हनुमान जी को भूलने का फल भोग रहे हैं हम लोग !इसलिए बूढ़ा होना है तो साईं को भजो !जवान रहना है तो पूजो हनुमान जी को !
बंधुओ !देवताओं में भी जवानी ही पुजती है न कि बुढ़ापा !इसी लिए अपना कोई देवी देवता कभी बूढ़ा होते नहीं देखा गया होगा !क्योंकि भक्तों के काम करने के लिए शक्ति तो चाहिए ही !
इधर भारत में बढ़ती दिनोंदिन बूढ़े साईं की पूजा के कारण ही भारत को सहने पड़ रहे हैं आतंकी हमले !
भारत में आजकल साईं पत्थरों
को पूजने का फैशन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है देवी देवताओं के मंदिरों में भी
साईं पत्थरों का रौब बढ़ाया जा रहा है जिन मंदिरों में हनुमान जी समेत सभी
देवी देवता विराजमान हैं अब उनके पूजन भजन की उपेक्षा होती जा रही है और साईं
पत्थरों की पाँच पाँच आरतियाँ हो रही हैं उनके भजन आरती पूजा साफ सफाई भंडारे आदि सबकुछ साईं के लिए है जबकि देवी देवताओं को कुछ नहीं !हमलोग
हनुमान जी को क्यों भुलाते जा रहे हैं क्या उनमें कोई कमी आ गई है ?और ओबामा मान रहे हैं हनुमान जी को तो विश्व में बज रहा है उनकी बहादुरी का डंका !
हनुमान जी के बलपर ओबामा ने पाक में घुसकर मारा 'ओसामा' को !इधर साईंफैशन में की चपेट में पड़े हम लोग पिटते चले जा रहे हैं पाकिस्तानी आतंकियों से
!वो हमारे देश में घुस कर मार रहे हैं हमें !और हम बुढ़ऊ के भरोसे बैठे हैं हम उन्हीं का हौसला बढ़ाए जा रहे हैं अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक परात्पर परंब्रह्म परमेश्वर से लेकर देवी देवताओं वाली जितनी बड़ी बड़ी उपाधियाँ हैं सब साईं को जबर्दश्ती पहनाते जा रहे हैं तुम ये तुम वो और तुम न जाने कौन कौन !साईं का हौसला बढ़ाने के लिए ही तो उनके जैसे नाक कान बना बना कर मंदिरों में रखवाए गए पत्थर !दिन में देवी देवताओं की आरतियों से अधिकबार उन साईं पत्थरों को दिखाए जाने लगे दीपक मेवा मिष्ठान्न आदि देवी देवताओं की उपेक्षा की जाने लगी उसका फल भोग रहे हैं हम लोग !पिटते जा रहे हैं पाकिस्तानी आतंकियों से बुढ़ऊ चुप बैठे पुज रहे हैं मंदिरों में लगता है कि उन्हें हम लोगों की परवाह ही नहीं है और हम बिरदावली गाए जा रहे हैं ।चूँकि बुढ़ापे में कामकाज करना बश का नहीं होता है हैं संभवतः इसीलिए अपने देवी देवता बुड्ढे नहीं होने पाते थे हम भोग रहे हैं देवी
देवताओं के मंदिरों में साईंपत्थरों को पूजने का फल !
देवताओं
के बुढ़ापा नहीं आता है इसीलिए इन्हें "निर्जर' भी कहा जाता है जरा माने
बुढ़ापा निर्जर माने बुढ़ापा रहित इसीलिए जो देवताओं को पूजता है वो बूढ़ा
नहीं होता और जो साईं बुड्ढे को पूजेगा वो तो जवानी में ही साईं की तरह
बूढ़ा दिखने लगेगा !
कुल मिलाकर देवताओं में भी जवानी ही पुजती है न कि बुढ़ापा !फिर साईं बुढ़ऊ को क्यों पूजा जाए सीधे हनुमान
जी को ही क्यों न पूजा जाए जिससे जवानी आती है बूढ़े साईं की पूजा से तो
बुढ़ापा आता है ! हर कोई यही चाहता है कि हमारा चेला चेली हमारे जैसा हो
जाए !
जो लोग हनुमान जी
की
पूजा करते हैं वो बुढ़ापे तक जवान बने रहते हैं क्योंकि ऐसे लोग हनुमान जी
जैसे वीर बज्रांगी के उपासक हैं किन्तु जो युवा लोग बुड्ढे साईं को पूजने
लगे उनमें से बहुत लोगों को देखा गया है कि उनकी जवानी गायब सी होने लगी
उनमें बूढ़े लोगों की तरह मानसिक चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा ,बुड्ढों की तरह ही
अकारण गुस्सा आने लगा ऐसे लोगों के जवानी में ही बाल सफेद होने
लगे, दाँत के रोग होने लगे या दाँत गिरने लगे, आँखे ख़राब होने लगीं, चेहरे
पर झुर्रियाँ पड़ने लगीं, आँखों के नीचे काले काले धब्बे होने लगे !वैसे भी किसी बुड्ढे को पूज कर कोई जवान होने की कल्पना भी कैसे कर सकता है !इसलिए बुढ़ापे में भी स्वस्थ एवं जवान रहना है तो हनुमान जी को पूजिए!
वैसे
तो साईं सेवकों का भी अब धैर्य डोलने लगा है हृदय हिलने लगा है उन्हें
लगने लगा है कि अब बुड्ढे का पूजन बंद हो ही जाएगा !
साईंराम हों या आशाराम या कांशीराम ये
तीनों हैं लगभग एक जैसे ही । तीनों इतने समझदार तो होंगें ही कि अपनी
मूर्तियाँ पुजवाने वाली इच्छा अपने चेलों के कान में कह गए जैसे अपने चेलों
को कसम सी खिला गए हों कि मेरी मूर्तियाँ जरूर पुजवाना !इसलिए इन तीनों
के चेले चेलियाँ अपने अपने गुरुओं की मूर्तियाँ पुजवाने का हर संभव प्रयास
कर रहे हैं !मायावती को सरकार मिलते ही वे कांशीराम की मूर्तियाँ बनवाने
लगीं इसी प्रकार से आशाराम के चेला चेलियों ने घर घर में आशाराम के चित्र
लगवा रखे हैं! रही बात साईंबुढ़ऊ की तो उनके चेला चेली तो उनकी मूर्तियाँ
पुजवाने के लिए पागल हुए पड़े हैं गाली गलौच तक करने पर तुले हुए हैं इन
लोगों जम कर हमें गालियाँ दी हैं और तो क्या कहें टी.वी.चैनलों पर पहुँचते
ही पागल हो उठते हैं,खैर भगवान उनकी आत्मा को शांति दे ।
अपने अपने गुरुओं की
मूर्तियाँ पुजवाने के शौकीन ऐसे सभी लोग इनकी प्रशंसा करने के लिए पहले
झूठ बोल बोलकर इनके प्रति समाज में श्रद्धा उत्पन्न करते हैं फिर उसे
आर्थिक रूप से कैस करते हैं और जैसे ही पैसा हाथ में आया तो मूर्तियाँ
बनाने के लिए पागल हो उठते हैं !जैसे ही इनकी लूट का कोई पोल खोलने लगता है
वैसे ही ये आपा खो बैठते हैं और गाली गलौच पर उतर जाते हैं ! इन तीनों के
चेले चेलियों को अपने अपने गुरुओं की प्रशंसा करने के लिए झूठ का ही
सहारा लेना पड़ता है क्योंकि ये बेचारे अपने पुजाने के चक्कर में समाज के
लिए कभी कुछ कर ही नहीं पाए तो चेला चली बतावें क्या !झूठी कहानियाँ गढ़ा
करते हैं !
बूढ़े साईं राम यदि वास्तव
में सिद्ध एवं समाज के हितैषी थे तो आजादी की लड़ाई में भी अपना कुछ योगदान
कर सकते थे क्या ये समाजहित का काम नहीं था ! आखिर देश हित के लिए कार्य
करना भी आवश्यक था एक दिन देश के दुश्मनों को समाप्त करने के लिए भी चाकी
पीस देते और छिड़का देते आटा अपने उस पूरे देश में जिस देश का भगवान बनाने
की कसमें खिलाकर कर अपने चेलियों को गए हैं !अन्यथा जहाँ आटा छिड़का था
उसी गाँव के भगवान बनें किसी को क्या आपत्ति !पूरे देश में क्यों पैर फैला
रहे हैं ?
जहाँ तक शंकराचार्य
स्वरूपानंद जी की बात है उन्होंने तो आजादी की लड़ाई में भी अपना योगदान
दिया है शास्त्रों के वो विद्वान हैं ही साधक भी हैं ही और जगद्गुरू
शंकराचार्य भी हैं आखिर उनमें कुछ तो होगा तभी तो बने हैं शंकाराचार्य !
दूसरी ओर उनकी तुलना ऐसे किसी व्यक्ति से कैसे की जा सकती है जिसके जीवित
रहते उसके विषय में समाज को कुछ पता ही न चला हो और वो जब न रहे तब उसके
चेला चेलियाँ उसकी मन गढ़ंत वीर गाथाएँ सुनाते घूमें ! ऐसे कैसे विश्वास
किया जा सकता है विश्वास का भी कोई कारण तो होना चाहिए उनके द्वारा कहीं
कोई लिखित साहित्य होता या उनके कोई सामाजिक उत्तम कार्य होते तो उन्हें या
किसी को भगवान तो खैर मानने का प्रश्न ही नहीं उठता है ये तो मूर्खतावाली
बातें हैं कोई अपना बाप किसी को कैसे बना सकता है क्योंकि बाप तो होता है
बनाया नहीं जा सकता और न ही माना जा सकता है इसी प्रकार से भगवान होता है
भगवान बनाने या मानने की वस्तु ही नहीं है ! हाँ इतना अवश्य कहा जा सकता है
कि साईं बाबा हों या कोई और यदि उन्होंने कोई महान कार्य समाज या देश हित
में किए हैं तो भगवान न सही किन्तु ऐसे लोगों को महापुरुष होने से रोका भी
नहीं जा सका है और महापुरुषों की जाति धर्म पर भी विचार नहीं किया जाता है
उन्हें तो सभी लोग अपना ही समझते हैं! बहुत छोटा सा उदाहरण पूर्व
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब में किसी ने कमियाँ नहीं खोजीं सब लोग
उन्हें अपना मानते रहे !
इसलिए दुर्दशा हमेंशा अपनी
मूर्तियाँ पुजवाने के शौकीनों की होती है कि करना धरना कुछ नहीं केवल पूजो !
वो भी डंडे के जोर पर ,ऐसा कैसे हो सकता है ?आखिर अकेले आप ही समझदार हैं
बाक़ी सारा देश बेवकूप है क्या ?
अजीब आश्चर्य है कि इनके
चेला चेलियों की अयोग्यता को सहते जाओ तो तो ठीक है और कोई समझदार पल्ले पड़
गया तो ये गाली गलौच पर उतर जाते हैं । मैं आज सुबह यहीं दिल्ली के एक
पार्क में गया था तो परस्पर सामान्य सी चर्चा में कई साईं के चेले मरने
मारने पर उतारू हो गए थे। मैंने उन्हें समझाया और शांत किया फिर मैंने उनसे
पूछा कि आप लोग गलत करते हो चर्चा हो रही थी तो आप अपने तर्क देते वो
अपने देंगे इसमें लड़ने की क्या बात है !तो उन साईं समर्थकों में से एक
व्यक्ति बहुत स्पष्टवादी लगे यद्यपि मैं उन्हें जानता नहीं हूँ किन्तु मैं
उनकी सच्चाई से प्रभावित हूँ उन्होंने कहा कि तर्कों का जवाब मैं कैसे दूँ
आपके यहाँ सनातन धर्म में वेद पुराण उपनिषद रामायणें गीता संत साहित्य आदि
इतना ज्ञान विज्ञान का भण्डार भरा है हमारे यहाँ ऐसा कुछ तो होता नहीं है
हम तर्क कहाँ से दें हमें तो सैनिक समझो जैसे सैनिक तुरंत फायर करते हैं
वैसे ही हम तुरंत गाली देते हैं हमें सिखाया ही इतना गया है ! हम तर्क वर्क
की भाषा हम क्या जानें हमारे यहाँ कोई जगद् गुरू थोड़े होते हैं जो हम उनसे
कुछ सीखें या पूछें हमारे यहाँ तो ट्रस्टी अर्थात ठेकेदार होते हैं जिनका
काम केवल पैसों का हिसाब किताब रखना होता है बाक़ी जिसका जो मन आवे सो बके !
वैसे भी साईं बाबा ने अपने हाथ
से कुछ लिखा नहीं है और न ही अपने विषय में कुछ बताया ही है कि कब कहाँ
किस जाति या धर्म में उनका जन्म हुआ था हम लोगों ने तो हिन्दुओं को
रामनवमी श्री कृष्ण जन्माष्टमी आदि मनाते देखा तो साईं को श्रद्धा पूर्वक
वहीँ फिट कर लिया !हिन्दू मंदिर बनाते थे तो हम भी मंदिर बनाने लगे हिन्दू
आरती करते थे तो हम भी आरती करने लगे हिन्दू भोग लगाते थे तो हम भी लगाने
लगे, हिन्दुओं को भगवान भगवान कहते सुना तो हम लोग भी साईं को भगवान भगवान
कहने लगे ! किन्तु हमारे भगवान पर कोई विश्वास नहीं करता था इसलिए हिन्दू
लोग राम को भगवान मानते थे तो हम लोगों ने भी साईं के साथ राम शब्द को फिट
कर लिया इसका लोगों पर असर पड़ा और श्री राम की भावना से लोग साईं
संप्रदाय से जुड़ने लगे !मुश्किल से धंधा चला तो स्वरूपानंद जी ने बखेड़ा
खड़ा कर दिया इन्हें हमारी तरक्की से जलन क्यों हो रही है !
साथ ही उन्होंने कहा कि साईं बाबा के चेले गाली न दें तो करें क्या सभ्यता सिखाने वाले शास्त्र
संस्कृत भाषा में लिखे गए थे वो न तो साईं को समझ में आए और न उनके चेलों को
इसलिए गाली देना साईं संप्रदाय के लोगों की मजबूरी है खैर किसी को बुरा नहीं
लगना चाहिए क्योंकि वो जान कर किसी को गालियाँ नहीं देते हैं !बोलने के लिए शब्द और भाषा दोनों चाहिए जो सभ्य भाषा
होती तो दिखाई पड़ती और उनके पास गालियाँ हैं तो गालियाँ दिखाई पड़ रही हैं !
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