रविवार, 20 दिसंबर 2015

राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान का संस्कार बचाओ अभियान !

  बलात्कार रोकने के लिए हमने शोर कितना भी मचाया हो किंतु संस्कार जगाने में नाकामयाब रहे हैं हम !इसलिए बलात्कारों से बेचैन भारत अब युवाओं में जगाए संस्कार !अन्यथा फाँसी जैसी कठोर सजा से भी बलात्कार कम बेशक हो जाएँ किंतु बंद नहीं किए जा सकते हैं । बलात्कार बंद करने के लिए जगाने होंगे समाज में संस्कार !

   सभी प्रकार के अपराध हों या बलात्कार सोचे मन से जाते हैं योजना मन में बनती है इसलिए योजना की भनक तो किसी को लग नहीं सकती और मन में बनी योजना को अंजाम देने के बाद कितनी भी बड़ी सजा दे दी जाए किंतु अपराध तो नहीं रोका जा सका इसलिए युवाओं की मानसिक सोच बदलना बहुत जरूरी है !           इसके लिए सद्शिक्षा ,सदुपदेश ,भोजन संयम ,एवं युवाओं के  मन में उठाने वाले तर्कों के सटीक समाधान खोजे जाएँ और दिए जाएँ उन्हें उनके उत्तर !उससे बदल सकता है धीरे धीरे युवाओं का मन !    

    विश्वगुरु भारत आज संस्कारों के लिए भटक रहा है हमारे युवा आज कहाँ से सीखें संस्कार !हम सब आधुनिक अर्थात विदेशियों की नक़ल करने  वाले हो गए उन्हीं विदेशियों की नक़ल जब हमारे युवा कर रहे हैं तो उन्हें बलात्कारी क्यों कहा जा रहा है ? 

    बलात्कार रोकना यदि सरकार या पुलिस वालों के वश  का होता तो वो रोक न लेते अब तक थू थू करवाना उन्हें अच्छा लगता है क्या ?

      बंधुओ !बलात्कारियों को पकड़वाने बंद करवाने या फाँसी की सजा की माँग करना तब तक निरर्थक है जब तक संस्कार  सुधारने पर ध्यान नहीं दिया जाता !प्रेम का पागलपन  कहें या सेक्स का उन्माद इसमें जान की कोई कीमत नहीं मानी जाती ये कभी भी किसी की भी हत्या कर सकते हैं और कुछ नहीं तो आत्महत्या तक करने में कहाँ हिचकते हैं ऐसे प्रेमोन्मादी या सेक्सोन्मादी लोग ! जो वर्ग आत्महत्या जैसी कठोर सजा का वरण स्वयं कर लेता हो उसे फाँसी जैसी सजा का भय क्या होगा ?पुलिस कानून या सरकार उन्हें इससे बड़ी सजा और दे क्या सकते हैं इसलिए यदि बलात्कार रोकने के लिए हमें ईमानदारी पूर्वक कोई प्रयास करने हैं तो हमें समाज के अंदर पुनः वो संस्कार जगाने होंगे जिनके बल पर भारत कभी विश्वगुरु माना  जाता था ! 

     इसलिए समाज के हम सभी लोगों का कर्तव्य है कि अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने के लिए हम सब लोग अपनी अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाएँ  तभी बंद हो सकते हैं बलात्कार !इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प मेरी समझ में नहीं है !बलात्कार सरकारें या पुलिस वाले बिना समाज के सहयोग के रोक सकते हैं क्या और समाज का सहयोग लेने के लिए सरकार कर क्या रही है सरकार और समाज के बीच तालमेल ही नहीं बन पा रहा है !मैंने सरकारों से कई बार इस दिशा में  सहयोग  करने के लिए लिखा किंतु वहाँ कोई सुनवाई ही नहीं होती !न ही कोई उत्तर दिया जाता है । 

    संस्कारों का संबंधअपने पूर्वज रोटी और बेटी(पत्नी)  से बताया करते थे अर्थात जैसा अन्न खाया जाएगा वैसा मन बनेगा जो पुरुष घर के भोजन से संतुष्ट न होने के कारण होटलों में खाने लगा वो कल बासनात्मिका संतुष्टि भी होटलों में ही खोजेगा !

    होटल का खाना बुरा नहीं किंतु स्वाद के लिए नहीं स्वाद घर के भोजन का ही अच्छा लगता रहे तभी तक गृहस्थ जीवन सुरक्षित है यही मर्यादा है । माता यशोदा के पास नौ सौ दासियाँ थीं किंतु श्रीकृष्ण के लिए मक्खन वो स्वयं निकालती थीं "निर्ममंथ स्वयं दधि "माता का मत था कि बच्चे  को किसी और के भोजन का स्वाद न लगने दो अन्यथा संस्कार बिगड़ जाएँगे !      पुराने जवाने में आम लोग स्वाद पर संयम रखते थे हर जगह हर किसी का खाना नहीं खाते थे शुद्धि अशुद्धि का भी विचार रखते थे जूते पहन कर खाना नहीं खाते थे तब बलात्कार भी कम होते थे जिसका भोजन पर संयम था उसका सेक्स पर भी संयम स्वाभाविक था किंतु जो भोजन पर लगाम नहीं लगा सका वो सेक्स पर कैसे लगा लेगा लगाम!वहाँ भी स्वाद खोजेगा !हमारे ऋषि मुनि पूर्वज संयम प्रधान जीवन को ही जीवन मानते थे किंतु आज कितने लोग ऐसा सोचते हैं !जिसका परिणाम भोग रहा है समाज !    

   आज तो मूत्रता के सहारे मित्रता खोजी जा रही है जहाँ मूत्रता नहीं वहाँ मित्रता नहीं !अर्थात    जहाँ सेक्स वहाँ संबंध सेक्स नहीं तो संबंध नहीं इसी सिद्धांत से परिवार का मतलब केवल पत्नी और रिश्तेदारी का मतलब केवल ससुराल वाले रह गए हैं सिमटते जा रहे हैं परिवार !माता पिता भाई बहन न परिवार में रहे न रिश्तेदारों में  इतने संस्कार बिगड़ चुके हैं !

   प्यार के नाम पर सारे संबंध भूलकर अपने ही अपनों से करने लगे हैं बलात्कार !थोड़ी थोड़ी बातों पर लोग एक दूसरे की ह्त्या करने लगे हैं देश में पिछले कुछ दशकों से समाज दिनों दिन दिशाविहीन  होता जा रहा है वो अपने आदर्शों संस्कारों परंपराओं को  भूलता जा रहा है माता पिता की सेवा का भाव मिटता जा रहा है बड़ों का सम्मान करने की भावना ही समाप्त होती जा रही है साधू संत बलात्कार या ब्यापार करते पकड़े जा रहे हैं जिस   भी आश्रम की तलाशी लेने पुलिस पहुँचती है वहाँ और कुछ मिले या न मिले किंतु सेक्स सामग्री मिलते जरूर देखी गई है !

    मनोरंजन के नाम पर केवल सेक्साचार नाचना गाना कथा कहानी फ़िल्म सीरियल मैगजीन उपन्यास आदि सब कुछ सेक्स से ओतप्रोत यहाँ तक कि रामायण भागवत आदि की कथाएँ कहने वाले लोग भी पहले चरित्रवान विद्वान साधू संत आदि हुआ करते थे किंतु अब देखने सुनने में सुन्दर दिखने वाले लवलहे लड़के लड़कियों ने उठा लिए हैं हार्मोनियम तबला ढोलक  बजाते गाते घूम रहे हैं इन लोगों ने भागवत को भोगवत बना दिया है !हमारे कथावाचक पहले चरित्रवान  हुआ करते थे तब वो बिना नाच गाने के उपदेश किया  करते थे और जगाया करते थे समाज में संस्कार !तो समाज संस्कारी दिखता था किंतु आधुनिक कथाकार लैला मजनूँ लोग समाज को सिखा  रहे हैं बलात्कार तो समाज में बलात्करों का प्रचलन बढ़ा है !    

     देश में जब शिक्षक चरित्रवान  थे तब बच्चे शिक्षकों से संस्कार सीखते थे अब शिक्षक खुद गैर जिम्मेदार लापरवाह ,सैलरी लेकर भी कर्तव्यपालन से विमुख ,झूठ बोलने वाले अपनी छात्राओं पर कुदृष्टि रखने वाले होते जा रहे हैं ऐसे लोगों के सारे दुर्गुण बच्चों में दिखने लगे हैं अब शिक्षक सुधरें तो बच्चे सुधरें किन्तु शिक्षकों को कौन सुधारे कैसे सुधरें  ये और समाज को कौन सिखावे संस्कार !
     नेताओं से गायब हो रही है जन सेवा की भावना ,जो नेता  ईमानदार हैं उनकी संख्या कितनी है !और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेता दूसरों को कैसे सिखाएँगे संस्कार !
      संस्कारों के सृजन के लिए सरकार कोई कार्यक्रम चलाती नहीं है और जो चलते भी होंगें वे खाना पूर्ति मात्र हैं उनका समाज पर कोई असर दिखता नहीं है क्योंकि उनके प्रयास में ईमानदारी या समर्पण का नितांत अभाव है ऐसी परिस्थिति में हमारे संस्थान की ओर से संस्कारों की दृष्टि से जन जागरण के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं इंटरनेट के  सभी माध्यमों से संस्कार जागरण के लिए पवित्र प्रयास किए जा रहे हैं सभी प्रकार के अंधविश्वासों एवं पाखंडों का तर्क के साथ खंडन किया जा रहा है इस प्रकार से सामाजिक बुराइयों को दूर करने हेतु  अपने प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आप सभी के सहयोग की आवश्यकता है !अपनी संस्कार सृजन  सम्बन्धी बातें घर घर और जन जन तक पहुँचाने के लिए हमारे  संस्थान में संसाधनों की अत्यंत कमी है और अल्प साधनों से प्रयास तो किए जा सकते हैं किंतु उन लोगों का मुकाबला नहीं किया जा सकता जो भारतीय संस्कारों को नष्ट करने के लिए करोड़ों अरबों रूपए विज्ञापनों में फूँक रहे हैं आज तो मीडिया भी उन्हीं का साथ दे रहा है इसलिए  आप सभी लोगों से निवेदन है कि आप संस्कार जागरण सम्बन्धी पवित्र प्रयासों में हमारा साथ दें मैं आपसे आर्थिक मदद की अपेक्षा करता हूँ जितना भी आप कर सकें अपनी सुविधानुशार !बंधुओ !मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपके द्वारा संस्थान प्रदान की गई धनराशि का सम्पूर्ण रूप से समाज हित  में ही सदुपयोग किया जाएगा !

 राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की ओर से संस्कार बचाओ अभियान को सफल बनाने हेतु आपसे आर्थिक मदद की अपील ! 

   देश एवं समाज का भविष्य उज्ज्वल करने के लिए टूटते संबंधों एवं बिखरते परिवारों को रोकने के लिए अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराधों को रोकने के लिए जरूरी है कि समाज की सोच में परिवर्तन लाया जाए !इसके बिना केवल दंड के सहारे सभी प्रकार के अपराध हों या बलात्कार रोक पाना संभव नहीं है वो फाँसी जैसी कठोर सजा ही क्यों न हो !इसलिए हमारे संस्थान के द्वारा कई कार्यक्रम चले जा रहे हैं सोच बदलने के लिए जिसमें आर्थिक कमी रुकावट डाल रही है इसलिए देश के लिए आवश्यक एवं पवित्र कार्यों को करने के लिए हमें चाहिए आपसे आर्थिक मदद ! आप  हमारा जो भी जितना भी सहयोग करना चाहें वो सहज स्वीकार्य है आपकी प्रदान की गई राशि का राष्ट्र एवं समाजहित  में  ही उपयोग होगा इस बात पर विशवास किया जाना चाहिए -

                       -:प्रार्थी :-

       राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान 

        एकाउंटनंबर - 62245462386

     स्टेट बैंक ऑफ़ हैदराबाद ,कृष्णा नगर ,दिल्ली 

         IFSC :SBHY0020838

 

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