नवरात्र पर्व का विधि विधान !
शक्ति उपासना का महान पर्व है।ये वर्ष में चार बार होता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। इसमें व्रत का विधान है यदि संभव हो तो नौ दिन व्रत करे और न संभव हो तो त्रिरात्र अर्थात सप्तमी से नवमी पर्यन्त व्रत करे !जो स्त्री पुरुष व्रत न कर सकते हों वो बिना व्रत रहे भी पूजन कर सकते हैं ।
नवरात्र के प्रथम दिन सर्व प्रथम घट स्थापन करना चाहिए मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा के मध्य में स्थित ईशान कोण में मिट्टी या धातु
के पात्र में जँवारे बोने चाहिए लगाएं। इसके बाद पात्र में घट (कलश) की स्थापना करें। घट
धातु का हो तो अच्छा है अन्यथा मिट्टी का हो तो भी कोई बुराई नहीं है । घट को मौली
बांधे, उसमें जल, चावल, पंचरतन ,तिलक, फूल व दूर्वा व सिक्के डाल कर आम के पाँच पत्ते रख कर उस पर चावल से
भरे दोने से ढक कर सभी देवी-देवताओं का ध्यान कर उनका आह्वान करें !
नवरात्रि में तीन देवियों महाकाली - महालक्ष्मी, महासरस्वती का पूजन किया जाता है दुर्गा सप्तशती में इन तीनों देवियों की आराधना के लिए तीन चरित्रों का वर्णन किया गया है । भगवती महाकाली के लिए प्रथम चरित्र अर्थात पहले अध्याय का पाठ करना होता है इसीप्रकार से महालक्ष्मी के लिए मध्यम चरित्र अर्थात दूसरा तीसरा चौथा अध्याय पढ़ना चाहिए । महासरस्वती के लिए उत्तर चरित्र अर्थात पाँचवें अध्याय से लेकर तेरहवें अध्याय तक का पाठ करना चाहिए । वैसे बहुत लोग संपूर्ण सप्तशती का पाठ करते हैं ये और भी उत्तम होता है कई लोग एक दिन में कई कई बार दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण पाठ पढ़ते हैं ये और उत्तम होता है इसी दुर्गा सप्तशती को जितनी अधिक बार पढ़ लिया जाए उतनी चंडी महायज्ञ माना जाता हैजैसे किसी ने अकेले अथवा कुछ लोगों ने मिलकर दुर्गा सप्तशती को सौ बार पढ़ लिया तो 'शत चंडी महायज्ञ' एक हजार बार पढ़ लिया तो 'सहस्रचंडी महायज्ञ' माना जाता है ऐसे ही ''लक्षचण्डी' आदि के माध्यम से भगवती दुर्गा के पूजन का विशेष विधान है । जो लोग दुर्गा सप्त शती का पाठ नहीं कर पाते हैं उन्हें नवार्ण मन्त्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे )का जप 11 माला प्रतिदिन या जितना अधिक से अधिक कर सके उतना करना चाहिए जो लोग ये भी नहीं कर सकते उन्हें दुर्गा चालीसा आदि का पाठ करना चाहिए !
नवरात्र के प्रत्येक दिन में अलग अलग देवी पूजन का विधान भी है जैसे पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी इसी प्रकार से चंद्रघंटा, कूष्माण्डा,स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्रीआदि नौ देवियाँ हैं जिनका क्रमशः नवम दिन पर्यन्त पूजन किया जाता है । कुछ लोग सात नवरात्र ही मनाते हैं कुछ आठ नवरात्र मनाते हैं किंतु ये परंपरा ठीक नहीं हैं क्योंकि आठवीं देवी महागौरी और नवमी देवी सिद्धिदात्री का पूजन छूट जाता है इसलिए नवरात्रि पूजन किया जाना चाहिए !
यदि अशुद्धि आदि के कारण नवरात्र में प्रतिदिन पूजा ना कर सकें तो अष्टमी के दिन ही विशेष पूजा करके फल प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार से जो पूरे नवरात्र में उपवास ना कर सके तो सप्तमी से नवमी पर्यन्त तीन दिन उपवास करने पर भी वह सभी फल प्राप्त किया जा सकता है इसे 'त्रिरात्र' व्रत कहा जाता है कर लेता है। नवरात्र व्रत देवी पूजन, हवन, कुमारी पूजन और ब्राह्मण भोजन से ही पूरा होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें