अपनों पर उपकार करना है तो उन्हें कोई ऐसा आश्वासन मत दो जिसे तुम पूरा न कर सको ! वे बर्बाद होने से बच जाएँगे !आपका यह सहयोग उनके लिए कम नहीं होगा !
तुम भरत बनो और अपना राज्य बड़े भाई के चरणों में चढ़ा दो,भाई यदि राम है तो ऐसा करना संस्कृति है और भाई यदि रावण है तो ऐसा किया जाना विकृति है |
बहू को बेटी की तरह मत रखिए ,बेटी तो अपने घर का पौधा है बहू दूसरे घर से लाकर लगाया हुआ पौधा है जब तक जड़ न पकडे तब तक उसकी देख रेख अधिक करनी पड़ती है |
पुलिस यदि उसे ही अपराधी मानती रहेगी जो उसे घूस नहीं देता है तो अपराध घटेंगे कैसे !समाज का विश्वास जीते बिना जनहित में पुलिस की उपयोगिता क्या है ?
अपराधियों की मुखबिरी करने वाले पुलिसकर्मियों पर लोग भरोसा कैसे करें ! किसी अपराध की सूचना पुलिस को कैसे दें अपराधियों से पीड़ित लोग पुलिस में कंप्लेन कैसे करें !
ईमानदार आदमी पुलिस को घूस देना जरूरी नहीं समझता और घूसखोर लोग अपराधियों के अपराधों में सम्मिलित होते हैं !उनसे अपराध से मुक्ति दिलाने की आशा कैसे की जाए !
अपराध रोकने के लिए सरकार जिन्हें सैलरी देती है !उससे रोटियाँ खाकर वही अधिकारी अपने अपने विभागों से संबंधित करवाते हैं अपराध !
समस्याएँ बढ़ती देखकर शांत मत बैठो उनसे जूझो !शेर के पीछा करने पर खरगोश चुप बैठता है क्या ?दौड़ता है तो बच भी जाता है रुक जाए तो क्या होगा !
जो पति पत्नी तलाक लेते हैं वे सुखी हो जाते हैं क्या ? सुख तो भाग्य से ही मिलता है !दूसरा विवाह करने पर भी तो वही होता है किंतु तब तक सहने की आदत पड़ चुकी होती है !
बड़े विद्वानों के भी चरित्र पर भरोसा मत करो !साधुओं से भी सतर्क रहो !अपनी सुरक्षा के विषय में स्वयं सोचो !कब किसका संयम टूट जाए !वे भी तो अभ्यास ही कर रहे हैं !
काम क्रोध लोभ को दबा कर पढ़ने और बड़े पाने पाने वाले लोग अधिक खतरनाक होते हैं | वे दबे हुए काम क्रोध लोभ कब सिर उठा दें क्या पता !
भाग्योन्नति की परीक्षा का प्रश्नपत्र
जीवन एक परीक्षा है इसे काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर आदि में बिना फँसे हुए जीना है | अपनों को अपनापन देना है लेकिन उनके मोह में फँसे बिना ! जीवन की जरूरतों को पूरा तो करना किंतु ईमानदारी से ,परोपकार तो करना है किंतु अहंकार से बचते हुए ! दान देना है लेकिन दान दे समय विनम्रता न छूटे !ग्यानी बनना है किंतु ज्ञान का घमंड किए बिना ! शक्तिशाली बनना है किंतु किसी को पीड़ित किए बिना !विवाह करना है आशक्त हुए बिना ! संतान पैदा करनी है किंतु कामी हुए बिना !धन कमाना है किंतु बेईमान बने बिना ! अपने को सुखी करना है दूसरे को दुखी किए बिना !ऐसा पवित्र जीवन जीकर आप स्वयं बदल सकते हैं अपना भाग्य !
जीवन एक रंगमंच है और आप एक अभिनेता हैं !
संसार मंच पर अभिनय के लिए आपको जो भूमिका मिली है आप केवल उसी पर ध्यान दें दूसरों पर नहीं ! आप अपनी भूमिका का जितना अच्छा निर्वाह कर लेंगे !आपका अभिनय उतना अधिक सजीव माना जाएगा ! उसी की प्रशंसा होगी !
विवाह और तलाक ड्राइवरी की परीक्षा की तरह हैं !
आप चाहें तो ड्राइवरी की लाइसेंस बनवावें या न बनवावें किंतु परीक्षा तो आपको वैसी ही देनी पड़ेगी जैसा मार्ग उन्होंने निश्चित किया होगा ! जो जहाँ जैसे जितने अवरोध खड़े किए गए होंगे उन कठिनाइयों का सामना करते हुए यदि आप गाड़ी चला लेते हैं | तो आपको गाड़ी चलाने की कुशलता का लाइसेंस मिल जाएगा |यदि आप उन अवरोधों से टकरा जाते हैं तो ऐसा नहीं होगा |ऐसे ही वैवाहिक जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए ही गृहस्थ बना जा सकता है | आपका जीवन साथी एवं उसके घर परिवार के सगे संबंधी लोग,उनका अच्छा बुरा व्यवहार जैसी वे सभी कठिन परिस्थितियाँ आपके वैवाहिक जीवन के बनावटी अवरोध होते हैं|उन्हीं परिस्थितियों में बिना किसी शिकायत के आपको अपनी गृहस्थजीवन के पथ पर आगे बढ़ना होता है | वैवाहिक जीवन सुरक्षित रखने में सफल रहे तो उत्तम और नहीं रहे तो उपहास!यदि उन अवरोधों को आप हटा नहीं सकते ! उन्हें सहते हुए ही आगे बढ़ सकते हैं |इसमें आपकी च्वाइस नहीं चल सकती !
विवाह भी एक प्रकार की परीक्षा ही है !
परीक्षा कोई भी हो कठिन होती ही है | उसमें आपको ऐकठिन परिस्थितियों का सामना करना होता है जिनसे बचकर निकलना आसान न हो ! ड्राइवरी की लाइसेंस बनवाने के लिए भी एक परीक्षा देनी होती है |जिसमें गाडी चलवाकर देखा जाता है कि आप कुशल चालक हैं या नहीं ! उसमें कुछ टेढ़े मेढ़े संकरे रोड,और कठिन मोड़ मोड़ बनाए गए होते हैं |आप उन्हें हिला या हटा नहीं सकते | वे रुकावटें परीक्षा व्यवस्था की अंग हैं |इसलिए उन रुकावटों की शिकायत भी नहीं कर सकते ,क्योंकि ड्राइवर आपको बनना है उन रुकावटों को नहीं !परीक्षा आप दे रहे हैं न कि वे रुकावटें ! उनसे बचते हुए गाडी चलाने की ही तो परीक्षा हो रही होती है | यदि रुकावटों का सामना ही नहीं करना है तो परीक्षा किस बात की, फिर तो लाइसेंस के चक्कर में ही नहीं पड़ना चाहिए बिना लाइसेंस के चोरी चोरी ही गाड़ी चलाओ ! अर्थात एक दूसरे से चोरी चोरी ही मिलते रहो !यदि विवाह होने जैसी लाइसेंस लेनी है तो कठिनाइयाँ तो सहनी ही पड़ेंगी | जो कठिनाइयाँ भी नहीं सहना चाहते हैं और वैवाहिक जीवन भी जीना चाहते हैं | ये दोनों बातें एक साथ संभव ही नहीं हैं |
अपराध भी एक प्रकार का कारोबार ही होता है |
क़ानूनी और गैर क़ानूनी दोनों प्रकार के कार्य करने के लिए विभाग तो एक होता ही है अधिकारी कर्मचारी भी एक ही होते हैं | अनुमति भी एक जैसी ही मिलती है अंतर केवल इतना होता है कि क़ानूनी कार्यों में लिखित अनुमति मिलती है और गैरकानूनी कार्यों में मौखिक अनुमति मिलती है | लोग उन विभागों में जाते हैं और अपने
आवश्यक कार्य करवा लिया करते हैं | उन्हीं विभागों से संबंधित अवैध काम
करने के लिए भी उन्हीं विभागों के उन्हीं अधिकारियों से संपर्क करना पड़ता
है,और उस गैर कानूनी काम को करवाने की गुप्त अनुमति भी उन्हीं से लेनी पड़ती है जिसके लिए उन्हें कुछ सुविधाशुल्क चुकानी पड़ती है | किस गैरकानूनी कार्य को करने के लिए अधिकारियों को सुविधा शुल्क कितनी देनी पड़ेगी और उस अपराध को करने से आमदनी कितनी होगी | कुल आमदनी में से अधिकारियों की दी जाने वाली सुविधा शुल्क के अमाउंट को घटाकर जो बचता है वो यदि पर्याप्त लगा तो वो अपराधी उस वारदात को कर दे देता है अन्यथा नहीं करता है |ऐसी वारदात होने पर अपराधी या तो पकडे नहीं जाते या फिर वास्तविक अपराधियों की जगह कुछ दूसरे लोग पकड़ कर बंद कर दिए जाते हैं | यदि अधिक दबाव पड़ा और वास्तविक अपराधी ही पकड़ने पड़े तो उन पर हल्का केस बनाकर उन्हें आसानी से अपराधमुक्त घोषित करवा लिया जाता है |किसी भी प्रकार का अपराध घटित होने में अपराधियों से अधिक उन अधिकारियों की भूमिका होती है जो ऐसे अपराधों को करने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं |इसलिए अपराध रोकने के लिए अपराधियों के साथ साथ उन अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिए जिन्हें उसप्रकार के अपराधों को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी |
अधिकारी अपने विभागों से संबंधित अपराध स्वयं करवाते हैं !
ऊपरी आमदनी के लिए अपराधों का समर्थन किए बिना कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है | जिन अधिकारियों कर्मचारियों के पास नौकरी मिलने के समय जो संपत्ति होती है | वही
अंकुश अपराधियों पर लगाने से अपराध रुक तो सकते हैं किंतु समाप्त नहीं हो सकते ! अपराधों को जड़ से समाप्त करना है तो अपराधियों से अधिक कठोर दंड उन अधिकारियों को देना होगा जिन्हें उसप्रकार के अपराध को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी |लक्ष्य अपराधियों को पकड़ना तो होना ही चाहिए इसके साथ ही साथ उन अधिकारियों को भी पकड़ा जाना चाहिए जिनके तत्वावधान में वो अपराध घटित हुआ है | सरकार के किस विभाग से संबंधित किस प्रकार का अपराध करने के लिए की गुप्त अनुमति
के लिए सुनिश्चित करने होगा तब रुकेंगे अपराध !
ब्यूटीपार्लर कौन अच्छा होता है और कौन बुरा !
जिस ब्यूटीपार्लर से श्रृंगार कराने वाली सुंदरियों को वाले लोग सहज श्रृंगार सौंदर्य बर्द्धक होता है विकृत श्रृंगार बासनाबर्द्धक होता है और कुकृत श्रृंगार ब्यभिचार बर्द्धक होता है | ब्यूटीपार्लरों में होने वाला कुकृत श्रृंगार समाज को बी ब्यभिचारी बनाता है |
सीतानिर्वासन में छिपा है श्री राम का रामत्व !
दलितों को खुश करने के लिए रामायण से शंबूकबधवाली कथा हटा दी जाए और ब्राह्मणों को खुश करने के लिए रावणबध की कथा हटा दी जाए !महिलाओं को खुश करने के लिए सीता निर्वासन की कथा हटा दी जाए | साधुओं को खुश करने के लिए सीता हरण की कथा हटा दी जाए क्योंकि रावण साधूवेष में आया था |ऐसे यदि सारी कथाएँ हटा ही दी जाएँ तो रामायण में बचेगा ही क्या ! वस्तुतः आवश्यकता रामायण को सुधारने की नहीं अपने अपने को सुधारने की है | दर्पण बदलने से कोई गोरा नहीं दिखने लगेगा ! रही बात शंबूकबध की तो इस कथा का वर्णन कुछ अन्य पुराणों में भी है | रामायण से यह कथा हटा भी दी जाए तो भी अन्य पुराणों में तो बनी ही रहेगी | ध्यान यहाँ दिया जाना चाहिए कि शंबूक तपस्या के नाम पर ऐसा क्या कर रहा था कि उसके तपस्या करने से जिस बालक की मृत्यु हो गई थी वही बालक शंबूकबध होते ही जीवित हो गया !आखिर उसके जीवन मरण से उस बालक का जीवन मरण कैसे जुड़ गया !इस घटना को समझा जाना आवश्यक है | इसके लिए भारत का प्राचीन साहित्य पढ़ना पढ़ेगा | इस कथा को समझना समझाना उन नचैयों गवैयों के बश का नहीं है जो डांसबार बंद होने के कारण रामायण और भागवत की कथा करने का नाटक कर रहे हैं |
राम ने शबरी के जूठे बेर कभी नहीं खाए थे !
श्रीराम ने बेर तो खाए थे किंतु जूठे बेर खाए थे ऐसा कहा जाना बिल्कुल गलत है | श्री राम ने शास्त्रविरुद्ध आचरण कभी नहीं किया ! वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे |उनके द्वारा मर्यादा के विरुद्ध आचरण किया जाना संभव ही न था | शास्त्र में अपना जूठा भोजन भी एक बार छोड़कर पुनः खाना बर्जित है फिर किसी दूसरे का जूठा खाना कैसे धर्मसम्मत हो सकता है | दूसरी बात माताशबरी बहु बड़ी भक्त थीं वो अपने जूठे बेर श्रीराम को खिलाने का पाप कैसे कर सकती हैं | इसलिए उनके द्वारा जूठे बेर खिलाया
सीता जी के विवाह में धनुष तोड़ने का प्रण ही गलत था !
धनुष तोड़े बिना ही श्री राम और सीता जी का हुआ था विवाह !
श्री राम जी क्षत्रिय थे अस्त्र शस्त्र तो क्षत्रियों के स्वाभिमान होते हैं | उन्हें कोई क्षत्रिय कैसे तोड़ सकता है |जैसे ब्राह्मण वेद नहीं नष्ट कर सकता वैसे ही क्षत्रिय धनुष नहीं तोड़ सकता है
सीता स्वयंबर में राजाओं ने धनुष तोडा ही नहीं था या तोड़ नहीं पाए थे !
सीता स्वयंबर में क्या जनक जी से हुई थीं ये बड़ी गलती ! नंबर -1
सीता स्वयंबर तो राजाओं के लिए था फिर राम जी के साथ विवाह कैसे कर दिया गया ! राम जी तो राजकुमार ही थे ! उस समय तक वे राजा नहीं बनाए गए थे | इस प्रक्रिया में जनक जी के प्रण का पालन कैसे हो सका |इससे तो प्रण ही खंडित हो गया |
चौ. तब बंदीजन जनक बोलाए। बिरिदावली कहत चलि आए॥
कह नृपु जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हियँ हरषु न थोरा॥
दो.बोले बंदी बचनवर सुनहु सकल महिपाल ! पन विदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ विशाल ||
ऊन षोडश वर्षों में रामो राजीव लोचनः !
सीता स्वयंबर में क्या जनक जी से हुई थीं ये बड़ी गलती ! नंबर - 2
जनक जी ने जिन सीता जी के साथ विवाह करने के लिए महाराज दशरथ जी को आमंत्रित किया था | उन्हीं सीता जी का विवाह उन्हीं दशरथ जी के पुत्र के साथ कर दिया गया कैसे ? इसमें मर्या
दा भंग हुई है |पिता पुत्र दोनों को एक तराजू पर कैसे तौल दिया गया !पुत्री सीता जी का विवाह करने के लिए जनक जी को कोई अंतर ही नहीं दिखा ! महाराज जनक जी इतने बड़े धर्मप्राण राजा हैं उनसे इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है वो भी तब जब सतानंद वशिष्ठ विश्वामित्र जी जैसे धर्म के मर्म को जानने वाले तपस्वी वहाँ विद्यमान हों | महाराज दशरथ जी इतनी बड़ी बात सह कैसे गए ? स्वयं श्री राम जी जिन्हें पता था कि इस स्वयंबर के लिए पिता जी को निमंत्रित किया गया है तो उन्हीं सीता जी के साथ अपने विवाह की बात स्वीकार कैसे कर ली |
भूकंपों के समय भूकंपवैज्ञानिकों की भूमिका क्या है ?
भूकंप आने का वास्तविक कारण वैज्ञानिक लोग खोज नहीं सके , पूर्वानुमान वे लगा नहीं सकते कि अगला भूकंप कब आएगा !भूकंप को आने से रोक कोई सकता नहीं है |भूकंप में होने वाली जनधन की हानि को घटा पाना वैज्ञानिकों के वश का नहीं है |भूकंपों के विषय में कुछ भी किया जाना जब वैज्ञानिकों के वश का ही नहीं है तो भूकंप वैज्ञानिक हैं आखिर किस बात के !भूकंपवैज्ञानिकों के अनुसंधानों से ऐसी क्या मदद मिलती है जो न मिले तो और अधिक नुक्सान हो सकता है |भूकंपवैज्ञानिकों एवं उनके अनुसंधानों का भूकंपों से आज तक कोई संबंध ही नहीं जुड़ पाया !जिससे उनकी भूकंपवैज्ञानिकता सिद्ध हो पाती !ऐसे लोगों को भूकंपवैज्ञानिक होने जैसी उच्च पद प्रतिष्ठा प्रदान किए जाने की सार्थकता आखिर क्या है ? ऐसे लोगों को इतनी भारी भरकम सैलरी सुख सुविधाएँ आदि प्रदान किए जाने लायक उनका योगदान आखिर क्या है ?जनता के खून पसीने की टैक्सरूपी कमाई खर्च करते समय सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे उस समाज को क्या मिलेगा जिसका पैसा खर्च हो रहा है |
आकाशवाणियाँ अभी भी होती हैं ! भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ देती हैं भविष्य की सूचनाएँ !
भूकंप बाढ़ बज्रपात महामारी जैसी घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाली कुछ दूसरी घटनाओं के विषय में सूचना दे रही होती हैं | जिन्हें प्राचीनकाल में आकाशवाणी कहा जाता था !भविष्य में कौन घटना कब कहाँ घटित होने वाली है इसका पूर्वानुमान उन्हीं आकाशवाणियों से पता लगा लिया जाता था |
कोरोना महामारी के समय ऐसी सूचनाएँ लेकर भूकंप तो बार बार आ रहे थे! उनकी भाषा समझने वाले लोग नहीं थे | मैं उन्हीं भूकंपों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर महामारी की लहरों के आने जाने का पूर्वानुमान पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ जो सही भी निकलता रहा है | ऐसी मेलें अभी भी हमारी मेल पर सुरक्षित हैं |
1. इससे भविष्य में घटित होने वाले भूकंपों,आँधीतूफानों चक्रवातों की सूचनाएँ मिल जाती हैं |
2. तापमान या वायुप्रदूषण वर्षा बाढ़ या सूखा पड़ने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं |
3. भूकंपों से सरकारों के बनने बिगड़ने एवं समाज में उन्माद या दंगा भड़कने की सूचना मिलती हैं |
4. आतंकियों के द्वारा विस्फोटक लाने ले जाने या कहीं विस्फोट करने की अग्रिम सूचनाएँ पता लगती हैं |
5. आतंकियों की घुसपैठ या उनके आवागमन आदि गतिविधियों की सूचना देते हैं भूकंप !
6. ये भूकंप किसीमेला रैली, सभा, त्यौहार, उत्सव आदि में घटित होने वाली हिंसक वारदात की सूचना भूकंप देते हैं |
विशेष बात यह है कि ऐसे छोटे छोटे भूकंपों के संकेतों को न समझने के कारण ही आता है कोई बड़ा भूकंप !जो स्वयं ही उस हिंसक घुसपैठ ,वारदात या षड्यंत्र को कुचल देता है | |
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जिसके भाग्य में जो सुख जितना बदा होता है उतना ही मिलता है !
किसी के भाग्य में जिस मात्रा में विद्या का सुख है जरूरी नहीं कि उसी मात्रा में धन का सुख भी हो ! पत्नी या संतान का सुख भी उसी मात्रा में हो !इसलिए जिसको जिस प्रकार का सुख जिस मात्रा में भाग्य के द्वारा किया गया होगा वह कर्म के द्वारा केवल उतना ही प्राप्त कर सकता है | उससे अधिक के लिए किए गए प्रयास असफल होंगे एवं उसमें लगी धनराशि नष्ट होगी !इसलिए अपना जीवन प्रारंभ करने से पहले हमारे यहाँ से यह पता कर लिया जाना चाहिए कि उसके भाग्य में किस प्रकार का सुख कितनी मात्रा में बदा है !
तलाक उन्हीं का होता है जिनका अपना समय खराब होता है !
पति पत्नी में तनाव का कारण आवश्यक नहीं कि उन दोनों में से कोई गलत ही हो !कई बार वे दोनों ही सही होते हैं | वे एक दूसरे को पसंद भी करते हैं|दोनों रहना भी साथ साथ चाहते हैं,फिर भी तनाव होने का कारण उन दोनों का अपना अपना बुरा समय होता है | जब दोनों का बुरा समय एक ही साथ आ जाता है तब वे दोनों परेशान तो अपने अपने कारणों से होते हैं जिसका गुस्सा अपने जीवन साथी पर उतारते हैं | अपने अपने बुरे समय को न समझने के कारण अपने निर्दोष पति या पत्नी को दोषी समझने लगते हैं और विवाह टूट जाते हैं |इनमें से कोई हो सकता है विवाह टूटने के कारण -
1. दो में किसी एक का बुरा समय आने पर दूसरा सह न पा रहा हो !
2. दोनों का बुरा समय एक साथ ही आ गया हो !
3. दोनों के नाम का पहला अक्षर न मिल पा रहा हो !
4. दोनों के बीच कोई तीसरा तनाव पैदा कर रहा हो !
5. जिस घर में रहते हों वह जगह विवाहित जोड़े के रहने लायक न हो !
ऐसी सभी समस्याओं का समाधान खोजकर अपने वैवाहिक जीवन को टूटने से बचाने के लिए आप कर सकते हैं हमारे यहाँ संपर्क !
संतान न होने का मतलब पति या पत्नी में कमी होना ही नहीं होता !
खाद पानी अधिक देकर भी बिना समय के वृक्षों में फूल फल उगाना संभव नहीं होता उसी प्रकार से संतान होने लायक समय आए बिना मनुष्यों को संतान नहीं होती है | संतान तभी होती है जब पति - पत्नी दोनों का संतान होने लायक समय एक साथ आता है |कुछ जोड़ों में जब पति का संतान होने लायक समय आता है तब पत्नी का ऐसा समय नहीं होता है और जब पत्नी का आता है तब पति का संतान होने लायक समय नहीं होता है |ऐसी स्थिति में पति पत्नी दोनों की मेडिकल रिपोर्टें नार्मल आ रही होती हैं |क्योंकि उनमें कोई कमी होती ही नहीं है यह समय का एक साथ न मिलना ही कारण होता है | इस समस्या से पीड़ित चिकित्सकों के यहाँ भी संतान नहीं होती है और ऐसे चिकित्सक भी हमारे यहाँ संपर्क करके समाधान पाते हैं |
प्रेमी प्रेमिका जिसके बिना रह नहीं पाते थे उसी से लेते हैं तलाक क्यों ?
किस सुख का आनंद किसको कितना मिलेगा ! यह प्रत्येक स्त्रीपुरुष के लिए प्राकृतिक रूप से निश्चित होता है | उससे अधिक उस सुख को भोगा जाना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है ! जैसे दूसरों की अपेक्षा अधिक मीठा खाने का आनंद लेने वाले लोगों को मीठा खाना जल्दी छोड़ देना पड़ता है|अन्यथा उन्हें शुगर हो जाती है,जबकि उन्हीं की उम्र के कुछ दूसरे लोग मीठा खाने का आनंद ले रहे होते हैं |ऐसे ही जो लड़के लड़कियाँ कम उम्र में ही प्रेमी प्रेमिकाओं का सेवन करके या किसी अन्य प्रकार से अपने वैवाहिक सुखों के आनंद का कोटा पूरा पर लेते हैं उन्हें वैवाहिक सुखों से तलाक ले लेना पड़ता है जबकि उन्हीं की उम्र के उनके साथी आनंद पूर्वक वैवाहिक जीवन जी रहे होते हैं |
1. प्रत्येक व्यक्ति को अपने वैवाहिक सुखों का कोष बचा बचा कर खर्च करना चाहिए |
2. प्रत्येक व्यक्ति को अपनी और अपने जीवन साथी के वैवाहिक सुखों की लिमिट पता होनी चाहिए !
3. वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ते ही यह पता करना चाहिए कि वैवाहिक सुखों की लिमिट उसकी पूरी हुई है या उसके जीवन साथी की !
विशेष : किसी एक की गलती का दंड दोनों क्यों भुगतें !इसके लिए किया जा सकता है,हमारे यहाँ संपर्क !
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