हेमंतसोरेन, हर्षबर्द्धन, हनुमान जी, हरीसिंह,हस्तिनापुर हिंदू और हिंदुस्तान !
भगवान राम जी का जन्म नाम भी ह अक्षर से ही था जो न रखकर र अक्षर से राम नाम रखा गया था |
'राम' जी का जन्मनाम 'हा' अक्षर की जगह 'रा' अक्षर से रखा गया क्यों ?
ये कोई गलती हुई है या फिर इसमें है कोई बड़ा रहस्य ?
मैं
रामचरित मानस और ज्योतिष पर जब मैं काशी हिंदू विश्व विद्यालय में पीएचडी कर रहा था ! उसीसमय अनुसंधान क्रम में
मैंने देखा कि भगवान श्री राम जी का जन्म तो पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था| पुनर्वसु नक्षत्र के तृतीय चरण में जन्म होने के कारण इनका नाम तो 'हा' अक्षर से शुरू होना चाहिए था,किंतु ऐसा न करके इनका नाम र अक्षर पर 'राम' रखे जाने का कारण क्या है ? र अक्षर तो चित्रा नक्षत्र के तृतीय चरण का है | जो श्री राम जी के जन्म नक्षत्र से आठवाँ नक्षत्र पड़ता है |एक दो नक्षत्रों का अंतर पड़ा होता तो मान भी लिया जाता कि भूल से ऐसा हो गया होगा ,किंतु ये तो बड़ा अंतराल है | इतना बड़ा अंतर कैसे हो सकता है |- धरे नाम गुरु हृदय बिचारी | शोभा धाम राम अस नामा !
वशिष्ठ जी तो जन्म कुंडली बिचार कर ज्योतिष के अनुशार नाम रखने के लिए बोलाए गए थे तो उन्होंने ज्योतिष की जगह हृदय में बिचार कर 'राम' ऐसा नाम क्यों रख दिया ? यहाँ गुरू जी से ये कोई गलती हो गई है क्या ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि श्री राम जी के जन्म के समय एक महीने तक सूर्य रुके रहे थे तो उसके साथ साथ अन्य ग्रह नक्षत्र भी रुके रहे होंगे !उसके कारण तो यह ग्रह गणित नहीं गड़बड़ा गई है !आखिर इतना बड़ा अंतराल क्यों हुआ ? कहीं कुंडली ही गलत तो नहीं है ! ऐसा इसलिए भी लगता है क्योंकि श्री राम जी की जन्म कुंडली में सारे ग्रह अनुकूल बताए जाते हैं ,तो सब कुछ अच्छा होना चाहिए था किंतु श्री राम जी को तो बचपन से लेकर परमधाम जाने तक इस संसार में बड़ा संघर्ष करना पड़ा है | इससे लगता है कि श्री राम जी की कुंडली का फलादेश श्री राम जी के जीवन से मेल नहीं खाता है | इसलिए संभव है कि उनकी कुंडली ही गलत हो ! श्री राम जी का जन्म कहीं चित्रा नक्षत्र में ही तो नहीं हुआ था ! आखिर उनके जन्म नक्षत्र को छोड़कर उनका नाम चित्रा नक्षत्र पर क्यों रखा गया ?
यह प्रश्न और अधिक उलझता गया कि जन्म कुंडली के अनुशार श्री राम जी का जन्म जब हा अक्षर पर रखा जाना चाहिए था तो हा अक्षर से न रखकर 'रा' अक्षर से 'राम' नाम क्यों रखा गया ?
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हा अक्षर में ऐसी क्या कमी है 'राम' जी का जन्मनाम 'हा' अक्षर में ऐसी क्या कमी है कि की जगह 'रा' अक्षर से रखा गया क्यों ?
राम का नाम रखने में वशिष्ठ जी से हुई है गलती या फिर है कोई बड़ा रहस्य ?
मैं
रामचरित मानस और ज्योतिष पर जब मैं काशी हिंदू विश्व विद्यालय में पीएचडी कर रहा था ! उसीसमय अनुसंधान क्रम में
मैंने देखा
लोकोऽयं भारतंवर्षं ,
ऐसे ही - आर्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यं विन्ध्य हिमालयोः
हिंदुस्तान
'हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दुसरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥'- (बृहस्पति आगम)'
हिंदू
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
ॐकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है, तथा हिंसा की जो निन्दा करता है, वह हिन्दू है।
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'हिंदू' शब्द का मतलब क्या है ?
हिन्दू राष्ट्र हो जाने से क्या होगा ? ये हिन्दू है क्या ? आखिर इसकी उत्पत्ति कब और कहाँ हुई ?ये नाम कैसे पड़ा !
सिंधुनदी : यह चीन अर्थात पश्चिमी तिब्बत से निकलकर भारत के जम्मू और कश्मीर में होती हुई पाकिस्तान पहुँचकर अरब सागर में मिलती है |
सिंध - की स जिन्हें बोलने में कठिनाई होती होगी इस लिए हिंद किया गया होगा तो वे जैसा बोल पाते वैसा बोल लेते ये टैगोर और झा की तरह यह उनकी समस्या थी | 'सरक पर घोरा पराक पराक दौरता है ! स्कूटर स्कूल आदि की सुविधा का ध्यान क्यों नहीं रखा गया ! दूसरी बात किसी की सुविधा के लिए अपने देश का नाम बदल लेना कहाँ की समझदारी है |
नाम कारण तो निर्माण के समय होता है |हमारा देश नया तो बना नहीं था !आखिर इसका नाम रखने की आवश्यकता क्यों समझी गई ! इसके अतिरिक्त उन लोगों को सिंध सिंधी संस्कृत जैसे शब्दों की स के उच्चारण में उन्हें परेशानी क्यों नहीं हुई !
विशेष बात : हिंदू
शब्द यदि सिंधु नदी से संबंधित है तो इस नदी का जहाँ उद्गम हुआ है उस
तिब्बत को हिंदुस्तान कहा जाता !या फिर ये नदी जहाँ जहाँ बह कर गई है उन उन
स्थानों को हिंदुस्तान कहा जाता !इस हिसाब से भारत के बहुत छोटे भाग में
बहने वाली नदी के नाम पर इतने विशाल भारत का नाम रखा जाना तर्कसंगत नहीं है
| नदी के नाम पर ही रखना होता तो गंगा जी के नाम पर रखा जाता उनकी मान्यता
भी बहुत अधिक है |
हिंदू
शब्द यदि सिंधु नदी से संबंधित है तो नदी के आस पास के क्षेत्रों को उसके नाम से भले पहचाना जाता उस नदी जनित नाम को सनातन धर्म पर थोपा जाना कैसे तर्कसंगत हो सकता है |क्योंकि क्षेत्र तो नदी से संबंधित हो सकते हैं किंतु कोई धर्म कैसे हो सकता है | किसी धर्म के लोग तो कहीं भी जाकर बस सकते हैं फिर भी धर्म उनका वही रहता है | किसी अन्य धर्म का नाम तो किसी नदी के नाम पर नहीं है फिर भारत का क्यों है |
इसका वर्णन कहीं नहीं मिलता है |जहाँ मेदिनी शब्दकोष में केवल साढ़े चार हजार और हलायुध में आठ हजार नाम हैं।वहीं अमरकोष में प्राय: दस हजार नाम हैं,उसमें भारतवर्ष और आर्यावर्त जैसे नाम तो हैं किंतु हिंदू या हिंदुस्तान जैसे नाम नहीं है | इसका मतलब अमरकोश की रचना होने तक हिंदू या हिंदुस्तान जैसे नामों की कल्पना नहीं की गई थी | यथा -
अमरकोश में इसे भारतवर्ष और आर्यावर्त कहा गया है -लोकोऽयं भारतंवर्षं ,
ऐसे ही - आर्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यं विन्ध्य हिमालयोः
वेदों में, पुराणों में, संस्कृतकाव्यों में, या प्राचीन संस्कृत के साहित्यिक ग्रंथों में भी भारतवर्ष और आर्यावर्त जैसे नामों का ही प्रयोग मिलता है |प्राचीन भौगोलिक
प्रकरणों से संबंधित 'कूर्मचक्र'
,'बृहत्संहिता' या नरपतिजयचर्या जैसे किसी भी ग्रंथ हिंदू शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है
|
बृहस्पति द्वारा रचित 'बृहस्पतिसंहिता' प्रामाणिक ग्रंथ है जिसकी चर्चा प्राचीनसाहित्य में सभी जगह मिलती है |उसमें हिंदू शब्द का प्रयोग कहीं नहीं है |
जिस 'बृहस्पतिआगम' नामक ग्रंथ की चर्चा कहीं और नहीं मिलती, उसकी रचना का समय क्या है उसका लेखक कौन है ?आदि अस्पष्ट कारणों से यदि उस ग्रंथ की ही प्रामाणिकता सिद्ध नहीं हो पाती है तो उसमें लिखित 'हिंदू' शब्द का प्रयोग कितना प्रामाणिक हो सकता है | उसमें कहा गया है -
श्लोक : 'हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दुसरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥'- (बृहस्पति आगम)'
इसके आधार पर समझा जा रहा है कि हिमालय से इन्दुसरोवर
के मध्य का भाग हिन्दुस्तान है | इसमें जिस 'सरोवर' शब्द का प्रयोग है
उसका अर्थ तालाब होता है न कि समुद्र !तालाब और समुद्र में बहुत बड़ा अंतर
होता है | इसलिए इंदुसरोवर शब्द का प्रयोग समुद्र के लिए किया गया है ऐसा
तर्कसंगत नहीं है |
दूसरी बात हिमालय का 'हि' और इंदु के 'इ' की संधि करके 'हीन्दु' शब्द बना है ऐसा कहा जा रहा है जो तर्क संगत नहीं है |
तीसरी बात कही जा रही है कि 'स'
को बोलने में कठिनाई होने के कारण सिंधु को 'हिंदु' कहा जाने लगा
?यदि ऐसा होता तो सिंधप्रांत,सिंधुनदी और संस्कृत जैसे शब्दों को भी 'हिंधप्रांत','हिंधुनदी' और 'हंस्कृत' कर दिया जाना चाहिए था |ऐसा न किए जाने का कारण क्या था कि जो कठिनाई उसमें होती थी वही कठिनाई इन शब्दों में क्यों नहीं हुई ?
ऐसी परिस्थिति 'हिंदू' शब्द की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह स्वाभाविक ही है ?
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'सनातनधर्मियों' को 'हिंदू' और भारत को हिंदुस्तान कहने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ?
सभी देशों का काम एक नाम से चल जाता है भारत के तो जम्बूद्वीप, भरतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त जैसे इतने नाम थे इसके बाद भी इस देश का नाम हिंदुस्तान रखने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
दूसरी भाषा में अनुवाद करते समय में भी नाम का अनुवाद नहीं किया जाता है !
यहाँ तक कि नाम के स्थान पर उसका पर्यायवाची शब्द भी प्रयुक्त नहीं होता
है |किसी का नाम 'रविशंकर' हो तो उसे 'सूर्यशंकर' कहने की परंपरा नहीं है
|रूस को रसिया चीन को चाइना आदि तत्सम से तद्भव भले हुआ हो किंतु भारत का
तो पूरा का पूरा नाम ही बदल दिया गया क्यों ?
दूसरी बात किसी का नाम उसके घर के लोग रखते हैं या उससे संबंधित लोग रखते हैं सनातनधर्मियों
का नाम हिंदू रख कर ईरानी लोग चले
गए !ऐसा क्यों हुआ तो उन्हें स अक्षर उच्चारण करने में कठिनाई होती थी
!ऐसा भी कहीं होता है कि बीमारी ईरानियों की और सजा भुगते भारत ! ईरानियों
के द्वारा रखे गए हिंदू या हिंदुस्तान नाम को आज तक ढोने के लिए सनातन धर्मी मजबूर क्यों हैं ?
हिंदू शब्द की वकालत करने वालों को सोचना चाहिए कि छोटी छोटी बातों की
प्रमाणिकता खोजने के लिए जिन प्राचीन ग्रंथों को खँगाला जाता है !यदि
हिन्दू शब्द को भी प्राचीन मानना है तो उन प्राचीन ग्रंथों में क्यों नहीं
खोजा जाता है किन किन ग्रंथों में इस शब्द का प्रयोग किया गया है |हिंदू शब्द का प्रयोग
यदि प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता है तो सोचिए सूर तुलसी जैसे हिंदी के
शीर्ष कवियों ने हिन्दू शब्द का प्रयोग किस ग्रंथ में कितनी बार किया है?
एक धर्म विशेष के लोगों कवियों विद्वानों की ही हिन्दू और हिंदुस्तान जैसे
शब्दों का प्रयोग करने में इतनी अधिक रुचि क्यों है ?
इस देश को धर्म निरपेक्ष मानने की कसम खाए बैठे लोगों हिंदुस्तान कहने
में आपत्ति क्यों नहीं है |भारत नाम तो किसी धर्म संप्रदाय का संबंध नहीं
है जबकि हिंदुस्तान तो हिंदू धर्मावलंबियों से संबंधित है फिर भी किसी को
परेशानी नहीं होती है |
आखिर हमें हिंदू और हमारे देश का नाम हिंदुस्तान रखने में किसीकी इतनी
अधिक रूचि क्यों थी ?इसके पीछे की भावना को समझे बिना ऐसे शब्दों को हम
प्राचीन सिद्ध करने के प्रयत्न में क्यों लगे हैं !
हिंदुस्तान :
चारों वेद, छह शास्त्र, 11 मुख्य उपनिषद, वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, महाभारत, गीता तथा पुराणों में भी हिंदू शब्द नहीं हैं।
कूर्म चक्र नारद संहिता,वृहदसंहिता में नहीं है |नरपतिजयचर्या आदि में हिन्दू शब्द नहीं है | बृहस्पति संहिता में हिंदू
आयुर्वेद में किस देश प्रदेश में कैसे रोग होते हैं,किन देशों प्रदेशों में कैसी बनस्पतियाँ होती हैं,किन देशों प्रदेशों में कैसे खनिज द्रव्य होते हैं | ऐसी जानकारी आयुर्वेद के जिन जिन ग्रंथों में दी गई है | वहाँ कहीं हिंदुस्तान का नाम नहीं है |
रामायण की चर्चा - सुग्रीव सीता जी की खोज के लिए जब दशों दिशाओं में वानर भेज रहे थे उनमें समस्त भूमंडल के नाम गिनाए गए हैं | जिनमें हिंदुस्तान का नाम कहीं नहीं है |
- चरकसंहिता,सुश्रुतसंहिता,अष्टांगसंग्रह,रसरत्नसमुच्चय, भाव प्रकाश निघंटु,शार्ङ्गधरसंहिता,माधव निदान आदि ग्रंथों में नहीं है |
2 टिप्पणियां:
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