गुरुवार, 14 जनवरी 2016

बाबाओं को भजने वाले लोग धार्मिक ही होते हैं क्या ?बाबाओं के बौनेपन से कौन परिचित नहीं है ?

    जो बाबा जेलों में हैं उनके अनुयायियों की संख्या भी तो बहुत अधिक थी इसलिए बाबाओं को भजने वाले लोग धार्मिक ही होते हैं क्या ?ये कैसे पता लगे !क्योंकि बाबा लोग अपने भक्तों को अपनी ही माया में भरमाए रहते हैं भगवान की ओर तो फटकने भी नहीं देते हैं !
    जो शास्त्रों के अनुशार चलें वे संत और जो शास्त्रों को अपने अनुशार चलावें वे बाबा !संत तो अभी भी समाज को दिशा देने  लगे हुए हैं किन्तु बाबाओं  ने  नरक फैला रखा है ।देखो निर्मल बाबा टाइप के लोगों को भाग्य बदलने की फ्रेंचायजी लिए घूम रहे हैं !
  किसी बाबा की आलोचना से धार्मिक भावनाओं  को कैसे लग जाती है ठेस क्या बाबा लोग ही धर्म होते हैं ? माना कि बाबाओं से करोड़ों लोग प्रभावित होते  हैं किंतु बाबाओं के अनुयायियों की बढ़ती संख्या  का कारण उनके द्वारा किए जा रहे पुण्य हैं या पाप ! इसका मूल्यांकन कैसे हो !इसी प्रकार से ऐसे लोगों के फालोवर उनके गुणों पर प्रभावित हैं या दुर्गुणों पर इसे कैसे जाना जाए ?  
     कुछ बाबा लोग अपने कुकर्मों के कारण बदनाम हुए फॉलोवर तो उनके भी हैं आखिर उनकी भावनाओं को लगने वाली ठेसों की परवाह क्यों नहीं है !जो जेलों में अदालतों में दंडवत करते घूम रहे हैं आस्था तो उनकी भी है वो भी तो जब तक पकड़े नहीं गए थे तब तक कितने मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री फिरते थे उनके आगे पीछे और जब पकड़े गए तब मीडिया से लेकर चारों ओर केवल उनके पापों का ही जिक्र था !ऐसा पकड़े गए लगभग हर बाबा के  साथ हुआ है तलाशी में उनके आश्रमों से कुछ और निकला हो न निकला हो किंतु सेक्स सामग्री जरूर निकलती रही !कुल मिलाकर जो पकड़ा गया वहाँ पाप मिला जो पकड़ा नहीं गया उस पर भरोसा इतना कैसे कर लिया जाए कि उसे क्लीनचिट दे दी जाए !
     पैसे का सम्बन्ध पाप से भी होता है शार्टकट रास्ते से कम समय में पैसे वाला बनने के लिए पाप करना पड़ता है कम समय में अरबपति बनने का रास्ता तो अपराधों के जंगल से ही होकर गुजरता है यदि यह सिद्धांत सच है तो अरबपति बने बाबाओं ने इससे कितना परहेज किया होगा ये तो वे ही जानते होंगे या फिर भगवान !
    कई बार ऐसा भी देखने में  आता है कि चरित्रवान शास्त्रीय साधक साधू संतों के पास उतनी भीड़ें नहीं होती हैं और न ही उतना धन होता है । क्योंकि वो अपने अनुयायियों को गलत कामों से धन कमाने को रोकते हैं इसीलिए गलतकमाई  या पाप कामों से अंधाधुंध कमाई करने वाले लोग चरित्रवान शास्त्रीय साधक साधू संतों के पास या देवी देवताओं के पास जाते ही नहीं हैं ये देवी देवताओं के नामपर साईं बाबा जैसे किसी बाबा को ही अपना देवता बना लेते हैं और बड़े बड़े पापों से कमाई करते जाते हैं कहीं कोई रुकावट डालने वाला ही नहीं होता है । 
    कई बाबा तो प्रेमी जोड़ों को मौका मुहैया कराने के लिए बाकायदा सत्संग शिविर या योग शिविर लगाते हैं कई लोगों को तो इससे अधिक सुविधाएँ भी मुहैया करा दी जाती हैं क्योंकि आश्रम वालों को पता होता है कि कौन पत्नी से परेशान है और कौन पति से !उन्हें आपस में किसी न किसी से जोड़ दिया करते हैं और आश्रम के नाम पर घर से लेकर बाहर तक किसी को एतराज भी नहीं होता है बाबा जी को ये भी पता होता है कि किसे प्रेमी चाहिए और किसे प्रेमिका इसी प्रकार से ऐसे ऐसे बाबा लोग भी हैं जो तरह तरह के नशे भी मुहैया कराते हैं धर्म की आड़ में वो भी चल जाता है वैसे भी बड़े बड़े आश्रमों में धर्म तो दिखावा मात्र होता है ।
      आज किसी धन हीन आदमी का मन फ़िल्म बनाने का है तो बाया बाबा वो फ़िल्म बना  सकता है अर्थात पहले कुछ वर्ष तक धन इकठ्ठा करने के लिए उसे बबई करनी अर्थात बाबा बनना पड़ेगा !और इसप्रकार से धन संग्रह हो जाने के बाद वो फिल्में बना सकता है बेच सकता है दवा बेच सकता है ज्योतिष वास्तु योग आदि कुछ भी बेच सकता है और कितना भी धन जुटा सकता है उसके बाद कितने भी सुख साधन बना सकता है गाड़ी घोड़ा ट्रेन जहाज तक सब कुछ !वो टीवी चैनलों पर कुछ भी  बक या बया सकता है ऐसे लोग एक नहीं हजार विवाह कर लें किन्तु कोई क्या कर लेगा इनका !पैसा हो तब विवाह तो बुढ़ापे में भी हो जाता है और जैसा चाहो  वैसा हो जाता है ।बाबा बनने के बाद किए गए व्यापार में सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इसमें घाटा होने पर किसी का कुछ देना नहीं होता है फिर नया शुरू किया जा सकता है जबकि कोई ईमानदार गृहस्थ व्यापारी यहीं पर टूट जाता है क्योंकि उसे मूल भी देना होता है और  ब्याज भी ! 
    समाज की स्थिति यह है कि अभ्यास न होने के कारण जप तप व्रत उपवास आदि के शास्त्रीय कठिन विधानों से भयभीत लोग चाहते हैं कि उन्हें कुछ छूट मिले किंतु छूट मिले कहाँ से शास्त्र लिखने वाले तो लिखकर चले गए अब छूट दे कौन !जबकि सनातन हिन्दू धर्म का मूल तो शास्त्र ही है जो वेद शास्त्र आदि में नहीं है वो धर्म कैसा !इसलिए यहाँ तो शास्त्रीय विधानों का पालन ही होता है इसलिए धार्मिक दृष्टि से आलसी लोग अपनी पुजास शांत करने के लिए अपना आचरण बदलने की अपेक्षा अपना भगवान बदल लेते हैं - ऐसे आलसी लोग तो श्री राम के स्थान पर साईंराम, आशाराम, कांशीराम, रामरहीम, रामदेव ,राम विलास आदि किसी को भी अपनी अपनी श्रद्धा विश्वास के अनुशार भगवान मानने लग जाते हैं
     यदि उनके पुण्य का प्रभाव होता तो समाज में भी उसका असर दिखाई देना चाहिए अर्थात अपराधों का ग्राफ घटना  चाहिए था समाज में सात्विकता का विस्तार होना चाहिए था किंतु रोज रोज हो रहे बलात्कार  जैसे और भी अनेकों अपराध धर्म के नाम पर किए जा रहे कलियुगी बाबाओं के हाईटेक आचरण के ही साइडइफेक्ट हैं !माना कि चीटियाँ मिठाई में अधिक होती हैं किन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मिठाई से अधिक चीटियाँ गंदगी में भी होती हैं इस बात को झुठलाया कैसे जा सकता है !इसलिए जैसे सुगंध और दुर्गन्ध के द्वारा हम अच्छाई बुराई का ज्ञान कर लेते हैं उसी प्रकार से समाज में बढ़ती अच्छाइयों से भीड़ को अच्छी एवं बुराइयों से बाबाओं की भीडों को बुराई के लिए इकठ्ठा हुआ जन समूह समझना चाहिए !
    जो चीज  जितनी ज्यादा घटिया मिलावटी सस्ती सरल सहज ग्राह्य  होगी विस्तार उसी का उतना अधिक होगा ! जबकि हितकारी औषधि कड़वी होती है उसे लेने वालों की भीड़ कहाँ देखी जाती है भीड़ें तो जनरल कोच में होती हैं रिजर्वेशन में नहीं !रही बात धार्मिक लोगों के विदेशों तक प्रचारित होने की तो जहाँ लोग हिंदी भी न बोल पाते हों  वहां  योग जैसे शास्त्रीय विज्ञान को समझेगा कौन !वहां तो जो बक आओ  वह शास्त्र ही है !
     देव मंदिरों में लोग जाते हैं तो उन्हें पाप छोड़कर जाने की सीख दी जाती है इसपर साईं वालों ने नारा दिया कि कैसे भी कर्म करो साईं सब माफ कर देते हैं क्योंकि बाबा बड़े दयालू हैं !इससे पाप न छोड़कर धर्म करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए धार्मिक डालडा के रूप में साईं की छत्रछाया मिल गई या यूँ कह लें कि पाप करते हुए धर्मात्मा कहलाने का लाइसेंस मिल गया !

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