मंगलवार, 19 सितंबर 2023

समस्याविज्ञान की खोज !

 किसी को बुरा भला मत कहो, हर कोई अपना अपना कर्तव्य पालन कर रहा है तुम अपना कर्तव्य पालन करो !

जितने दिन जीवन है,स्वास्थ्य  ठीक है वो ईश्वर की कृपा ही है हो सके तो कुछ अच्छा कर लिया जाए !
जब जिसका जैसा समय होता है तब वो वैसा ही सोच पाता है वही अच्छा लगता है | ऐसी  स्थिति में बुरे समय से पीड़ित व्यक्ति किसी की अच्छी बात कैसे  मान लेगा !

अच्छे पद प्रतिष्ठा पाकर किसी का साथी यदि उसे  छोड़ देता है तो वो मित्र होता ही नहीं है !

संबंधों की अमरता का नाम मित्रता है,मित्रता कभी  टूटती नहीं है जो टूटती है वो मित्रता नहीं होती !

मित्रता वही अमर रहती है,जिसमें मित्र के साथ वाद विवाद न हो,धन का आदान प्रदान न हो और मित्र की पत्नी से एकांतमिलन की लालषा न हो !

  विज्ञान अधूरा है !      

   समस्याविज्ञान की खोज !  

      वैज्ञानिकअनुसंधानों का उद्देश्य समाज की समस्याओं को कम करके मनुष्यजीवन को सुखी स्वस्थ और सुरक्षित बनाना है | वैज्ञानिक प्रयासों से सुखसुविधा के संसाधन तो बढ़ाए जा सके हैं,किंतु मनुष्य को सुखी कितना  किया सका है| यह सोचने वाली बात है | ये कैसा सुख जब तनाव के कारण लोग तेजी से शर्करा (शुगर) और रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) जैसे रोग बढ़ते देखे जा रहे हैं |छोटे छोटे लड़के ऐसे रोगों के शिकार हो  रहे हैं |वैवाहिक संबंध टूट रहे हैं ,परिवार बिखर रहे हैं | जन जन में भविष्य का भय व्याप्त है |  ऐसे चिंतायुक्त जीवन में सुख कहाँ हो सकता  है | 
   सुरक्षा के संसाधन भले बढ़ा लिए गए हों किंतु मनुष्य सुरक्षित नहीं हुआ है |समाज में चोरी लूट छोटी छोटी बातों में हत्या बलात्कार जैसे अपराध कितनी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं | दूसरों की कौन कहे अब अपने ही अपनों को मार रहे हैं |आत्महत्या कर रहे हैं| ये कैसी सुरक्षा जब कोई व्यक्ति अपनों से और स्वयं अपने से ही सुरक्षित न हो  |
    आपसी अविश्वास के कारण विवाह टूट रहे हैं | परिवार बिखर रहे हैं | व्यापार बिगड़ रहे हैं | हर क्षेत्र में आरोपों प्रत्यारोपों की बाढ़ सी आ गई है | कुल मिलाकर समाज में असंतोष का वातावरण बना  हुआ है |जिसे कम करने में वर्तमान विज्ञान सक्षम नहीं है | दिनों दिन  रोगों समस्याओं चिंताओं अपराधों का बढ़ना
    वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता यदि सिद्ध करनी  है तो विज्ञान के द्वारा मनुष्यों के आस पास की उन सभी समस्याओं के समाधान खोजने होंगे | जिनसे समाज को प्रतिदिन जूझना पड़ता है |
    ये चिंता की बात है कि  इतने बड़े बड़े वैज्ञानिक अनुसंधानों के होने बाद भी हमारे जीवन के लिए आवश्यक ऐसी असंख्य समस्याओं को समझना भी अभी तक संभव नहीं हो पाया है |
    समस्याओं के पैदा होने का वास्तविक कारण क्या है ?इनका निवारण कैसे होगा |  ऐसी समस्याओं का समाधान खोजना किस वैज्ञानिक के बश की बात है |ऐसे उपायों को अपनाना तो दूर इतनी जल्दी में इन्हें समझ पाना ही संभव नहीं हो पाता है,जब तक इनके विषय में कुछ समझ में आता है तब तक तो ऐसी आपदाएँ बहुत बड़ी जनधन हानि करके चली भी जाती हैं |                                        
 समस्याओं के समाधान कहाँ हैं ?

       जीवन को पीड़ित करने वाली असंख्य समस्याएँ हैं उनमें से कुछ समस्याओं के समाधान वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा खोजे जा रहे हैं| समाधान के नाम पर जो जो कुछ  रहा है उसमें विज्ञान की भूमिका कितनी है |यह सोचे  आवश्यकता है | समस्याओं का पैदा होना और बढ़ना कैसे बंद हो !इसे उद्देश्य बनाकर अनुसंधान किए जाने चाहिए | समस्याओं के पैदा होने पर नियंत्रण किए बिना हम मनुष्यजीवन को स्वस्थ सुखी और समृद्ध नहीं बना सकते हैं |समस्याएँ बढ़ती जाएँ और हम समाधान खोजने के नाम पर समस्याओं का पीछा करने में लगे रहें इसे समस्याओं का समाधान करना कैसे माना जा सकता है|आवश्यक तो यह है कि समस्याएँ पैदा ही न  होने दी जाएँ और पैदा हों तो बढ़ने न दी जाएँ और बढ़ जाएँ तो उन्हें रोकने की व्यवस्था तुरंत हो या उनसे बचाव के लिए प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके रखी जाएँ |
     आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जब इतना अधिक विकसित नहीं था तब लोग पहले रोगी होते थे उसके बाद उन रोगियों की चिकित्सा की जाती थी |इसके बाद लोग रोगी न हों या कम से कम रोगी हों इस उद्देश्य से बचपन से ही टीके लगाए जाने लगे किंतु अस्पतालों में भीड़ें तो अब भी लगी हुई है| रोगियों की संख्या बढ़ती देखकर अस्पतालों की संख्या बढ़ाते जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है यह तो वैकल्पिक व्यवस्था मात्र है | जिससे लोग कम से कम रोगी हों उस प्रकार के अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है |
     कोई अपराधी यदि किसी की हत्या कर देता है तो जो मर जाता है उसे किसी न्यायालयीय प्रक्रिया से  पुनर्जीवन दान तो नहीं ही दिया जा सकता है|वैसे भी न्याय और अन्याय का निर्णय तो कानून निर्माता ही कर सकते हैं | राजा यदि  अपराधी हो तो वो अपराध पोषक कानूनों का निर्माण कर सकता है ये उसका विशेषाधिकार है | रावण ने अपनी  प्रजा से कहा ही था कि अपने धर्म की रक्षा करो !लोगों ने  पूछा कि अपना धर्म क्या है तो कहने लगा दूसरों का धन  एवं दूसरों की स्त्रियों का  शील  हरण करना ही अपना धर्म है !किंतु ऐसे प्रयत्नों से समस्या का समाधान कैसे संभव है | इसलिए अपराधों की बढ़ती संख्या देखकर पुलिस बल बढ़ाते जाना या न्यायालयों की संख्या बढ़ाते जाना सरकारों का काम है किंतु यह समस्या  समाधान नहीं है | यह तो काम चलाऊ व्यवस्था है |ऐसा तभी तक किया जाना उचित होगा जब तक समस्याओं का समाधान नहीं है| समस्याओं का समाधान खोजने की वास्तविक जिम्मेदारी तो वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की है |जिनपर समाज में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी है|
    मौसम संबंधी उपग्रहों रडारों की संख्या बढ़ाना  एक काम चलातू जुगाड़मात्र है|जिससे आकाशस्थ आँधी तूफानों या बादलों को देखकर तात्कालिक घटनाओं की गति और दिशा का तब तक अंदाजा लगाया जा सकता है जब तक वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसी घटनाओं का कोई स्थाई समाधान न खोजा जा सके | इस काम चलातू जुगाड़ के भरोसे कब तक जीवन जिया जाएगा !इसका स्थाई समाधान तो खोजना ही पड़ेगा |जिन प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित होकर  लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जिस भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी ,वैसी प्राकृतिक आपदाएँ अभी भी घटित होती हैं तो उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना अभी भी संभव नहीं हो  पाया है |                                            
                                              
पूर्वानुमानविज्ञान  का मतलब क्या ?
 
 
                                      वायुप्रदूषण विज्ञान मतलब क्या ?
  
                                             मौसम विज्ञान मतलब क्या ?
    किसी भी वैज्ञानिक प्रयत्न के द्वारा भूकंप आँधी तूफानों बाढ़ों बज्रपातों चक्रवातों

                                                 भूकंप विज्ञान मतलब क्या ?
     भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों के द्वारा खोज यही करनी होती है कि इनमें होने वाली जनधन हानि को कैसे घटाया जा सके ! इसके लिए भूकंपों को आने से तो रोकना  संभव नहीं है |भूकंपों से बचाव करने  के लिए प्रयत्न ही किए जा सकते हैं |बचाव किया जाना तभी संभव है जब भूकंप  आने के विषय में पहले से पता हो ! इसके लिए भूकंप आने  के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई सक्षम विज्ञान और वैज्ञानिक हों | किसी भी घटना के  विषय में पूर्वानुमान लगांने के लिए दो ही प्रकार  सकते हैं एक प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष !आधुनिक विज्ञान में अप्रत्यक्ष कारणों को खोजने के लिए अभी तक ऐसा कोई विज्ञान नहीं है | जिसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं को समझना संभव हो |
 
प्रत्यक्ष के लिए तो घटना से संबंधित सारी कड़ियाँ जुड़ती हुई प्रत्यक्ष रूप से दिखनी चाहिए | जिन्हें तर्कसंगत ढंग से समझना संभव हो और
 भूकंप जैसी घटनाओं में होने वाली जनधन हानि को  कम करने में भूकंप वैज्ञानिक आखिर कैसे सहायक हो सकते हैं |
 
                 
   महामारी पर मौसम के प्रभाव का मतलब क्या ?
 
   महामारी पर तापमान के प्रभाव का मतलब क्या ?
 
   महामारी पर वायुप्रदूषण के प्रभाव का मतलब क्या ?
 
  महामारी विज्ञान  का मतलब क्या ?
 
 महामारी पूर्वानुमान का मतलब क्या ?

महामारी की पहली लहर और विज्ञान !
महामारी की दूसरी लहर और विज्ञान !
महामारी की तीसरी लहर और विज्ञान !
महामारी की चौथी लहर और विज्ञान !
महामारी  स्वरूप परिवर्तन का मतलब क्या ?
मृत्युविज्ञान का मतलब क्या ?
महामारी के स्वरूप परिवर्तन का मतलब क्या ?
जलवायु परिवर्तन होने का मतलब क्या ?
 
समय सबको प्रभावित करता है !
   जिस स्थान पर आए भूकंप में किसी घर के गिरने से उसमें दबकर जिसकी मृत्यु होनी होती है वहाँ कई घटनाओं को एक साथ घटित होना होता है |जो बिना किसी योजना के  संभव  ही नहीं है | 
    एक ओर भूकंप का आना  दूसरी ओर उस व्यक्ति का उसी समय वहाँ पहुँच जाना तीसरा उस घर का उसी समय गिर जाना चौथा उसमें दब कर उसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाना | ये सब

 की हानि न बचाने मे के लिए परिणामप्रद अत्यंत गंभीर प्रयासों  की आवश्यकता है |
      ऐसी प्राकृतिक घटनाओं में अपने बहुमूल्य जीवन गँवाने वाले लोगों को खोने की पीड़ा हमें भी होती है इसके लिए मैं अपने को भी उतना ही  जिम्मेदार मानता हूँ जितना अपने वैज्ञानिकों और सरकारों को मानता हूँ |वो अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठा रहे  हैं | मैं अपने हिस्से की उठाना चाहता हूँ |इसलिए हमने हमारे हिस्से की जिम्मेदारी उठाते हुए ही जो प्रयत्न किए हैं वो कितने  परिणामप्रद हैं ये तो भविष्य में ही पता लग पाएगा | |     


ऐसे प्राकृतिक आपदाओं में मरने वाले लोग भी अपनी मृत्यु से मरते
 
जितने किमनुष्य जीवन को पीड़ित करने वाले उन प्राकृतिक संकटों का क्या किया जाए जिनसे हर वर्ष भारी जन धन हानि उठानी पड़ती है | उनका समाधान निकालने के लिए वैज्ञानिकों के  द्वारा जो भी प्रयत्न किए प्रयत्न किए जाते रहे हैं उनसे जनहित में कोई प्रभावी  परिणाम नहीं निकल पा रहे हैं |  कुलमिलाकर  प्राकृतिक आपदाओं  को बहुत गंभीरता से लिए जाने की आवश्यकता है| लोग मरे
     वैज्ञानिकअनुसंधानों का लक्ष्य सभीप्रकार के प्राकृतिक संकटों से होने वाली जनधन हानि को कम करना होता है| ऐसे अनुसंधानों को इसी कसौटी पर कसकर परखा जाना चाहिए ! 
     भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात जैसी  जिन प्राकृतिक घटनाओं में वैज्ञानिक लोग लगातार अनुसंधान करते आ रहे हैं | इसके बाद भी ऐसी घटनाएँ जब जब घटित होती हैं उनमें बहुत जनधन हानि होते देखी जाती है |महामारियों में भी यही होता है | ऐसे महारोगों के विषय में अनुसंधान चला ही करते हैं फिर भी महामारियोंके आने के विषय में पहले से किसी को कुछ पता नहीं होता है और इतनी बड़ी आपदा पर तुरंत के प्रयासों से अंकुश लगाना संभव ही नहीं है | भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात जैसी  प्राकृतिक घटनाओं में भी यही होता है इनके विषय में पहले से किसी को कुछ पता नहीं होता है और ऐसी घटनाओं के घटित होने के बाद वैज्ञानिकअनुसंधानों के करने लायक कुछ बचता ही नहीं है |जो नुक्सान होना होता है वो पहले झटके में ही हो जाता है | ऐसी आपदाओं में जन धन का नुक्सान यदि हो ही जाना है तो वैज्ञानिकअनुसंधानों के नाम पर वो सब करने की आवश्यकता ही क्या है जिसमें इतनी भारी भरकम जनता की धनराशि खर्च कर दी जाती है | जिसके बदले जनता को कुछ भी  मदद नहीं पहुँचाई जा पाती है |
     वायु प्रदूषण बढ़ता है जिससे समाज को एक तो स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है | दूसरे कुछ ऐसे कार्यों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया जाता है  जनता के जीवन के लिए जरूरी होते हैं | वायुप्रदूषण बढ़ने के वास्तविक कारण क्या हैं वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा इसका पता लगाए बिना उन पर  प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए जाते हैं |धुआँ और धूल उड़ाने वाले सभी कार्यों को बंद करना शुरू कर दिया जाता है |   
 
 
                                                  वैज्ञानिक भ्रम या सच्चाई !
 
    जिस वैज्ञानिक के द्वारा जिस प्राकृतिक घटना के घटित होने के लिए जो जिम्मेदार कारण बताया जाता है वो उन लेखकों की तरह ही मात्र एक कल्पना होती है | जिसके आधार पर किस्से कहानियाँ या कविता आदि लिखी जाती हैं | किसी भी अनुसंधान को करने  के लिए पहले कुछ कल्पना करनी पड़ती हैं जो सही या गलत  कैसी भी निकल सकती हैं | उनके आधार पर यह मान लिया जाना कतई उचित नहीं है कि भूकंप आने का कारण टैक्टोनिक प्लेटों का खिसकना या भूगर्भगत गैसों का दबाव हो सकता है | ये तो प्रारंभिक कल्पनाएँ मात्र हैं जबकि ऐसी घटनाओं के घटित होने का वास्तविक कारण कुछ दूसरा भी हो  सकता है | इसका निश्चय तो तभी हो पाएगा जब भूकंपों के  विषय में पूर्वानुमान  लगाना संभव हो पाएगा | 
         
क्योंकि किसी भी प्राकृतिक घटना के विषय में किसी बताया गया   
 
 
ये सब तब तक  विश्वास करने लायक नहीं होते  हैं जब तक कि ऐसी घटनाओं के विषय में उन अनुमानित कारणों के आधार पर  लगाए गए पूर्वानुमान सही न निकलने लगें ! न हो जाएँ   उतना महत्त्व नहीं  रखता है अपितु  ध्यान  इसपर दिया जाना चाहिए कि उसने जो कहा है उसका आधार कितना मजबूत है और वह जनहित की कसौटी पर खरा कितना उतरता है | इसके बिना बाक़ी सारी बातें निरर्थक हैं | 
    
    किसानों को फसल योजना बनाने के लिए दीर्घावधि वर्षा पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है
 प्रतिरोधक क्षमता
 
 
   
वैज्ञानिक अनुसंधान जनता के लिए होते  हैं ! 
      बाढ़ एक ऐसी बड़ी समस्या है जिसमें जनधन का नुक्सान तुरंत  होने लगता है| ये नुक्सान न हो या कम से कम हो या इससे कारगर बचाव कैसे हो, इसकी प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके कैसे रखी जाएँ !वह खोजे जाने की आवश्यकता  है | यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसा कुछ न खोजा जा सके जिससे बाढ़ से जूझते समाज को कुछ मदद न मिल सके और बाद में बताया जाए कि ये बाढ़ जलवायुपरिवर्तन के कारण आई थी ! इससे बाढ़ पीड़ित समाज को क्या मदद मिल पाएगी !
        इस दृष्टि से देखा जाए तो समाज की जो समस्याएँ हैं उनके समाधान खोजना ही अनुसंधानों का उद्देश्य होना चाहिए है | वे समस्याएँ घटित क्यों होती हैं ?ऐसा होने के पीछे का कारण क्या है ? समाज के लिए यह आवश्यक नहीं है | यह जानकारी वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधानों की दृष्टि से उपयोगी हो सकती है | समाज तो केवल अपनी समस्याओं  का समाधान ही चाहता है | इसलिए समाज को समस्याओं से मुक्ति कैसे मिले इस पर बिचार किया जाना चाहिए !
 
                                        वैज्ञानिकता की आवश्यकता और पहुँच !
 
     हमें यह सच्चाई भी समझनी होगी कि जो समाज वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च की जाने वाली धनराशि का भार स्वयं वाहन करता है| वो इसीलिए करता है कि महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से समाज जब जूझ रहा होगा !उस समय ऐसे अनुसंधान उसके काम आवें | इसलिए ऐसे समय में जनता बड़ी आशाभरी निगाहों से अपने वैज्ञानिकों की ओर ताक रही होती है |हैरान परेशान जनता  अपने  प्राणों की रक्षा के लिए जब अपने प्रिय वैज्ञानिकों को मदद के लिए पुकार रही होती है  !उस समय वह जानना चाहती है कि इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा आने के के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा पहले क्यों नहीं बताया गया ?ऐसे कठिन समय में वैज्ञानिकों का यह कह देना कितना उचित होगा कि जलवायुपरिवर्तन हो  रहा है |इसलिए हम नहीं बता पाए !ऐसे ही महामारी से जूझता समाज जब वैज्ञानिकों से पूछेगा कि भैया इतनी बड़ी महामारी आने वाली थी तो आप पहले से बता देते | महामारी की बार बार लहरें आ रही हैं |पैसे पास नहीं हैं,राशन नहीं है , दवा  नहीं है |मन घबड़ा रहा है |ऐसी स्थिति आखिर कब तक रहेगी !ऐसे संकट के समय में समाज से यह कह देना कितना उचित होगा कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है इस कारण कुछ नहीं बताया जा सका | इस प्राकृतिक घटनाओं को रोकना जनता के बश में नहीं है | इसलिए जलवायुपरिवर्तन आदि प्राकृतिक घटनाओं की शिकायत जनता से  नहीं की जा सकती है | वे तो  घटित होंगी ही तभी तो अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ी | प्रकृति  के प्रत्येक कण में परिवर्तन तो हर  युग में ही होते रहे हैं |जलवायुपरिवर्तन आदि होने में नया क्या है !उस बदलते क्रम को  समझकर उसके  अनुशार ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना ही तो अनुसंधान कर्ताओं की जिम्मेदारी है |इसलिए हर हाल में  वैज्ञानिक अनुसंधानों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए जनता की अपेक्षाओं पर तो खरा  उतरना ही होगा | 
    कुलमिलाकर जनता की आवश्यकताओं अपेक्षाओं को गंभीरता से समझना होगा !उन अपेक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरने के लिए काम भी आत्मीयता पूर्वक ही करना होगा | अनुसंधानों पर खर्च की जाने वाली धनराशि उसी जनता के द्वारा अपने खून पसीने की कठिन कमाई से टैक्स के रूप में  सरकारों को दी जाती है |जिसके पाई पाई और पल पल का हिसाब देना सरकारों का कर्तव्य होता है | इसलिए ऐसे विषयों में सरकारें भी विशेष सावधानी बरतती हैं | 
    जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाएँ यदि घटित हो भी रही हों तो उन्हें सम्मिलित करते हुए अनुसंधान करना तो जनहित में वैज्ञानिकों का कर्तव्य है | जनता को तो महामारी या प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान चाहिए ! देश की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन सैनिकों  को एक बार दे दी जाती  है |इसके बाद आँधीतूफ़ान ,बाढ़,बज्रपात ,भूकंप या महामारी ही क्यों न आ जाए फिर भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह सैनिक स्वयं ही प्रयत्न पूर्वक किया करते हैं |जिससे हर परिस्थिति में देश की सीमाएँ सुरक्षित बनी  रहती हैं | इसके  लिए  वहाँ उन्हें प्रत्येक प्राकृतिक या  मनुष्यकृत परिस्थिति से स्वयं ही निपटना पड़ता है|ऐसे परिवर्तन तो वहाँ भी होते हैं जो उन्हें उनके लक्ष्य से भटका सकते हैं ,किंतु वे सैनिक कभी ऐसी शिकायत नहीं करते कि शत्रु सैनिकों ने लड़ने के तरीके में  बदलाव कर लिया है | इसलिए देश की सीमाएँ सुरक्षित नहीं रखी जा सकीं | ऐसे  ही जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाओं से एवं उसके प्रभाव से जनता परिचित  नहीं है | जनता  होने वाले नुक्सान से परिचित होती है | वो उसी से अपना बचाव चाहती है | इसके लिए उसे ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान जानना आवश्यक होता है वह उसे मिलना ही चाहिए | ये उसका अधिकार है | 
     ऐसे संकट के समय जनता से यह कह देना पर्याप्त नहीं होगा कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा बहुत कुछ खोजा चुका है |हम चंद्रमा पर पहुँचने की सफलता या कंप्यूटर मोबाइल आदि विभिन्न  प्रकार की वैज्ञानिक सफलताओं को गिनाकर इस जिम्मेदारी से नहीं बचा जा सकता है कि महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से  जनधन हानि का  रोका जाना तो संभव  हुआ ही नहीं है |उन घटनाओं का पूर्वानुमान भी नहीं लगाया सकता है |      इसलिए वैज्ञानिक उन्नतियाँ गिनाकर उन जिम्मेदारियों से बचा नहीं जा सकता है जनता जिनसे जूझ रही  होती है |वैज्ञानिक अनुसंधानों की प्राथमिकता जनता  के जीवन को सुरक्षित रखने की होनी चाहिए | जीवन बचेगा तभी तो आविष्कारों  सदुपयोग होगा |

 

      महामारी भूकंप चक्रवात बज्रपात बाढ़ आदि घटनाओं के घटित होने का अभी तक न निश्चित कारण खोजा जा सका है और न ही निवारण अर्थात बचाव ! इसलिए ऐसी आपदाओं से पीड़ित समाज की मदद करना विज्ञान जगत के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है |

वैज्ञानिक अनुसंधानों की गंभीरता 

      किसी भी समस्या का प्रभावी समाधान उस समस्या के अनुरूप ही करना होगा | ये सभी को  पता है कि  मृत्यु और विनाश बिना बुलाए तथा बिना बताए ही आते हैं | अत्यंत वेग  से अचानक आक्रमण करने वाली महामारी भूकंप चक्रवात बज्रपात बाढ़ जैसी समस्याओं की शुरुआत ही जनधन हानि से होती है |इनके शुरू होते ही तेजी से लोग मृत्यु को प्राप्त हो रहे होते हैं | ऐसे संकट के समय में जब जनता को पल पल प्राणों पर खेलना पड़ रहा होता है| उस समय जनता को अपने  वैज्ञानिकों से तुरंत मदद की अपेक्षा होती है | अभी तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर यह कहा जा सकता कि इतनी बड़ी समस्या का समाधान तुरंत खोज पाना संभव नहीं होता है |

        ऐसी महामारियों या आपदाओं की शुरुआत ही जनधन हानि से होती है |इनसे जनधन हानि होते देखकर ही यह अंदाजा लग पाता है कि अब महामारी या प्राकृतिक आपदा आ गई है | इनके पहले झटके में ही बहुत बड़ा नुक्सान हो जाता है | जिसे रोका जाना उस समय तुरंत किए गए प्रयासों के द्वारा संभव नहीं हो पाता है |ऐसी भयंकर हिंसक घटनाएँ  एक बार जब घटित होनी शुरू हो जाती हैं और उनसे जनधन हानि होने ही लगती है | उस समय वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका कुछ बचती ही नहीं है | उसके बाद तो आपदा प्रबंधन वाले अपनी  जिम्मेदारी सँभाल ही लेते हैं |इतनी तेजी से अचानक आक्रमण करने वाली भयंकर प्राकृतिक आपदाओं का  सामना इतने कम समय में तैयार किए गए सामान्य जुगाड़ों के आधार पर कैसे किया जा  सकता है | सही पूर्वानुमान  पता लगे बिना सरकारें चाहकर भी जनधन हानि को कम करने में सक्षम नहीं होंगी | इसके बिना सुरक्षा के लिए पहले से तैयारियाँ करके कैसे रखी जा सकती हैं |

      ऐसे समय में समाज को कोई मदद तभी पहुँचाई जा सकती है| जब इनसे बचाव के लिए अत्यंत मजबूत तैयारियाँ पहले से करके रखी गई हों |ऐसा किया जाना तभी संभव है जब इनके घटित होने की संभावना के  विषय में  पहले से पता हो |ऐसी कोई वैज्ञानिक पद्धति नहीं है | जिसके द्वारा  भविष्य को देखना संभव हो |मेरी जानकारी के अनुशार अभी तक  ऐसा कोई विज्ञान नहीं है, जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो | जब भविष्य को देखने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है तब भविष्य संबंधी घटनाओं के  विषय में  पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी  कैसे की जा सकती है ?अनुसंधान करने के लिए भी तो विज्ञान का होना आवश्यक है | उसके बिना ऐसा किया जाना कैसे संभव है | यही कारण है कि इतने बड़े बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान लगातार चलते रहने के बाद भी भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बाढ़ जैसी हिंसक प्राकृतिक घटनाओं एवं कोरोना जैसी हिंसक महामारियों के विषय में  पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | 

     ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाने के लिए सरकारें जिन वैज्ञानिकों पर आश्रित होती हैं | उन वैज्ञानिकों के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं,महामारियों या उनकी बार बार आने जाने वाली लहरों के विषय में लगाए जाते रहे पूर्वानुमान यदि गलत ही निकलते रहेंगे तो उनके आधार पर इतने बड़े बड़े संकटों का सामना किया जाना कैसे संभव है |

                  विज्ञान के अभाव में प्राकृतिक आपदाओं  बढ़ता प्रभाव !

      समाज को भी यह सच्चाई समझनी होगी कि भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बाढ़ जैसी हिंसक प्राकृतिक घटनाओं या कोरोना जैसी महामारियों के हमलों से तब तक समाज को स्वयं ही जूझना पड़ेगा जब तक ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक पद्धति खोज नहीं ली जाती है| समाज को यह भी बता दिया जाना उचित ही होगा कि ऐसी किसी वैज्ञानिक पद्धति का इतनी जल्दी खोज लिया जाना संभव भी नहीं है |

    वस्तुतः  पूर्वानुमान लगाने लायक ऐसी कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजने में कितना समय लग सकता है | ये अभी से बता पाना इसलिए भी संभव नहीं है ,क्योंकि 1864 में एक चक्रवात कलकत्ते में आया था और 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था | इनमें बड़ी जनधन हानि हुई थी | इससे चिंतित होकर ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाने के उद्देश्य से 15 जनवरी 1875 में भारतीयमौसमविज्ञानविभाग की स्थापना की गई थी,तभी से अनुसंधान करते करते लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीतने जा रहे हैं कितने सौ वर्ष और लगेंगे तब ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान खोजा जा सकेगा, इसका अंदाजा  विगत डेढ़ सौ वर्षों की मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के आधार पर लगाया जा  सकता है | उदाहरण के लिए पिछले दस वर्षों की मौसम संबंधी घटनाओं एवं उनके विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा लाए गए पूर्वानुमानों की सच्चाई के आधार पर लगाया जा सकता है | 

      इसी प्रकार से  कोरोना महामारी के समय  विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार कहा जाता रहा है -"कोरोना महामारी के पैदा होने में एवं उसकी लहरें आने जाने में मौसम भी कारण हो सकता है |" इसलिए महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में  पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होगा |बताया जाता है कि इसी उद्देश्य से महामारी संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों को करने की प्रक्रिया में उन्हीं  मौसमवैज्ञानिकों को भी सम्मिलित किया गया है जिनके द्वारा अभी तक मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाए जाते रहे हैं उन पूर्वानुमानों में सच्चाई का अनुपात बहुत कम है | जिससे समाज सुपरिचित है |मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले मौसमसंबंधी पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सही निकलते रहे हैं उतने प्रतिशत उनके अनुभवों का लाभ महामारी संबंधी अनुसंधानों को भी मिल सकता है |ऐसी आशा की जानी चाहिए | उनके द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान कितने प्रतिशत सही निकलते रहे हैं | इसका आकलन करना उचित होगा |

         इतनी बड़ी समस्याओं से बचाव के लिए समस्याएँ पैदा होने से पहले बहुत बड़े स्तर पर तैयारी करके  रखनी होगी |ऐसा किया जाना तभी संभव होगा जब ऐसी घटनाओं के घटित होने से बहुत पहले इनके विषय में पूर्वानुमान पता हो  | भविष्य में झाँकने के लिए अभी तक कोई विज्ञान नहीं है | 




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तब तक जिस किसी भी प्रकार से जितनी भी मदद मिल जाए उतनी ही बहुत है| ऐसा सोचकर जहाँ एक ओर वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व किया सकता है ,वहीं चिंता इस बात की भी होती है कि ऐसी सभी वैज्ञानिक उपलब्धियों का आनंद तभी मिल सकेगा जब जीवन सुरक्षित बचेगा |
     इसलिए वैज्ञानिक आविष्कार वास्तविक प्रशंसा के अधिकारी उसी दिन होंगे जब बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मानव जीवन को सुरक्षित बचाए रखने में सफल होंगे |इसके लिए प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से बचाव की प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके रखनी होंगी !ऐसा किया जाना तभी संभव होगा जब ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में आगे से आगे ऐसे पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित कर ली जाएगी !जो सही भी निकलते सकते हों |मौसम और महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जितने भी अंदाजे लगाए जाते हैं | उनका सही और गलत दोनों ही निकलना संभव है | इसलिए वे इतने विश्वसनीय नहीं होते हैं कि उनके आधार पर आगे से आगे बचाव के लिए पहले से कोई प्रभावी तैयारियाँ किया जाना संभव हो |
 
   
इनके आने का कारण और निवारण अर्थात बचाव खोजना ही विज्ञान का उद्देश्य है |कारण और निवारण खोजना तभी संभव है जब इनके विषय में पहले से
 


 
 विज्ञान अधूरा है !
                                        ज्योतिष के बिना !
 
जीवन कितना स्वाधीन और कितना पराधीन है ! 
 
    मनुष्य दुविधा के साथ जीवन जीने पर मजबूर है | उसे  समझ में नहीं आ रहा है कि प्रकृति या जीवन में जो जो कुछ घटित  हो रहा है वो अपने आप से हो रहा है या मनुष्यों के प्रयासों से उसे करने या फिर उसे रोकने की क्षमता क्या मनुष्यकृत वैज्ञानिक खोजों में है | कई कार्य अच्छे होते देखकर मनुष्यों  को लगता है कि ये कार्य हम मनुष्यों के द्वारा किए  गए हैं |
    इसी समय प्रकृति या जीवन में कुछ बुरी घटनाएँ घटित होने लगती हैं |जिनसे मनुष्यों का नुक्सान होता है | उन्हें मनुष्यकृत वैज्ञानिक अनुसंधानों से रोकने के प्रयास किए जाते हैं किंतु उन्हें रोकना संभव नहीं होता है | 
              
 विज्ञान से महामारी पीड़ितों को मदद  मिलनी  कैसे संभव है  ?

     महामारी की चिकित्सा कब खोजी जाएगी ? जब महामारी आ जाएगी !महामारी आने के विषय में पता कब  लगेगा ?जब लोग मरने लगेंगे !अचानक आई महामारी के विषय में वैज्ञानिकों को न रोग पता होगा और न  रोग का स्वभाव कारण आदि !ऐसे में  रोग को ठीक ठीक समझे बिना चिकित्सा कैसे संभव है!इतनी बड़ी  मात्रा में औषधि निर्माणसामग्री जुटाकर इतने कम समय में औषधि बनेगी कैसे और जन जन तक पहुँचेगी कैसे ! महामारी के शुरू होते ही लोग संक्रमित होने और मरने लगते हैं | उतने कम समय में अचानक ये सब करने का समय ही कहाँ मिल पाता  है| इसलिए पहले से सही पूर्वानुमान  पता लगाए बिना महामारी पीड़ितों को विज्ञान से कोई मदद मिलनी कैसे संभव है|यदि  पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान होता तब तो महामारी आने से पहले ही उसके विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज और सरकार को बता दिया गया होता कि महामारी आने वाली है !किंतु जब ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिससे महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो तो फिर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है |

    महामारी आने के विषय में पहले से सही सही पूर्वानुमान पता लगे बिना उससे सुरक्षा के लिए सार्थक प्रयास किया जाना संभव ही नहीं है |ऐसे बड़े संकटों से बचाव के लिए वैज्ञानिकों ने जो और जितने साधन जुटा भी रखे हैं  | उनकी मदद से भी समाज को सुरक्षित बचा पाना तभी संभव है जब महामारी के समय होने वाले रोगों का सही परीक्षण करने एवं औषधिनिर्माण करके  जनजन तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त समय मिले |

 कोई ज्योतिष का सहयोग लिए बिना महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है !

  जिस मनुष्य को सुख सुविधाएँ पहुँचाने के लिए वैज्ञानिक लोग तरह तरह की खोज करने में लगे हुए हैं ,वे खोजें मनुष्य के लिए तभी उपयोगी हो सकती हैं जब मनुष्य सुरक्षित रहे |महामारी हों या भूकंप, बाढ़ हो या बज्रपात, चक्रवात हो या बादल फटने जैसी हिंसक घटनाएँ !ऐसी घटनाएँ शुरू ही नरसंहार से होती हैं |इनके हमले अचानक और इतने तेज होते हैं कि इनसे बचाव करना तो बहुत बड़ी बात है बचाव के  विषय में सोचने का भी समय नहीं मिल पाता है | ऐसी बड़ी हिंसक घटनाओं से बचाव के लिए कोई  तैयारी तुरंत करके सुरक्षा कर ली जाएगी यह तो बिल्कुल असंभव है | इनके घटित होने के विषय में पहले से जितने सटीक पूर्वानुमान पता हों बचाव के लिए उतने प्रभावी प्रयत्न किए जा सकते हैं |
    भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई  विज्ञान नहीं है |ऐसे विशिष्ट विज्ञान के अभाव में कुछ घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़कर अंदाजा लगा लिया जाता है | जैसे कोई ट्रेन इतनी गति से इस लाइन पर जा रही है इसलिए इतने बजे अमुक स्टेशन पर पहुँच जाएगी ! ऐसी ही नहर में छोड़ा गया पानी या किसी नदी में आई बाढ़ इतनी देर में किस शहर में पहुँच जाएगी | इसी प्रकार से कहीं दिखाई देने वाले बादलों आँधी तूफानों की गति और दिशा देखकर ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि कब किस स्थान पर पहुँच सकते हैं | ऐसे अंदाजे प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति या जीवन से जुड़ी भिन्न भिन्न घटनाओं या परिस्थितियों के विषय में लगाया करता है और वे सही गलत निकला करती हैं | इनका आधार कोई तर्कसंगत विज्ञान न होने से ये विश्वसनीय नहीं होते ! इसलिए इन्हें आधार पर कोई विश्वसनीय निर्णय लिया जाना भी उचित नहीं होता है | 
      ऐसी घटनाओं के अंदाजे लगाने के लिए कुछ तीर तुक्के अपनाए जाते हैं जो कुछ घटनाओं के साथ काल्पनिक रूप से जोड़कर तैयार किए जाते हैं |कई बार उन घटनाओं का आपस में कोई संबंध ही नहीं होता |अलनीनो लानिना जैसी घटनाओं के आधार पर की गई भविष्यवाणियाँ सही गलत दोनों निकलती हैं | इसलिए ऐसी समुद्री घटनाओं का मौसम पर कोई असर पड़ता भी है या नहीं इसी को लेकर कोई निश्चित मत नहीं बन पाया है | पड़ने वाले उनके प्रभाव का आकलन अलग से किया जाना संभव ही नहीं है | वे कितने सही होंगे इस विषय में विश्वास पूर्वक कुछ भी कहा जाना संभव नहीं होता है,फिर भी वे यदि सही निकले तो विज्ञान और गलत निकले तो जलवायुपरिवर्तन मानकर काम चला लिया जाता है|मौसम विज्ञान के नाम पर इससे अधिक कुछ है भी नहीं और न ही निकट भविष्य में कोई ऐसी आशा ही की जा सकती है | सुपर कंप्यूर जैसे उपकरण भी तो इन्हीं तीर तुक्कों के आधार पर डेटा विश्लेषण में कुछ मदद करने के अतिरिक्त विज्ञान के अभाव में वे भी कुछ विश्वनीय मदद नहीं सकते हैं |
    ऐसी ही स्थिति  महामारी संबंधित अनुसंधानों की भी है | महामारी के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाए बिना इससे बचाव के लिए कोई तैयारियाँ नहीं की जा सकती हैं | बचाव किया जाना तभी संभव है जब इनके विषय में सही पूर्वानुमान पहले से पता हों | पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान नहीं है |बिना किसी तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार के कुछ तीर तुक्के लगाए जाते हैं | वे जब जितने बार गलत निकलते दीखते हैं उतने बार बार तारीखें बदल बदल कर परोसे जाते हैं ताकि वे कुछ तो सही लगें ही,वे फिर भी सही नहीं निकलते | अपने द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान  सही न निकलना अपनी असफलता है जिसे स्वीकार करने के बजाय तो महामारी का स्वरूप परिवर्तन बता दिया जाता है|ऐसे ही पहले मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है बाद में उसके गलत निकल जाने पर उसे जलवायुपरिवर्तन बता दिया जाता है |
    वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी आशंका बार बार जताई जाती रही है कि महामारी के पैदा होने या घटने बढ़ने का कारण मौसम हो सकता है | यदि ऐसा हुआ भी तो जब मौसम को ही ठीक ठीक समझना और उसके विषय में पूर्वानुमान लगाना ही अभी तक संभव नहीं हो पाया है तो मौसम संबंधी ऐसे नगण्य अनुसंधान महामारी संबंधी अध्ययनों में मदद कैसे कर सकते हैं | 
     कुलमिलाकर ऐसे ढुलमुल वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर अभी तक न तो मौसम संबंधी अनुसंधान किया जाना संभव हो पाया है और न ही महामारी संबंधी,जबकि दोनों ही आवश्यक हैं | ऐसी परिस्थिति में वैश्विक कर्णधारों को इस विषय में बिचार करना चाहिए कि मौसम और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य समाज की सुरक्षा करने के लिए उनके पास ऐसा क्या है जिससे ऐसी घटनाओं से भविष्य में निपटने की आशा की जा सके | विशेष कर भारत के लिए यह सोचे जाने की आवश्यकता है कि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सन  1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी | लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत जाने के बाद अब यह सोचने का समय आ गया है कि उन उद्देश्यों की पूर्ति में कितनी प्रगति हुई है |
 
 इसीलिए इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना आवश्यक समझा गया | 
 
 लोगों को सोचने समझने  अत्यंत तेजी से अचानक हमला करती हैं,  जीवित बचेगा तभी खोजें उसके काम आ पाएँगी !
                                                                 दो शब्द

       वर्तमानकाल खंड में विज्ञान ने बहुत उन्नति की है इसमें किसी को कोई संशय नहीं है| यात्राओं को सुखप्रद एवं आसान किया है |दूर संचार के क्षेत्र में अद्भुत क्रांति की है |रक्षा क्षेत्र को अधिक मजबूती प्रदान की है |चिकित्सा को अधिक सक्षम एवं सुगम बनाया है |मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी आवश्यक कार्यों की कठिनाई कम की है सुख सुविधाओं को बढ़ाया है |इसीलिए हर किसी को अपने वैज्ञानिक उत्कर्ष पर गर्व होता है |इसी के साथ कुछ चिंताएँ भी हैं जो भूलने लायक नहीं हैं | 

     विचारणीय विषय यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अत्यंत परिश्रम पूर्वक जो सुख सुविधाएँ जुटाई गई हैं या मानवजीवन की जिन समस्याओं के समाधान खोजने के लिए जो परिश्रम किया गया है| उसका लाभ मनुष्यों को तभी मिल सकता है जब जीवन सुरक्षित रहे | जीवित रहकर ही तो मनुष्य उन सुख सुविधाओं का आनंद ले सकता है | यदि मनुष्य ही जीवित नहीं रहेंगे तो इतने सारे सुख संसाधनों का क्या होगा | इसलिए हमारे अनुसंधानों का पहला उद्देश्य मनुष्य जीवन की सुरक्षा होना चाहिए |लोग सुरक्षित बने रहेंगे तो थोड़ी कम सुख सुविधाओं से भी  जीवनयापन कर लिया जाएगा |

      सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि चीन और पकिस्तान के साथ भारत को आज तक जितने भी युद्ध लड़ने पड़े हैं|उनमें उतने लोगों की मृत्यु नहीं हुई है|  जितने कि कोरोना महामारी के समय मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | अस्पतालों से लेकर श्मशानों तक में जगह नहीं थी | गंगा जी में तैरते शव इधर उधर फेंके जाते शव क्या भयावह दृश्य था !कितने लोगों को अपना एवं अपनों का बहुमूल्य जीवन खोना पड़ा है |हमारे अतिप्रिय स्वास्थ्य सैनिकों ने भी मानवता की सेवा में अपना तन मन झोंक दिया है | वे कितने दुखद दृश्य थे |

     व्यक्तिगत तौर पर आज भी जब वह सबकुछ याद आ जाता है तो मैं सो नहीं पाता हूँ|मुझे हमेंशा इस बात की घबड़ाहट लगी रहती है कि महामारी को पार करके हममें से जितने भी लोग सुरक्षित बचकर निकल  पाए हैं |  उनके सुरक्षित बचने का कारण कोई विज्ञान न होकर अपितु महामारी की ही कृपा रही है | उसीने हम लोगों को कृपा पूर्वक जीवित छोड़ दिया है | मनुष्यों पर यह कृपा महामारी कब तक बनाए रखेगी कुछ कहा नहीं जा सकता | वह जब चाहेगी तब मनुष्यों को निगलना पुनः शुरू कर देगी !हो सकता है न भी करे किंतु यह भी उसी की दया भावना होगी इसमें मनुष्यकृत वैज्ञानिक उछलकूद का कोई योगदान नहीं होगा |

     महामारी से संक्रमित होते या मरते लोगों को बचाने में विज्ञान की कैसी भूमिका रही इसका तो महामारी से जूझते लोगों को अत्यंत कटु अनुभव है | वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को यदि कुछ भी मदद मिल सकी होती तो कठिनाई कुछ तो कम होती | ऐसे अनुसंधानों से कोई आशा न करते हुए फिलहाल महामारी के रहमोकरम पर जीवन छोड़ देना ही अधिक उचित है |   ईश्वर का ही सहारा है |

    कितनी चिंता की बात है कि जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा हमें महामारी पर विजय प्राप्त करने या महामारी को पराजित करने या महामारी से अपना बचाव करने के सपने दिखाए जाते रहे उनसे अभी तक ऐसा कुछ भी हासिल नहीं किया जा सका है |जिससे अपना बचाव करना भी संभव हो | कोरोना जैसी महामारी को आए कई वर्ष बीत गए अभी तक उसके विषय में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है | वह मनुष्यकृत है या प्राकृतिक! इसका विस्तार कितना है ! प्रसार माध्यम क्या है! अंतर्गम्यता कितनी है !ऐसे बहुत सारे प्रश्न अभी तक अनुत्तरित बने हुए हैं | महामारी के विषय में  न तो कोई अनुमान पता है और न  ही पूर्वानुमान ! इसी दुविधा से महामारीकाल में भी जनता जूझती रही है |

                                                                 भूमिका

     भारत को शत्रु देशों का सामना करना पड़ता रहा है |इसीलिए देश के दुश्मनों से निपटने के लिए भारत में जब से मजबूत तैयारियाँ करके रखी जाने लगी हैं तब से शत्रु देशों के द्वारा भारत को चोट पहुँचाने के लिए जो भी प्रयत्न किए गए उन्हें विफल करते हुए भारत की सीमाओं एवं नागरिकों को सुरक्षित बचा लिया जाता है | जिस प्रकार से मजबूत तैयारियों के बल पर शत्रु देशों से अपने को सुरक्षित बना रख पाना संभव हुआ है | उसीप्रकार से महामारियों से निपटने की मजबूत तैयारी भी यदि पहले से करके रखी जा सकी होती तब तो महामारी से भी समाज को सुरक्षित बचाकर रखा जा सकता था | ऐसा क्यों नहीं किया जा सका ये प्रश्न सभी के मन में है |

      महामारी से निपटने के लिए क्या कोई मजबूत विज्ञान नहीं है या फिर विज्ञान है किंतु सुयोग्य वैज्ञानिक नहीं हैं |कहीं ऐसा तो नहीं है कि विज्ञान और वैज्ञानिक होने पर भी ऐसे मजबूत अनुसंधान न किए जा सके हों जिनसे महामारी को समझना संभव हो पाता |महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए आर्थिक कमी तो आड़े नहीं आई !जनता ने अपने हिस्से का टैक्स सरकार को क्या समय से नहीं दिया या फिर महामारी संबंधी अनुसंधानों को और अधिक मजबूती से करने के लिए वैज्ञानिकों को सरकार ने समय से संसाधन उपलब्ध नहीं करवाए | आखिर चूक कहाँ रह गई जिसके कारण इतने उन्नत शिखर पर पहुँचा विज्ञान भी महामारी से जूझती जनता की कोई मदद नहीं कर पाया | 

    विज्ञान के द्वारा  महामारी से बचाव किया जाना तो संभव हुआ ही नहीं उसके विषय में कोई ऐसा अनुमान भी नहीं लगाया जा सका जिसका बाद में खंडन न करना पड़ा हो | ऐसा कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका जो सही भी निकला हो ! ऐसी कोई जानकारी नहीं जुटाई जा सकी जिससे महामारी के किसी भी अंश को समझना संभव हो पाया हो | वर्तमान समय का इतना उन्नत विज्ञान समाज के आखिर किस काम आया |

    महामारी का सामना जिस समाज को अपने  प्राणों पर खेलकर करना पड़ा हो ,अपनों का बहुमूल्य जीवन खोना पड़ा  हो !वह इतना बेबश समाज अपनी ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व कैसे करे जिनके रहते हुए  भी उसे अपने अतिप्रिय स्वजनों को तड़पते हुए प्राण त्यागते देखना पड़ा हो | वैज्ञानिक उत्कर्ष के नाम पर गंगा जी में तैरते शवों एवं रेती में बिखरी पड़ी हुई लाशों को कैसे भूला जा सकता  है | ऐसे विज्ञान एवं वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व करते हुए  भविष्य के लिए कैसे भरोसा कर लिया जाए कि इतना  उन्नत विज्ञान भविष्य में आने वाली महामारियों के समय ही समाज की मदद करने में कुछ तो सक्षम होगा |

                                                         जनता की बात

      प्राचीनयुग में आधुनिक विज्ञान के अभाव में महामारियाँ अपने समय से आती और अपने समय से ही जाती रही होंगी!उनसे जो नुक्सान होना होता होगा वो तो होता ही रहा होगा |अपने एवं अपनों के प्राणों पर खेलकर जनता उसे सहती भी रही  होगी | उस समय में भी बहुत लोग संक्रमित होते एवं बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को  प्राप्त होते रहे होंगे | उस समय तो यह सब सहना जनता की मजबूरी रही होगी क्योंकि उसयुग में आधुनिक विज्ञान का जन्म भी नहीं हुआ था | वर्तमानसमय में तो मनुष्य इतना वेबश नहीं है ,फिर भी  इतना उन्नत विज्ञान होने से ऐसा क्या लाभ हुआ जिसके लिए यह कहा जा सके कि महामारी के विषय में यह आधुनिक विज्ञान एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों की उपलब्धि है | जो इनके बिना संभव नहीं थी | 

      उस युग में चूँकि आधुनिक विज्ञान नहीं था | इसलिए टैक्स रूप में जनता से प्राप्त की गई धनराशि भी वैज्ञानिकों एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर नहीं खर्च करनी पड़ती होगी | इसीलिए  जनता को उनसे मदद की कोई अपेक्षा भी नहीं  रहती होगी |संभवतः  उस युग में पाई पाई और पल पल का हिसाब देने वाले पवित्र संकल्पों से बँधी लोकतांत्रिक सरकारें भी नहीं होती रही होंगी! जिनसे जनता के प्रति जवाबदेही संबंधी  जिम्मेदारी निभाने की अपेक्षा की जा सके | |

    वर्तमान समय में परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल चुकी हैं|अब तो विज्ञान इतना उन्नत है |अत्यंत आधुनिक आवश्यक उपकरण भी हैं |जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन भी सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर खर्च करती रही हैं | जनता का धन जहाँ लगता है वहाँ उसका मन भी लगा रहता है | उससे अपेक्षा भी बनी रहती है | जब जिस प्रकार की आपदा से जनता पीड़ित होती है उस प्रकार के अनुसंधानों की ओर जनता बड़ी आशा से देखने लगती है कि ये हमारी मदद करेंगे ,सहारा तो रहता ही है| 

   विशेष बात यह है कि मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं के संकट से जनता जब जूझ रही होती है | उस समय वैज्ञानिकों से मदद की सबसे अधिक आवश्यकता रहती है |ऐसे घनघोर संकट के समय में उन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा जनता को यदि मदद न पहुँचाई जा सके और ये कह दिया जाए कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है तो यह  जनता के साथ धोखा है,क्योंकि जनता ऐसे कठिन समय में उसका कारण नहीं जानना चाहती है अपितु पूर्वानुमान संबंधी मदद की अपेक्षा रखती है | 

    महामारी के समय में भी तो ऐसी ही निरर्थक उछलकूद होती रही बाद में कह दिया गया कि स्वरूप परिवर्तन हो रहा है |क्या हो रहा क्या नहीं वैज्ञानिक होने के नाते यह देखना तो वैज्ञानिकों का काम है | जनता को तो मदद से मतलब ! यह सीधी सी बात समझनी पड़ेगी | आवश्यकता के आधार पर आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी | पाई पाई और पल पल का हिसाब देने के पवित्र संकल्पों से बँधी लोकतांत्रिक सरकारों को अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी | ऐसे विषयों में जनता की आवश्यकता और आपूर्ति के इतने बड़े अंतराल को जितनी जल्दी कम कर सकती हैं | यह सरकार का पवित्र कर्तव्य पालन तो है ही इसके साथ ही साथ पुनीत दायित्व भी है | 

                                                            प्रथमअध्याय 

                           अधूरा विज्ञान बेचारा इतनी बड़ी समस्याओं का सामना कैसे करे !

    प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली विशेष घटनाओं को समझने के लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तो ऐसे विषयों में अनुसंधानों की कल्पना कैसे की जा सकती है|अनुसंधानों के नाम पर जो जो कुछ किया जाता उन क्रियाओं का उन घटनाओं से कोई तर्कसंगत संबंध भी तो सिद्ध होना चाहिए|किसी भी घटना के विषय में अनुसंधान करने के लिए उन घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत वास्तविक  कारण भी तो पता होने चाहिए तब तो उनकी सार्थकता सिद्ध हो | इसके बिना सरकार या समाज ऐसे अनुसंधानों से किसी भी प्रकार की मदद पाने की आशा कैसे करे |

मौसमविज्ञान : मौसमवैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए अभी तक विज्ञान के नाम पर उपग्रह रडार आदि के अतिरिक्त विज्ञान के नाम पर और दूसरा क्या है | उपग्रहों रडारों आदि से बादल या आँधी तूफ़ान दूर से ही दिखाई पड़ जाते हैं |ऐसे में यदि जानना है कि 'वर्षा कब होगी' तो इसका उत्तर है कि जब बादल दिखाई देंगे तभी वर्षा  होगी | बादल कब दिखाई देंगे ये पता नहीं |बस इतना ही तो मौसमविज्ञान है किंतु इसमें विज्ञान जैसा तो कुछ भी नहीं है | ये तो एक जुगाड़ है और जुगाड़ हमेशा सच नहीं होते हैं | यही तो ऐसे अनुसंधानों का अधूरापन है |वस्तुतः पता यह लगाया जाना चाहिए कि बादल कब अर्थात किस किस दिन आएँगे! कितने दिन रहेंगे ! कितना बरसेंगे आदि आदि !मौसम संबंधी  अनुसंधान यह पता लगाने के लिए होने चाहिए !

 भूकंपविज्ञान : भूकंप वैज्ञानिक कब आएगा जब भूमिगत प्लेटें आपस में टकराएँगी |प्लेटें आपस में कब टकराएँगी ?ये पता नहीं ! इतना ही तो भूकंप विज्ञान है |

महामारीविज्ञान :महामारी की चिकित्सा कब खोजी जाएगी जब महामारी आएगी !महामारी आने के विषय में पता कैसे लगेगा ?बड़ी संख्या में लोग जब संक्रमित होने और मरने लगेंगे ! ऐसा कब होगा ?ये पता नहीं !इस प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है और ऐसे विज्ञान या उससे संबंधित अनुसंधानों से लाभ क्या है ?

जलवायुपरिवर्तन का विज्ञान : जलवायुपरिवर्तन किस प्रकार से होता है! कब से होता चला आ रहा है! इसके लक्षण क्या हैं ! इसके कारण क्या हैं !इसका प्रभाव क्या है ?इसे प्रत्यक्ष रूप से समझना एवं इसके विषय में या इसके प्रभाव के विषय में पता लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | जलवायुपरिवर्तन जैसी काल्पनिक किस्से कहानियों का वैज्ञानिकता के साथ कोई संबंध है भी या नहीं इसे विज्ञान संबंधी तार्किक प्रक्रिया से गुजरना अभी तक बाक़ी है फिर भी इसके प्रभाव से भविष्य में बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं के घटित होने की डरावनी भविष्यवाणियाँ की जाने  लगी हैं |इसे रोकने के लिए उपायों पर बिचार करने हेतु वैश्विक स्तर  पर बड़े बड़े सभा सम्मेलन आदि आयोजित किए जा रहे हैं |कहीं कहीं तो सामूहिक प्रयत्न प्रारंभ भी किए जा चुके हैं |  

जलवायुपरिवर्तन है या इसका भ्रम : ये प्रायः प्रमाणित ही है कि मौसम,भूकंप और महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण अभी तक खोजा नहीं जा सका है | इसका करना इसके लिए ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा यह सब कुछ पता लगाया जाना संभव हो !अब ये बेचारे मौसमविज्ञान,भूकंपविज्ञान और महामारीविज्ञान के नाम से प्रसिद्ध  तो हो गए हैं किंतु इनके बश का कुछ नहीं है |नसे ऐसा कुछ भी नहीं निकलता है जिससे ऐसी आपदाओं से पीड़ित समाज को कुछ मदद पहुँचाई जा सके |इनसे संबंधित  विज्ञान के बिना भी काल्पनिक रूप से न केवल अनुसंधान किए जा रहे हैं अपितु इनसे संबंधित भविष्यवाणियाँ भी की जा रही हैं उनके गलत निकलने का कारण संबंधित विज्ञान न होना है जबकि जलवायुपरिवर्तन बताया जा रहा है और जलवायुपरिवर्तन के विषय में कुछ भी नहीं बताया जा सका है |

विज्ञान के बिना पूर्वानुमान कैसे ?

     भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है ?वह मूल कारण पता लगाए बिना इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाए जा सकते हैं ! इसका तर्कसंगत उत्तर खोजने के लिए न कोई विज्ञान है और न ही कोई वैज्ञानिक तर्कसंगत उत्तर दे पा रहे हैं| ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ जब जब घटित होती हैं तब तब विज्ञान के नाम पर वही पुराने किस्से कहानियाँ सुनाने शुरू कर दिए जाते हैं | जिनका  न तो  कोई वैज्ञानिक आधार होता है और न ही ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के समय  जनता को उनसे कोई मदद ही मिल पाती है | वे तो कोरी कल्पनाएँ मात्र होती हैं |  

    इसीलिए वर्षा कब कैसी होगी, मानसून कब आएगा या जाएगा !तापमान कब कैसा रहेगा ! इस विषय में लगाए गए अधिकाँश अंदाजे गलत निकलते रहे हैं | आखिर ऐसे विषयों में आज तक किए गए अनुसंधानों के द्वारा कुछ भी पता लगाया जाना संभव क्यों नहीं हो सका है | अलनीनों लानिना जैसी निराधार कल्पनाओं के आधार पर की गई मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाने का कारण जलवायुपरिवर्तन को बताया जाता है,किंतु जलवायुपरिवर्तन क्या है,कैसे पता लगता है,इसके लक्षण क्या हैं  इसका स्वभाव कैसा है |इस परिवर्तन का क्रम क्या है ये कबसे हो रहा है आदि बातें कोई भी बताने को तैयार नहीं है |

     महामारी को समझने के लिए, उसकी प्रकृति पहचानने के लिए, उसका विस्तार जानने के लिए ,उसका प्रसारमाध्यम एवं अंतर्गम्यता समझने के लिए ,महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए ऐसा कौन सा विज्ञान है जिसके आधार पर ऐसे अनुसंधान किए जा सकते हैं  ! महामारी पर तापमान एवं वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं !कोविडनियमों के पालन का प्रभाव कितना पड़ता है |इसकी खोज जिस विज्ञान के द्वारा की जा सकती हो वह विज्ञान कहाँ है | 

     कुल मिलाकर प्राकृतिक विषयों में आज तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी कौन सी मदद मिल सकी है जिससे प्राकृतिक आपदाओं से कुछ राहत मिलना संभव हो |जो प्राकृतिक आपदाएँ या महामारियाँ जन धन का कितना भी बड़ा नुक्सान कर सकती हैं |उनके विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों से आज तक यह भी पता नहीं लगाया जा सका है कि भूकंप कब और कितने आएँगे,कितने हिंसक होंगे,चक्रवात कब कब कितनी  कितनी  जल्दी आएँगे और कितने हिंसक होंगे !बाढ़ किस किस वर्ष अधिक आएगी !महामारियाँ कब कब आएँगी और कब कितनी हिंसक होंगी ! एक बार आकर वे कितने वर्षों तक रहेंगी ! इनका आपसी अंतराल क्या होगा ?आदि जनहित की दृष्टि से आवश्यक  विषयों में अभी तक के अनुसंधानों के द्वारा कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है |

   कुल मिलाकर प्राकृतिकआपदाओं के विषय में   वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को यदि कोई मदद मिलनी ही नहीं है तथा ऐसी आपदाओं से जूझने एवं जनधन हानि सहने की जिम्मेदारी जनता की ही है तो जनहित में ऐसे अनुसंधानों का औचित्य ही क्या बचता है |

     यह सर्व विदित है कि महामारियाँ अचानक हमला करती हैं जिससे बड़ी संख्या में लोग तुरंत संक्रमित होने और मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | उस समय महामारी को समझने एवं उससे बचाव का रास्ता खोजने का समय कहाँ होता है |ऐसे संकट के समय में तो पहले से करके रखी गई तैयारियाँ ही काम आ पाती हैं |ऐसे समय में निरर्थक वैज्ञानिकी उछलकूद समाज के किस काम की !जब उससे जनता को कोई मदद पहुँचाई जानी संभव ही नहीं है |यदि देखा जाए तो कोरोना के समय पहले से ऐसी कौन सी तैयारियाँ करके रखी गई थीं जिनसे महामारी से जूझती जनता को कुछ ऐसी मदद पहुँचाई जा सकी हो | महामारीकाल में वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी कौन सी मदद मिल पाई है जो अनुसंधानों के बिना संभव न थी | यदि उस प्रकार की मदद न मिली होती तो इससे अधिक और क्या नुक्सान हो सकता था |

                                                              2013 से 2023 तक की घटित हुई मौसम संबंधी घटनाएँ और पूर्वानुमान !

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 नाम का प्रभाव : प्रत्येक परिवार,व्यापार,कंपनी,संस्था, संगठन या सरकार कुछ लोगों को एक साथ काम करना पड़ता है|उन सबके आपसी संबंध जितने अच्छे होते हैं कार्य उतना अच्छा एवं प्रेम पूर्वक होता है| उनके नाम का जो पहला अक्षर होता है उसके आधार पर यह निश्चित होता है उनमें से कौन किस नाम वाले के प्रति कैसी भावना रखता है |इसके साथ ही किस नाम वाले व्यक्ति के साथ काम करने या संबंध निर्वाह करने के लिए किस नाम वाले व्यक्ति को क्या क्या सहना पड़ेगा ! कुछ नौकरों के नाम का पहला अक्षर मालिक से श्रेष्ठ होता है | ऐसे नौकर मज़बूरी में नौकरी तो कर रहे होते हैं किंतु मालिक को नुकसान पहुँचाने ,अपना जूठा खिलाने या जलील करने का प्रयत्न हमेंशा किया करते हैं |इसे जानना ज्योतिषविज्ञान से ही संभव है |  

    'केक' काटकर जन्मदिन मनाने से जीवन बोझ बनता जा रहा है!

     सालगिरा: 'जन्मदिन' को 'सालगिरा' या 'वर्षगाँठ' भी कहा जाता है |साल का अर्थ वर्ष और गिरा का अर्थ ग्रह होता है |सालगिरा का शुद्ध शब्द 'सालग्रह' है | प्रत्येक वर्ष में जन्मदिन पर सालग्रह अर्थात वर्ष भर के ग्रहों का प्रभाव ध्यान में रखते हुए ग्रहों के पूजन करने की परंपरा रही है | ग्रहों का पूजन करने के लिए घी का दीपक जलाया जाता था | उस दीपक और ग्रहों को साक्ष्य मानकर मंगल गीत गाए जाते थे | इसलिए इसे सालग्रह कहा जाता है | 

     वर्षगाँठ : जन्म के समय में आयु का प्रतीक मानकर एक धागा पूजा जाता है | उसी धागे में हर वर्ष मंगलमय वातावरण में एक गाँठ लगाई जाती है |इसीलिए इसे वर्षगाँठ कहते हैं | इस गाँठ के माध्यम से आयु के बीते हुए वर्षों में भविष्य का एक और वर्ष जोड़ा जा रहा होता है | सालगिरा बीते जीवन को भविष्य से जोड़ने का पर्व होता है | 

दीपक जलाना या मोमबत्ती बुझाना :जन्म दिन पर जो वेदपाठ स्वस्तिवाचन मंगल गीत गायन ग्रहों का पूजन आदि होता है उसी के सामने आयु के प्रतीक उस धागे में गाँठ लगाई जाती है |इस कार्य का गवाह वहाँ स्थापित किया दीपक होता है | जो इस मंगलकृत्य की सूचना  सूर्य को देता है सूर्य इसे देवताओं तक पहुँचाता है | ऐसे समय दीपक का जलाया जाना बहुत आवश्यक होता है उस समय मोमबत्ती का बुझाना एक बड़ा अपशकुन होता है | 

     केक काटना :इतने सुंदर अवसर पर इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई छींके न ,कोई तिनका न तोड़े कोई नाखून  न  काटे आदि तोड़ना काटना आदि बिल्कुल रोका गया है | उसी अवसर पर 'केककाटना' बहुत बड़ा आप शकुन होता है | जो आयु के एक एक वर्ष को अलग अलग करता जाता है | यह खंडित जीवन जीने की परंपरा है | यह जन्म समय के मुहूर्त को बिगाड़ने का एक षड्यंत्र है |

नारियल फोड़कर  या फीता काटकर कार्य शुरू करने से होता है बहुत अशुभ !

     कोई भी कार्य शुरू करते समय सबसे पहले शुभ मुहूर्त देखा जाना चाहिए | उसके बाद शुभ प्रक्रिया के द्वारा उसे शुरू करना चाहिए | जिससे वह कार्य सुख शांति पूर्वक सफल होता है |इसीलिए पुराने समय में कोई कार्य प्रारंभ करने के लिए सात्विक रहन सहन पूर्वक शुभ प्रक्रिया अपनाई जाती थी |दीपक जलाकर देवी देवताओं की  पूजा की जाती थी | स्वस्तिवाचन पूर्वक वेद मंत्रों का पाठ किया जाता था | माताएँ मंगल गीत जाती थीं | ऐसे वातावरण में कार्य को प्रारंभ किया जाता था उस समय कोई छींके न कोई किसी से झगड़ा न करे गाली गलौच न करे कोई चीज गिरे न या गिर कर टूटे न | कोई व्यक्ति गिरे न किसी को चोट न लगे आदि शुभ प्रक्रिया अपनाई जाती थी | पूजा में खंडित फूलों फलों का उपयोग नहीं किया जाता था | ऐसी परिस्थिति में जहाँ एक कार्य को जोड़ना प्रारंभ किया जाता है उस समय किसी चीज को तोड़ना फोड़ना काटना आदि उस महूर्त को प्रदूषित करने वाली प्रक्रिया का अनुपालन कैसे उचित माना जा सकता है |

बाबरी मस्जिद टूटनी ही थी ज्योतिष की दृष्टि से - 

     समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो जब जैसा समय चल रहा होता है तब तैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |कोई कार्य जब बिगड़ने का समय आता है तब सभी परिस्थितियाँ बिगड़ने की बनती जाती हैं और जब बनने का समय आता है तब सभी परिस्थितियाँ बनने की चली जाती हैं | विशेष बात यह है कि किसी कार्य के  जब बिगड़ने का समय आता है उससमय कार्य केवल बिगड़ता ही है बनना संभव  नहीं होता !क्योंकि समय बिगड़ने का होता है | यदि आप शारीरिक बल से ,धन बल से या सोर्स सिफारिश के बल से उस बिगड़ने के समय में ही तुरंत कार्य बनाने में लग जाते हैं तो कार्य तमाम रुकावटों के बाद भी वैसा नहीं बन पाता है जैसा आप चाहते हैं और जैसा तैसा बन भी पता है उसे भी एक दिन बिगड़ना ही होता है |चूँकि अयोध्या में श्री राम मंदिर तोड़कर उसी समय मस्जिद बना दी गई थी इसलिए उसे तो टूटना ही था अभी टूटती या सौ वर्षों के बाद भी टूट सकती थी किंतु उसका उसी स्वरूप में रहना संभव नहीं था |ऐसे जितने भी मंदिरों को तोड़कर उसी समय कुछ अन्य प्रकार के निर्माण करवाए दिए गए हैं उन्हें उस स्वरूप में लंबे समय तक रहना संभव नहीं है |इसलिए  उन्हें देर सबेर अपने पुराने स्वरूप में आना ही होगा |उन स्थानों पर मंदिर बनेंगे ही  ये समय का सिद्धांत है | इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जाना ठीक नहीं है |

पाकिस्तान क्या भारत में मिलेगा दोबारा ! 

     कोई भी बँटवारा किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों समूहों देशों आदि के बीच होता है | कोई अकेला व्यक्ति समूह देश आदि अपने से किसी को अलग तो कर सकता है किंतु उस अलगाव को बँटवारा माना जाना संभव नहीं है | भारत वर्ष में विद्रोह हुआ उसमें भारत का एक अंग भारत से अलग हो गया !कोई भी अंग शरीर से अलग हो जाने पर तब तक निर्जीव रहता है जब तक वह लाकर दोबारा जोड़ा नहीं जाता है | इसीलिए निर्जीव पाकिस्तान अभी तक किसी भी मोर्चे पर व्यवस्थित नहीं हो सका है |कटा हुआ अंग जैसे लंबे समय तक फड़कता रहता है पाकिस्तान भी अभी तक फड़क  रहा है | इसमें  भारत से मिलकर ही सजीवता लौटेगी | जिस प्रकार से किसी पेड़ की कोई कलम कहीं दूसरी जगह लगानी होती है तो उसे लगाने का एक समय होता है एक प्रक्रिया होती है तभी वहाँ उस प्रकार का दूसरा पेड़ बनना शुरू हो पाता है |ऐसे ही भारत ने प्रेमपूर्वक यदि अपना कोई अंग अपने से अलग करके  पाकिस्तान के रूप में रोपा होता तब तो इसका आस्तित्व सुरक्षित रह जाता किंतु इतने संघर्ष की आँधी में भारत रूपी वृक्ष की पाकिस्तान रूपी एक शाखा टूटी है | आँधी में टूटी हुई शाखाएँ दूसरी जगह रोपकर वृक्ष नहीं बनाई जा सकती हैं |जिस जगह से शाखा टूटी होती है वहीं से कुछ किल्ले निकलकर उनकी शाखाएँ बनती हैं और बड़ी होकर उस जगह को भर लेती हैं | ऐसे ही भारत रूपी वृक्ष की नवीन शाखाएँ अब पुनः पाककिस्तान को भी छाया देने के लिए अपने में मिला लेना चाहती हैं | जिसे लंबे समय के लिए टाला जाना संभव नहीं है |  जिस प्रकार से बाबरी मस्जिद चूँकि पहले नहीं थी इसलिए बाद में भी नहीं रही पहले वहाँ श्री राममंदिर था इसलिए वहाँ श्री राममंदिर ही बन रहा है !इसीप्रकार से पाकिस्तान पहले नहीं था इसलिए बाद में भी पाकिस्तान नहीं रहेगा |पाकिस्तान के स्थान पर भी भारत ही पहले भी था इसलिए आगे भी वहाँ भारत ही रहेगा |

   स्वयंवरविज्ञान का मतलब पूर्व जन्म के संबंध का परीक्षण !

     शारीरिक और आत्मिक संबंधों के भेद से संबंध दो प्रकार के होते हैं |शारीरिक प्रेम पवित्र नहीं होता जबकि आत्मिक प्रेम पवित्र होता है | पवित्र प्रेम की तुलना परमात्मा से की गई है | शारीरिक संबंध जीवन की बनती बिगड़ती परिस्थितियों या आवश्यकताओं आदि के अनुशार बनते बिगड़ते रहते हैं|जरूरतें समाप्त होते ही संबंध समाप्त हो जाते हैं |जीवन समाप्त होते ही जरूरतें समाप्त  हो जाती हैं |शरीर समाप्त होते ही जीवन समाप्त हो जाता है | इसलिए ऐसे संबंध जन्म से लेकर मृत्यु तक  ही चलते हैं |दूसरे जो आत्मीय संबंध होते हैं वे आत्मा के स्तर पर बनते हैं जो कभी बिगड़ते नहीं हैं और  अनेक जन्मों तक चला करते हैं | इनमें मधुरता बढ़ती ही चली जाती है |ऐसे संबंध प्रत्येक जन्म में बनाने नहीं पड़ते अपितु बने बनाए होते हैं | इनके आमने सामने पड़ने भर की देर होती है दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति अपनापन लगने लगता है |इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि ऐसे संबंधों में किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं होता है | ये एक दूसरे की सुंदरता संपत्ति योग्यता कला पद प्रतिष्ठा आदि से प्रभावित नहीं होते और न ही बासनात्मक भावना से भावित  होते हैं !बस अपनापन होता है | इनके मन में एक दूसरे की संपत्ति साधन शरीर आदि भोगने की इच्छा बिल्कुल नहीं रहती है |ये अपनी आवश्यकताएँ छिपाकर एक दूसरे से संबंध चलाते रहते हैं | ऐसे संबंधों की  मुख्य विशेषता यह होती है कि इन दो में से किसी एक की पीड़ा परेशानी आवश्यकता आदि का  अनुभव बिना बताए ही दूसरे को हो जाता है और दूसरा उस कार्य में अपनी इच्छा से सहायक बनकर उस कार्य को पूरा करवा देता है जिसका उसे एहसास भी नहीं होने देता है |ऐसे लोग एक दूसरे को एक ही बार देखकर पहचान लेते हैं | सीता जी और श्री राम जी ने एक दूसरे को पुष्पबाटिका में देखा  तो धनुष  पहले ही एक दूसरे को अपना जीवन सौंप दिया |जिसे जीवन सौंपा उसी ने धनुष तोड़ा | जिसने धनुष तोड़ा उसी में दोनों  सहमति बन गई !सभी ने समर्थन कर दिया | अन्यथा यह स्वयंबर तो राजाओं के लिए हुआ था राजकुमारों के लिए नहीं यह प्रश्न उठ सकता था,किंतु पूर्व जन्म के  ऐसे विघ्न उपस्थित ही नहीं होते !

 

  

विभिन्न  संबंधित                                                                                    जीवन के लिए उपयोगी बहुत सारे संबंध कुछ संबंध इसका कारण सदाचारिणी कन्या के मन में अपने पूर्व पति की पहचान | सनातन धर्म की मान्यता है कि पति पत्नी का जोड़ा कई जन्मों तक रहता है |अगले जन्म में इन्हें केवल एक दूसरे को पहचानना होता है | दुष्यंत ने शकुंतला को पहचान लिया था !श्रीराम ने सीता जी को पहचान लिया था और सीता जी ने श्री राम जी को पहचान लिया था | वर्तमान समय में भी कुछ चरित्रवान लड़के लड़कियाँ जिनका मन हर किसी लड़की या लड़के के प्रति आकृष्ट नहीं होता है और जिनके प्रति होता है वही उनके पुराने जन्म के पति या पत्नी होते हैं इसलिए इस जन्म में भी उनका आपसी निर्वाह बहुत अच्छा हो जाता है |

 

     
   ज्योतिष वैज्ञानिकों की सेवाओं का मूल्य !
 
   ज्योतिष को पढ़ना बहुत कठिन होता है !सुयोग्य गुरु की चरण शरण में रहकर बारह चौदह वर्षों तक लगातार अत्यंत परिश्रमपूर्वक ज्योतिष पढ़नी होती है |इसके बाद उस पर अनुसंधान  करना होता है|उसी अध्ययन और अनुसंधान  के आधार पर अत्यंत परिश्रम पूर्वक पूर्वानुमान लगाना होता है |एक एक व्यक्ति की एक एक समस्या का अध्ययन करके उसका समाधान खोजने में कई कई दिन लग जाते हैं | उसी के आधार पर भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाना होता है | किसी के जीवन में आने जाने वाली सुख दुःख की विभिन्न परिस्थितियों को समझना आसान नहीं होता !उनका पूर्वानुमान लगाना उससे अधिक कठिन होता है |सुयोग्य ज्योतिषी ईमानदारी पूर्वक यदि ऐसा करके  करके किसी की समस्या के विषय में अनुसंधान  करता है उसका समाधान खोजता है पूर्वानुमान लगाता है तो इससे उसे मिलेगा क्या ?आखिर वो ऐसा क्यों करे!इसके बदले समाज उसे श्रृद्धा से कुछ दे देना चाहता है ,किंतु ज्योतिषी को भी इसी बाजार का सामना करना होता है उसका भी परिवार होता है उसकी भी महत्वाकाँक्षाएँ होती हैं |किए ऐसे व्यक्ति के लिए वह ही अपनी कुर्वानी क्यों करे !वह भी श्रृद्धा पूर्वक कुछ बता देता है जिसे सही निकलना तो संभव नहीं होता वह गलत ही होना होता है | इसके लिए ज्योतिष को गलत कहना कितना उचित है | अब प्रश्न उठता है कि ज्योतिषी का पारिश्रमिक कितना होना चाहिए | इसके तीन प्रकार हैं पहला ज्योतिषी की योग्यता के अनुशार दिया जाए !दूसरा अपनी क्षमता का अनुशार दिया जाए !तीसरा कार्य की महत्ता के अनुशार दिया जाए ! चौथा ज्योतिषी के द्वारा निर्धारित किया गया शुल्क चुकाया जाए |ज्योतिषी की योग्यता के अनुशार दिया जाएगा तो वो प्रसन्नता पूर्वक सही भविष्यवाणी निकालने का प्रयत्न करेगा !ऐसे क्लाइंट को वह भी जाने नहीं देना चाहेगा | अपनी क्षमता का अनुशार देने का मतलब उसकी योग्यता से अधिक दिया जाए |इसके बाद वो हर संभव अच्छा से अच्छा करने का प्रयत्न करेगा | कार्य की महत्ता के अनुशार का मतलब है जो कार्य आपके लिए जितना अधिक आवश्यक हो उतना अधिक धन दिया जाए | जैसे गंभीर रोगी की चिकित्सा कराते समय किया जाता है | जिस कार्य में करोड़ों अरबों के लाभ हानि  संभावना हो उस कार्य के लिए ज्योतिष का पारिश्रमिक देने में दरिद्रता दिखाई जाए ये ठीक नहीं है |किस कार्य को करने में ज्योतिषी को कितना कठिन परिश्रम करना पड़ेगा | इसका अंदाजा न होने के कारण ज्योतिषी के द्वारा निर्धारित किया गया शुल्क ही उसे चुकाया जाए !कुछ लोग सुयोग्य ज्योतिष विद्वानों से अपेक्षा रखते हैं कि वे तो विद्वान हैं ही इसलिए हमें जो कुछ बताएँगे सही ही बताएँगे !ये सच नहीं है | यदि आपकी संपूर्ण संपत्ति का सुख भोगने का अधिकार आपने ज्योतिषी को नहीं दिया है तो ज्योतिषी अपनी विद्यारूपी संपत्ति का सुख भोग किसी  को कैसे कर लेने देगा | समुद्र में कितना भी जल हो घर में भर कर उतना ही लाया जा सकता है जितना बड़ा बर्तन होता है |बिजली कितनी भी हो किंतु प्रकाश उतना ही मिलता है जितने बॉड का बल्ब लगाया जाता है | ऐसे ही ज्योतिषी कितना भी योग्य क्यों न हो उससे लाभ उतना ही उठाया जा सकता है जितना उसे पारिश्रमिक दिया जाता है | कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि हमने तो श्रद्धा से दे दिया है अब ज्योतिषी यदि सही सही नहीं बताएगा तो उसे पाप लगेगा !किंतु यह भ्रम है पाप पुण्य का निर्णय करने वाली शक्तियों से ये छिपा नहीं होता है कि कितने बड़े विद्वान् से कितने बड़े काम के लिए क्या कुछ दिया जा रहा है | उसी के आधार पर वे शक्तियाँ उन दोनों में से किसे पापी मानने का निर्णय लेती हैं यह उनके विवेक पर निर्भर करता है | 
 
भविष्यवाणी सामने
 इसलिए उस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए जितना पारिश्रमिक किया जाना आवश्यक हो वो न कर पाना ज्योतिषी की मजबूरी हो |ऐसी दोनों ही परिस्थितियों के लिए पूछने वाला व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है |
 
 
 उपायों का कितना असर होता है !
    परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए जो उपाय किए जाते हैं उनका प्रभाव कितना होता है |इस प्रश्न का शास्त्रीय उत्तर यह है किउपाय यदि सविधि किया जाता है तो बुरे समय का दुष्प्रभाव 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है | 60 प्रतिशत तब भी सहकर चलना होता है |ऐसी आशा केवल तभी की जा सकती है जब उपाय करने वाला वेद विशेषज्ञ हो | इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में जिसप्रकार से बिना पढ़े लिखे झोला छाप लोग भी आपरेशन कर देते हैं ,वेदविज्ञान के क्षेत्र में भी वही स्थिति है| झोलाछाप चिकित्सकों के द्वारा की गई चिकित्सा से जितना रिस्क होता है | वेदविज्ञान के क्षेत्र में भी ऐसा ही समझा जाना चाहिए |अयोग्य लोगों के द्वारा किए गए उपायों से बुरे समय का दुष्प्रभाव कम होने की आशा कैसे की जा सकती है | 

नग नगीनों यंत्र तंत्र ताबीजों के उपायों का कितना होता है प्रभाव ?
   स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान में नग नगीनों के धारण की कुछ भूमिका हो सकती है| भूत प्रेत संबंधी दोषों में यंत्र तंत्र ताबीजों का कुछ प्रभाव पड़ सकता है किंतु ऐसे साधकों की संख्या बहुत कम है जो ऐसे उपाय करने में सक्षम हों | इसीलिए ऐसे उपायों के चक्कर में फँसकर कई बार लोग अधिक परेशान होते देखे जाते हैं | इस क्षेत्र में विश्वसनीय लोगों की संख्या बहुत कम है | कुछ लोगों ने तो लाल काली पीली किताबों का नाम ले लेकर उपायों के नाम पर न जाने क्या बताना शुरू कर दिया है | जिनका शास्त्र में कहीं कोई वर्णन  नहीं है |इसलिए ऐसे बहमों से दूर रहते हुए या तो स्वतः नियम पूर्वक वेद मंत्रों का जप किया जाए या फिर वेद वैज्ञानिक विद्वानों की सेवाएँ ली जाएँ या फिर सहनशीलता पूर्वक अच्छे समय के आने की प्रतीक्षा की जाए !यही उत्तम है | 

ऐसे उपायों का कितना लाभ होता है ?

     बुरे समय से पीड़ित लोग वैसे ही परेशान होते हैं | ऊपर से उपायों के नाम पर उन्हें बहुत परेशान किया जाता है | कुछ दान करना कुछ पहनना कुछ जलधारा में फेंकना कुछ दरवाजे पर लगाना देहली के नीचे गाड़ना, कुछ का तिलक करना, कोई धागा कमर में बाँधना ,कुछ ऊट  पटांग चीजों का हवन करना आदि ऐसे न जाने कितने आडंबर उपायों के नाम पर बताए और करवाए जाते हैं |पहले से परेशान लोग इनसे और अधिक परेशान हो जाते हैं |ऐसे आडंबरों का न शास्त्र से संबंध है और न ही उसके बुरे समय से  तथा इनसे कुछ लाभ भी नहीं होता है | वह व्यक्ति यदि एक को छोड़कर दूसरे के पास जाए तो वह उससे अधिक वहम डाल देता है | ऐसी स्थिति  में  बुरे समय में ब्यर्थ भटकने से अच्छा है किसी मंत्र का जप स्वयं किया जाए | 

घटित होने का कारण क्या होता है

ये अपने आपसे हो रहा  उसके पीछे



 वास्तु का कितना प्रभाव होता है ! 

  जिस मकान दूकान की जमीन अच्छी होगी वहाँ जो कुछ बनेगा वो अच्छा ही होगा |जिस व्यक्ति का भाग्य और समय अच्छा होगा वो जहाँ  कहीं भी रहेगा वहाँ का वास्तु अच्छा ही होगा |ऐसे लोग जहाँ भी रहते हैं वो जगह यदि अच्छी नहीं भी होती है तो भी उस समय उन्हें फलने लगती है | जिसका जो समय अच्छा होगा उसे समय के प्रभाव से उस समय रहने के लिए अच्छा घर मिल ही जाता है |अधिकाँश उद्योगपति शुरू में गरीब थे | इसीलिए जब वे  किसी महानगर में  गए तो प्रायः  किसी मलिन बस्ती में कोई छोटा कमरा लेकर जिंदगी शुरू की ,जहाँ वास्तु नियमों का  पालन संभव ही नहीं था |उसी कमरे से तरक्की होते होते कोठी बनती है,  बहुत बड़ा व्यापार खड़ा हो जाता है |जीवन में भाग्य और समय ही प्रधान है वास्तु का भी थोड़ा सा प्रभाव होता है |   

गृह निर्माण में समय की भी भूमिका होती है |

    कुछ घर महँगी जगह पर महँगे मैटीरियल से वास्तु के नियमों के अनुशार बहुत अच्छे बनाए गए होते हैं | इसलिए देखने सुनने में बहुत अच्छे लगते भी हैं |ऐसे सुंदर घरों  में से कुछ घर ऐसे भी होते हैं जिनमें रहने वाले लोग प्रायः पारिवारिक कलह, बेचैनी, घबड़ाहट ,स्वास्थ्य खराबी,वैवाहिक जीवन में तनाव एवं संतान होने में कठिनाई जैसी समस्याओं से  घिरे रहते हैं !दुकानों, फैक्ट्रियों, कार्यालयों में भी समस्याएँ चला ही करती हैं | ऐसे भवन छोड़ने का मन नहीं होता है इनमें रहना संभव नहीं होता है |ऐसे घरों का निर्माण शुरू करने के लिए अच्छे समय का ध्यान नहीं रखा गया होता है |'शून्यकाल'में निर्माण शुरू होने के कारण सूनापन ऐसे घरों का स्वभाव होता है | जिसे पता लगाने के लिए ज्योतिष ही एक मात्र विज्ञान है |

मकानों की भी प्राण प्रतिष्ठा होती है !

    जिनके पास पैसे हैं साधन हैं वे कहीं भी कितनी भी बड़ी बिल्डिंग बनाकर कड़ी कर सकते हैं किंतु वह मात्र एक बिल्डिंग होती है घर नहीं ! उसे गोदाम बनाया जा सकता है,उसका कोई अन्य उपयोग हो सकता है,किंतु मनुष्य आदि कोई भी जीवित प्राणी उस घर में तब तक तक सुखी नहीं सकता है ,जब तक कि उसकी प्राण प्रतिष्ठा न की जाय ! जीवित घर में ही जीवित व्यक्ति सुखी रह सकता है | जिस प्रकार से मंदिरों में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है उसी विधि से घरों की भी प्राण प्रतिष्ठा करके उन्हें सजीव बनाया जाता है | उसका प्रत्येक अंग जागृत किया जाता है |इसके बाद उस घर के सुख दुःख के लिए जिम्मेदार एक अधिष्ठातृ देवता होता है |उस घर में तब तक सुख पूर्वक रहा जा सकता है जब तक उस अधिष्ठाता का सम्मान होता रहता है | ऐसे घरों में अचानक रोग नहीं होते !आपत्तियों से बचाव होता है कमाई एवं संग्रह में बढ़ोत्तरी होती है | कोई काम रुकता नहीं है सहयोग की आवश्यकता पड़ने पर लोग अपने आपसे सहयोग करने लगते हैं | बनाया हुआ भोजन कम नहीं पड़ता है | 

 रसोई की भी प्राण प्रतिष्ठा होती है !

      जिन घरों में रसोई की प्राण प्रतिष्ठा की गई है और वह रसोई स्वच्छ एवं पवित्र रखी जाती है |यदि उसमें आलस्य छोड़कर पवित्रता एवं प्रसन्नतापूर्वक पुष्टि भावना से भोजन बनाया जाता है तो ऐसे घरों में रहने वाले लोग रोगी कम होते हैं कलह कम करते हैं एक दूसरे की बात सुनने सहने की भावना से सात्विकता प्रधान जीवन जीते हैं | ऐसे घरों में तिथि त्योहारों में,जन्म दिन या  विवाह आदि उत्सवों में हार्दिक प्रसन्नता का वातावरण होता है |जो लोग ऐसे प्रसन्नता के अवसर अपने उसी घर में मनाते हैं | उसी घर में अच्छे से अच्छा भोजन बनाकर गृह देवता का भोग लगाते हैं वही सुखी रह पाते हैं |कुछ लोग ऐसे त्योहारों या मांगलिक अवसरों पर अपने गृहदेवता  का साथ छोड़कर होटलों में भोजन करने जाते हैं |उनसे गृह देवता भी कुपित होते हैं |अच्छा भोजन करने के लिए यदि होटल हैं तो अपना घर बुरा भोजन करने या मलमूत्र ढोने के लिए ही है क्या ? ऐसे ही प्रसन्नता के क्षण यदि दूसरे घरों में ही मनाना है तो अपना घर केवल दुःख और दरिद्रता मनाने के लिए ही है |गृहदेवता के क्रोध से ऐसे घरों में रहने वाले लोग स्वस्थ और प्रसन्न नहीं रह पाते हैं | 

 प्राण प्रतिष्ठा का मतलब होता है सजीवता !

    जिसप्रकार से देवमूर्तियों में प्राणप्रतिष्ठा की जाती है,उसीप्रकार से जिन जिन प्राकृतिक वस्तुओं को  मानव जीवन के लिए उपयोगी माना जाता है|उनका उपयोग करते समय यदि कोई गलती भी हो जाए तो भी ये प्राणियों के जीवन की सुरक्षा करती रहें | असावधानीबश कुओं तालाबों में कोई गिर जाए तो भी वे कृपापूर्वक जीवन सुरक्षित बचाए रखें | निर्जीव अर्थात जड़ों से ऐसे आत्मीय व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती है | इसलिए अपने आस पास की उपयोगी जड़ वस्तुओं की भी  प्राण प्रतिष्ठा कर ली जाती है ताकि मनुष्यों की गलतियों को क्षमा करते हुए वे भी मदद करती रहें | उनसे भी सहयोग मिलता रहे | इसीअपेक्षा से प्राण प्रतिष्ठा जी जाती है | यदि वे जीवित होंगे तभी तो जीवितों की मजबूरियाँ समझेंगे और मदद कर सकेंगे |इसीलिए  नदियों नहरों बाग़ बगीचों खेतों खलिहानों यहाँ तक कि नदियों पर बने पुलों ,पर्वतों आदि की भी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है| घरों ,गोदामों, शीतगृहों आदि की भी प्राण प्रतिष्ठा इसलिए की जाती है ताकि वे भी मनुष्यों के साथ सजीव व्यवहार करें |वर्तमान समय में मशीनों वाहनों विमानों का पूजन भी इसी उद्देश्य से किया जाता है |

 चिकित्सा हो या ज्योतिष मनुष्य के लिए दोनों आवश्यक हैं !

    जिस प्रकार से किसी कम्प्यूटर के लिए उसके हार्डवेयर सॉफ्टवेयर दोनों महत्त्वपूर्ण होते हैं |सॉफ्टवेयर हार्डवेयर के अंदर ही रहता है।सॉफ्टवेयर में निहित चीजें प्रिंट करने का माध्यम प्रिंटर होता है उसकी बात सुनने का माध्यम स्पीकर होता है | मनुष्य शरीर और उसमें निहित आत्मा मन बुद्धि आदि आंतरिक अंग हैं बोलने के लिए माध्यम मुख है | सुनने के लिए माध्यम कान हैं |स्वस्थ रहने के लिए जितना शरीर के अंगों का स्वस्थ रहना आवश्यक है उतना ही आत्मा मन आदि का स्वस्थ रहना आवश्यक है |कान यदि शरीर का अंग है तो उसमें सुनने की शक्ति आत्मा का अंग है | ऐसे ही मुख शरीर का अंग है तो वाणी आत्मा का अंग है |नेत्र शरीर का अंग हैं तो दृष्टि आत्मा का  अंग है | नाक शरीर का  सूँघने की शक्ति आत्मा का अंग है | शरीर की त्वचा  शरीर की अंग है तो उसके स्पर्श का अनुभवआत्मा का अंग है | जिस प्रकार से आत्मा मन आदि के सुरक्षित रहने पर भी शरीर के नष्ट हो जाने पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है उसी प्रकार से शरीर के सुरक्षित रहने पर भी आत्मा के निकल जाने पर भी जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती | जीवन के लिए शरीर और आत्मा दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं | चिकित्सा के द्वारा  शरीर का परीक्षण करके शरीर की समस्याओं का पता लगाया जा सकता है जबकि ज्योतिष से शरीर आत्मा मन एवं जीवन में घटित होने वाली बनती बिगड़ती परिस्थितियों आदि का परीक्षण किया जाता है |आत्मा एवं उसके व्यवहार और व्यापार को समझना यंत्रविज्ञान या प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा संभव नहीं है |

    इसीलिए किसी व्यक्ति के रोगी होने या दुर्घटना ग्रस्त होने पर चिकित्सक उसका भलीप्रकार से परीक्षण करके रोग का पता लगा लेते हैं उसकी चिकित्सा कर देते हैं यहीं तक उनके बश का होता है | इसके बाद उसका स्वस्थ होना न होना रोगी रहना या मृत्यु को प्राप्त हो जाना ये सब कुछ आत्मा के आधीन होने के नाते इसका पता ज्योतिष के द्वारा ही किया जा सकता है | चिकित्सकों के प्रयासों के विरुद्ध परिणाम आने पर चिकित्सक भी इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं |वे भी इसे कुदरत(आत्मा)की इच्छा मानते हैं |     

    केवल जीवन ही नहीं अपितु जीवन की बनती बिगड़ती सभी परिस्थितियों में भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही पक्ष जिम्मेदार होते हैं | शरीर से प्रयत्न (कर्म)किया जा सकता है किंतु परिणाम तो आत्मा ही देती है | प्रयासों को समझना है तो प्रत्यक्ष को देखना होगा परिणामों का पता लगाना है तो अप्रत्यक्ष को देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि का सहारा लेना होगा | व्यापार के सारे संसाधन जुटाकर व्यापार करना कर्म के आधीन है उसमें विघ्न पड़ना या न पड़ना अथवा सफल असफल होना ये आत्मा (भाग्य)के आधीन है | कई लोग स्वस्थ होने के बाद बार बार व्यापार करके भी सफल नहीं हो पाते हैं तो कई विकलांग लोग भी सामान्य प्रयासों से बड़े बड़े व्यवसाय स्थापित कर लेते हैं |  कई लोग बहुत बड़े मकान बनाकर सुखी नहीं रह पाते हैं तो कुछ लोग झोपड़ियों में रहकर भी आनंदित हैं |साधन संपन्न लोग प्रयत्न पूर्वक मकान बना सकते हैं किंतु उसका आनंद मिलना न मिलना आत्मा का विषय है |  जिसे ज्योतिष के द्वारा ही जाना जा सकता है |


 बच्चे गोरे  काले क्यों होते हैं ?


इसके लिए उन्हें किस प्रकार कर उसका ऐसा कोई उपाय करना चाहें

 बार बार प्रयत्न करने के बाद भी अपने असफल होते रहने का कारण यदि ऐसे लोग जानना चाहें तो इन्हें किस प्रकार के वैज्ञानिकों से मदद मिल सकती है !ज्योतिष के अलावा क्या कोई दूसरा भी ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा ऐसे लोगों की असफलता का कारण खोजा  जा सके !

 

स्वयं अनुभव करना पड़ता है कि सफलता किस कार्य में किस समय पर मिलेगी !इसमें धन साधन समय आदि लगाना पड़ता है | किसी को अपना भाग्य और सफलता का समय यदि पहले से पता हो तो  उसे ऐसा नहीं करना पड़ेगा !इसके लिए  ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा  विज्ञान नहीं है |

     गाँवों  के कच्चे घरों की दीवारों या जमीनों में कई कम गहरे छेद हो जाते  हैं | उन्हीं के बीच कुछ छेद चूहों आदि के द्वारा ऐसे गहरे बना दिए जाते हैं |जो दीवारों के उस पार तक जा रहे होते हैं |घर में घुसा सर्प भी ऐसे छिद्रों से बाहर निकल जाता है |सर्प को भी पहले उन छोटे छेदों  में भी मुख डाल  डाल  कर उस गहरे छेद  को खोजना होता है जिससे वह बाहर निकल सके ! ऐसे ही

 विज्ञान से महामारी पीड़ितों को मदद  मिलनी  कैसे संभव है  ? 

     महामारी की चिकित्सा कब खोजी जाएगी ? जब महामारी आ जाएगी !महामारी आने के विषय में पता कब  लगेगा ?जब लोग मरने लगेंगे !अचानक आई महामारी के विषय में वैज्ञानिकों को न रोग पता होगा और न  रोग का स्वभाव कारण आदि !ऐसे में  रोग को ठीक ठीक समझे बिना चिकित्सा कैसे संभव है!इतनी बड़ी  मात्रा में औषधि निर्माणसामग्री जुटाकर इतने कम समय में औषधि बनेगी कैसे और जन जन तक पहुँचेगी कैसे ! महामारी के शुरू होते ही लोग संक्रमित होने और मरने लगते हैं | उतने कम समय में अचानक ये सब करने का समय ही कहाँ मिल पाता  है| इसलिए पहले से सही पूर्वानुमान  पता लगाए बिना महामारी पीड़ितों को विज्ञान से कोई मदद मिलनी कैसे संभव है|ज्योतिष का सहयोग लिए बिना महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है !

नहीं होगा तब तक महामारी में  विज्ञान की भूमिका ही क्या है|  ज्योतिष का सहयोग लिए बिना महामारी में विज्ञान की भूमिका ही क्या है इसका कोई तर्कसंगत उत्तर नहीं हो सकता ?

तो ऐसा कब होगा ?ये पता नहीं !इस प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है और ऐसे विज्ञान या उससे संबंधित अनुसंधानों से लाभ क्या है ?

 

ये घर इतने अच्छे एवं वास्तु नियमों के अनुशार बने होने पर भी रहने 

 घरों के निर्माण में केवल कुछ घर बहुत अच्छे   घबाहुत प्रत्येक घर का निर्माण जिस

 


साधू संतों पर विश्वास कैसे और कितना किया जाए !

  साधू संतों के प्रति समाज की आस्था अनंत काल से चली आ रही है |उनका सदाचरण समाज के लिए सदैव प्रेरणाप्रद  रहा है |  वर्तमान समय में कुछ साधू संतों पर भी अपराधों में सम्मिलित होने के या महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने के उदाहरण मिलने लगे  हैं |इससे समाज में  यह दुविधा पैदा होती है कि वे साधू संतों पर विश्वास कैसे करें ,किंतु साधु सेवा सनातन धर्म का प्रमुख अंग है | इसके लिए यह समझना आवश्यक है  कि कुछ साधू अभाव से बनते हैं और कुछ स्वभाव से | जो अभाव से बनते हैं, सुख के साधन मिलते ही उनका संयम टूट जाता है किंतु जो स्वभाव से साधू बनते हैं सुख भोग के साधन उनका मन बिचलित नहीं कर पाते | कौन साधू स्वभाव से बना है और कौन अभाव से  यह पता लगाने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त दूसरा विज्ञान कहाँ है | 

 श्रीकृष्ण जी भविष्यवाणी करते थे और संजय बीती हुई बातें बताते थे | विजय किसकी हुई ?

बाण  नहीं छोड़ सकता हूँ |

का एवं दुर्योधन आदि बंधुबांधवों का बध नहीं करना चाहते थे पर हम बाण नहीं चलाएँगे !जबकि कृष्ण जी युद्ध करने के लिए अर्जुन को बार बार प्रेरित कर रहे थे |अर्जुन बार बार मना करते जा रहे थे ! इसी हाँ  और न की प्रक्रिया में गीता जैसा एक महानग्रंथ तैयार हो गया !ये सबतो ठीक है किंतु मुख्यप्रश्न अभी तक अनुत्तरित है कि यदि अर्जुन अपने पितामह ,गुरुजनों एवं बंधुबांधवों का बध नहीं करना चाहते थे तो आखिर भगवान् श्रीकृष्ण जी ने उन्हें अपनों का  बध करने के लिए प्रेरित क्यों किया ? 

   भीष्म पितामह कृपाचार्य द्रोणाचार्य कर्ण दुर्योधन आदि से युधिष्ठिर पांडव लड़ना नहीं चाहते थे तभी तो पांडव कह रहे थे कि हमें पाँच गाँव दे दो,हम युद्ध नहीं करेंगे | अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण जी से बार बार यही तो कहा था कि

  फिर श्री कृष्ण ने अपने समय से मृत्यु को प्राप्त हुए या अर्जुन ने उन्हें मार दिया था |  

 

संबंध दो प्रकार के होते हैं !

कई बार संबंधों में ऐसी दुविधा होती है कि उनका निर्वाह करना मुश्किल हो जाता है |ऐसे समय ईमानदारी से संबंध निर्वाह की इच्छा रखने वाले की मानसिक स्थिति बहुत गड़बड़ा जाती है | संबंधों की मर्यादाओं का पालन किया जाना तभी संभव है जब दोनों और से इसका ध्यान रखा जाए | यदि ऐसा नहीं किया गया तो अत्यंत आत्मीय संबंधों में भी बहुत कटुता आ जाती है |भाई और भाई के संबंध का यदि आप सम्मान जनक ईमानदारी पूर्वक निर्वाह करने के लिए प्रयत्न शील हैं तो आपका प्रयास तभी सफल होगा जब भाई भी उसी ईमानदारी से आपसे संबंध चलाने के लिए प्रयत्नशील हो | कई बार एक भाई तो अपने भाई के प्रति समर्पण के कारण अपने पत्नी बच्चों की परवाह न करते हुए भाई के संबंध पर अपना  सर्वस्व न्योछावर कर रहा होता है जबकि दूसरा भाई उसके समर्पण को महत्त्व इसलिए नहीं देता है क्योंकि उसकी पत्नी उसके भाई से घृणा कर रही होती है | वो नहीं चाहती कि उसका पति अपने भाई के साथ मधुर व्यवहार करे | भाई भाई का संबंध आपस में ही चल सकता है उनकी पत्नियों का हस्तक्षेप होते ही भाई  भाई के  संबंध समाप्त होकर दो पतियों  के संबंध हो जाते हैं |भाई तो छोटे बड़े होकर संबंध चला लेते हैं किंतु पतियों के बीच बराबरी का संबंध चल नहीं पाता है | यदि पिता पुत्र  सास बहू नंद भौजाई चाचा भतीजा आदि संबंधों में भी होता है |ऐसे  भाई बहन के आपसी संबंध तभी तक चलते हैं जब तक उनमें भाभी और जीजा सम्मिलित नहीं होते | याद रखिए आत्मीय संबंध अकेले में ही चलते हैं | भतीजे का चाचा से सीधा संबंध होता है | इस संबंध में उसके माता पिता का प्रवेश संबंध को नष्ट करता है | मामा भांजे का सीधा संबंध होता है | महाराज दशरथ ने एक स्त्री के पति होने के नाते पत्नी की प्रसन्नता के लिए श्री राम को बन गमन का वरदान दिया !दूसरी ओर पुत्र को बनबास का कष्ट न मिले इसलिए पुत्र से कहते हैं तुम बन न जाओ | दशरथ जी ने कैकई को दो वरदान माँगने की बात कही ही क्यों थी | अपनेपन के संबंधों में अपनों का सबकुछ अपना ही होता है फिर मांगने और देने की चर्चा ही क्यों की गई | पति और पत्नी आपस में एक दूसरे के लिए क्या क्या नहीं करते हैं उसका कोई मूल्य आंकता है क्या ?कैकई के पास दो वरदान माँगने का विकल्प होने पर भी यदि वह अपने पुत्र के राज्याभिषेक का प्रबंध न करती तो समाज उसे गलत कहता | वरदान माँगने का विकल्प न होता तो ऐसी परिस्थिति ही पैदा न होती | दशरथ जी की गलती का दंड कैकयी क्यों भोगे ! उधर महाराज ने दशरथ ने एकांत में कैकई को वरदान देने की बात कही थी और कैकई ने भी एकांत  वरदान माँगा था | दशरथ जी चाहते तो मना कर देते कैकई तो मना करने के लिए बार बार कह भी रही थी | यदि दशरथ जी ऐसा कर देते तो उसकी खानापूर्ति भी हो जाती और राम जी बन भी नहीं जाते और किसी को पता भी नहीं लगता ,किंतु दशरथ जी ने स्वयं तो वरदान देने से मना किया नहीं उधर श्री राम जी से कहते हैं तुम बन न जाओ हमारा बचन गलत हो जाने दो !श्री राम जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं उनसे ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती थी | कैकई माँ और श्री राम जी पुत्र हैं दोनों के आपसी संबंध में पिता दशरथ का घुसना ठीक ही नहीं था | विवाह की शर्त के अनुशार राज्य पर अधिकार कैकई के पुत्र का था इसलिए यह सोचने का कर्तव्य कैकई का था कि इस बंश परंपरा में ज्येष्ठ पुत्र को गद्दी दी जाती है कैकई बंश की परंपरा को कभी टूटने नहीं देती !जिस कैकई ने पति के प्राणों की रक्षा के लिए देवासुर संग्राम में अपने प्राणों की परवाह न की हो उसी कैकई के आगे वही दशरथ अपने प्राणों की भीख माँगते रहे किंतु कैकई नहीं मानी | विधवा होना स्वीकार कर लिया | इसलिए आत्मीय संबंध केवल आत्मीयता के आधार पर ही चलते हैं | दशरथ जी को कैकई से भी तो परामर्श करके निर्णय लेना चाहिए था | राजा दशरथ अपने पुत्र को उत्तराधिकारी बना रहे थे जबकि पति दशरथ से कैकई ने वरदान माँगे थे |राजा और पति दोनों दायित्वों का निर्वाह एक साथ संभव न हो सका | 


    जीवन को समझने के लिए विज्ञान कहाँ है ! 

       प्रत्येक व्यक्ति का संपूर्ण जीवन समस्याओं से घिरा रहता है मनुष्य एक समस्या सुलझाने  प्रयत्न करता है तब तक दूसरी आ  खड़ी होती है | एक समस्या बीतती है तो दूसरी आ खड़ी होती है |

 


 रोग पता नहीं था और  न ही रोग के लक्षण पता थे

 

इन घटनाओं के विषय में अनुसंधान करने के लिए सबसे पहले समय संबंधी अनुसंधान किए जाने चाहिए ,किंतु समय को समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है |क्या विज्ञान के बिना ही  महामारी संबंधी अनुसंधान किए जाते रहे !ऐसे अनुसंधानों से निकला क्या जिससे महामारी पीड़ित समाज को थोड़ी भी मदद मिली हो

जिसकी कीमत प्राकृतिक आपदाओं के समय जनता को जान देकर चुकानी पड़ती है

| समयसंचार को समझने के लिए  

प्रकृति और जीवन से संबंधित ऐसी सभी घटनाएँ जब समय के आधार पर ही घटित होती हैं तो ऐसी सभी घटनाओं को समझने के लिए सबसे पहले समय को समझा जाना चाहिए !

      गर्भवास एवं बचपन की कठिनाई के कारण ईश्वरीय शक्तियाँ प्रत्येक व्यक्ति को  इस संसार में  भेजते समय उसकी सफलता लॉक करके भेजती हैं |उम्र बढ़ने के साथ साथ प्रत्येक व्यक्ति को इसे खोलने का प्रयत्न करना पड़ता है | उस लॉक में  भाग्य, कर्म, समय,सहयोगी और स्थान रूपी ये 5 नंबर होते हैं जिनके सही सही डायल होते ही सफलता का द्वार खुल जाता है |इसके लिए आवश्यक है भाग्य में जो सुख जितना बदा हो उतने की ही चाह रखना,जिस समय पर लिखी हो उस समय पर कार्य करना कर्म से   

        मनुष्य जीवन से संबंधित घटनाओं की है मानसिक स्वास्थ्य हो या शारीरिक स्वास्थ्य इसके विषय में अभी तक न तो अनुमान लगाना संभव हो पाया है और न ही पूर्वानुमान | मानसिक एवं शारीरिकदृष्टि से होने वाले अच्छे या बुरे सभी प्रकार के बदलाव होने के लिए जिम्मेदार कारण अनुमान पूर्वानुमान आदि कुछ भी लगाने के विज्ञान को नहीं खोजा जा सका है |उत्थान के लिए किए गए प्रयासों के असफल होने से या निजी संबंधों के अचानक बिगड़ने से लोगों का मानसिक तनाव दिनों दिन बढ़ता जा रहा है|जिसका दुष्प्रभाव शरीरों पर पड़ने से युवा अवस्था में ही लोग शुगर बीपी जैसे बड़े रोगों के शिकार हो रहे हैं | वैवाहिक जीवन में तलाक होते  एवं परिवार बिखरते देखे जा रहे हैं |कई निराश हताश लोग आत्महत्या तक करते देखे जा रहे हैं | इनमें से किसी भी समस्या का समाधान खोजने के लिए न तो कोई विज्ञान है और न ही वैज्ञानिक अनुसंधान !   

 व्यापार के विषय में ज्योतिषीय भविष्यवाणियाँ गलत क्यों निकल जाती हैं ?

     भविष्यवाणी करने वाले को ज्योतिष आदि का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण ! कई बार ज्योतिष ज्ञान होने पर भी उचित पारिश्रमिक न मिलने के कारण योग्य ज्योतिषी लोग भी पर्याप्त   अनुसंधानप्रक्रिया किए बिना ही 
भविष्यवाणियाँ कर दिया करते हैं जो गलत निकलती हैं | 

 


कार्य की सफलता के लिए इनका अच्छा होना आवश्यक है !


ज्योतिष के अलावा ऐसा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है जो इतने बुरे समय में भी सही रास्ता दिखाकर ऐसे हैरान परेशान लोगों की भी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके | 

 

 


        दान करने से कष्ट कम होते हैं किंतु दान है क्या ?

         कुछ लोग अहंकारवश भीख देने को ही दान समझने लगते हैं जबकि भीख और दान में बहुत अंतर होता है | दान सहयोग और भीख इन तीनों शब्दों का बहुत महत्त्व है |दान अपने से श्रेष्ट लोगों को दिया जाता है| सहयोग बराबर वालों का किया जाता है और भीख अपने से छोटों को दी जाती है | दान के बदले हमें आशीर्वाद मिलता है उस आशीर्वाद से कष्ट कम होता है ! सहयोग के बदले हमें भी उससे सहयोग मिलता है |भीख के बदले भिखारी कुछ भले न दे सके किंतु उसके बदले ईश्वर सत्कर्म जनित पुण्य प्रदान करता है | जो संकटकाल में सुरक्षित रखता है |कुछ लोग दान भावना से भिखारी को भीख दे देते हैं भिखारी भी अपने को श्रेष्ठ समझकर उन्हें आशीर्वाद दे देता है |आशीर्वाद में किसी को वही दिया जा सकता है जो उसके अपने पास हो |कुष्टरोगी आशीर्वाद  में किसी को कुष्टरोग ही दे सकता है | कोई भिखारी किसी भीख देने वाले को भिखारी होने का आशीर्वाद ही दे सकता है |सभी प्रकार का आरक्षण भी एक प्रकार की भीख ही है | आरक्षण देने की वकालत करते रहने वाले राजनैतिकदलों को भिखारियों ने भीख माँगने का आशीर्वाद दे रखा है | उन्हें वही आज फलित हो रहा है |इसीलिए तो  आरक्षण की वकालत करने वाले वही राजनैतिकदल आज भिखारियों की तरह भटकते घूम रहे हैं | 

    आरक्षण को भीख कहा जा सकता है या नहीं ?

      आरक्षण की वकालत करने वाले राजनैतिकदल आज भिखारियों की तरह भटकने को क्यों मजबूर हैं !ये कोई प्रायश्चित्त कर रहे हैं या किसी कर्म की सजा भोग रहे हैं अथवा उन्होंने कोई अपराध किया है जिसकी सजा उन्हें प्रकृति दे रही है |हमेंशा सत्ता में रहने वाले राजनैतिकदल  कहाँ और कितने प्रदेशों में सत्तासीन हैं ? वस्तुतः भीख माँगने का अधिकार केवल उसको ही है जो खाए हुए भोजन को पचा सकने में असमर्थ हो और उसका शरीर इतना अधिक दुर्बल हो कि बच्चे पैदा करने में असमर्थ हो |आजकल तो अच्छे खासे हट्टे कट्टे स्वस्थ सुदृढ़ शरीर वाले लोग भी अपने को दबे कुचले बताकर आरक्षण माँगते देखे जाते हैं | उन्हें सोचना चाहिए कि उनके  केवल ऐसा कह देने से कोई दबा कुचला नहीं हो जाता है,फिर भी यदि वे ऐसा महसूस ही करते हैं कि उनका शरीर काम करके धन कमाने लायक नहीं है तो सरकारों को उन्हें आरक्षण देने के बजाए मेडिकल सुविधाएँ देकर उनकी जाँच करावे तथा चिकित्सा करे | उनके स्वस्थ होते ही उनकी भावी पीढ़ियाँ भी स्वस्थ ही पैदा होंगी वे भी स्वाभिमानपूर्वक रहने के लिए परिश्रमपूर्वक कमाकर खाना ही पसंद करेंगी |अन्यथा दबेकुचले कहने की बीमारी तो हमेंशा चलती रहेगी | चिकित्सा शास्त्र का ऐसा मत है कि जो व्यक्ति जितना अधिक आहत होता है, अपमानित होता है या शोक संतप्त होता है वह मानसिकनपुंसकता से ग्रस्त होकर मनोबलविहीन होने के कारण संतान पैदा करने लायक रह ही नहीं जाता  है ,क्योंकि कामबासना का निवास स्वस्थ मन में होता है |संतान पैदा करने में स्वस्थ पढ़ने और कमाने में दबे कुचले ऐसा कैसे संभव है ! कुछ जीवित लोग अपने को दलित कहने लगे हैं | दाल और दलिया दो शब्द होते हैं |  अनाज के किसी भी दाने के दो बराबर टुकड़े 'दाल' एवं उसी के कई टुकड़े कर दिए जाएँ तो 'दलिया' अर्थात 'दलित' कहा जाता है | ऐसी स्थिति में जो दलित होगा वह संतानों को जन्म देने लायक कैसे रह जाएगा !ऐसी स्थिति में जन संख्या का बढ़ना कैसे संभव है | बिना किसी योग्यता एवं बिना किसी परिश्रम दूसरे प्रतिभा संपन्न परिश्रमी लोगों के अधिकारों को  भीख में माँगकर भोगने की भावना स्वस्थ राष्ट्र एवं स्वस्थ एवं समृद्ध समाज के निर्माण में प्रबल बाधक है | 

  'पीपल' और 'सर्प' सजीव भी होते हैं !

     सजीव पीपल हों या सजीव सर्प ये अपनी इच्छानुसार मनुष्य स्वरूप धारण करने में सक्षम होते हैं | ये जहाँ होते या रहते हैं वो जमीन जिस किसी की होती है उसे आशीर्वाद देकर उसकी बहुत उन्नति कर देते हैं | उसे बहुत अच्छा घर व्यापार एवं धन सम्मान आदि प्रदान करवाते हैं ,किंतु उसे उस घर में नहीं रहने देते हैं जिसमें सजीव पीपल या सजीव सर्प अपना बस बना लेते हैं | विशेष बात यह है कि इन दोनों में से कोई एक अकेला कभी नहीं रहता है अर्थात जहाँ सजीव पीपल होगा उसके आस पास सजीव सर्पों का भी आवास होगा ही और जहाँ सजीव सर्पों का घर होता है वहाँ सजीव पीपल उग ही आता है और जहाँ ये दोनों होते हैं वहाँ भूत प्रेतादिगणों की इतनी बड़ी सेना इनकी सेवा में समर्पित रहती है कि आसपास बहुत दूर दूर तक की जगह जन शून्य कर देती है |कई बार तो गाँव के गाँव खाली होते देखे गए हैं | पीपल सर्प एवं बहुत प्रेतादिकों का स्वयं का परिवार इतना बड़ा बन जाता है तथा कुछ दूसरे स्थानों की अतिथि शक्तियों का आना जाना लगा रहता है जो हमेंशा प्रत्यक्ष दिखाई भले न पड़ते हों किंतु अपने चारों ओर बड़ी दूर दूर तक घर गृहस्थी बसने नहीं देते हैं |ऐसे जागृत स्थानों पर कोई ऐसी गृहस्थी इस लिए भी नहीं रह सकती क्योंकि गृहस्थी में होने वाले पति पत्नी के एकांतिक संबंधों एवं मलमूत्र विसर्जन किए जाने को ये न केवल अपना अपमान समझते हैं अपितु ऐसा करने वालों के परिवार वहाँ बसने ही नहीं देते इसके साथ ही उन्हें कठोर दंड भी देते हैं |पति पत्नी के एकांतिक संबंध न हों इसलिए उन्हें जोड़े में रहने ही नहीं देते !उन दोनों में से कोई एक ही क्षमा याचना माँगकर कुछ समय तक रह पाता है |मलमूत्र करने का दंड उन्हें भी मिलता ही रहता है | कुल मिलाकर ऐसे स्थान  अपनी पवित्रता के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करते | आसपास के घरों को खंडहर बनाकर  उस स्थान को जनशून्य कर लेते हैं |अच्छे भाग्य वाले लोग भी ऐसी पीड़ाओं से तब तक दंडित हो रहे होते हैं जब तक ऐसे सिद्ध स्थानों के आस पास रहते हैं | ऐसी परिस्थितियों को समझने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त और कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है | 

     ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर एक उदाहरण में -   

  


न स्वयं हासिल की जा सकती है और न ही कोई सहयोग में दे सकता है | का अपना अपना भाग्य होता है ?

 

प्रत्येक सुख भोगने को उतना ही मिलताहै जितना जिसके भाग्य में बदा होता है |किसके भाग्य में कौन सुख कितना बदा है ये पता लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

       ता है के लोगों को ता है ने तक होता है | किसान का हक़ खेत में बीज बोने तक,  सकता है  ना या औषधि देना चिकित्सक के वश में है, जाता है किंतु उसका परिणाम क्या होगा ये तो चिकित्सक कर ने के बाद 

   कुछ पति पत्नी संतान न होने से बहुत परेशान होते हैं जबकि उनकी जाँच रिपोर्टें सारी सामान्य होती हैं,किंतु रिपोर्टें सामान्य होने से उनकी समस्या का समाधान तो  नहीं हो जाता !ऐसी परिस्थिति में उन तनावग्रस्त स्त्री पुरुषों की समस्या का समाधान खोजने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है जिससे न केवल संतान न होने का कारण खोजा जा सके अपितु उसका निवारण भी खोजा जा सके जिससे उन्हें संतान हो सके !ऐसी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए 

   मानसून आने और जाने की भविष्यवाणियाँ प्रायः हर वर्ष गलत निकलती हैं | यदि किसी वर्ष सही निकल भी जाएँ तो वे तीर तुक्के मात्र होते हैं जिनका वैज्ञानिकता से दूर दूर तक कोई संबंध ही नहीं होता है | उपग्रहों रडारों के द्वारा बादलों एवं आँधी तूफानों की जासूसी करके उनकी गति और दिशा के आधार पर यह कह देना कि ये बादल आँधी तूफ़ान आदि कब कहाँ पहुँचेंगे !इसमें मौसम विज्ञान क्या है ? भूकंप बज्रपात जैसी घटनाएँ  उपग्रहों रडारों से दिखाई ही नहीं पड़ती हैं ,ये सब तो अचानक ही घटित होती हैं |इसीलिए इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने का कोई दावा  भी नहीं करता है | मौसमविज्ञान के नाम पर ऐसी कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया ही नहीं है जिसके आधार पर मौसम संबंधी सही पूर्वानुमान लगाया जा सके | प्रकृति से संबंधित मौसमी रहस्यों को समझने में विज्ञान बहुत पीछे छूट गया है |काल्पनिक रूप से गढ़ी गई अलनीनों-लानिना जैसी निरर्थक कहानियों का मौसम पूर्वानुमान लगाने में कोई  योगदान नहीं होता है | ऐसी स्थिति में ज्योतिष के अतिरक्त ऐसा और कौन सा विज्ञान है  जिसके द्वारा प्राकृतिक परिवर्तनों को समझा जा सके एवं मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके  ?

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 पंडित पुजारी ड्रेसिंग कर सकते हैं सर्जरी नहीं ! ज्योतिष सेवाओं की दृष्टि से

विवाह टूटना कैसे बंद हो !

   विवाह के लिए जिन्हें विद्वान ज्योतिषी नहीं मिलते तलाक के लिए उन्हें विद्वान् वकील खोज लेते हैं ?

किंतु विवाह बचाने के लिए जो लोग विद्वान् ज्योतिषी नहीं खोज पाते हैं वही लोग तलाक दिलाने के लिए महँगा वकील खोज लेते हैं | विवाह टूटने का यह एक बड़ा कारण है |

    

विधवा या विधुर होने का कारण ? पति-पत्नी के द्वारा जाने अनजाने में हुई कुछ ऐसी विवाहसुख विषयक गलतियों का प्रायश्चित्त करने के लिए विधवा या विधुर रूप में जीवन बिताना होता है | ये एक प्रकार का संन्यासव्रत होता है जिसका अत्यंत पवित्रता पूर्वक परिपालन करना होता है |

याँ अपराध  कुछ कर्मों का प्रायश्चित्त करने के लिए उसे पत्नी या पति सुख का न होना !इसीलिए भाग्यवश उसका विवाह किसी ऐसे पुरुष से हुआ होता है जिसके भाग्य में आयु कम थी या जिस किसी भी प्रकार से पत्नी सुख कम रहा होता है| ऐसा ही पुरुषों के जीवन में भी होता है |कुछ लोग यह प्रायश्चित्त ठीक ढंग से कर लेते हैं वे तो इसी जन्म में ऐसे संकटों से मुक्ति पा लेते हैं ,जबकि कुछ पति या पत्नी सुख से रहित  स्त्री पुरुष किन्हीं दूसरे पुरुष या स्त्रियों से वैवाहिक सुख भोग किया करते हैं |उन्हें कई जन्मों तक इस प्रकार का  प्रायश्चित्त करते रहना पड़ता है | इसलिए प्रत्येक स्त्री पुरुष को अपने अपने विषय में पता होना चाहिए कि उसे विवाह का सुख कितना बदा है | ज्योतिष के बिना ऐसा पता किया जाना किसी अन्य विज्ञान से संभव ही नहीं है | 

   


  

     विद्वान ज्योतिषियों की भी भविष्यवाणियाँ कई बार गलत निकल जाती हैं,क्यों ?

       कई बार ज्योतिषियों की भविष्यवाणियाँ इसलिए भी गलत निकल  जाती हैं क्योंकि उन्हें वो पारिश्रमिक नहीं दिया गया होता है | जिस काम को करने की अपेक्षा ज्योतिषियों से की जाती है |इसलिए वे परिश्म नहीं करते हैं और भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |

    कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि मैंने किसी विद्वान् ज्योतिषी से कुंडली दिखा ली है  इसलिए उनकी कही हुई बात सही होगी ही किंतु ऐसा होता नहीं है|ज्योतिषी के विद्वान होने से और आपकी कुंडली देखे जाने का आपस में क्या संबंध !आपका ज्योतिषी से उतना ही संबंध होता है जितना आप धन देते हैं और वे आपको ज्योतिष सेवाएँ देते हैं | ज्योतिषी यदि बहुत बड़े विद्वान् हों भी तो इससे आपको लाभ कैसे मिल सकता है | जिस प्रकार से बिजली के बोर्ड में कितनी भी करेंट हो किंतु प्रकाश उतना ही होगा जितने बॉड का बल्ब लगाया जाएगा | ऐसे ही समुद्र में पानी कितना भी क्यों न हो किंतु आप उससे उतना ही जल लेकर आ सकते हैं जितना बड़ा आपके पास बर्तन होगा |    

    इसी प्रकार से बड़े से बड़े ज्योतिषी के पास जाकर भी आप उनकी विद्या का लाभ उतना ही ले सकते हैं जितने का मूल्य चुकाते हैं | यदि आप पर्याप्त मूल्य चुकाए बिना ही ज्योतिषी की विद्या का संपूर्ण लाभ लेना चाहते हैं तो ये संभव नहीं है | इसलिए ज्योतिष वैज्ञानिक की संपूर्ण योग्यता का लाभ लेने के लिए उसके द्वारा निर्धारित किए गए आर्थिक मानकों को प्रसन्नता पूर्वक पूरा करना चाहिए ,ऐसा किए बिना उससे सही सलाह पाने की आशा नहीं रखनी चाहिए !

    

 ज्योतिषी के भी बलिदान की सीमा है !

 ज्योतिषी की सेवा का मूल्यांकन यदि दरिद्रता पूर्वक किया जा रहा होता है तो इससे अप्रसन्न ज्योतिषी आपके कार्य में जितने परिश्रम की आवश्यकता है वो नहीं कर पाते हैं |किसी  दरिद्र के लिए उन्हें इतना बड़ा बलिदान करना भी नहीं चाहिए |

    जिस प्रकार से आपने अपने जीवन में संघर्ष पूर्वक बहुत सारा धन संपत्तियाँ कमाई होती हैं |उसीप्रकार से उस ज्योतिष वैज्ञानिक ने भी ज्योतिष जैसे महानशास्त्र को पढ़ने एवं अनुसंधान करने में अपना जीवन लगा दिया होता है | यदि आप अपने धन की कीमत समझते हैं तो उस ज्योतिषविद्या की कोई कीमत ही नहीं है जिसका लाभ लेने के लिए आप ज्योतिषियों के पास जाते हैं | उन की तो विद्या ही संपत्ति है |उसका अपमान करके आप उस विद्या से लाभ नहीं ले सकते हैं |किसी ज्योतिषी की हैसियत अपने से कम आँककर आप  उनकी विद्या से लाभ नहीं ले सकते हैं |      

          ज्योतिषियों के जीवन की कठिनाइयाँ !

     ज्योतिषियों की आवश्यकताएँ भी आम लोगों की तरह ही होती हैं उन्हें भी जीवनयापन के लिए आम लोगों की तरह ही धन की आवश्यकता होती है |आखिर उन्हें भी तो इसी समाज में रहना होता है | जो वो विद्वानज्योतिषी है इसलिए आप ऐसा चाहते हैं कि वो आपकी कुंडली देखने या विवाह बिचारने में अपनी संपूर्ण विद्वत्ता लगा दे तो क्या आपसे उस ज्योतिष वैज्ञानिक को भी ऐसा अधिकार देने को तैयार हैं कि वो आपकी संपत्ति का भी संपूर्ण उपयोग करे | यदि नहीं तो आपको उस ज्योतिषी की विद्या का पूर्ण उपयोग करने का अधिकार नहीं है | उसके द्वारा कही हुई बात यदि गलत निकल जाती है तो ये गलती उसकी नहीं अपितु आपकी दरिद्रता ही है |

     ज्योतिष वैज्ञानिकों के अन्य सभी लोगों की तरह ही उनके भी सामाजिक संपर्क होते हैं नाते रिस्तेदार होते हैं मित्र मंडली होती है सामाजिक संपर्क होते हैं और ज्योतिषी होने के नाते ऐसे संबंध बहुत अधिक बढ़ जाते हैं प्रत्येक आदमी अपनी हैरानी परेशानी के समय या बच्चों के काम काज करते समय उस ज्योतिषी से निशुल्क सेवाएँ लेना चाहता है |जो उस अकेले ज्योतिषी के द्वारा किया जाना संभव ही नहीं है | उसने शिक्षा काल में इतना संघर्ष किया फिर यह दंड भोगे ऐसी आवश्यकता ही क्या है ?

ने  ने विवाह बिचारते समय

     

 

ज्योतिष जैसे इतने बड़े विज्ञान की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि कोई भी सक्षम व्यक्ति अपने बच्चे को ज्योतिष नहीं पढ़ाना चाहता है |गरीब लोग थोड़ी बहुत ज्योतिष पढ़कर खाने कमाने में लग जाते हैं या पंडित पुजारी बन जाते हैं |कुछ ऐसे अनपढ़ या पढ़े लिखे लोग जिन्हें ज्योतिष के विषय में कुछ भी नहीं पता होता है वे भी बेरोजगारी के कारण ज्योतिषी बन जाते हैं |ऐसे अनपढ़ लोग भी कहीं से डिप्लोमा लेकर या किसी से गोल्डमैडल माँगकर या किसी नेता अभिनेता के साथ फोटो खिंचवाकर या मीडिया में प्रचार करवाकर अपने को ज्योतिषी या वास्तुशास्त्री के रूप में प्रसिद्ध कर लेते हैं |ऐसे ज्योतिष बिना पढ़े लिखे लोग अपने को ज्योतिषी के रूप में प्रसिद्ध करने के लिए दूसरों को ज्योतिष पढ़ाने का नाटक करते हैं | टीवी चैनलों पर बैठकर बड़ी बड़ी बहसें करते हैं | बंदरों की तरह ऐसी सारी उछलकूद केवल इसलिए करते हैं कि लोग उन अनपढ़ों को ज्योतिषी समझने लगें  जबकि ऐसे लोग ज्योतिषी नहीं होते हैं| इन्होंने किसी प्रमाणित विश्व विद्यालय से ज्योतिष की कोई डिग्री नहीं ली होती है | केवल प्रचार के बलपर ज्योतिषी या वास्तुविद बन जाते हैं | ऐसी हरकतें करके यदि कोई डॉक्टर इंजीनियर नहीं बन सकता है तो ज्योतिषी कैसे बन सकता है | यह सोचने वाली बात है |

    ज्योतिष पढ़ना बहुत कठिन काम है कम से कम बारह वर्ष किसी योग्य ज्योतिषी की शरण में रहकर दिन रात परिश्रम करके ज्योतिष पढ़ी जा सकती है | इसके अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा सार्टकट रास्ता नहीं है जिससे ज्योतिष पढ़ना संभव हो |कुछ संस्थाएँ सप्ताह में एक या दो दिन एक एक दो दो घंटे पढ़ाकर जो  डिप्लोमा आदि देती हैं वो केवल दिखावा होता है |इससे ज्योतिष समझ में आना संभव ही नहीं होता है | ज्योतिष एक बहुत बड़ा विज्ञान है | इसलिए यह  पंडितों  पुजारियों के बश का नहीं है | 

 

 यह जानते  हुए भी लोग ऐसे संवेदनशील विषय को उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं |

सफलता का समय आने पर भी सफलता क्यों नहीं मिलती ? 

 


परिवारों में छोटे बड़े सभी लोगों के नाम लेने की परंपरा कम थी बड़ों के लिए रिश्ते के अनुशार संबोधन थे जबकि 

 इसलिए उसका भरोसा तीनों पर हुआ ,

जिससमय किसी का समय बिगड़ता है उसीसमय तनाव के साथसाथ उसकी सभीप्रकार की समस्याएँ बढ़ती हैं | स्वास्थ्य बिगड़ता है भूत प्रेत जादू टोने आदि से नुक्सान होता है

 विज्ञान के द्वारा न चिकित्सा की जा सकी न मृत्यु के विषय में पहले से पता लगाया जा सका !इतना उन्नत विज्ञान उस व्यक्ति के आखिर किस काम आया ? ज्योतिष के बिना दूसरा ऐसा कौन सा विज्ञान है जो ऐसे समय मदद की अपेक्षा की जा सकती है ? 

गई नी ही है यह पहले से पता न होने के कारण उसका धन भी गया और जीवन भी !इतने उन्नत विज्ञान से उसे क्या लाभ हुआ ?रोगी की मृत्यु इस आयु में होनी है या चिकित्सा होने के बाद भी उसकी मृत्यु होनी ही है यह जानने के लिए ज्योतिष ही एक मात्र विज्ञान है !

वे इतना सारा फैलाव फैला लेते हैं जिसे उनके अलावा उनके परिवार के किसी अन्य व्यक्ति  के द्वारा अचानक सँभाला जाना संभव नहीं होता है ! यह जानते हुए भी वे इसीअवस्था में कुछ लोग किसी मार्ग दुर्घटना में या किसी रोग से या हार्टअटैक से अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं !ऐसे लोगों की मृत्यु पूर्व निर्धारित थी या अचानक हुई !इसका पता लगाने एवं इसका पूर्वानुमान पता करने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ? 

   ज्योतिषियों साधूसंतों  तांत्रिकों कथावाचकों की पवित्रता की पहचान कैसे हो ?

     जिस प्रकार से आईएएस पीसीएस जैसी परीक्षाओं को पास करने के लिए ऐसी विद्यालयों में एडमीशन ले लेने मात्र से कोई आईएएस पीसीएस अधिकारी तो नहीं हो जाता है उसके लिए उसे पर्याप्त तैयारी के द्वारा परीक्षा पास करके अपनी प्रशासन क्षमता योग्यता प्रमाणित करनी पड़ती है | इतनी बड़ी तैयारी करके भी असफल होने के बाद  कुछ लोग तो अपनी सात्विकता संस्कारों आदि से ,अपने को सँभाल लेने में सफल हो जाते हैं ,जबकि कुछ लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं | उनमें से कुछ लोग तरह तरह के नशे के लती हो जाते हैं जबकि  कुछ आपराधिक कार्यों में सम्मिलित होते देखे जाते हैं |इसी प्रकार से ज्योतिषियों साधूसंतों  तांत्रिकों कथावाचकों को स्वरूप धारण करने मात्र से सफल मानकर इनसे धोखा उठाने वाले कुछ लोग धर्म एवं धर्म शास्त्रों की निंदा करते देखे जाते हैं जबकि इसमें इनका क्या दोष !

   देवी देवता चमत्कार करने के लिए नहीं होते !

    साधू संत तपस्वी योगी ऋषि मुनि आदि तपस्या के प्रभाव से न केवल किसी के मन की बात जान लिया करते हैं अपितु उनके बीते जीवन में घटित हुई घटनाओं के साथ साथ भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं के विषय में भी पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं |ऐसे सिद्ध लोग  तपस्या के प्रभाव से उनके वर्तमान एवं भविष्य के संकटों को एक सीमा तक कम कर देते हैं, किंतु ऐसा किया जाना कभी कभी ही संभव होता है |वे अपनी तपस्या को चमत्कार का विषय कभी नहीं बनने देते |दरवार लगाकर किसी के मन की बात बताने या भविष्य की बात बताने या उनका संकट कम करने के लिए देवी देवताओं को बाध्य नहीं किया जा सकता है|देवी देवताओं से प्रार्थना ही की जा सकती है जो कभी कभी ही संभव है |

किसी के  मन की बात जान लेना कितना बड़ा  विज्ञान है !

   देवताओं सिद्धों संतों योगियों तपस्वियों को भूत भविष्य वर्तमान सब कुछ पता होता है किंतु वे अपनी तपस्या ये सबकुछ बताने में नष्ट नहीं करते|यदि वे बार बार ऐसा करें तो सिद्धियाँ साथ नहीं देतीं |भूतों  प्रेतों पिशाचों जिंदों यक्षिणियों आदि को बश में करके मायावी राक्षस प्राचीन काल में दरवार लगाया करते थे | ऐसे लोग भूतों  प्रेतों से पूँछ कर किसी के मन की बात या बीती हुई बात तो बता सकते हैं किंतु भविष्य की नहीं | जो बताते भी हैं वो गलत निकलता है | इसलिए ऐसे मायावी लोग समाज को कुछ समय के लिए भ्रमित तो कर लिया करते हैं फिर पोल खुल जाती है | भविष्य को सही सही जानने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त और दूसरा विज्ञान कौन सा है | जिससे बताई हुई बीती बातें जितने प्रतिशत सच निकलती हैं उतनी ही भविष्यवाणियाँ ! 

 

ने में भले 

वाणी करने के नामपर झूठ बोल दिया करते हैं जो पूरी तरह गलत निकलता है क्योंकि भूतों  प्रेतों को किसी का भविष्य नहीं पता होता है |

 उसी की आड़ में ये भविष्य के विषय में जो भी बोल देते हैं या जो आशीर्वाद दे देते हैं | हैरान परेशान लोग उसे सच मान लिया करते हैं और उस पर विश्वास करने लगते हैं, किंतु भविष्य जानना या किसी का संकट कम करना इनके बश का नहीं होता है |इसलिए पोल तब खुलती है जब इनकी की हुई भविष्यवाणियाँ  गलत होने लगती हैं तब तक ये समाज को भ्रमित करते रहते हैं |

 किसी के मन की बात पता लगा लेने का विज्ञान !

  मन की बात बताने का धंधा !

  

देवी देवताओं की सिद्धि करने में कई जन्म लग जाते हैं |उसके बाद भी वे किसी के आगे इतने मजबूर नहीं हो सकते कोई दरवार लगाकर किसी  दूसरी बात कुछ लोग भूत प्रेत पिशाच जिंद या यक्षिणी आदिधंधे में कुछ लोग किसी के मन की बात बताने का जानकर  मुख से बीती बात सुन कर लोग सोचने लगते हैं कि ये भविष्य के विषय में भी जो बता रहे वो भी सच ही होगा !

  किसी मन की बात बताने का धंधा कितना खतरनाक है !

      कोई भी विधर्मी आकर तुम्हारे देवी देवताओं की जय बोलने लगे या तुम्हारे साधू संतों जैसा वेष धारण कर ले     हिंदू या हिंदुत्व की कसमें खाने लगे श्री राम एवं श्री कृष्ण की कथाएँ करने लगे संकीर्तन करने लगे तो आप उसे धार्मिक कैसे मान लेते हैं |आपको धोखा देने के लिए ऐसे आचरण तो कोई आतंकवादी या अपराधी भी कर सकता है |रावण ने भी तो धार्मिक स्वरूप बनाकर सीता हरण किया था |सनातन धर्म के किसी भी देवी देवता ऋषि मुनि महात्मा ने विद्वान ने किसी के मन की बात बताने वाला पहले कभी कोई ऐसा दरवार क्यों नहीं लगाया ! यहाँ तक कि जो बागेश्वर में दरवार लगाता है उसके अपने गुरू ने स्वयं ऐसा क्यों नहीं किया ?देवी देवताओं  ऋषियों  मुनियों  महात्माओं विद्वानों को गरीबों दीन दुखियों की परेशानियाँ देखकर ऐसी दया क्यों नहीं आती है कि वे भी दरवार लगाकर परेशान लोगों के दुःख दूर करते ! उनमें ऐसी योग्यता नहीं है या वो ऐसा करते नहीं हैं या वो करना चाहते थे किंतु बेचारे सफल नहीं हुए !क्या वे तपस्वी नहीं हैं ! क्या वे चरित्रवान नहीं हैं ! क्या वे विद्वान नहीं हैं !क्या उनमें योग्यता नहीं है |आखिर उनकी तपस्या हनुमान जी को पसंद क्यों नहीं आई ?हनुमान जी दरवार लगवाने के यदि इतने ही शौकीन थे तो उन तपस्वियों को दरवार लगाने की प्रेरणा क्यों नहीं दी थी ! आखिर उन दिव्य तपस्वियों में  ऐसी कौन सी कमी थी जो हनुमान जी उन पर इतना प्रसन्न नहीं हुए कि वे भी बागेश्वर जैसे दरवार लगा लेते ! उन्होंने ऐसा कभी कोई दरवार क्यों नहीं लगाया !

     बंधुओ !ऐसे दरवार लगाने की अपने वेदों पुराणों रामायणों अदि प्राचीन साहित्य में कहीं कोई परंपरा मिलती नहीं है |रामायण में ऐसे दरवार लगाने की दो घटनाएँ घटित हुई हैं वे भी राक्षसों के यहाँ -एक तो  राम लक्षमण का हरण करके अहिरावण ने दरवार लगाया था |दूसरे कालनेमि राक्षस ने दरवार लगाया था |

 सनातनधर्मियो !तुम्हारे वही हनुमान जी जिन्हें श्री राम की चरण सेवा से समय ही नहीं है  जिनका रोम रोम प्रतिपल श्री राम नाम का संकीर्तन करता है !जो श्री राम चरण चिंतन में निरंतर लगे रहते हैं उनके पास इतना समय कहाँ होगा कि वे किसी के मन की बात बताते घूमें ! दूसरी बात किसी के मन की बात किसी दूसरे को क्यों बताएँगे !दूसरों को बताना तो चुगली है यह पाप हनुमान जी क्यों करेंगे !किसी के मन की कमजोरियाँ धीरेंद्र शास्त्री को बताकर भरी भीड़ में उस बेचारे को हनुमान जी जलील क्यों करवाएँगे !सभी के मन की बात किसी धीरेंद्रशास्त्री के कान में ही क्यों बताएँगे !बतानी ही होगी तो उसी को बता देंगे जिसकी बात है उससे हनुमान जी डरते हैं क्या ?किसी पर कृपा भी करनी होगी तो स्वयं ही कर देंगे उसके लिए किसी धीरेंद्र शास्त्री से आज्ञा क्यों माँगेंगे कि तू कहे तो मैं उस पर कृपा करूँ !ये बात वो किससे कहता है कभी सोचा है कि उसके सिर में चमीटा मारो, उसके पैर में मारो ,उसे गिराकर मारो ,उसके सिर में जोर जोर से चमीटा मारो  !ये आदेश तुम्हारे हनुमान जी को दिया जा रहा होता है  और तुमने यह स्वीकार कर लिया कि तुम्हारे हनुमान जी दौड़ दौड़कर उसे चमीटा मारने लगते होंगे !जो उसके दरवार में जाता होगा या जिस पर ये कृपा करने को कहता होगा हनुमान जी केवल उसी पर कृपा करते होंगे ! तुम्हारी आत्मा ने यह स्वीकार कैसे कर लिया कि तुम्हारे हनुमान जी ने इतने मजबूर हो गए कि आज वो धीरेंद्र शास्त्री की गुलामत करते घूम रहे हैं | धिक्कार है तुम्हारी हनुमद्भक्ति भक्ति को !तुम अपने हनुमान जी के बल पौरुष पर भरोसा नहीं रख सके !

   कालनेमि की तरह  भूतों प्रेतों पिशाचों  जिंदों यक्षिणियों को बश में करके दरवार चलाने वाले लोगों ने अपनी चोरी छिपाने के लिए हनुमान जी की जय क्या बोलवाना शुरू कर दिया तुम दीवाने हो गए !अरे घी में भी सेंट  मिलाकर चतुर व्यापारी बेच लिया करते हैं !

 यह स्वीकार कैसे कर लिया आदेश देता

 जानी जा सकती है |भूत प्रेत पिशाच आदि ऐसे लोगों के कान में बता देते हैं जो सौ प्रतिशत सच निकलती है |विशेष बात ये है कि ये केवल बीती हुई बात ही बता सकते हैं भविष्य की नहीं 

ग के करके लोग किसी के मन की बात जान लिया करते हैं |तीसरे

विवाह करने में कमियाँ


उसी प्रकार से

 उपायों का प्रभाव कितना होता है ! 

     मौसमवैज्ञानिकों के बश का नहीं है मौसम पूर्वानुमान बताना !

 

का झूठ आखिर कब तक सहा जाएगा !

 उपायों का प्रभाव कितना होता है !

    जन्म समय इतना महत्त्वपूर्ण क्यों होता है ?

   इस संसार में पहली स्वाँस लेने से जीवन शुरू होता है और अंतिम स्वास लेने के साथ ही उस जन्म का लेखा जोखा पूर्ण मान लिया जाता है | उसी के आधार पर अगले जन्म की पटकथा लिखी जाती है जिसे कुछ लोग भाग्य भी कहते हैं | उसी पटकथा के अनुशार जिस समय अगला जन्म मिलता है |उस जन्म समय के अनुशार ही अगला  उसी पटकथा का परिपालन करते हुए ऐसे समय में यह जन्म हुआ होता है |उस जन्मसमय के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि इस जन्म में उसे कौन सुख कितनी मात्रा में भोगने को मिल सकता है | यह पूर्वानुमान पिछले सभी जन्मों को समाहित करते हुए इस जन्म समय तक के आधार पर लगाया गया होता है | इस जन्म में कौन सुख दुःख कितना भोगा गया कैसे भोगा गया ! न्याय या अन्याय से भोगा गया | इसकी  संपूर्ण खाताबही तो इस जन्म की अंतिम स्वास लेने के समय तैयार की जाएगी |उसके आधार पर अगला जन्म होगा | 

     इस समय जिसकी तीस वर्ष की आयु है वह यदि जानना चाहता है कि उसके भाग्य में कौन सुख कितनी मात्रा में मिलने को लिखा है तो सबसे पहले यह देखना पड़ेगा कि जन्म के समय इसके भाग्य में कौन सुख कितनी मात्रा में भोगने को लिखे गए थे |उनमें से तीस वर्ष की आयु होने तक उसने किन किन सुखों को कितनी मात्रा में भोग लिया है | जन्म समय में लिखे सुखों में से तीस वर्ष की उम्र होने तक भोगे गए सुखों को घटा कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे कौन सुख कितनी मात्रा में भोगने को अभी और मिलेगा |

     इसमें विशेष बात यह है कि जन्मसमय के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह तो पता लगाया जा सकता है कि  जन्म  के समय में इसे किस सुख को भोगने का कितना कोष मिला था ,किंतु जन्म से लेकर तीस वर्ष की उम्र होने तक उसने किस सुख को कितनी मात्रा में भोगा है यह पता लगाने के लिए तो उसी से पूछना पड़ेगा कि वह बीते तीस वर्षों में किस सुख को कितनी मात्रा में भोग चुका है |यदि वो सही जानकारी मिलती है तब तो भविष्य के विषय में सही अनुमान लगाया जा सकता है किंतु व्यवहार में ऐसा होते देखा नहीं जाता है |लोग प्रायः सही जानकारी  नहीं देते हैं कि उन्होंने बीते तीस वर्षों में  कितना धन कमाया है या कितने स्त्री या पुरुषों से संबंध बनाए हैं |ज्योतिषी से पूछने जाने वाले लोग प्रायः यही बोलते हैं कि हमारे पास पैसे नहीं है या हमने कुछ विशेष कमाया नहीं है | ज्योतिष वैज्ञानिक उसकी बात को सही मानकर जन्म समय के कोष को ही दोहरा देता है कि जन्म के समय में  आपके भाग्य में यह सुख इतना लिखा था चूँकि आपने अभी तक उसे भोगा नहीं है इसलिए अभी आपको पूरा ही भोगने को मिलेगा ,जबकि वह पूरा सुख भोग चुका होता है इसलिए उसे वह सुख अब और नहीं  भोगने को मिल सकता है |उसके गलत जानकारी देने के कारण कई बार ऐसी भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |

    कई बार किसी का विवाह होने को आया उस समय लड़के और लड़की के जन्म समय का मिलान किया गया दोनों में पति और पत्नी का सुखयोग उत्तम मिला अर्थात जन्म के समय पति पत्नी दोनों के ही भाग्य में पत्नी और पति के सुख का उत्तम कोष (बैलेंस) था |दोनों को भाग्य में मिला पति पत्नी के सुख का वह उत्तम कोष (बैलेंस) अभी तक अविवाहित रहने के कारण अभी भी सुरक्षित ही होगा | ऐसा मानकर उन दोनों के जन्म समय का मिलान करके दोनों का विवाह करवा दिया गया | बाद में पता लगा कि उन पति पत्नी में तनाव चल रहा है या तलाक हो गया | ऐसे में प्रथम दृष्टया तो ज्योतिष के द्वारा उनके विवाह के विषय में की गई भविष्यवाणी गलत निकलती दिखाई देती है किंतु विस्तृत अनुसंधान करने पर पता लगा कि उन दोनों ने या उनमें से किसी एक ने विवाह होने से पहले ही विवाहेतर संबंधों से अपना अपना भाग्य प्रदत्त वैवाहिक सुख कोष (बैलेंस)खर्च कर डाला है | ऐसे लोग विवाह होने के बाद एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक नहीं रह पाते हैं |

  तो जन्म समय में जो सुख जितनी मात्रा में भोगने को लिखे गए थे उसमें से जितने सुख भोग लिए गए हैं उन्हें जन्म समय के सुखों में घटाकर शेष बचे सुख ही इस जन्म में भोगने को मिलेंगे | उतने सुख भोगने लायक ही उन्हें इस जन्म में नैतिक रूप से धन या उन सभी प्रकार के सुखों के साधन मिलते हैं |जिन्हें प्रयत्न पूर्वक प्राप्त करके उन सुखों को उसी उचित मात्रा में  भोगते हुए वह जीवन पूरा करना होता है | 

    इस सच्चाई को समझे बिना कुछ  लोग  भाग्य के अतिरिक्त भी अन्याय पूर्वक कुछ सुख साधन हासिल करके उन्हें भोगना शुरू कर देते हैं |इससे उनके भाग्य में जो सुख जितनी मात्रा में संपूर्ण जीवन भर में भोगने के लिए भाग्य में निश्चित किए गए  थे | वे उतने सुख उससे बहुत कम समय में ही भोग लिया करते हैं |उससे अधिक उन सुखों को भोगना संभव नहीं होता है |किसी के भाग्य में जितना पति या पत्नी का सुख सारे जीवन में भोगने को लिखा होता है | उन्होंने उतने सुख विवाह होने से पहले या विवाह होने के कुछ समय बाद तक ही भोग लिए तो आगे कुछ भोगने को बचा ही नहीं होता है|ऐसे समय में उन्हें आगे का जीवन पति या पत्नी से अलग रहकर या उनका वियोग सहकर ,उन सुखों के लिए बदनामी सहकर अथवा विधवा या विधुर रूप में ब्यतीत करना पड़ता है | 

    किसी के भाग्य में खाने पीने आदि का जो सुख जितनी लिखा होता है उतना ही भोगने लायक उन्हें शरीर मिलता है |उसे यदि संपूर्ण जीवन में भोगते हैं तो सारे जीवन उन सुखों को भोगते हुए आनंद से जीते हैं | कई बार कुछ समय में ही उन सुखों को भोग लेते हैं तो बाकी जीवन उन सुखों की आस लिए तड़पना पड़ता है और किसी प्रकार से उन्हें भोगने के लिए प्रयत्न भी करते हैं तो उनके शरीर इस लायक नहीं रह जाते हैं कि वे उन्हें भोग सकें |एक दो सुखों को भोगने की सीमा यदि पूरी हुई तब तो शरीर उनसे संबंधित रोगों से रोगी हो जाता है और यदि सभीप्रकार के सुख भोगने का निर्धारित अंश (कोटा) एक साथ ही  पूरा कर लिया जाता है तो जीवन वहीं अर्थात उसी उम्र में ही या युवा अवस्था में ही पूरा हो जाता है |

    मीठा खाने की मर्यादा पार होते ही शरीर में मीठे को पचाने की क्षमता समाप्त हो जाती है ,फिर भी यदि मीठा खाया गया शुगर रोग हो जाता है | ऐसा ही अन्य सभी प्रकार के सुखों को भोगते समय ध्यान रखना चाहिए | वैसे भी जब कोई सुख भोगने को बचता ही नहीं है तो कई बार सुख भोग की भावना से अपने को बिल्कुल अलग करके अत्यंत संयमित जीवन जिया जा सकता है |  

   


    

 

उस अतिरिक्त धन को यदि आप अपनी सुख सुविधाओं या आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खर्च करते हैं तो वह जहाँ जहाँ लगेगा वहाँ वहाँ से तनाव रोग परेशानियाँ आदि पैदा होती हैं |वस्तुतः उस धन को अर्जित करने की योग्यता ईश्वर ने जिसमें  दी होती है | उस धन को भोगने की क्षमता भी ईश्वर उसे ही देता है, उसी के जीवन ,शरीर या सुख सुविधाओं पर खर्च होकर वह लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है | वही व्यक्ति उस धन का आनंद ले सकता है |

     

   कुत्तों जैसा आचरण करके कोई किंग नहीं बना जा सकता !

    कुछ सुयोग्य विद्वान,कलाकार,कवि,लेखक आदि विभिन्नप्रकार के दुर्लभ गुणों से युक्त लोग भाग्य और समय के फेर से किसी मुसीबत में फँस जाते हैं | उस संकट से निकलने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता होती है |ऐसे लोगों की ईमानदारी के कारण इनके संपर्क कुछ बड़े बड़े लोगों से होते हैं किंतु वे उनसे धन नहीं मानते |ऐसे गुणवान लोगों के गुणों पर,कलाओं पर ,जमीनों पर,उनके संपर्कों पर उनके नाते रिश्तों पर गिद्ध दृष्टि बनाए एक ऐसा वर्ष इसी ताक में बैठा होता है कि ये मुसीबत में कब फँसें तो हम इन्हें कुछ पैसे पकड़ा दें और उनकी विशेषज्ञता योग्यता कला तथा गुणों को हमेंशा के लिए गुलाम बनाकर रख लें और उसका पूरा लाभ हम स्वयं उठाते रहें | ऐसे लोगों की मजबूरियों का फायदा उठाकर ये किंग(राजा) बनने की इच्छा पाले बैठे होते हैं | ऐसे लोगों को चूँकि  व्यापार करना आता है इसलिए वे उनकी योग्यता के बलपर करोड़ों कमाकर उन्हें कुछ पैसे देकर उनके सारे अधिकार अपने आधीन करके उस धन से स्वयं सब सुख भोग रहे होते हैं | वे एहसान में दबे होने के कारण कुछ कह नहीं पाते हैं | उनकी योग्यता से ये धन कमाया जा रहा होता है ये जानते हुए भी वे दर दर की ठोकरें खाते घूम रहे होते हैं | ऐसा पाप पूर्ण धन जहाँ जहाँ जिन जिन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए या जिस शौक शान पर खर्च किया जाता है वहाँ से कोई न कोई ऐसा समस्या आती है जिससे मुक्ति पाना बहुत कठिन हो जाता है | ऐसे धन से खाने पीने की जो चीजें खरीदते हैं उन्हें  खाने में स्वाद तो आता ही नहीं है बल्कि उनसे शरीरों में रोग पैदा हो जाता है | ऐसे पाप पूर्ण धन से यदि वे  वाहन खरीद लेते हैं तो उनके अपने पैर ख़राब होने लगते हैं |उस धन को यदि चिकित्सा पर खर्च करते हैं तो ऐसी चिकित्सा का उन पर विषैला प्रभाव पड़ने लगता है |ऐसे पाप पूर्ण धन से उनका शरीर ऐसे रोगों से रोगी होने लगता है जिन पर चिकित्सा का प्रभाव ही नहीं पड़ता है प्रत्युत रोग अवश्य बढ़ जाते हैं | उसे यदि शौक शान की चीजों को खरीदने के लिए खर्च कर दिया जाता है तो घरों में कलह पैदा होती है |उस धन को यदि परिवार पर खर्च करते हैं तो बंश रुक जाता है अर्थात संतानें नहीं होती हैं |ऐसे लोग कई बार उन्हीं कर्मचारियों के बच्चे गोद ले लिया करते हैं | कई बार तो उन्हीं लोगों के अंश से संतानें पैदा होते देखी जाती हैं |भविष्य में  वही उनके कमाए हुए धन का सुख भोग रही होती हैं |


 मौसम ?

प्रदूषित हवाएँ भी उन्हें अच्छे परिणाम देती हैं !

देव भूमि या अवैध कब्ज़ा लोग कर तो लेते हैं किंतु उसे भोगने के लिए उनके यहाँ कोई बचता नहीं है ?


ज्योतिष की भविष्यवाणियाँ इसलिए भी गलत होती हैं !

     ज्योतिष में भाग्य और कर्म दोनों को मिलाकर भविष्य के विषय में संभावित पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | भाग्य के आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान के सही होने पर भी भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं उसका कारण  वर्तमान कर्मों के विषय में सही जानकारी न दिया जाना !प्रायः लोग अपने धर्म कर्म परोपकार या अपने द्वारा की गई किसी की मदद को को तो बार बार बताते देखे जाते हैं किंतु अपने दुर्गुणों,दुष्कर्मों या दूसरों का शोषण करके इकट्ठी गई संपत्ति के विषय में सही जानकारी देते नहीं देखे जाते हैं | ऐसे में ज्योतिषी उसके भाग्य एवं अच्छे कर्मों को आधार बनाकर उसके भावी जीवन के विषय में भविष्यवाणियाँ कर देते हैं वे गलत जानकारी को आधार बनाकर की गई होती हैं इसलिए गलत निकल जाती हैं |

      कई बार कुछ रोगियों की चिकित्सा पर बहुत

जिसमें किसी चिकित्सा से कोई लाभ नहीं हो रहा होता है |ऐसे में यदि समय बुरा होता तो व्यापार अच्छा नहीं चलता और घर में सुख शांति नहीं होती और यदि समय अच्छा होता तो इतना बड़ा रोग नहीं होता !

बुरे समय में व्यापार भी रुकता है परिवार में तनाव एवं तरह तरह के संकट होते हैं ,किंतु  बार कुछ लोग दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते जा रहे होते हैं | परिवार में भी और तो सब सुख शांति होती है किंतु उसी समय उन्हें कोई ऐसा रोग हो जाता है जिसमें किसी चिकित्सा से कोई लाभ नहीं हो रहा होता है |ऐसे में यदि समय बुरा होता तो व्यापार अच्छा नहीं चलता और घर में सुख शांति नहीं होती और 


  सुयोग्य चिकित्सकों की महँगी चिकित्सा से भी नहीं होता है लाभ -

विज्ञान


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 भूकंप विज्ञान क्या है ?भूकंप वैज्ञानिक भूकंपों के विषय ऐसा ऐसा क्या जानते हैं जो भूकंप विज्ञान के बिना संभव न था ?उन अनुसंधानों से आज तक पता क्या लगा है ?उनसे जनता को मदद क्या मिली ?भूकंपों के विषय में कुछ न जानकर भी भूकंप वैज्ञानिक कैसे ? 

प्रारंभ में कोई छोटी सी फुंसी देखकर चिकित्सा शुरू की जाती है सुयोग्य चिकित्सकों की  चिकित्सा से भी लाभ न होने पर बाद में पता लगता है कि कैंसर है तब तक देर हो चुकी होती है |चिकित्सक कहते हैं पहले से पता होता तो..... !किंतु पहले से पता करने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

  पति पत्नी दोनों का समय अच्छा रहता है तो दोनों को एक दूसरे की गलतियाँ भी अच्छी लगती हैं !किसी एक का समय बिगड़ने पर कलह शुरू होती है और दोनों का समय बिगड़ने पर अच्छाइयाँ भी बुरी लगने लगती हैं और तलाक हो जाता है | अच्छे बुरे समय को जानने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

   घरों के दोष कैसे पहचाने जाएँ  !

     कुछ घरों के कुछ कमरों बेकार का कबाड़ जमा रहता है |उसे हटाया भी जाए तो वहीं पर फिर से दूसरा कबाड़ इकट्ठा हो जाता है| ऐसे शून्य स्थानों पर रहने से स्वास्थ्य ख़राब होता है ,नींद नहीं  आती, डरावने स्वप्न दिखाई देते हैं |ऐसे स्थानों पर कभी कभी किसी के आने जाने उठने बैठने का आभाष होता है |किसी के न होने पर भी पायल या चूड़ियों की आवाज सुनाई देती है या कोई परछाया दिखाई देती है |ऐसे दोष युक्त स्थानों पर रुपए पैसे या व्यापार के लिए उपयोगी सामग्री रख देने नुक्सान होने लगता है | खान पान की चीजें रखने से उनके जल्दी ख़राब होने एवं उसकी मात्रा स्वतः ही कम होते जाने का अनुभव होता है |ऐसे घरों एवं स्थानों का पता लगाने के लिए ज्योतिष ही एक मात्र विज्ञान है |


किसी स्थान पर घर बनता है तो कहीं मंदिर बनता है कहीं उद्योग या बाजार लगता है | कहीं श्मशान और कसाई घर बनते हैं |हर स्थान का अपना अपना भाग्य !जिस स्थान का जैसा भाग्य वैसा ही कार्य सफल होता है !किस स्थान का भाग्य कैसा है यह जानने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

 

यदि श्मशान बनने योग्य स्थान में मकान दूकान या फैक्ट्री लगाई जाए तो ,मंदिर या व्यापार बने तो सुख और सफलता कैसे मिलेगी ? कौन स्थान किस लायक है यह जानने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

  अच्छा या बुरा समय समय सबका अपना अपना चल रहा होता है जिसका समय जब जैसा चल रहा होता है उसकी सोच तब तैसी बनती है | जिन जिन लोगों का अपना अपना समय जितने दिनों महीनों वर्षों तक एक जैसा चलता रहता है तब तक वे सभी लोग सुख दुःख हानि लाभ सम्मान अपमान पसंद नापसंद आदि के प्रति एक जैसी सोच रखते हैं इसीलिए उन लोगों के आपसी संबंध अत्यंत मधुर बने रहते हैं |उनमें से किसी एक का भी समय जब बदलता है तो समय के साथ साथ उसकी सोच भी बदल जाती है उसके सुख दुःख हानि लाभ सम्मान अपमान पसंद नापसंद आदि में बदलाव आने लगता है उसी के अनुशार उसके कुछ नए मित्र बनते जाते हैं और पुराने मित्र छूटे जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में यदि आप पता करना चाहते हैं कि जो लड़का या लड़की स्त्री पुरुष आदि इस समय आपके मित्र हैं उनसे आपकी यह मित्रता कब तक चल पाएगी तो आप हमारे यहाँ संपर्क करके पता कर सकते हैं |इससे आपको सबसे बड़ा लाभ यह हो सकता है कि किसी मित्र के प्रति आप उतना ही समर्पित होंगे जितना उसके छूटने पर आप सह पाएँगे !

      एक जैसे समय(सोच) वाले जितने लोग एक साथ मिलते जाते हैं उन सबकी आपस में मित्रता होती चली जाती है , उन सबका सुख दुःख हानि लाभ पसंद नापसंद  कोई दो या दो से अधिक लोग जब एक जैसे समय और सोच वाले मिलते हैं तो मित्रता हो जाती है ! प्रत्येक व्यक्ति का समय बदलता रहता है समय के साथ सोच भी बदलती रहती है |  की सोच उसके समय के अनुशार बनती बिगड़ती रहती है |जबतक  किन्हीं दो लोगों का समय एक जैसा चल रहा होता है तब उन दोनों की सोच एक जैसी रहती है !

 

 

इसलिए किसी को अपनी बात समझाने लिए सबसे पहले अपने और  उसकेअच्छे बुरे समय  को समझना चाइए अपने और उसे अच्छे या बुरे शाम का अपने समय को समझना चाहिए थे           

 उनका का समय खराब सोच एक जैसी तभी  हो सकती है जब उन दोनों का समय एक जैसा हो,क्योंकि जिसका जब जैसा समय होता है तब तैसी सोच बनती है | किसी के नुक्सान होने का समय चल रहा हो तो उसकी रूचि उन कार्यों में होगी जिसमें नुक्सान हो क्योंकि समय नुक्सान का चल रहा है ! ऐसे समय कोई फायदे की बात बतावे तो वो कैसे मान लेगा

 प्रत्येक व्यक्ति की सोच उसके नाम और जन्म समय के आधार पर हमेंशा बदलती रहती है |कौन किसे किस संबोधन से बुलाता,जानता या मानता है | हमारी और उससी सोच हमारे और उसके समय के अनुसार ज्योतिष की दृष्टि से कब किस प्रकार की बन रही है इसका पता लगाए बिना ही हम उसे अपनी बात समझाने का असफल प्रयत्न करके तनाव तैयार करते जा रहे होते हैं |    

      किसी को घर परिवार व्यापार संस्था या सरकारों में राजनैतिक दलों में बहुत लोग एक साथ काम करते हैं | सबका अपना अपना समय अलग अलग चल रहा होता है |उनमें से जिन जिन लोगों का समय लगभग एक जैसा चल रहा होता है उनके बिचार एक दूसरे से मिलते जुलते होते हैं | इसलिए वे दोनों एक दूसरे से आसानी से सहमत हो जाते हैं और एक दूसरे की बात मान लेते हैं | जिनका समय एक दूसरे के साथ जितना मिलता जुलता नहीं होता है वे एक दूसरे की बातों  बिचारों से उतने असहमत होते  हैं | कई बार भय से या स्वार्थ से या बड़ों को सम्मान देने के कारण न चाहते हुए भी उनकी बात मान लेनी पड़ती है किंतु उस काम को करने में उसकी अपनी रुचि न  लगने के कारण वह व्यक्ति चाहकर भी उस काम को उतने  अच्छे ढंग से  नहीं कर पाता है |जिसमें उस व्यक्ति की गलती भी नहीं होती है | इसलिए उस पर अकारण क्रोधित भी नहीं होना चाहिए | यही कारण है कि माता पिता अपने मन की शिक्षा या काम अपने बच्चों पर थोप देते हैं | ऐसे  समय में यदि माता पिता के समय और बच्चे के समय में थोड़ा बहुत अंतर होता है तब तो बच्चे न केवल वैसा करते हैं अपितु सफल भी होते हैं | यदि दोनों के समय में  अंतर अधिक होगा तो  बच्चों के बिचार बदले होते हैं इसीलिए उनकी ऐसी सलाहें मानने में बच्चों को  कठिनाई होती ही है | इसीलिए कई बार वे असफल होते भी देखे जाते हैं | इसी मानने न मानने के कारण कई बार व्यापार परिवार सरकार आदि में एवं वैवाहिक जीवन में आपसी तनाव बढ़ने लगता है |

 

 

 


 

बल्कि अपने समय का पता करना चाहिए जो काम जिस समय हम करना चाह रहे हैं ,क्या उस समय हमारा वह काम बनने लायक समय है !यदि हमारा समय हमारा साथ दे रहा होता है तो एक मित्र साथ न भी दे तो सहयोग करने के लिए कोई दूसरा तैयार होकर हमारा काम बना देता है | अपने अच्छे बुरे समय का पता करने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त आपके पास विकल्प क्या है ?

         किस नाम के व्यक्ति के साथ काम  अच्छा होगा किसके साथ नहीं ?


                                                       संतान न होने का कारण !

    पति पत्नी यदि दोनों पूरी तरह स्वस्थ हों ,चिकित्सकीय जाँच रिपोर्टें बिल्कुल सामान्य हों ,इसके बाद भी संतान न हो पा रही हो | इसका कारण खोजने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त और दूसरा  विज्ञान कौन सा होता है ? 

             कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

 आपको किसी से लाभ होता है और किसी से नहीं भी होता है क्यों ?

आपका कोई काम बनता एवं कोई काम बिगड़ता चला जाता है क्यों  ?

आपको किसी काम से फायदा होता है और किसी से नहीं भी होता है क्यों ? 

आपको किसी एक शहर में लाभ होता है तो दूसरे शहर में लाभ नहीं होता है क्यों ?

आप कोई एक सब्जेक्ट पढ़ते हैं उसमें सफल होते हैं तो किसी दूसरे  में नहीं ?

कुछ बच्चे किसी एक सब्जेक्ट में सफल होते हैं तो दूसरे में नहीं क्यों ?


 

उस समय पर विवाह किया जाना आवश्यक होता है 

 

जिस समय जिससे विवाह हो उसी समय उसी स्त्री पुरुष से वैवाहिक सुख मिले यह उत्तम विवाह योग माना जाता है | 

मित्र मिलते और छूटते क्यों

   प्रत्येक व्यक्ति की सोच उसके समय के अनुशार बनती बिगड़ती रहती है |जबतक  किन्हीं दो लोगों का समय एक जैसा चल रहा होता है तब उन दोनों की सोच एक जैसी रहती है  

माता पिता भाई बहन पति पत्नी मित्र परिवार रिस्तेदार आदि जिन संबंधियों के व्यवहार से हम दुखी होते हैं अक्सर उन्हें दोषी सिद्ध करने लगते हैं ,किंतु इसका मतलब ये नहीं कि वे गलत ही हों !हो सकता हैकि हमारे भाग्य में उनसे सुख पाना लिखा ही न हो  इसलिए उनके द्वारा किया गया सहयोग भी हमें दुःख देता है |हमें किस संबध से हमें सुख मिलेगा और किससे दुःख यह जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

 

धों से हमें दुःख मिलता है संभव है वे गलत न भी हों अपितु बहुत अच्छे हों हमें सुख भी पहुँचाना चाहते हों किंतु चाहकर भी वे  हमें इसलिए सुख नहीं दे पा रहे होते हैं क्योंकि उनसे सुख प्राप्त होना हमारे भाग्य में है ही नहीं !

को दिल्ली में भीषण तूफान आने की भविष्यवाणी मौसम वैज्ञानिकों की सुनकर उस दिन स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए ,किंतु तूफ़ान नहीं आया ?ये गलती मौसम विज्ञान की है या मौसम वैज्ञानिकों की ? यदि वास्तव में मौसम का कोई विज्ञान भी है तो ऐसा क्यों हुआ ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 भूकंप आने का तर्कपूर्ण प्रमाणित कारण पृथ्वी के अंदर है या बाहर ? यदि पृथ्वी के अंदर है तो उसका परीक्षण कैसे किया गया ?यह केवल  कल्पना ही तो नहीं है कि ऐसा होता होगा ! कोरी कल्पनाओं पर इतना बड़ा विश्वास किस आधार पर कर लिया जाए ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

भूकंप संबंधी  वैज्ञानिक अनुसंधानों से निकलता ऐसा क्या है जिससे  भूकंपों से होने वाली जनधन हानि को कम किया जा सका हो ?कितने भूकंपों का पूर्वानुमान लगाया जा सका है ? इसके अतिरिक्त अनुसंधानों की भूमिका क्या है ?भूकंपविज्ञान का योगदान आखिर क्या है? seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

ज्योतिषियों की झूठी भविष्यवाणियों का कारण :BHU जैसे विश्व विद्यालयों से ज्योतिष सब्जेक्ट में पीएचडी करके लोग सही भविष्यवाणियाँ करने लायक हो पाते हैं | किसी ज्योतिषी की डिग्री देखे बिना उसपर विश्वास करने वाले लोग दोषीलोग ज्योतिषविद्या  को दोष क्यों देते हैं ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 

ज्योतिषियों की भविष्यवाणियाँ :अपने बच्चों को ज्योतिष कोई पढ़ाना नहीं चाहता तो पढ़े लिखे ज्योतिषी मिलें कहाँ से ?इसमें ज्योतिषशास्त्र का क्या दोष ?अनपढ़ ज्योतिषियों से भविष्य पूछने वाले ज्योतिष को दोष क्यों देते हैं ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/


 

 कृषिकार्यों के लिए दीर्घावधि मौसमपूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है ! इसके लिए कोई विज्ञान न होने से ये प्रायः गलत निकलते हैं !कृषिकार्यों की दृष्टि से ऐसे पूर्वानुमानों की उपयोगिता क्या है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

वैज्ञानिकों के द्वारा की जाने वाली मौसम भविष्यवाणियों को इन तीन में से क्या कहा जा सकता है ? मौसम भविष्यवाणी ! मौसमपूर्वानुमान ! मौसम तीर तुक्का !seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

अलनीनों लानिना के अनुशार की गई भविष्यवाणियाँ प्रायः गलत निकलती हैं |कहीं ऐसा तो नहीं है कि मौसमविज्ञान न होने के कारण ऐसी निराधार कल्पनाएँ कर ली गई हों ? seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

ज्योतिषियों की भविष्यवाणियाँ गलत निकलें तो अंध विश्वास और वैज्ञानिकों की गलत निकलें तो विज्ञान !ऐसा क्यों?आखिर वैज्ञानिकों के पास भविष्यवाणी करने के लिए विज्ञान कहाँ है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

 जो साधन संपन्न लोग चिकित्सकों के हाथों में पैदा हुए उन्हीं हाथों में पले बढे, जैसा चिकित्सकों ने कहा वैसा किया जो खिलाया वो खाया जैसे रखा वैसे रहे फिर भी वे  संक्रमित हुए क्यों ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

महामारीविज्ञान :महामारी के पहले पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका !महामारी आने के बाद उसे ,उसके लक्षण उसकी प्रकृति समझने का समय नहीं था तो महामारीविज्ञान से समाज को लाभ क्या मिला ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 किसी रोग की चिकित्सा करने के लिए पहले उस रोग को समझना आवश्यक होता है |कोरोना महामारी तो महारोग है इसे समझे बिना इसकी औषधि बना लेने का दावा करने का  वैज्ञानिक आधार क्या है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

 बादलों एवं तूफानों को उपग्रहों रडारों की मदद से देखकर उनकी गति और दिशा के आधार पर ये कब कहाँ पहुँचेंगे इसका अंदाजा लगा लिया जाता है !हवा का रुख बदलते ही यह गलत हो जाता है !इसमें विज्ञान की भूमिका क्या है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 महामारी के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते रहे गलत क्यों निकलते रहे ? क्या पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान नहीं है ?

मौसम पूर्वानुमान लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है | मौसमसंबंधी घटनाओं को उपग्रहों रडारों में देख देखकर बताए जाने में विज्ञान का उपयोग कहाँ है ? 

अलनीनों के आधार पर15 वर्षों में जो भविष्यवाणियाँ की गईं वे आधी सही और आधी गलत निकलीं !मौसम पर अलनीनों का प्रभाव होता भी है या नहीं इसका पता कैसे लगाया जाए ?

जलवायु परिवर्तन का मतलब क्या ?वैज्ञानिक जो मौसम पूर्वानुमान लगावें वे सही निकलें तो मौसम पूर्वानुमान और गलत निकलें तो  जलवायु परिवर्तन !या कुछ और ?

महामारी के स्वरूप परिवर्तन का मतलब क्या ?परिवर्तन तो प्रकृति के प्रत्येक कण में प्रतिपल हो रहा है !इसमें अलग क्या है ? 

 जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी आने से पहले महामारी के विषय में पूर्वानुमान  लगाया जा सका उनकी मनुष्यजीवन में भूमिका क्या है ?यदि वे न किए जाएँ तो इससे अधिक नुक्सान और क्या हो सकता है ?

महामारी के समय साधन संपन्न थे वे अधिक संक्रमित हुए जबकि गरीब लोग कम ये कोरोना नियमों का पालन भी नहीं कर पाते रहे !आधे आधे पेट खाकर सो जाने वाले बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का कारण क्या है ? 

 महामारी आने के पहले वैज्ञानिकों को उसके आने के विषय में पता नहीं था आने के बाद लोग अचानक भारी  संख्या संक्रमित होने और मरने लगे !अभी तक हुए अनुसंधानों से समाज को लाभ क्या हुआ ? 

भूकंपवैज्ञानिक मतलब क्या ? भूकंप के विषय में पूर्वानुमान लगा नहीं सकते,भूकंप आने के बाद वैज्ञानिकों की भूमिका क्या है ? ऐसा भूकंप विज्ञान समाज के किस काम का ?

महामारी के समय इतने अधिक भूकंप जितने पहले नहीं आते थे !इन वर्षों में ऐसा होने का कारण क्या रहा होगा ?

1864 में चक्रवात तथा 1866 और 1871 के अकाल के बाद 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।इन डेढ़ सौ वर्षों के वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता को क्या मदद मिली ?

वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना जैसी महामारियों के  विषय में पूर्वानुमान लगाया जा  सकता है या नहीं !यदि लगाया जा सकता है तो लगाया क्यों नहीं जा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकल गए और  लगाया जा सकता है तो लगाया क्यों जाता रहा ?

 


 

 

वो किस विज्ञान के आधार उसके लिए विज्ञान कौन सा है क लोग जो पूर्वानुमान लगाते रहे वो किस विज्ञान

री को वैज्ञानिक

कहाँ हैं ?

    जीवन को पीड़ित करने वाली असंख्य समस्याएँ हैं उनमें से कुछ समस्याओं के समाधान वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा खोजे जा रहे हैं| समाधान के नाम पर जो जो कुछ  रहा है उसमें विज्ञान की भूमिका कितनी है |यह सोचे  आवश्यकता है | समस्याओं का पैदा होना और बढ़ना कैसे बंद हो !इसे उद्देश्य बनाकर अनुसंधान किए जाने चाहिए | समस्याओं के पैदा होने पर नियंत्रण किए बिना हम मनुष्यजीवन को स्वस्थ सुखी और समृद्ध नहीं बना सकते हैं |समस्याएँ बढ़ती जाएँ और हम समाधान खोजने के नाम पर समस्याओं का पीछा करने में लगे रहें इसे समस्याओं का समाधान करना कैसे माना जा सकता है|आवश्यक तो यह है कि समस्याएँ पैदा ही न  होने दी जाएँ और पैदा हों तो बढ़ने न दी जाएँ और बढ़ जाएँ तो उन्हें रोकने की व्यवस्था तुरंत हो या उनसे बचाव के लिए प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके रखी जाएँ |
     आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जब इतना अधिक विकसित नहीं था तब लोग पहले रोगी होते थे उसके बाद उन रोगियों की चिकित्सा की जाती थी |इसके बाद लोग रोगी न हों या कम से कम रोगी हों इस उद्देश्य से बचपन से ही टीके लगाए जाने लगे किंतु अस्पतालों में भीड़ें तो अब भी लगी हुई है| रोगियों की संख्या बढ़ती देखकर अस्पतालों की संख्या बढ़ाते जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है यह तो वैकल्पिक व्यवस्था मात्र है | जिससे लोग कम से कम रोगी हों उस प्रकार के अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है |
     कोई अपराधी यदि किसी की हत्या कर देता है तो जो मर जाता है उसे किसी न्यायालयीय प्रक्रिया से  पुनर्जीवन दान तो नहीं ही दिया जा सकता है|वैसे भी न्याय और अन्याय का निर्णय तो कानून निर्माता ही कर सकते हैं | राजा यदि  अपराधी हो तो वो अपराध पोषक कानूनों का निर्माण कर सकता है ये उसका विशेषाधिकार है | रावण ने अपनी  प्रजा से कहा ही था कि अपने धर्म की रक्षा करो !लोगों ने  पूछा कि अपना धर्म क्या है तो कहने लगा दूसरों का धन  एवं दूसरों की स्त्रियों का  शील  हरण करना ही अपना धर्म है !किंतु ऐसे प्रयत्नों से समस्या का समाधान कैसे संभव है | इसलिए अपराधों की बढ़ती संख्या देखकर पुलिस बल बढ़ाते जाना या न्यायालयों की संख्या बढ़ाते जाना सरकारों का काम है किंतु यह समस्या  समाधान नहीं है | यह तो काम चलाऊ व्यवस्था है |ऐसा तभी तक किया जाना उचित होगा जब तक समस्याओं का समाधान नहीं है| समस्याओं का समाधान खोजने की वास्तविक जिम्मेदारी तो वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की है |जिनपर समाज में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी है|
    मौसम संबंधी उपग्रहों रडारों की संख्या बढ़ाना  एक काम चलातू जुगाड़मात्र है|जिससे आकाशस्थ आँधी तूफानों या बादलों को देखकर तात्कालिक घटनाओं की गति और दिशा का तब तक अंदाजा लगाया जा सकता है जब तक वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसी घटनाओं का कोई स्थाई समाधान न खोजा जा सके | इस काम चलातू जुगाड़ के भरोसे कब तक जीवन जिया जाएगा !इसका स्थाई समाधान तो खोजना ही पड़ेगा |जिन प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित होकर  लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जिस भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी ,वैसी प्राकृतिक आपदाएँ अभी भी घटित होती हैं तो उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना अभी भी संभव नहीं हो  पाया है |     
     कोरोनामहामारी को  ही देखा जाए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की अपेक्षा इतनी ही रही है कि महामारी आने के पहले ये पता लगा लिया जाता कि इतनी बड़ी महामारी आने वाली है| महामारी कब समाप्त होगी ये इसका ही पूर्वानुमान लगा लिया जाता !महामारी की किसी लहर के आने और जाने के विषय में कोई सही पूर्वानुमान लगाया जा सका होता! महामारी का स्वभाव प्रभाव विस्तार अंतर्गम्यता आदि कुछ तो पता लगाया गया होता | कुल मिलाकर महामारी से जूझते समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों से  कुछ तो ऐसी मदद पहुँचाई जा सकी होती, जिसके विषय में ये कहा जा सका होता कि यदि वैज्ञानिक अनुसंधान न हुए होते तो समाज को इस इस प्रकार से इतना नुक्सान और अधिक  उठाना पड़ सकता था | समाज को तो अपनी समस्या का समाधान चाहिए था उसे  इस बात से क्या लेना  देना है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है या नहीं !
      बाढ़ एक ऐसी बड़ी समस्या है जिसमें जनधन का नुक्सान तुरंत  होने लगता है| ये नुक्सान न हो या कम से कम हो या इससे कारगर बचाव कैसे हो, इसकी प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके कैसे रखी जाएँ !वह खोजे जाने की आवश्यकता  है | यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसा कुछ न खोजा जा सके जिससे बाढ़ से जूझते समाज को कुछ मदद न मिल सके और बाद में बताया जाए कि ये बाढ़ जलवायुपरिवर्तन के कारण आई थी ! इससे बाढ़ पीड़ित समाज को क्या मदद मिल पाएगी !
    इसी प्रकार से बाढ़ आने का कारण क्या था ? जलवायुपरिवर्तन होता है या नहीं ! उसका वर्षा और बाढ़ पर कुछ प्रभाव पड़ता है या नहीं ! ऐसी बातें अनुसंधानकर्ताओं के अपने काम की हो सकती हैं किंतु  इनसे बाढ़ पीड़ित समाज का हित या अहित नहीं हो रहा है |समाज का नुक्सान तो अचानक  बाढ़ आने से होता है | वैज्ञानिक अनुसंधानों की मदद से यदि वो जनधन का नुक्सान न होने पावे तो समाज की दृष्टि में वे अनुसंधान सार्थक माने जाएँगे |वैज्ञानिकों को यह सोचना पड़ेगा कि समाज का लक्ष्य बाढ़ को रोकना या बाढ़ आने का कारण जानना न होकर अपितु बाढ़ के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता करना होता है !बाढ़ के विषय में किए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की इतनी ही  अपेक्षा होती है |   
    भूकंप आते हैं तो उसमें समाज की समस्या भूकंपों का आना नहीं है और उसका उद्देश्य भूकंपों को आने से रोकना भी नहीं है |भूकंपों के आने  का कारण जानने में जनता की  कोई रुचि नहीं होती है | वैसे भी भूकंप आने का निश्चित कारण किसी को पता भी  नहीं हो सकता है क्योंकि यह धरती का आतंरिक मामला है जहाँ तक किसी का पहुँचना संभव ही नहीं है| समाज तो भूकंपों के आने से पहले भूकंपों के आने के विषय में केवल पूर्वानुमान जानना चाहता है ताकि वह अपने जनधन की सुरक्षा के लिए प्रयत्न कर सके | ऐसे पूर्वानुमान बताए जा सकें तब तो भूकंप विज्ञान जनता के काम का होता है |
     इस दृष्टि से देखा जाए तो समाज की जो समस्याएँ हैं उनके समाधान खोजना ही अनुसंधानों का उद्देश्य होना चाहिए है | वे समस्याएँ घटित क्यों होती हैं ?ऐसा होने के पीछे का कारण क्या है ? समाज के लिए यह आवश्यक नहीं है | यह जानकारी वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधानों की दृष्टि से उपयोगी हो सकती है | समाज तो केवल अपनी समस्याओं  का समाधान ही चाहता है | इसलिए समाज को समस्याओं से मुक्ति कैसे मिले इस पर बिचार किया जाना चाहिए !
 
                                        वैज्ञानिकता की आवश्यकता और पहुँच !
 
     हमें यह सच्चाई भी समझनी होगी कि जो समाज वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च की जाने वाली धनराशि का भार स्वयं वाहन करता है| वो इसीलिए करता है कि महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से समाज जब जूझ रहा होगा !उस समय ऐसे अनुसंधान उसके काम आवें | इसलिए ऐसे समय में जनता बड़ी आशाभरी निगाहों से अपने वैज्ञानिकों की ओर ताक रही होती है |हैरान परेशान जनता  अपने  प्राणों की रक्षा के लिए जब अपने प्रिय वैज्ञानिकों को मदद के लिए पुकार रही होती है  !उस समय वह जानना चाहती है कि इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा आने के के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा पहले क्यों नहीं बताया गया ?ऐसे कठिन समय में वैज्ञानिकों का यह कह देना कितना उचित होगा कि जलवायुपरिवर्तन हो  रहा है |इसलिए हम नहीं बता पाए !ऐसे ही महामारी से जूझता समाज जब वैज्ञानिकों से पूछेगा कि भैया इतनी बड़ी महामारी आने वाली थी तो आप पहले से बता देते | महामारी की बार बार लहरें आ रही हैं |पैसे पास नहीं हैं,राशन नहीं है , दवा  नहीं है |मन घबड़ा रहा है |ऐसी स्थिति आखिर कब तक रहेगी !ऐसे संकट के समय में समाज से यह कह देना कितना उचित होगा कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है इस कारण कुछ नहीं बताया जा सका | इस प्राकृतिक घटनाओं को रोकना जनता के बश में नहीं है | इसलिए जलवायुपरिवर्तन आदि प्राकृतिक घटनाओं की शिकायत जनता से  नहीं की जा सकती है | वे तो  घटित होंगी ही तभी तो अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ी | प्रकृति  के प्रत्येक कण में परिवर्तन तो हर  युग में ही होते रहे हैं |जलवायुपरिवर्तन आदि होने में नया क्या है !उस बदलते क्रम को  समझकर उसके  अनुशार ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना ही तो अनुसंधान कर्ताओं की जिम्मेदारी है |इसलिए हर हाल में  वैज्ञानिक अनुसंधानों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए जनता की अपेक्षाओं पर तो खरा  उतरना ही होगा | 
    कुलमिलाकर जनता की आवश्यकताओं अपेक्षाओं को गंभीरता से समझना होगा !उन अपेक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरने के लिए काम भी आत्मीयता पूर्वक ही करना होगा | अनुसंधानों पर खर्च की जाने वाली धनराशि उसी जनता के द्वारा अपने खून पसीने की कठिन कमाई से टैक्स के रूप में  सरकारों को दी जाती है |जिसके पाई पाई और पल पल का हिसाब देना सरकारों का कर्तव्य होता है | इसलिए ऐसे विषयों में सरकारें भी विशेष सावधानी बरतती हैं | 
    जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाएँ यदि घटित हो भी रही हों तो उन्हें सम्मिलित करते हुए अनुसंधान करना तो जनहित में वैज्ञानिकों का कर्तव्य है | जनता को तो महामारी या प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान चाहिए ! देश की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन सैनिकों  को एक बार दे दी जाती  है |इसके बाद आँधीतूफ़ान ,बाढ़,बज्रपात ,भूकंप या महामारी ही क्यों न आ जाए फिर भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह सैनिक स्वयं ही प्रयत्न पूर्वक किया करते हैं |जिससे हर परिस्थिति में देश की सीमाएँ सुरक्षित बनी  रहती हैं | इसके  लिए  वहाँ उन्हें प्रत्येक प्राकृतिक या  मनुष्यकृत परिस्थिति से स्वयं ही निपटना पड़ता है|ऐसे परिवर्तन तो वहाँ भी होते हैं जो उन्हें उनके लक्ष्य से भटका सकते हैं ,किंतु वे सैनिक कभी ऐसी शिकायत नहीं करते कि शत्रु सैनिकों ने लड़ने के तरीके में  बदलाव कर लिया है | इसलिए देश की सीमाएँ सुरक्षित नहीं रखी जा सकीं | ऐसे  ही जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाओं से एवं उसके प्रभाव से जनता परिचित  नहीं है | जनता  होने वाले नुक्सान से परिचित होती है | वो उसी से अपना बचाव चाहती है | इसके लिए उसे ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान जानना आवश्यक होता है वह उसे मिलना ही चाहिए | ये उसका अधिकार है | 
     ऐसे संकट के समय जनता से यह कह देना पर्याप्त नहीं होगा कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा बहुत कुछ खोजा चुका है |हम चंद्रमा पर पहुँचने की सफलता या कंप्यूटर मोबाइल आदि विभिन्न  प्रकार की वैज्ञानिक सफलताओं को गिनाकर इस जिम्मेदारी से नहीं बचा जा सकता है कि महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से  जनधन हानि का  रोका जाना तो संभव  हुआ ही नहीं है |उन घटनाओं का पूर्वानुमान भी नहीं लगाया सकता है |      इसलिए वैज्ञानिक उन्नतियाँ गिनाकर उन जिम्मेदारियों से बचा नहीं जा सकता है जनता जिनसे जूझ रही  होती है |वैज्ञानिक अनुसंधानों की प्राथमिकता जनता  के जीवन को सुरक्षित रखने की होनी चाहिए | जीवन बचेगा तभी तो आविष्कारों  सदुपयोग होगा |

 

      महामारी भूकंप चक्रवात बज्रपात बाढ़ आदि घटनाओं के घटित होने का अभी तक न निश्चित कारण खोजा जा सका है और न ही निवारण अर्थात बचाव ! इसलिए ऐसी आपदाओं से पीड़ित समाज की मदद करना विज्ञान जगत के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है |

वैज्ञानिक अनुसंधानों की गंभीरता 

      किसी भी समस्या का प्रभावी समाधान उस समस्या के अनुरूप ही करना होगा | ये सभी को  पता है कि  मृत्यु और विनाश बिना बुलाए तथा बिना बताए ही आते हैं | अत्यंत वेग  से अचानक आक्रमण करने वाली महामारी भूकंप चक्रवात बज्रपात बाढ़ जैसी समस्याओं की शुरुआत ही जनधन हानि से होती है |इनके शुरू होते ही तेजी से लोग मृत्यु को प्राप्त हो रहे होते हैं | ऐसे संकट के समय में जब जनता को पल पल प्राणों पर खेलना पड़ रहा होता है| उस समय जनता को अपने  वैज्ञानिकों से तुरंत मदद की अपेक्षा होती है | अभी तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर यह कहा जा सकता कि इतनी बड़ी समस्या का समाधान तुरंत खोज पाना संभव नहीं होता है |

        ऐसी महामारियों या आपदाओं की शुरुआत ही जनधन हानि से होती है |इनसे जनधन हानि होते देखकर ही यह अंदाजा लग पाता है कि अब महामारी या प्राकृतिक आपदा आ गई है | इनके पहले झटके में ही बहुत बड़ा नुक्सान हो जाता है | जिसे रोका जाना उस समय तुरंत किए गए प्रयासों के द्वारा संभव नहीं हो पाता है |ऐसी भयंकर हिंसक घटनाएँ  एक बार जब घटित होनी शुरू हो जाती हैं और उनसे जनधन हानि होने ही लगती है | उस समय वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका कुछ बचती ही नहीं है | उसके बाद तो आपदा प्रबंधन वाले अपनी  जिम्मेदारी सँभाल ही लेते हैं |इतनी तेजी से अचानक आक्रमण करने वाली भयंकर प्राकृतिक आपदाओं का  सामना इतने कम समय में तैयार किए गए सामान्य जुगाड़ों के आधार पर कैसे किया जा  सकता है | सही पूर्वानुमान  पता लगे बिना सरकारें चाहकर भी जनधन हानि को कम करने में सक्षम नहीं होंगी | इसके बिना सुरक्षा के लिए पहले से तैयारियाँ करके कैसे रखी जा सकती हैं |

      ऐसे समय में समाज को कोई मदद तभी पहुँचाई जा सकती है| जब इनसे बचाव के लिए अत्यंत मजबूत तैयारियाँ पहले से करके रखी गई हों |ऐसा किया जाना तभी संभव है जब इनके घटित होने की संभावना के  विषय में  पहले से पता हो |ऐसी कोई वैज्ञानिक पद्धति नहीं है | जिसके द्वारा  भविष्य को देखना संभव हो |मेरी जानकारी के अनुशार अभी तक  ऐसा कोई विज्ञान नहीं है, जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो | जब भविष्य को देखने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है तब भविष्य संबंधी घटनाओं के  विषय में  पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी  कैसे की जा सकती है ?अनुसंधान करने के लिए भी तो विज्ञान का होना आवश्यक है | उसके बिना ऐसा किया जाना कैसे संभव है | यही कारण है कि इतने बड़े बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान लगातार चलते रहने के बाद भी भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बाढ़ जैसी हिंसक प्राकृतिक घटनाओं एवं कोरोना जैसी हिंसक महामारियों के विषय में  पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | 

     ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाने के लिए सरकारें जिन वैज्ञानिकों पर आश्रित होती हैं | उन वैज्ञानिकों के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं,महामारियों या उनकी बार बार आने जाने वाली लहरों के विषय में लगाए जाते रहे पूर्वानुमान यदि गलत ही निकलते रहेंगे तो उनके आधार पर इतने बड़े बड़े संकटों का सामना किया जाना कैसे संभव है |

                  विज्ञान के अभाव में प्राकृतिक आपदाओं  बढ़ता प्रभाव !

      समाज को भी यह सच्चाई समझनी होगी कि भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बाढ़ जैसी हिंसक प्राकृतिक घटनाओं या कोरोना जैसी महामारियों के हमलों से तब तक समाज को स्वयं ही जूझना पड़ेगा जब तक ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक पद्धति खोज नहीं ली जाती है| समाज को यह भी बता दिया जाना उचित ही होगा कि ऐसी किसी वैज्ञानिक पद्धति का इतनी जल्दी खोज लिया जाना संभव भी नहीं है |

    वस्तुतः  पूर्वानुमान लगाने लायक ऐसी कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजने में कितना समय लग सकता है | ये अभी से बता पाना इसलिए भी संभव नहीं है ,क्योंकि 1864 में एक चक्रवात कलकत्ते में आया था और 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था | इनमें बड़ी जनधन हानि हुई थी | इससे चिंतित होकर ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाने के उद्देश्य से 15 जनवरी 1875 में भारतीयमौसमविज्ञानविभाग की स्थापना की गई थी,तभी से अनुसंधान करते करते लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीतने जा रहे हैं कितने सौ वर्ष और लगेंगे तब ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान खोजा जा सकेगा, इसका अंदाजा  विगत डेढ़ सौ वर्षों की मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के आधार पर लगाया जा  सकता है | उदाहरण के लिए पिछले दस वर्षों की मौसम संबंधी घटनाओं एवं उनके विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा लाए गए पूर्वानुमानों की सच्चाई के आधार पर लगाया जा सकता है | 

      इसी प्रकार से  कोरोना महामारी के समय  विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार कहा जाता रहा है -"कोरोना महामारी के पैदा होने में एवं उसकी लहरें आने जाने में मौसम भी कारण हो सकता है |" इसलिए महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में  पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होगा |बताया जाता है कि इसी उद्देश्य से महामारी संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों को करने की प्रक्रिया में उन्हीं  मौसमवैज्ञानिकों को भी सम्मिलित किया गया है जिनके द्वारा अभी तक मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाए जाते रहे हैं उन पूर्वानुमानों में सच्चाई का अनुपात बहुत कम है | जिससे समाज सुपरिचित है |मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले मौसमसंबंधी पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सही निकलते रहे हैं उतने प्रतिशत उनके अनुभवों का लाभ महामारी संबंधी अनुसंधानों को भी मिल सकता है |ऐसी आशा की जानी चाहिए | उनके द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान कितने प्रतिशत सही निकलते रहे हैं | इसका आकलन करना उचित होगा |

         इतनी बड़ी समस्याओं से बचाव के लिए समस्याएँ पैदा होने से पहले बहुत बड़े स्तर पर तैयारी करके  रखनी होगी |ऐसा किया जाना तभी संभव होगा जब ऐसी घटनाओं के घटित होने से बहुत पहले इनके विषय में पूर्वानुमान पता हो  | भविष्य में झाँकने के लिए अभी तक कोई विज्ञान नहीं है | 




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तब तक जिस किसी भी प्रकार से जितनी भी मदद मिल जाए उतनी ही बहुत है| ऐसा सोचकर जहाँ एक ओर वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व किया सकता है ,वहीं चिंता इस बात की भी होती है कि ऐसी सभी वैज्ञानिक उपलब्धियों का आनंद तभी मिल सकेगा जब जीवन सुरक्षित बचेगा |
     इसलिए वैज्ञानिक आविष्कार वास्तविक प्रशंसा के अधिकारी उसी दिन होंगे जब बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मानव जीवन को सुरक्षित बचाए रखने में सफल होंगे |इसके लिए प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से बचाव की प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके रखनी होंगी !ऐसा किया जाना तभी संभव होगा जब ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में आगे से आगे ऐसे पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित कर ली जाएगी !जो सही भी निकलते सकते हों |मौसम और महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जितने भी अंदाजे लगाए जाते हैं | उनका सही और गलत दोनों ही निकलना संभव है | इसलिए वे इतने विश्वसनीय नहीं होते हैं कि उनके आधार पर आगे से आगे बचाव के लिए पहले से कोई प्रभावी तैयारियाँ किया जाना संभव हो |
 
   
इनके आने का कारण और निवारण अर्थात बचाव खोजना ही विज्ञान का उद्देश्य है |कारण और निवारण खोजना तभी संभव है जब इनके विषय में पहले से
 


 
 विज्ञान अधूरा है !
                                        ज्योतिष के बिना !
 
जीवन कितना स्वाधीन और कितना पराधीन है ! 
 
    मनुष्य दुविधा के साथ जीवन जीने पर मजबूर है | उसे  समझ में नहीं आ रहा है कि प्रकृति या जीवन में जो जो कुछ घटित  हो रहा है वो अपने आप से हो रहा है या मनुष्यों के प्रयासों से उसे करने या फिर उसे रोकने की क्षमता क्या मनुष्यकृत वैज्ञानिक खोजों में है | कई कार्य अच्छे होते देखकर मनुष्यों  को लगता है कि ये कार्य हम मनुष्यों के द्वारा किए  गए हैं |
    इसी समय प्रकृति या जीवन में कुछ बुरी घटनाएँ घटित होने लगती हैं |जिनसे मनुष्यों का नुक्सान होता है | उन्हें मनुष्यकृत वैज्ञानिक अनुसंधानों से रोकने के प्रयास किए जाते हैं किंतु उन्हें रोकना संभव नहीं होता है | 
 
  
 स्वभाववश वो उसका श्रेय(क्रेडिट) लेना चाहता है |उसी समय कुछ   
जीवन की कुछ बड़ी परेशानियाँ हैं
किसी मरने की संभावना वाले व्यक्ति को चिकित्सा के द्वारा क्या जीवित बचाया जा सकता है ?
 
    किसी स्वस्थ न  होने की संभावना वाले रोगी को क्या चिकित्सा के द्वारा स्वस्थ किया जा सकता है |यदि हाँ तब तो ठीक है और यदि नहीं तो चिकित्सा की आवश्यकता ही क्या है ? क्योंकि जिन रोगियों को स्वस्थ होना है वे तो स्वस्थ होंगे ही !ऐसा तो है नहीं कि यदि उनकी चिकित्सा न की जाए तो वे स्वस्थ न होकर अस्वस्थ  ही बने रहेंगे ! यदि वे बिना चिकित्सा के भी
 
और जिनकी मृत्यु नहीं होनी है
 
यदि चिकित्सा के द्वारा इतने उन्नत वैज्ञानिक संसाधन होने के बाद भी जिसे स्वस्थ नहीं होना है वो स्वस्थ नहीं ही होगा और जिसकी मृत्यु होनी है |उस मृत्यु को  चिकित्सा  के द्वारा टाला नहीं जा सकता है | ऐसे में मनुष्यों के स्वास्थ्य पर चिकित्सा का प्रभाव कितना पड़ता है !यह स्वयं में अनुसंधान का विषय है,कि
 
     जिसप्रकार से बिजली से चलने वाली किसी मशीन का मैकेनिक उस मशीन की केवल टूट फूट ही ठीक कर सकता है ,बाकी मशीन का चलना न चलना तो बिजली के आधीन है | बिजली कब आएगी कब जाएगी कब तक रहेगी | ये उस मैकेनिक को पता नहीं होता है |इसीप्रकार से शरीररूपी मशीन के चिकित्सक रूपी मैकेनिक शरीर की टूट फूट ही ठीक कर सकते हैं ,किंतु किसी स्वस्थ व्यक्ति का रोगी होने या किसी रोगी के स्वस्थ होने  एवं किसी के जन्म मृत्यु होने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है |
 
 ऐसे ही किसको कब तक जीना है और किसकी कब मृत्यु होनी है  | ये भी उन्हें पता नहीं  होता है जिस शरीर में जब तक आत्मा रहती है तभी तक वह जीवित रहता है|किस शरीर में आत्मा कब तक रहेगी इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान भी है क्या ?
 
सब कुछ चिकित्सक को नहीं पता होता है | 
 
नहर खुदते देखकर उसमें पानी कब आएगा इसका खोदने वाले मजदूरों को यह नहीं  पता होता कि  

               
 विज्ञान से महामारी पीड़ितों को मदद  मिलनी  कैसे संभव है  ?

     महामारी की चिकित्सा कब खोजी जाएगी ? जब महामारी आ जाएगी !महामारी आने के विषय में पता कब  लगेगा ?जब लोग मरने लगेंगे !अचानक आई महामारी के विषय में वैज्ञानिकों को न रोग पता होगा और न  रोग का स्वभाव कारण आदि !ऐसे में  रोग को ठीक ठीक समझे बिना चिकित्सा कैसे संभव है!इतनी बड़ी  मात्रा में औषधि निर्माणसामग्री जुटाकर इतने कम समय में औषधि बनेगी कैसे और जन जन तक पहुँचेगी कैसे ! महामारी के शुरू होते ही लोग संक्रमित होने और मरने लगते हैं | उतने कम समय में अचानक ये सब करने का समय ही कहाँ मिल पाता  है| इसलिए पहले से सही पूर्वानुमान  पता लगाए बिना महामारी पीड़ितों को विज्ञान से कोई मदद मिलनी कैसे संभव है|यदि  पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान होता तब तो महामारी आने से पहले ही उसके विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज और सरकार को बता दिया गया होता कि महामारी आने वाली है !किंतु जब ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिससे महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो तो फिर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है |

    महामारी आने के विषय में पहले से सही सही पूर्वानुमान पता लगे बिना उससे सुरक्षा के लिए सार्थक प्रयास किया जाना संभव ही नहीं है |ऐसे बड़े संकटों से बचाव के लिए वैज्ञानिकों ने जो और जितने साधन जुटा भी रखे हैं  | उनकी मदद से भी समाज को सुरक्षित बचा पाना तभी संभव है जब महामारी के समय होने वाले रोगों का सही परीक्षण करने एवं औषधिनिर्माण करके  जनजन तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त समय मिले |

 कोई ज्योतिष का सहयोग लिए बिना महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है !

  जिस मनुष्य को सुख सुविधाएँ पहुँचाने के लिए वैज्ञानिक लोग तरह तरह की खोज करने में लगे हुए हैं ,वे खोजें मनुष्य के लिए तभी उपयोगी हो सकती हैं जब मनुष्य सुरक्षित रहे |महामारी हों या भूकंप, बाढ़ हो या बज्रपात, चक्रवात हो या बादल फटने जैसी हिंसक घटनाएँ !ऐसी घटनाएँ शुरू ही नरसंहार से होती हैं |इनके हमले अचानक और इतने तेज होते हैं कि इनसे बचाव करना तो बहुत बड़ी बात है बचाव के  विषय में सोचने का भी समय नहीं मिल पाता है | ऐसी बड़ी हिंसक घटनाओं से बचाव के लिए कोई  तैयारी तुरंत करके सुरक्षा कर ली जाएगी यह तो बिल्कुल असंभव है | इनके घटित होने के विषय में पहले से जितने सटीक पूर्वानुमान पता हों बचाव के लिए उतने प्रभावी प्रयत्न किए जा सकते हैं |
    भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई  विज्ञान नहीं है |ऐसे विशिष्ट विज्ञान के अभाव में कुछ घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़कर अंदाजा लगा लिया जाता है | जैसे कोई ट्रेन इतनी गति से इस लाइन पर जा रही है इसलिए इतने बजे अमुक स्टेशन पर पहुँच जाएगी ! ऐसी ही नहर में छोड़ा गया पानी या किसी नदी में आई बाढ़ इतनी देर में किस शहर में पहुँच जाएगी | इसी प्रकार से कहीं दिखाई देने वाले बादलों आँधी तूफानों की गति और दिशा देखकर ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि कब किस स्थान पर पहुँच सकते हैं | ऐसे अंदाजे प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति या जीवन से जुड़ी भिन्न भिन्न घटनाओं या परिस्थितियों के विषय में लगाया करता है और वे सही गलत निकला करती हैं | इनका आधार कोई तर्कसंगत विज्ञान न होने से ये विश्वसनीय नहीं होते ! इसलिए इन्हें आधार पर कोई विश्वसनीय निर्णय लिया जाना भी उचित नहीं होता है | 
      ऐसी घटनाओं के अंदाजे लगाने के लिए कुछ तीर तुक्के अपनाए जाते हैं जो कुछ घटनाओं के साथ काल्पनिक रूप से जोड़कर तैयार किए जाते हैं |कई बार उन घटनाओं का आपस में कोई संबंध ही नहीं होता |अलनीनो लानिना जैसी घटनाओं के आधार पर की गई भविष्यवाणियाँ सही गलत दोनों निकलती हैं | इसलिए ऐसी समुद्री घटनाओं का मौसम पर कोई असर पड़ता भी है या नहीं इसी को लेकर कोई निश्चित मत नहीं बन पाया है | पड़ने वाले उनके प्रभाव का आकलन अलग से किया जाना संभव ही नहीं है | वे कितने सही होंगे इस विषय में विश्वास पूर्वक कुछ भी कहा जाना संभव नहीं होता है,फिर भी वे यदि सही निकले तो विज्ञान और गलत निकले तो जलवायुपरिवर्तन मानकर काम चला लिया जाता है|मौसम विज्ञान के नाम पर इससे अधिक कुछ है भी नहीं और न ही निकट भविष्य में कोई ऐसी आशा ही की जा सकती है | सुपर कंप्यूर जैसे उपकरण भी तो इन्हीं तीर तुक्कों के आधार पर डेटा विश्लेषण में कुछ मदद करने के अतिरिक्त विज्ञान के अभाव में वे भी कुछ विश्वनीय मदद नहीं सकते हैं |
    ऐसी ही स्थिति  महामारी संबंधित अनुसंधानों की भी है | महामारी के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाए बिना इससे बचाव के लिए कोई तैयारियाँ नहीं की जा सकती हैं | बचाव किया जाना तभी संभव है जब इनके विषय में सही पूर्वानुमान पहले से पता हों | पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान नहीं है |बिना किसी तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार के कुछ तीर तुक्के लगाए जाते हैं | वे जब जितने बार गलत निकलते दीखते हैं उतने बार बार तारीखें बदल बदल कर परोसे जाते हैं ताकि वे कुछ तो सही लगें ही,वे फिर भी सही नहीं निकलते | अपने द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान  सही न निकलना अपनी असफलता है जिसे स्वीकार करने के बजाय तो महामारी का स्वरूप परिवर्तन बता दिया जाता है|ऐसे ही पहले मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है बाद में उसके गलत निकल जाने पर उसे जलवायुपरिवर्तन बता दिया जाता है |
    वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी आशंका बार बार जताई जाती रही है कि महामारी के पैदा होने या घटने बढ़ने का कारण मौसम हो सकता है | यदि ऐसा हुआ भी तो जब मौसम को ही ठीक ठीक समझना और उसके विषय में पूर्वानुमान लगाना ही अभी तक संभव नहीं हो पाया है तो मौसम संबंधी ऐसे नगण्य अनुसंधान महामारी संबंधी अध्ययनों में मदद कैसे कर सकते हैं | 
     कुलमिलाकर ऐसे ढुलमुल वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर अभी तक न तो मौसम संबंधी अनुसंधान किया जाना संभव हो पाया है और न ही महामारी संबंधी,जबकि दोनों ही आवश्यक हैं | ऐसी परिस्थिति में वैश्विक कर्णधारों को इस विषय में बिचार करना चाहिए कि मौसम और महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य समाज की सुरक्षा करने के लिए उनके पास ऐसा क्या है जिससे ऐसी घटनाओं से भविष्य में निपटने की आशा की जा सके | विशेष कर भारत के लिए यह सोचे जाने की आवश्यकता है कि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सन  1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी | लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत जाने के बाद अब यह सोचने का समय आ गया है कि उन उद्देश्यों की पूर्ति में कितनी प्रगति हुई है |
 
 इसीलिए इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना आवश्यक समझा गया | 
 
 लोगों को सोचने समझने  अत्यंत तेजी से अचानक हमला करती हैं,  जीवित बचेगा तभी खोजें उसके काम आ पाएँगी !
                                                                 दो शब्द

       वर्तमानकाल खंड में विज्ञान ने बहुत उन्नति की है इसमें किसी को कोई संशय नहीं है| यात्राओं को सुखप्रद एवं आसान किया है |दूर संचार के क्षेत्र में अद्भुत क्रांति की है |रक्षा क्षेत्र को अधिक मजबूती प्रदान की है |चिकित्सा को अधिक सक्षम एवं सुगम बनाया है |मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी आवश्यक कार्यों की कठिनाई कम की है सुख सुविधाओं को बढ़ाया है |इसीलिए हर किसी को अपने वैज्ञानिक उत्कर्ष पर गर्व होता है |इसी के साथ कुछ चिंताएँ भी हैं जो भूलने लायक नहीं हैं | 

     विचारणीय विषय यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अत्यंत परिश्रम पूर्वक जो सुख सुविधाएँ जुटाई गई हैं या मानवजीवन की जिन समस्याओं के समाधान खोजने के लिए जो परिश्रम किया गया है| उसका लाभ मनुष्यों को तभी मिल सकता है जब जीवन सुरक्षित रहे | जीवित रहकर ही तो मनुष्य उन सुख सुविधाओं का आनंद ले सकता है | यदि मनुष्य ही जीवित नहीं रहेंगे तो इतने सारे सुख संसाधनों का क्या होगा | इसलिए हमारे अनुसंधानों का पहला उद्देश्य मनुष्य जीवन की सुरक्षा होना चाहिए |लोग सुरक्षित बने रहेंगे तो थोड़ी कम सुख सुविधाओं से भी  जीवनयापन कर लिया जाएगा |

      सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि चीन और पकिस्तान के साथ भारत को आज तक जितने भी युद्ध लड़ने पड़े हैं|उनमें उतने लोगों की मृत्यु नहीं हुई है|  जितने कि कोरोना महामारी के समय मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | अस्पतालों से लेकर श्मशानों तक में जगह नहीं थी | गंगा जी में तैरते शव इधर उधर फेंके जाते शव क्या भयावह दृश्य था !कितने लोगों को अपना एवं अपनों का बहुमूल्य जीवन खोना पड़ा है |हमारे अतिप्रिय स्वास्थ्य सैनिकों ने भी मानवता की सेवा में अपना तन मन झोंक दिया है | वे कितने दुखद दृश्य थे |

     व्यक्तिगत तौर पर आज भी जब वह सबकुछ याद आ जाता है तो मैं सो नहीं पाता हूँ|मुझे हमेंशा इस बात की घबड़ाहट लगी रहती है कि महामारी को पार करके हममें से जितने भी लोग सुरक्षित बचकर निकल  पाए हैं |  उनके सुरक्षित बचने का कारण कोई विज्ञान न होकर अपितु महामारी की ही कृपा रही है | उसीने हम लोगों को कृपा पूर्वक जीवित छोड़ दिया है | मनुष्यों पर यह कृपा महामारी कब तक बनाए रखेगी कुछ कहा नहीं जा सकता | वह जब चाहेगी तब मनुष्यों को निगलना पुनः शुरू कर देगी !हो सकता है न भी करे किंतु यह भी उसी की दया भावना होगी इसमें मनुष्यकृत वैज्ञानिक उछलकूद का कोई योगदान नहीं होगा |

     महामारी से संक्रमित होते या मरते लोगों को बचाने में विज्ञान की कैसी भूमिका रही इसका तो महामारी से जूझते लोगों को अत्यंत कटु अनुभव है | वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को यदि कुछ भी मदद मिल सकी होती तो कठिनाई कुछ तो कम होती | ऐसे अनुसंधानों से कोई आशा न करते हुए फिलहाल महामारी के रहमोकरम पर जीवन छोड़ देना ही अधिक उचित है |   ईश्वर का ही सहारा है |

    कितनी चिंता की बात है कि जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा हमें महामारी पर विजय प्राप्त करने या महामारी को पराजित करने या महामारी से अपना बचाव करने के सपने दिखाए जाते रहे उनसे अभी तक ऐसा कुछ भी हासिल नहीं किया जा सका है |जिससे अपना बचाव करना भी संभव हो | कोरोना जैसी महामारी को आए कई वर्ष बीत गए अभी तक उसके विषय में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है | वह मनुष्यकृत है या प्राकृतिक! इसका विस्तार कितना है ! प्रसार माध्यम क्या है! अंतर्गम्यता कितनी है !ऐसे बहुत सारे प्रश्न अभी तक अनुत्तरित बने हुए हैं | महामारी के विषय में  न तो कोई अनुमान पता है और न  ही पूर्वानुमान ! इसी दुविधा से महामारीकाल में भी जनता जूझती रही है |

                                                                 भूमिका

     भारत को शत्रु देशों का सामना करना पड़ता रहा है |इसीलिए देश के दुश्मनों से निपटने के लिए भारत में जब से मजबूत तैयारियाँ करके रखी जाने लगी हैं तब से शत्रु देशों के द्वारा भारत को चोट पहुँचाने के लिए जो भी प्रयत्न किए गए उन्हें विफल करते हुए भारत की सीमाओं एवं नागरिकों को सुरक्षित बचा लिया जाता है | जिस प्रकार से मजबूत तैयारियों के बल पर शत्रु देशों से अपने को सुरक्षित बना रख पाना संभव हुआ है | उसीप्रकार से महामारियों से निपटने की मजबूत तैयारी भी यदि पहले से करके रखी जा सकी होती तब तो महामारी से भी समाज को सुरक्षित बचाकर रखा जा सकता था | ऐसा क्यों नहीं किया जा सका ये प्रश्न सभी के मन में है |

      महामारी से निपटने के लिए क्या कोई मजबूत विज्ञान नहीं है या फिर विज्ञान है किंतु सुयोग्य वैज्ञानिक नहीं हैं |कहीं ऐसा तो नहीं है कि विज्ञान और वैज्ञानिक होने पर भी ऐसे मजबूत अनुसंधान न किए जा सके हों जिनसे महामारी को समझना संभव हो पाता |महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए आर्थिक कमी तो आड़े नहीं आई !जनता ने अपने हिस्से का टैक्स सरकार को क्या समय से नहीं दिया या फिर महामारी संबंधी अनुसंधानों को और अधिक मजबूती से करने के लिए वैज्ञानिकों को सरकार ने समय से संसाधन उपलब्ध नहीं करवाए | आखिर चूक कहाँ रह गई जिसके कारण इतने उन्नत शिखर पर पहुँचा विज्ञान भी महामारी से जूझती जनता की कोई मदद नहीं कर पाया | 

    विज्ञान के द्वारा  महामारी से बचाव किया जाना तो संभव हुआ ही नहीं उसके विषय में कोई ऐसा अनुमान भी नहीं लगाया जा सका जिसका बाद में खंडन न करना पड़ा हो | ऐसा कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका जो सही भी निकला हो ! ऐसी कोई जानकारी नहीं जुटाई जा सकी जिससे महामारी के किसी भी अंश को समझना संभव हो पाया हो | वर्तमान समय का इतना उन्नत विज्ञान समाज के आखिर किस काम आया |

    महामारी का सामना जिस समाज को अपने  प्राणों पर खेलकर करना पड़ा हो ,अपनों का बहुमूल्य जीवन खोना पड़ा  हो !वह इतना बेबश समाज अपनी ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व कैसे करे जिनके रहते हुए  भी उसे अपने अतिप्रिय स्वजनों को तड़पते हुए प्राण त्यागते देखना पड़ा हो | वैज्ञानिक उत्कर्ष के नाम पर गंगा जी में तैरते शवों एवं रेती में बिखरी पड़ी हुई लाशों को कैसे भूला जा सकता  है | ऐसे विज्ञान एवं वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व करते हुए  भविष्य के लिए कैसे भरोसा कर लिया जाए कि इतना  उन्नत विज्ञान भविष्य में आने वाली महामारियों के समय ही समाज की मदद करने में कुछ तो सक्षम होगा |

                                                         जनता की बात

      प्राचीनयुग में आधुनिक विज्ञान के अभाव में महामारियाँ अपने समय से आती और अपने समय से ही जाती रही होंगी!उनसे जो नुक्सान होना होता होगा वो तो होता ही रहा होगा |अपने एवं अपनों के प्राणों पर खेलकर जनता उसे सहती भी रही  होगी | उस समय में भी बहुत लोग संक्रमित होते एवं बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को  प्राप्त होते रहे होंगे | उस समय तो यह सब सहना जनता की मजबूरी रही होगी क्योंकि उसयुग में आधुनिक विज्ञान का जन्म भी नहीं हुआ था | वर्तमानसमय में तो मनुष्य इतना वेबश नहीं है ,फिर भी  इतना उन्नत विज्ञान होने से ऐसा क्या लाभ हुआ जिसके लिए यह कहा जा सके कि महामारी के विषय में यह आधुनिक विज्ञान एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों की उपलब्धि है | जो इनके बिना संभव नहीं थी | 

      उस युग में चूँकि आधुनिक विज्ञान नहीं था | इसलिए टैक्स रूप में जनता से प्राप्त की गई धनराशि भी वैज्ञानिकों एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर नहीं खर्च करनी पड़ती होगी | इसीलिए  जनता को उनसे मदद की कोई अपेक्षा भी नहीं  रहती होगी |संभवतः  उस युग में पाई पाई और पल पल का हिसाब देने वाले पवित्र संकल्पों से बँधी लोकतांत्रिक सरकारें भी नहीं होती रही होंगी! जिनसे जनता के प्रति जवाबदेही संबंधी  जिम्मेदारी निभाने की अपेक्षा की जा सके | |

    वर्तमान समय में परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल चुकी हैं|अब तो विज्ञान इतना उन्नत है |अत्यंत आधुनिक आवश्यक उपकरण भी हैं |जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन भी सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर खर्च करती रही हैं | जनता का धन जहाँ लगता है वहाँ उसका मन भी लगा रहता है | उससे अपेक्षा भी बनी रहती है | जब जिस प्रकार की आपदा से जनता पीड़ित होती है उस प्रकार के अनुसंधानों की ओर जनता बड़ी आशा से देखने लगती है कि ये हमारी मदद करेंगे ,सहारा तो रहता ही है| 

   विशेष बात यह है कि मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं के संकट से जनता जब जूझ रही होती है | उस समय वैज्ञानिकों से मदद की सबसे अधिक आवश्यकता रहती है |ऐसे घनघोर संकट के समय में उन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा जनता को यदि मदद न पहुँचाई जा सके और ये कह दिया जाए कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है तो यह  जनता के साथ धोखा है,क्योंकि जनता ऐसे कठिन समय में उसका कारण नहीं जानना चाहती है अपितु पूर्वानुमान संबंधी मदद की अपेक्षा रखती है | 

    महामारी के समय में भी तो ऐसी ही निरर्थक उछलकूद होती रही बाद में कह दिया गया कि स्वरूप परिवर्तन हो रहा है |क्या हो रहा क्या नहीं वैज्ञानिक होने के नाते यह देखना तो वैज्ञानिकों का काम है | जनता को तो मदद से मतलब ! यह सीधी सी बात समझनी पड़ेगी | आवश्यकता के आधार पर आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी | पाई पाई और पल पल का हिसाब देने के पवित्र संकल्पों से बँधी लोकतांत्रिक सरकारों को अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी | ऐसे विषयों में जनता की आवश्यकता और आपूर्ति के इतने बड़े अंतराल को जितनी जल्दी कम कर सकती हैं | यह सरकार का पवित्र कर्तव्य पालन तो है ही इसके साथ ही साथ पुनीत दायित्व भी है | 

                                                            प्रथमअध्याय 

                           अधूरा विज्ञान बेचारा इतनी बड़ी समस्याओं का सामना कैसे करे !

    प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली विशेष घटनाओं को समझने के लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तो ऐसे विषयों में अनुसंधानों की कल्पना कैसे की जा सकती है|अनुसंधानों के नाम पर जो जो कुछ किया जाता उन क्रियाओं का उन घटनाओं से कोई तर्कसंगत संबंध भी तो सिद्ध होना चाहिए|किसी भी घटना के विषय में अनुसंधान करने के लिए उन घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत वास्तविक  कारण भी तो पता होने चाहिए तब तो उनकी सार्थकता सिद्ध हो | इसके बिना सरकार या समाज ऐसे अनुसंधानों से किसी भी प्रकार की मदद पाने की आशा कैसे करे |

मौसमविज्ञान : मौसमवैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए अभी तक विज्ञान के नाम पर उपग्रह रडार आदि के अतिरिक्त विज्ञान के नाम पर और दूसरा क्या है | उपग्रहों रडारों आदि से बादल या आँधी तूफ़ान दूर से ही दिखाई पड़ जाते हैं |ऐसे में यदि जानना है कि 'वर्षा कब होगी' तो इसका उत्तर है कि जब बादल दिखाई देंगे तभी वर्षा  होगी | बादल कब दिखाई देंगे ये पता नहीं |बस इतना ही तो मौसमविज्ञान है किंतु इसमें विज्ञान जैसा तो कुछ भी नहीं है | ये तो एक जुगाड़ है और जुगाड़ हमेशा सच नहीं होते हैं | यही तो ऐसे अनुसंधानों का अधूरापन है |वस्तुतः पता यह लगाया जाना चाहिए कि बादल कब अर्थात किस किस दिन आएँगे! कितने दिन रहेंगे ! कितना बरसेंगे आदि आदि !मौसम संबंधी  अनुसंधान यह पता लगाने के लिए होने चाहिए !

 भूकंपविज्ञान : भूकंप वैज्ञानिक कब आएगा जब भूमिगत प्लेटें आपस में टकराएँगी |प्लेटें आपस में कब टकराएँगी ?ये पता नहीं ! इतना ही तो भूकंप विज्ञान है |

महामारीविज्ञान :महामारी की चिकित्सा कब खोजी जाएगी जब महामारी आएगी !महामारी आने के विषय में पता कैसे लगेगा ?बड़ी संख्या में लोग जब संक्रमित होने और मरने लगेंगे ! ऐसा कब होगा ?ये पता नहीं !इस प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है और ऐसे विज्ञान या उससे संबंधित अनुसंधानों से लाभ क्या है ?

जलवायुपरिवर्तन का विज्ञान : जलवायुपरिवर्तन किस प्रकार से होता है! कब से होता चला आ रहा है! इसके लक्षण क्या हैं ! इसके कारण क्या हैं !इसका प्रभाव क्या है ?इसे प्रत्यक्ष रूप से समझना एवं इसके विषय में या इसके प्रभाव के विषय में पता लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | जलवायुपरिवर्तन जैसी काल्पनिक किस्से कहानियों का वैज्ञानिकता के साथ कोई संबंध है भी या नहीं इसे विज्ञान संबंधी तार्किक प्रक्रिया से गुजरना अभी तक बाक़ी है फिर भी इसके प्रभाव से भविष्य में बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं के घटित होने की डरावनी भविष्यवाणियाँ की जाने  लगी हैं |इसे रोकने के लिए उपायों पर बिचार करने हेतु वैश्विक स्तर  पर बड़े बड़े सभा सम्मेलन आदि आयोजित किए जा रहे हैं |कहीं कहीं तो सामूहिक प्रयत्न प्रारंभ भी किए जा चुके हैं |  

जलवायुपरिवर्तन है या इसका भ्रम : ये प्रायः प्रमाणित ही है कि मौसम,भूकंप और महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण अभी तक खोजा नहीं जा सका है | इसका करना इसके लिए ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा यह सब कुछ पता लगाया जाना संभव हो !अब ये बेचारे मौसमविज्ञान,भूकंपविज्ञान और महामारीविज्ञान के नाम से प्रसिद्ध  तो हो गए हैं किंतु इनके बश का कुछ नहीं है |नसे ऐसा कुछ भी नहीं निकलता है जिससे ऐसी आपदाओं से पीड़ित समाज को कुछ मदद पहुँचाई जा सके |इनसे संबंधित  विज्ञान के बिना भी काल्पनिक रूप से न केवल अनुसंधान किए जा रहे हैं अपितु इनसे संबंधित भविष्यवाणियाँ भी की जा रही हैं उनके गलत निकलने का कारण संबंधित विज्ञान न होना है जबकि जलवायुपरिवर्तन बताया जा रहा है और जलवायुपरिवर्तन के विषय में कुछ भी नहीं बताया जा सका है |

विज्ञान के बिना पूर्वानुमान कैसे ?

     भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है ?वह मूल कारण पता लगाए बिना इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाए जा सकते हैं ! इसका तर्कसंगत उत्तर खोजने के लिए न कोई विज्ञान है और न ही कोई वैज्ञानिक तर्कसंगत उत्तर दे पा रहे हैं| ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ जब जब घटित होती हैं तब तब विज्ञान के नाम पर वही पुराने किस्से कहानियाँ सुनाने शुरू कर दिए जाते हैं | जिनका  न तो  कोई वैज्ञानिक आधार होता है और न ही ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के समय  जनता को उनसे कोई मदद ही मिल पाती है | वे तो कोरी कल्पनाएँ मात्र होती हैं |  

    इसीलिए वर्षा कब कैसी होगी, मानसून कब आएगा या जाएगा !तापमान कब कैसा रहेगा ! इस विषय में लगाए गए अधिकाँश अंदाजे गलत निकलते रहे हैं | आखिर ऐसे विषयों में आज तक किए गए अनुसंधानों के द्वारा कुछ भी पता लगाया जाना संभव क्यों नहीं हो सका है | अलनीनों लानिना जैसी निराधार कल्पनाओं के आधार पर की गई मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाने का कारण जलवायुपरिवर्तन को बताया जाता है,किंतु जलवायुपरिवर्तन क्या है,कैसे पता लगता है,इसके लक्षण क्या हैं  इसका स्वभाव कैसा है |इस परिवर्तन का क्रम क्या है ये कबसे हो रहा है आदि बातें कोई भी बताने को तैयार नहीं है |

     महामारी को समझने के लिए, उसकी प्रकृति पहचानने के लिए, उसका विस्तार जानने के लिए ,उसका प्रसारमाध्यम एवं अंतर्गम्यता समझने के लिए ,महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए ऐसा कौन सा विज्ञान है जिसके आधार पर ऐसे अनुसंधान किए जा सकते हैं  ! महामारी पर तापमान एवं वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं !कोविडनियमों के पालन का प्रभाव कितना पड़ता है |इसकी खोज जिस विज्ञान के द्वारा की जा सकती हो वह विज्ञान कहाँ है | 

     कुल मिलाकर प्राकृतिक विषयों में आज तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी कौन सी मदद मिल सकी है जिससे प्राकृतिक आपदाओं से कुछ राहत मिलना संभव हो |जो प्राकृतिक आपदाएँ या महामारियाँ जन धन का कितना भी बड़ा नुक्सान कर सकती हैं |उनके विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों से आज तक यह भी पता नहीं लगाया जा सका है कि भूकंप कब और कितने आएँगे,कितने हिंसक होंगे,चक्रवात कब कब कितनी  कितनी  जल्दी आएँगे और कितने हिंसक होंगे !बाढ़ किस किस वर्ष अधिक आएगी !महामारियाँ कब कब आएँगी और कब कितनी हिंसक होंगी ! एक बार आकर वे कितने वर्षों तक रहेंगी ! इनका आपसी अंतराल क्या होगा ?आदि जनहित की दृष्टि से आवश्यक  विषयों में अभी तक के अनुसंधानों के द्वारा कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है |

   कुल मिलाकर प्राकृतिकआपदाओं के विषय में   वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को यदि कोई मदद मिलनी ही नहीं है तथा ऐसी आपदाओं से जूझने एवं जनधन हानि सहने की जिम्मेदारी जनता की ही है तो जनहित में ऐसे अनुसंधानों का औचित्य ही क्या बचता है |

     यह सर्व विदित है कि महामारियाँ अचानक हमला करती हैं जिससे बड़ी संख्या में लोग तुरंत संक्रमित होने और मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | उस समय महामारी को समझने एवं उससे बचाव का रास्ता खोजने का समय कहाँ होता है |ऐसे संकट के समय में तो पहले से करके रखी गई तैयारियाँ ही काम आ पाती हैं |ऐसे समय में निरर्थक वैज्ञानिकी उछलकूद समाज के किस काम की !जब उससे जनता को कोई मदद पहुँचाई जानी संभव ही नहीं है |यदि देखा जाए तो कोरोना के समय पहले से ऐसी कौन सी तैयारियाँ करके रखी गई थीं जिनसे महामारी से जूझती जनता को कुछ ऐसी मदद पहुँचाई जा सकी हो | महामारीकाल में वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी कौन सी मदद मिल पाई है जो अनुसंधानों के बिना संभव न थी | यदि उस प्रकार की मदद न मिली होती तो इससे अधिक और क्या नुक्सान हो सकता था |

                                                              2013 से 2023 तक की घटित हुई मौसम संबंधी घटनाएँ और पूर्वानुमान !

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    'केक' काटकर जन्मदिन मनाने से जीवन बोझ बनता जा रहा है!

     सालगिरा: 'जन्मदिन' को 'सालगिरा' या 'वर्षगाँठ' भी कहा जाता है |साल का अर्थ वर्ष और गिरा का अर्थ ग्रह होता है |सालगिरा का शुद्ध शब्द 'सालग्रह' है | प्रत्येक वर्ष में जन्मदिन पर सालग्रह अर्थात वर्ष भर के ग्रहों का प्रभाव ध्यान में रखते हुए ग्रहों के पूजन करने की परंपरा रही है | ग्रहों का पूजन करने के लिए घी का दीपक जलाया जाता था | उस दीपक और ग्रहों को साक्ष्य मानकर मंगल गीत गाए जाते थे | इसलिए इसे सालग्रह कहा जाता है | 

     वर्षगाँठ : जन्म के समय में आयु का प्रतीक मानकर एक धागा पूजा जाता है | उसी धागे में हर वर्ष मंगलमय वातावरण में एक गाँठ लगाई जाती है |इसीलिए इसे वर्षगाँठ कहते हैं | इस गाँठ के माध्यम से आयु के बीते हुए वर्षों में भविष्य का एक और वर्ष जोड़ा जा रहा होता है | सालगिरा बीते जीवन को भविष्य से जोड़ने का पर्व होता है | 

दीपक जलाना या मोमबत्ती बुझाना :जन्म दिन पर जो वेदपाठ स्वस्तिवाचन मंगल गीत गायन ग्रहों का पूजन आदि होता है उसी के सामने आयु के प्रतीक उस धागे में गाँठ लगाई जाती है |इस कार्य का गवाह वहाँ स्थापित किया दीपक होता है | जो इस मंगलकृत्य की सूचना  सूर्य को देता है सूर्य इसे देवताओं तक पहुँचाता है | ऐसे समय दीपक का जलाया जाना बहुत आवश्यक होता है उस समय मोमबत्ती का बुझाना एक बड़ा अपशकुन होता है | 

     केक काटना :इतने सुंदर अवसर पर इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई छींके न ,कोई तिनका न तोड़े कोई नाखून  न  काटे आदि तोड़ना काटना आदि बिल्कुल रोका गया है | उसी अवसर पर 'केककाटना' बहुत बड़ा आप शकुन होता है | जो आयु के एक एक वर्ष को अलग अलग करता जाता है | यह खंडित जीवन जीने की परंपरा है | यह जन्म समय के मुहूर्त को बिगाड़ने का एक षड्यंत्र है |

नारियल फोड़कर  या फीता काटकर कार्य शुरू करने से होता है बहुत अशुभ !

     कोई भी कार्य शुरू करते समय सबसे पहले शुभ मुहूर्त देखा जाना चाहिए | उसके बाद शुभ प्रक्रिया के द्वारा उसे शुरू करना चाहिए | जिससे वह कार्य सुख शांति पूर्वक सफल होता है |इसीलिए पुराने समय में कोई कार्य प्रारंभ करने के लिए सात्विक रहन सहन पूर्वक शुभ प्रक्रिया अपनाई जाती थी |दीपक जलाकर देवी देवताओं की  पूजा की जाती थी | स्वस्तिवाचन पूर्वक वेद मंत्रों का पाठ किया जाता था | माताएँ मंगल गीत जाती थीं | ऐसे वातावरण में कार्य को प्रारंभ किया जाता था उस समय कोई छींके न कोई किसी से झगड़ा न करे गाली गलौच न करे कोई चीज गिरे न या गिर कर टूटे न | कोई व्यक्ति गिरे न किसी को चोट न लगे आदि शुभ प्रक्रिया अपनाई जाती थी | पूजा में खंडित फूलों फलों का उपयोग नहीं किया जाता था | ऐसी परिस्थिति में जहाँ एक कार्य को जोड़ना प्रारंभ किया जाता है उस समय किसी चीज को तोड़ना फोड़ना काटना आदि उस महूर्त को प्रदूषित करने वाली प्रक्रिया का अनुपालन कैसे उचित माना जा सकता है |

बाबरी मस्जिद टूटनी ही थी ज्योतिष की दृष्टि से - 

     समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो जब जैसा समय चल रहा होता है तब तैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |कोई कार्य जब बिगड़ने का समय आता है तब सभी परिस्थितियाँ बिगड़ने की बनती जाती हैं और जब बनने का समय आता है तब सभी परिस्थितियाँ बनने की चली जाती हैं | विशेष बात यह है कि किसी कार्य के  जब बिगड़ने का समय आता है उससमय कार्य केवल बिगड़ता ही है बनना संभव  नहीं होता !क्योंकि समय बिगड़ने का होता है | यदि आप शारीरिक बल से ,धन बल से या सोर्स सिफारिश के बल से उस बिगड़ने के समय में ही तुरंत कार्य बनाने में लग जाते हैं तो कार्य तमाम रुकावटों के बाद भी वैसा नहीं बन पाता है जैसा आप चाहते हैं और जैसा तैसा बन भी पता है उसे भी एक दिन बिगड़ना ही होता है |चूँकि अयोध्या में श्री राम मंदिर तोड़कर उसी समय मस्जिद बना दी गई थी इसलिए उसे तो टूटना ही था अभी टूटती या सौ वर्षों के बाद भी टूट सकती थी किंतु उसका उसी स्वरूप में रहना संभव नहीं था |ऐसे जितने भी मंदिरों को तोड़कर उसी समय कुछ अन्य प्रकार के निर्माण करवाए दिए गए हैं उन्हें उस स्वरूप में लंबे समय तक रहना संभव नहीं है |इसलिए  उन्हें देर सबेर अपने पुराने स्वरूप में आना ही होगा |उन स्थानों पर मंदिर बनेंगे ही  ये समय का सिद्धांत है | इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जाना ठीक नहीं है |

पाकिस्तान क्या भारत में मिलेगा दोबारा ! 

     कोई भी बँटवारा किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों समूहों देशों आदि के बीच होता है | कोई अकेला व्यक्ति समूह देश आदि अपने से किसी को अलग तो कर सकता है किंतु उस अलगाव को बँटवारा माना जाना संभव नहीं है | भारत वर्ष में विद्रोह हुआ उसमें भारत का एक अंग भारत से अलग हो गया !कोई भी अंग शरीर से अलग हो जाने पर तब तक निर्जीव रहता है जब तक वह लाकर दोबारा जोड़ा नहीं जाता है | इसीलिए निर्जीव पाकिस्तान अभी तक किसी भी मोर्चे पर व्यवस्थित नहीं हो सका है |कटा हुआ अंग जैसे लंबे समय तक फड़कता रहता है पाकिस्तान भी अभी तक फड़क  रहा है | इसमें  भारत से मिलकर ही सजीवता लौटेगी | जिस प्रकार से किसी पेड़ की कोई कलम कहीं दूसरी जगह लगानी होती है तो उसे लगाने का एक समय होता है एक प्रक्रिया होती है तभी वहाँ उस प्रकार का दूसरा पेड़ बनना शुरू हो पाता है |ऐसे ही भारत ने प्रेमपूर्वक यदि अपना कोई अंग अपने से अलग करके  पाकिस्तान के रूप में रोपा होता तब तो इसका आस्तित्व सुरक्षित रह जाता किंतु इतने संघर्ष की आँधी में भारत रूपी वृक्ष की पाकिस्तान रूपी एक शाखा टूटी है | आँधी में टूटी हुई शाखाएँ दूसरी जगह रोपकर वृक्ष नहीं बनाई जा सकती हैं |जिस जगह से शाखा टूटी होती है वहीं से कुछ किल्ले निकलकर उनकी शाखाएँ बनती हैं और बड़ी होकर उस जगह को भर लेती हैं | ऐसे ही भारत रूपी वृक्ष की नवीन शाखाएँ अब पुनः पाककिस्तान को भी छाया देने के लिए अपने में मिला लेना चाहती हैं | जिसे लंबे समय के लिए टाला जाना संभव नहीं है |  जिस प्रकार से बाबरी मस्जिद चूँकि पहले नहीं थी इसलिए बाद में भी नहीं रही पहले वहाँ श्री राममंदिर था इसलिए वहाँ श्री राममंदिर ही बन रहा है !इसीप्रकार से पाकिस्तान पहले नहीं था इसलिए बाद में भी पाकिस्तान नहीं रहेगा |पाकिस्तान के स्थान पर भी भारत ही पहले भी था इसलिए आगे भी वहाँ भारत ही रहेगा |

 

विभिन्न  संबंधित                                                                                    जीवन के लिए उपयोगी बहुत सारे संबंध कुछ संबंध इसका कारण सदाचारिणी कन्या के मन में अपने पूर्व पति की पहचान | सनातन धर्म की मान्यता है कि पति पत्नी का जोड़ा कई जन्मों तक रहता है |अगले जन्म में इन्हें केवल एक दूसरे को पहचानना होता है | दुष्यंत ने शकुंतला को पहचान लिया था !श्रीराम ने सीता जी को पहचान लिया था और सीता जी ने श्री राम जी को पहचान लिया था | वर्तमान समय में भी कुछ चरित्रवान लड़के लड़कियाँ जिनका मन हर किसी लड़की या लड़के के प्रति आकृष्ट नहीं होता है और जिनके प्रति होता है वही उनके पुराने जन्म के पति या पत्नी होते हैं इसलिए इस जन्म में भी उनका आपसी निर्वाह बहुत अच्छा हो जाता है |

 

      
   ज्योतिष वैज्ञानिकों की सेवाओं का मूल्य !
 
   ज्योतिष को पढ़ना बहुत कठिन होता है !सुयोग्य गुरु की चरण शरण में रहकर बारह चौदह वर्षों तक लगातार अत्यंत परिश्रमपूर्वक ज्योतिष पढ़नी होती है |इसके बाद उस पर अनुसंधान  करना होता है|उसी अध्ययन और अनुसंधान  के आधार पर अत्यंत परिश्रम पूर्वक पूर्वानुमान लगाना होता है |एक एक व्यक्ति की एक एक समस्या का अध्ययन करके उसका समाधान खोजने में कई कई दिन लग जाते हैं | उसी के आधार पर भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाना होता है | किसी के जीवन में आने जाने वाली सुख दुःख की विभिन्न परिस्थितियों को समझना आसान नहीं होता !उनका पूर्वानुमान लगाना उससे अधिक कठिन होता है |सुयोग्य ज्योतिषी ईमानदारी पूर्वक यदि ऐसा करके  करके किसी की समस्या के विषय में अनुसंधान  करता है उसका समाधान खोजता है पूर्वानुमान लगाता है तो इससे उसे मिलेगा क्या ?आखिर वो ऐसा क्यों करे!इसके बदले समाज उसे श्रृद्धा से कुछ दे देना चाहता है ,किंतु ज्योतिषी को भी इसी बाजार का सामना करना होता है उसका भी परिवार होता है उसकी भी महत्वाकाँक्षाएँ होती हैं |किए ऐसे व्यक्ति के लिए वह ही अपनी कुर्वानी क्यों करे !वह भी श्रृद्धा पूर्वक कुछ बता देता है जिसे सही निकलना तो संभव नहीं होता वह गलत ही होना होता है | इसके लिए ज्योतिष को गलत कहना कितना उचित है | अब प्रश्न उठता है कि ज्योतिषी का पारिश्रमिक कितना होना चाहिए | इसके तीन प्रकार हैं पहला ज्योतिषी की योग्यता के अनुशार दिया जाए !दूसरा अपनी क्षमता का अनुशार दिया जाए !तीसरा कार्य की महत्ता के अनुशार दिया जाए ! चौथा ज्योतिषी के द्वारा निर्धारित किया गया शुल्क चुकाया जाए |ज्योतिषी की योग्यता के अनुशार दिया जाएगा तो वो प्रसन्नता पूर्वक सही भविष्यवाणी निकालने का प्रयत्न करेगा !ऐसे क्लाइंट को वह भी जाने नहीं देना चाहेगा | अपनी क्षमता का अनुशार देने का मतलब उसकी योग्यता से अधिक दिया जाए |इसके बाद वो हर संभव अच्छा से अच्छा करने का प्रयत्न करेगा | कार्य की महत्ता के अनुशार का मतलब है जो कार्य आपके लिए जितना अधिक आवश्यक हो उतना अधिक धन दिया जाए | जैसे गंभीर रोगी की चिकित्सा कराते समय किया जाता है | जिस कार्य में करोड़ों अरबों के लाभ हानि  संभावना हो उस कार्य के लिए ज्योतिष का पारिश्रमिक देने में दरिद्रता दिखाई जाए ये ठीक नहीं है |किस कार्य को करने में ज्योतिषी को कितना कठिन परिश्रम करना पड़ेगा | इसका अंदाजा न होने के कारण ज्योतिषी के द्वारा निर्धारित किया गया शुल्क ही उसे चुकाया जाए !कुछ लोग सुयोग्य ज्योतिष विद्वानों से अपेक्षा रखते हैं कि वे तो विद्वान हैं ही इसलिए हमें जो कुछ बताएँगे सही ही बताएँगे !ये सच नहीं है | यदि आपकी संपूर्ण संपत्ति का सुख भोगने का अधिकार आपने ज्योतिषी को नहीं दिया है तो ज्योतिषी अपनी विद्यारूपी संपत्ति का सुख भोग किसी  को कैसे कर लेने देगा | समुद्र में कितना भी जल हो घर में भर कर उतना ही लाया जा सकता है जितना बड़ा बर्तन होता है |बिजली कितनी भी हो किंतु प्रकाश उतना ही मिलता है जितने बॉड का बल्ब लगाया जाता है | ऐसे ही ज्योतिषी कितना भी योग्य क्यों न हो उससे लाभ उतना ही उठाया जा सकता है जितना उसे पारिश्रमिक दिया जाता है | कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि हमने तो श्रद्धा से दे दिया है अब ज्योतिषी यदि सही सही नहीं बताएगा तो उसे पाप लगेगा !किंतु यह भ्रम है पाप पुण्य का निर्णय करने वाली शक्तियों से ये छिपा नहीं होता है कि कितने बड़े विद्वान् से कितने बड़े काम के लिए क्या कुछ दिया जा रहा है | उसी के आधार पर वे शक्तियाँ उन दोनों में से किसे पापी मानने का निर्णय लेती हैं यह उनके विवेक पर निर्भर करता है | 
 
भविष्यवाणी सामने
 इसलिए उस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए जितना पारिश्रमिक किया जाना आवश्यक हो वो न कर पाना ज्योतिषी की मजबूरी हो |ऐसी दोनों ही परिस्थितियों के लिए पूछने वाला व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है |
 
 
 उपायों का कितना असर होता है !
    परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए जो उपाय किए जाते हैं उनका प्रभाव कितना होता है |इस प्रश्न का शास्त्रीय उत्तर यह है किउपाय यदि सविधि किया जाता है तो बुरे समय का दुष्प्रभाव 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है | 60 प्रतिशत तब भी सहकर चलना होता है |ऐसी आशा केवल तभी की जा सकती है जब उपाय करने वाला वेद विशेषज्ञ हो | इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में जिसप्रकार से बिना पढ़े लिखे झोला छाप लोग भी आपरेशन कर देते हैं ,वेदविज्ञान के क्षेत्र में भी वही स्थिति है| झोलाछाप चिकित्सकों के द्वारा की गई चिकित्सा से जितना रिस्क होता है | वेदविज्ञान के क्षेत्र में भी ऐसा ही समझा जाना चाहिए |अयोग्य लोगों के द्वारा किए गए उपायों से बुरे समय का दुष्प्रभाव कम होने की आशा कैसे की जा सकती है | 

नग नगीनों यंत्र तंत्र ताबीजों के उपायों का कितना होता है प्रभाव ?
   स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान में नग नगीनों के धारण की कुछ भूमिका हो सकती है| भूत प्रेत संबंधी दोषों में यंत्र तंत्र ताबीजों का कुछ प्रभाव पड़ सकता है किंतु ऐसे साधकों की संख्या बहुत कम है जो ऐसे उपाय करने में सक्षम हों | इसीलिए ऐसे उपायों के चक्कर में फँसकर कई बार लोग अधिक परेशान होते देखे जाते हैं | इस क्षेत्र में विश्वसनीय लोगों की संख्या बहुत कम है | कुछ लोगों ने तो लाल काली पीली किताबों का नाम ले लेकर उपायों के नाम पर न जाने क्या बताना शुरू कर दिया है | जिनका शास्त्र में कहीं कोई वर्णन  नहीं है |इसलिए ऐसे बहमों से दूर रहते हुए या तो स्वतः नियम पूर्वक वेद मंत्रों का जप किया जाए या फिर वेद वैज्ञानिक विद्वानों की सेवाएँ ली जाएँ या फिर सहनशीलता पूर्वक अच्छे समय के आने की प्रतीक्षा की जाए !यही उत्तम है | 

ऐसे उपायों का कितना लाभ होता है ?

     बुरे समय से पीड़ित लोग वैसे ही परेशान होते हैं | ऊपर से उपायों के नाम पर उन्हें बहुत परेशान किया जाता है | कुछ दान करना कुछ पहनना कुछ जलधारा में फेंकना कुछ दरवाजे पर लगाना देहली के नीचे गाड़ना, कुछ का तिलक करना, कोई धागा कमर में बाँधना ,कुछ ऊट  पटांग चीजों का हवन करना आदि ऐसे न जाने कितने आडंबर उपायों के नाम पर बताए और करवाए जाते हैं |पहले से परेशान लोग इनसे और अधिक परेशान हो जाते हैं |ऐसे आडंबरों का न शास्त्र से संबंध है और न ही उसके बुरे समय से  तथा इनसे कुछ लाभ भी नहीं होता है | वह व्यक्ति यदि एक को छोड़कर दूसरे के पास जाए तो वह उससे अधिक वहम डाल देता है | ऐसी स्थिति  में  बुरे समय में ब्यर्थ भटकने से अच्छा है किसी मंत्र का जप स्वयं किया जाए | 


घटित होने का कारण क्या होता है

ये अपने आपसे हो रहा  उसके पीछे



 वास्तु का कितना प्रभाव होता है ! 

  जिस मकान दूकान की जमीन अच्छी होगी वहाँ जो कुछ बनेगा वो अच्छा ही होगा |जिस व्यक्ति का भाग्य और समय अच्छा होगा वो जहाँ  कहीं भी रहेगा वहाँ का वास्तु अच्छा ही होगा |ऐसे लोग जहाँ भी रहते हैं वो जगह यदि अच्छी नहीं भी होती है तो भी उस समय उन्हें फलने लगती है | जिसका जो समय अच्छा होगा उसे समय के प्रभाव से उस समय रहने के लिए अच्छा घर मिल ही जाता है |अधिकाँश उद्योगपति शुरू में गरीब थे | इसीलिए जब वे  किसी महानगर में  गए तो प्रायः  किसी मलिन बस्ती में कोई छोटा कमरा लेकर जिंदगी शुरू की ,जहाँ वास्तु नियमों का  पालन संभव ही नहीं था |उसी कमरे से तरक्की होते होते कोठी बनती है,  बहुत बड़ा व्यापार खड़ा हो जाता है |जीवन में भाग्य और समय ही प्रधान है वास्तु का भी थोड़ा सा प्रभाव होता है |   

गृह निर्माण में समय की भी भूमिका होती है |

    कुछ घर महँगी जगह पर महँगे मैटीरियल से वास्तु के नियमों के अनुशार बहुत अच्छे बनाए गए होते हैं | इसलिए देखने सुनने में बहुत अच्छे लगते भी हैं |ऐसे सुंदर घरों  में से कुछ घर ऐसे भी होते हैं जिनमें रहने वाले लोग प्रायः पारिवारिक कलह, बेचैनी, घबड़ाहट ,स्वास्थ्य खराबी,वैवाहिक जीवन में तनाव एवं संतान होने में कठिनाई जैसी समस्याओं से  घिरे रहते हैं !दुकानों, फैक्ट्रियों, कार्यालयों में भी समस्याएँ चला ही करती हैं | ऐसे भवन छोड़ने का मन नहीं होता है इनमें रहना संभव नहीं होता है |ऐसे घरों का निर्माण शुरू करने के लिए अच्छे समय का ध्यान नहीं रखा गया होता है |'शून्यकाल'में निर्माण शुरू होने के कारण सूनापन ऐसे घरों का स्वभाव होता है | जिसे पता लगाने के लिए ज्योतिष ही एक मात्र विज्ञान है |

मकानों की भी प्राण प्रतिष्ठा होती है !

    जिनके पास पैसे हैं साधन हैं वे कहीं भी कितनी भी बड़ी बिल्डिंग बनाकर कड़ी कर सकते हैं किंतु वह मात्र एक बिल्डिंग होती है घर नहीं ! उसे गोदाम बनाया जा सकता है,उसका कोई अन्य उपयोग हो सकता है,किंतु मनुष्य आदि कोई भी जीवित प्राणी उस घर में तब तक तक सुखी नहीं सकता है ,जब तक कि उसकी प्राण प्रतिष्ठा न की जाय ! जीवित घर में ही जीवित व्यक्ति सुखी रह सकता है | जिस प्रकार से मंदिरों में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है उसी विधि से घरों की भी प्राण प्रतिष्ठा करके उन्हें सजीव बनाया जाता है | उसका प्रत्येक अंग जागृत किया जाता है |इसके बाद उस घर के सुख दुःख के लिए जिम्मेदार एक अधिष्ठातृ देवता होता है |उस घर में तब तक सुख पूर्वक रहा जा सकता है जब तक उस अधिष्ठाता का सम्मान होता रहता है | ऐसे घरों में अचानक रोग नहीं होते !आपत्तियों से बचाव होता है कमाई एवं संग्रह में बढ़ोत्तरी होती है | कोई काम रुकता नहीं है सहयोग की आवश्यकता पड़ने पर लोग अपने आपसे सहयोग करने लगते हैं | बनाया हुआ भोजन कम नहीं पड़ता है | 

 रसोई की भी प्राण प्रतिष्ठा होती है !

      जिन घरों में रसोई की प्राण प्रतिष्ठा की गई है और वह रसोई स्वच्छ एवं पवित्र रखी जाती है |यदि उसमें आलस्य छोड़कर पवित्रता एवं प्रसन्नतापूर्वक पुष्टि भावना से भोजन बनाया जाता है तो ऐसे घरों में रहने वाले लोग रोगी कम होते हैं कलह कम करते हैं एक दूसरे की बात सुनने सहने की भावना से सात्विकता प्रधान जीवन जीते हैं | ऐसे घरों में तिथि त्योहारों में,जन्म दिन या  विवाह आदि उत्सवों में हार्दिक प्रसन्नता का वातावरण होता है |जो लोग ऐसे प्रसन्नता के अवसर अपने उसी घर में मनाते हैं | उसी घर में अच्छे से अच्छा भोजन बनाकर गृह देवता का भोग लगाते हैं वही सुखी रह पाते हैं |कुछ लोग ऐसे त्योहारों या मांगलिक अवसरों पर अपने गृहदेवता  का साथ छोड़कर होटलों में भोजन करने जाते हैं |उनसे गृह देवता भी कुपित होते हैं |अच्छा भोजन करने के लिए यदि होटल हैं तो अपना घर बुरा भोजन करने या मलमूत्र ढोने के लिए ही है क्या ? ऐसे ही प्रसन्नता के क्षण यदि दूसरे घरों में ही मनाना है तो अपना घर केवल दुःख और दरिद्रता मनाने के लिए ही है |गृहदेवता के क्रोध से ऐसे घरों में रहने वाले लोग स्वस्थ और प्रसन्न नहीं रह पाते हैं | 

 प्राण प्रतिष्ठा का मतलब होता है सजीवता !

    जिसप्रकार से देवमूर्तियों में प्राणप्रतिष्ठा की जाती है,उसीप्रकार से जिन जिन प्राकृतिक वस्तुओं को  मानव जीवन के लिए उपयोगी माना जाता है|उनका उपयोग करते समय यदि कोई गलती भी हो जाए तो भी ये प्राणियों के जीवन की सुरक्षा करती रहें | असावधानीबश कुओं तालाबों में कोई गिर जाए तो भी वे कृपापूर्वक जीवन सुरक्षित बचाए रखें | निर्जीव अर्थात जड़ों से ऐसे आत्मीय व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती है | इसलिए अपने आस पास की उपयोगी जड़ वस्तुओं की भी  प्राण प्रतिष्ठा कर ली जाती है ताकि मनुष्यों की गलतियों को क्षमा करते हुए वे भी मदद करती रहें | उनसे भी सहयोग मिलता रहे | इसीअपेक्षा से प्राण प्रतिष्ठा जी जाती है | यदि वे जीवित होंगे तभी तो जीवितों की मजबूरियाँ समझेंगे और मदद कर सकेंगे |इसीलिए  नदियों नहरों बाग़ बगीचों खेतों खलिहानों यहाँ तक कि नदियों पर बने पुलों ,पर्वतों आदि की भी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है| घरों ,गोदामों, शीतगृहों आदि की भी प्राण प्रतिष्ठा इसलिए की जाती है ताकि वे भी मनुष्यों के साथ सजीव व्यवहार करें |वर्तमान समय में मशीनों वाहनों विमानों का पूजन भी इसी उद्देश्य से किया जाता है |

 चिकित्सा हो या ज्योतिष मनुष्य के लिए दोनों आवश्यक हैं !

    जिस प्रकार से किसी कम्प्यूटर के लिए उसके हार्डवेयर सॉफ्टवेयर दोनों महत्त्वपूर्ण होते हैं |सॉफ्टवेयर हार्डवेयर के अंदर ही रहता है।सॉफ्टवेयर में निहित चीजें प्रिंट करने का माध्यम प्रिंटर होता है उसकी बात सुनने का माध्यम स्पीकर होता है | मनुष्य शरीर और उसमें निहित आत्मा मन बुद्धि आदि आंतरिक अंग हैं बोलने के लिए माध्यम मुख है | सुनने के लिए माध्यम कान हैं |स्वस्थ रहने के लिए जितना शरीर के अंगों का स्वस्थ रहना आवश्यक है उतना ही आत्मा मन आदि का स्वस्थ रहना आवश्यक है |कान यदि शरीर का अंग है तो उसमें सुनने की शक्ति आत्मा का अंग है | ऐसे ही मुख शरीर का अंग है तो वाणी आत्मा का अंग है |नेत्र शरीर का अंग हैं तो दृष्टि आत्मा का  अंग है | नाक शरीर का  सूँघने की शक्ति आत्मा का अंग है | शरीर की त्वचा  शरीर की अंग है तो उसके स्पर्श का अनुभवआत्मा का अंग है | जिस प्रकार से आत्मा मन आदि के सुरक्षित रहने पर भी शरीर के नष्ट हो जाने पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है उसी प्रकार से शरीर के सुरक्षित रहने पर भी आत्मा के निकल जाने पर भी जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती | जीवन के लिए शरीर और आत्मा दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं | चिकित्सा के द्वारा  शरीर का परीक्षण करके शरीर की समस्याओं का पता लगाया जा सकता है जबकि ज्योतिष से शरीर आत्मा मन एवं जीवन में घटित होने वाली बनती बिगड़ती परिस्थितियों आदि का परीक्षण किया जाता है |आत्मा एवं उसके व्यवहार और व्यापार को समझना यंत्रविज्ञान या प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा संभव नहीं है |

    इसीलिए किसी व्यक्ति के रोगी होने या दुर्घटना ग्रस्त होने पर चिकित्सक उसका भलीप्रकार से परीक्षण करके रोग का पता लगा लेते हैं उसकी चिकित्सा कर देते हैं यहीं तक उनके बश का होता है | इसके बाद उसका स्वस्थ होना न होना रोगी रहना या मृत्यु को प्राप्त हो जाना ये सब कुछ आत्मा के आधीन होने के नाते इसका पता ज्योतिष के द्वारा ही किया जा सकता है | चिकित्सकों के प्रयासों के विरुद्ध परिणाम आने पर चिकित्सक भी इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं |वे भी इसे कुदरत(आत्मा)की इच्छा मानते हैं |     

    केवल जीवन ही नहीं अपितु जीवन की बनती बिगड़ती सभी परिस्थितियों में भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही पक्ष जिम्मेदार होते हैं | शरीर से प्रयत्न (कर्म)किया जा सकता है किंतु परिणाम तो आत्मा ही देती है | प्रयासों को समझना है तो प्रत्यक्ष को देखना होगा परिणामों का पता लगाना है तो अप्रत्यक्ष को देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि का सहारा लेना होगा | व्यापार के सारे संसाधन जुटाकर व्यापार करना कर्म के आधीन है उसमें विघ्न पड़ना या न पड़ना अथवा सफल असफल होना ये आत्मा (भाग्य)के आधीन है | कई लोग स्वस्थ होने के बाद बार बार व्यापार करके भी सफल नहीं हो पाते हैं तो कई विकलांग लोग भी सामान्य प्रयासों से बड़े बड़े व्यवसाय स्थापित कर लेते हैं |  कई लोग बहुत बड़े मकान बनाकर सुखी नहीं रह पाते हैं तो कुछ लोग झोपड़ियों में रहकर भी आनंदित हैं |साधन संपन्न लोग प्रयत्न पूर्वक मकान बना सकते हैं किंतु उसका आनंद मिलना न मिलना आत्मा का विषय है |  जिसे ज्योतिष के द्वारा ही जाना जा सकता है |

 

 बच्चे गोरे  काले क्यों होते हैं ?


  किसी के बार बार असफल होते रहने का कारण क्या हो सकता है ?

 कुछ विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में सफलता के लिए  विषय बदल बदल कर बार बार परीक्षाएँ देते रहते हैं फिर भी सफल नहीं होते हैं|जीवन भर व्यापार बदलते रहते हैं किंतु सफलता नहीं  मिलती है | बार बार नौकरी बदलते हुए जीवन बिता देते हैं किंतु कहीं संतुष्ट नहीं हो पाते हैं | कुछ नेता लोग पार्टियाँ बदलते बदलते जिंदगी बिता देते हैं किंतु सफल नहीं होते हैं | ऐसे असफल लोग यदि अपनी अपनी असफलता का वास्तविक कारण खोजना चाहें कि आखिर  उन्हीं के साथ ऐसा क्यों हो रहा है ,तो इसके लिए ज्योतिष के अलावा क्या कोई दूसरा भी ऐसा कोई प्रभावी विज्ञान है जिसके द्वारा ऐसे लोगों के लगातार असफल होते रहने का वास्तविक कारण खोजा  जा सके एवं उनके सफल होने के लिए कुछ आवश्यक उचित उपाय किए जा सकें !

विवाह सात जन्मों का संबंध होता है !

   विवाह होने के बाद कुछ लोग अपने वैवाहिक जीवन से इतना अधिक संतुष्ट होते हैं कि उनका मन किसी दूसरे स्त्री पुरुष की ओर भटकता ही नहीं है | ऐसे जोड़े पिछले कई जन्मों से एक दूसरे के पति या पत्नी के रूप में जीवन जीते आ रहे होते हैं | इसीलिए वे एक दूसरे के स्वभाव आदतों आदि से भली भाँति परिचित होते हैं | इसके अलावा जो विवाहित स्त्री पुरुष कलह पूर्ण वैवाहिक जीवन जी रहे  होते हैं या विवाह के बाद भी अवैध संबंधों में भटक रहे होते हैं | इसका मतलब वे अपने पिछले जन्म वाले पति या पत्नी को खोजने में असफल रहे हैं | इसीलिए वे अपने पिछले जन्म के जीवन साथी की तलाश में कुछ दूसरे तीसरे स्त्री पुरुषों के संबंधों में भटकते घूम रहे हैं |पुराने जन्म का जीवन साथी खोजने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान भी है क्या ?

    


इसके लिए उन्हें किस प्रकार कर उसका ऐसा कोई उपाय करना चाहें

 बार बार प्रयत्न करने के बाद भी अपने असफल होते रहने का कारण यदि ऐसे लोग जानना चाहें तो इन्हें किस प्रकार के वैज्ञानिकों से मदद मिल सकती है !ज्योतिष के अलावा क्या कोई दूसरा भी ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा ऐसे लोगों की असफलता का कारण खोजा  जा सके !

 

स्वयं अनुभव करना पड़ता है कि सफलता किस कार्य में किस समय पर मिलेगी !इसमें धन साधन समय आदि लगाना पड़ता है | किसी को अपना भाग्य और सफलता का समय यदि पहले से पता हो तो  उसे ऐसा नहीं करना पड़ेगा !इसके लिए  ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा  विज्ञान नहीं है |

     गाँवों  के कच्चे घरों की दीवारों या जमीनों में कई कम गहरे छेद हो जाते  हैं | उन्हीं के बीच कुछ छेद चूहों आदि के द्वारा ऐसे गहरे बना दिए जाते हैं |जो दीवारों के उस पार तक जा रहे होते हैं |घर में घुसा सर्प भी ऐसे छिद्रों से बाहर निकल जाता है |सर्प को भी पहले उन छोटे छेदों  में भी मुख डाल  डाल  कर उस गहरे छेद  को खोजना होता है जिससे वह बाहर निकल सके ! ऐसे ही

नहीं होगा तब तक महामारी में  विज्ञान की भूमिका ही क्या है|  ज्योतिष का सहयोग लिए बिना महामारी में विज्ञान की भूमिका ही क्या है इसका कोई तर्कसंगत उत्तर नहीं हो सकता ?

तो ऐसा कब होगा ?ये पता नहीं !इस प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है और ऐसे विज्ञान या उससे संबंधित अनुसंधानों से लाभ क्या है ?

 

ये घर इतने अच्छे एवं वास्तु नियमों के अनुशार बने होने पर भी रहने 

 घरों के निर्माण में केवल कुछ घर बहुत अच्छे   घबाहुत प्रत्येक घर का निर्माण जिस

 साधू संतों पर विश्वास कैसे और कितना किया जाए !

  साधू संतों के प्रति समाज की आस्था अनंत काल से चली आ रही है |उनका सदाचरण समाज के लिए सदैव प्रेरणाप्रद  रहा है |  वर्तमान समय में कुछ साधू संतों पर भी अपराधों में सम्मिलित होने के या महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने के उदाहरण मिलने लगे  हैं |इससे समाज में  यह दुविधा पैदा होती है कि वे साधू संतों पर विश्वास कैसे करें ,किंतु साधु सेवा सनातन धर्म का प्रमुख अंग है | इसके लिए यह समझना आवश्यक है  कि कुछ साधू अभाव से बनते हैं और कुछ स्वभाव से | जो अभाव से बनते हैं, सुख के साधन मिलते ही उनका संयम टूट जाता है किंतु जो स्वभाव से साधू बनते हैं सुख भोग के साधन उनका मन बिचलित नहीं कर पाते | कौन साधू स्वभाव से बना है और कौन अभाव से  यह पता लगाने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त दूसरा विज्ञान कहाँ है | 


तथा अन्य बहुत सारी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए आज भी समाज को  ज्योतिषियों के यहाँ चक्कर लगाने पड़ रहे हैं | विज्ञान का भरोसा छोड़कर

 सुख सुविधाएँ भोगने ले लिए भी तो जीवन सुरक्षित रहना आवश्यक है |

और महामारी की तरह ही समस्याओं 

 पर्व  पर 

 

प्रकृति या जीवन से संबंधित कोई भी आपदा अचानक हमला कर दिया  करती है और उससे जो नुक्सान होना होता है वो हो जाता है | 

 

जनता के टैक्स से प्राप्त पैसा ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया जाता है उन अनुसंधानों से ऐसा कुछ निकलना भी तो चाहिए जिसे देखकर लगे कि इन अनुसंधानों से मदद न मिली होती तो ये समस्या इतनी और बढ़ जाती !भूकंप महामारी बाढ़ बज्रपात जैसी  जितनी भी हिंसक आपदाओं के  विषय में वैज्ञानिकअनुसंधान आज तक किए जाते रहे हैं यदि वे न भी किए गए होते तो ऐसी  घटनाओं से क्या और अधिक नुक्सान हो  सकते थे 

न किए नोपन   विज्ञान का कर्तव्य है |  की समस्याओं को खोजना एवं उनका समाधान निकालना विज्ञान का कर्तव्य है|इसीलिए 

 विज्ञान यदि मनुष्य केंद्रित है तो विज्ञान के द्वारा

सर्वांग देखना होता है 

संतान होने या न होने का कारण क्या होता है ?

     कुछ नव विवाहित पति पत्नी  विवाह होने के कुछ महीने या वर्ष बाद गर्भ स्थिति बनने पर भी संतान नहीं होने देते |वही दंपति कुछ वर्ष बाद संतान चाहते हैं लेकिन उस समय संतान नहीं हो रही होती है |संतान के लिए चिकित्सा का सहारा लेते हैं | सफलता न मिलने पर तांत्रिकों पंडितों पुजारियों के चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं ,न जाने कितने तीर्थों देवी देवताओं आदि के यहाँ मनौतियाँ माँगते हैं,फिर भी संतान नहीं होती ! ऐसे लोग थक हार कर प्रयत्न करना बंद कर देते हैं |उसके कुछ वर्ष बाद संतान हो जाती है |ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि चिकित्सा  से लेकर पूजापाठ आदि सब कुछ करने पर भी संतान न होने का एवं चिकित्सा आदि प्रयासों के बिना भी संतान होजाने का कारण खोजने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त और दूसरा विज्ञान कौन सा है ?

श्री राम लक्ष्मण का जन्म यज्ञ प्रभाव से हुआ था या समय आ जाने के कारण !

     महाराज दशरथ जी के यहाँ बुढ़ापे तक कोई संतान नहीं हुई तो हैरान परेशान होकर राजा दशरथ जी गुरु वशिष्ठ जी के पास पहुँचे और प्रणाम करके अपनी संतान संबंधी चिंता उनके सामने रखी | गुरु जी ने  तुरंत कहा कि धैर्य धारण करो ! तुम्हारे चार पुत्र होंगे ! इसके बाद श्रृंगी ऋषि को बुलवाया गया !पुत्रेष्टि यज्ञ करवाई गई !जिससे श्रीराम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न आदि का जन्म हुआ !दरशरथ जी की चिंता होने से शुरू होकर संतान होने तक दो वर्ष से भी कम लगा और चिंता दूर हो गई | प्रश्न उठता है कि संतान होने का कारण यदि श्रृंगीऋषि के द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया जाना  ही है ,तो क्या यही यज्ञ पहले करवा लिया जाता तो दशरथ जी के यहाँ संतान पहले भी हो सकती थी ?दशरथ जी यदि अपनी युवा अवस्था में ऐसा निवेदन अपने गुरुदेव से कर लिए होते तो क्या उस समय भी गुरु वशिष्ठ जी यही कहते कि धैर्य धारण करो ! तुम्हारे चार पुत्र होंगे !ऐसे ही क्या दशरथ जी युवा अवस्था में भी संतान पाने की इच्छा लेकर गुरु वशिष्ठ जी के पास जा सकते थे !आखिर क्यों नहीं गए !ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त भी कोई विज्ञान है क्या ?

    वैवाहिक जीवन का तनाव कम करने के लिए भी कोई विज्ञान है क्या ?

     अपने पैरों पर खड़े होने के बाद विवाह करने की जिद से विवाह देर से होने लगे हैं |विवाह योग हर किसी के जीवन में अपने समय पर ही आता है| उससमय को बिना विवाह किए ही टालना संभव नहीं होता है |विवाह योग के प्रभाव से जिन युवाओं का संयम टूट जाता है और वे किसी लड़के या लड़की के साथ वैवाहिक विकल्प तलाश लेते हैं |जो अभिभावक ऐसे संबंधों को नहीं सह पाते हैं वे उन्हें छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं |जिससे उन परिवारों में तनाव बहुत बढ़ जाता है |जिसके कारण कुछ लोगों के यहाँ बड़ी दुर्घटनाएँ भी घटित होते देखी  जाती हैं |ऐसी समस्याओं से हैरान परेशान वे लाखों परिवार ज्योतिषियों के पास न जाएँ तो कहाँ जाएँ !इसके लिए ज्योतिष के अलावा दूसरा विज्ञान कौन सा है जो कलह से जूझते ऐसे लाखों परिवारों की मदद करने में सक्षम हो !

विवाहयोग तो महात्माओं का भी होता होगा !

   साधू संत दो प्रकार के होते हैं -स्वभाव से और अभाव से ! स्वभाव से हुए संतों का मन इंद्रियाँ आदि उनके बश में होती हैं | विवाहयोग आने पर भी इनके मन में विवाहसंबंधी विकार पैदा ही नहीं होते !ये धन संपत्ति के संग्रह  में भी रूचि नहीं रखते हैं | कुछ दूसरे लोग जो जीवन की कठिनाइयों  से भागकर साधू बने होते हैं |उनके लिए मन इंद्रियों आदि को बश में रखना संभव नहीं होता है | ऐसे लोग सुख भोग के साधनों के अभाव में साधू बने होते हैं | कई बार बासनात्मक  परिस्थितियाँ अनुकूल देखते ही उनका संयम टूट जाता है और उनका पतन हो जाता है | ऐसी स्थिति में कौन साधू स्वभाव से है और कौन अभाव से बना है | यह जानने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान भी है क्या ? 

अपराध बढ़ने का कारण और इसे रोकने का उपाय क्या है ?

    सभी प्रकार के अपराध दिनोंदिन बढ़ते देखे जा रहे हैं| इन अपराधों को केवल कठोर कानूनों से रोका जाना यदि संभव होता तो अब तक रोक लिए गए होते !रेपिस्टों को मृत्युदंड दिए जाने पर भी बलात्कार बढ़ते देखे जा रहे हैं | अपराधियों को दंडित करने के लिए  कानून के द्वारा अधिकतम मृत्युदंड दिया जा सकता है किंतु  आत्महत्या जैसी क्रूर सोच रखने वालों को मृत्युदंड का भय दिखाकर अपराध करने से कैसे रोका जा सकता है !महामारी में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मरने के बाद भी बड़ी बड़ी हिंसक घटनाएँ घटित हो रही हैं |कुछ देश तो युद्ध लड़ने के नाम पर लाखों निरपराध लोगों की हत्या कर रहे हैं |ऐसी हिंसक सोच बनने का कारण क्या है और इसे रोकने का उपाय क्या है!इसे खोजने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा  विज्ञान भी है क्या ?

   हैरान परेशान लोगों का बड़ा सहारा है ज्योतिष ! 

     वर्तमान समय में कुछ युवा लड़के लड़कियाँ जाति धर्म कुल परंपरा आदि को न  मानते हुए अपनी इच्छा से विवाह करते देखे जा रहे हैं | अधिकाँश परिवारों में ऐसे संबंधों को विवाह मानने से मना किया जा है |ऐसे प्रेमी जोड़े अपने अभिभावकों से अपेक्षा करते हैं कि वे ऐसे विवाह को स्वीकारें और उनकी प्रसन्नता में सहभागी बनें !जबकि परिवार के लोग ऐसे विवाहों को तोड़ने के लिए यंत्र तंत्र ताबीजों के चक्कर में समय और पैसा बर्बाद करते घूम रहे हैं |इस समस्या से लाखों परिवार भयंकर कलह से जूझ  रहे हैं | कई प्रकरणों में तो हत्या आत्महत्या जैसी घटनाएँ भी घटित होते देखी जा  रही हैं |इस इतनी बड़ी समस्या का समाधान निकालने के लिए ज्योतिष के अलावा भी कोई विज्ञान  है क्या ,यदि नहीं तो क्यों ?

      परीक्षित जी की मृत्यु सर्प के काटने से हुई थी या आयु पूरी होने के कारण !

      राजा परीक्षित को तक्षक नाग डसने जा रहा था, मार्ग में उसकी भेंट कश्यप ऋषि से हुई। तक्षक ने ब्राह्मण का वेश धरकर उनसे पूछा कि आप कहाँ जा रहे हैं? इस पर कश्यप ने कहा कि तक्षक नाग महाराज परीक्षित को डसने वाला है। मैं उनका विष प्रभाव दूर करके उन्हें पुन: जीवित कर दूँगा। यह सुनकर उसने कहा मैं ही तक्षक हूँ मेरे विष-प्रभाव से आज तक कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा है । इस पर कश्यप ऋषि ने कहा कि वे अपनी मन्त्र शक्ति से राजा परीक्षित का विष-प्रभाव तुरंत दूर कर देंगे। इस पर तक्षक ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो मैं इस उस वृक्ष को डसकर अभी भस्म किए देता हूं और तुम अपने मन्त्रों से इसे हरा भरा कर दो | ऐसा कहकर  तक्षक ने वृक्ष को अपने विष प्रभाव से तत्काल भस्म कर दिया। इस पर कश्यप ऋषि ने उस वृक्ष की भस्म एकत्र की और अपना मन्त्र फूंका।वह वृक्ष तुरंत हरा-भरा गया। हैरान तक्षक ने ऋषि से पूछा किआप हमारे विष के प्रभाव समाप्त करने में सक्षम हैं किंतु क्या आपने यह देखा है कि परीक्षित जी की आयु कितनी और बची है तो कश्यप ऋषि ने ध्यान करके देखा परीक्षित जी की अब आयु तो बची ही नहीं है तो तक्षक ने कहा कि ऋषिवर अपने मंत्रों के द्वारा  हमारे विष प्रभाव को नष्ट करके भी आयु के अभाव में परीक्षित जी को जीवित कब तक रख सकेंगे !कश्यप जी सोच में पड़ गए !तक्षक ने कहा कियदि उन्हें जीवित नहीं रख पाए तो आपका उपहास होगा इसलिए आप वापस लौट जाएँ ! कश्यप ऋषि वापस चले गए ! ऐसी स्थिति में तक्षक के बिष का समाधान तो कश्यपऋषि के पास था ही तो परीक्षित  जी की मृत्यु के लिए तक्षक को बदनाम क्यों किया गया !  परीक्षित की मृत्यु तो उनकी आयु समाप्त होने से हुई इसमें तक्षक बेचारे का क्या दोष था ? 

रावण की मृत्यु का कारण सीता हरण था या रावण की आयु पूरी होना !

     सीता हरण के कारण रावण का वध हुआ था या फिर आयु पूरी हो जाने के कारण ! यदि यह माना जाए कि रावण ने सीता जी का हरण किया था इस अपराध के कारण उसका वध किया गया ! ऐसे अपराध तो रावण बार बार करता आ रहा था ,आखिर चौदह हजार स्त्रियों को अपहरण करके उसने अपने यहाँ रखा हुआ था |  ऐसे अपराध तो रावण ने अनेकों बार किए थे फिर दंड देने में इतनी देर क्यों की गई !आखिर सीता हरण के समय ही उसका वध क्यों किया गया ! दूसरी बात यह है कि यदि रावण सीता जी को लौटा देता तो क्या उसका वध नहीं होता और वह जीवित बचा रहता ,या फिर रावण की आयु ही पूरी हो चुकी थी इसलिए उसकी मृत्यु होनी ही थी इसलिए  रावण की मृत्यु का समय जब आया था तभी उसका वध हुआ था !

दशरथ की मृत्यु का कारण :उनकी आयु पूरी होना था या श्री राम वियोग !

    दशरथ जी की मृत्यु होने का क्या कारण था ?इसका बिचार करते समय सर्व प्रथम श्री राम जी जैसे सर्वगुण संपन्न पुत्र को बन भेजने की बात दशरथ जी शायद  सह न पाए हों !दूसरी बात अतिप्रिय पत्नी कैकई के द्वारा किया गया इतना अप्रिय व्यवहार दशरथ जी से शायद सहा नहीं जा सका !तीसरी बात ज्येष्ठ पुत्र ही राजा होगा इस सर्वविदित परंपरा में परिवर्तन संभव ही न था | राजा होने के नाते इस परंपरा को  सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी जिन दशरथ जी की थी |कैकई को वरदान देने का बचन भी तो उन्हीं दशरथ जी का दिया हुआ था |कैकई की इच्छा के अनुशार भरत का अभिषेक भी उन दशरथ जी को ही करना पड़ता !एक ओर परंपरा टूटने का खतरा और दूसरी ओर बचन टूटने का संकट था !ऐसी स्थिति में अपने प्राणों को छोड़कर महाराज दशरथ जी ने न परंपरा टूटने दी और न ही बचन झूठा होने दिया ! चौथी बात दो वरदान देने की बात राजा रानी के बीच न होकर अपितु पति पत्नी के बीच हुई  एकांतिक बातों शर्तों शपथों का निर्वाह भी  एकांतिक ही  होता है |इस मर्यादा का पालन किया जाना चाहिए था !किंतु कैकई ने ऐसे वरदान माँगे जिनका दिया जाना एकांत में संभव ही नहीं  था |पति पत्नी के बीच हुई उस ऐकांतिक बात का सार्वजनिक होना दशरथ जी सह नहीं पाए |ये परिस्थितियाँ अचानक घटित हुईं यदि मृत्यु का कारण ये घटनाएँ थीं तब तो दशरथ जी की अकाल मृत्यु मानी जानी चाहिए थी !ऐसे ही महाराज दशरथ को श्रवण के माता पिता ने शाप दिया था कि जैसे हम अपने पुत्र के वियोग में प्राण छोड़ रहे हैं वैसे ही  तुम्हें भी अपने पुत्र के वियोग में प्राण छोड़ने पड़ें !यदि उनकी मृत्यु का कारण यह शाप भी रहा हो तो भी दशरथ जी की अकाल मृत्यु ही मानी जाएगी क्योंकि यदि अपनी  मृत्यु से मरना था तो  निष्फल  माना जाता |इसका मतलब दशरथ जी की मृत्यु होने के लिए जिम्मेदार यही सब कारण थे | यदि इन कारणों को ही जिम्मेदार मान लिया जाए तब तो इसे अकालमृत्यु माना जाना चाहिए,किंतु त्रिकालदर्शी ऋषि वशिष्ठ जी ने अंत क्रिया अकाल मृत्यु जैसी तो नहीं करवाई थी | इसका मतलब वे इसे अकालमृत्यु नहीं मानते थे | उसका कारण यह हो सकता है कि मनु सतरूपा के स्वरूप में तपस्या करके स्वयं उन्होंने स्वयं ही भगवान से यह  वरदान माँगा था कि आपके वियोग में मेरे प्राण छूटें !दूसरी बात सुमंत ने जो कथा सुनाई थी उसमें दशरथ जी की मृत्यु ऐसे ही होने की बात कही गई थी | तीसरी बात दशरथ जी स्वयं मृत्यु से कुछ दिन पहले अपनी आयु समाप्त होने के संकेत दशरथ जी स्वयं ही वशिष्ठ जी को दे चुके थे कि मेरी मृत्यु का समय समीप है इसलिए श्री राम का  राज्याभिषेक तुरंत करवा दिया जाए !इसलिए बहाने चाहें जितने भी बने हों किंतु दशरथ जी की मृत्यु अपने समय पर ही हुई थी |

रावण सीता को लंका ही क्यों ले गया था !

   कोई भी चोर किसी चोरी की चीज को या अपहृत स्त्री पुरुष को अपने यहाँ तो नहीं ही ले जाता है | सीता जी को विलाप करते समय जटायु जी ने न केवल देख लिया था अपितु उन्हें छोड़ाने के लिए प्रयत्न भी किया था |रावण ने जटायु जी के पंख काटकर उन्हें जीवित छोड़ दिया था उनका बध नहीं किया था | इससे रावण को यह तो पता था ही कि यह सूचना श्री राम जी तक पहुँच सकती है|ऐसी स्थिति में रावण ने इस बात पर बिचार क्यों नहीं किया ? क्या रावण चाहता तो सीता जी को किसी दूसरे स्थान पर ले जा सकता था या फिर दूसरी जगह ले जाना संभव ही नहीं था इसलिए लंका ही ले गया ! इसका पता लगाने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा विज्ञान ही नहीं है |

महाभारत युद्ध के लिए श्री कृष्ण जी  ने अर्जुन को उकसाया क्यों ?

   सामान्य दृष्टि से देखा जाए तो देवी देवता, साधू संत आदि विद्वान लोग एवं बड़े बूढ़े लोगों को यही सिखाते सुना जाता रहा है कि किसी से लड़ाई झगड़ा न करो, जितना है उतने में संतोष करो ! यही बात तो महाभारत के समय में अर्जुन भी श्री कृष्ण जी से कह रहे थे ,कि जितना है मुझे उतने में संतोष है मैं युद्ध नहीं करना चाहता हूँ |श्री कृष्ण जी यह बात नहीं माने तो अर्जुन ने दुबारा प्रार्थना की कि हे केशव !शास्त्र बड़े बूढ़ों का सम्मान करने की बात कहते हैं ऐसी स्थिति में मैं पितामह भीष्म तथा कृपाचार्य, द्रोणाचार्य जैसे गुरुजनों से युद्ध कैसे करूँ !फिर भी कृष्ण जी नहीं माने तो अर्जुन ने कहा कि आप ही बताओ दुर्योधन आदि मेरे बंधुबांधव हैं उनके साथ हमने बचपन बिताया है खेले कूदे हैं , मैं  उनका बध कैसे करने लगूँ !कृष्ण जी कहने लगे कि मैं यह सब कुछ नहीं जानता तुम्हें युद्ध करना ही होगा ! इस पर अर्जुन ने कहा माधव !हम तो पाँच ही हैं दुर्योधन के तो सौ  भाई हैं !पितामह भीष्म तथा कृपाचार्य, द्रोणाचार्य ,कर्ण,दुर्योधन जैसे वीरों से युद्ध करना आसान है क्या !हमें क्यों मरवा डालना चाहते हो माधव !मैं अभी और जीवित रहना चाहता हूँ | सच सच बताओ माधव हमें क्यों मौत के मुख में झोंक रहे हो !श्री कृष्ण जी ने कहा कि अर्जुन !मैं तुम्हारा सारथी बनकर तुम्हें युद्ध करते देखना चाहता हूँ |यह सुनकर अर्जुन की थोड़ी हिम्मत बँधी उसने कहा कि हे केशव ! यदि युद्ध में आप भी हमारा साथ देने को तैयार हो तो मैं भी युद्ध लड़ने को तैयार हूँ | श्री कृष्ण जी ने कहा कि अर्जुन !मैं सारथी बनकर तुम्हारे साथ अवश्य रहूँगा लेकिन युद्ध में साथ देना तो दूर मैं किसी अस्त्र शस्त्र को हाथ भी नहीं लगाऊँगा !भाई !ये तुम्हारी घर घर की लड़ाई है मैं तो रिस्तेदार हूँ मेरे लिए तो दोनों पक्ष ही बराबर हैं | इसलिए मैं किसी का शत्रु क्यों बनूँ !यह सुनकर अर्जुन फिर युद्ध लड़ने के लिए मना करने लगे तब भगवान् श्रीकृष्ण जी को युद्ध भूमि में ही गीता सुनानी पड़ी !तब जाकर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हुए !आखिर इस युद्ध में श्री कृष्ण जी अर्जुन को लड़ने के लिए इतना बाध्य क्यों कर रहे थे ?इसका उत्तर ज्योतिषविज्ञान के बिना खोजै जाना कैसे संभव है |

 श्रीकृष्ण जी भविष्यवाणी करते थे और संजय बीती हुई बातें बताते थे | विजय किसकी हुई ?

बाण  नहीं छोड़ सकता हूँ |

का एवं दुर्योधन आदि बंधुबांधवों का बध नहीं करना चाहते थे पर हम बाण नहीं चलाएँगे !जबकि कृष्ण जी युद्ध करने के लिए अर्जुन को बार बार प्रेरित कर रहे थे |अर्जुन बार बार मना करते जा रहे थे ! इसी हाँ  और न की प्रक्रिया में गीता जैसा एक महानग्रंथ तैयार हो गया !ये सबतो ठीक है किंतु मुख्यप्रश्न अभी तक अनुत्तरित है कि यदि अर्जुन अपने पितामह ,गुरुजनों एवं बंधुबांधवों का बध नहीं करना चाहते थे तो आखिर भगवान् श्रीकृष्ण जी ने उन्हें अपनों का  बध करने के लिए प्रेरित क्यों किया ? 

   भीष्म पितामह कृपाचार्य द्रोणाचार्य कर्ण दुर्योधन आदि से युधिष्ठिर पांडव लड़ना नहीं चाहते थे तभी तो पांडव कह रहे थे कि हमें पाँच गाँव दे दो,हम युद्ध नहीं करेंगे | अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण जी से बार बार यही तो कहा था कि

  फिर श्री कृष्ण ने अपने समय से मृत्यु को प्राप्त हुए या अर्जुन ने उन्हें मार दिया था |  

 संबंध दो प्रकार के होते हैं !

कई बार संबंधों में ऐसी दुविधा होती है कि उनका निर्वाह करना मुश्किल हो जाता है |ऐसे समय ईमानदारी से संबंध निर्वाह की इच्छा रखने वाले की मानसिक स्थिति बहुत गड़बड़ा जाती है | संबंधों की मर्यादाओं का पालन किया जाना तभी संभव है जब दोनों और से इसका ध्यान रखा जाए | यदि ऐसा नहीं किया गया तो अत्यंत आत्मीय संबंधों में भी बहुत कटुता आ जाती है |भाई और भाई के संबंध का यदि आप सम्मान जनक ईमानदारी पूर्वक निर्वाह करने के लिए प्रयत्न शील हैं तो आपका प्रयास तभी सफल होगा जब भाई भी उसी ईमानदारी से आपसे संबंध चलाने के लिए प्रयत्नशील हो | कई बार एक भाई तो अपने भाई के प्रति समर्पण के कारण अपने पत्नी बच्चों की परवाह न करते हुए भाई के संबंध पर अपना  सर्वस्व न्योछावर कर रहा होता है जबकि दूसरा भाई उसके समर्पण को महत्त्व इसलिए नहीं देता है क्योंकि उसकी पत्नी उसके भाई से घृणा कर रही होती है | वो नहीं चाहती कि उसका पति अपने भाई के साथ मधुर व्यवहार करे | भाई भाई का संबंध आपस में ही चल सकता है उनकी पत्नियों का हस्तक्षेप होते ही भाई  भाई के  संबंध समाप्त होकर दो पतियों  के संबंध हो जाते हैं |भाई तो छोटे बड़े होकर संबंध चला लेते हैं किंतु पतियों के बीच बराबरी का संबंध चल नहीं पाता है | यदि पिता पुत्र  सास बहू नंद भौजाई चाचा भतीजा आदि संबंधों में भी होता है |ऐसे  भाई बहन के आपसी संबंध तभी तक चलते हैं जब तक उनमें भाभी और जीजा सम्मिलित नहीं होते | याद रखिए आत्मीय संबंध अकेले में ही चलते हैं | भतीजे का चाचा से सीधा संबंध होता है | इस संबंध में उसके माता पिता का प्रवेश संबंध को नष्ट करता है | मामा भांजे का सीधा संबंध होता है | महाराज दशरथ ने एक स्त्री के पति होने के नाते पत्नी की प्रसन्नता के लिए श्री राम को बन गमन का वरदान दिया !दूसरी ओर पुत्र को बनबास का कष्ट न मिले इसलिए पुत्र से कहते हैं तुम बन न जाओ | दशरथ जी ने कैकई को दो वरदान माँगने की बात कही ही क्यों थी | अपनेपन के संबंधों में अपनों का सबकुछ अपना ही होता है फिर मांगने और देने की चर्चा ही क्यों की गई | पति और पत्नी आपस में एक दूसरे के लिए क्या क्या नहीं करते हैं उसका कोई मूल्य आंकता है क्या ?कैकई के पास दो वरदान माँगने का विकल्प होने पर भी यदि वह अपने पुत्र के राज्याभिषेक का प्रबंध न करती तो समाज उसे गलत कहता | वरदान माँगने का विकल्प न होता तो ऐसी परिस्थिति ही पैदा न होती | दशरथ जी की गलती का दंड कैकयी क्यों भोगे ! उधर महाराज ने दशरथ ने एकांत में कैकई को वरदान देने की बात कही थी और कैकई ने भी एकांत  वरदान माँगा था | दशरथ जी चाहते तो मना कर देते कैकई तो मना करने के लिए बार बार कह भी रही थी | यदि दशरथ जी ऐसा कर देते तो उसकी खानापूर्ति भी हो जाती और राम जी बन भी नहीं जाते और किसी को पता भी नहीं लगता ,किंतु दशरथ जी ने स्वयं तो वरदान देने से मना किया नहीं उधर श्री राम जी से कहते हैं तुम बन न जाओ हमारा बचन गलत हो जाने दो !श्री राम जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं उनसे ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती थी | कैकई माँ और श्री राम जी पुत्र हैं दोनों के आपसी संबंध में पिता दशरथ का घुसना ठीक ही नहीं था | विवाह की शर्त के अनुशार राज्य पर अधिकार कैकई के पुत्र का था इसलिए यह सोचने का कर्तव्य कैकई का था कि इस बंश परंपरा में ज्येष्ठ पुत्र को गद्दी दी जाती है कैकई बंश की परंपरा को कभी टूटने नहीं देती !जिस कैकई ने पति के प्राणों की रक्षा के लिए देवासुर संग्राम में अपने प्राणों की परवाह न की हो उसी कैकई के आगे वही दशरथ अपने प्राणों की भीख माँगते रहे किंतु कैकई नहीं मानी | विधवा होना स्वीकार कर लिया | इसलिए आत्मीय संबंध केवल आत्मीयता के आधार पर ही चलते हैं | दशरथ जी को कैकई से भी तो परामर्श करके निर्णय लेना चाहिए था | राजा दशरथ अपने पुत्र को उत्तराधिकारी बना रहे थे जबकि पति दशरथ से कैकई ने वरदान माँगे थे |राजा और पति दोनों दायित्वों का निर्वाह एक साथ संभव न हो सका | 

       जीवन को समझने के लिए विज्ञान कहाँ है ! 

       प्रत्येक व्यक्ति का संपूर्ण जीवन समस्याओं से घिरा रहता है मनुष्य एक समस्या सुलझाने  प्रयत्न करता है तब तक दूसरी आ  खड़ी होती है | एक समस्या बीतती है तो दूसरी आ खड़ी होती है |

 

 रोग पता नहीं था और  न ही रोग के लक्षण पता थे

समय भी बहुत कुछ है !

    समय के प्रभाव से सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ आती और जाती हैं , भूकंप आँधी तूफान बज्रपात चक्रवात जैसी घटनाएँ घटित होती हैं | महामारियाँ आती और जाती हैं | जन्म मृत्यु रोग निरोग सुख दुःख जैसी घटनाएँ घटित होती हैं |संबंध बनते बिगड़ते हैं | सफलता असफलता मिलती है | पद प्रतिष्ठा मिलती छूटती है |कुल मिलाकर जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई कितने भी प्रयत्न क्यों न कर  ले किंतु परिणाम तो उसके अपने अच्छे बुरे समय के अनुसार  ही मिलता है |इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को कोई काम शुरू करने से पहले अपने समय की जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिए ! अच्छे बुरे समय को समझने के लिए जब तक कोई दूसरा विज्ञान नहीं है तब तक ज्योतिष की मदद से ही तन मन को स्वस्थ और सुखी रखा जाना चाहिए | 

इन घटनाओं के विषय में अनुसंधान करने के लिए सबसे पहले समय संबंधी अनुसंधान किए जाने चाहिए ,किंतु समय को समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है |क्या विज्ञान के बिना ही  महामारी संबंधी अनुसंधान किए जाते रहे !ऐसे अनुसंधानों से निकला क्या जिससे महामारी पीड़ित समाज को थोड़ी भी मदद मिली हो

जिसकी कीमत प्राकृतिक आपदाओं के समय जनता को जान देकर चुकानी पड़ती है

| समयसंचार को समझने के लिए  

प्रकृति और जीवन से संबंधित ऐसी सभी घटनाएँ जब समय के आधार पर ही घटित होती हैं तो ऐसी सभी घटनाओं को समझने के लिए सबसे पहले समय को समझा जाना चाहिए !

      गर्भवास एवं बचपन की कठिनाई के कारण ईश्वरीय शक्तियाँ प्रत्येक व्यक्ति को  इस संसार में  भेजते समय उसकी सफलता लॉक करके भेजती हैं |उम्र बढ़ने के साथ साथ प्रत्येक व्यक्ति को इसे खोलने का प्रयत्न करना पड़ता है | उस लॉक में  भाग्य, कर्म, समय,सहयोगी और स्थान रूपी ये 5 नंबर होते हैं जिनके सही सही डायल होते ही सफलता का द्वार खुल जाता है |इसके लिए आवश्यक है भाग्य में जो सुख जितना बदा हो उतने की ही चाह रखना,जिस समय पर लिखी हो उस समय पर कार्य करना कर्म से   

        मनुष्य जीवन से संबंधित घटनाओं की है मानसिक स्वास्थ्य हो या शारीरिक स्वास्थ्य इसके विषय में अभी तक न तो अनुमान लगाना संभव हो पाया है और न ही पूर्वानुमान | मानसिक एवं शारीरिकदृष्टि से होने वाले अच्छे या बुरे सभी प्रकार के बदलाव होने के लिए जिम्मेदार कारण अनुमान पूर्वानुमान आदि कुछ भी लगाने के विज्ञान को नहीं खोजा जा सका है |उत्थान के लिए किए गए प्रयासों के असफल होने से या निजी संबंधों के अचानक बिगड़ने से लोगों का मानसिक तनाव दिनों दिन बढ़ता जा रहा है|जिसका दुष्प्रभाव शरीरों पर पड़ने से युवा अवस्था में ही लोग शुगर बीपी जैसे बड़े रोगों के शिकार हो रहे हैं | वैवाहिक जीवन में तलाक होते  एवं परिवार बिखरते देखे जा रहे हैं |कई निराश हताश लोग आत्महत्या तक करते देखे जा रहे हैं | इनमें से किसी भी समस्या का समाधान खोजने के लिए न तो कोई विज्ञान है और न ही वैज्ञानिक अनुसंधान !   

 व्यापार के विषय में ज्योतिषीय भविष्यवाणियाँ गलत क्यों निकल जाती हैं ?

     भविष्यवाणी करने वाले को ज्योतिष आदि का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण ! कई बार ज्योतिष ज्ञान होने पर भी उचित पारिश्रमिक न मिलने के कारण योग्य ज्योतिषी लोग भी पर्याप्त   अनुसंधानप्रक्रिया किए बिना ही 
भविष्यवाणियाँ कर दिया करते हैं जो गलत निकलती हैं | 

 


कार्य की सफलता के लिए इनका अच्छा होना आवश्यक है !

 ज्योतिष के अलावा ऐसा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है जो इतने बुरे समय में भी सही रास्ता दिखाकर ऐसे हैरान परेशान लोगों की भी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके | 


समय खराब हो तो मदद भी नहीं मिलती !'देखो राम जी को '

    किसी की मदद कोई करना भी चाहे तो तब तक वह परेशान रहता है जब तक समय खराब रहता है | इस बीच उसकी कोई मदद नहीं कर सकता !जो मदद करने का प्रयास करता भी है वो स्वयं परेशान हो जाता है और तब तक परेशान रहता है जब तक वह किसी भाग्य विहीन व्यक्ति की मदडी करने की इच्छा छोड़ नहीं देता है | 

 उसकी को श्री राम का बुरा समय जब शुरू हुआ तो उन्हें बनबास मिला !उनके साथ लक्ष्मणजी और सीता जी गए ,लक्ष्मणजी को शक्ति लगी, सीता जी का हरण हुआ !सीता जी का साथ देने जटायु आए तो उनका मरण हुआ |इस सबसे श्री रामजी का संकट और बढ़ता गया ! किसी भाग्यपीड़ित व्यक्तियों की मदद करने के विषय में अक्सर वही सोचते हैं जिनका अपना समय भी बुरा होता है |ऐसे लोग अक्सर किसी की मदद करके स्वयं नष्ट जाते हैं |किसी भाग्य पीड़ित पर जब मुसीबत आती है तो उसकी मदद कोई नहीं करता जो करता है वह स्वयं उससे बड़े संकट में फँसकर मदद करने लायक रहता ही नहीं है |

   अच्छे और बुरे समय का खेल ही जीवन है |

   जिस किसी को अच्छी सुख सुविधाएँ मिल रही हैं उन्हें वो अपने प्रयासों का परिणाम मानता है जबकि वे उसके अच्छे समय के प्रभाव से प्राप्त हुई होती हैं |जो सुख जिसे जितने अच्छे अभी भोगने को मिल रहे हैं वे तभी तक हैं जब तक बुरा समय शुरू नहीं होता !बुरा समय आते ही बड़े बड़े प्रतापी राजा महाराजा अधिकारी अपराधी आदि मिटटी में मिला दिए गए | विश्व विजेता रावण कंस ,कर्ण दुर्योधन कृपाचार्य द्रोणाचार्य  भीष्म जैसे शक्तिशाली लोग अपने अपने बुरे समय का सामना नहीं कर सके |इसलिए किसका समय कब कैसा चल रहा है ये प्रत्येक व्यक्ति को पता होना चाहिए |

पता करने के लिए ज्योतिष के अलावा विज्ञान एवं ज्योतिषविज्ञान के सुयोग्य विद्वान कहाँ है ?पेट्रोल से नहाए हुए व्यक्ति के लिए आग की छोटी चिनगारी ही बहुत होती है | 

 

 भाग्य और कर्म :

  "अधिक परिश्रम करके अच्छा नौकर तो बना जा सकता है किंतु मालिक नहीं !मालिक बनना भाग्य के सहयोग के बिना संभव नहीं है |"   एक आदमी का भाग्य अच्छा होता है और दूसरे का कर्म ! जिसका भाग्य बलवान होता है वह भाग्यबल से कोई उद्योग लगाता है और जिसका भाग्य कमजोर और कर्म बलवान होता है | वह उस उद्योग में नौकरी करता है |जिसका भाग्य अच्छा वो  मालिक और जिसका कर्म अच्छा वो नौकर !किसी भी उद्योग के मालिक को कुछ भाग्यहीन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है |जो परिश्रम पूर्वक उतना कार्य करते रहें जितना उन्हें बताया जाए | व्यापार करने के विषय में न सोचें,क्योंकि कार्यकुशल कारीगरों का भाग्य जिस उम्र से साथ देने लगता है उस उम्र में वे अपना व्यापार खड़ा कर लेते हैं और सफल होते हैं | कुछ कारीगरों  का भाग्य जब साथ देने भी लगता है तो वे उसे पहचान नहीं पाते हैं इसलिए उसका लाभ नहीं उठा पाते |कई बार ऐसे भाग्यवान कर्मचारी जिसके यहाँ कार्य कर रहे होते हैं वे इनके भाग्योदय को पहचानकर इनके भाग्य का लाभ लेने लगते हैं | ये काम छोड़कर चले न जाएँ इसलिए इनकी कुछ पगार बढ़ा देते हैं और कुछ प्रशंसा करने लगते हैं कारीगर भी खुश हो जाता है !मालिक  के व्यवहार से खुश कर्मचारी भी वहीं जीवन गुजार देता है |कई बार उसका भाग्य कुछ समय बाद साथ देना बंद कर देता है तो वो काम से निकाल दिया जाता है | इसलिए किसका भाग्य किस उम्र में साथ दे सकता है यह जानने के लिए ज्योतिष के अलावा दूसरा विज्ञान कहाँ है | 

 

  शिक्षा में रुचि होने और न होने का कारण !

     किसे क्या पढ़ना है, कितना पढ़ना है, पढ़ाई के लिए कितना संघर्ष करना है ,कितनी सफलता मिलनी है,शिक्षा से आजीविका या कोई अच्छी पद प्रतिष्ठा प्राप्त होगी क्या ? ये सब  भाग्य के अनुशार ही निश्चित होता है |इसीलिए ग़रीबों के भी भाग्यवान बच्चे शिक्षा के द्वारा बड़े बड़े पद पाते देखे जाते हैं और बड़े लोगों के बच्चे भी शिक्षा में असफल होते देखे जाते हैं |कुल मिलाकर  जिस विषय में जिसे सफल होना होता है भाग्य प्रेरणा से उसी  विषय को पढ़ने में उसकी रुचि बनती है |जिस शिक्षा में जितना सफल होना लिखा होता है वो उसी शिक्षा में उतना ही सफल होता है | किसके भाग्य में किस प्रकार की शिक्षा कितनी लिखी है यह पता लगाने के लिए ज्योतिष के  अतिरिक्त दूसरा विज्ञान कौन सा है  ? 

   "लक्ष्य कितना भी बड़ा हो सच्चे मन से किया गया प्रयास सफल अवश्य होता है !" क्या यह सच है ? 

    भाग्य को न मानने वाले केवल कर्म को महत्त्व देते हैं | ऐसे लोग बड़े बड़े सपने पालकर उन्हें पूरा करने में लग जाते हैं | भाग्य का साथ न मिलने पर यदि वे असफल होते जाते हैं तो मान लेते हैं कि प्रयास कि प्रयास में ही कमी रह गई |दोबारा प्रयास में लग कर अपनी नौकरी व्यापार कारोबार धन दौलत आदि सब कुछ अपने लक्ष्य के लिए न्योछावर कर देते हैं ,फिर भी कार्य नहीं हुआ अब क्या करें !ऐसे निराश हताश लोग अपराधी या नशेड़ी बनते हैं|कोई सुन्दर लड़की पाने का सपना टूटा तो तेजाब फेंकने जैसी दुखद घटनाएँ घटित होती हैं | हत्याआत्महत्या करते हैं |उनके हिसाब से प्रयास में यही कमी रह गई होती है|ऐसे में वो कैसे मिल जाता जो उनके भाग्य में बदा ही नहीं था |भाग्य को न माने वाले लोग कई बार ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं |अपने भाग्य की सीमा समझने के लिए ज्योतिष के अलावा दूसरा विज्ञान कौन सा है ?

      दान करने से कष्ट कम होते हैं किंतु दान है क्या ?

         कुछ लोग अहंकारवश भीख देने को ही दान समझने लगते हैं जबकि भीख और दान में बहुत अंतर होता है | दान सहयोग और भीख इन तीनों शब्दों का बहुत महत्त्व है |दान अपने से श्रेष्ट लोगों को दिया जाता है| सहयोग बराबर वालों का किया जाता है और भीख अपने से छोटों को दी जाती है | दान के बदले हमें आशीर्वाद मिलता है उस आशीर्वाद से कष्ट कम होता है ! सहयोग के बदले हमें भी उससे सहयोग मिलता है |भीख के बदले भिखारी कुछ भले न दे सके किंतु उसके बदले ईश्वर सत्कर्म जनित पुण्य प्रदान करता है | जो संकटकाल में सुरक्षित रखता है |कुछ लोग दान भावना से भिखारी को भीख दे देते हैं भिखारी भी अपने को श्रेष्ठ समझकर उन्हें आशीर्वाद दे देता है |आशीर्वाद में किसी को वही दिया जा सकता है जो उसके अपने पास हो |कुष्टरोगी आशीर्वाद  में किसी को कुष्टरोग ही दे सकता है | कोई भिखारी किसी भीख देने वाले को भिखारी होने का आशीर्वाद ही दे सकता है |सभी प्रकार का आरक्षण भी एक प्रकार की भीख ही है | आरक्षण देने की वकालत करते रहने वाले राजनैतिकदलों को भिखारियों ने भीख माँगने का आशीर्वाद दे रखा है | उन्हें वही आज फलित हो रहा है |इसीलिए तो  आरक्षण की वकालत करने वाले वही राजनैतिकदल आज भिखारियों की तरह भटकते घूम रहे हैं | 

    आरक्षण को भीख कहा जा सकता है या नहीं ?

      आरक्षण की वकालत करने वाले राजनैतिकदल आज भिखारियों की तरह भटकने को क्यों मजबूर हैं !ये कोई प्रायश्चित्त कर रहे हैं या किसी कर्म की सजा भोग रहे हैं अथवा उन्होंने कोई अपराध किया है जिसकी सजा उन्हें प्रकृति दे रही है |हमेंशा सत्ता में रहने वाले राजनैतिकदल  कहाँ और कितने प्रदेशों में सत्तासीन हैं ? वस्तुतः भीख माँगने का अधिकार केवल उसको ही है जो खाए हुए भोजन को पचा सकने में असमर्थ हो और उसका शरीर इतना अधिक दुर्बल हो कि बच्चे पैदा करने में असमर्थ हो |आजकल तो अच्छे खासे हट्टे कट्टे स्वस्थ सुदृढ़ शरीर वाले लोग भी अपने को दबे कुचले बताकर आरक्षण माँगते देखे जाते हैं | उन्हें सोचना चाहिए कि उनके  केवल ऐसा कह देने से कोई दबा कुचला नहीं हो जाता है,फिर भी यदि वे ऐसा महसूस ही करते हैं कि उनका शरीर काम करके धन कमाने लायक नहीं है तो सरकारों को उन्हें आरक्षण देने के बजाए मेडिकल सुविधाएँ देकर उनकी जाँच करावे तथा चिकित्सा करे | उनके स्वस्थ होते ही उनकी भावी पीढ़ियाँ भी स्वस्थ ही पैदा होंगी वे भी स्वाभिमानपूर्वक रहने के लिए परिश्रमपूर्वक कमाकर खाना ही पसंद करेंगी |अन्यथा दबेकुचले कहने की बीमारी तो हमेंशा चलती रहेगी | चिकित्सा शास्त्र का ऐसा मत है कि जो व्यक्ति जितना अधिक आहत होता है, अपमानित होता है या शोक संतप्त होता है वह मानसिकनपुंसकता से ग्रस्त होकर मनोबलविहीन होने के कारण संतान पैदा करने लायक रह ही नहीं जाता  है ,क्योंकि कामबासना का निवास स्वस्थ मन में होता है |संतान पैदा करने में स्वस्थ पढ़ने और कमाने में दबे कुचले ऐसा कैसे संभव है ! कुछ जीवित लोग अपने को दलित कहने लगे हैं | दाल और दलिया दो शब्द होते हैं |  अनाज के किसी भी दाने के दो बराबर टुकड़े 'दाल' एवं उसी के कई टुकड़े कर दिए जाएँ तो 'दलिया' अर्थात 'दलित' कहा जाता है | ऐसी स्थिति में जो दलित होगा वह संतानों को जन्म देने लायक कैसे रह जाएगा !ऐसी स्थिति में जन संख्या का बढ़ना कैसे संभव है | बिना किसी योग्यता एवं बिना किसी परिश्रम दूसरे प्रतिभा संपन्न परिश्रमी लोगों के अधिकारों को  भीख में माँगकर भोगने की भावना स्वस्थ राष्ट्र एवं स्वस्थ एवं समृद्ध समाज के निर्माण में प्रबल बाधक है | 

  'पीपल' और 'सर्प' सजीव भी होते हैं !

     सजीव पीपल हों या सजीव सर्प ये अपनी इच्छानुसार मनुष्य स्वरूप धारण करने में सक्षम होते हैं | ये जहाँ होते या रहते हैं वो जमीन जिस किसी की होती है उसे आशीर्वाद देकर उसकी बहुत उन्नति कर देते हैं | उसे बहुत अच्छा घर व्यापार एवं धन सम्मान आदि प्रदान करवाते हैं ,किंतु उसे उस घर में नहीं रहने देते हैं जिसमें सजीव पीपल या सजीव सर्प अपना बस बना लेते हैं | विशेष बात यह है कि इन दोनों में से कोई एक अकेला कभी नहीं रहता है अर्थात जहाँ सजीव पीपल होगा उसके आस पास सजीव सर्पों का भी आवास होगा ही और जहाँ सजीव सर्पों का घर होता है वहाँ सजीव पीपल उग ही आता है और जहाँ ये दोनों होते हैं वहाँ भूत प्रेतादिगणों की इतनी बड़ी सेना इनकी सेवा में समर्पित रहती है कि आसपास बहुत दूर दूर तक की जगह जन शून्य कर देती है |कई बार तो गाँव के गाँव खाली होते देखे गए हैं | पीपल सर्प एवं बहुत प्रेतादिकों का स्वयं का परिवार इतना बड़ा बन जाता है तथा कुछ दूसरे स्थानों की अतिथि शक्तियों का आना जाना लगा रहता है जो हमेंशा प्रत्यक्ष दिखाई भले न पड़ते हों किंतु अपने चारों ओर बड़ी दूर दूर तक घर गृहस्थी बसने नहीं देते हैं |ऐसे जागृत स्थानों पर कोई ऐसी गृहस्थी इस लिए भी नहीं रह सकती क्योंकि गृहस्थी में होने वाले पति पत्नी के एकांतिक संबंधों एवं मलमूत्र विसर्जन किए जाने को ये न केवल अपना अपमान समझते हैं अपितु ऐसा करने वालों के परिवार वहाँ बसने ही नहीं देते इसके साथ ही उन्हें कठोर दंड भी देते हैं |पति पत्नी के एकांतिक संबंध न हों इसलिए उन्हें जोड़े में रहने ही नहीं देते !उन दोनों में से कोई एक ही क्षमा याचना माँगकर कुछ समय तक रह पाता है |मलमूत्र करने का दंड उन्हें भी मिलता ही रहता है | कुल मिलाकर ऐसे स्थान  अपनी पवित्रता के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करते | आसपास के घरों को खंडहर बनाकर  उस स्थान को जनशून्य कर लेते हैं |अच्छे भाग्य वाले लोग भी ऐसी पीड़ाओं से तब तक दंडित हो रहे होते हैं जब तक ऐसे सिद्ध स्थानों के आस पास रहते हैं | ऐसी परिस्थितियों को समझने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त और कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है | 

 परेशानियाँ अचानक बढ़ने लगें तो ...!

    कई बार सब कुछ अच्छा चलते चलते परिस्थितियाँ अचानक तेजी से बिगड़ने लगती हैं|  व्यापार बर्बाद होने लगता है |मित्र नातेरिस्तेदार आदि अकारण साथ छोड़ने लगते हैं|  परिवार में कलह पैदा हो जाता है |तनाव ग्रस्त स्वजन रोगी होने लग जाते हैं | पुराने विवाद उखड़ने लगते हैं |ऐसे समय कोई स्वजन रूठे तो उसे मना लेना चाहिए क्योंकि गलती उसकी नहीं समय आपका बिगड़ा होता है, अन्यथा सभीलोग आखिर एक साथ आपसे ही क्यों रूठने लगें हैं | ऐसी स्थिति में सबसे पहले अपने परिवार के सभी सदस्यों का समय देखे कि कैसा चल रहा है ?इसके बाद घर से बाहर कुछ समय गुजारे यदि वहाँ भी कलह और तनाव बना रहे  तो स्थिति को अधिक गंभीर मानते हुए बिना समय गँवाए तुरंत करे सुयोग्य ज्योतिष वैज्ञानिक से संपर्क !

 परेशानियाँ अचानक बढ़ने का कारण : 

    जिसका समय बुरा चल रहा होता है उसका सब कुछ बिगड़ता है नौकरी व्यापार आदि बिगड़ता है ,विवाद बढ़ते हैं | मित्र, रिस्तेदार एवं घर, परिवार के लोग साथ छोड़ देते हैं |पति पत्नी में तनाव बढ़ता है|बच्चे बिगड़ते हैं| तनाव के कारण नींद नहीं पड़ती, उससे पेट ख़राब होकर गैस बढ़ती है| दूषित गैस हृदय में चढ़ने से घबराहट होती है,सिर में चढ़ने से चक्कर आते हैं !पेट ख़राब होने से शुगर वीपी जैसे रोग हो जाते हैं | बुरे समय में चिकित्सा से लाभ नहीं होता है | ऐसी सभी परेशानियाँ जिस बुरे समय के कारण पैदा होती हैं वह बुरा समय किसी के जीवन में कब आएगा ? यह पता लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान भी है क्या ? 

तलाक होने के कारण : जिस परिवार में पति या पत्नी किसी एक का समय कुछ वर्ष के लिए खराब आ जाता है तो उतने समय के लिए वह शारीरिक मानसिक आर्थिक आदि सभीप्रकार की समस्याओं का शिकार होकर बिल्कुल अकेला पड़ जाता है | उसके पत्नी या पति का भी बुरा समय यदि इसी बीच शुरू हो जाता है तो समस्याएँ दोनों की एक जैसी बढ़ जाने से तलाक जैसी घटनाएँ घटित होती हैं |ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा विज्ञान नहीं है जिससे उन्हें अच्छे बुरे समय की जानकारी पता लग सके !

        भाग्य है क्या ?ये बनता कैसे है और इसका  निर्माता कौन है ?

    गीता में कहा गया है कि 'कर्म पर व्यक्ति का अधिकार है फल पर नहीं  है'|कर्म मनुष्य के आधीन है तो फल मनुष्य के आधीन क्यों नहीं है | इसका कारण कर्म को करने न करने या कम ज्यादा करने में मनुष्य सक्षम है किंतु भाग्य को कम या अधिक करना मनुष्य के बश में नहीं है|अब प्रश्न उठता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य का निर्माता कौन है ? इसका उत्तर है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने भाग्य का निर्माता स्वयं ही है | अपने अपने भाग्य का निर्माता यदि मनुष्य स्वयं ही है तब तो जो जैसा चाहे अपने भाग्य का निर्माण वैसा कर सकता है,किंतु मनुष्य ऐसा कर क्यों नहीं पाता है?कर्म की तरह ही मनुष्य का अधिकार भाग्य पर भी क्यों नहीं है वो भी तब जब भाग्य जिसका निर्माता भी वही है तब तो फल पर भी उसी का अधिकार होना चाहिए !यदि कर्म उसके आधीन है तो भाग्य भी उसी के आधीन है ,फिर कर्म पर  मनुष्य का अधिकार है तो भाग्य पर क्यों नहीं है ?

  फिर कहते हैं - "अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं " 

      मनुष्य को अपने अच्छे बुरे कर्म अवश्य भोगने पड़ेंगे और भाग्य तो भोगना पड़ता ही है !इन दोनों का एक साथ भोगा जाना कैसे संभव है !किसी समय यदि मनुष्य का भाग्य अच्छा हो और कर्म बुरे हों तो उसे अच्छे भाग्य का फल भोगने को मिलेगा या कर्म का ?

     ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर एक उदाहरण में -   

   कर्मण्येवाधिकारस्ते ... कोई व्यक्ति किसी नौकरी के लिए जब परीक्षा देता है तो परीक्षा देने का वह कर्म कर रहा होता है | ये कर्म जितना अच्छा हो जाए नौकरी पाना उसके लिए उतना ही आसान  जाएगा | उस समय उस कॉपी पर  वह जितना अच्छा लिखना चाहे उतना अच्छा लिख सकता है | इस कर्म पर उसका अधिकार है !परीक्षाभवन में उस व्यक्ति के द्वारा जो जो कुछ लिखा जा रहा होता है उसी के आधार पर उसके भाग्य का फैसला होना होता है | इस हिसाब से परीक्षा देते समय वह व्यक्ति अपने भावी भाग्य का निर्माण कर रहा होता है | उस समय यदि वह अच्छा पेपर देकर अपने अच्छे भाग्य का निर्माण करना चाहे तो इसके लिए वह स्वतंत्र होता है | वह ऐसा कर सकता है | ये उसका अधिकार है !

 मा फलेषु कदाचन - कर्म ही इतने अच्छे करो कि फल की चिंता ही न करनी पड़े, फल अच्छा ही होगा | इसका भरोसा आपको अपने कर्म के आधार पर कर लेना चाहिए | उस व्यक्ति के द्वारा लिखी गई उसकी वही अपनी कॉपी एक बार जमा हो जाने  के बाद उसे जाँचकर उसके अनुशार जब परीक्षाफल  घोषित किया जाता है तो उस  परिणाम में बदलाव किया जाना संभव नहीं होता है |वो परीक्षाफल ही उसका नौकरी विषयक भाग्य होता है |परीक्षा के समय हुई किसी गलती  के कारण यदि वह फेल हो जाए तो फेल होने का कारण यद्यपि उसकी अपनी ही गलती होती है किंतु परीक्षा परिणाम घोषित हो जाने  के बाद उसमें सुधार करना संभव नहीं होता है ,फिर तो फेल होने का मतलब फेल होना ही  होता है बाक़ी सारे तर्क बेकार होते हैं | 

   ये परिणाम ही उस कर्म का फल होता है जो कर्म परीक्षा भवन में उसी विद्यार्थी ने किए थे | उससमय तो बदलाव किए जा सकते थे किंतु परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद वो  व्यक्ति कुछ भी बदलाव नहीं कर सकता है | पहले किए हुए जिन शुभाशुभ कर्मों को अवश्य भोगने की बात कही  गई है वो भाग्य ही है वही परीक्षाफल है | ऐसा जीवन से संबंधित प्रत्येक सुख के विषय में सोचा जाना चाहिए |  

मदद भी उसी को मिलती है जिसका भाग्य और समय ठीक होता है !    

   किसी के मदद करने से  यदि किसी का भला होना होता तब तो सभी लोग अपनों अपनों का ही भला कर लेते थे !स्वस्थ संपत्तिवान विद्वान अफसर मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री आदि सबकुछ अपनों को ही बना लेते किंतु ऐसा होता तो नहीं है | किसी व्यक्ति के अपने कर्मों से ही निर्मित भाग्य के अनुशार ही उसे मदद मिल पाती है | मददगार भले कोई भी क्यों न हो |लोग व्यक्तिगत स्तर से एक दूसरे की मदद करते देखे जाते हैं  इस कार्य से मदद करने वाले को तो पुण्य मिलता है किंतु उनमें से मदद उन्हें ही मिलती है जिसका भाग्य अच्छा होता है | सरकारें स्वयं भी जिस कमजोर वर्ग की मदद करती है न गरीब                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                

कर्म से साधन एवं भाग्य से सुख मिलता है !

    संसार में एक से एक संपन्न लोग हैं जिन्होंने अच्छे से अच्छे संसाधन तो जुटा लिए किंतु उन्हें देख देखकर जीवन भर तड़फते रहे उनका सुख नहीं भोग सके | अच्छे घर में रहते हुए भी शांति न मिले ,अच्छा भोजन हो पर भूख न लगे या पचे न ,चिकित्सा व्यवस्था अच्छी हो किंतु रोग से मुक्ति न मिले, सुंदर पति या पत्नी हो किंतु रतिशक्ति न हो,संतानें हों किंतु उनका सुख न हो तो समझें कि भाग्य ठीक नहीं है| कर्म के बलपर सुख के साधन तो गुंडे माफिया भी अर्जित कर लेते हैं किसी से माँगने से भी  मिल सकते हैं किंतु उनसे सुख उतने ही मिल सकते हैं जितने जिसके भाग्य में बदे होंगे !किसके भाग्य में कौन सुख कितना बदा है ये पता लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा संसार में कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

     ऐसा होने का कारण परिश्रम पूर्वक या किसी का सहयोग लेकर सुख  के साधन तो जुटाए जा सकते हैं किंतु वे भोगे उतने ही जा सकते हैं जितने जिसके भाग्य में बदे हों !इसमें कोई किसी की मदद भी नहीं कर सकता है !किसके भाग्य में कौन सुख कितना बदा है ये पता लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

     कुछ लोगों के पास महँगे मोबाईल हैं किंतु बात किससे करें ?महँगी गाड़ियाँ हैं ड्राइवर हैं किंतु जाएँ किसके घर ?अच्छे खाद्य पदार्थों से घर भरा है रसोइया आदेश की प्रतीक्षा में हैं किंतु भूख नहीं है !पति या पत्नी है जो दूसरों पर आशक्त हैं | घर में महँगा मंदिर है किंतु पूजा में मन नहीं लगता !अपनों से घर भरा है किंतु सब धन के भूखे हैं | मित्र भी दुःख देने वाले हैं महँगा मकान एवं भीड़ भरा घर हो किंतु कोई बात न करता हो !इतने बड़े बड़े सुख के साधनों में रहकर इतना बड़ा दुःख !यही तो भाग्य है !जिसे ज्योतिष के बिना जाना नहीं जा सकता !

 

न स्वयं हासिल की जा सकती है और न ही कोई सहयोग में दे सकता है | का अपना अपना भाग्य होता है ?

 

प्रत्येक सुख भोगने को उतना ही मिलताहै जितना जिसके भाग्य में बदा होता है |किसके भाग्य में कौन सुख कितना बदा है ये पता लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

    जीवन में भाग्य और कर्म की भूमिका ! कोई व्यक्ति परिश्रम पूर्वक अच्छे कार्य करेगा तो उसे सफलता या सुख सुविधाएँ आदि मिलेंगी ही यह विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता ! क्योंकि कुछ अनपढ़ गँवार मूर्ख आलसी दुर्गुणी लोग कम प्रयत्न करके या गलत कार्यों से धन संपत्ति पद प्रतिष्ठा आदि प्राप्त कर लेते हैं |वहीं दूसरी ओर कुछ ज्ञानी गुणवान परिश्रमी सदाचारी लोग अत्यधिक परिश्रम करके भी अत्यंत संघर्ष पूर्ण जीवन जीते देखे जाते हैं | सफलता यदि केवल कर्म के आधीन होती तब तो ऐसा नहीं होता !सफलता पाने के लिए भाग्य के अनुशार कर्म कर्म करना पड़ता है | किसके भाग्य में किस कर्म से सफलता लिखी है ये पता करने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त और कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

      चिकित्सा की भूमिका -  कुछ रोगी स्वस्थ होने के उद्देश्य से चिकित्सक के पास आते हैं और चिकित्सक उनकी चिकित्सा स्वस्थ करने के उद्देश्य से ही चिकित्सा करते हैं | चिकित्सा में प्रयोग की गई प्रभावी औषधियाँ उन्हें स्वस्थ करने के लिए ही दी जाती हैं | इसके परिणामस्वरूप चिकित्सा के प्रभाव से उन सभी को स्वस्थ होना चाहिए किंतु ऐसा न होकर कुछ रोगी अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मृत्यु  को प्राप्त हो जाते हैं ,जबकि चिकित्सा उन सभी को स्वस्थ करने के लिए ही की गई थी | उद्देश्य एवं प्रयत्न के विरुद्ध परिणाम आने का कारण क्या हो सकता है यह खोजने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई और दूसरा विज्ञान कहाँ है |

   ता है के लोगों को ता है ने तक होता है | किसान का हक़ खेत में बीज बोने तक,  सकता है  ना या औषधि देना चिकित्सक के वश में है, जाता है किंतु उसका परिणाम क्या होगा ये तो चिकित्सक कर ने के बाद 

   कुछ पति पत्नी संतान न होने से बहुत परेशान होते हैं जबकि उनकी जाँच रिपोर्टें सारी सामान्य होती हैं,किंतु रिपोर्टें सामान्य होने से उनकी समस्या का समाधान तो  नहीं हो जाता !ऐसी परिस्थिति में उन तनावग्रस्त स्त्री पुरुषों की समस्या का समाधान खोजने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है जिससे न केवल संतान न होने का कारण खोजा जा सके अपितु उसका निवारण भी खोजा जा सके जिससे उन्हें संतान हो सके !ऐसी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए 

   मानसून आने और जाने की भविष्यवाणियाँ प्रायः हर वर्ष गलत निकलती हैं | यदि किसी वर्ष सही निकल भी जाएँ तो वे तीर तुक्के मात्र होते हैं जिनका वैज्ञानिकता से दूर दूर तक कोई संबंध ही नहीं होता है | उपग्रहों रडारों के द्वारा बादलों एवं आँधी तूफानों की जासूसी करके उनकी गति और दिशा के आधार पर यह कह देना कि ये बादल आँधी तूफ़ान आदि कब कहाँ पहुँचेंगे !इसमें मौसम विज्ञान क्या है ? भूकंप बज्रपात जैसी घटनाएँ  उपग्रहों रडारों से दिखाई ही नहीं पड़ती हैं ,ये सब तो अचानक ही घटित होती हैं |इसीलिए इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने का कोई दावा  भी नहीं करता है | मौसमविज्ञान के नाम पर ऐसी कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया ही नहीं है जिसके आधार पर मौसम संबंधी सही पूर्वानुमान लगाया जा सके | प्रकृति से संबंधित मौसमी रहस्यों को समझने में विज्ञान बहुत पीछे छूट गया है |काल्पनिक रूप से गढ़ी गई अलनीनों-लानिना जैसी निरर्थक कहानियों का मौसम पूर्वानुमान लगाने में कोई  योगदान नहीं होता है | ऐसी स्थिति में ज्योतिष के अतिरक्त ऐसा और कौन सा विज्ञान है  जिसके द्वारा प्राकृतिक परिवर्तनों को समझा जा सके एवं मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके  ?

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मृत्यु किसी दुर्घटना की मोहताज नहीं !

    कुछ लोग अंडा मांस मछली आदि खाते हैं कुछ लोग शराब आदि तरह तरह के नशे का सेवन करते हैं | कुछ लोग   परस्त्रीगमन जनित पाप कर्मों में संलिप्त रहते हैं |ऐसे लोगों की जब  मृत्यु होती है तो उनके खान पान रहन सहन सोने जागने की अनियमियता को जिम्मेदार ठहराया जाता है | यदि यह सच है तो बहुत लोग ऐसे भी होते हैं जिनका खानपान रहन सहन सोना जागना आदि सब कुछ बहुत ही नियम संयम से युक्त अत्यंत सात्विक होता है | मृत्यु तो उनकी भी होती है | ऐसी परिस्थिति में किसी के रोगी होने का कारण क्या केवल उसका गलत आहार बिहार रहन सहन सोना जागना ही है या कुछ और भी !यदि और भी है तो वह क्या है इसकी सच्चाई समझने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त और दूसरा विज्ञान कौन सा है ?

        चिकित्सा से भी लाभ उसी को मिलता है जिसका समय अच्छा होता है !

   किसी की मृत्यु हो जाने पर लगा करता है कि रोगी को उस अस्पताल ले गए होते ! उस चिकित्सक को दिखा लिया होता ! उस औषधि का सेवन करवा दिया होता तो शायद बच जाते !ये पछतावा सारे जीवन चलता है |आखिर ये कैसे पता लगे कि मृत्यु को प्राप्त रोगी की मृत्यु के लिए उसकी शारीरिक कमजोरी कितनी जिम्मेदार !अच्छी चिकित्सा न मिल पाना कितना जिम्मेदार !और उसका अपना बुरा समय कितना जिम्मेदार ! इस संशय का निवारण करने के लिए ज्योतिष के अलावा दूसरा कौन सा विज्ञान है जो सच्चाई खोजने में मदद कर सके !

    सोचिए - लगभग एक जैसे अस्वस्थ कुछ लोगों की चिकित्सा किसी एक चिकित्सालय में एक चिकित्सक के द्वारा एक ही समय में एक ही जैसी की जाए है तो उसका प्रभाव भी उन सभी रोगियों पर एक जैसा ही पड़ना चाहिए, किंतु ऐसा तो होता नहीं है |उनमें से कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं जबकि कुछ मृत्यु को प्राप्त होते हैं |एक जैसी चिकित्सा से तीनप्रकार के परिणाम !वे भी परस्पर इतने विरोधी कि कुछ पूरी तरह स्वस्थ तो कुछ मृत्यु को प्राप्त !इतनी महँगी चिकित्सा के बाद चिकित्सालयों के द्वारा परिजनों को सौंपे जाएँ रोगियों के शव !आखिर यह कैसा जिम्मेदारीमुक्त चिकित्साविज्ञान !परिणाम का पूर्वानुमान पता लगाए बिना चिकित्सा कैसी !पूर्वानुमान लगाना ज्योतिष के बिना कैसे संभव है?

  कई बार कुछ अच्छे खासे स्वस्थ लोग किसी सामान्य रोग से पीड़ित होकर अस्पताल जाते हैं |वहाँ  अच्छी से अच्छी चिकित्सा के बाद भी उनकी स्थति बिगड़ती चली जाती है किंतु सुधार न होकर अपितु उस रोगी की मृत्यु हो जाती है |ऐसे में विचारणीय विषय यह है किजिस रोगी को समय से सुयोग्य चिकित्सक मिले, चिकित्सा करने के लिए के लिए पर्याप्त समय मिला, अच्छी से अच्छी चिकित्सा हुई| इसके बाद भी रोगी की मृत्यु हो जाने का वैज्ञानिक कारण क्या है | क्या  चिकित्सक लोग रोग को ठीक से समझ नहीं पाए ,ठीक ठीक चिकित्सा नहीं कर सके या चिकित्सा के लिए जो  प्रक्रिया अपनाई गई उसी में गलती हुई !आखिर उसकी मृत्यु होने के लिए जिम्मेदार कारण क्या है ?वह वास्तविक कारण खोजने के लिए ज्योतिष के अलावा  कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

      कई बार सुयोग्य चिकित्सकों से अच्छी से अच्छी चिकित्सा का लाभ लगातार लेते रहने वाले रोगियों का रोग बढ़ता जाता है और बाद में मृत्यु हो जाती है | ऐसी स्थिति में यदि वह रोगी स्वस्थ हो जाता तब तो इसका श्रेय उन चिकित्सकों को,उस चिकित्सा प्रक्रिया को और चिकित्सा में प्रयोग की गई औषधियों को दिया जाता ! दुर्भाग्यवश इतनी चिकित्सा करने के परिणाम स्वरूप रोगी की मृत्यु हो गई तो इसके लिए भी उन्हीं चिकित्सकों  चिकित्सा प्रक्रिया को एवं चिकित्सा में प्रयोग की गई औषधियों को ही जिम्मेदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए !इतनी चिकित्सा के परिणाम स्वरूप उस रोगी की मृत्यु होने के लिए यदि भाग्य को, भगवान् को जिम्मेदार बताया जाता है तो  चिकित्सा के परिणाम स्वरूप जो रोगी स्वस्थ हो जाते हैं उनके स्वस्थ होने का श्रेय भी भाग्य और  भगवान को ही दिया जाना चाहिए ! ऐसी स्थिति में उस रोगी के स्वस्थ होने या मृत्यु को प्राप्त होने में चिकित्सा की भूमिका क्या है ?इसका वास्तविक कारण खोजने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

     

 चिकित्सा में अनिश्चितता :कुछलोग बचपन से ही कठिन संघर्ष करते हुए बड़ी मुश्किल से कोई व्यापार स्थापित कर पाते हैं |इसी बीच उन्हें अचानक कोई बड़ा रोग होता है |जिसकी चिकित्सा शुरू होती है जो बहुत महँगी होने से उसका सबकुछ बिक जाता है,फिर भी मृत्यु हो जाती है | इतनी चिकित्सा के बाद भी मृत्यु होगी ही यह उसे यदि पहले से पता होता तो न वह काम को स्थापित करने के लिए इतना संघर्ष करता और न ही चिकित्सा में इतना धन खर्च करता ! चिकित्सा की नहीं जा सकी और मृत्यु के विषय में पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका,  दूसरी ओर ज्योतिष जैसा विज्ञान जिससे जीवन में आने वाली ऐसी कठिन परिस्थितियों के विषय  में  पूर्वानुमान तो लगाया ही जा सकता है | 

 पंडित पुजारी ड्रेसिंग कर सकते हैं सर्जरी तो ज्योतिष वैज्ञानिक ही करेगा !  

 

ज्योतिष सेवाओं की दृष्टि से

विवाह टूटना कैसे बंद हो !


    तलाक कराने के लिए कानून है वकील हैं  और घर बसाने के लिए..?

किंतु विवाह बचाने के लिए जो लोग विद्वान् ज्योतिषी नहीं खोज पाते हैं वही लोग तलाक दिलाने के लिए महँगा वकील खोज लेते हैं | विवाह टूटने का यह एक बड़ा कारण है |

  स्वास्थ्य बिगड़ने का कारण क्या है कैसे पता लगे ?

   कई बार किसी को कोई रोग होता है जिसकी चिकित्सा करने से उसे थोड़ा आराम तो मिलता है किंतु पूरा नहीं होता है | ऐसे में हैरान परेशान होकर वो किसी तांत्रिक के पास जाता है | वहाँ से भी उसे थोड़ी आराम मिलती है किंतु अधिक नहीं !इसके बाद वो महामृत्युंजय जप करवाता है इससे भी उसे कुछ आराम ही मिल पाती है पूरी नहीं |इस प्रकार से थोड़ा थोड़ा आराम तो तीनों से मिलने के कारण विश्वास तीनों पर हुआ किंतु पूरी तरह से रोगमुक्ति कहीं से न मिलने के कारण यह निर्णय कैसे लिया जाए कि पूरी तरह रोगमुक्ति दिलाने में उन तीनों में से कौन अधिक सक्षम है जिससे पूरी तरह लाभ हो सकता है | इसका निर्णय लेने के लिए  ज्योतिष के अतिरिक्त और दूसरा विज्ञान कौन सा है ?

 विधवा या विधुर होने का कारण ? पति-पत्नी के द्वारा जाने अनजाने में हुई कुछ ऐसी विवाहसुख विषयक गलतियों का प्रायश्चित्त करने के लिए विधवा या विधुर रूप में जीवन बिताना होता है | ये एक प्रकार का संन्यासव्रत होता है जिसका अत्यंत पवित्रता पूर्वक परिपालन करना होता है |  

याँ अपराध  कुछ कर्मों का प्रायश्चित्त करने के लिए उसे पत्नी या पति सुख का न होना !इसीलिए भाग्यवश उसका विवाह किसी ऐसे पुरुष से हुआ होता है जिसके भाग्य में आयु कम थी या जिस किसी भी प्रकार से पत्नी सुख कम रहा होता है| ऐसा ही पुरुषों के जीवन में भी होता है |कुछ लोग यह प्रायश्चित्त ठीक ढंग से कर लेते हैं वे तो इसी जन्म में ऐसे संकटों से मुक्ति पा लेते हैं ,जबकि कुछ पति या पत्नी सुख से रहित  स्त्री पुरुष किन्हीं दूसरे पुरुष या स्त्रियों से वैवाहिक सुख भोग किया करते हैं |उन्हें कई जन्मों तक इस प्रकार का  प्रायश्चित्त करते रहना पड़ता है | इसलिए प्रत्येक स्त्री पुरुष को अपने अपने विषय में पता होना चाहिए कि उसे विवाह का सुख कितना बदा है | ज्योतिष के बिना ऐसा पता किया जाना किसी अन्य विज्ञान से संभव ही नहीं है | 

   विवाह के लिए भी कोई विज्ञान है क्या ?

  जिन वैवाहिक सुखों के लिए बच्चों को बचपन से ही बड़ी उत्सुकता रहती है |जिनके लिए लोग तरह तरह की बदनामियाँ झेलते हैं |अनेकों बड़े बड़े रईसों नेताओं अभिनेताओं विधायकों सांसदों मंत्रियों को शासन प्रशासन के लोगों पर  इन्हीं वैवाहिक सुखों के लिए ही तो छेड़ छाड़ ब्यभिचार बलात्कार के आरोप लगते या जलील होते देखे जाते हैं |बलात्कारियों को फाँसी तक होती देखी गई है | अनेकों कथाबाचक  साधू संत आदि भी बदनाम होते देखे गए हैं |वैवाहिक जीवन का तनाव कोई छोटी समस्या तो नहीं है| विवाह संबंधी समस्याओं  का समाधान खोजना समाज सरकार एवं विज्ञान की जिम्मेदारी है किंतु समाधान खोजने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान नहीं है |जिससे वैवाहिक जीवन संबंधी अनुमान पूर्वानुमान लगाए जा सकें तथा संकटों के समाधान खोजे जा सकें ! 

 विवाहविज्ञान मतलब क्या ?

    ऐसा विज्ञान जिसके द्वारा विवाह संबंधी समस्याओं को कम किया जा सके तथा टूटते विवाहों एवं विखरते परिवारों को सुरक्षित किया जा सके | इसके लिए वैवाहिक जीवन के विषय में कुछ पूर्वानुमान पहले से पता होने चाहिए |विवाह संबंधी सुख कितना मिलेगा !कितने प्रतिशत ऐसी बातें या आदतें सहकर चलना होगा जो पसंद नहीं हैं | इसी के अनुशार जीवनसाथी खोजना होगा |ससुराल में जिन सदस्यों के साथ अधिक बात व्यवहार होने की संभावना हो उनसे भी मिलान करके देख लेना चाहिए |जिनके साथ मिलान कमजोर होगा उनसे बहुत सावधानी से बात व्यवहार करना होता है |ऐसे ही जहाँ रहना या सोना होता है वो स्थान जितना अधिक सजीव होगा आपसी प्रेम उतना अधिक रहेगा | ये सब कुछ पता किया जाना ज्योतिष के बिना संभव नहीं है |  

 


 

 कई बार विवाह संबंधी विवादों के लिए पति - पत्नी का स्वास्थ्य या संतान न होना कारण होता है | मानसिक तनाव या आर्थिक परिस्थितियाँ कारण हो सकती हैं | वह स्थान कारण हो सकता है जहाँ मिलने पर उन्हें एक दूसरे पर क्रोध आने लगता है | वह समय कारण हो सकता है जिस समय तनाव बढ़ता है |तंत्र मंत्र जादू टोना आदि कारण हो सकते हैं |पारिवारिक सदस्य या बाहरी लोग कारण हो सकते हैं |इतने भिन्न भिन्न कारणों में से कुछ तो उन्हें पता होते हैं जबकि कुछ उन्हें भी नहीं पता होते !जिनके लिए बाद में पछता रहे होते हैं कि अचानक ऐसा कैसे हो गया ? किसके वैवाहिक विवाद का कारण क्या है यह जाने बिना उसका समाधान कैसे खोजा जा सकता है | कारण पता लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ? 


 विवाह संबंधी समस्याओं का पूर्वानुमान एवं उनके समाधान !

   किसी के वैवाहिक जीवन में क्या क्या समस्या आ सकती है उसका पूर्वानुमान लगाकर उसके वैवाहिक जीवन को  सुखी बनाने के लिए किस प्रकार की अग्रिम सावधानी बरती जानी चाहिए जिससे उस प्रकार की कष्टप्रद परिस्थितियाँ पैदा ही न हों | जो लड़के लड़कियाँ प्रेम संबंधों के चक्कर में पढ़कर कई बार बलात्कार,हत्या या आत्महत्या जैसी घटनाओं के शिकार होते हैं |एसिड अटैक जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |ऐसे युवाओं की युवा अवस्था आने से पूर्व ही हमारे यहॉँ से यह पता कर लिया जाना चाहिए कि इस बच्चे को वैवाहिक सुख पाने के लिए कितने संघर्ष करने पड़ेंगे | उसके लिए क्या क्या सावधानियाँ बरतनी पड़ेंगी जिससे विवाहित जीवन को सुखी बनाया जा सकता है | यह सब करने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान नहीं है |

 

              ज्योतिषियों के बिचारे हुए विवाहों में भी तो होते हैं तलाक !ऐसा क्यों ?

    केवल ज्योतिष के विज्ञान होने से बात नहीं बनती है जिस ज्योतिषी ने विवाह बिचारा है वह ज्योतिषी भी तो  ज्योतिष वैज्ञानिक होना चाहिए ! इसके साथ ही साथ उस ज्योतिषवैज्ञानिक के द्वारा बिचारे हुए विवाहों में वैज्ञानिक विधि अपनाई गई हो |ऐसा किया जाना तभी संभव है जब उस ज्योतिषी को उसकी योग्यता के अनुशार पारिश्रमिक देने की जिम्मेदारी निभाई गई हो !जिससे उस विवाह को बिचारने के लिए प्रत्येक आवश्यक प्रक्रिया पूरी की  जा सके !तभी उसके द्वारा की गई भविष्यवाणी या बिचारे गए विवाहों को एक सीमा तक सही माना जा सकता है |  

     किसी लड़के लड़की के विवाह का बिचार करते समय सुयोग्य ज्योतिषी को अत्यधिक परिश्रम करने की आवश्यकता होती है | कंप्यूटर की कुण्डलियाँ उतनी सही नहीं होती हैं इसलिए उसे पञ्चाङ्ग पद्धति से लड़के लड़की की दोनों की सही सही कुण्डलियाँ बनानी चाहिए |इसके बाद उन दोनों को मिलाने के लिए उन दोनों के भाग्य में बदे वैवाहिक सुख का आकलन करना चाहिए |उन दोनों के संतान सुख का आकलन होना चाहिए | दोनों के स्वास्थ्य ,स्वभाव संपत्ति सुख आदि का आकलन किया जाना चाहिए |दोनों की आयु देखी जानी चाहिए | उन दोनों में से किसके जीवन में कब कितना समय अच्छा और कितना समय बुरा होगा | दोनों की कुंडलियों में इसका बिचार किया जाना चाहिए | इसके बाद उस लड़की को लड़की के घर में किन किन पारिवारिक सदस्यों के साथ निर्वाह करना होगा उनके नाम के साथ उन सदस्यों के नाम का मिलान किया जाना चाहिए जिससे ये पता लग सके कि उनमें से किसके साथ संबंध निर्वाह करने के लिए किस प्रकार की कितनी सावधानी बरतनी पड़ेगी |इन सब का अच्छी प्रकार से बिचार कर लेने से विवाह के बाद न कलह होता है और न  ही तलाक ! इतना सबकुछ मिलान करने में ज्योतिषी को काफी परिश्रम एवं समय की आवश्यकता होती है |जिसके लिए उसे पर्याप्त धन चाहिए | यदि ऐसा नहीं होता है तो वो उस प्रकार से कुंडली का बिचार नहीं कर पाता है जिसकी आवश्यकता थी | इसलिए उसके द्वारा बिचारा गया विवाह सही निकलने की संभावना कम ही होती है |  

     विद्वान ज्योतिषियों की भी भविष्यवाणियाँ कई बार गलत निकल जाती हैं,क्यों ?

       कई बार ज्योतिषियों की भविष्यवाणियाँ इसलिए भी गलत निकल  जाती हैं क्योंकि उन्हें वो पारिश्रमिक नहीं दिया गया होता है | जिस काम को करने की अपेक्षा ज्योतिषियों से की जाती है |इसलिए वे परिश्म नहीं करते हैं और भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |

    कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि मैंने किसी विद्वान् ज्योतिषी से कुंडली दिखा ली है  इसलिए उनकी कही हुई बात सही होगी ही किंतु ऐसा होता नहीं है|ज्योतिषी के विद्वान होने से और आपकी कुंडली देखे जाने का आपस में क्या संबंध !आपका ज्योतिषी से उतना ही संबंध होता है जितना आप धन देते हैं और वे आपको ज्योतिष सेवाएँ देते हैं | ज्योतिषी यदि बहुत बड़े विद्वान् हों भी तो इससे आपको लाभ कैसे मिल सकता है | जिस प्रकार से बिजली के बोर्ड में कितनी भी करेंट हो किंतु प्रकाश उतना ही होगा जितने बॉड का बल्ब लगाया जाएगा | ऐसे ही समुद्र में पानी कितना भी क्यों न हो किंतु आप उससे उतना ही जल लेकर आ सकते हैं जितना बड़ा आपके पास बर्तन होगा |    

    इसी प्रकार से बड़े से बड़े ज्योतिषी के पास जाकर भी आप उनकी विद्या का लाभ उतना ही ले सकते हैं जितने का मूल्य चुकाते हैं | यदि आप पर्याप्त मूल्य चुकाए बिना ही ज्योतिषी की विद्या का संपूर्ण लाभ लेना चाहते हैं तो ये संभव नहीं है | इसलिए ज्योतिष वैज्ञानिक की संपूर्ण योग्यता का लाभ लेने के लिए उसके द्वारा निर्धारित किए गए आर्थिक मानकों को प्रसन्नता पूर्वक पूरा करना चाहिए ,ऐसा किए बिना उससे सही सलाह पाने की आशा नहीं रखनी चाहिए !

    

 ज्योतिषी के भी बलिदान की सीमा है !

 ज्योतिषी की सेवा का मूल्यांकन यदि दरिद्रता पूर्वक किया जा रहा होता है तो इससे अप्रसन्न ज्योतिषी आपके कार्य में जितने परिश्रम की आवश्यकता है वो नहीं कर पाते हैं |किसी  दरिद्र के लिए उन्हें इतना बड़ा बलिदान करना भी नहीं चाहिए |

    जिस प्रकार से आपने अपने जीवन में संघर्ष पूर्वक बहुत सारा धन संपत्तियाँ कमाई होती हैं |उसीप्रकार से उस ज्योतिष वैज्ञानिक ने भी ज्योतिष जैसे महानशास्त्र को पढ़ने एवं अनुसंधान करने में अपना जीवन लगा दिया होता है | यदि आप अपने धन की कीमत समझते हैं तो उस ज्योतिषविद्या की कोई कीमत ही नहीं है जिसका लाभ लेने के लिए आप ज्योतिषियों के पास जाते हैं | उन की तो विद्या ही संपत्ति है |उसका अपमान करके आप उस विद्या से लाभ नहीं ले सकते हैं |किसी ज्योतिषी की हैसियत अपने से कम आँककर आप  उनकी विद्या से लाभ नहीं ले सकते हैं |      

          ज्योतिषियों के जीवन की कठिनाइयाँ !

     ज्योतिषियों की आवश्यकताएँ भी आम लोगों की तरह ही होती हैं उन्हें भी जीवनयापन के लिए आम लोगों की तरह ही धन की आवश्यकता होती है |आखिर उन्हें भी तो इसी समाज में रहना होता है | जो वो विद्वानज्योतिषी है इसलिए आप ऐसा चाहते हैं कि वो आपकी कुंडली देखने या विवाह बिचारने में अपनी संपूर्ण विद्वत्ता लगा दे तो क्या आपसे उस ज्योतिष वैज्ञानिक को भी ऐसा अधिकार देने को तैयार हैं कि वो आपकी संपत्ति का भी संपूर्ण उपयोग करे | यदि नहीं तो आपको उस ज्योतिषी की विद्या का पूर्ण उपयोग करने का अधिकार नहीं है | उसके द्वारा कही हुई बात यदि गलत निकल जाती है तो ये गलती उसकी नहीं अपितु आपकी दरिद्रता ही है |

     ज्योतिष वैज्ञानिकों के अन्य सभी लोगों की तरह ही उनके भी सामाजिक संपर्क होते हैं नाते रिस्तेदार होते हैं मित्र मंडली होती है सामाजिक संपर्क होते हैं और ज्योतिषी होने के नाते ऐसे संबंध बहुत अधिक बढ़ जाते हैं प्रत्येक आदमी अपनी हैरानी परेशानी के समय या बच्चों के काम काज करते समय उस ज्योतिषी से निशुल्क सेवाएँ लेना चाहता है |जो उस अकेले ज्योतिषी के द्वारा किया जाना संभव ही नहीं है | उसने शिक्षा काल में इतना संघर्ष किया फिर यह दंड भोगे ऐसी आवश्यकता ही क्या है ?

ने  ने विवाह बिचारते समय

     

 

ज्योतिष जैसे इतने बड़े विज्ञान की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि कोई भी सक्षम व्यक्ति अपने बच्चे को ज्योतिष नहीं पढ़ाना चाहता है |गरीब लोग थोड़ी बहुत ज्योतिष पढ़कर खाने कमाने में लग जाते हैं या पंडित पुजारी बन जाते हैं |कुछ ऐसे अनपढ़ या पढ़े लिखे लोग जिन्हें ज्योतिष के विषय में कुछ भी नहीं पता होता है वे भी बेरोजगारी के कारण ज्योतिषी बन जाते हैं |ऐसे अनपढ़ लोग भी कहीं से डिप्लोमा लेकर या किसी से गोल्डमैडल माँगकर या किसी नेता अभिनेता के साथ फोटो खिंचवाकर या मीडिया में प्रचार करवाकर अपने को ज्योतिषी या वास्तुशास्त्री के रूप में प्रसिद्ध कर लेते हैं |ऐसे ज्योतिष बिना पढ़े लिखे लोग अपने को ज्योतिषी के रूप में प्रसिद्ध करने के लिए दूसरों को ज्योतिष पढ़ाने का नाटक करते हैं | टीवी चैनलों पर बैठकर बड़ी बड़ी बहसें करते हैं | बंदरों की तरह ऐसी सारी उछलकूद केवल इसलिए करते हैं कि लोग उन अनपढ़ों को ज्योतिषी समझने लगें  जबकि ऐसे लोग ज्योतिषी नहीं होते हैं| इन्होंने किसी प्रमाणित विश्व विद्यालय से ज्योतिष की कोई डिग्री नहीं ली होती है | केवल प्रचार के बलपर ज्योतिषी या वास्तुविद बन जाते हैं | ऐसी हरकतें करके यदि कोई डॉक्टर इंजीनियर नहीं बन सकता है तो ज्योतिषी कैसे बन सकता है | यह सोचने वाली बात है |

    ज्योतिष पढ़ना बहुत कठिन काम है कम से कम बारह वर्ष किसी योग्य ज्योतिषी की शरण में रहकर दिन रात परिश्रम करके ज्योतिष पढ़ी जा सकती है | इसके अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा सार्टकट रास्ता नहीं है जिससे ज्योतिष पढ़ना संभव हो |कुछ संस्थाएँ सप्ताह में एक या दो दिन एक एक दो दो घंटे पढ़ाकर जो  डिप्लोमा आदि देती हैं वो केवल दिखावा होता है |इससे ज्योतिष समझ में आना संभव ही नहीं होता है | ज्योतिष एक बहुत बड़ा विज्ञान है | इसलिए यह  पंडितों  पुजारियों के बश का नहीं है | 

 

 यह जानते  हुए भी लोग ऐसे संवेदनशील विषय को उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं |

सफलता का समय आने पर भी सफलता क्यों नहीं मिलती ? 

 

प्राचीन काल में घरों में इतनी कलह नहीं थी अब क्यों है ?

    प्राचीन काल में संयुक्त परिवार हुआ करते थे !इसलिए अर्थ व्यवस्था भी सामूहिक ही होती थी | ऐसे बड़े परिवारों में अनेक स्त्री पुरुष बाल वृद्ध एक साथ मिलजुल कर रहा करते थे | उनमें से जिस किसी सदस्य का समय बुरा आता भी था तो उसी समय कुछ दूसरे सदस्यों का समय अच्छा भी चल रहा होता था | प्रत्येक सदस्य के जन्म दिन पर उससे नवग्रहों का पूजन करवाकर उसके बाद ज्योतिष वैज्ञानिक से एक वर्ष के अच्छे या बुरे समय के विषय में पता कर लिया  जाता था |जिस वर्ष में जिन जिन सदस्यों का समय बुरा होता था उन्हें पीछे करके जिनका समय अच्छा होता था उस वर्ष की निर्णायक जिम्मेदारी उन्हें ही सौंप दी जाती थी | कुछ दूसरे लोगों के अच्छे समय के साथ उनका बुरा समय भी शांति पूर्वक निकल जाता था |

घरेलू कलह कम कैसे हो !पहले परिवारों में इतनी कलह नहीं होती थी| उससमय परिवार के बड़े सदस्यों को उनके रिश्ते के नाम से एवं छोटों को दुलार के नाम से बुलाने का प्रचलन अधिक था |पति पत्नी एक दूसरे का नाम लेते ही नहीं थे | बच्चों के नाम माता पिता आदि घर के बड़ों के नाम से मिलते जुलते रखे जाने से एवं छोटों को दुलार का नाम लेकर बोलाने से घरों में आपसी प्रेम बढ़ता है |चूँकि  प्रत्येक व्यक्ति की सोच उसके नाम के पहले अक्षर से प्रभावित होती है |वर्तमान विज्ञान के युग में पारिवारिक सदस्यों के नाम एक दूसरे से मिलते जुलते अक्षरों से रखे जाने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है | पारिवारिक कलह कम करके सुखशांति बनाए रखना ज्योतिष के बिना कैसे संभव है ?


परिवारों में छोटे बड़े सभी लोगों के नाम लेने की परंपरा कम थी बड़ों के लिए रिश्ते के अनुशार संबोधन थे जबकि 

 इसलिए उसका भरोसा तीनों पर हुआ ,

जिससमय किसी का समय बिगड़ता है उसीसमय तनाव के साथसाथ उसकी सभीप्रकार की समस्याएँ बढ़ती हैं | स्वास्थ्य बिगड़ता है भूत प्रेत जादू टोने आदि से नुक्सान होता है

 विज्ञान के द्वारा न चिकित्सा की जा सकी न मृत्यु के विषय में पहले से पता लगाया जा सका !इतना उन्नत विज्ञान उस व्यक्ति के आखिर किस काम आया ? ज्योतिष के बिना दूसरा ऐसा कौन सा विज्ञान है जो ऐसे समय मदद की अपेक्षा की जा सकती है ? 

गई नी ही है यह पहले से पता न होने के कारण उसका धन भी गया और जीवन भी !इतने उन्नत विज्ञान से उसे क्या लाभ हुआ ?रोगी की मृत्यु इस आयु में होनी है या चिकित्सा होने के बाद भी उसकी मृत्यु होनी ही है यह जानने के लिए ज्योतिष ही एक मात्र विज्ञान है !

वे इतना सारा फैलाव फैला लेते हैं जिसे उनके अलावा उनके परिवार के किसी अन्य व्यक्ति  के द्वारा अचानक सँभाला जाना संभव नहीं होता है ! यह जानते हुए भी वे इसीअवस्था में कुछ लोग किसी मार्ग दुर्घटना में या किसी रोग से या हार्टअटैक से अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं !ऐसे लोगों की मृत्यु पूर्व निर्धारित थी या अचानक हुई !इसका पता लगाने एवं इसका पूर्वानुमान पता करने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ? 

   मृत्यु किसी दुर्घटना की मोहताज नहीं !

    कुछ लोग अंडा मांस मछली आदि खाते हैं कुछ लोग शराब आदि तरह तरह के नशे का सेवन करते हैं | कुछ लोग   परस्त्रीगमन जनित पाप कर्मों में संलिप्त रहते हैं |ऐसे लोगों की जब  मृत्यु होती है तो उनके खान पान रहन सहन सोने जागने की अनियमियता को जिम्मेदार ठहराया जाता है | यदि यह सच है तो बहुत लोग ऐसे भी होते हैं जिनका खानपान रहन सहन सोना जागना आदि सब कुछ बहुत ही नियम संयम से युक्त अत्यंत सात्विक होता है | मृत्यु तो उनकी भी होती है | ऐसी परिस्थिति में किसी के रोगी होने का कारण क्या केवल उसका गलत आहार बिहार रहन सहन सोना जागना ही है या कुछ और भी !यदि और भी है तो वह क्या है इसकी सच्चाई समझने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त और दूसरा विज्ञान कौन सा है ?

     मृत्यु का कारण कैसे खोजा जाए ? 

    कई बार कुछ स्वस्थ लोग किसी रोग से ,हार्टअटैक से,भूकंप बाढ़ चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं से या किसी मनुष्यकृत दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | कुछ ऐसे लोग भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं जिनकी मृत्यु होने के समय किसी भी प्रकार की कोई दुर्घटना कारण नहीं बनती यहाँ तक कि उन्हें कोई रोग भी नहीं होता है | वे चलते फिरते उठते बैठते प्रसन्न मुद्रा में स्थित कुछ पलों में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | ऐसे लोगों की मृत्यु होनी ही थी या दुर्घटनाओं के कारण मृत्यु हुई !क्या दुर्घटनाएँ न घटित होतीं तो मृत्यु नहीं होती और वे अमर हो जाते ! मृत्यु किसी दुर्घटना के आधीन है या स्वतंत्र है !आखिर किसी की मृत्यु होने का वास्तविक कारण क्या है !इस अत्यंत आवश्यक प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

वैवाहिकजीवन में तनाव :  पति-पत्नी दोनों के भाग्य में विवाह संबंधी सुख यदि समान अनुपात में होता है तो वैवाहिकजीवन सुखद  बीतता है |इसमें जितना अंतर होता है उतने तनाव की संभावना रहती है | पति-पत्नी में से किसी एक के भाग्य में यह सुख यदि 50 प्रतिशत बदा होता है और दूसरे के भाग्य में 75 प्रतिशत ,तो 25 प्रतिशत अतिरिक्त वाला कैसे मिले यह सोच वैवाहिकजीवन में कलह या विवाह विच्छेद की संभावना पैदा करती है |इस विषय में यदि पहले से पता हो तो संभावित तनाव रोकने के लिए पहले से प्रयास किए जा सकते हैं किंतु पहले से पता करने के लिए ज्योतिष के अलावा कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

    समय अच्छा होने पर भी रोगी होते हैं कुछ लोग !

     बुरे समय में सब कुछ बुरा होता है और अच्छे समय में सब कुछ अच्छा ,किंतु कई बार जीवन में कुछ अच्छा और कुछ बुरा घटित हो रहा होता है |एक ही समय में कुछ लोग दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते जा रहे होते हैं , परिवार में भी सुख शांति होती है किंतु उसी समय उन्हें कोई ऐसा बड़ा रोग हो जाता है जो चिकित्सा होते हुए भी दिनों दिन बढ़ता  चला जा रहा होता है |यदि समय अच्छा है तो इतना बड़ा रोग क्यों ? और यदि समय बुरा है तो तरक्की और सुख शांति क्यों ? समय अच्छा है इसलिए समय की चिंता नहीं और चिकित्सा अच्छी है इसलिए चिकित्सा की चिंता नहीं !ऐसी स्थिति में दिनोंदिन बिगड़ते स्वास्थ्य के लिए ऐसा क्या किया जाए जिससे रोग नियंत्रित हो यह निर्णय ज्योतिषवैज्ञानिक के द्वारा ही किया जा सकता है | 

ज्योतिष के बिना कैसे संभव है यह जानना ?

    ऐसे साधन संपन्न लोग जो किसी चिकित्सक के हाथों में पैदा होते हैं !चिकित्सकों के द्वारा ही समय पर सारे टीके लगाए जाते हैं |बिटामिन टॉनिक एवं स्वास्थ्य के अनुकूल पौष्टिक भोजन, वातानुकूलत रहन सहन एवं अच्छी चिकित्सा का लाभ लेते हैं फिर भी महामारी में उनके होने के लिए उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी बताई जाती रही जबकि उनकी तो अच्छी होनी ही चाहिए | दूसरी ओर साधन विहीन अत्यंत गरीबवर्ग जिसके पास कोई व्यवस्था नहीं होती है भोजन के नाम पर जहाँ कहीं जो कुछभी मिला जैसे हाथों से मिला जैसा पानी मिला वही खा पी लेते हैं | प्रदूषित जगह जगहों में रहना एवं प्रदूषित हवा में साँस लेने के बाद भी उनके संक्रमित न होने का कारण उनके शरीरों में रोग प्रतिरोधक क्षमता की मजबूती बताई जाती रही |ऐसा कैसे  इसका  पता ज्योतिष से ही लगाया जा सकता है ? 

रोग प्रतिरोधक क्षमता साधन संपन्न लोगों में कम क्यों हुई ?

    साधन संपन्न लोग जो किसी चिकित्सक के हाथों में पैदा होते हैं !चिकित्सकों के द्वारा ही समय पर सारे टीके लगाए जाते हैं |बिटामिन टॉनिक एवं स्वास्थ्य के अनुकूल पौष्टिक भोजन, वातानुकूलित रहन सहन एवं अच्छी चिकित्सा का लाभ लेते हैं, फिर भी महामारी में उनके संक्रमित होने के लिए उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी बताई जाती रही जबकि उनकी तो अच्छी होनी ही चाहिए थी किंतु ऐसा नहीं हुआ ?अच्छी चिकित्सा व्यवस्था का लाभ लेने के कारण को ऐसे लोगों को स्वस्थ भी जल्दी हो जाना चाहिए था जबकि ऐसा भी कम होते देखा गया | ऐसे लोगों पर अच्छे खान पान एवं अच्छी चिकित्सा व्यवस्था का प्रभाव न पड़ने का कारण क्या रहा ?यह जानने के लिए ज्योतिष के बिना दूसरा विज्ञान कहाँ है ? (अपवित्र कमाई अमृत खाओ तो जहर बनकर लगे )

  रोग प्रतिरोधक क्षमता गरीबों मजदूरों में कैसे मजबूत रही ?

   साधन विहीन अत्यंत गरीबवर्ग जिसके पास पोषण की कोई व्यवस्था नहीं थी !  जहाँ जो कुछ  मिला जैसे हाथों से मिला जैसा पानी मिला वही खा पी लेते रहे | प्रदूषित जगहों में रहते रहे ! प्रदूषित हवा में साँस लेते रहे ! कोरोना के समय में दिल्ली मुंबई सूरत जैसे शहरों से श्रमिकों का पलायन ! दिल्ली में किसानों का धरना!बिहार बंगाल में चुनावी रैलियाँ ! हरिद्वार में कुंभ का आयोजन !जैसे स्थानों पर कोविड नियमों का पालन बिल्कुल  न करने पर भी उनके अधिक स्वस्थ बने रहने का कारण क्या रहा !गरीबों की अपेक्षा चिकित्सा सुविधा से युक्त ,साधन संपन्न धनी वर्ग जिसने कोविड नियमों का पालन भी अधिक किया !इसके बाद भी उनके अधिक संक्रमित होने का कारण खोजना ज्योतिष के बिना कैसे संभव है !

  क्या रहा !वैज्ञानिकों ने गरीबोब रोग प्रतिरोध क्षमता बताया  इसका पता लगाने के लिए ज्योतिष के अलावा और दूसरा विज्ञान कौन है ?(पवित्र कमाई -जहर खाओ तो अमृतबनकर लगे )ऐसे लोगों के महामारी से कम संक्रमित होने का कारण    

 सुख दुःख का कारण समय है या संसाधन कैसे पता लगे ?

    सरकारों एवं शासन प्रशासन में बैठे लोग भी समस्या ग्रस्त होते हैं | चिकित्सक भी रोगी होते हैं |कुछ संपत्तिवान लोग भी तनाव में  देखे जाते हैं !कुछ गरीब लोग भी प्रसन्नता पूर्वक सुख शांति पूर्ण स्वस्थ जीवन जी लेते हैं |सुंदर संपन्न कुलीन परिवार के लड़के लड़कियों से विवाह करके भी कुछ लोग विवाह का सुख नहीं पाते तो कुरूप गरीब एवं निम्नकुलों में विवाह करके भी कुछ लोग सुखी वैवाहिक जीवन जी लेते हैं | कोठियों में भी कुछ लोग कुढ़ रहे होते हैं तो झुग्गियों में भी कुछ लोग प्रसन्न होते हैं | कुछ स्वस्थ और बलिष्ट शरीर वाले लोग भी रोगी होते हैं कुछ दुर्बल शरीर वाले लोग भी स्वस्थ होते हैं|ऐसी परिस्थितियों के पैदा होने का कारण संसाधन हैं या समय इसे खोजने के लिए ज्योतिष के बिना कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

समस्याएँ सबके साथ हैं !

   ज्योतिषियों साधूसंतों  तांत्रिकों कथावाचकों को  भी तो परेशान होते देखा जाता है |इनके अपने एवं अपनों के भी शरीर रोगी होते हैं | मानसिक तनाव होते हैं | धन का अभाव होता है | विवाह संबंधी तनाव होता है | संतान न होने का दुःख होता है | भूतों प्रेतों के संकट इन्हें भी झेलने पड़ते हैं | गलत कार्यों में संलिप्त होते इन्हें भी देखा जाता है | जेल इन्हें  भी जाना पड़ता है | बदनामी इन्हें भी सहनी पड़ती है | दुर्गुण इनमें भी होते हैं | दुर्दशा इनकी भी होती है विश्वासघात इन्हें भी सहना पड़ता है |ऐसे लोगों को अपना भविष्य क्या पता नहीं होता है ?ये अपने लिए उपाय क्यों नहीं कर पाते हैं ? समय और भाग्य का दंड प्रत्येक जीव को बराबर भोगना पड़ता है !जिसे एक सीमा तक पता लगा लेने का विज्ञान एक मात्र ज्योतिष ही है !

ज्योतिषियों साधूसंतों  तांत्रिकों कथावाचकों की पवित्रता की पहचान कैसे हो ?

     जिस प्रकार से आईएएस पीसीएस जैसी परीक्षाओं को पास करने के लिए ऐसी विद्यालयों में एडमीशन ले लेने मात्र से कोई आईएएस पीसीएस अधिकारी तो नहीं हो जाता है उसके लिए उसे पर्याप्त तैयारी के द्वारा परीक्षा पास करके अपनी प्रशासन क्षमता योग्यता प्रमाणित करनी पड़ती है | इतनी बड़ी तैयारी करके भी असफल होने के बाद  कुछ लोग तो अपनी सात्विकता संस्कारों आदि से ,अपने को सँभाल लेने में सफल हो जाते हैं ,जबकि कुछ लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं | उनमें से कुछ लोग तरह तरह के नशे के लती हो जाते हैं जबकि  कुछ आपराधिक कार्यों में सम्मिलित होते देखे जाते हैं |इसी प्रकार से ज्योतिषियों साधूसंतों  तांत्रिकों कथावाचकों को स्वरूप धारण करने मात्र से सफल मानकर इनसे धोखा उठाने वाले कुछ लोग धर्म एवं धर्म शास्त्रों की निंदा करते देखे जाते हैं जबकि इसमें इनका क्या दोष !

   देवी देवता चमत्कार करने के लिए नहीं होते !

    साधू संत तपस्वी योगी ऋषि मुनि आदि तपस्या के प्रभाव से न केवल किसी के मन की बात जान लिया करते हैं अपितु उनके बीते जीवन में घटित हुई घटनाओं के साथ साथ भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं के विषय में भी पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं |ऐसे सिद्ध लोग  तपस्या के प्रभाव से उनके वर्तमान एवं भविष्य के संकटों को एक सीमा तक कम कर देते हैं, किंतु ऐसा किया जाना कभी कभी ही संभव होता है |वे अपनी तपस्या को चमत्कार का विषय कभी नहीं बनने देते |दरवार लगाकर किसी के मन की बात बताने या भविष्य की बात बताने या उनका संकट कम करने के लिए देवी देवताओं को बाध्य नहीं किया जा सकता है|देवी देवताओं से प्रार्थना ही की जा सकती है जो कभी कभी ही संभव है |

किसी के  मन की बात जान लेना कितना बड़ा  विज्ञान है !

   देवताओं सिद्धों संतों योगियों तपस्वियों को भूत भविष्य वर्तमान सब कुछ पता होता है किंतु वे अपनी तपस्या ये सबकुछ बताने में नष्ट नहीं करते|यदि वे बार बार ऐसा करें तो सिद्धियाँ साथ नहीं देतीं |भूतों  प्रेतों पिशाचों जिंदों यक्षिणियों आदि को बश में करके मायावी राक्षस प्राचीन काल में दरवार लगाया करते थे | ऐसे लोग भूतों  प्रेतों से पूँछ कर किसी के मन की बात या बीती हुई बात तो बता सकते हैं किंतु भविष्य की नहीं | जो बताते भी हैं वो गलत निकलता है | इसलिए ऐसे मायावी लोग समाज को कुछ समय के लिए भ्रमित तो कर लिया करते हैं फिर पोल खुल जाती है | भविष्य को सही सही जानने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त और दूसरा विज्ञान कौन सा है | जिससे बताई हुई बीती बातें जितने प्रतिशत सच निकलती हैं उतनी ही भविष्यवाणियाँ ! 

 

ने में भले 

वाणी करने के नामपर झूठ बोल दिया करते हैं जो पूरी तरह गलत निकलता है क्योंकि भूतों  प्रेतों को किसी का भविष्य नहीं पता होता है |

 उसी की आड़ में ये भविष्य के विषय में जो भी बोल देते हैं या जो आशीर्वाद दे देते हैं | हैरान परेशान लोग उसे सच मान लिया करते हैं और उस पर विश्वास करने लगते हैं, किंतु भविष्य जानना या किसी का संकट कम करना इनके बश का नहीं होता है |इसलिए पोल तब खुलती है जब इनकी की हुई भविष्यवाणियाँ  गलत होने लगती हैं तब तक ये समाज को भ्रमित करते रहते हैं |

 किसी के मन की बात पता लगा लेने का विज्ञान !

  मन की बात बताने का धंधा !

  

देवी देवताओं की सिद्धि करने में कई जन्म लग जाते हैं |उसके बाद भी वे किसी के आगे इतने मजबूर नहीं हो सकते कोई दरवार लगाकर किसी  दूसरी बात कुछ लोग भूत प्रेत पिशाच जिंद या यक्षिणी आदिधंधे में कुछ लोग किसी के मन की बात बताने का जानकर  मुख से बीती बात सुन कर लोग सोचने लगते हैं कि ये भविष्य के विषय में भी जो बता रहे वो भी सच ही होगा !

  किसी मन की बात बताने का धंधा कितना खतरनाक है !

      कोई भी विधर्मी आकर तुम्हारे देवी देवताओं की जय बोलने लगे या तुम्हारे साधू संतों जैसा वेष धारण कर ले     हिंदू या हिंदुत्व की कसमें खाने लगे श्री राम एवं श्री कृष्ण की कथाएँ करने लगे संकीर्तन करने लगे तो आप उसे धार्मिक कैसे मान लेते हैं |आपको धोखा देने के लिए ऐसे आचरण तो कोई आतंकवादी या अपराधी भी कर सकता है |रावण ने भी तो धार्मिक स्वरूप बनाकर सीता हरण किया था |सनातन धर्म के किसी भी देवी देवता ऋषि मुनि महात्मा ने विद्वान ने किसी के मन की बात बताने वाला पहले कभी कोई ऐसा दरवार क्यों नहीं लगाया ! यहाँ तक कि जो बागेश्वर में दरवार लगाता है उसके अपने गुरू ने स्वयं ऐसा क्यों नहीं किया ?देवी देवताओं  ऋषियों  मुनियों  महात्माओं विद्वानों को गरीबों दीन दुखियों की परेशानियाँ देखकर ऐसी दया क्यों नहीं आती है कि वे भी दरवार लगाकर परेशान लोगों के दुःख दूर करते ! उनमें ऐसी योग्यता नहीं है या वो ऐसा करते नहीं हैं या वो करना चाहते थे किंतु बेचारे सफल नहीं हुए !क्या वे तपस्वी नहीं हैं ! क्या वे चरित्रवान नहीं हैं ! क्या वे विद्वान नहीं हैं !क्या उनमें योग्यता नहीं है |आखिर उनकी तपस्या हनुमान जी को पसंद क्यों नहीं आई ?हनुमान जी दरवार लगवाने के यदि इतने ही शौकीन थे तो उन तपस्वियों को दरवार लगाने की प्रेरणा क्यों नहीं दी थी ! आखिर उन दिव्य तपस्वियों में  ऐसी कौन सी कमी थी जो हनुमान जी उन पर इतना प्रसन्न नहीं हुए कि वे भी बागेश्वर जैसे दरवार लगा लेते ! उन्होंने ऐसा कभी कोई दरवार क्यों नहीं लगाया !

     बंधुओ !ऐसे दरवार लगाने की अपने वेदों पुराणों रामायणों अदि प्राचीन साहित्य में कहीं कोई परंपरा मिलती नहीं है |रामायण में ऐसे दरवार लगाने की दो घटनाएँ घटित हुई हैं वे भी राक्षसों के यहाँ -एक तो  राम लक्षमण का हरण करके अहिरावण ने दरवार लगाया था |दूसरे कालनेमि राक्षस ने दरवार लगाया था |

 सनातनधर्मियो !तुम्हारे वही हनुमान जी जिन्हें श्री राम की चरण सेवा से समय ही नहीं है  जिनका रोम रोम प्रतिपल श्री राम नाम का संकीर्तन करता है !जो श्री राम चरण चिंतन में निरंतर लगे रहते हैं उनके पास इतना समय कहाँ होगा कि वे किसी के मन की बात बताते घूमें ! दूसरी बात किसी के मन की बात किसी दूसरे को क्यों बताएँगे !दूसरों को बताना तो चुगली है यह पाप हनुमान जी क्यों करेंगे !किसी के मन की कमजोरियाँ धीरेंद्र शास्त्री को बताकर भरी भीड़ में उस बेचारे को हनुमान जी जलील क्यों करवाएँगे !सभी के मन की बात किसी धीरेंद्रशास्त्री के कान में ही क्यों बताएँगे !बतानी ही होगी तो उसी को बता देंगे जिसकी बात है उससे हनुमान जी डरते हैं क्या ?किसी पर कृपा भी करनी होगी तो स्वयं ही कर देंगे उसके लिए किसी धीरेंद्र शास्त्री से आज्ञा क्यों माँगेंगे कि तू कहे तो मैं उस पर कृपा करूँ !ये बात वो किससे कहता है कभी सोचा है कि उसके सिर में चमीटा मारो, उसके पैर में मारो ,उसे गिराकर मारो ,उसके सिर में जोर जोर से चमीटा मारो  !ये आदेश तुम्हारे हनुमान जी को दिया जा रहा होता है  और तुमने यह स्वीकार कर लिया कि तुम्हारे हनुमान जी दौड़ दौड़कर उसे चमीटा मारने लगते होंगे !जो उसके दरवार में जाता होगा या जिस पर ये कृपा करने को कहता होगा हनुमान जी केवल उसी पर कृपा करते होंगे ! तुम्हारी आत्मा ने यह स्वीकार कैसे कर लिया कि तुम्हारे हनुमान जी ने इतने मजबूर हो गए कि आज वो धीरेंद्र शास्त्री की गुलामत करते घूम रहे हैं | धिक्कार है तुम्हारी हनुमद्भक्ति भक्ति को !तुम अपने हनुमान जी के बल पौरुष पर भरोसा नहीं रख सके !

   कालनेमि की तरह  भूतों प्रेतों पिशाचों  जिंदों यक्षिणियों को बश में करके दरवार चलाने वाले लोगों ने अपनी चोरी छिपाने के लिए हनुमान जी की जय क्या बोलवाना शुरू कर दिया तुम दीवाने हो गए !अरे घी में भी सेंट  मिलाकर चतुर व्यापारी बेच लिया करते हैं !

 यह स्वीकार कैसे कर लिया आदेश देता

 जानी जा सकती है |भूत प्रेत पिशाच आदि ऐसे लोगों के कान में बता देते हैं जो सौ प्रतिशत सच निकलती है |विशेष बात ये है कि ये केवल बीती हुई बात ही बता सकते हैं भविष्य की नहीं 

ग के करके लोग किसी के मन की बात जान लिया करते हैं |तीसरे

विवाह करने में कमियाँ


उसी प्रकार से

 उपायों का प्रभाव कितना होता है ! 

     मौसमवैज्ञानिकों के बश का नहीं है मौसम पूर्वानुमान बताना !

 

का झूठ आखिर कब तक सहा जाएगा !

 उपायों का प्रभाव कितना होता है !

विवाह संबंधी भविष्यवाणियाँ गलत क्यों होती हैं ?

    किसी के जीवन विवाह सुख अच्छा होने की भविष्यवाणी उसके अच्छे भाग्य को देखकर कर दी जाती है,किंतु व्यवहार में कई बार वैसा देखने को नहीं मिलता है | विवाह के बाद दोनों में तनाव रहने लगता है या उन दो में से किसी एक के या उन दोनों के ही पति पत्नी के अतिरिक्त किसी और से संबंध बन जाते हैं ,या फिर किसी अन्य प्रकार से पति का पत्नी से और पत्नी का पति से वियोग हो जाता है,जबकि उनका भाग्य तो उत्तम था फिर ऐसा क्यों हुआ ?ऐसा होने का कारण क्या है इसकी वास्तविकता समझने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान कहाँ है ?  

    जन्म समय इतना महत्त्वपूर्ण क्यों होता है ?

   इस संसार में पहली स्वाँस लेने से जीवन शुरू होता है और अंतिम स्वास लेने के साथ ही उस जन्म का लेखा जोखा पूर्ण मान लिया जाता है | उसी के आधार पर अगले जन्म की पटकथा लिखी जाती है जिसे कुछ लोग भाग्य भी कहते हैं | उसी पटकथा के अनुशार जिस समय अगला जन्म मिलता है |उस जन्म समय के अनुशार ही अगला  उसी पटकथा का परिपालन करते हुए ऐसे समय में यह जन्म हुआ होता है |उस जन्मसमय के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि इस जन्म में उसे कौन सुख कितनी मात्रा में भोगने को मिल सकता है | यह पूर्वानुमान पिछले सभी जन्मों को समाहित करते हुए इस जन्म समय तक के आधार पर लगाया गया होता है | इस जन्म में कौन सुख दुःख कितना भोगा गया कैसे भोगा गया ! न्याय या अन्याय से भोगा गया | इसकी  संपूर्ण खाताबही तो इस जन्म की अंतिम स्वास लेने के समय तैयार की जाएगी |उसके आधार पर अगला जन्म होगा | 

     इस समय जिसकी तीस वर्ष की आयु है वह यदि जानना चाहता है कि उसके भाग्य में कौन सुख कितनी मात्रा में मिलने को लिखा है तो सबसे पहले यह देखना पड़ेगा कि जन्म के समय इसके भाग्य में कौन सुख कितनी मात्रा में भोगने को लिखे गए थे |उनमें से तीस वर्ष की आयु होने तक उसने किन किन सुखों को कितनी मात्रा में भोग लिया है | जन्म समय में लिखे सुखों में से तीस वर्ष की उम्र होने तक भोगे गए सुखों को घटा कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे कौन सुख कितनी मात्रा में भोगने को अभी और मिलेगा |

     इसमें विशेष बात यह है कि जन्मसमय के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह तो पता लगाया जा सकता है कि  जन्म  के समय में इसे किस सुख को भोगने का कितना कोष मिला था ,किंतु जन्म से लेकर तीस वर्ष की उम्र होने तक उसने किस सुख को कितनी मात्रा में भोगा है यह पता लगाने के लिए तो उसी से पूछना पड़ेगा कि वह बीते तीस वर्षों में किस सुख को कितनी मात्रा में भोग चुका है |यदि वो सही जानकारी मिलती है तब तो भविष्य के विषय में सही अनुमान लगाया जा सकता है किंतु व्यवहार में ऐसा होते देखा नहीं जाता है |लोग प्रायः सही जानकारी  नहीं देते हैं कि उन्होंने बीते तीस वर्षों में  कितना धन कमाया है या कितने स्त्री या पुरुषों से संबंध बनाए हैं |ज्योतिषी से पूछने जाने वाले लोग प्रायः यही बोलते हैं कि हमारे पास पैसे नहीं है या हमने कुछ विशेष कमाया नहीं है | ज्योतिष वैज्ञानिक उसकी बात को सही मानकर जन्म समय के कोष को ही दोहरा देता है कि जन्म के समय में  आपके भाग्य में यह सुख इतना लिखा था चूँकि आपने अभी तक उसे भोगा नहीं है इसलिए अभी आपको पूरा ही भोगने को मिलेगा ,जबकि वह पूरा सुख भोग चुका होता है इसलिए उसे वह सुख अब और नहीं  भोगने को मिल सकता है |उसके गलत जानकारी देने के कारण कई बार ऐसी भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |

    कई बार किसी का विवाह होने को आया उस समय लड़के और लड़की के जन्म समय का मिलान किया गया दोनों में पति और पत्नी का सुखयोग उत्तम मिला अर्थात जन्म के समय पति पत्नी दोनों के ही भाग्य में पत्नी और पति के सुख का उत्तम कोष (बैलेंस) था |दोनों को भाग्य में मिला पति पत्नी के सुख का वह उत्तम कोष (बैलेंस) अभी तक अविवाहित रहने के कारण अभी भी सुरक्षित ही होगा | ऐसा मानकर उन दोनों के जन्म समय का मिलान करके दोनों का विवाह करवा दिया गया | बाद में पता लगा कि उन पति पत्नी में तनाव चल रहा है या तलाक हो गया | ऐसे में प्रथम दृष्टया तो ज्योतिष के द्वारा उनके विवाह के विषय में की गई भविष्यवाणी गलत निकलती दिखाई देती है किंतु विस्तृत अनुसंधान करने पर पता लगा कि उन दोनों ने या उनमें से किसी एक ने विवाह होने से पहले ही विवाहेतर संबंधों से अपना अपना भाग्य प्रदत्त वैवाहिक सुख कोष (बैलेंस)खर्च कर डाला है | ऐसे लोग विवाह होने के बाद एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक नहीं रह पाते हैं |

  तो जन्म समय में जो सुख जितनी मात्रा में भोगने को लिखे गए थे उसमें से जितने सुख भोग लिए गए हैं उन्हें जन्म समय के सुखों में घटाकर शेष बचे सुख ही इस जन्म में भोगने को मिलेंगे | उतने सुख भोगने लायक ही उन्हें इस जन्म में नैतिक रूप से धन या उन सभी प्रकार के सुखों के साधन मिलते हैं |जिन्हें प्रयत्न पूर्वक प्राप्त करके उन सुखों को उसी उचित मात्रा में  भोगते हुए वह जीवन पूरा करना होता है | 

    इस सच्चाई को समझे बिना कुछ  लोग  भाग्य के अतिरिक्त भी अन्याय पूर्वक कुछ सुख साधन हासिल करके उन्हें भोगना शुरू कर देते हैं |इससे उनके भाग्य में जो सुख जितनी मात्रा में संपूर्ण जीवन भर में भोगने के लिए भाग्य में निश्चित किए गए  थे | वे उतने सुख उससे बहुत कम समय में ही भोग लिया करते हैं |उससे अधिक उन सुखों को भोगना संभव नहीं होता है |किसी के भाग्य में जितना पति या पत्नी का सुख सारे जीवन में भोगने को लिखा होता है | उन्होंने उतने सुख विवाह होने से पहले या विवाह होने के कुछ समय बाद तक ही भोग लिए तो आगे कुछ भोगने को बचा ही नहीं होता है|ऐसे समय में उन्हें आगे का जीवन पति या पत्नी से अलग रहकर या उनका वियोग सहकर ,उन सुखों के लिए बदनामी सहकर अथवा विधवा या विधुर रूप में ब्यतीत करना पड़ता है | 

    किसी के भाग्य में खाने पीने आदि का जो सुख जितनी लिखा होता है उतना ही भोगने लायक उन्हें शरीर मिलता है |उसे यदि संपूर्ण जीवन में भोगते हैं तो सारे जीवन उन सुखों को भोगते हुए आनंद से जीते हैं | कई बार कुछ समय में ही उन सुखों को भोग लेते हैं तो बाकी जीवन उन सुखों की आस लिए तड़पना पड़ता है और किसी प्रकार से उन्हें भोगने के लिए प्रयत्न भी करते हैं तो उनके शरीर इस लायक नहीं रह जाते हैं कि वे उन्हें भोग सकें |एक दो सुखों को भोगने की सीमा यदि पूरी हुई तब तो शरीर उनसे संबंधित रोगों से रोगी हो जाता है और यदि सभीप्रकार के सुख भोगने का निर्धारित अंश (कोटा) एक साथ ही  पूरा कर लिया जाता है तो जीवन वहीं अर्थात उसी उम्र में ही या युवा अवस्था में ही पूरा हो जाता है |

    मीठा खाने की मर्यादा पार होते ही शरीर में मीठे को पचाने की क्षमता समाप्त हो जाती है ,फिर भी यदि मीठा खाया गया शुगर रोग हो जाता है | ऐसा ही अन्य सभी प्रकार के सुखों को भोगते समय ध्यान रखना चाहिए | वैसे भी जब कोई सुख भोगने को बचता ही नहीं है तो कई बार सुख भोग की भावना से अपने को बिल्कुल अलग करके अत्यंत संयमित जीवन जिया जा सकता है |  

    आप केवल अपने कमाए हुए धन का ही भोग कर सकते हैं !

   आपके पास धन होने का मतलब यह ही नहीं होता है कि वह धन ईश्वर ने केवल आपको ही भोगने के लिए  दिया है ,अपितु वह धन उन लोगों के सहयोग के लिए दिया गया होता है, जिन लोगों की योग्यता या सेवाओं के सहारे आप वह अतिरिक्त धन हासिल कर पा रहे होते हैं |जिसकी योग्यता या परिश्रम से वो धन कमाया गया होता है उस धन का सुख भोगने की शक्ति ईश्वर केवल उसी के शरीर एवं परिवार को देता है | यदि उसकी मजबूरियों का फायदा उठाकर आप उसकी योग्यता या परिश्रम से अधिक धन कमवाकर उसे थोड़ा देते हैं बाकी बचा हुआ अपने पास रख लेते हैं जबकि वो धन आपका नहीं है |

    अपने ऊपर या अपने परिवार पर जहाँ जहाँ खर्च करेंगे वहाँ से रोग  ऐसा धन

  भाग्य अच्छा होने पर भी  मिलता है बुरे कर्मों का बुरा फल !

    किसी की मजबूरियों का लाभ उठाकर उसके परिश्रम या योग्यता से कमाए हुए धन को जो लोग अपने भोजन पर खर्च करते हैं उस भोजन से रोग होता है | चिकित्सा पर खर्च करते हैं तो चिकित्सा का दुष्प्रभाव होता है |बच्चों पर खर्च करते हैं तो बच्चे बिगड़ जाते हैं | जहाँ जहाँ खर्च करते हैं वहाँ से तनाव विवाद कलह दुःख मिलता है | कई बार झूठेआरोप मुकदमे आदि लग जाते हैं |ऐसे धन को दान देने से देवता क्रोधित होते हैं | ऐसा धन अपने घर में रखने से घबड़ाहट हार्टबीट जैसे रोग बढ़ते हैं |जाँच में कोई रोग नहीं निकलता,चिकित्सा से कोई लाभ नहीं होता ! फिर भी धीरे धीरे चलना फिरना तक कठिन हो जाता है | ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए भी ज्योतिष के अतिरिक्त और दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

उस पर आपका 

 उस अतिरिक्त धन को यदि आप अपनी सुख सुविधाओं या आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खर्च करते हैं तो वह जहाँ जहाँ लगेगा वहाँ वहाँ से तनाव रोग परेशानियाँ आदि पैदा होती हैं |वस्तुतः उस धन को अर्जित करने की योग्यता ईश्वर ने जिसमें  दी होती है | उस धन को भोगने की क्षमता भी ईश्वर उसे ही देता है, उसी के जीवन ,शरीर या सुख सुविधाओं पर खर्च होकर वह लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है | वही व्यक्ति उस धन का आनंद ले सकता है |

     

   कुत्तों जैसा आचरण करके कोई किंग नहीं बना जा सकता !

    कुछ सुयोग्य विद्वान,कलाकार,कवि,लेखक आदि विभिन्नप्रकार के दुर्लभ गुणों से युक्त लोग भाग्य और समय के फेर से किसी मुसीबत में फँस जाते हैं | उस संकट से निकलने के लिए उन्हें धन की आवश्यकता होती है |ऐसे लोगों की ईमानदारी के कारण इनके संपर्क कुछ बड़े बड़े लोगों से होते हैं किंतु वे उनसे धन नहीं मानते |ऐसे गुणवान लोगों के गुणों पर,कलाओं पर ,जमीनों पर,उनके संपर्कों पर उनके नाते रिश्तों पर गिद्ध दृष्टि बनाए एक ऐसा वर्ष इसी ताक में बैठा होता है कि ये मुसीबत में कब फँसें तो हम इन्हें कुछ पैसे पकड़ा दें और उनकी विशेषज्ञता योग्यता कला तथा गुणों को हमेंशा के लिए गुलाम बनाकर रख लें और उसका पूरा लाभ हम स्वयं उठाते रहें | ऐसे लोगों की मजबूरियों का फायदा उठाकर ये किंग(राजा) बनने की इच्छा पाले बैठे होते हैं | ऐसे लोगों को चूँकि  व्यापार करना आता है इसलिए वे उनकी योग्यता के बलपर करोड़ों कमाकर उन्हें कुछ पैसे देकर उनके सारे अधिकार अपने आधीन करके उस धन से स्वयं सब सुख भोग रहे होते हैं | वे एहसान में दबे होने के कारण कुछ कह नहीं पाते हैं | उनकी योग्यता से ये धन कमाया जा रहा होता है ये जानते हुए भी वे दर दर की ठोकरें खाते घूम रहे होते हैं | ऐसा पाप पूर्ण धन जहाँ जहाँ जिन जिन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए या जिस शौक शान पर खर्च किया जाता है वहाँ से कोई न कोई ऐसा समस्या आती है जिससे मुक्ति पाना बहुत कठिन हो जाता है | ऐसे धन से खाने पीने की जो चीजें खरीदते हैं उन्हें  खाने में स्वाद तो आता ही नहीं है बल्कि उनसे शरीरों में रोग पैदा हो जाता है | ऐसे पाप पूर्ण धन से यदि वे  वाहन खरीद लेते हैं तो उनके अपने पैर ख़राब होने लगते हैं |उस धन को यदि चिकित्सा पर खर्च करते हैं तो ऐसी चिकित्सा का उन पर विषैला प्रभाव पड़ने लगता है |ऐसे पाप पूर्ण धन से उनका शरीर ऐसे रोगों से रोगी होने लगता है जिन पर चिकित्सा का प्रभाव ही नहीं पड़ता है प्रत्युत रोग अवश्य बढ़ जाते हैं | उसे यदि शौक शान की चीजों को खरीदने के लिए खर्च कर दिया जाता है तो घरों में कलह पैदा होती है |उस धन को यदि परिवार पर खर्च करते हैं तो बंश रुक जाता है अर्थात संतानें नहीं होती हैं |ऐसे लोग कई बार उन्हीं कर्मचारियों के बच्चे गोद ले लिया करते हैं | कई बार तो उन्हीं लोगों के अंश से संतानें पैदा होते देखी जाती हैं |भविष्य में  वही उनके कमाए हुए धन का सुख भोग रही होती हैं |


 मौसम ?

प्रदूषित हवाएँ भी उन्हें अच्छे परिणाम देती हैं !

देव भूमि या अवैध कब्ज़ा लोग कर तो लेते हैं किंतु उसे भोगने के लिए उनके यहाँ कोई बचता नहीं है ?


ज्योतिष की भविष्यवाणियाँ इसलिए भी गलत होती हैं !

     ज्योतिष में भाग्य और कर्म दोनों को मिलाकर भविष्य के विषय में संभावित पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | भाग्य के आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान के सही होने पर भी भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं उसका कारण  वर्तमान कर्मों के विषय में सही जानकारी न दिया जाना !प्रायः लोग अपने धर्म कर्म परोपकार या अपने द्वारा की गई किसी की मदद को को तो बार बार बताते देखे जाते हैं किंतु अपने दुर्गुणों,दुष्कर्मों या दूसरों का शोषण करके इकट्ठी गई संपत्ति के विषय में सही जानकारी देते नहीं देखे जाते हैं | ऐसे में ज्योतिषी उसके भाग्य एवं अच्छे कर्मों को आधार बनाकर उसके भावी जीवन के विषय में भविष्यवाणियाँ कर देते हैं वे गलत जानकारी को आधार बनाकर की गई होती हैं इसलिए गलत निकल जाती हैं |

      कई बार कुछ रोगियों की चिकित्सा पर बहुत

जिसमें किसी चिकित्सा से कोई लाभ नहीं हो रहा होता है |ऐसे में यदि समय बुरा होता तो व्यापार अच्छा नहीं चलता और घर में सुख शांति नहीं होती और यदि समय अच्छा होता तो इतना बड़ा रोग नहीं होता !

बुरे समय में व्यापार भी रुकता है परिवार में तनाव एवं तरह तरह के संकट होते हैं ,किंतु  बार कुछ लोग दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते जा रहे होते हैं | परिवार में भी और तो सब सुख शांति होती है किंतु उसी समय उन्हें कोई ऐसा रोग हो जाता है जिसमें किसी चिकित्सा से कोई लाभ नहीं हो रहा होता है |ऐसे में यदि समय बुरा होता तो व्यापार अच्छा नहीं चलता और घर में सुख शांति नहीं होती और 


  सुयोग्य चिकित्सकों की महँगी चिकित्सा से भी नहीं होता है लाभ -

विज्ञान


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 भूकंप विज्ञान क्या है ?भूकंप वैज्ञानिक भूकंपों के विषय ऐसा ऐसा क्या जानते हैं जो भूकंप विज्ञान के बिना संभव न था ?उन अनुसंधानों से आज तक पता क्या लगा है ?उनसे जनता को मदद क्या मिली ?भूकंपों के विषय में कुछ न जानकर भी भूकंप वैज्ञानिक कैसे ? 

प्रारंभ में कोई छोटी सी फुंसी देखकर चिकित्सा शुरू की जाती है सुयोग्य चिकित्सकों की  चिकित्सा से भी लाभ न होने पर बाद में पता लगता है कि कैंसर है तब तक देर हो चुकी होती है |चिकित्सक कहते हैं पहले से पता होता तो..... !किंतु पहले से पता करने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

  पति पत्नी दोनों का समय अच्छा रहता है तो दोनों को एक दूसरे की गलतियाँ भी अच्छी लगती हैं !किसी एक का समय बिगड़ने पर कलह शुरू होती है और दोनों का समय बिगड़ने पर अच्छाइयाँ भी बुरी लगने लगती हैं और तलाक हो जाता है | अच्छे बुरे समय को जानने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

   घरों के दोष कैसे पहचाने जाएँ  !

     कुछ घरों के कुछ कमरों बेकार का कबाड़ जमा रहता है |उसे हटाया भी जाए तो वहीं पर फिर से दूसरा कबाड़ इकट्ठा हो जाता है| ऐसे शून्य स्थानों पर रहने से स्वास्थ्य ख़राब होता है ,नींद नहीं  आती, डरावने स्वप्न दिखाई देते हैं |ऐसे स्थानों पर कभी कभी किसी के आने जाने उठने बैठने का आभाष होता है |किसी के न होने पर भी पायल या चूड़ियों की आवाज सुनाई देती है या कोई परछाया दिखाई देती है |ऐसे दोष युक्त स्थानों पर रुपए पैसे या व्यापार के लिए उपयोगी सामग्री रख देने नुक्सान होने लगता है | खान पान की चीजें रखने से उनके जल्दी ख़राब होने एवं उसकी मात्रा स्वतः ही कम होते जाने का अनुभव होता है |ऐसे घरों एवं स्थानों का पता लगाने के लिए ज्योतिष ही एक मात्र विज्ञान है |


किसी स्थान पर घर बनता है तो कहीं मंदिर बनता है कहीं उद्योग या बाजार लगता है | कहीं श्मशान और कसाई घर बनते हैं |हर स्थान का अपना अपना भाग्य !जिस स्थान का जैसा भाग्य वैसा ही कार्य सफल होता है !किस स्थान का भाग्य कैसा है यह जानने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

 

यदि श्मशान बनने योग्य स्थान में मकान दूकान या फैक्ट्री लगाई जाए तो ,मंदिर या व्यापार बने तो सुख और सफलता कैसे मिलेगी ? कौन स्थान किस लायक है यह जानने का ज्योतिष के अलावा विज्ञान कहाँ है ?

  अच्छा या बुरा समय समय सबका अपना अपना चल रहा होता है जिसका समय जब जैसा चल रहा होता है उसकी सोच तब तैसी बनती है | जिन जिन लोगों का अपना अपना समय जितने दिनों महीनों वर्षों तक एक जैसा चलता रहता है तब तक वे सभी लोग सुख दुःख हानि लाभ सम्मान अपमान पसंद नापसंद आदि के प्रति एक जैसी सोच रखते हैं इसीलिए उन लोगों के आपसी संबंध अत्यंत मधुर बने रहते हैं |उनमें से किसी एक का भी समय जब बदलता है तो समय के साथ साथ उसकी सोच भी बदल जाती है उसके सुख दुःख हानि लाभ सम्मान अपमान पसंद नापसंद आदि में बदलाव आने लगता है उसी के अनुशार उसके कुछ नए मित्र बनते जाते हैं और पुराने मित्र छूटे जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में यदि आप पता करना चाहते हैं कि जो लड़का या लड़की स्त्री पुरुष आदि इस समय आपके मित्र हैं उनसे आपकी यह मित्रता कब तक चल पाएगी तो आप हमारे यहाँ संपर्क करके पता कर सकते हैं |इससे आपको सबसे बड़ा लाभ यह हो सकता है कि किसी मित्र के प्रति आप उतना ही समर्पित होंगे जितना उसके छूटने पर आप सह पाएँगे !

      एक जैसे समय(सोच) वाले जितने लोग एक साथ मिलते जाते हैं उन सबकी आपस में मित्रता होती चली जाती है , उन सबका सुख दुःख हानि लाभ पसंद नापसंद  कोई दो या दो से अधिक लोग जब एक जैसे समय और सोच वाले मिलते हैं तो मित्रता हो जाती है ! प्रत्येक व्यक्ति का समय बदलता रहता है समय के साथ सोच भी बदलती रहती है |  की सोच उसके समय के अनुशार बनती बिगड़ती रहती है |जबतक  किन्हीं दो लोगों का समय एक जैसा चल रहा होता है तब उन दोनों की सोच एक जैसी रहती है !

 

बात न मानने का तनाव कैसे कम हो ? 

      वर्तमान समय में सबसे बड़ा तनाव इस बात को लेकर है कि हमारी पत्नी,बच्चे भाई बहन आदि सगे संबंधी हमारी बात नहीं मानते हैं |समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो आपकी बात कोई तब सुनता या मानता है जब आपका समय और उसका समय एक जैसा हो |दोनों का समय एक जैसा होने पर दोनों की सोच एक जैसी बनती है | इसीलिए ऐसे समय में दोनों को दोनों की बातें बिचार आदि अच्छे  लगने लगते हैं | आपका समय यदि बहुत अच्छा चल रहा हो और उसका समय अच्छा न  हो तो आपकी अच्छी और फायदे की बातें भी उसे तब तक पसंद नहीं आएँगी जब तक उसका अपना भी अच्छा समय नहीं आ जाता है | अच्छे बुरे समय का पता लगाने के लिए ज्योतिष को छोड़कर कोई दूसरा विज्ञान कहाँ हैं ?

 

इसलिए किसी को अपनी बात समझाने लिए सबसे पहले अपने और  उसकेअच्छे बुरे समय  को समझना चाइए अपने और उसे अच्छे या बुरे शाम का अपने समय को समझना चाहिए थे           

 उनका का समय खराब सोच एक जैसी तभी  हो सकती है जब उन दोनों का समय एक जैसा हो,क्योंकि जिसका जब जैसा समय होता है तब तैसी सोच बनती है | किसी के नुक्सान होने का समय चल रहा हो तो उसकी रूचि उन कार्यों में होगी जिसमें नुक्सान हो क्योंकि समय नुक्सान का चल रहा है ! ऐसे समय कोई फायदे की बात बतावे तो वो कैसे मान लेगा

 प्रत्येक व्यक्ति की सोच उसके नाम और जन्म समय के आधार पर हमेंशा बदलती रहती है |कौन किसे किस संबोधन से बुलाता,जानता या मानता है | हमारी और उससी सोच हमारे और उसके समय के अनुसार ज्योतिष की दृष्टि से कब किस प्रकार की बन रही है इसका पता लगाए बिना ही हम उसे अपनी बात समझाने का असफल प्रयत्न करके तनाव तैयार करते जा रहे होते हैं |    

      किसी को घर परिवार व्यापार संस्था या सरकारों में राजनैतिक दलों में बहुत लोग एक साथ काम करते हैं | सबका अपना अपना समय अलग अलग चल रहा होता है |उनमें से जिन जिन लोगों का समय लगभग एक जैसा चल रहा होता है उनके बिचार एक दूसरे से मिलते जुलते होते हैं | इसलिए वे दोनों एक दूसरे से आसानी से सहमत हो जाते हैं और एक दूसरे की बात मान लेते हैं | जिनका समय एक दूसरे के साथ जितना मिलता जुलता नहीं होता है वे एक दूसरे की बातों  बिचारों से उतने असहमत होते  हैं | कई बार भय से या स्वार्थ से या बड़ों को सम्मान देने के कारण न चाहते हुए भी उनकी बात मान लेनी पड़ती है किंतु उस काम को करने में उसकी अपनी रुचि न  लगने के कारण वह व्यक्ति चाहकर भी उस काम को उतने  अच्छे ढंग से  नहीं कर पाता है |जिसमें उस व्यक्ति की गलती भी नहीं होती है | इसलिए उस पर अकारण क्रोधित भी नहीं होना चाहिए | यही कारण है कि माता पिता अपने मन की शिक्षा या काम अपने बच्चों पर थोप देते हैं | ऐसे  समय में यदि माता पिता के समय और बच्चे के समय में थोड़ा बहुत अंतर होता है तब तो बच्चे न केवल वैसा करते हैं अपितु सफल भी होते हैं | यदि दोनों के समय में  अंतर अधिक होगा तो  बच्चों के बिचार बदले होते हैं इसीलिए उनकी ऐसी सलाहें मानने में बच्चों को  कठिनाई होती ही है | इसीलिए कई बार वे असफल होते भी देखे जाते हैं | इसी मानने न मानने के कारण कई बार व्यापार परिवार सरकार आदि में एवं वैवाहिक जीवन में आपसी तनाव बढ़ने लगता है |

 

 

 

आपकी बात कोई मानता है और कोई नहीं भी मानता है क्यों ?

     किसी को घर परिवार व्यापार संस्था या सरकारों में राजनैतिक दलों में बहुत लोग एक साथ काम करते हैं | सबका अपना अपना समय अलग अलग चल रहा होता है |उनमें से जिन जिन लोगों का समय लगभग एक जैसा चल रहा होता है उनके बिचार एक दूसरे से मिलते जुलते होते हैं | इसलिए वे दोनों एक दूसरे से आसानी से सहमत हो जाते हैं और एक दूसरे की बात मान लेते हैं | जिनका समय एक दूसरे के साथ जितना मिलता जुलता नहीं होता है वे एक दूसरे की बातों  बिचारों से उतने असहमत होते  हैं | कई बार भय से या स्वार्थ से या बड़ों को सम्मान देने के कारण न चाहते हुए भी उनकी बात मान लेनी पड़ती है किंतु उस काम को करने में उसकी अपनी रुचि न  लगने के कारण वह व्यक्ति चाहकर भी उस काम को उतने  अच्छे ढंग से  नहीं कर पाता है |जिसमें उस व्यक्ति की गलती भी नहीं होती है | इसलिए उस पर अकारण क्रोधित भी नहीं होना चाहिए | यही कारण है कि माता पिता अपने मन की शिक्षा या काम अपने बच्चों पर थोप देते हैं | ऐसे  समय में यदि माता पिता के समय और बच्चे के समय में थोड़ा बहुत अंतर होता है तब तो बच्चे न केवल वैसा करते हैं अपितु सफल भी होते हैं | यदि दोनों के समय में  अंतर अधिक होगा तो  बच्चों के बिचार बदले होते हैं इसीलिए उनकी ऐसी सलाहें मानने में बच्चों को  कठिनाई होती ही है | इसीलिए कई बार वे असफल होते भी देखे जाते हैं | इसी मानने न मानने के कारण कई बार व्यापार परिवार सरकार आदि में एवं वैवाहिक जीवन में आपसी तनाव बढ़ने लगता है |

     ऐसे समय संबंधों को बिगड़ने से बचाने के लिए सबसे पहले उन दोनों के समय का आपसी अंतराल देखा जाना चाहिए |यदि वह अधिक है तो उसतनाव को उस समय कम किया जाना संभव नहीं होता है |चूँकि हर किसी का समय हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है |समय फिर बदलेगा उस समय दोनों की सोच फिर एक जैसी बनेगी | जिससे आपसी तनाव ख़त्म हो जाएगा |उससमय की प्रतीक्षा करने के लिए तब तक शांत होकर बैठना होगा | वह समय कब आएगा जब दोनों की सोच एक जैसी बनेगी यह पता लगाने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त और कोई दूसरा विज्ञान कौन सा है |   

मित्र काम नहीं आते हैं क्यों ?

    किसी मित्र से आपका कोई काम बन सकता है वह सक्षम भी है  किंतु जिस काम के लिए आप उससे सहयोग माँगते हैं उसमें वह व्यक्ति आपका सहयोग करने को मना कर देता है और आप उससे संबंध बिगाड़ लेते हैं | इसलिए उस काम में आपका सहयोग न करना उस व्यक्ति की गलती ही नहीं  है  अपितु संभव यह भी है कि वह समय आपके उस काम के लिए ठीक ही न चल रहा हो और वह कार्य उस समय बनना ही न हो ! इसलिए  आपके उस काम में सहयोग करने का आपके मित्र का मन ही नहीं हुआ ,जबकि वह आपके कुछ दूसरे कार्यों में बार बार सहयोग कर चुका होता है | इसलिए जल्द बाजी में उस मित्र से मित्रता  नहीं तोड़ देनी चाहिए बल्कि ज्योतिष से अपने अच्छे बुरे समय को समझना चाहिए !

 

बल्कि अपने समय का पता करना चाहिए जो काम जिस समय हम करना चाह रहे हैं ,क्या उस समय हमारा वह काम बनने लायक समय है !यदि हमारा समय हमारा साथ दे रहा होता है तो एक मित्र साथ न भी दे तो सहयोग करने के लिए कोई दूसरा तैयार होकर हमारा काम बना देता है | अपने अच्छे बुरे समय का पता करने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त आपके पास विकल्प क्या है ?

    व्यापार करना  यदि भाग्य में ही न हो तो कैसे पता लगे ?

       जिस व्यापार को करके कोई एक व्यक्ति बहुत धन धान्य कमा लेता है उसी व्यापार को उसी समय  कोई दूसरा व्यक्ति भी कर रहा होता है वह नुक्सान उठा जाता है,जबकि एक जैसा परिश्रम दोनों कर रहे होते हैं | एक ही सामान की खरीद बिक्री कर रहे होते हैं |एक ही स्थान पर एक ही प्रकार के ग्राहकों के बीच दोनों व्यापार कर रहे होते हैं |इसका कारण उस व्यापार जिसका भाग्य साथ दे रहा होता है वो सफल हो जाता है और जिसका नहीं देता है वो नहीं सफल होता है | इसलिए कोई भी व्यापार शुरू करने से पहले यह पता कर लेना चाहिए कि इस कार्य में भाग्य का सहयोग कितना मिलेगा !ज्योतिष के अतिरिक्त और कोई  दूसरा ऐसा  विज्ञान नहीं है जिससे भाग्य के सहयोग के विषय में पता लगाया जा सके !

 व्यापार यदि भाग्य में हो किंतु सफलता समय क्या है यह कैसे पता लगे ?

  कोई तीन लोग किसी एक ही वस्तु के व्यापार को एक ही स्थान पर करना प्रारंभ करते हैं| उस व्यापार में एक व्यक्ति बहुत अधिक सफल हो जाता है दूसरा मध्यम और तीसरे को नुक्सान हो जाता है | कुछ समय बाद तीसरे को भी लाभ होने लगता है और वह सबसे आगे निकल जाता है जबकि दूसरे का व्यापार सामान्य ही बना रहता है और पहले का डाउन हो जाता है |जिसका भाग्य सामान्य और समय एक जैसा रहा वो एक जैसा चलता रहा |पहले और तीसरे को भाग्य का सहयोग तो प्रबल रहा किन्तु सफलता का समय दोनों का आगे पीछे आया |ऐसे में जिसे बाद में सफलता मिली वह यदि समय की प्रतीक्षा किए व्यापार बदल लेता तो नुक्सान हो जाता |इसलिए  ज्योतिष से अपने भाग्य और समय का ज्ञान करके ही व्यापार शुरू करना चाहिए |

 व्यापार में सफलता कहाँ मिलेगी ?

       किसी व्यापार में भाग्य और समय साथ दे तो भी यह कैसे पता लगे कि सफलता कहाँ मिलेगी ! दो लोग किसी एक व्यापार को एक ही समय करके सफल हो रहे होते हैं किंतु उनमें से एक दिल्ली का रहने वाला जो कलकत्ते में जूस बेच रहा है, जबकि दूसरा कलकत्ते का व्यक्ति दिल्ली में जूस बेच रहा है | दोनों ही सफल हैं | दिल्ली वाला व्यक्ति यदि दिल्ली में  और कलकत्ते वाला व्यक्ति यदि कलकत्ते में जूस बेचते हैं तो दोनों को नुक्सान होता है | इसका मतलब है कि जूस की खपत दिल्ली और कलकत्ता दोनों ही शहरों में है किंतु उन दोनों का जूस बेचने का कार्य उनके अपने अपने शहरों में न चलने का कारण क्या है ! यह पता लगाने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान है क्या ?

   किसके साथ में व्यापार करना अच्छा होगा किसके साथ नहीं !

     किसी एक व्यापार को आप अकेले करते हैं तो आपको फायदा हो रहा होता है उसी में आप किसी दूसरे व्यक्ति को साझीदार बना लेते हैं तो व्यापार और अच्छा चलने लगता है | इसी व्यवसाय में किसी तीसरे को भी जोड़कर उसे साझीदार बना लेते  हैं उसके बाद व्यापार  घाटा होने लगता है क्यों ? यदि साझीदार की जगह कुछ ऐसे लोगों को नौकरी पर किन्हीं महत्वपूर्ण निर्णायक पदों पर रख लिया जाता है उससे  भी नुक्सान होने लगता है | कई बार उसी काम का कोई दूसरा निर्णायक कार्यालय किसी दूसरे शहर में बना लिया  जाता है तो उससे भी नुक्सान होने लगता है | कई बार उसी काम में कुछ अन्य वस्तुओं को भी जोड़ लिया जाता है |कई बार  ऐसा सबकुछ करने के बाद व्यापार धीरे धीरे गिरता चला जाता है |ऐसे समय में यह निर्णय किया जाना अत्यंत कठिन होता है कि व्यापार में अचानक नुक्सान होने लगने का कारण क्या हो सकता है ?कारण को ठीक  प्रकार से समझे बिना उसका निवारण किया जाना संभव नहीं होता है | कारण को खोजने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान होता ही नहीं है |  

     किस नाम के व्यक्ति के साथ काम  अच्छा होगा किसके साथ नहीं ?


                                                       संतान न होने का कारण !

    पति पत्नी यदि दोनों पूरी तरह स्वस्थ हों ,चिकित्सकीय जाँच रिपोर्टें बिल्कुल सामान्य हों ,इसके बाद भी संतान न हो पा रही हो | इसका कारण खोजने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त और दूसरा  विज्ञान कौन सा होता है ? 

             कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

 आपको किसी से लाभ होता है और किसी से नहीं भी होता है क्यों ?

आपका कोई काम बनता एवं कोई काम बिगड़ता चला जाता है क्यों  ?

आपको किसी काम से फायदा होता है और किसी से नहीं भी होता है क्यों ? 

आपको किसी एक शहर में लाभ होता है तो दूसरे शहर में लाभ नहीं होता है क्यों ?

आप कोई एक सब्जेक्ट पढ़ते हैं उसमें सफल होते हैं तो किसी दूसरे  में नहीं ?

कुछ बच्चे किसी एक सब्जेक्ट में सफल होते हैं तो दूसरे में नहीं क्यों ?

विवाह न होने का कारण !   

    विवाह होना और  वैवाहिक सुख मिलना ये दोनों दो प्रकार की बातें होती हैं | कई बार विवाह तो होता है किंतु वैवाहिक सुख नहीं मिलता है | कई बार बिना विवाह हुए ही वैवाहिक सुख मिलने लगता है | एक बार जब वैवाहिक सुख मिलना प्रारंभ हो जाता है |उसके बाद तब तक विवाह होना बहुत मुश्किल हो जाता है जब तक कि वैवाहिक सुख मिलता जा रहा होता है | जो स्त्री पुरुष अपने वैवाहिक संबंध के साथ साथ विवाहेतर संबंध भी रखते हैं उन अवैध संबंधों से जितना उन्हें वह सुख मिल चुका होता है जिसके लिए कि विवाह किया जाता है | उतने वैवाहिक सुख की उनके अपने वैवाहिक जीवन में  कटौती हो  जाती है |

       जीवन में किस प्रकार का सुख किसको किस उम्र में मिलेगा यह निश्चित होता है | प्रत्येक लड़की या लड़के के विवाह का समय भी निश्चित होता है जो कुछ कुछ वर्षों के अंतराल में जीवन में कई बार आता है |विवाह का समय जब आता है विवाह तभी होता है |यद्यपि विवाह का समय जीवन में कई बार आता है उनमें से किसी में भी विवाह हो सकता है किंतु जीवन में जो सबसे पहला विवाह का समय  आता है | ऐसे समय में उस लड़के या लड़की को वैवाहिक सुख मिलना ही होता है | वह विवाह होकर मिले या बिना विवाह हुए ही मिले किंतु मिलता है |कुछ लड़के लड़कियाँ अपने संस्कारों के कारण ऐसे संबंधों की ओर कदम तो नहीं रखते किंतु उन्हें ऐसे समय में अपनी पवित्रता बचाए रखना बहुत कठिन होता है |इसीलिए पुराने समय में जल्दी विवाह करने की परंपरा थी ताकि बच्चों को इस प्रकार की मानसिक पीड़ा न सहनी पड़े | 

                                      प्रेमी प्रेमिकाओं का दुखद जीवन !

     समाज में जिन्हें प्रेमी प्रेमिका के रूप में जाना जाता है इनमें एक वर्ग तो वह होता है जिन लड़के लड़कियों के विवाह का समय आ जाने पर भी किन्हीं कारणों से विवाह नहीं किया जाता है |ऐसे विवाह समय प्राप्त लड़के लड़कियों की मुलाक़ात शिक्षा में ,कोचिंग में, कार्यक्षेत्र में,पार्क में,रास्ते में या जिस किसी भी प्रकार  से हो जाती है ,तो केवल पहल करने की देर होती है दूसरी ओर से स्वीकृति तुरंत मिल जाती है | इस प्रकार से विवाह समय के प्रभाव से विवाह न होने पर भी उन दोनों को एक दूसरे से वैवाहिक सुख पति पत्नी की तरह मिलने लगता है |यदि उन दोनों का भाग्य भी एक दूसरे से मिल रहा होता है तब तो उन्हीं दोनों का विवाह हो जाता है और चलता भी है | यदि भाग्य नहीं मिल रहा होता है तब तो दोनों का जब तक वैवाहिक सुख मिलने का समय चल रहा होता है तब तक एक दूसरे के साथ  जुड़े रहते हैं और समय बीतते ही दोनों एक दूसरे से अलग अलग हो जाते हैं |उन दोनों में से जिसके वैवाहिक सुख प्राप्त होने का समय पहले समाप्त हो रहा होता है वो पहले छोड़कर चला जाता है | 

     कई बार लड़के लड़कियों के भाग्य में पति या पत्नी का सुख बहुत कम बदा  होता है  इसलिए ऐसे लोग सुध सँभालते ही अपने लिए प्रेमी या  प्रेमिका खोजने लगते हैं| इसके लिए उन्हें कितना भी जलील क्यों न होना पड़े कोई न कोई प्रेमी या  प्रेमिका खोज  ही लेते हैं|इसके लिए उन्हें कितना भी जलील क्यों न होना पड़े |

      जिनके भाग्य में वैवाहिक सुख अच्छा होता है उन्हें विवाह के विषय में सोचना नहीं पड़ता है उनका विवाह उनके सोचने से पहले हो जाता है वे जितना सुन्दर सद्गुणी सुयोग्य आदि प्राप्त करने की कामना रखते हैं उनके मन के अनुकूल ही विवाह हो जाता है |

     जिनके भाग्य में वैवाहिक सुख अच्छा नहीं बदा होता है उनके चरित्र भ्रष्ट होने की संभावना अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक रहती है | उनका विवाह होना बहुत मुश्किल होता है | इसके साथ ही अपने विवाह के विषय में उन्होंने जो जो स्वप्न सजा रखे होते हैं | उन सपनों की पूर्ति उतने  प्रतिशत  ही हो पाती है जितने प्रतिशत वैवाहिक सुख भाग्य में बदा होता है | उसे प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कर लेने में ही भलाई होती है अन्यथा कई बार संबंध विच्छेद होते भी देखा जाता है |


 

उस समय पर विवाह किया जाना आवश्यक होता है 

 

जिस समय जिससे विवाह हो उसी समय उसी स्त्री पुरुष से वैवाहिक सुख मिले यह उत्तम विवाह योग माना जाता है | 

मित्र मिलते और छूटते क्यों

   प्रत्येक व्यक्ति की सोच उसके समय के अनुशार बनती बिगड़ती रहती है |जबतक  किन्हीं दो लोगों का समय एक जैसा चल रहा होता है तब उन दोनों की सोच एक जैसी रहती है  

माता पिता भाई बहन पति पत्नी मित्र परिवार रिस्तेदार आदि जिन संबंधियों के व्यवहार से हम दुखी होते हैं अक्सर उन्हें दोषी सिद्ध करने लगते हैं ,किंतु इसका मतलब ये नहीं कि वे गलत ही हों !हो सकता हैकि हमारे भाग्य में उनसे सुख पाना लिखा ही न हो  इसलिए उनके द्वारा किया गया सहयोग भी हमें दुःख देता है |हमें किस संबध से हमें सुख मिलेगा और किससे दुःख यह जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त दूसरा विज्ञान कहाँ है ?

 

धों से हमें दुःख मिलता है संभव है वे गलत न भी हों अपितु बहुत अच्छे हों हमें सुख भी पहुँचाना चाहते हों किंतु चाहकर भी वे  हमें इसलिए सुख नहीं दे पा रहे होते हैं क्योंकि उनसे सुख प्राप्त होना हमारे भाग्य में है ही नहीं !

को दिल्ली में भीषण तूफान आने की भविष्यवाणी मौसम वैज्ञानिकों की सुनकर उस दिन स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए ,किंतु तूफ़ान नहीं आया ?ये गलती मौसम विज्ञान की है या मौसम वैज्ञानिकों की ? यदि वास्तव में मौसम का कोई विज्ञान भी है तो ऐसा क्यों हुआ ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 भूकंप आने का तर्कपूर्ण प्रमाणित कारण पृथ्वी के अंदर है या बाहर ? यदि पृथ्वी के अंदर है तो उसका परीक्षण कैसे किया गया ?यह केवल  कल्पना ही तो नहीं है कि ऐसा होता होगा ! कोरी कल्पनाओं पर इतना बड़ा विश्वास किस आधार पर कर लिया जाए ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

भूकंप संबंधी  वैज्ञानिक अनुसंधानों से निकलता ऐसा क्या है जिससे  भूकंपों से होने वाली जनधन हानि को कम किया जा सका हो ?कितने भूकंपों का पूर्वानुमान लगाया जा सका है ? इसके अतिरिक्त अनुसंधानों की भूमिका क्या है ?भूकंपविज्ञान का योगदान आखिर क्या है? seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

ज्योतिषियों की झूठी भविष्यवाणियों का कारण :BHU जैसे विश्व विद्यालयों से ज्योतिष सब्जेक्ट में पीएचडी करके लोग सही भविष्यवाणियाँ करने लायक हो पाते हैं | किसी ज्योतिषी की डिग्री देखे बिना उसपर विश्वास करने वाले लोग दोषीलोग ज्योतिषविद्या  को दोष क्यों देते हैं ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 

ज्योतिषियों की भविष्यवाणियाँ :अपने बच्चों को ज्योतिष कोई पढ़ाना नहीं चाहता तो पढ़े लिखे ज्योतिषी मिलें कहाँ से ?इसमें ज्योतिषशास्त्र का क्या दोष ?अनपढ़ ज्योतिषियों से भविष्य पूछने वाले ज्योतिष को दोष क्यों देते हैं ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/


 

 कृषिकार्यों के लिए दीर्घावधि मौसमपूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है ! इसके लिए कोई विज्ञान न होने से ये प्रायः गलत निकलते हैं !कृषिकार्यों की दृष्टि से ऐसे पूर्वानुमानों की उपयोगिता क्या है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

वैज्ञानिकों के द्वारा की जाने वाली मौसम भविष्यवाणियों को इन तीन में से क्या कहा जा सकता है ? मौसम भविष्यवाणी ! मौसमपूर्वानुमान ! मौसम तीर तुक्का !seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

अलनीनों लानिना के अनुशार की गई भविष्यवाणियाँ प्रायः गलत निकलती हैं |कहीं ऐसा तो नहीं है कि मौसमविज्ञान न होने के कारण ऐसी निराधार कल्पनाएँ कर ली गई हों ? seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

ज्योतिषियों की भविष्यवाणियाँ गलत निकलें तो अंध विश्वास और वैज्ञानिकों की गलत निकलें तो विज्ञान !ऐसा क्यों?आखिर वैज्ञानिकों के पास भविष्यवाणी करने के लिए विज्ञान कहाँ है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

 जो साधन संपन्न लोग चिकित्सकों के हाथों में पैदा हुए उन्हीं हाथों में पले बढे, जैसा चिकित्सकों ने कहा वैसा किया जो खिलाया वो खाया जैसे रखा वैसे रहे फिर भी वे  संक्रमित हुए क्यों ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

महामारीविज्ञान :महामारी के पहले पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका !महामारी आने के बाद उसे ,उसके लक्षण उसकी प्रकृति समझने का समय नहीं था तो महामारीविज्ञान से समाज को लाभ क्या मिला ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 किसी रोग की चिकित्सा करने के लिए पहले उस रोग को समझना आवश्यक होता है |कोरोना महामारी तो महारोग है इसे समझे बिना इसकी औषधि बना लेने का दावा करने का  वैज्ञानिक आधार क्या है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/ 

 बादलों एवं तूफानों को उपग्रहों रडारों की मदद से देखकर उनकी गति और दिशा के आधार पर ये कब कहाँ पहुँचेंगे इसका अंदाजा लगा लिया जाता है !हवा का रुख बदलते ही यह गलत हो जाता है !इसमें विज्ञान की भूमिका क्या है ?seemore... http://www.drsnvajpayee.com/

 महामारी के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते रहे गलत क्यों निकलते रहे ? क्या पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान नहीं है ?

मौसम पूर्वानुमान लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है | मौसमसंबंधी घटनाओं को उपग्रहों रडारों में देख देखकर बताए जाने में विज्ञान का उपयोग कहाँ है ? 

अलनीनों के आधार पर15 वर्षों में जो भविष्यवाणियाँ की गईं वे आधी सही और आधी गलत निकलीं !मौसम पर अलनीनों का प्रभाव होता भी है या नहीं इसका पता कैसे लगाया जाए ?

जलवायु परिवर्तन का मतलब क्या ?वैज्ञानिक जो मौसम पूर्वानुमान लगावें वे सही निकलें तो मौसम पूर्वानुमान और गलत निकलें तो  जलवायु परिवर्तन !या कुछ और ?

महामारी के स्वरूप परिवर्तन का मतलब क्या ?परिवर्तन तो प्रकृति के प्रत्येक कण में प्रतिपल हो रहा है !इसमें अलग क्या है ? 

 जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी आने से पहले महामारी के विषय में पूर्वानुमान  लगाया जा सका उनकी मनुष्यजीवन में भूमिका क्या है ?यदि वे न किए जाएँ तो इससे अधिक नुक्सान और क्या हो सकता है ?

महामारी के समय साधन संपन्न थे वे अधिक संक्रमित हुए जबकि गरीब लोग कम ये कोरोना नियमों का पालन भी नहीं कर पाते रहे !आधे आधे पेट खाकर सो जाने वाले बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का कारण क्या है ? 

 महामारी आने के पहले वैज्ञानिकों को उसके आने के विषय में पता नहीं था आने के बाद लोग अचानक भारी  संख्या संक्रमित होने और मरने लगे !अभी तक हुए अनुसंधानों से समाज को लाभ क्या हुआ ? 

भूकंपवैज्ञानिक मतलब क्या ? भूकंप के विषय में पूर्वानुमान लगा नहीं सकते,भूकंप आने के बाद वैज्ञानिकों की भूमिका क्या है ? ऐसा भूकंप विज्ञान समाज के किस काम का ?

महामारी के समय इतने अधिक भूकंप जितने पहले नहीं आते थे !इन वर्षों में ऐसा होने का कारण क्या रहा होगा ?

1864 में चक्रवात तथा 1866 और 1871 के अकाल के बाद 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।इन डेढ़ सौ वर्षों के वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता को क्या मदद मिली ?

वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना जैसी महामारियों के  विषय में पूर्वानुमान लगाया जा  सकता है या नहीं !यदि लगाया जा सकता है तो लगाया क्यों नहीं जा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकल गए और  लगाया जा सकता है तो लगाया क्यों जाता रहा ?

 


 

 

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