबाजी की तो केवल फोटो होती है जिसके पैसे बाबाजी को समय समय पर पहुँचाते रहते हैं सुविधाभोगी लोग !किस बाबा के नाम पर कहाँ कितने ऐसे आश्रम चलते हैं ये बाबा को ही नहीं पता होता है ऐसे ही एक बाबा का बेटा जब बाबा बना तो वो अपने आश्रमों की लिस्ट तैयार करने तो जिस शहर में जाए अपने चेलों से पूछे यहाँ अपने कितने आश्रम हैं तो लोग कई कई गिना दें किंतु जब वहाँ पहुँचकर ऐसे आश्रमों के आय व्यय का हिसाब माँगे जमीन के कागज माँगे तो लोगों ने देने से मना कर दिया और बाबाजी को फँसा दिया कानूनी तिकड़मों में !बाद में कोई कहे हमारे यहाँ बाबा जी ने जबर्दस्ती जमीन कब्ज़ा करके बनाया था आश्रम कोई कहे हमारे यहाँ किंतु बाबा जी ने यदि कभी गुंडई की ही नहीं तो जबर्दस्ती जमीन का कब्ज़ाकैसे मान लिया जाए !
       ऐसे  मायावी आश्रमों में  बाबा लोग सालों साल तक स्वयं तो पहुँच ही नहीं पाते हैं वर्षों बाद गए भी तो  एक दो  दिन के लिए किंतु यदि देखा जाए तो उनके एक आध दिन ठहरने के लिए वहाँ आश्रम बनाने की आवश्यकता क्या थी जहाँ साफ सफाई के नाम पर रखे गए पचासों कर्मचारियों की न केवल सैलरी दी जाती है अपितु इसके अलावा भी वहाँ दिखावटी किए जाने वाले भोग भंडारे के भी सारे खर्चे उठाए जाते हैं आखिर क्यों ? बंधुओ ! इतनी साफ सुथरी होती हैं ये जगहें कि देखते ही बनती हैं ।   आखिर इनका उपयोग क्या है और इनपर खर्च होने वाला पैसा आता कहा से है और इनपर कोई खर्च क्यों करता है ? 
       एक प्रमुख धार्मिक शहर में ऐसे संयोजन में बड़े माहिर एक वेद विद्वान थे उन्होंने ऐसी ही सुख सुविधाएँ उपलब्ध कराकर बड़े बड़े लोगों तक अपनी पहुँच बना ली थी जिनमें शहर के कई बड़े बड़े अधिकारी भी सम्मिलित होते थे जिनके सहयोग से उन्होंने प्राचीन विद्याओं का प्रचार प्रसार करने के लिए सरकारी जगह अलाट करवा ली थी फिर उसमें पढ़ाई लिखाई तो कुछ नहीं थी बाकी बड़े बड़े लोगों की बड़ी बड़ी गाड़ियाँ कड़ी रहती थीं दरवाजे पर जिनमें कुछ बड़े अधिकरियों की भी गाड़ियाँ होती थीं जिससे पंडित जी का रूतबा बनता था । इन्हीं बड़े और धनाढ्य लोगों के धन से करवाते थे बड़े बड़े यज्ञ, जिसमें बुलाए जाते थे बड़े बड़े विद्वान और उन्हें दक्षिणा रूप में दी जाती थी भारी भरकम धनराशि ,जिससे वे पंडित लोग भी उनका गुणगान किया करते थे । ऐसे अधिकारियों का ट्राँसफर जिन शहरों में होता वहाँ पंडित जी विद्वानों को ले जा करके यज्ञ करवाते, देखने वाले सोचते न जाने कितने क्लाइंट हैं इनके ! मैं इनके वैभव से प्रभावित था इसलिए मेरे संपर्क ठीक थे किंतु इनके साथ पहले कभी सहयोगिनी रह चुकी विश्वसनीय महिलाओं से मुझे ये जानकारी मिली !तो बड़ा आश्चर्य हुआ !
      आजकल तो कथा भागवत के नाम पर नाचने गाने वाले कुछ लोगों ने भी सेक्स सुविधाएँ देनी शुरू कर दी हैं वो भी धार्मिक शहरों में बनाने लगे हैं एक से एक हाईटेक आश्रम और मुहैया करा रहे हैं वो सारी हाईटेक सुख सुविधाएँ  जो पाँच सितारा आदि होटलों में होती हैं !
        योषापस्मार एक रोग है जो युवा अविवाहित और अत्यंत स्वस्थ बालिकाओं को होता है इसमें कामोन्माद का वेग उठने पर गर्भाशय के मरोड़ से बढ़ी वेदना से बालिकाएँ बेहोश तक होती देखी जाती हैं किंतु ऐसी बेहोशी में इनके बारे में कही गई प्रत्येक बात इन्हें याद रहती है साथ ही इनके हाथ पैर सुन्न होते हैं एवं शिर में सुई चुभने जैसी पीड़ा होती है इनकी बढ़ी सेक्स जरूरतों के पूरा होते ही ये स्वस्थ हो जाती हैं वैसे भी इनका कुछ होता होगा इलाज जो मुझे नहीं पता है किंतु ऐसी लड़कियों को इनके माता पिता किसी तांत्रिक आदि के पास ले जाते हैं जो एकांत में साधना करने के नाम पर करते हैं इनका शारीरिक शोषण जिससे कुछ दिनों के लिए रोग ठीक हो जाता है फिर ले जाना पड़ता है माता पिता इससे अनजान बने रहते हैं जबकि जो मामले खुल जाते हैं वो समाज में आ पाते हैं बाकी न जाने कितने तांत्रिक बाबा लोग कितनी बालिकाओं के जीवन से खेला  करते हैं ।
     ऐसी ही हाईटेक स्थितियाँ ज्योतिष ,योग ,तंत्र आयुर्वेद आदि क्षेत्रों में भी हैं यहाँ सब्जेक्ट तो बहाना है वस्तुतः इन विद्याओं के माध्यम से समाज से जुड़ना फिर सेक्स के माध्यम से धन संग्रह करना फिर उसी धन के बल पर मीडिया में अपना प्रचार प्रसार करते करते  'धर्मगुरु ' बन जाना आदि !कितना धोखा हो रहा है धर्म एवं धर्म शात्रों के नाम पर !
        

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