बलात्कारों को रोकने के लिए सामाजिक वातावरण ही ठीक करना होगा !
बलात्कारी तो सेक्स का भूखा भेड़िया होता है उसे महिला शरीरों की अत्यधिक चाहत में वो हमलावर हो जाता है उस कठोर कानून से रोक जा सकता है किंतु लड़कियाँ यदि उसका साथ देना बिलकुल बंद करें तो ! अन्यथा बढ़ जाता है उसका मनोबल और वो हर लड़की को उसी दृष्टि से देखने लगता है जिसे वो अपनी भावना का शिकार सहमति पूर्वक बना चुका होता है बलात्कारी का साथ दे तो 'प्रेमिका' अन्यथा 'पीड़िता' !
छोटी बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कारों के पीछे सेक्स भावना उतनी जिम्मेदार नहीं है जितनी अनपढ़ फर्जी ज्योतिषियों और तांत्रिकों के द्वारा भाग्य ठीक करने के लिए बताए गए छिछोरे उपाय हैं !कई जगह ऐसी हरकतों के लिए उन्हें प्रेरित करते देखा जा रहा है इसलिए ज्योतिष के क्षेत्र में केवल डिग्री होल्डर लोगों को ही प्रेक्टिस की अनुमति दी जाए ! छोटी छोटी बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कारों
बलात्कारी तो सेक्स का भूखा भेड़िया होता है उसे महिला शरीरों की अत्यधिक चाहत में वो हमलावर हो जाता है उस कठोर कानून से रोक जा सकता है किंतु लड़कियाँ यदि उसका साथ देना बिलकुल बंद करें तो ! अन्यथा बढ़ जाता है उसका मनोबल और वो हर लड़की को उसी दृष्टि से देखने लगता है जिसे वो अपनी भावना का शिकार सहमति पूर्वक बना चुका होता है बलात्कारी का साथ दे तो 'प्रेमिका' अन्यथा 'पीड़िता' !
छोटी बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कारों के पीछे सेक्स भावना उतनी जिम्मेदार नहीं है जितनी अनपढ़ फर्जी ज्योतिषियों और तांत्रिकों के द्वारा भाग्य ठीक करने के लिए बताए गए छिछोरे उपाय हैं !कई जगह ऐसी हरकतों के लिए उन्हें प्रेरित करते देखा जा रहा है इसलिए ज्योतिष के क्षेत्र में केवल डिग्री होल्डर लोगों को ही प्रेक्टिस की अनुमति दी जाए ! छोटी छोटी बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कारों
को रोकने के लिए झोलाछाप ज्योतिषियों तांत्रिकों पर करनी होगी कठोर कार्यवाही ! ये लोग नपुंसकता दूर करने एवं भाग्य बदलने के लिए बताया करते हैं ऐसे ऊट पटांग उपाय !इन्हें रोकने के लिए मेडिकल की तरह ही ज्योतिषियों पर भी कसी जाए नकेल और अनिवार्य किए जाएँ इनके भी ज्योतिष सम्बन्धी डिग्री प्रमाणपत्र !साथ ही इनपर दबाव डाला जाए ये जो भी उपाय बताएँगे उन्हें शास्त्रों से प्रमाणित करना होगा !अन्यथा हो दंडात्मक कार्यवाही !
"राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान" की ओर से बलात्कार मुक्त समाज बनाने की दिशा में देश की सोच बदलने की एक छोटी सी पहल !क्या आप भी देंगे साथ !बंधुओ !बढ़ते बलात्कारों के लिए हो सकता है कि केवल पुरुष दोषी हो किंतु वर्तमान समय में बने बलात्कारी वातावरण में लड़कियों ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है आप स्वयं देखिए -ये सार्वजनिक स्थलों अर्थात पार्कों पार्किंगों रोडों जैसी खुली जगहों के चित्र हैं इनमें साफ साफ दिखाई पड़ता है कि लड़कियों ने कितनी लज्जा शून्यता पूर्वक अपनी इच्छा से उन लड़कों को अपने शरीर सौंपे हैं जिनसे उनके जीवन में घोषित कोई सम्बन्ध नहीं हैं संभवतः इन लड़कियों के माता पिता भी उनके इस आचरण से सहमत न हों हो सकता है कुछ के माता पिता आदि स्वजनों को पता भी हो और वो रोकते भी हों फिर भी उनकी बातों सलाहों को नजरंदाज करती हुई ये लड़कियाँ इन चित्रों में जो कुछ कर रही हैं वो सामाजिक दृष्टि से तो फूहड़ है ही उनके अपने लिए भी अच्छा नहीं है । खुली जगहों में ऐसे आचरण तो मनुष्यों को शोभा नहीं देते हैं पशुओं में देखे जाते थे खुली जगहों में नर मादा पशु जब ऐसे व्यवहार करते हैं तो फिर दूसरे पशु भी ऐसे संबंधों में अपनी भूमिका अदा करने लगते हैं उन्हें कैसे रोका जा सकता है शर्दी के दिनों में गलियों में कुत्तों के झुण्ड आसानी से देखे जा सकते हैं क्योंकि ये सब उस तरह के विकार हैं कि इन्हें जो देखता है वो भी लग लेता है साथ !ये तो सर्व स्वीकृत है कि गुणों की अपेक्षा दुर्गुण जल्दी फैलते हैं और दुर्गुणों का प्रभाव भी जल्दी और अधिक लोगों तक पहुँचता है !हमें सोचना ये है कि यदि हम स्वयं पशुओं की तरह उतने ही बेशर्म हो जाएँगे तो हमें देखने वाले केवल इंसान ही होंगे ऐसी ही उम्मींद क्यों करनी चाहिए जब हम पशुता पर उतरे हैं तो हमें देखने वालों में भी पशु भावना से भावित हो सकते हैं जैसे पशुओं के मन में पुलिस अदालत आदि की कठोर कानूनी कार्यवाही का भय अज्ञान के कारण नहीं होता है ठीक उसी प्रकार से नर पशुओं को भी अज्ञान के कारण कोई भय नहीं होता है और वह कर बैठते हैं बड़ा से बड़ा अपराध !यदि आप पुरुष होकर भी नपुंसक नहीं हैं तो आप स्वयं कल्पना कीजिए कि आप अविवाहित युवा हों और अपनी प्रेमिका के साथ फ़िल्म देखने गए हों वहाँ से निकलते समय फ़िल्म का इतना असर तो मन पर छूट ही जाता है कि मन शरारती हो चुका होता है ऊपर से अँधेरा हो चुका हो कोई सूनसान जगह हो आप बस की प्रतीक्षा में खड़े हों अपनी प्रेमिका के साथ !इसी बीच कोई बस आ गई हो जिसमें सवारियाँ बिलकुल न बैठी हों केवल ड्राइवर कंडक्टर या मौज मस्ती के मूड वाले उनके साथी सहयोगी ही रहे हों दिन भर के हारे थके ये वे लोग हैं जो शिक्षा संस्कारों में अत्यंत कमजोर होते हैं और इनमें अधिकाँश लोग शाम को काम निपटा कर सुरा सुंदरी की भावना से भावित होते हैं !ऐसे नशेड़ियों का समूह ही बस का संचालक हो अर्थात वहाँ जनबल में अधिक वे ही सर्वे सर्वा हों !इसी बीच कोई प्रेमी जोड़ा बस में आकर बैठ जाए तो उन नशेड़ियों से क्या उम्मींद की जानी चाहिए !वो भी फ़िल्म के असर से शरारती मन वाला प्रेमी जोड़ा सूनसान अँधेरी बस में शांत और सात्विकता पूर्वक बैठेगा ऐसा कम ही होता है और यदि वो कुछ कर रहा हो उसमें भी दुर्भाग्य वश कुछ अश्लील हो तो शिक्षा संस्कारों से बिहीन नशेड़ियों से संयम की अपेक्षा कैसे की जा सकती है !यदि वे ऐसा कुछ देखकर कुछ भूमिका खुद भी निभाने लगते हैं तो हमें याद रखना चाहिए कि ये वो वर्ग होता है कि जो जहाँ कूदेगा साथ साथ ही कूदेगा भले ही वो कुआँ ही क्यों न हो !फिर परिस्थिति वही बनती है कि जैसे किसी अपराधी को घेर कर खड़ी हुई भीड़ एक एक हाथ भी चाँटा भी मारती है तो पिटने वाला अपराधी तो बुरी से बुरी स्थिति में पहुँच चुका होता है किंतु पीटने वाला हर आदमी यही कह रहा होता है कि मैंने तो केवल एक चाँटा मारा है !यही स्थिति उस बस में फँसे प्रेमी जोड़े की होती है थोड़ा थोड़ा सबने प्रताड़ित किया तो सहने भी सीमा होती है कुछ भी हो सकता है ।
बंधुओ !अत्यंत निंदनीय अपराध करने के बाद भी इसे सुनियोजित एवं पूर्व निर्धारित नहीं कहा जा सकता अपितु ये परिस्थितिजन्य अपराध है फिर भी अपराध तो अपराध ही है इसलिए सजा भी होगी ही होनी भी चाहिए किंतु दुबारा ऐसी परिस्थिति ही न बने हमें उस बिषय में प्रयास करना है ।
बलात्कार रोकने के लिए हमने शोर कितना भी मचाया हो किंतु संस्कार जगाने में नाकामयाब रहे हैं हम !इसलिए बलात्कारों से बेचैन भारत अब युवाओं में जगाए संस्कार !अन्यथा फाँसी जैसी कठोर सजा से भी बलात्कार कम बेशक हो जाएँ किंतु बंद नहीं किए जा सकते हैं । बलात्कार बंद करने के लिए जगाने होंगे समाज में संस्कार !
सभी प्रकार के अपराध हों या बलात्कार सोचे मन से जाते हैं योजना मन में बनती है इसलिए योजना की भनक तो किसी को लग नहीं सकती और मन में बनी योजना को अंजाम देने के बाद कितनी भी बड़ी सजा दे दी जाए किंतु अपराध तो नहीं रोका जा सका इसलिए युवाओं की मानसिक सोच बदलना बहुत जरूरी है ! इसके लिए सद्शिक्षा ,सदुपदेश ,भोजन संयम ,एवं युवाओं के मन में उठाने वाले तर्कों के सटीक समाधान खोजे जाएँ और दिए जाएँ उन्हें उनके उत्तर !उससे बदल सकता है धीरे धीरे युवाओं का मन !
विश्वगुरु भारत आज संस्कारों के लिए भटक रहा है हमारे युवा आज कहाँ से सीखें संस्कार !हम सब आधुनिक अर्थात विदेशियों की नक़ल करने वाले हो गए उन्हीं विदेशियों की नक़ल जब हमारे युवा कर रहे हैं तो उन्हें बलात्कारी क्यों कहा जा रहा है ?
बलात्कार रोकना यदि सरकार या पुलिस वालों के वश का होता तो वो रोक न लेते अब तक थू थू करवाना उन्हें अच्छा लगता है क्या ?
बंधुओ !बलात्कारियों को पकड़वाने बंद करवाने या फाँसी की सजा की माँग करना तब तक निरर्थक है जब तक संस्कार सुधारने पर ध्यान नहीं दिया जाता !प्रेम का पागलपन कहें या सेक्स का उन्माद इसमें जान की कोई कीमत नहीं मानी जाती ये कभी भी किसी की भी हत्या कर सकते हैं और कुछ नहीं तो आत्महत्या तक करने में कहाँ हिचकते हैं ऐसे प्रेमोन्मादी या सेक्सोन्मादी लोग ! जो वर्ग आत्महत्या जैसी कठोर सजा का वरण स्वयं कर लेता हो उसे फाँसी जैसी सजा का भय क्या होगा ?पुलिस कानून या सरकार उन्हें इससे बड़ी सजा और दे क्या सकते हैं इसलिए यदि बलात्कार रोकने के लिए हमें ईमानदारी पूर्वक कोई प्रयास करने हैं तो हमें समाज के अंदर पुनः वो संस्कार जगाने होंगे जिनके बल पर भारत कभी विश्वगुरु माना जाता था !
इसलिए समाज के हम सभी लोगों का कर्तव्य है कि अपने अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने के लिए हम सब लोग अपनी अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाएँ तभी बंद हो सकते हैं बलात्कार !इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प मेरी समझ में नहीं है !बलात्कार सरकारें या पुलिस वाले बिना समाज के सहयोग के रोक सकते हैं क्या और समाज का सहयोग लेने के लिए सरकार कर क्या रही है सरकार और समाज के बीच तालमेल ही नहीं बन पा रहा है !मैंने सरकारों से कई बार इस दिशा में सहयोग करने के लिए लिखा किंतु वहाँ कोई सुनवाई ही नहीं होती !न ही कोई उत्तर दिया जाता है ।
संस्कारों का संबंधअपने पूर्वज रोटी और बेटी(पत्नी) से बताया करते थे अर्थात जैसा अन्न खाया जाएगा वैसा मन बनेगा जो पुरुष घर के भोजन से संतुष्ट न होने के कारण होटलों में खाने लगा वो कल बासनात्मिका संतुष्टि भी होटलों में ही खोजेगा !
होटल का खाना बुरा नहीं किंतु स्वाद के लिए नहीं स्वाद घर के भोजन का ही अच्छा लगता रहे तभी तक गृहस्थ जीवन सुरक्षित है यही मर्यादा है । माता यशोदा के पास नौ सौ दासियाँ थीं किंतु श्रीकृष्ण के लिए मक्खन वो स्वयं निकालती थीं "निर्ममंथ स्वयं दधि "माता का मत था कि बच्चे को किसी और के भोजन का स्वाद न लगने दो अन्यथा संस्कार बिगड़ जाएँगे ! पुराने जवाने में आम लोग स्वाद पर संयम रखते थे हर जगह हर किसी का खाना नहीं खाते थे शुद्धि अशुद्धि का भी विचार रखते थे जूते पहन कर खाना नहीं खाते थे तब बलात्कार भी कम होते थे जिसका भोजन पर संयम था उसका सेक्स पर भी संयम स्वाभाविक था किंतु जो भोजन पर लगाम नहीं लगा सका वो सेक्स पर कैसे लगा लेगा लगाम!वहाँ भी स्वाद खोजेगा !हमारे ऋषि मुनि पूर्वज संयम प्रधान जीवन को ही जीवन मानते थे किंतु आज कितने लोग ऐसा सोचते हैं !जिसका परिणाम भोग रहा है समाज !
आज तो मूत्रता के सहारे मित्रता खोजी जा रही है जहाँ मूत्रता नहीं वहाँ मित्रता नहीं !अर्थात जहाँ सेक्स वहाँ संबंध सेक्स नहीं तो संबंध नहीं इसी सिद्धांत से परिवार का मतलब केवल पत्नी और रिश्तेदारी का मतलब केवल ससुराल वाले रह गए हैं सिमटते जा रहे हैं परिवार !माता पिता भाई बहन न परिवार में रहे न रिश्तेदारों में इतने संस्कार बिगड़ चुके हैं !
प्यार के नाम पर सारे संबंध भूलकर अपने ही अपनों से करने लगे हैं बलात्कार !थोड़ी थोड़ी बातों पर लोग एक दूसरे की ह्त्या करने लगे हैं देश में पिछले कुछ दशकों से समाज दिनों दिन दिशाविहीन होता जा रहा है वो अपने आदर्शों संस्कारों परंपराओं को भूलता जा रहा है माता पिता की सेवा का भाव मिटता जा रहा है बड़ों का सम्मान करने की भावना ही समाप्त होती जा रही है साधू संत बलात्कार या ब्यापार करते पकड़े जा रहे हैं जिस भी आश्रम की तलाशी लेने पुलिस पहुँचती है वहाँ और कुछ मिले या न मिले किंतु सेक्स सामग्री मिलते जरूर देखी गई है !
मनोरंजन के नाम पर केवल सेक्साचार नाचना गाना कथा कहानी फ़िल्म सीरियल मैगजीन उपन्यास आदि सब कुछ सेक्स से ओतप्रोत यहाँ तक कि रामायण भागवत आदि की कथाएँ कहने वाले लोग भी पहले चरित्रवान विद्वान साधू संत आदि हुआ करते थे किंतु अब देखने सुनने में सुन्दर दिखने वाले लवलहे लड़के लड़कियों ने उठा लिए हैं हार्मोनियम तबला ढोलक बजाते गाते घूम रहे हैं इन लोगों ने भागवत को भोगवत बना दिया है !हमारे कथावाचक पहले चरित्रवान हुआ करते थे तब वो बिना नाच गाने के उपदेश किया करते थे और जगाया करते थे समाज में संस्कार !तो समाज संस्कारी दिखता था किंतु आधुनिक कथाकार लैला मजनूँ लोग समाज को सिखा रहे हैं बलात्कार तो समाज में बलात्करों का प्रचलन बढ़ा है !
देश में जब शिक्षक चरित्रवान थे तब बच्चे शिक्षकों से संस्कार सीखते थे
अब शिक्षक खुद गैर जिम्मेदार लापरवाह ,सैलरी लेकर भी कर्तव्यपालन से विमुख
,झूठ बोलने वाले अपनी छात्राओं पर कुदृष्टि रखने वाले होते जा रहे हैं ऐसे
लोगों के सारे दुर्गुण बच्चों में दिखने लगे हैं अब शिक्षक सुधरें तो बच्चे
सुधरें किन्तु शिक्षकों को कौन सुधारे कैसे सुधरें ये और समाज को कौन सिखावे संस्कार !
नेताओं से गायब हो रही है जन सेवा की भावना ,जो नेता ईमानदार हैं उनकी संख्या कितनी है !और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेता दूसरों को कैसे सिखाएँगे संस्कार !
संस्कारों के सृजन के लिए सरकार कोई कार्यक्रम चलाती नहीं है और जो
चलते भी होंगें वे खाना पूर्ति मात्र हैं उनका समाज पर कोई असर दिखता नहीं
है क्योंकि उनके प्रयास में ईमानदारी या समर्पण का नितांत अभाव है ऐसी
परिस्थिति में हमारे संस्थान की ओर से संस्कारों की दृष्टि से जन जागरण के
लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं इंटरनेट के सभी माध्यमों से संस्कार
जागरण के लिए पवित्र प्रयास किए जा रहे हैं सभी प्रकार के अंधविश्वासों एवं
पाखंडों का तर्क के साथ खंडन किया जा रहा है इस प्रकार से सामाजिक
बुराइयों को दूर करने हेतु अपने प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए
आप सभी के सहयोग की आवश्यकता है !अपनी संस्कार सृजन सम्बन्धी बातें घर घर
और जन जन तक पहुँचाने के लिए हमारे संस्थान में संसाधनों की अत्यंत कमी
है और अल्प साधनों से प्रयास तो किए जा सकते हैं किंतु उन लोगों का मुकाबला
नहीं किया जा सकता जो भारतीय संस्कारों को नष्ट करने के लिए करोड़ों अरबों
रूपए विज्ञापनों में फूँक रहे हैं आज तो मीडिया भी उन्हीं का साथ दे रहा है
इसलिए आप सभी लोगों से निवेदन है कि आप संस्कार जागरण सम्बन्धी पवित्र
प्रयासों में हमारा साथ दें मैं आपसे आर्थिक मदद की अपेक्षा करता हूँ जितना
भी आप कर सकें अपनी सुविधानुशार !बंधुओ !मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि
आपके द्वारा संस्थान प्रदान की गई धनराशि का सम्पूर्ण रूप से समाज हित में
ही सदुपयोग किया जाएगा !

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