हमारे विनम्र बिचार
मेरे जन्म के कुछ दशक पहले कोई महामारी आई थी उसमें लोगों ने खेतों बागों आदि में रहकर अपनी सुरक्षा की थी | उस महामारी की चर्चा पुराने लोग किया करते थे | जिससे यह पता लगा कि महामारी में बहुत बड़ी संख्या में लोग अचानक संक्रमित हो जाते हैं | उन सभी को चिकित्सा उपलब्ध करा पाना अचानक संभव नहीं हो पाता है | रोग का परीक्षण करके लाभप्रद औषधि का निर्णय किया जाना,इतनी बृहदमात्रा में औषधि निर्माण करके जन जन तक पहुँचाने में उतना समय लग जाता है जितने समय में महामारी स्वतः समाप्त होने लगती है |ऐसी स्थिति में बहुसंख्य लोगों के संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त हो जाने के बाद कोई औषधि तैयार की जा पाती है | उस समय महामारी स्वतः समापत हो जाने के कारण महामारी पर उस औषधि के प्रभाव का परीक्षण भी ठीक से नहीं हो पता है | जिससे यह निश्चय किया जा सके कि यह औषधि महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम है भी या नहीं | वैसे भी इतने सक्षम विज्ञान और वैज्ञानिकों के होते हुए भी यदि महामारी से करोड़ों लोग संक्रमित हुए और लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हो ही गए तो क्या लाभ !अनुसंधानों की सफलता तो तब है जब महामारी आने पर भी समाज को सुरक्षित बचाया जा सके !
प्राचीनकाल में जब इतने वाहन या उद्योग आदि नहीं थे वायुप्रदूषण तब भी बढ़ता था| भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान वज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक घटनाएँ तो तब भी घटित हुआ करती थीं| सूखा तब भी पड़ता था !कोरोना जैसी महामारियाँ तब भी आया करती थीं,उनसे लोग भी प्रभावित पीड़ित होते होंगे फिर भी बचाव के उपाय अपनाते हुए सबको सुरक्षित रखते रहे हैं | उसी का परिणाम है कि जनसंख्या का क्रमिक विस्तार होता चला आ रहा है |आखिर उस समय ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए क्या उपाय किए जाते थे !
जिसप्रकार से प्राचीनयुग में प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोगों को शास्त्रवर्णित उपायों या परंपरा से प्राप्त ज्ञान विज्ञान के द्वारा सुरक्षित बचा लिया जाता था| वर्तमान समय में भी उसी ज्ञानविज्ञान के द्वारा ऐसी आपदाओं से पीड़ित समाज को सुरक्षित बचाया जा सकता है |
उनसे बचाव के लिए उस समय क्या व्यवस्था थी ?आखिर उस समय ऐसी घटनाओं से लोग अपना बचाव किस प्रकार से कर लिया करते थे |
भारत का विज्ञान अत्यंत उन्नत था मैं पिछले तीस वर्षों से मौसम आदि
कोरोना महामारी जब आई तो महामारी से समाज
की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी चिकित्सा वैज्ञानिकों ने तो सँभाल ही रखी
थी ! समाज की मदद करने के लिए सरकार भी पूर्ण प्रयत्नशील थी ,किंतु महामारी
पीड़ितों को रोग मुक्ति दिलाना तो वैज्ञानिकों का ही काम था | वे ऐसा कर भी
रहे थे किंतु उसका कुछ विशेष प्रभाव दिखाई नहीं पड़ रहा था | इसी उहापोह की
स्थिति में महामारी की पहली लहर तो जिस किसी प्रकार से समाप्त हुई | मार्च
अप्रैल 2020 में जब दूसरी लहर प्रारंभ हुई
|ऐसे
जितने भी ग्यानी गुनी या धर्म कर्म से जुड़े लोग हैं उन सबका ऐसा कर्तव्य
था | इस आशा से मैंने सभी धर्मों के मनीषियों से यह आशा लगा रखी थी कि इस
आपद्काल में उनका धर्मकर्म देश वासियों के काम आएगा | वे अपने ज्ञान
विज्ञान तपस्या आदि के बलपर महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान लगा सकते
हैं |महामारी की आगामी लहरों के विषय में पूर्वानुमान लगा सकते हैं|अपने
तपोबल से महामारी के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगा सकते हैं |ऐसी उन सभी
महापुरुषों से मैंने आशा लगा रखी थी |
विविध
धर्म पंथ मत मजहब आदि हैं उनमें एक से एक बड़े विद्वान और साधक आदि भी हैं
अपने अपने धर्म संप्रदाय आदि को ही सभी शक्तिशाली एवं वास्तविक धर्म बताते
हैं | ऐसी बातों को लेकर तरह तरह के वाद विवाद आदि होते देखे सुने जाते हैं
|सैकड़ों वर्षों से
ऐसा होते चला आ रहा है | ईश्वर से बातें करने, भविष्य को देखने एवं बदलने
के दावे करने वाले लोग लगभग सभी समुदायों संप्रदायों धर्मों में देखे सुने
जाते हैं |
रोग और मृत्यु को टालने की शक्ति केवल ईश्वर में है !
समय ही साक्षाद ईश्वर है | इसलिए समयकृत निर्णय को केवल ईश्वर ही बदल सकता
है | इसीलिए कोरोना काल में भी मंदिरों के पुजारियों पंडितों महात्माओं परिश्रमजीवियों सद्गृहस्थों एवं ईमानदारी से जीवन जीने वाले निष्पाप लोगों को अन्य लोगों की अपेक्षा कम संक्रमित होते देखा गया था | प्रत्यंगिरा
महामारी में चिकित्सा की भूमिका !
महामारी संक्रमितों पर चिकित्सा के प्रभाव बात की जाए तो सबसे पहला
प्रश्न उठता है कि चिकित्सा की किस रोग की जाएगी | चिकित्सा करने के लिए
रोग की प्रकृति और लक्षणों को समझा जाना बहुत आवश्यक है | उन्हें समझे
बिना किसी भी रोग की चिकित्सा की जानी कैसे संभव है |
आयुर्वैदिक औषधियों के निर्माण के नाम पर खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है|
महामारी में धार्मिक विद्वानों और धर्माचार्यों की भूमिका !
महामारी में तांत्रिक अनुष्ठानों की भूमिका !
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