बुधवार, 26 अगस्त 2015

दस महाविद्याओं की आराधना नवरात्रों में की जाए उसका अनंत फल है दस महाविद्या

दस महाविद्याओं की साधना और नवरात्र !
    जब माता सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहाँ जाने से मना कर दिया था । इस इनकार पर माता सती  ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियाँ प्रकट कर अपनी शक्ति की झलक दिखला दी। शिवजी ने सती जी से पूछा कि ये कौन हैं तो  सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।' यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। बाद में माँ ने अपनी इन्हीं शक्तियों  का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।
       नवरात्रों में देवी पूजन का विशेष फल होता ही है उसमें भी रात्रि में करे तो और अधिक फल होता है विशेषकर  नवमी तिथि को  देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है।साधना किसी योग्य गुरु के संरक्षण में करनी चाहिए ताकि संपूर्ण साधना त्रुटि रहित ढंग से की जा सके ! मंत्र जप एवं उसका  दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पणऔर  तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण और कन्या भोजन करना चाहिए।  
 1.  काली - दस महाविद्या में काली प्रथम रूप है। महा दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रूप धारण किया था। काली माता तत्काल प्रसन्न होने वाली और तत्काल ही रूठने वाली देवी है। अत: इनकी साधना या इनका भक्त बनने के पूर्व एकनिष्ठ और कर्मों से पवित्र होना जरूरी होता है।
2. तारा-सृष्टि उत्पत्ति के समय प्रकाश किरण के रूप में प्रकट  हुई ये माता तारा नाम से विख्यात हुई इनका ध्यान पूजन अादि करने  से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है, देवी तारा के भक्तों के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों में कोई नहीं कर सकता,ये  भोग और मोक्ष दोनों एक साथ देने में समर्थ हैं साथ ही भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं ।
 3.छिन्नमस्ता : इनके शरीर से रक्त की तीन धाराएं बह रही है। देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत है। इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के साथ साथ माता
इडा, पिंगला और सुषमा इन तीन नाडियों का संधान कर योग मार्ग में सिद्धि को प्रशस्त करती हैं।

      4.भुवनेश्वरी  - मां भुवनेश्वरी का स्वरूप सौम्य एवं अंग कांति अरुण हैं। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है।ये देवी सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक हैं.  भुवन अर्थात संसार की जो, ईश्वर हैं, वही माता भुवनेश्वरी हैं. इस महाविद्या की आराधना से साधक सूर्य के समान तेजवान एवं शक्ति संपन्न हो जाता है !
5.बगलामुखी : माता बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाकसिद्धि के लिये की जाती है। इनकी उपासना में हल्दी की माला पीले फूल और पीले वस्त्रों  का विधान है। इस विद्या के द्वारा दैवी प्रकोप की शांति, धन-धान्य के लिए और इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिए की जाती है। माता बगलामुखी की साधना युद्ध या मुक़दमे आदि में विजय और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है।इनकी साधना से घोर शत्रु भी पराजित हो जाते हैं और साधक का जीवन निष्कंटक तथा लोकप्रिय बन जाता है।

 6.धूमावती : धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। इनकी साधना से जीवन में निडरता और निश्चंतता आती है। इनकी साधना या प्रार्थना से आत्मबल का विकास होता है। इस महाविद्या के फल से देवी धूमावतीप्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग अरिष्ट और शत्रुओं का नाश कर देती है। प्रबल महाप्रतापी तथा सिद्ध पुरूष के रूप में उस साधक की ख्याति हो जाती है।धूमावती उपासना विपत्ति नाश, रोग निवारण, युद्ध जय आदि के लिए की जाती है।  जो साधक अपने जीवन में निश्चिंत और निर्भीक रहना चाहते हैं उन्हें धूमावती साधना करनी चाहिए।

7. त्रिपुरसुंदरी-देवी प्रत्येक प्रकार कि मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं,देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय कन्या रूप में विद्यमान हैं। सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर रूप वाली तथा चिर यौवन हैं। देवी आज भी यौवनावस्था धारण की हुई है तथा सोलह कला सम्पन्न है।. माँ स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो भक्तों को सभी सौभाग्य एवं सिद्धियाँ प्रदान करती हैं. और सभी भयों से मुक्त करती हैं ।
 8. मातंगी - यह पूर्णतया वाग्देवी ही हैं। इनकी चार भुजाएँ  ही चार वेद हैं।ये वैदिकों की साक्षात सरस्वती ही हैं। इनकी पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों के द्वारा पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।
9. त्रिपुर भैरवी : त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं।माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इन्हें षोडशी भी कहा जाता है। षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है। जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है। इसकी साधना से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है, मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। षोडशी का भक्त कभी दुखी नहीं रहता है।
10.कमला- माता कमला श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर सुवर्ण के समान कांति वाली  मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। इनकी साधना से दरिद्रता, संकट, गृहकलह और अशांति को दूर होती है एवं सुख और समृद्धि पूर्ण शांतिमय जीवन ब्यतीत होता है दरिद्रता दूर करने एवं  सुख-शांति के लिए , आय के स्रोतों की दृष्टि से  यह साधना सौभाग्य के द्वार खोल देती है।
      जो व्यक्ति दश महाविद्याओं की साधना को पूर्णता के साथ संपन्न कर लेता है। वह निश्चय ही जीवन में ऊंचा उठता है परंतु ध्यान रहे विधिवत् उपासना के लिए गुरु दीक्षा नितांत आवश्यक है। निष्काम भाव से भक्ति करने के लिए दश शक्तियों के नाम का उच्चारण करके भी इनका अनुग्रह प्राप्त किया जा सकता है। शक्ति पीठों में शक्ति उपासना के अंतर्गत नवदुर्गा व दशमहाविद्या साधना करने से शीध्र सिद्धि होती है।

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