शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

महामारी और जीवन ! 3.

 


 दो शब्द

भूमिका-

 महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए परंपराविज्ञान एक सक्षम वैज्ञानिक प्रक्रिया है| इसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं और वे पूर्वानुमान प्रायः सच निकलते हैं | |प्राकृतिक वातावरण में विगत बारह वर्षों से विकार आने प्रारंभ हो गए थे | जिन्हें देखकर ऐसे  किसी बड़े रोग के पैदा होने की आशंका मुझे बार बार हो रही थी,किंतु महामारी के  विषय में मेरा यह पहला अनुभव था |इसलिए ऐसे पूर्वानुमानों को उतने विश्वास के साथ घोषित किया जाना संभव नहीं था | महामारी की संक्रामकता का परीक्षण(ट्रायल)  प्राकृतिक रूप से बार बार हो रहा था | कुछ वर्ष पहले पश्चिमी उत्तरप्रदेश में छोटे छोटे  बच्चों में गलाघोंटू रोग काफी हिंसक रूप से फैला था !

अपनी बात -  

     लोगों को संक्रमित होते या संक्रमित होकर मरते देखकर ही यदि महामारी शुरू होने का ज्ञान होता है तो महामारी से समाज की सुरक्षा की जानी संभव ही नहीं है | इतने बड़े  वेग से हमला करने वाली महामारी से बचाव करने के लिए पहले से करके रखी गई अत्यंत मजबूत तैयारियों या संसाधनों की आवश्यकता होती है | 
     महामारी से बचाव के  लिए इतनी मजबूत तैयारियाँ पहले से करके तभी रखी जा सकती हैं जब महामारी आने के  विषय में पहले पता हो | इसके लिए महामारी के  विषय में पूर्वानुमान लगाने की कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजनी होगी, जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली  घटनाओं के  विषय में पहले से पता लगाया जा सके |भविष्य में झाँकने  के लिए जब तक कोई विज्ञान नहीं है तब तक भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के  विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है|महामारी  आने के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता लगे बिना उससे बचाव  के लिए पहले से तैयारियाँ करके कैसे रखी जा सकती हैं |इसके बिना महामारी पीड़ितों की मदद करने के लिए कोई दूसरा उपाय ही नहीं  है | 
     ऐसे में लोगों के महामारी से  संक्रमित होने या संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होने से पहले महामारी को पहचानने की कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया भी होनी चाहिए ! जिसके द्वारा किसी के संक्रमित हुए बिना भी केवल अनुसंधानों के बल पर  महामारी को पहचानना संभव हो | 
      गणितविज्ञान के द्वारा जिस सूर्य चंद्र ग्रहण  विषय में जब कोई पूर्वानुमान लगाया जाता है | उस समय वह ग्रहण बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ रहा होता है | इसके बाद भी ग्रहण के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |किसी दिन आकाश में  बादलों की अधिकता होने  के कारण यदि ग्रहण न भी दिखाई दे तो भी गणितविज्ञान के आधार पर यह मान लिया जाता है कि ग्रहण अवश्य पड़ा होगा |ऐसे ही बादलों के कारण यदि सूर्य उगते हुए न भी दिखाई दे तो भी गणितविज्ञान के आधार पर यह मान लिया जाता है कि सूर्योदय हो चुका होगा | ऐसा किया जाना गणितविज्ञान के द्वारा ही संभव हो सका है |यही गणित विज्ञान की वैज्ञानिकता है | 
     सूर्योदय की ललामी देखकर सूर्योदय होने की एवं ग्रहण पड़ते देखकर ग्रहण पड़ने की भविष्यवाणी करने में वैज्ञानिकता कहाँ है | ऐसे ही उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर वर्षा की एवं आँधी तूफानों को देखकर आँधी तूफानों के  विषय में भविष्यवाणी करने में वैज्ञानिकता क्या है |इसमें  तो जो देखा गया सो बता दिया गया | 
     इसी प्रकार से लोगों को महामारी  से संक्रमित होते देखकर महामारी के विषय में कुछ ऐसा अंदाजा लगा लिया जाना जिसके सही या गलत दोनों होने की संभावना होती है | उसे भविष्यवाणी या पूर्वानुमान कैसे माना जा  सकता है | सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान को भविष्यवाणी इसलिए माना सकता है क्योंकि उसके गलत होने की संभावना नहीं होती है | 
      जिस पूर्वानुमान के गलत होने की उतनी ही संभावना होती है जितनी कि गलत होने की वह न तो पूर्वानुमान होता है और न ही भविष्यवाणी !वह मात्र एक ऐसा अंदाजा होता है जो छोटे बड़े सभी कामों के विषय में लगाया जाता है | इससे वैज्ञानिक अनुसंधानों के उद्देश्यों की पूर्ति होना  संभव नहीं होता है | ऐसे अनुसंधानों के लिए गणित संबंधी पूर्वानुमान ही विशेष उपयोगी होते हैं |
      कोरोना जैसी महामारी में भी लोग जब संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगे तब उन्हें देखकर ही पता लग पाया कि महामारी आ गई है | यदि महामारी विषयक अनुसंधान भी गणितविज्ञान के आधार पर किए जाएँ तो सूर्य चंद्र ग्रहणों से संबंधित पूर्वानुमानों की तरह ही महामारी के विषय में सही सटीक पूर्वानुमान बहुत पहले लगा लिए जाते |  

गणितविज्ञान के द्वारा जिस सूर्य चंद्र ग्रहण  विषय में जब कोई पूर्वानुमान लगाया जाता है | उस समय वह ग्रहण बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ रहा होता है | इसके बाद भी ग्रहण के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |किसी दिन आकाश में  बादलों की अधिकता होने  के कारण यदि ग्रहण न भी दिखाई दे तो भी गणितविज्ञान के आधार पर यह मान लिया जाता है कि ग्रहण अवश्य पड़ा होगा |ऐसे ही बादलों के कारण यदि सूर्य उगते हुए न भी दिखाई दे तो भी गणितविज्ञान के आधार पर यह मान लिया जाता है कि सूर्योदय हो चुका होगा | ऐसा किया जाना गणितविज्ञान के द्वारा ही संभव हो सका है |यही गणित विज्ञान की वैज्ञानिकता है | 
     सूर्योदय की ललामी देखकर सूर्योदय होने की एवं ग्रहण पड़ते देखकर ग्रहण पड़ने की भविष्यवाणी करने में वैज्ञानिकता कहाँ है | ऐसे ही उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर वर्षा की एवं आँधी तूफानों को देखकर आँधी तूफानों के  विषय में भविष्यवाणी करने में वैज्ञानिकता क्या है |इसमें  तो जो देखा गया सो बता दिया गया | 

                            साक्ष्य आधारित पूर्वानुमान प्रणाली मतलब क्या ?
 
      इसका मतलब जब जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते दिखाई दें तब तैसी भविष्यवाणी कर दी जाए | उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर वर्षा होने की आँधी तूफ़ान देखकर आँधी तूफ़ान आने के विषय में पूर्वानुमान बता दिया जाए | ऐसे ही महामारी से लोग संक्रमित होते या मृत्यु को प्राप्त होते दिखाई दें तो महामारी आने का पूर्वानुमान व्यक्त कर दिया जाए | संक्रमितों की संख्या बढ़ते दिखाई दे तो नई  लहर आने की और संक्रमितों की संख्या घटती दिखाई दे तो लहर समाप्त होने की एवं संक्रमितों की संख्या अधिक तेजी से घटती दिखाई  दे तो महामारी समाप्त होने की भविष्यवाणी कर दी जाए | 
       महामारी संक्रमितों की संख्या घटते समय जो औषधि दी जाए उसे परीक्षण में सफल मान लिया जाए और वही औषधि संक्रमितों की संख्या बढ़ते समय दी जाए तो उसी औषधि को अनुपयोगी मानकर चिकित्सा के प्रयोग से बाहर कर दिया जाए | ये कैसा विज्ञान है वैक्सीन
 
आई है और यदि  प्रतिरोधक क्षमता आदि के प्रभाव से लोग संक्रमित होने से बच जाएँ इसका मतलब ये तो नहीं  है कि महामारी आई ही नहीं है | महामारी तो तब  भी आई हुई हो सकती है |महामारी काल में भी पूर्व में करके रखी गई मजबूत तैयारियों के बल पर यदि संक्रमित होने से बच लिया जाए | इससे यह प्रमाणित नहीं हो जाता है कि महामारी आई ही नहीं होगी |   
       
 कारण से महामारी  लोग भीगे हैं इसका मतलब वर्षा हुई है और यदि लोग भीगने से बच गए हैं इसका मतलब वर्षा वर्षा होने का प्रमाण वर्षा होने में लोगों का भीगना नहीं हो सकता है !
वर्षा होना और लोगों का  भीगना ये दोनों घटनाएँ बिल्कुल अलग अलग हैं | कई बार लोग अपने अपने घरों में होते हैं वर्षा होती और चली जाती है किंतु वर्षा होने   वर्षा होती है उसमें कुछ लोग भीगते हैं कुछ नहीं भीगते हैं |  सभी लोग तो  महामारी वस्तुतः महामारी को पहचानने की अभी तक कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है |इसीलिए महामारी के प्रभाव से जब लोग संक्रमित होने लगते हैं तब लोगों को संक्रमित होते देखकर महामारी आने की आशंका होती है | इसके अतिरिक्त ऐसी कोई विधि नहीं है जिसके द्वारा महामारीकाल में  लोगों के संक्रमित न होने पर भी महामारी को पहचाना जा सके | महामारी आने के बाद  ऐसा बुरा समय  जब बड़ी संख्या में लोग अपनी अपनी आयु एक साथ  खो चुके हों | आमतौर पर महामारी तभी पता लग पाती है जब लोग संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | ,यदि महामारी आकर चली जाए और लोग संक्रमित न हों तो महामारी आई भी थी ये पता ही नहीं लग पाएगा | ऐसे ही कई बार बहुत लोगों की आयु पूर्ण होकर मृत्यु तो होती है किंतु उस समय महामारी नहीं होती है | महामारी तभी मानी जाती है जब दोनों घटनाएँ एक साथ घटित होती हैं |  इसीलिए तो संक्रमितों की संख्या को देखकर यह अंदाजा  लगाना कठिन होता है कि ऐसा होने का कारण महामारी है या कुछ और !    जिसप्रकार से व्यापार या बाजार के लिए क्रेता और विक्रेता दोनो का होना  आवश्यक है ,उसी प्रकार से महामारी  के लिए महामारी का समय आना और उसी समय बड़ी संख्या में लोगों की आयु पूरी होना |दोनों का एक साथ घटित होना आवश्यक है |                                
 
 
   महामारी का निर्माण होना जबसे प्रारंभ हुआ था  इसके द्वारा  पूर्वानुमान लगाना कितना कठिन था| इसका अंदाजा इसी  बात से लगाया जा सकता है कि इतनी बड़ी महामारी आने के विषय में किसी को


 आखिर कब पता लगेंगे  इन आवश्यक  प्रश्नों के निश्चित उत्तर !

1. महामारीप्राकृतिक है या मनुष्यकृत !
2. महामारी के शुरू होने एवं घटने बढ़ने का कारण क्या है ?
3. महामारी कब और कैसे समाप्त होगी ?
4. हृदयरोगियों को महामारी से कितना भय है ? 
5.क्या महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना संभव है ?
6. महामारी  पर तापमान बढ़ने घटने का  प्रभाव पड़ता है या  नहीं ?
7. वायु प्रदूषण के  प्रभाव से महामारीजनित संक्रमण बढ़ता है या  नहीं ?
8. वर्षा होने या न होने  का  प्रभाव कोरोना महामारी पर भी  पड़ता है या  नहीं ?
9. कोरोना महामारी का खतरा किसी उम्र विशेष लोगों  को  अधिक होता है क्या ?
10.कोरोनाकाल में हुई मौतों का कारण महामारी थी या मृतकों की  आयु पूर्णता ?
11.महामारी के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि  सही न निकलने कारण क्या है ?
12.लोगों के संक्रमित होने का  कारण महामारी संक्रामकता थी या उनमें प्रतिरोधक क्षमता की  कमी ?
13. महामारी का प्रारंभिक उद्भव प्राकृतिक वातावरण में हुआ था या मानव शरीरों में ?
14. महामारीजनित संक्रमण  का फलों के अंदर प्रवेश  हो  सकता है क्या ?
15. महामारी को  रोकने में वैक्सीन की क्या भूमिका है,कैसे  पता लगे ?
16 . महामारी पर  कोविड नियमों के  पालन का प्रभाव पड़ता है या नहीं ?
  महामारी विज्ञान का सच्चाई से सामना ! 
      महामारी को  बुलाने कोई गया नहीं था और भेजने किसी को जाना नहीं पड़ेगा | यह आपदा जैसे आई है वैसे चली  भी जाएगी | महामारी को सहा गया है उसकी लहरों को सहा गया है |बहुत लोग संक्रमित हुए उनमें  बहुसंख्य  लोग मृत्यु को भी प्राप्त हुए हैं | हो सकता है महामारी अभी चली जाए या कुछ वर्ष बाद जाए !संभव है कि महामारी की कुछ लहरें और भी  आ जाएँ |उन लहरों में  और भी बहुत लोग संक्रमित हों या मृत्यु को प्राप्त हो जाएँ |प्रकृति में कभी भी कुछ भी घटित होने लग सकता है | जिसे मनुष्यकृत प्रयासों से रोका जाना तो संभव ही नहीं है | यदि उसके विषय में पहले से सही पूर्वानुमान भी नहीं लगाया जा सका तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं में समाज की सुरक्षा की दृष्टि से वैज्ञानिक अनुसंधानों की उपयोगिता ही क्या रह जाएगी |जैसे इतना सब सहा गया है वैसे ही आगे भी जो कुछ घटित होगा ! उसे भी सहा जाएगा | वैज्ञानिक अनुसंधानों से न अभी तक कोई मदद मिली और न ही भविष्य के लिए कोई आशा की  किरण दिखाई दे रही है |
       कोरोना महामारी से जूझती जनता  के साथ  अनुसंधानों के नाम पर अभी तक  जो कुछ हुआ है | उन अनुभवों के आधार यही कहा जा सकता है कि कोरोना महामारी के चले जाने के कुछ दशक बाद यदि कोई दूसरी महामारी आ ही जाती है तो जनता को अपने व्यापार परिवार सुख सुविधाओं स्वास्थ्य एवं जीवन का बलिदान देने  के लिए तब तक तैयार रहना चाहिए जब तक किसी ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया को खोज न लिया जाए | जो महामारी का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हो !महामारी को पहचानने में सक्षम हो और महामारी पीड़ितों को सुरक्षित बचाने में सक्षम हो | 
 इसके अतिरिक्त श्वानपुच्छ की तरह ऐसी निरर्थक उछलकूद से बहुत आशा नहीं की जानी चाहिए |जिस पूछ से न गुप्तांग ढके जा सकें और न ही मक्खी मच्छर हटाए जा सकें इसके  बाद भी उस श्वानपुच्छ के ऊपर उठे रहने मात्र पर कब तक यूँ ही शिखर पर पहुँचे विज्ञान की तरह गर्व किया जाता रहेगा | जिसमें न प्राकृतिक घटनाओं को पहचानने की शक्ति है न ही उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने की ! इसके बिना प्राकृतिक आपदाओं आकस्मिक हमले से उस समाज को सुरक्षित कैसे बचाया जा सकता है | जिसके लिए इतने बड़े बड़े अनुसंधान किए जाते हैं | जिनमें जनता अपने हिस्से का योगदान भी देती है | इसके बाद भी जनता को आपदाओं के समय  निराश हो कर असहायों की तरह आपदाओं से स्वयं जूझना पड़े | 
          चिंता की बात यह है कि जब जब हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ या आपदाएँ घटित होती हैं | उस समय समाज को वह सब कुछ सहना पड़ता है जिससे सुरक्षा के उद्देश्य से वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाते हैं ,किंतु न तो उन घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान पता लग पाते हैं और न ही रोक थाम के कोई उपाय किए जा पाते हैं |कुछ वर्ष बाद उन घटनाओं को जिम्मेदार लोग भूल जाते हैं जो उन घटनाओं की वास्तविकता समझने के लिए अनुसंधान लगातार किया करते हैं | जनता इसलिए भूल जाती है क्यों उस विषय में कुछ किया जाना उसके बश का होता नहीं है | ऐसी स्थिति में मेरा यही उद्देश्य है कि जिस किसी भी प्रकार से अनुसंधानों को इतना सक्षम बना लिया जाए ताकि कोरोना जैसी कोई महामारी यदि भविष्य में घटित हो तो उस समय महामारी से समाज की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके | 
     हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पड़ोसी शत्रु देशों  के साथ भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों में मिलाकर जितनी जनधन हानि सहनी पड़ी उससे कई गुणा अधिक नुक्सान केवल कोरोना महामारी में हुआ है |इसके लिए भी कुछ मजबूत एवं परिणामप्रद  अनुसंधान होने चाहिए | बिचार इसपर भी होना चाहिए कि वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया के आधार पर महामारी को समझा भी जा सकता है या नहीं | यदि नहीं तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं इनका पूर्वानुमान लगाने के लिए भारत को अपने उस परंपराविज्ञान का सहयोग लेना चाहिए जिसके द्वारा उस प्राचीनयुग में भी बहुत मदद मिलती रही है जब आधुनिक विज्ञान का जन्म भी नहीं हुआ था |       
       परंपरा से प्राप्त भारत के उस विज्ञान में ऐसी क्षमता है कि उसके द्वारा प्रकृति और जीवन से संबंधित बहुत सारी गुत्थियाँ सुलझाई जा सकती हैं | ऐसे विज्ञान के द्वारा प्रकृति के उन  रहस्यों को समझने में मदद मिल सकती है | जिन्हें न समझ पाने के कारण वैज्ञानिक अनुसंधान तमाम प्रकार के भटकाव से जूझ रहे हैं |मनुष्य जीवन उन पीड़ाओं से पीड़ित है परंपराविज्ञान में जिनके समाधान हैं |व्यक्तिगततौर पर मैं मौसम समेत अनेकों प्रकार की  घटनाओं रोगों महारोगों को उसी परंपराविज्ञान  के आधार पर समझने में सफल हुआ हूँ | कोरोना महामारी के विषय में भी वह विज्ञान पूरी तरह सही सिद्ध हुआ है | उससे प्राप्त हुए कुछ अनुभव यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं |  
परंपराविज्ञान में है महामारी का समाधान !
 प्रश्न :महामारी मतलब क्या  ?
 उत्तर : वर्षा होती है उसमें कुछ लोग भीगते हैं कुछ नहीं भीगते हैं |  सभी लोग तो  महामारी वस्तुतः महामारी को पहचानने की अभी तक कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है |इसीलिए महामारी के प्रभाव से जब लोग संक्रमित होने लगते हैं तब लोगों को संक्रमित होते देखकर महामारी आने की आशंका होती है | इसके अतिरिक्त ऐसी कोई विधि नहीं है जिसके द्वारा महामारीकाल में  लोगों के संक्रमित न होने पर भी महामारी को पहचाना जा सके | महामारी आने के बाद  ऐसा बुरा समय  जब बड़ी संख्या में लोग अपनी अपनी आयु एक साथ  खो चुके हों | आमतौर पर महामारी तभी पता लग पाती है जब लोग संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | ,यदि महामारी आकर चली जाए और लोग संक्रमित न हों तो महामारी आई भी थी ये पता ही नहीं लग पाएगा | ऐसे ही कई बार बहुत लोगों की आयु पूर्ण होकर मृत्यु तो होती है किंतु उस समय महामारी नहीं होती है | महामारी तभी मानी जाती है जब दोनों घटनाएँ एक साथ घटित होती हैं |  इसीलिए तो संक्रमितों की संख्या को देखकर यह अंदाजा  लगाना कठिन होता है कि ऐसा होने का कारण महामारी है या कुछ और !    जिसप्रकार से व्यापार या बाजार के लिए क्रेता और विक्रेता दोनो का होना  आवश्यक है ,उसी प्रकार से महामारी  के लिए महामारी का समय आना और उसी समय बड़ी संख्या में लोगों की आयु पूरी होना |दोनों का एक साथ घटित होना आवश्यक है |                                
 प्रश्न :महामारी कब पैदा होती  है ?
 उत्तर : बुरे समय के प्रभाव से महामारियाँ पैदा होती हैं | परंपराविज्ञान के अच्छे और बुरे समय का पता लगाया जा सकता है | जिसके आधार पर महामारी के विषय में महीनों वर्षों पहले महामारी के विषय में भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
 प्रश्न : महामारी से संक्रमित कौन होता है ?
 उत्तर : परंपराविज्ञान की दृष्टि में तो संक्रमित वही होता है ! जिसका अपना समय बुरा चल रहा होता है |जिनका अपना समय अधिक बुरा चल रहा होता है वही गंभीर रोगी होते हैं | जिनका अपना समय ठीक होता है वह संक्रमितों के साथ रहकर भी संक्रमित नहीं होता है |यदि हो भी जाता है तो जल्दी स्वस्थ हो जाता है | ऐसे लोग महामारी काल में कोविड नियमों का पालन किए बिना भी सुरक्षित रहते देखे जाते रहे | इसलिए किसी के रोगी होने या न होने में उसके अपने समय की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है |  किसके रोगी होने की संभावना कब कितनी है ?परंपराविज्ञान के माध्यम से इस पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किसका कब कैसा समय चल रहा है ?
 प्रश्न : महामारियों में मृत्यु किसकी होती है ?
 उत्तर :दीपक में जब तक तेल रहता है तब तक वह जलता है ऐसे ही जिसकी आयु जब तक रहती है तब तक उसे जीवित रहना होता है| जैसे दीपक को हवा आदि के झोंकों से बचाना होता है वैसे ही शरीरों को आकस्मिक मनुष्यकृत दुर्घटनाओं से बचाना होता है | कई बार बड़ी बड़ी प्राकृतिक दुर्घटनाओं का शिकार होने के बाद भी आयुवान लोग सुरक्षित बच निकलते हैं | कुछ दुर्घटनाग्रस्त लोग तो कई कई  सप्ताह बाद भी  सुरक्षित बचते देखे जाते हैं |इसलिए आयु ही प्रधान है |  किसकी आयु कितनी है यह पता लगाने की प्रक्रिया परंपराविज्ञान में मिलती  है | उसके आधार पर किसके जीवन को किस समय  मृत्यु संबंधी कितना खतरा है | इस बात का पूर्वानुमान परंपरा विज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है |
 प्रश्न : महामारी पीड़ितों की चिकित्सा क्यों नहीं की जा  सकती ?
 उत्तर :महामारी बुरे समय के  प्रभाव से पैदा होती और बुरे समय वाले लोगों पर ही इसका संक्रामक प्रभाव होता है | बुरे समय का सामना चिकित्सा से कैसे किया जा सकता है !
 प्रश्न : महामारी पर लगाम लगाना कैसे संभव है ?
 उत्तर : महामारी वर्षों की प्राकृतिक तैयारी से तैयार होकर बड़े वेग से जीवन पर हमला कर देती है,इतने भीषण हमले से जीवन तब तक अनजान बना रहता है,जब तक लोग अत्यंत तेजी से संक्रमित नहीं होने लगते हैं |एक ओर वर्षों की तैयारी से हमला और दूसरी ओर इतनी लाचारी से सामना !ऊपर से समय का अभाव !वर्षों की तैयारी का सामना वर्षों की तैयारी से ही किया जा सकता है | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब महामारी निर्मित होने के विषय में पहले से पता किया जा चुका हो कि ऐसी कोई महामारी आने वाली है जिसकी अनुमानित प्रकृति इस प्रकार की हो सकती है | उसके लक्षण इस इस प्रकार के हो सकते हैं उससे बचाव के लिए इस इस प्रकार के नियमों का पालन किया जाना लाभप्रद होगा |इसमें इस इस प्रकार की औषधि निर्माण के लिए इस इस प्रकार के द्रव्यों की संसाधनों की आवश्यकता अधिक हो सकती है |वो सब पहले से जुटाकर रखे जाएँ तब तो जीवन को बचाने के लिए प्रभावी प्रयत्न किए जा सकते हैं ,अन्यथा प्रयत्न कितने भी कर लिए जाएँ किंतु प्रभावी नहीं होंगे |
 प्रश्न : महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना कैसे संभव है ?
 उत्तर : रोग महारोग (महामारी) आदि वात पित्त कफ के असंतुलन से तैयार होते हैं | इन्हीं वात पित्त कफ  को संतुलित करने के लिए ही औषधियों की परिकल्पना की गई है | संपूर्ण प्राकृतिक घटनाएँ भी वात  पित्त कफात्मिका ही होती हैं |जब जिस तत्व से संबंधित घटनाएँ अधिक घटित होने लगती हैं | उस समय प्रकृति में उस प्रकार के तत्व का विशेष प्रभाव होता है |उसी प्रकार के रोगों के फैलने की संभावना बनती है | तापमान बढ़ने से गर्मी से संबंधित प्राकृतिक घटनाएँ तो घटित होती ही हैं इसके साथ ही साथ उसी गर्मी से संबंधित रोग भी फैलते हैं |यदि कोई एक ही प्रकार का तत्व अथवा दो तत्वों का विशेष प्रभाव लंबे समय तक थोड़े थोड़े अंतराल में देखने को मिलता रहे या लंबे समय तक लगातार प्रबल बना रहे,तो उसी तत्व से संबंधित कुछ घटनाएँ घटित होनी होती हैं और उसी से संबंधित कुछ रोग पैदा होने होते हैं |ऐसी घटनाओं के विषय में परंपराविज्ञान में वर्णित गणितीय गणना के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के साथ साथ महामारियों के विषय में भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
प्रश्न : गणितविज्ञान में पूर्वानुमान लगाने लायक ऐसा विशेष क्या है ?
 उत्तर :जिस प्रकार से  ट्रेन प्लेन आदि को देखे बिना भी केवल उसकी समय सारिणी देखकर ही उसके आवागमन के विषय में निश्चित जानकारी जुटाई जा सकती है |उसीप्रकार से परंपराविज्ञान में वर्णित गणितीय प्रक्रिया के द्वारा अनुसंधानपूर्वक समस्त प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों की समयसारिणी खोजी जा सकती है | जिसके आधार पर यह पता लगाया जाना संभव होगा कि कब किस प्रकार की महामारी आदि प्राकृतिक घटना के घटित होने की संभावना है ?
प्रश्न :महामारी बनने की प्रक्रिया क्या है ?
 उत्तर : 19 मार्च 2020 को इसी विषय में मैंने पीएमओ को एक मेल भेजा था देखें उस मेल का वह अंश - 
         "महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती  है |  ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं |"
 
प्रश्न : महामारी समाप्त कैसे होगी ?
उत्तर :महामारी जिसतरह पैदा होती है उसी तरह समाप्त होती है|  इसमें प्राकृतिक वातावरण बिल्कुल उल्टा हो जाता है | -19 मार्च 2020 को  मैंने पीएमओ को एक मेल भेजा था देखें उस मेल का इस विषय से संबंधित  अंश - 
      "महामारी समय के बिगड़ने से प्रारंभ होती है और समय के सुधरने से ही समाप्त हो जाती है | प्रयत्नों का बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाता है |पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है |" इससे लोग स्वस्थ होने लगते हैं और महामारी समाप्त हो जाती है |"

 प्रश्न : महामारी से बचाव के लिए क्या किया जाना चाहिए ?
उत्तर : इस विषय में 19 मार्च 2020 को मेरे द्वारा  पीएमओ को भेजे गए मेल में इस विषय से संबंधित अंश - 
    "ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन  से जीता जा सकता है |"
प्रश्न : महामारीसंक्रमितों पर चिकित्सा का प्रभाव पड़ता है क्या?
उत्तर - इस विषय में 19 मार्च 2020  को मेरे द्वारा  पीएमओ को भेजे गए मेल में बचाव विषयक अंश -
     "इसमें चिकित्सकीय  प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |जो औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि ऐसे रोगों में लाभ पहुँचाने के लिए जानी जाती रही हैं बुरे समय का प्रभाव उन पर भी पड़ने से उतने समय के लिए वे निर्वीर्य अर्थात गुण रहित हो जाती हैं जिससे उनमें रोगनिवारण की क्षमता नष्ट हो जाती है |"(इसीलिए जो औषधियाँ जिस गुण धर्म के लिए जानी  जाती रही हैं महामारी काल में उनमें विकार आ जाते हैं जिससे वे लाभकारी नहीं रह जाती हैं )
                          
                               परंपरा विज्ञान के द्वारा  लगाया जा सकता  है पूर्वानुमान !
    महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए परंपराविज्ञान एक सक्षम वैज्ञानिक प्रक्रिया है| इसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं और वे पूर्वानुमान प्रायः सच निकलते हैं |
 
 
 मेरे द्वारा परंपराविज्ञान  के आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान: महामारी के विषय में-
    19 मार्च 2020  को  पीएमओ को भेजे गए मेल में पूर्वानुमान विषयक अंश :- 
       "महामारी का यह क्रम 24 मार्च 2020 तक चलेगा | उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"

 मेल में पीएमओ भेजे गए  पूर्वानुमान सच निकले :- मार्च के बाद महामारीजनित संक्रमण की गति धीमी होने लगी थी | इसी क्रम में अप्रैल मई जून जुलाई आदि में संक्रमितों की संख्या क्रमशः कम होते चली जा रही थी | इसी कारण 1 जून 2020 को भारत में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई थी | हमारे ऐसे अनुमानों पूर्वानुमानों के सही निकलने का मतलब है कि महामारी प्राकृतिक है क्योंकि उसी प्रक्रिया से मैंने पूर्वानुमान लगाए थे |  

   16 जून  2020 को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :- " महामारी 9 अगस्त 2020 से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर 2020 तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और  16 नवंबर 2020 के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"

 विशेष : हमारे इस पूर्वानुमान के अनुशार ही महामारी जनित संक्रमण बढ़ना प्रारंभ हो गया था जो 24 सितंबर 2020 तक बढ़ता गया था,जिसे कुछ लोग 18 सितंबर तक  बढ़ना स्वीकार करते हैं | यदि ऐसा  हो तो भी हमारा यह पूर्वानुमान  सही निकला था क्योंकि मैंने इसकी सूचना पीएमओ को 16 जून  2020 को ही भेज दी थी |  इस समय तक किसी भी वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा इतना सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 

   19 अप्रैल 2021 को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :-"20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |"

 विशेष :व्यवहार में भी ऐसा ही होते देखा गया था !  

    18 दिसंबर 2021 को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :-"वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा | "

 विशेष :  ब्यवहार में भी 20 जनवरी 2022 से यह संक्रमण समाप्त होते देखा गया था |

    20 फरवरी 2022 को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :-  ""कोरोना महामारी की चौथी लहर 27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी | "    महामारी की चौथी लहर के विषय में मैं जो पूर्वानुमान बता रहा हूँ वास्तविकता में वह  महामारी न होकर ऋतु जनित बिषविकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है फिर भी इस समय अचानक संक्रमितों की संख्या बढ़ने के कारण इससे महामारी की तरह ही सावधान रहने की आवश्यकता है |"

 विशेष :  संक्रमितों की संख्या के साथ मिलान करने पर यह पूर्वानुमान भी सही घटित हुआ था |  

   29 अप्रैल 2022 को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :- "श्रीमान जी ! कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी | उसके संपर्क  वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त 2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |"

 विशेष :  संक्रमितों की संख्या के साथ मिलान करने पर यह पूर्वानुमान भी सही घटित हुआ था |

29 अप्रैल  2022  को पीएमओ को भेजे गए  मेल का कोरोना नियमों के पालन वाला अंश " "विशेष बात यह है कि महामारी की पाँचवीं लहर प्रारंभ और समाप्त होने में या संक्रमण के बढ़ने और घटने में इस बात की कोई विशेष भूमिका  नहीं होगी कि कोविड नियमों का पालन किया गया है या नहीं,टीका लिया गया है या नहीं ! इसलिए बचाव के वास्तविक उपायों की आवश्यकता है |  

    21 अक्तू॰ 2022  को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :-" 24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18 नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी !इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी | "

    29 दिसंबर 2022  को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :-"कोरोना महामारी की अगली लहर  10  जनवरी 2023  से प्रारंभ होगी !14 जनवरी 2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी  और 22 जनवरी 2023 से महामारी जनित संक्रमण काफी तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी ! 21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च 2023 तक बढ़ेगी उसके बाद  समाप्त होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा !"

     6 जुलाई 2023  को पीएमओ को भेजे गए  मेल का पूर्वानुमान वाला अंश :-"2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद  20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग  5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो  पाएगी |मेरा ऐसा अनुमान है |"   

___________________________________ 

                       परंपराविज्ञान की दृष्टि में महामारी  का स्वरूप !

   महामारी समुद्र की तरह होती है|समुद्र की लहरों की तरह ही महामारी  की भी लहरें होती हैं| मनुष्यकृत प्रयासों से न तो समुद्र को सुखाना संभव और न ही समुद्र की लहरों को रोकना संभव है |ऐसे ही भूकंप आँधी तूफानों चक्रवातों बज्रपातों तथा वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाओं को मनुष्यकृत प्रयत्नों से रोका जाना संभव नहीं है | |यदि किसी भी प्राकृतिक घटना को मनुष्यकृत प्रयासों से रोका जाना संभव नहीं है तो महामारी को रोका जाना कैसे  संभव है | महामारी भी तो भूकंप आँधी तूफानों आदि की तरह ही एक प्राकृतिक घटना ही है | इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के चक्कर में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए | इनसे अपने बचाव के लिए कोई रास्ता खोजा जा सकता है|बचाव  के लिए विज्ञान और भगवान दो  मार्ग हैं | शरीरों की टूट फूट तो विज्ञान के द्वारा ठीक करने के लिए प्रयत्न किए  जा सकते हैं,किंतु वैज्ञानिक प्रयासों के बाद भी वह स्वस्थ होगा या नहीं होगा वो जीवित रहेगा या नहीं रहेगा | इसका निर्णय तो परमात्मशक्ति ही करती है|  यदि ऐसा न होता तो चिकित्सालयों में शवगृह नहीं बनाने पड़ते !सभी रोगी स्वस्थ होंगे ही ऐसा विश्वास होता | 

  इसीलिए तो चिकित्सा का लाभ लेकर भी बहुत लोग स्वस्थ नहीं हो पाते हैं !बहुत लोग तो चिकित्सा काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं ,क्योंकि चिकित्सा पद्धतियाँ प्राणों की स्वामिनियाँ नहीं होती हैं | 

        वस्तुतः महामारी प्राणों का  हरण करती है और प्राणों का  स्वामी परमात्मा  है वो जिसे चाहे उसे प्राण दे और जिसके चाहे उसके प्राण हरण कर ले | महामारी पीड़ितों को यदि प्राण चाहिए या अपने प्राणों की सुरक्षा चाहिए तो उसके लिए परमात्मा से ही प्रार्थना करनी पड़ेगी |

इसीलिए तो किसी के शरीर उसे भी मनुष्यकृत प्रयत्नों से रोका जाना  कैसे संभव नहीं है |महामारी भूकंप आँधी तूफानों चक्रवातों बज्रपातों तथा वर्षा बाढ़ आदि घटनाएँ प्राकृतिक रूप से पैदा होती हैं इसलिए समाप्त भी प्राकृतिक रूप से ही होती हैं | महामारी की आने वाली लहरें भी प्राकृतिक रूप से ही आती और जाती हैं | कोरोना महामारी भी प्राकृतिक रूप से पैदा हुई है इसलिए  शांत भी प्राकृतिक रूप  से ही होगी |

    विशेष कर मैं इस बात को और अधिक विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि महामारी प्राकृतिक ही है,क्योंकि मैंने इस विषय में अभी तक जो अनुसंधानपूर्वक अनुभव किए हैं | उनसे यही सिद्ध होता है कि महामारी प्राकृतिक ही है | इसीलिए महामारी आने के संकेत मुझे कुछ वर्ष पहले से मिलने लग गए थे जिनकी सूचना हम आगे से आगे पीएमओ की मेल पर भेजते रहे हैं | वे संपूर्ण मेलें इस पुस्तक के अंत में संलग्न हैं |जिन्हें इसी पुस्तक के इन पेजों पर पढ़ा जा सकता है | उस समय उन्हीं मेलों में भेजे गए महामारी से संबंधित कुछ अनुमान पूर्वानुमान आदि नीचे दिए जा रहे हैं - 

 रोकने की विधि  जाना संभव है  क्या ?

  यज्ञीय उपाय वाला अंश -

  19 अप्रैल 2021 को पीएमओ को भेजे गए मेल का यज्ञ संबंधी  उपाय वाला अंश :

"प्राचीनकाल में जब जब महामारियाँ आती थीं तब राजा लोग ईश्वर से क्षमा माँगने के लिए  कुछ विशेष प्रकार के यज्ञ करवाया करते थे |उन यज्ञों के प्रभाव से ईश्वरीय शक्तियाँ प्रसन्न होकर महामारियों को समेट  लिया करती थीं |  रोगमुक्त हो जाया करता था | प्रधानमंत्री जी !अब राजाओं की जगह जनता के लिए तो आप ही लोग हैं जनता की अपेक्षा आपसे या  संतों से थी सामूहिक रूप से कोई ऐसा बड़ा यज्ञ होता तो महामारी से मुक्ति मिल भी सकती थी किंतु कलियुग प्रभाव से साधू संत खुद ही संक्रमित होने लगे कुंभ जैसा महापर्व समय से पूर्व महामारी के कारण ही छोड़ छोड़कर साधू संतों को जाना पड़ा ! ऐसी परिस्थिति में  जनता उनसे अपने लिए क्या अपेक्षा करे !मुझे अब लगने लगा है कि अब  मैं मौन बैठा रहा तो प्रकुपित ईश्वरीय शक्तियाँ विश्व का चेहरा बर्बाद कर देने पर आमादा दिख रही हैं | दैवी शक्तियों का मानवजाति पर इतना अधिक क्रोध !आश्चर्य !!"-- "महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से "श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने  ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ करने जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय' में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर क्षमा  माँगने का मैंने  निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर  देगा |" - "यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | "
 
18 दिसंबर 2021को पीएमओ को भेजे गए मेल का यज्ञ से सुरक्षा वाला अंश : 

    "श्रीमान जी ! मैंने 19 अप्रैल 2021 को पत्र लिखकर आपको सूचित किया था कि भगवती प्रत्यंगिरा की कृपा से 2 मई 2021 के बाद महामारी से मुक्ति मिलनी प्रारंभ होगी उसके बाद कोई तीसरी चौथी आदि लहर नहीं आएगी | उसी बात पर अभी विश्वास  किया जाना चाहिए कि भगवती प्रत्यंगिरा भारत की रक्षा कर रही हैं इसलिए भारत वासियों को महामारी की तीसरी लहर से बिल्कुल नहीं डरना चाहिए भारत में अब कोई तीसरी लहर नहीं आएगी | आपसे इतना निवेदन अवश्य है कि महामारी को पराजित करने या उस पर विजय प्राप्त करने जैसी बातें नहीं की जानी चाहिए क्योंकि  भगवती प्रत्यंगिरा की कृपा से सुरक्षा हो रही है इसलिए उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए | "-" वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |"

 
____________________________________________________________________________
महामारी शुरू होने के वर्षों पूर्व  मिलने लगे थे संकेत !

 20 अक्तू॰ 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल का स्वास्थ्य विषयक अंश !

 "10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा !इसमें स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !"

 महामारी आने से पहले घटित होने वाले प्राकृतिक उपद्रवों का पूर्वानुमान ! 

   20 अक्तू॰ 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल का प्राकृतिक उपद्रवों से संबंधित अंश !

 "10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा !इसमें प्राकृतिक आपदाएँ आँधी तूफान चक्रवात भूकंप आदि से जनधन हानि होगी !"

  महामारी के समय घटित होने वाले मनुष्यकृत उपद्रवों का पूर्वानुमान ! 

   20 अक्तू॰ 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल का मनुष्यकृत उपद्रवों से संबंधित अंश !

 " "10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन के समय में थोड़ा सा विवाद भी बहुत बड़े संघर्ष का स्वरूप धारण कर सकता है !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !इसमें प्राकृतिक आपदाएँ हों या मनुष्यकृत लापरवाही उत्तेजना उन्माद आदि का अशुभ असर  इस समय विशेष अधिक होगा !आतंकवादी घटनाएँ बढ़ेंगी,आंदोलनों के नाम पर फैलाया जाने वाला जन उन्माद इस समय अतिशीघ्र हिंसक रूप ले जाएगा इसलिए सावधानी और संयम का ध्यान विशेष अधिक रखा जाना चाहिए !"

___________________________

                         समय के बुरे बदलावों  को आसानी से सह नहीं पाते हैं पंचतत्व !

     भूकंप आँधी तूफान जैसी जिन प्राकृतिक घटनाओं के लिए पंचतत्वों को दोषी  माना जाता है | जल एवं वायु परिवर्तन को दोषी बताया जाता है | वे पंचतत्व भी तो समय के ही आधीन होते हैं | समय के परिवर्तन के साथ साथ उन्हें भी परिवर्तित होना पड़ता है|प्रकृति के संचालन में उन पंचतत्वों की बड़ी भूमिका होती है और पंचतत्वों के  संचालन में समय की बड़ी भूमिका होती है | प्रातः काल जलतत्व प्रबल होता है, मध्यान्ह काल में अग्नि तत्व प्रबल रहता है और अपराह्न काल में वायुतत्व प्रबल रहता है |सूर्यास्त के समय सुषुम्ना प्रवाह में आकाशतत्व का प्राबल्य रहता है| इसी प्रकार से रात्रि में या भिन्न भिन्न ऋतुओं में पंचतत्वों के प्रभाव में समय के अनुशार परिवर्तन होते देखे जाते हैं |जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते देखे जाते हैं | 

      बुरे समय के प्रभाव से जब अचानक पंचतत्वों में कुछ ऐसे बदलाव होने लगते हैं |जो लंबे समय से चले आ रहे प्रकृति क्रम से अलग हटकर घटित होते हैं |पंचतत्व उसप्रकार के परिवर्तन के दीर्घकाल से अभ्यासी नहीं रहे होते हैं |जिन परिवर्तनों को  उन्हें अचानक सहने के लिए बाध्य होना पड़ता है | ऐसे समय में पंचतत्व स्वयं आंदोलित होने लगते हैं | जिनकी बेचैनी उनसे संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से देखी एवं अनुभव की जा सकती है |    वस्तुतः अच्छा या बुरा समय प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है | इसलिए गणितविज्ञान के आधार पर समय के संचार को समझा जा सकता है या फिर समय के अनुशार घटित होने वाली घटनाओं को देखकर समय का अनुमान किया जा सकता है |

     महामारी के समय केवल वायु ही प्रदूषित नहीं होती है उसके साथ साथ पृथ्वी जल अग्नि आकाश आदि सभी विकारों से युक्त असंतुलित  होने लगते हैं |सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के समय प्रभाव आदि में ऐसे बदलाव होने लगते हैं ,जो हमेंशा होते नहीं देखे जाते हैं| शिशिर(सर्दी)ऋतु में सर्दी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या सर्दी की अवधि का घट - बढ़ जाना | ऐसा ही ग्रीष्मऋतु में  गर्मी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या ग्रीष्मऋतु की अवधि का घट - बढ़ जाना ! ऐसा ही असंतुलन वर्षाऋतु में देखा जाता है !भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के  बार बार घटित होने जैसे लक्षण जितने कम या अधिक होते हैं उतने ही बड़े रोग या महारोग के पैदा होने का संकेत दे रहे होते हैं | ऐसी घटनाओं के आगे या पीछे घटित होने वाली छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ भी उन संकेतों के बारे में ही कुछ सूचित कर रही होती हैं | ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ जिस समय घटित होती हैं उस समय का  भी महत्त्व होता है |कोरोना महामारी के समय प्राकृतिक वातावरण में ऐसा असंतुलन होते बार बार देखा गया था  

  पृथ्वी तत्व -

     कोरोना महामारी के समय पृथ्वी तत्व काफी अधिक आंदोलित था | जो भूकंप पहले कभी कभी आते देखे सुने जाते थे | सन 2014  के बाद वही भूकंप बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि  कोरोनाकाल के एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर 38,816 बार भूकंप आ चुके हैं | डेढ़ वर्ष में केवल भारत में ही 1000 से अधिक भूकंप आए हैं | मार्च -अप्रैल  2020  के मात्र डेढ़ महीने में दिल्ली-एनसीआर में  10 बार भूकंपआया |   23 नवम्बर 2020 को पूरी दुनिया में कुल 95 स्थानों पर भूकंप आए थे | एक सप्ताह में 700 जगहों पर भूकंप आये। एक महीने में 3105 भूकंप पूरी दुनिया में आये। भूकंपों की इतनी अधिकता पहले तो नहीं देखी जा रही थी | इसी समय ऐसा क्यों हुआ ?         

   17\18जुलाई 2020 को अनेकों स्थानों पर काफी अधिक संख्या में भूकंप आए हैं |इनके बाद 19 जुलाई 2020 से भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो गया था !

    क्या इन  भूकंपों से महामारी का भी कोई संबंध होता है | यदि ऐसा नहीं है तो इसी समय इतने अधिक भूकंपों के आने का कारण क्या  है |इस संबंध को खोजना अनुसंधानों की जिम्मेदारी है |

अग्नि तत्व 
    ऑस्ट्रेलिया में आग लगने की भयंकर घटनाएँ घटित होते देखी जाती रहीं ,जो लंबे समय तक चलती रही हैं |कुछ अन्य देशों में भी ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती रही हैं |उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016   से ही आग लगने की घटनाएँ प्रारंभ हो गई थी जो  क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थीं | 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी !आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इसी समय जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा था, बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |प्राकृतिक वातावरण में बहुत अधिक ज्वलन शीलता बढ़गई  थी | ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं | ये अनुसंधान का विषय होना चाहिए था कि क्या ऐसी घटनाओं का भी महामारी से कोई संबंध था !
जल में कोरोना -
 19-1-2020- ऑस्ट्रेलिया मसूलधार बारिश और बाढ़ झेल रहा है।मौसम विभाग के मुताबिक यह 100 साल में सबसे अधिक होने वाली बारिश है | पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन और क्वींसलैंड में भारी तबाही हुई है। 
   सूखा वर्षा बाढ़ जैसी  भयानक हिंसक घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों  में घटित होते देखी जा रही हैं | भारत में भी असम  केरल कश्मीर बिहार महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में समय समय पर घटित होती देखी जाती रही हैं | अगस्त 2018 में केरल में भीषण बाढ़ आई ! 2020 के  अप्रैल में इतनी बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। मई की बारिश ने भी चौका दिया है।गरमी की ऋतु में  मई जून तक वर्षा होती रही |ऐसी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती रही हैं | ऐसी घटनाएँ इतनी अधिकता में पहले तो नहीं घटित होती थीं | ऐसा होने का कारण आगे आने वाली कोरोना महामारी ही तो नहीं थी |
आकाश तत्व 
     26 Apr 2020-वैज्ञानिकों का दावा: अपने आप ठीक हुआ ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद ! दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। वहीं एक अच्छी खबर यह है कि पृथ्वी के बाहरी वातावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद स्वत: ही ठीक हो गया है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि है कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है। इसके बारे में वैज्ञानिकों को अप्रैल महीने की शुरुआत में पता चला था। ऐसे और भी बदलाव वातावरण में आए थे |
वायु तत्व -19 जून 2020 ऑस्ट्रेलिया में  100 साल का सबसे भीषण तूफान आया है |इस प्रकार के हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों में घटित होते देखे जाते रहे हैं | विशेषरूप से  भारत में भी ऐसी आपदाएँ अक्सर घटित होते देखी जाती  रही हैं | 
   2018 के अप्रैल और मई में पूर्वोत्तर भारत में हिंसक  आँधी तूफान  आए थे | ऐसी आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं | 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | इसी समय आँधीतूफानों के कारण  ऐसी ही कई और हिंसक घटनाएँ घटित हुई थीं  | ऐसी  वायु तत्व संबंधी असंतुलित घटनाएँ क्या भावी महामारी की सूचना दे रही थीं |    
                             मौसम में आ रहे थे बड़े बदलाव ! दे रहे थे महामारी आने की सूचना |

     2020 की जनवरी इतिहास की सबसे गर्म जनवरी बताई जा रही थी ! कुल मिलाकर सर्दी के सीजन  में सर्दी  बहुत कम हुई एवं गर्मी के सीजन में गर्मी कम हुई !मार्च अप्रैल तक वर्षा होती रही |   यूरोप में जनवरी का तापमान औसत से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया , जबकि  पूर्वोत्तर यूरोप के कई हिस्सों में औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया !जनवरी माह का वैश्विक तापमान अपने चरम पर पहुँच गया था। 

     भारत में लगातार वर्षा होते रहने के कारण अप्रैल 2020  सबसे ठंडा बीत रहा था,जबकि ब्रिटेन में लू चल रही थी !बताया जाता है कि ब्रिटेन में गर्मी ने  पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.|अप्रैल 2020 में कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की हालत दिनोंदिन बिगड़ रहे थे | में बारिश-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से चीन का बुरा हाल हुआ जा रहा था  ! सितंबर 2020 में दिल्ली बासियों को मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही थी ।मॉनसून की विदाई देर से हुई थी | जो पहले 1 सितंबर से होनी शुरू हो जाती थी, वो  17 सितंबर के करीब विदा हुआ था | 

    कुल मिलाकर कोरोना काल में एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस आदि में मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता था |  दुनिया के कई देशों में मौसम के बदलते मिजाज को देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं  तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के देश , नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव, कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति थी | रूस, चीन, अमेरिका और न्‍यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान थे |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही थी कहा जा रहा था कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है|  बेल्जियम, जर्मनी, लक्‍जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई 2020 को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती थी |  नॉर्थ यूरोप में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे थे | फिनलैंड जहाँ गर्मी कभी नहीं पड़ती थी , वहाँ भी गर्मी पड़ रही थी | देश के कई हिस्‍सों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्‍यादा हो गया था | रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया था कि 216 ये ज्‍यादा जंगलों में आग लगी हुई थी | वहीं पश्चिमी-उत्‍तरी अमेरिका में अत्‍यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए थे | कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था |  कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्‍प्रेचर 54.4 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुँच गया था | इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत और इंडोन‍ेशिया के कुछ हिस्‍सों में बाढ़ की स्थिति थी | 

                         पंचतत्वों के  असंतुलित होते ही पैदा होने लगते हैं रोग और महारोग  !

          मौसम में जब इतने बड़े बड़े बदलाव होने लगते हैं,तो उसका प्रभाव भी उसीप्रकार का होगा यह स्वाभाविक ही है | कोरोना महामारी के समय भी प्राकृतिक घटनाओं का  काल,क्रम ,अनुपात आदि सबकुछ  तेजी से बिगड़ने लगा था | भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात वायु प्रदूषण तापमान आदि बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |प्राकृतिक घटनाओं का संतुलन दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था | इससे महामारी जैसी स्वास्थ्यविरोधी बड़ी दुर्घटनाओं का घटित होना स्वाभाविक ही था |जिसे समय से समझा नहीं जा सका था |

   ब्यवहार में भी देखा जाता है कि किसी विमान का पायलट जब देखता है कि विमान संचालन में कुछ घटनाएँ उसके अनुमान से अलग हटकर घटित होते दिखाई दे रही हैं या अनुमान के विरुद्ध घटित हो रही हैं तो पायलट इसकी सूचना  कंट्रोलरूम को तुरंत इस आशंका के साथ देता है कि कुछ गड़बड़ होने वाला है |ऐसे ही मौसम संबंधी अनुसंधानों में लगे वैज्ञानिकों  को प्राकृतिक घटनाओं को असंतुलित होते देखकर उनके अभिप्राय को समझना चाहिए था | उनके द्वारा इतनी बड़ी महामारी के विषय में समाज को तुरंत सतर्क कर दिया जाना चाहिए था |   

   कुशल रसोइया भोजन बनाते समय अनेकों तेल मशालों आदि को उचित अनुपात में डालकर एक से एक स्वादिष्ट पकवान तैयार करते देखे जाते हैं | यह अनुपात जितना बिगड़ता है भोजन  का स्वाद भी उतना ही बिगड़ जाता है |जिसका अनुमान वह रसोइया पहले ही लगा लेता है | उसके सुधार के लिए वह उस अनुपात को संतुलित करने के प्रयास भी करता है जिसमें कई बार वह सफल भी होता है यही उसकी विशेषता होती है |

  ऐसे ही किसी औषधि के निर्माण में घटक द्रव्यों का अनुपात यदि बिगड़ जाए तो निर्मितऔषधि लाभ की जगह नुक्सान भी पहुँचा सकती है |जिसका अनुमान कुशलचिकित्सक आगे से आगे लगाकर रखते हैं | 

   ऐसे ही मौसम वैज्ञानिकों से लेकर चिकित्सा वैज्ञानिकों तक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे प्रतिपल होते प्राकृतिक परिवर्तनों को न केवल देखते समझते रहें अपितु उनके अभिप्राय तथा उनसे प्राप्त भविष्य संबंधी संकेतों  को भी समझते रहें तभी उनके द्वारा किए गए अनुसंधान समाज के लिए हितकर हो सकते हैं | 

                  जलवायुपरिवर्तन मतलब भी तो पंचतत्वों का असंतुलन ही है !

      जल और वायु भी तो पंचतत्वों में ही सम्मिलित हैं| परिवर्तन होगा तो पाँचोंतत्वों में एक साथ होगा !किसी एक तत्व में परिवर्तन शुरू होते ही दूसरे तत्व भी उससे प्रभावित होने लगते हैं|किसी गाड़ी के चार पहियों में से कोई एक पहिया भी यदि खाँचे में चला जाए तो शेष तीनों पहियों की भी गति बाधित हो जाती है |ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है कि जलवायु परिवर्तन तो हो बाक़ी तीन तत्वों में कोई परिवर्तन ही न हो |  तापमान बढ़ने के बाद सर्दी को कम करना नहीं पड़ता है अपितु सर्दी स्वतः कम हो जाती है|यदि ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी तो नाइट्रोजन की मात्रा में कमी आ ही जाती है | 

      हमारे कहने का अभिप्राय जलवायुपरिवर्तन का मतलब केवल जल और वायु तत्व में ही परिवर्तन न होकर प्रत्युत पाँचों तत्वों में होने वाला परिवर्तन है | अचानक तापमान बढ़ने लगे या सर्दी अधिक बढ़ने लगे, बार बार  तूफ़ान आने लगें ! हिंसक महामारी आ जाए !लीक से हटकर घटित होने वाली  ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है ,किंतु ऐसा कैसे हो सकता है | तापमान बढ़ने का कारण जल और वायु में होने वाले परिवर्तन न होकर प्रत्युत अग्नि तत्व में होने वाला परिवर्तन है | भूकंप जैसी घटनाएँ पृथ्वी अग्नि एवं वायुतत्व  के संयोग से  घटित होती हैं |तूफ़ान जैसी घटनाएँ अग्नि एवं वायु के संयोग से घटित होती हैं | इसलिए सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया  जा सकता है |  

    चिकित्साशास्त्र में भी प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने वाले जिन वातपित्तकफ के असंतुलन चर्चा की जाती है वह भी जलवायुपरिवर्तन ही तो है | उसमें अग्नि तत्व को भी सम्मिलित किया गया है जिसके बिना  केवल जलवायुपरिवर्तन प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है |वातपित्तकफ के असंतुलन से संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है | त्रितत्वों के वैषम्य से संपूर्ण प्रकृति प्रभावित होती है | खाने पीने की चीजें प्रभावित होती हैं |उन्हें खाने पीने से स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है |ऐसी हवा में साँस लेने से  रोग पैदा होते हैं

   वर्षा आदि होने न होने तथा कम या अधिक होने का कारण केवल जलवायुपरिवर्तन ही नहीं अपितु पंचतत्वों का वैषम्य होता है |ऐसी बिषमता का कारण समय में होने वाले परिवर्तन होते हैं | समय के संचार में होने वाले परिवर्तनों को  समझे बिना पंचतत्वों के वैषम्य को समझना या इनके विषय में अनुमान  पूर्वानुमान आदि लगाना कठिन है |इसके बिना भूकंप आँधी तूफ़ान आदि किसी भी प्राकृतिक घटना को समझना केवल  कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है | 

    विभिन्न प्राकृतिकघटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा देने मात्र से अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है |लक्ष्य तो प्राकृतिक आपदाओं के कारणों एवं उनके समाधानों को खोजना होता है | ऐसी घटनाएँ यदि जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित होती हैं,तो जलवायुपरिवर्तन होने का कारण खोजना होगा | उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना होता है |तभी ऐसे अनुसंधानों से लक्ष्य साधन हो सकता है | 

      पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवधारियों के लायक वातावरण का निर्माण हो पाता है | पृथ्वी के वातावरण में जो 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन, 0.93 प्रतिशत आर्गन और   0.39 प्रतिशत कार्बनडाइऑक्साइड एवं  एक प्रतिशत मीथेन सहित कुछ अन्य गैसों की परिकल्पना की गई है,वो पंचतत्वों  के संतुलन का ही दूसरा नाम है | सृष्टि जबसे बनी है तबसे ऐसी ही स्थिति चली आ रही है |समस्त जीवधारियों को इसीप्रकार के वातावरण में रहने की आदत सी पड़ी हुई है | इसमें जितना परिवर्तन होता है वातावरण उतना ही असहनीय होता जाता है|  जिसे  सहने का जीवन को अभ्यास ही नहीं है |इसीलिए रोग महारोग  आदि पैदा होने लगते हैं | ऐसे समय मनुष्यों से लेकर पशु पक्षियों समेत समस्त जीवधारियों में बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने लगती है |

      ऐसी  बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने  के लिए वो अपने खान पान रहन सहन आहार बिहार आदि को जिम्मेदार मान लेते हैं| कुछ लोग अपने सुख साधनों का सहारा लेकर मन की ऐसी बेचैनी घटाने का प्रयत्न करते हैं |कुछ लोग इसके लिए मनोरंजक साधनों का सहारा लेते हैं | इसीलिए हास्यकविसम्मेलनों ने कोरोना महामारी आने से पहले काफी जोर पकड़ा था | ऐसी बातों से मनुष्यों का ध्यान दूसरी ओर भटक जाता है !जिससे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव नहीं हो पाता है | इसी बेचैनी को न सह पाने के कारण अपराध उन्माद हिंसात्मकप्रवृत्ति आंदोलन भावना आदि दिनों दिन बढ़ते जा रहे होते हैं |

   जंगलों गाँवों खेतों आदि में रहकर प्राकृतिक वातावरण का अनुभव करने वाले लोग तथा पशु पक्षी आदि प्राणी ऐसे परिवर्तनों का अनुभव आगे से आगे कर लिया करते हैं |प्राकृतिक वातावरण रहकर तपस्या करने वाले ज्ञान विज्ञान से संपन्न ऋषि मुनि आदि प्रत्येक प्राकृतिक घटना को घटित होते देखते  हैं |ऐसे  प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव हमेंशा किया करते हैं |जिसके आधार पर उनके द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही निकला करते हैं | प्राकृतिक वातावरण में रहने  वाले पशु पक्षी आदि भी ऐसी घटनाओं का अनुमान आगे से आगे लगा लिया करते हैं |

   इसके अतिरिक्त प्राकृतिक वातावरण से दूर महानगरों के वातानुकूलित भवनों में बैठकर ऐसे प्राकृतिक विषयों पर कोई अनुसंधान किया जाना कैसे संभव है | किसी नदी तालाब आदि में उतरे बिना जैसे तैरना नहीं सीखा जा सकता है ,वैसे ही प्रकृति के बीच रहकर प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव किए बिना भूकंप आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को समझना एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना असंभव है |

           पशु-पक्षियों को हो गया था महामारी का आभाष !  
     समय के साथ साथ प्रकृति में बदलाव होते रहते  हैं |समय में कब कैसे बदलाव हो रहे हैं यह  जानने के लिए एक तो गणित का माध्यम है और दूसरा प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर  समय के संचार को समझा  उन्हें या तो  प्राकृतिक घटनाओं के संकेत प्रकृति हमेंशा

 टिड्डियों का आतंक :मई - जून 2020 में पाकिस्तान  की ओर से आए टिड्डी दल ने देश के कई राज्यों की मुसीबत बढ़ा दी थी । राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य देश के नौ राज्यों पर टिड्डियों का खतरा मंडराने लगा था | ऐसा हमेंशा तो नहीं होता था |

चूहों का आतंक :कोरोना काल में ऑस्ट्रेलिया में चूहों से हाहाकार मचा रहा,ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री एडम मार्शल ने कहा था कि 'अगर हम वसंत तक चूहों की संख्या को कम नहीं कर पाते हैं तो ग्रामीण और क्षेत्रीय साउथ वेल्स में आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।'यूके में डेढ़ फुट लंबे गुस्सैल चूहों का आतंक ऐसा कि चूहे एक-दूसरे को खाए जा  रहे थे |चूहों पर जहर भी बेअसर हो रहा था | ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए थे  जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे। चूहों का व्यवहार इतना अधिक आक्रामक था कि ब्रिटेनवासी कोरोना से तो परेशान थे ही चूहों से भी बहुत परेशान थे । ब्रिटिश पेस्ट कंट्रोल एसोसिएशन के एक सर्वे की मानें तो ब्रिटेन में बड़े चूहों के उपद्रव की घटनाओं में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। भारत में भी मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान समेत कई राज्यों से चूहों के आतंक और करोड़ों के माल का नुकसान हुआ था |  भारत के  उत्तर प्रदेश  के कानपुर में चूहों ने करीब 40 करोड़ की लागत से बने पुल को कुतर दिया था | बताया जाता है कि झाँसी से लेकर नागपुर तक इन चूहों को मारने के लिए रेलवे द्वारा बड़ी रकम खर्च की गई थी |   इसी प्रकार से हैरान परेशान आवारा पशुओं के आक्रामक व्यवहार से किसान परेशान थे |  दुनियाभर में कोरोना काल में जानवरों के नए रूप अधिक आक्रमक देखने को मिल रहे  थे । महामारीजनित प्रभाव से जीव जंतुओं का स्वभाव आहार विहार आदि काफी बदल गया था |टिड्डियों पक्षियों पशुओं तथा चूहों का प्रजनन अधिक होने से इनकी संख्या अचानक बहुत अधिक बढ़ गई थी | 

     इसी बेचैनी का शिकार होकर  कोरोना काल में अनेकों देश एक दूसरे से युद्ध लड़ते देखे जा रहे थे|कई देशों के अंदर अंतर्कलह से बड़ी संख्या में लोग हिंसा की भेंट चढ़ते जा रहे थे |कुछ देशों के अंदर हिंसक घटनाएँ,दंगे,आतंकी घटनाएँ हिंसक विस्फोट एवं हिंसक आंदोलन आदि होते देखे जा रहे थे | कुछ असहिष्णु लोग छोटी छोटी बातों पर दूसरे की हत्या करते देखे जा रहे थे |भारत की दिल्ली समेत समस्त उत्तर भारत में एवं मणिपुर आदि स्थानों पर हिंसक दंगे ,पड़ोसी म्यांमार में हिंसक दंगे आदि होते देखे जा रहे थे |ऐसे ही कोरोनाकाल में मनुष्यों पशुओं पक्षियों आदि में बेचैनी काफी अधिक बढ़ गई थी | 

    प्राकृतिक परिवर्तनों के प्रभाव से  कुछ  वृक्षों को बिना ऋतु के भी फूलते फलते देखा जा रहा है ! कुछ फलों का आकार प्रकार रंग रूप स्वाद आदि बदला बदला सा लग रहा था |

                    केवल जलवायु परिवर्तन या कुछ और भी -

   किसी मनोरोगी को चिकित्सक ने नींद की यदि एक गोली खाने की सलाह दी है ,तो उसे एक गोली ही खानी चाहिए, किंतु वह रोगी यदि छै गोलियाँ खा लेता है तो उसके दुष्प्रभाव  भी होंने लगते हैं |जिनका समाधान चिकित्सकों  को तुरंत खोजना पड़ता है | केवल यह कह देने मात्र  से बात नहीं बन जाती है कि उसने नींद की छै गोलियाँ खा ली थीं इसलिए नींद आ रही है | 

        इसी प्रकार से बड़ी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने पर केवल यह कहकर उन्हें भुला दिया जाना ठीक नहीं है कि ये तो जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित हो रहा है |यदि इसे सही मान भी लिया जाए तो इसका परिणाम भी तो होगा | पहले की अपेक्षा तापमान यदि अचानक बढ़ने या घटने लगे तो ऐसा होने का कारण भले  जलवायुपरिवर्तन  ही क्यों न हो किंतु इसके कुछ परिणाम भी तो होंगे जिनका अध्ययन आवश्यक है | ऐसा ही सभी प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं के वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना होगा |  घटनाओं के घटित होने का कारण और निवारण आदि भी तो खोजना पड़ेगा |इसके भविष्य में पड़ने वाले अच्छे बुरे प्रभावों का भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना पड़ेगा |

       कई बार सुनने को मिलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद सूखा पड़ेगा, आँधी तूफ़ान भूकंप महामारी आदि घटनाएँ बार बार घटित होंगी |तापमान बढ़ जाएगा ,ग्लेशियर पिघल जाएँगे  तो ऐसी भविष्य संबंधी बातों पर तब तक कोई  भरोसा कैसे कर लेगा ,जबतक पूर्वानुमान विज्ञान के द्वारा मानसून आने जाने की सही तारीखों का पता नहीं लगाया जा सकेगा | मौसमसंबंधी दीर्घावधि मध्यावधि  पूर्वानुमान पता नहीं लगाए जा  सकेंगे |

      जिस अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा विगत बीस वर्षों में किसी बड़ी प्राकृतिक घटना या महामारी का पूर्वानुमान  नहीं लगाया जा सका है | उस प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा  यह कैसे कहा  जा सकता है कि  जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद कैसा कैसा प्राकृतिक वातावरण बनेगा | 

     प्रकृति में यदि इतने बड़े बड़े बदलाव होंगे तो उस परिस्थिति में मनुष्यादि समस्त प्राणियों का जीवन कितना सुरक्षित होगा | उस प्रकार का वातावरण क्या जीवों के सहने लायक होगा | उस प्रकार के दुष्प्रभाव क्या सौ दो सौ वर्ष बाद एक साथ ही दिखाई देंगे या धीरे धीरे क्रमशः होते देखे  जाएँगे |

   उसप्रकार का डरावना वातावरण बनने के दुष्प्रभाव क्या मनुष्य जीवन पर भी पडेंगे | उससे रोग महारोग जैसी घटनाएँ भी क्या घटित होंगी | उनसे सुरक्षा के लिए अभी से क्या सतर्कता बरती जानी चाहिए | यह भी पता लगाया जाना चाहिए |

  कुल मिलाकर हमें यदि जलवायु परिवर्तन होने की जानकारी अभी से पता लग गई है  ,जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पता लगा ही लिया गया है तो उससे बचाव के लिए भी अभी से आवश्यक प्रयत्न शुरू कर दिए जाने चाहिए तभी इस जानकारी का सदुपयोग हो पाएगा | 

 

______________________________________________________________________

                                कोरोना महामारी की चिकित्सा में इतना विरोधाभास क्यों ?

     नुसंधानों के नाम पर चिकित्सा को लेकर ऐसी स्थिति बन गई थी| जिसमें लोग यही नहीं समझ पा रहे थे कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए ! बचाव के लिए उन्हें जो बताया जा रहा है,वो सब कुछ भ्रम सा प्रतीत हो रहा था। यही नहीं पता लग पा रहा था कि उपायों के नाम पर जो बताया जा रहा था वो कितना विश्वसनीय है|जिस समय महामारी जैसी इतनी बड़ी आपदा से समाज जूझ  रहा था! जिम्मेदार लोगों के द्वारा कुछ औषधियों को लाभप्रद बताया गया,हैरान परेशान समाज उन औषधियों की तलाश में भटकता रहा,बाद में कह दिया गया कि वो औषधियाँ उतनी लाभप्रद नहीं हैं |पहले खलभली मचा दी गई उससे समाज हैरान तो परेशान हुआ ही इससे अस्पतालों पर भी दबाव बढ़ता है |

    वस्तुतः ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल जब तैयार होते हैं तो उसमें किसी भी थैरेपी, किसी भी दवा, तथा किसी भी इंजेक्शन को शामिल करने का निर्णय उसकी सुरक्षा और उसके प्रभाव के प्रमाणों के आधार पर होना चाहिए| महामारी के इतने महीने बाद भी विश्वासपूर्वक यह कहा जाना संभव नहीं हो पाया है कि कौन सी दवा क्या काम कर रही है और संक्रमितों पर किस औषधि का क्या प्रभाव होगा !ऐसे अनुसंधानों से समाज अपनी मदद की आशा कैसे करे | 

रेमडेसिविर से कोरोना में मदद मिलती है या नहीं ?

 20 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित : रेमडेसिविर को चिकित्सा के लिए उपयोगी बताकर भयभीत समाज में खलभली मचा दी गई| लोग रेमडेसिविर महँगे दामों पर खरीदने लगे!जब रेमडेसिविर लगाने के बाद भी दूसरी लहर में लोग संक्रमित होते तथा मृत्यु को प्राप्त होते रहे बाद में कहा गया कोरोना में लाभप्रद नहीं है रेमडेसिविर !नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ की अंतिम रिपोर्ट COVID-19 के लिए रेमडेसिविर के लाभों की पुष्टि करती है | एनआईएआईडी के अध्ययन लेखक डॉ. जॉन बेगेल कहते हैं, "हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि रेमडेसिविर सीओवीआईडी-19 के रोगियों के लिए एक लाभकारी उपचार है।" "यह इस महामारी के दौरान वेंटिलेटर जैसे दुर्लभ स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों को संरक्षित करने में भी मदद कर सकता  है।दूसरी ओर "17 अप्रैल 2021 को 'WHO सॉलिडैरिटी ट्रायल' के अंतरिम नतीजे प्रकाशित : दिसंबर 2020 में पता चला कि रेमडेसिविर का असर बहुत कम या बिल्कुल नहीं हुआ ICMR :की ओर से 'एडेप्टिव कोविड-19 ट्रीटमेंट [GM1] ट्रायल' में पाया गया कि रेमडेसिविर उपयोगी है | इस प्रकार के परस्पर विरोधी बिचार देखने को मिले !बाद में इसके प्रयोग के कुछ दुष्प्रभाव भी बताए गए | प्रश्न उठता है कि रेमडेसिविर  का प्रयोग  किया जाना उचित था या नहीं  समाज को यह कैसे पता लगे !

 विशेष बात :जो भ्रम प्लाज्माथैरेपी पर है वही रेमडेसिविर पर भी है | अंतर केवल इतना है कि प्लाज्मा थैरेपी को चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया है जबकि रेमडेसिविर को हटाया नहीं गया है|

                 प्लाज्माथैरेपी से लाभ होता है या नहीं ?

 कोरोना संक्रमण में प्लाज्माथैरेपी को उपयोगी बताकर खलभली मचा दी गई| प्लाज्माथैरेपी से कोरोना संक्रमितों को लाभ मिलता है ! यह कहकर पहले तो प्लाज्माथैरेपी शुरू की गई !समाज प्लाज्मा खोजने के लिए आतुर हो उठा |उस समय प्लाज्मा की तलाश में मारा मारी मच गई ,किंतु दूसरी लहर में जब प्लाज्माथैरेपी से संक्रमितों को कोई लाभ होते नहीं दिखा ,तो इसे चिकित्सा की प्रक्रिया से अलग कर दिया गया !लोगों के मन में प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं कि कोरोना जैसी इतनी हिंसक महामारी के द्वारा जब इतने बड़े वेग से आक्रमण किया गया उस समय चिकित्सा के नाम पर इतनी बड़ी दुविधा चिंताजनक है | ये बातें पहले से साफ साफ क्यों नहीं बता दी गईं कि ये उपयोगी नहीं है | अगर विशेषज्ञ भ्रम में थे तो लोगों को आठ महीनों तक भ्रम में क्यों रखा गया !जबकि प्लाज्मा थैरेपी पर अध्ययन भी कर लिया गया था |

                                    कोविड नियमों से बचाव होता  है या नहीं ?

   कोरोनामहामारी से बचाव के लिए कुछ चिकित्सावैज्ञानिकों के द्वारा जो चिकित्सकीय उपाय बताए गए ,उनमें विरोधाभास देखने को मिला! स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए आवश्यक समझकर कोविड नियमों  के पालन को न केवल अनिवार्य कर दिया गया अपितु उनका कठोरतापूर्वक पालन भी कराया जाने लगा |साधन संपन्न लोग तो घरों में बैठकर कोविड नियमों का पालन करने लगे! फिर भी दूसरी लहर में कोविड नियमों का पालन करने पर भी अनेकों लोगों को संक्रमित होते देखा गया | कुछ साधनविहीन लोग कोविड नियमों की परवाह किए बिना रोजीरोटी के लिए धक्के खाते रहे!कोविड नियमों का पालन न करने पर भी उनमें से अनेकों लोगों को संक्रमित न होते हुए देखा गया | कई जगह संक्रमितों के साथ रहकर भी लोग संक्रमित नहीं हुए !दिल्ली मुंबई सूरत से श्रमिकों का पलायन हुआ वो भी संक्रमित नहीं हुए !बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी किंतु वे कोरोना संक्रमित नहीं हुए |इस प्रकार के अनुभव लोगों ने अपने जीवन को संकट में डाल कर किए !उसके बाद वैज्ञानिकों ने भी कहा कि छूने से कोरोना नहीं फैलता है !यदि यह सही है तो पहले छूने का निषेध क्यों किया गया था !

                              कोरोना पर वैक्सीन के प्रभाव पर इतना विरोधाभास !

     कोविड के दौरान लोगों को वैक्सीन लेने की सलाह दी गई ! लेकिन बाद में ये आशंका भी जताई गई कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन लेने के बाद हार्टअटैक हो सकता है | इसके बाद हँसते खेलते खाते पीते नाचते कूदते ,पूजा करते आदि हार्टअटैक होते देखा गया | इनको कोविड वैक्सीन लेने के दुष्प्रभाव स्वरूप हार्टअटैक के मामले अधिक बढ़ने की आशंका जताई गई है |इस पर  ''आईसीएमआर ने अपने अध्ययन में कहा कि जिन्हें गंभीर कोविड हुआ है और ज़्यादा लंबा समय नहीं हुआ है उन्हें हार्टअटैक से बचने के लिए कम से कम एक या दो साल तक ज़्यादा कठिन परिश्रम, ओवर वर्कआउट,भागना या ज़्यादा कसरत से बचना चाहिए.!'' ऐसे शंका समाधानों का सिलसिला तो चलता आ रहा है ,किंतु  वैक्सीन के प्रभाव के विषय में ऐसा कोई निश्चित बचन नहीं दिया जा सका है कि वैक्सीन लेने से इतना लाभ तो होगा ही | अर्थात जो वैक्सीन लेगा वो संक्रमित नहीं होगा !या  संक्रमित होने पर भी मृत्यु नहीं होगी !या फिर संक्रमित हो चुके लोग वैक्सीन के प्रभाव से जल्दी स्वस्थ हो जाएँगे और दूसरी बार संक्रमित नहीं होंगे !वैक्सीन के प्रभाव को आखिर  किस रूप में चिन्हित किया जाए ! वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमित हुए लोगों के लिए कहा गया कि वैक्सीन लेने के बाद भी लोग संक्रमित तो हो  सकते हैं लेकिन वो संक्रमण बहुत बढ़ेगा नहीं जबकि वैक्सीन लेने के बाद भी कई लोगों को संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होते सुना गया है | कुलमिलाकर वैक्सीन के प्रभाव के विषय में निश्चित तौर पर कुछ कहा जाना अभी तक संभव क्यों नहीं हो पाया है |

      इसीप्रकार टोसिलीजुमैबइंजेक्शन,  डेक्सामेथासोन, हाइड्रोक्लोरोक्वीन  आदि औषधियों के विषय में चिकित्सकीय बयानों में विरोधाभास बना रहा ! आइवरमेक्टिन दवा पर तमिलनाडु में प्रतिबंध लगा दिया था !गोवा और उत्तराखंड में इसे लाभप्रद समझा जाता  रहा था |  







    परंपरा विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो 

                            कोरोना महामारी संबंधित उपायों की गुणवत्ता का आकलन !

      परंपरागत ज्ञान विज्ञान के आधार पर योग आयुर्वेदोक्त पद्धति के द्वारा कुछ लोग महामारी से मुक्ति दिलाने का लक्ष्य लेकर उपचार करते देखे जा रहे थे |ऐसे ही  यज्ञ मंत्रजप तप आदि शास्त्रीय उपाय अपनाकर कुछ लोग महामारी से मुक्ति दिलाने के प्रयत्न में लगे हुए थे | इसके अतिरिक्त नीमों हकीमों या जादू टोने आदि करने वालों की ओर से भी महामारी से मुक्ति दिलाने के आश्वासन दिए जा रहे थे |कुछ लोग लोग योग व्यायाम आदि क्रियाओं से अपना तथा दूसरों का बचाव करने में लगे हुए थे | उन सभी को अपने अपने विज्ञान पर भरोसा था कि उनके उपायों को  करके महामारी से मुक्ति पाई जा सकती है |

      इसीप्रकार से वैक्सीन से संबंधित चिकित्सा वैज्ञानिकों को भी यह भरोसा है कि कोरोना महामारी उनके द्वारा निर्मित वैक्सीन के प्रभाव से नियंत्रित हुई है | अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी की 13 दिसंबर 2020 को प्रकाशित हुई रिपोर्ट में तो यहाँ तक कहा गया है कि अगर वैक्सीन नहीं आई होती तो अकेले अमेरिका में 2 सालों में मौजूदा आँकड़ों से 1.85 करोड़ ज्यादा लोग अस्पतालों में भर्ती हुए होते और 32  लाख लोगों की मृत्यु हो गई होती !ये वैज्ञानिकों का वैक्सीन के प्रति अपना भरोसा है | 

    विशेष बात यह है कि किसी के भरोसे को चुनौती नहीं दी जा सकती है,किंतु  इन दोनों प्रकार के उपायों का परीक्षण जनता की दृष्टि से अवश्य किया जाना चाहिए | परंपरागत उपाय हों या वैक्सीन संबंधी उपाय इन्हें  शुरू करने से पूर्व दोनों प्रकार के वैज्ञानिकों ने ऐसा कोई मजबूत आश्वासन नहीं दिया था कि महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए उनके द्वारा किए जा रहे प्रयास के परिणाम कितने दिनों में दिखाई देंगे | उपायों के प्रभाव से महामारी कितने समय में नियंत्रित होगी | उससे रोगियों में किस किस प्रकार के परिवर्तन आने क्रमशः शुरू होंगे और कितने समय में महामारी समूल नष्ट हो जाएगी | 

   वैक्सीन से संबंधित वैज्ञानिकों के द्वारा वैक्सीन के प्रभाव विषय में विश्वासपूर्वक ऐसा कुछ नहीं कहा जा सका था कि वैक्सीन लेने के परिणाम स्वरूप कितने दिनों में किस किस प्रकार के सुधार दिखाई देंगे | वैक्सीन लेने से कितने समय में महामारी से मुक्ति मिल सकती है या कितना बचाव हो पाएगा |वैक्सीन की दोनों डोज ले लिए जाने के बाद  संक्रमित होने से पूरी तरह से बचाव हो जाएगा ,उसके बाद महामारी से कोई खतरा नहीं रह जाएगा |  ऐसा कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया जा रहा था |जिसके विषय में यह कहा जा सके कि वैक्सीन न लगी होती तो संक्रमितों की संख्या या मृतकों की संख्या और अधिक बढ़ गई होती | वैक्सीन लगने के बाद भी बहुत लोग संक्रमित हुए और बहुतों की मृत्यु भी होते देखी गई है तो बहुत लोग वैक्सीन न लगने के बाद भी न तो संक्रमित हुए और न ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | ऐसी स्थिति में  वैक्सीन के प्रभाव के विषय में निश्चित तौर पर कुछ कहा जाना या  स्वीकार किया जाना कैसे संभव  है |

     इसके बाद भी महामारीजनित संक्रमण जब कम होने लगता था तो वैक्सीन समेत उन सभी विधाओं के वैज्ञानिक लोग उसे अपने अपने प्रयासों  का परिणाम सिद्ध करने लगते |उनके कहने का भाव यह होता था कि उन्होंने यदि समय रहते कोरोना से मुक्ति दिलाने के प्रयत्न न किए होते तो अब तक कई गुना अधिक लोग संक्रमित हो चुके होते और काफी अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके होते !ये उनका अपना विश्वास था |

     विशेष बात यह है कि परंपरा विज्ञान के द्वारा किए गए उपाय हों या वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए वैक्सीन आदि उपायों का  परिणामों पर पूर्ण भरोसा कहीं नहीं दिखाई दे रहा था | ऐसी स्थिति में महामारी के कमजोर होने का  कारण उन दोनोंप्रकार के उपायों को माना जाए या उनमें से किसी एकप्रकार के उपाय को माना जाए ! अथवा ये  माना जाए कि उन दोनों ही प्रकार के उपायों का महामारीजनित संक्रमण के कम होने से कोई संबंध नहीं था | महामारीजनित संक्रमण जिस प्रकार से बिना किसी उपाय के 7 मई 2020 से कम होना शुरू हुआ था |18 सितंबर 2020 से स्वतः ही कम होना शुरू हुआ था | ऐसे ही 2021 में मई के प्रथम सप्ताह से जब कोरोना संक्रमितों की संख्या कम होनी शुरू हुई थी तब तक वैक्सीन लगनी शुरू तो हो चुकी थी किंतु उस समय तक  इतने अधिक  लोगों को वैक्सीन नहीं दी जा सकी थी जिसके बल पर यह कहा जा सके कि इतनी भयावह दूसरी लहर का नियंत्रण हो गया होगा | यदि ऐसा हुआ मान भी लिया जाए तो भी जो 7 मई 2020 से कम होना शुरू हुआ था या 18 सितंबर 2020 से कम होना शुरू हुआ था तब तक तो ऐसी किसी प्रभावी औषधि या वैक्सीन आदि की कोई चर्चा नहीं थी | संक्रमितों की संख्या जिसप्रकार से उससमय कम हुई थी संभव है कि वैसे ही बाद में भी कम हुई हो | 

                              


 वैक्सीन लगाने का समय सही नहीं है परंपराविज्ञान की दृष्टि में -

   23 दिसंबर 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल का वैक्सीन से संबंधित अंश !

  "  आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस(वैक्सीन)  के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को जन्म दिया जा सकता है | ऐसी परिस्थिति में देश और समाज की सुरक्षा के लिए विशेष सतर्कता संयम  एवं सावधानी की आवश्यकता है | वैसे भी यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ?ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिलकुल ही नहीं है | यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं |"     

  वैक्सीन लगाने का समय सही नहीं है परंपराविज्ञान की दृष्टि में -

 1 मार्च 2021 को पीएमओ को भेजी गई मेल का वैक्सीन के प्रभाव से संबंधित अंश !-

   " सरकार की सक्रियता एवं वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से  बनाई गई कोरोना वैक्सीन इस महामारी को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं है अपितु संक्रमण में बढ़ोत्तरी हो सकती है ,ऐसा होने के पीछे के कारण वैक्सीन के साइडइफेक्ट नहीं होंगे | महामारियाँ अपने जाने का श्रेय किसी को नहीं लेने देती हैं इसीलिए इतिहास में भी दवा या वैक्सीन आदि के बल से महामारियों को कभी पराजित नहीं किया जा सका है | ये  हमेंशा अपनी इच्छा से आती और अपने समय पर ही अपनी इच्छा से जाती हैं |" "यदि सरकार अभी भी वैक्सीन आदि से उपरत होकर संयम से काम लेती है तो वैक्सीन के प्रथम चरण के परिणाम स्वरूप बढ़ा कोरोना संक्रमण 31 मार्च 2021 के बाद संपूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा |" 

 19 अप्रैल 2021 को पीएमओ को भेजे गए  मेल का वैक्सीन वाला अंश :

   " वैक्सीन जिस समय लगाना प्रारंभ किया गया था वह समय ही ऐसा था जिसमें कितनी भी अच्छी औषधि क्यों न दी जाती उसका परिणाम भी हानिकर ही होना था !उस समय प्रारंभ किया गया वैक्सीनेशन जिन जिन प्रदेशों में जिस अनुपात में होता चला आ रहा है उन उन प्रदेशों में महामारीजनित  जाय करती थीं संक्रमण  उसी अनुपात में बढ़ते देखा जा रहा है |खैर !उद्देश्य तो आपका भी जनता की सुरक्षा ही था जो समय को मंजूर नहीं था |"   " मैं समयशक्ति पर ही वेद वैज्ञानिक दृष्टि से अनुसंधान करता आ रहा हूँ मुझे इस बात का अनुमान था कि इस समय वैक्सीन लगाने से कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा! किंतु चिकित्सा वैज्ञानिकों पर विश्वास था कि ये लोग परिस्थिति को सँभाल लेंगे नियंत्रण से बाहर नहीं जाने देंगे किंतु हुआ उल्टा ही सबकुछ सरकार और वैज्ञानिकों के नियंत्रण से बाहर हो चुका है | चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई है !"

              

 

 


 

 

 

 

 

 

 

महामारियों से बचाव कैसे हो परंपराविज्ञान की दृष्टि में -

                        

 

 

 

  सही निकले हैं परंपराविज्ञान के आधार पर  लगाए गए पूर्वानुमान !

   ऐसे सभी पूर्वानुमान मैंने भारत के प्राचीन परंपरा विज्ञान के आधार पर लगाए हैं | यदि ये सही निकले हैं तो इससे ये प्रमाणित होता है कि महामारी को समझने में हमें सफलता मिली है | यदि ऐसा न  होता तो महामारी के विषय में हमारे द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही न निकलते !

     ऐसे पूर्वानुमानों को लगाने के लिए हमें समय और स्थान की आवश्यकता होती है | इसलिए जहाँ रहकर हम प्राकृतिक वातावरण का अनुभव कर रहे होते हैं वहाँ के विषय में लगाया गया पूर्वानुमान तो पूरी तरह सही निकलता है किंतु कुछ ऐसी लहरें जिनका वेग कम होता है वे किसी एक स्थान पर प्रारंभ होकर वहीं समाप्त हो जाती हैं | सभी जगह फैल न पाने के कारण उनका अनुभव केवल उन्हीं को हो पाता है,जहाँ ऐसी लहरें घटित होती हैं | समय वही रहता है जो हमारे पूर्वानुमान में दिया गया होता है | 

      ऐसे ही दूसरा भ्रम  ऐसे प्रकरणों में होता है जब संक्रमितों की संख्या कम आने पर वैज्ञानिकों के द्वारा उसे लहर नहीं माना जाता है जबकि मैंने अपनी मेलों में उन्हें भी लहर ही मानकर लिखा है | ऐसी स्थिति में कौन लहर चौथी है या पाँचवीं इसका मेल वैज्ञानिकों की लहर संख्या के साथ नहीं खाता है किंतु हमारे द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वानुमानों के अनुशार उनकी संख्या बढ़ते घटते देखा जाता है | 

                                         वैक्सीन का प्रभाव परंपराविज्ञान की दृष्टि में -

    

 

 

 


 

वैक्सीन की कई कई डोज लगवा चुके लोग भी  संक्रमित होते  देखे गए ने जैसी आलोचनाओं को सहा गया और उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते रहा गया |

      रोगियों पर किया जाता रहा वो असफल मानी जाती रही हैं | वस्तुतः वो प्रभाव उन औषधियों का न होकर उस समय का होता था जिसके प्रभाव से ट्रॉयल में सम्मिलित लोगों से अलग संपूर्ण समाज में ही उसीप्रकार की घटनाएँ घटित होती देखी जा रही होती हैं | वैक्सीन परीक्षण हो या प्लाज्मा का ट्रायल दोनों के समय प्राकृतिक रूप से संपूर्ण समाज में ही संक्रमितों की संख्या घटती जा रही थी |इसलिए दोनों की सफलता पर भरोसा किया जाना स्वाभाविक था किंतु जब अगली लहर आई तो तेजी से संक्रमण बढ़ने लगा  जिससे वैश्विक स्तर पर कई कई  डोज लगवा चुके लोग भी संक्रमित होने लगे और प्लाज्मा प्रक्रिया भी असफल होते दिखाई देने लगी |

  पूर्वानुमानों का सच्चाई से सामना !

लहरों के पूर्वानुमान                                                           

  दो शब्द

                                        गणितविज्ञान से आसान होते हैं अनुसंधान

       किसी भी महामारी के पैदा होने का कारण समय होता है और किसी के रोगी होने या मृत्यु होने का कारण उसका अपना समय होता है | कैसे समय में महामारी  आती है और कैसे समय में व्यक्ति संक्रमित होता है या मृत्यु को प्राप्त होता है |अच्छे और बुरे समय का ज्ञान सूर्य के आधार पर ही किया जा सकता है |सूर्य का अच्छा या बुरा प्रभाव उसकी रश्मियों के द्वारा चराचर जगत पर पड़ता है | सूर्य का बुरा प्रभाव वायु मंडल पर पड़ते ही वायु मंडल समेत पाँचों तत्व बिषैले होने लगते हैं | जिसे न सह पाने के कारण उनसे संबंधित प्राकृतिक उपद्रव घटित होने लगते हैं| वायु तत्व के विषैला होते ही विषैली वायु के स्पर्श से संपूर्ण प्रकृति विषैली होने लगती हैं |वृक्ष बनस्पतियाँ शाक  सब्जियाँ फल फूल आदि समस्त खाने पीने की वस्तुएँ बिषैली होने लगती हैं |बनस्पतियाँ औषधियाँ आदि विषैली होने लगती हैं |इसी विषैले वातावरण में स्वाँस लेने एवं विषैले खाद्यपदार्थों के खाने पीने से मनुष्य समेत समस्त जीवों की  जीवनीय शक्ति एवं सहनशक्ति समाप्त होने लगती है | जिससे लोग छोटी छोटी बातों पर क्रोध करने लगते हैं | घबड़ाने लगते हैं उदास एवं रोगी रहने लगते हैं | मनुष्य समेत समस्त जीव जंतुओं में बेचैनी बढ़ जाती है |  

      ऐसी बिपरीत परिस्थिति बनने का कारण उस प्रकार का बिपरीत समय होता है किंतु समय दिखाई नहीं पड़ता है | इसलिए अच्छे बुरे समय का ज्ञान सूर्य के आधार पर किया जा सकता है |सूर्य को समझने के लिए गणित ही एक मात्र विकल्प है | सूर्य संबंधी गणना करके जिसप्रकार से हजारों वर्ष पहले के सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में पता लगा लिया जाता है |उसी प्रकार से सूर्य के प्रभाव से पैदा होने वाली महामारियों के विषय में भी उसी गणना के आधार पर उतने ही वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो सकता है !जिस प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में समय संबंधी गणना के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाता है उसी प्रकार से  महामारियों के विषय में भी उसी समयगणना के आधार पर ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !

     इस चराचर जगत् में जो भी वस्तु है | उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता।गणित इस जगत् को देखने और इसका वर्णन करने के लिए है ताकि हम उन समस्याओं का समाधान खोज सकें जो अर्थपूर्ण हैं।सूर्य चंद्र ग्रहण भी प्राकृतिक घटनाएँ ही हैं | इनके विषय में गणित विज्ञान के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान एक एक मिनट  सेकेंड तक सही निकलते हैं | गणित के बिना किसी भी प्राकृतिक घटना के विषय में किया गया कोई भी  विश्लेषण मात्र एक राय हो सकती है | जो सही और गलत दोनों निकल सकती है । इसीलिए महामारी या मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो भी पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | वे सही और गलत दोनों निकलते देखे जाते हैं | 

    प्राचीनकाल में जंगलों में रहकर प्रकृति का प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले को सहने वाले ऋषि मुनि बदलती प्राकृतिक परिस्थितियों पर निरंतर नजर रखते थे |जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में सही सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया करते थे |सच्चाई यही है कि प्राकृतिक घटनाओं का अनुभव  प्रकृति के मध्य रहकर ही किया जा सकता है,महानगरों के वातानुकूलित भवनों में बैठकर नहीं | प्राचीन काल में ऋषि मुनि भी यदि इतने सुख सुविधा भोगी होते तो उन्हें  प्रकार के  पाते ! 

         वर्तमान समय में भूकंप,वर्षा, बाढ़,बज्रपात,महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधान हमेंशा होते हैं किंतु ऐसी घटनाएँ जब घटित होने लगती हैं तब जनहित में इनसे कोई ऐसी मदद नहीं मिल पाती है जिसके लिए यह कहा जाए कि यदि ऐसी घटनाओं से संबंधित अनुसंधान न किए गए होते तो जनधनहानि और अधिक हो सकती थी | क्या कारण है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित विज्ञान भी है वैज्ञानिक भी हैं | अनुसंधान भी किए जाते हैं उनपर धन भी खर्च होता है |समय भी लगता है परिश्रम भी लगता है ,किंतु उन अनुसंधानों से ऐसा निकलता क्या है जो ऐसी घटनाओं से संबंधित संकटों के समय जनता के काम आ पाता है |

    ऐसी परिस्थिति में  गणितविज्ञान प्राकृतिक विषयों पर किए जाने वाले कठिन से कठिन अनुसंधानों को भी आसान बना देता है | इससे अनुसंधानों पर होने वाली समय पैसे और परिश्रम की निरर्थक बर्बादी नहीं होती है | जो लगता है वो सही दिशा में लगता है और उससे कुछ निकलता भी है |

                                                               भूमिका

                                              प्रत्यक्ष विज्ञान या आधुनिक विज्ञान

       प्रत्यक्ष विज्ञान के नाम पर वही उपग्रह रडार आदि हैं | जिनसे महामारी भूकंप बज्रपात आदि घटनाएँ बिना दिखाई पड़े ही घटित हो जाती हैं | इसलिए इनके विषय में तो यह मान लिया गया कि पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | बादल या आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि तो उपग्रहों रडारों से देख लिए जाते हैं ,किंतु वे रोडों पर दौड़ रही गाड़ियों की तरह ही उनकी वर्तमान स्थिति ही देखी जा सकती है भविष्य नहीं,उसके आधार पर ये नहीं पता लगाया जा सकता है कि वे गाड़ियाँ कब कहाँ जाने वाली हैं |

     इसी प्रकार से उपग्रहों रडारों से देखकर यही तो पता लगाया जा सकता है कि बादल ,आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि इस समय कहाँ हैं,किंतु वे घंटे दो घंटे बाद किधर जाने का रुख करेंगे ! उनके आधार पर इसका पता कैसे लगाया जा सकता है ! हवा की दिशा और गति को आधार बनाकर  यह अंदाजा लगाया जाता है कि ये आँधी तूफ़ान ये बादल कब कहाँ पहुँचेंगे,किंतु हवाएँ तो कभी भी अपनी दिशा और गति बदल सकती हैं !तो उस प्रकार का अंदाजा लगाना पड़ेगा ! ऐसे अंदाजा गलत होते ही अपनी उन बातों को बार बार बदलना पड़ता है | जिन पर समाज भविष्यवाणियों की तरह भरोसा करता है | 

     ऐसी प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है !इसमें अनुसंधान क्या हैं ! वैज्ञानिक दृढ़ता कहाँ है !विश्वसनीयता कितनी है !इस प्रक्रिया से बादलों एवं आँधी तूफानों की वर्तमान अवस्था को ही देखा जा सकता है भविष्य को नहीं !ऐसी स्थिति में उपग्रहों रडारों से बादलों आँधी तूफानों की वर्तमान स्थिति दिख सकती है ,किंतु दीर्घावधि या मध्यावधि पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकते हैं |वर्तमान स्थिति के विषय में भी इतनी दृढ़ता से नहीं कहा जा सकता है कि ये ऐसा ही होगा |जहाँ तक सुपर कंप्यूटरों की बात है वे कम से कम समय में अधिकतम डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं | भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए वे वही कर सकते हैं जो उनमें फीड किया गया होगा !किंतु भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए उस विज्ञान की आवश्यकता तो उस सुपर कंप्यूटर को भी होगी | जिसके आधार पर भविष्य में झाँकना संभव हो | इसके बिना  सुपर कंप्यूटर भी मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में कैसे सक्षम होगा ! 

  इसलिए आवश्यकता है ऐसे अनुसंधानों की जिनसे हवाओं एवं बादलों के बनने बढ़ने एवं उनके रुख बदलने के विषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सके | 

      महामारी के समय कुछ वैज्ञानिकों का मत था कि महामारी पैदा होने एवं उसकी लहरें आने जाने का कारण मौसम है ! किंतु उसमें सबसे बड़ी बाधा ये है कि अभी तक जो भी मौसम संबंधी बड़ी घटनाएँ घटित हुई हैं उन सभी के विषय में या तो पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है या फिर सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है |ऐसी स्थिति में महामारी पैदा होने का कारण यदि मौसम ही रहा हो तो जब मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए ही जब कोई  मजबूत वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं है तो उसके आधार पर महामारी को समझा जाना कैसे संभव है |

     वैज्ञानिकों के द्वारा अपनाई जा रही मौसम पूर्वानुमान लगाने की वैज्ञानिक प्रक्रिया से यदि सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो भी जाता तो भी वो महामारी के समय इसलिए काम नहीं आ पाती क्योंकि मौसम संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी उपग्रहों रडारों के साथ साथ विमानों से भी प्राप्त की जाती है | महामारी के समय विज्ञान संचालन पूरी तरह बंद था | उस समय मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाना ही संभव नहीं था तो उस आधार पर महामारी संक्रमितों की संख्या कम या अधिक होने के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जाता |   

   इसके लिए जिम्मेदार लोगों को मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में यह कहते अक्सर सुना जाता है कि पहले यहाँ इस महीने के इस सप्ताह में इतनी वर्षा होती थी अब वैसा नहीं हो रहा है !पहले इन तारीखों को मानसून आता जाता था अब वैसा नहीं हो रहा है |पहले इतनी सर्दी या इतनी गर्मी नहीं होती थी | अब उतनी होने लगी है !ऐसी स्थिति में पहले और अब की तुलना करके जो प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है | वस्तुतः घटनाएँ तो कभी भी कैसी घटित हो सकती हैं वे स्वतंत्र हैं | हमारा लक्ष्य तो उनके विषय में केवल पूर्वानुमान लगाना है | जिससे जनधनहानि  कम से कम हो !

   किसी बैंक में बार बार चोरी हो जा रही हो और चोर पकडे न जा पा रहे हों तो प्रशासन यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता कि पहले चोर उस समय उस जगह वैसे सेंध करके बैंक में चोरी करते थे अब ऐसे ऐसे करने लगे हैं इसका मतलब ये बैंक और चोरों से संबंधित जलवायु परिवर्तन है | इसका मतलब या निकाल लिया जाना कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ और अधिक भयानक रूप से घटित होंगी | ये कितना तर्कसंगत है | 

    ऐसा ही मौसम संबंधी जलवायु परिवर्तन है |जिसके प्रभाव से आज के सौ दो सौ वर्ष बाद प्रकृति में मौसम संबंधी अतिवाद दिखाई देने की भविष्यवाणियाँ की जाती हैं! ऐसी  सौ दो सौ वर्ष पहले की भविष्यवाणियों का वह आधार होता है | जिसके द्वारा अभी तक दस पाँच दिन पहले के मौसम के विषय में कोई विश्वास करने योग्य भविष्यवाणी की जानी संभव नहीं हो पाई है | 

                                                           हमारी विनम्र वेदना

       मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना या आलोचना करना नहीं है ! मेरा उद्देश्य समाज की उन अपेक्षाओं पर खरा उतरना है | जो समाज अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से रखता है | आवश्यकता कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी अपनी आँखों से देख चुके डरे सहमे समाज के मनोबल बढ़ाए जाने की है | यद्यपि ये वैश्विक आपदा है किंतु यदि इसे अपने देश भारत तक ही सीमित रखकर सोचा जाए तो भी ये बहुत बड़ी त्रासदी रही है | स्वतंत्र भारत को  अपने पड़ोसी देशों से तीन युद्ध लड़ने पड़े उनमें जितनी जनधन हानि हुई थी उससे कई गुना अधिक जनधन का नुक्सान सह चुके देशवासियों का उत्साह बहुत गिर चुका है | उसे उठाए जाने की आवश्यकता है | 

     इसमें सबसे चिंता की बात यह है कि महामारी से जो आर्थिक नुक्सान हुआ ,नौकरी व्यापार आदि बर्बाद हुआ उसका संघर्ष पूर्वक किसी तरह सामना कर पा रहे हैं | जो स्वास्थ्य संबंधी नुक्सान हुआ उससे किसी प्रकार उबरने का प्रयत्न कर रहे हैं |इतनी बड़ी आपदा में न सहने योग्य  जिन्हें जो स्वजन वियोग सहना पड़ा है वो भी हिम्मत करके सहना देश वासियों की बेवशी है | 

      इन सबसे अलग एक ऐसी चोट समाज के मन में लगी है जिसे समाज न कह पा रहा है और न सह पा रहा है | पहले लोग बीमार होते थे तो उनके परिजन उन्हें लेकर अस्पतालों के लिए लेकर इस विश्वास के साथ भाग खड़े होते थे कि हमारे चिकित्सक हमारे भगवान् हैं | हमें यदि वहाँ किसी तरह पहुँच गए तो तो वे अवश्य हमारे स्वजन की रक्षा कर लेंगे | उस भरोसे में चोट लगी है |वैज्ञानिकों से चिकित्सकों ने महामारी या महामारी पीड़ितों के विषय में जब जब जो जो कुछ बोला जनता ने उस पर भरोसा किया किंतु वह सच नहीं निकला !ऐसी गलतियाँ  बार बार होती रही हैं | महामारी जैसे इतने बड़े संकट से समाज को सुरक्षित बचाए रखने के लिए जो तैयारियाँ करके पहले से रखी जानी चाहिए थीं वे नहीं थीं | महामारी के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | जिसके बिना तुरंत की तैयारियों के बलपर इतने वेग से आने वाली महामारी से समाज की सुरक्षा की जानी संभव न थी | समाज इससे भयभीत अवश्य हुआ है | 

   किसी के कोई खरोंच भी मार दे तो लोग उसका बदला लेने के लिए बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ लड़ लेते हैं किंतु चिकित्सकों पर इतना बड़ा भरोसा वो उनके परिजन को स्वस्थ करने के लिए कहीं कुछ भी कितना भी काट दें सब सह जाते हैं ये भरोसा ही तो है | मुश्किल से कमाए गए एक एक पैसे को कितना संजोकर रखते हैं वही धन किसी अस्वस्थ परिजन की चिकित्सा के लिए चिकित्सकों की एक आवाज पर न्योछावर करने को तैयार रहते हैं ये चिकित्सकों वैज्ञानिकों के द्वारा समाज के लिए अभी तक की गई तपस्या  से जीता हुआ विश्वास  ही तो है | मैं सभी को विनम्रता पूर्वक नमन करते हुए क्षमा प्रार्थना के साथ कुछ सुझाव देना चाहता हूँ हो सके तो बड़ा हृदय करके मुझे क्षमा कर देना !

       मैंने भी अपना जीवन समाजहित में न्योछावर करने का निर्णय आज के 40 वर्ष पहले लिया था तब से आज तक प्रकृति के स्वभाव को समझने की तपस्या में लगा हूँ ! जिससे महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के पैदा होने से पूर्व इनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके |

                                                                 प्रारंभ    

  कोरोना महामारी और समयविज्ञान !

      प्रश्न उठता है कि महामारी के कारण बड़ी संख्या में लोग रोगी होते हैं या फिर बड़ी संख्या में लोग रोगी होने और मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं, तो उसे महामारी मान लिया जाता है |ऐसे समय  इतनी अधिक संख्या में लोगों को रोगी न होने देने के लिए प्रयत्न करना चाहिए या महामारी को रोकने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए |  या फिर संक्रमितों को स्वस्थ करने और मरने से बचाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए !ऐसे समय में रोगी होने से बचने या मृत्यु से बचने के लिए मनुष्यों के द्वारा किए जाने योग्य ऐसे क्या कोई प्रभावी उपाय होते हैं जिनसे ऐसा किया जाना संभव हो सकता है| ऐसे गंभीर प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए समयविज्ञान के अतिरिक्त और कोई दूसरा विज्ञान नहीं है |

    प्रकृति और जीवन में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है |प्रकृति का प्रत्येक कार्य उसके अपने समय पर ही होता है |जिस प्रकार से सूर्य चंद्र अपने अपने समय से उगते और अस्त होते हैं सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती हैं | सूर्य चंद्र ग्रहण अपने अपने समय से पड़ते हैं ऐसे ही महामारियाँ भी  अपने अपने समय से ही आती और जाती रहती हैं |

     जिस प्रकार से मनुष्यकृत प्रयत्नों से सूर्य चंद्र को उगने से नहीं रोका जा सकता है ऋतुओं को आने जाने से नहीं रोका जा सकता है सूर्यचंद्र ग्रहणों को घटित होने से नहीं रोका जा सकता है ऐसे ही महामारियों को आने जाने से नहीं रोका जा सकता है | ये तो अपने निर्द्धारित समय पर आएँगी ही | 

      इसीप्रकार से सुख दुःख स्वस्थ अस्वस्थ जन्म मृत्यु आदि घटनाएँ प्रत्येक मनुष्य के जीवन में हमेंशा से घटित होती रही हैं | विशेष बात ये है कि जीवन में घटित होने वाली ऐसी सभी घटनाएँ अपने अपने समय पर ही घटित होती हैं इन्हें रोका जाना या इनका समय आगे पीछे किया जाना मनुष्यों के बश की बात नहीं है | रोग दो प्रकार से होते हैं एक तो पूर्व निर्धारित समय के कारण होते हैं दूसरे आहार बिहार बिगड़ने के कारण होते हैं |आहार बिहार आदि बिगड़ने से होने वाले रोग चिकित्सकीय प्रयासों से दूर हो जाते हैं,किंतु पूर्वनिर्धारित समय से होने वाले रोगों में चिकित्सा की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है |ये अपने पूर्व निर्धारित समय से शुरू होते हैं और अपने निर्धारित समय से ही समाप्त होते हैं | ऐसे रोगों के समाप्त होते समय जो लोग चिकित्सा आदि पहले से करवा रहे होते हैं वे प्राकृतिक रूप से स्वस्थ होकर भी अपने स्वस्थ होने का श्रेय चिकित्सा सहित अपने उन तमाम प्रयासों को देते हैं जो अपने स्वस्थ होने के लिए पहले से करते चले आ रहे होते हैं |

      इसीप्रकार से पूर्व निर्धारित समय के अनुशार कुछ लोगों की मृत्यु का समय समीप आ रहा होता है | उन्हें मृत्युपूर्व कुछ रोग होते हैं, जो  मृत्यु पर्यंत रहते ही हैं | जिनसे मुक्ति मिलनी संभव नहीं होती हैं | ऐसे रोगियों पर अच्छी से अच्छी चिकित्सा का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता है | 

     प्राचीनकाल में वैद्यलोग ऐसे मरणासन्न रोगियों को उनके लक्षणों के आधार पर पहले ही पहचान लिया करते थे | उसलिए उनकी चिकित्सा करने से बचते थे! चूँकि चिकित्साव्रती वैद्यों का उद्देश्य आरोग्यदान होता है शवदान नहीं | इसलिए उनके चिकित्साकाल में रोगी की मृत्यु होने को चिकित्सक अपना अपमान समझते थे इससे उनका अपयश होता था |उन्हें अपनी विद्या पर इतना भरोसा होता था कि हमारी चिकित्सा से रोगी स्वस्थ होगा ही !इसलिए वे अपने यहाँ शवगृह बनाकर भी नहीं रखते थे |उनका मानना था कि चिकित्सालयों में शवालयों का  क्या काम !

       कुल मिलाकर लोग अपने बुरे समय के प्रभाव से लोग दुखी होते हैं !अस्वस्थ होते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते हैं |महामारी आवे तो भी ऐसा होगा और न आवे तो भी ऐसा होगा !ऐसी स्थिति में किसी के दुखी,रोगी या मृत होने के लिए  कोई महामारी कैसे जिम्मेदार हो सकती है | किसी दुखी,रोगी या मृत होने का कारण यदि महामारी होती तो कोई कोई ही क्यों पीड़ित होता उसी क्षेत्र के बाक़ी लोग महामारी के प्रकोप से क्यों बचे रहते !

        वस्तुतः महामारी समयजनित प्रकृति की एक अवस्था है और बीमारी समय जनित समस्त शरीरधारी प्राणियों की एक अवस्था है | महामारी का समय आने पर महामारी होती है और मनुष्य के रोगी होने का समय होने पर मनुष्य रोगी होते हैं | महामारी का आना और मनुष्यों का रोगी होना या मृत्यु होनी ये दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग घटनाएँ होने पर भी कई बार दोनों घटनाएँ अपने अपने समय के अनुशार चलती हुई संयोगवश एक ही समय पर घटित हो जाती हैं | जिस समय महामारी चल रही होती है उसी समय किसी के रोगी होने या मृत्यु  होने का समय आ जाता है |ऐसे समय में यह भ्रम होना स्वाभाविक ही है कि वह व्यक्ति महामारी के कारण अस्वस्थ हुआ है या मृत्यु को प्राप्त हुआ है | उसके अस्वस्थ होने या मृत्यु होने का समय यदि महामारी के समय से आगे या पीछे आता तो भी ये घटनाएँ  घटित हुई होतीं |बिना महामारी के भी तो ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |  

                                                    समयविज्ञान की आवश्यकता

       किसी कंपनी या कारोबार में कर्मचारी को नियुक्त करते समय ही यह जिम्मेदारी सौप दी जाती है कि उसे सप्ताह के किन किन दिनों में कितने कितने बजे क्या क्या काम करना होगा |इसी के आधार पर वह कर्मचारी निर्धारित समय पर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करता रहता है|  

      इस दृष्टि से देखा जाए तो संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति का कारोबार है|इस ब्रह्मांड में छोटे से छोटे कण को जिम्मेदारी मिली हुई है कि उसे कब क्या करना है|वह उसी के अनुशार जिम्मेदारी का निर्वहन करता दिख रहा है |संपूर्ण ब्रह्मांड में हर समय हर जगह कोई न कोई कार्य चला करता है प्रकृति के प्रत्येक कण में प्रतिपल परिवर्तन होते  रहते  हैं|जिन बदलावों से कुछ  कार्य बनते बिगड़ते जा रहे हैं ! घटनाएँ घटित होती जा रही हैं !

     किसी कारोबार में या ब्रह्मांड जो घटनाएँ घटित हो रही हैं उन दोनों  में समय की प्रधानता है| इसीलिए कारोबार में  कौन व्यक्ति कहाँ पर किस प्रकार की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा होगा | इसे पता करने की दो विधाएँ हैं | एक तो प्रत्यक्ष प्रक्रिया है कि उस व्यक्ति को जहाँ तहाँ खोजकर पता लगाया जाए कि वो इस समय  कारोबार में कहाँ क्या कार्य कर रहा है |दूसरी प्रक्रिया यह है कि उसके विषय में समय के अनुशार पता कर लिया जाए  कि वह कर्मचारी आज  इतने बजे कहाँ किस प्रकार की जिम्मेदारी सँभाल रहा होगा !इस प्रक्रिया में न समय लगा न कहीं जाना पड़ा और जानकारी भी पूरी हो गई कि वह व्यक्ति इस समय कहाँ मिलेगा | 

      इस समयग्रंथित प्रक्रिया से संचालित कार्यों के विषय में यह समझना बहुत आसान हो जाता है कि कहाँ कब क्या चल रहा होगा या कौन कब क्या कर रहा होगा ! इसीलिए ट्रेन हो या फ्लाइट हर किसी को पता होता है कि किस तारीख को कितने बजे कहाँ से मिलेगी !कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचेगी ! ऐसी घटनाएँ यदि समय के अनुशार संचालित न हो रही होतीं तो रिक्से वालों की तरह ट्रेनों के विषय में ड्राइवरों के ,प्लेनों के विषय में पायलटों के पास जा जाकर उन्हीं से पूछकर पता करना होता !

     समय के आधार पर संचालित घटनाओं को समय के अनुशार समझने में आसानी होती है कौन कार्यालय या विद्यालय आदि किस दिन खुलेगा और किस दिन बंद रहेगा ! किस समय क्या कार्य हो रहा होगा !विद्यालय में किस कक्षा के किस पीरियड में क्या पढ़ाया जा रहा होगा आदि विषयों को जानने के लिए उन घटनाओं को उनके पास जाकर देखना नहीं पड़ता है|समय के आधार पर ही उनके विषय में संपूर्ण जानकारी न केवल आसानी पूर्वक कर ली जाती है अपितु उसके विषय में महीनों पहले पूर्वानुमान पता होता है | इसीलिए तो महीनों पहले टिकटें बुक कर ली जाती हैं |

     सांसारिक जीवन में होने वाले कार्यों को यदि समय का सहारा लिए बिना संचालित किया जाना कठिनहै,तो संपूर्ण ब्रह्मांड में चलने वाले प्रकृति के कारोबार को समय के संचार का सहारा लिए बिना कैसे चलाया जा सकता है | 

                                      प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय !

         प्रकृति संबंधी घटनाओं को समझने के लिए हमें प्रकृति के स्वभाव और कार्यशैली को समझना होगा !उसी के अनुशार उनके विषय में अन्य जानकारियाँ जुटानी होंगी ! ये सभी को पता है कि प्रकृति में समय का बहुत महत्व है | इसीलिए सभी प्राकृतिक घटनाएँ अपने अपने समय पर ही घटित होती हैं |  

    सूर्य चंद्र अपने अपने समय से उगते और समय पर ही अस्त होते हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती हैं |अपने निर्धारित समय तक ही रहती हैं |सूर्य चंद्र ग्रहण अपने अपने समय से पड़ते हैं |सभी प्राकृतिक घटनाओं का आपसी अंतराल अलग अलग या कम ज्यादा हो सकता है किंतु घटित होने समय सबका निर्धारित है | 

     जिस प्रकार से सबेरा हो गया है या नहीं ! ये पता करने के लिए सूर्योदय को देखे बिना भी केवल समय के आधार पर पता किया जा सकता है|ऐसे ही सूर्यास्त के विषय में पता कर लिया जाता है|सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के विषय में के आने जाने के विषय में पहले से पता लगा लिया जाता है | किस ऋतु के बाद कौन ऋतु आएगी और वो कितने समय तक रहेगी !ये सब समय के आधार पर आगे से आगे पता लगा लिया जाता है |  सूर्य चंद्र ग्रहण कब कब घटित होंगे !कितने कितने समय के होंगे आदि समय की गणना के अनुशार ही पता किया  जाता  है |

       कुछ प्राकृतिक घटनाओं के घटित  होने के लिए जिम्मेदार कुछ दूसरे प्राकृतिक कारण होते हैं | उनमें भी कार्य कारण भाव से समय की ही प्रधानता देखी जाती है वे भी समय के अनुशार ही घटित होती हैं | कमल कब खिलेगा ! कमल खिलने की घटना सूर्योदय के अनुशार घटित होती है |इसलिए के विषय में पता करने के लिए सूर्योदय कब होगा ये पता करना होगा और सूर्योदय कब होगा यह उसके उगने के समय के अनुशार निर्धारित होगा ! 

    जिस प्रकार से कमल खिलने का कारण सूर्य है तो सूर्य के विषय में समय संबंधी अनुसंधान करके कमल के खिलने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | उसी प्रकार से मौसम संबंधी सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण यदि सूर्य ही है तो सूर्य के विषय में समय संबंधी गणना करके भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ तापमान बढ़ने घटने आदि के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 

       इसी प्रकार से महामारी पैदा होने का कारण मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ हैं और प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण सूर्य है तो समय के आधार पर सूर्यसंचार के विषय में अनुसंधान करके मौसम के विषय में अनुसंधान पूर्वानुमान अदि लगा सकते हैं और उसी के आधार पर महामारी पैदा तथा समाप्त होने के विषय में या उसकी लहरों के आने जाने के विषय में अनुसंधान पूर्वानुमान अदि लगाया जा सकता है |

      महामारियों का संबंध मौसम से है और मौसम का संबंध सूर्य से है और सूर्य का संबंध समय से है | समय को न रोका जा सकता है और न उसकी गति को घटाया बढ़ाया जा सकता है इसीलिए सूर्य को रोका नहीं जा सकता और न सूर्य की ही गति को  घटाया बढ़ाया जा सकता है |सूर्य से संबंधित होने के कारण  मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं में भी परिवर्तन किया जाना संभव नहीं है |(पृष्ठ देखिए ) इसीलिए महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जाना संभव नहीं है | महामारियाँ भी  अपने अपने समय पर ही आती और जाती हैं अपने समय तक ही रहती हैं |

                                  समयगणना के बिना अनुसंधानों में होता है भटकाव !

    सूर्य प्रातः काल उगता है तब उसमें न उतना अधिक तेज होता हैं और न ही उतना अधिक ताप !किंतु समय के साथ साथ सूर्य का ताप और प्रकाश दोपहर तक बढ़ता जाता है उसके बाद कम होना शुरू होता है और शाम तक पहुँचते पहुँचते न उतना प्रकाश रह जाता है और न ही उतना ताप धीरे धीरे सूर्यास्त हो जाता है |

       सूर्योदय के समय यदि कोई आग जलाकर बैठ जाए और दोपहर तक आग जलाए बैठा रहे, तो उसे ऐसा भ्रम हो सकता है कि जब मैंने आग जलाना शुरू किया था तब तो सूर्य में न इतना प्रकाश था और न ही गर्मी, किंतु मैं जैसे जैसे आग जलाता जा रहा हूँ वैसे वैसे सूर्य का प्रकाश और गर्मी बढ़ती जा रही है | इसका मतलब हमारे आग जलाने के कारण ही सूर्य का प्रकाश और ताप बढ़ता जा रहा है |ये बहुत बढ़ चुका है इसलिए आग जलाना बंद कर देता हूँ | ऐसा कहकर यदि वो आग जलाना बंद कर देता है | उधर दोपहर बाद सूर्य ढलने लगता है तो उसका प्रकाश और ताप स्वतः कम होने लगता है | इससे आग जलाने वाले का यह भ्रम और मजबूत हो जाएगा कि सूर्य का ताप और प्रकाश बढ़ने और घटने का कारण मेरा आग जलाना और न जलाना ही है | वैज्ञानिकअनुसंधान अनेकों प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों में ऐसे भ्रमों का शिकार होकर विज्ञान के नाम पर कुछ ऐसे गलत तथ्य ढोए जा रहे हैं | जिनका उन घटनाओं से कोई संबंध ही नहीं होता है बाद में वे गलत निकल जाते हैं (देखिए पृष्ठ मौसम घटनाएँ  .... ) 

     ऐसे भ्रम तब टूटते हैं जब ऐसी धारणाओं के विरुद्ध घटनाएँ घटित होने लगती हैं | इस उदाहरण में आग जलाने वाले व्यक्ति ने जिस दिन यह पता लगाने का प्रयत्न किया कि देखें सुबह से दोपहर तक हमारे आग जलाने से यदि सूर्य का प्रकाश और ताप इतना अधिक बढ़ जाता है तो शाम तक ऐसा करने पर यह प्रकाश और ताप कितना अधिक बढ़ सकता है |यह समझकर वह दिनभर के लिए आग जलाने बैठ जाता है किंतु तब भी दोपहर बाद सूर्य  ढलने लगते हैं जिससे उनका प्रकाश और ताप उसी प्रकार से कम होता चला जाता है और धीरे धीरे सूर्यास्त हो जाता है |  इतना सब होने के बाद तब वह भ्रम टूट पाता है | आग जलाने में जो परिश्रम लगा ,जो लकड़ियाँ लगीं और जो समय लगा ! वो सब निरर्थक था ये बाद में पता लग पाया ! 

   कुल मिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर कुछ ऐसे गलत तथ्य गढ़ लेने से परिश्रम पैसा और समय का नुक्सान भुगतना पड़ता है | इससे केवल समय पास होता जाता है भविष्य केलिए मिलता कुछ नहीं है | ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान यदि समयविज्ञान की दृष्टि से किए जाएँ तो जो तथ्य मिलेंगे वे वास्तविक होंगे और भविष्य के लिए लाभप्रद होंगे !

      उद्धृत उदाहरण में बिल्कुल अँधेरे कमरे में बैठकर सूर्य को किसी भी प्रकार से देखे बिना या उसकी प्रत्यक्ष अवस्था को जाने बिना केवल समयसंबंधी गणना करके सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का पता लगाया जा सकता है सूर्य का प्रकाश और ताप कितने समय किस प्रकार का होगा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है | इसी गणना के आधार पर तो आज के हजारों वर्ष पहले के विषय में यह पता लगा लिया जाता है कि इतने इतने बड़े सूर्य चंद्र पृथ्वी कब कितनी देर के लिए एक सीध में आएँगे !यह इतना बड़ा कार्य उपग्रहों रडारों आदि प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा किया जाना कैसे भी संभव नहीं है | 

                                   महामारी का संक्रमण बढ़ने घटने का भी होता है समय !    

     सूर्य के प्रभाव से ऋतुएँ पैदा होती हैं| इसीलिए सूर्य की तरह ही उनका भी समय क्रम अवधि आदि निश्चित होती है|जैसे वर्षाऋतु  में वर्षा कभी कम तो कभी अधिक होती है|ऐसे ही सर्दी गर्मी आदि ऋतुओं में भी ऋतुप्रभाव की लहरें आती जाती रहती हैं | जिससे ऋतुओं का प्रभाव कुछ दिनों में कम तथा कुछ दिनों में अधिक होता है | उसका भी निश्चितसमय होता है |

     ऐसे ही महामारी भी सूर्य के प्रभाव से पैदा हुई प्राकृतिक घटना है |ऋतुओं की तरह ही इसका भी निर्द्धारित समय होता है |जिसे महामारी की ऋतु माना जा सकता है |जैसे ऋतुओं में उनका प्रभाव कुछ दिन घटा एवं कुछ दिन बढ़ा करता है ,वैसे ही महामारीकाल में महामारी का प्रभाव कुछ दिन कम तथा कुछ दिन अधिक हुआ करता है | जिसे महामारी की लहरें कहा जा सकता है | इन लहरों के आने और जाने का भी निश्चित समय होता है| जिसके विषय में मैं पीएमओ की मेल पर आगे से आगे पूर्वानुमान भेजता रहा हूँ |

                      कोरोनाविवरण :30 जनवरी 2020  से  30 जनवरी 2024 तक

     30 जनवरी 2020 को कोरोनामहामारी के भारत में शुरू होने की पुष्टि हुई थी। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा 7 फरवरी 2024 तक 3,37,66,707 मामलों की भारत में पुष्टि की गई है | जिसमें 4,48,339 लोगों की मृत्यु हुई है।इस संपूर्ण समय में महामारी संक्रमितों की संख्या कई बार बढ़ती घटती रही है |जिसमें कुछ उतार चढ़ाव हल्के एवं कुछ बड़े देखे जाते रहे हैं |जो बड़े रहे हैं उन्हें लहरों के रूप में चिन्हित किया गया है | 


     30 जनवरी 2020 को भारत के केरल राज्य में कोविड-19 का पहला मामला दर्ज किया गया था !वहाँ से शुरू होकर अप्रैल तक कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ी थी |मई प्रारंभ से संक्रमण की गति धीमी हुई थी और संक्रमित स्वतः स्वस्थ होने लगे थे |जिससे मई जून जुलाई तक संक्रमितों  की संख्या दिनोंदिन कम कम होते चली गई थी |

                                                            पहली लहर

15 अगस्त 2020 से 17 जनवरी 2021 तक चली थी । इसका पीक 18 सितंबर 2020 को आया था | इस दिन संक्रमितों की संख्या             थी |                   

                                                           दूसरी लहर

     13 मार्च 2021 से 19 जून 2021 तक दूसरी लहर चली थी। इसका पीक 6 मई 2021 को आया था  !इस दिन संक्रमितों की संख्या             थी |16 नवंबर 2021 को, भारत ने 287 दिनों में कोरोना वायरस के मामलों की सबसे कम संख्या दर्ज की।

                                                        तीसरीलहर 

27 दिसंबर 2021 से कोरोना की तीसरी लहर शुरू हुई थी| 21 जनवरी 2022 को सर्वाधिक मामले 3,47,245 सामने आए थे |उसके बाद कम होने शुरू हो गए थे |21 मार्च को बहुत कम रह गए थे    

                                                      चौथीलहर :

  टीकाकरण :भारत में   टीकाकरण कार्यक्रम 16 जनवरी, 2021 से शुरू हुआ था ।  

                               कोरोनामहामारी को पहचानने में इतना संशय क्यों ?


                             

          कोरोना इंडेक्स -


       इसमें भारत में
कोरोना महामारी के समय ही देखा जाए तो 6 मई 2020 के बाद जून जुलाई तक बिना किसी प्रयास के महामारी संक्रमित रोगी जिस अनुपात में स्वतः स्वस्थ होते जा रहे थे|उसी अनुपात में किसी औषधि आदि के ट्रॉयल में सम्मिलित लोग भी स्वस्थ होते जा रहे थे| यद्यपि समय प्रभाव से स्वस्थ दोनों प्रकार के लोग हो रहे थे किंतु  वैक्सीन ट्रॉयल में लगे लोगों ने ट्रॉयल में सम्मिलित संक्रमितों को स्वस्थ होते देखकर अति उत्साह में अपनी अपनी वैक्सीनों को सफल मान लिया और वैक्सीन बना लेने के बड़े बड़े दावे करने लगे !

 दावे --------------------------



 समय प्रभाव से 1 जुलाई 2020 से जैसे ही संक्रमण पुनः बढ़ने लगा वैसे ही वैक्सीन बना लेने के दावे करने वाले लोग शांत होते चले गए !

    प्लाज्मा ट्रायल में सफलता के दावे -

 

 अनुमानों में इतना विरोधाभास क्यों ?

 पूर्वानुमानों में इतना विरोधाभास क्यों ?




                                        समयज्ञान के बिना कैसा महामारी विज्ञान   

    उपग्रहों रडारों से तो केवल वर्तमान में घटित हो रही घटनाएँ ही देखी  जा सकती हैं भविष्य की नहीं | इससे न तो उन घटनाओं का स्वभाव समझा जाना संभव है और न ही उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना  ही संभव है | इसीलिए उपग्रहों रडारों से देखकर न तो सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही  ट्रेनों ,प्लेनों आदि के आने जाने या किसी स्टेशन विशेष से छूटने या पहुँचने के विषय में उपग्रहों रडारों से देखकर  कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं | ऐसे ही उपग्रहों रडारों से देखकर भविष्य में घटित होने वाले आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ आदि के विषय में कोई सही अनुमान पूर्वानुमान आदि  सकते हैं | धरती को देखकर या उसमें गहरे गहरे गड्ढे खोदकर उन्हें अंदर तक देखकर भी भूकंपों के घटित होने के विषय में कोई सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है | 

     इसी प्रकार से कोरोना जैसी महामारियों के आने जाने घटने बढ़ने के विषय में संक्रमितों को देखकर या उनकी संख्या देखकर कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाए जा सकते हैं | (पृष्ठ संख्या पर पढ़िए -)

    








                                       महामारी और उसकी लहरों का समय निश्चित था !

 महामारी का पैदा होना या समाप्त होना सबकुछ प्राकृतिक रूप से ही होता है | महामारी की लहरों के आने जाने की प्रक्रिया भी प्राकृतिक रूप से ही संचालित होती है !महामारी में किसे संक्रमित होना है और किसे नहीं यह भी प्राकृतिक रूप से ही निश्चित होता है | महामारी के समय किसकी मृत्यु होनी है और किसकी नहीं यह भी प्रकृति के अनुशार ही संचालित होता है |


  प्रकृति के इतने बड़े कारोबार को सँभालने वाला चाहिए था कौन संचालित करे ! कौन किससे पूछे और कौन किसे बतावे कि  किसे कब क्या करना है !यह सब कुछ व्यवस्थित करने में प्रकृति का बहुत समय और  और बहुत ऊर्जा बर्बाद हो जाती ! इसलिए प्रकृति ने प्रत्येक कार्य या घटना को जन्म देते समय ही पैदा करते समय ही उसके घटित होने ने बड़े  प्रकृति का हर कार्य समय के अनुशार संचालित होता है

     सूर्य चंद्र अपने अपने समय से उगते और अस्त होते हैं सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती हैं | सूर्य चंद्र ग्रहण अपने अपने समय से पड़ते हैं ऐसे ही महामारियाँ भी  अपने अपने समय से ही आती और जाती रहती हैं |

     जिस प्रकार से मनुष्यकृत प्रयत्नों से सूर्य चंद्र को उगने से नहीं रोका जा सकता है ऋतुओं को आने जाने से नहीं रोका जा सकता है सूर्यचंद्र ग्रहणों को घटित होने से नहीं रोका जा सकता है ऐसे ही महामारियों को आने जाने से नहीं रोका जा सकता है | ये तो अपने निर्द्धारित समय पर आएँगी ही |

      25 अप्रैल 2020 से लगभग 30 जून 2020 के बीच का समय प्राकृतिक रूप से कोरोना संक्रमण को कमजोर करने वाला था ! इसलिए इस समय बिना किसी औषधि के कोरोना संक्रमित लोग रोगमुक्त होकर स्वस्थ होते जा रहे थे |

     इस अवधि में समय प्रभाव से लोग अचानक कोरोना संक्रमण से मुक्त होकर स्वतः स्वस्थ होने लगे |यह प्राकृतिक सुधार वैक्सीन ट्रॉयल में सम्मिलित रोगियों में दिखने लगा !इसलिए वैक्सीन बनाने वालों ने अपने वैक्सीन ट्रॉयल को सफल मान लिया और प्लाज्मा ट्रॉयल में सम्मिलित रोगियों में सुधार देखकर प्लाज्माथैरेपी के ट्रॉयल को सफल मान लिया गया !जबकि इसी अनुपात में सुधार उन रोगियों में भी होता रहा जो किसी ट्रायल में सम्मिलित नहीं थे |

 ली कोई औषधि न तो तैयार थी और न ही खोजी जा सकी थी | ऐसी किसी औषधि का प्रयोग किए बिना केवल समय के प्रभाव से कोरोना संक्रमितों में प्राकृतिक रूप से सुधार होने लगा |

 

 

महामारी की किसी लहर के समाप्त होते समय परीक्षण के लिए रोगियों को जो औषधियाँ दी जाती रहीं उनका ट्रॉयल सफल मान लिया जाता रहा और महामारी की किसी लहर के बढ़ते समय जिन औषधियों का प्रयोग 

सर्दी गरमी वर्षा आदि प्रमुख  महामारियों के पैदा होने का कारण समय होता है

 

 

 

उस समय वैक्सीन सफलता के दावे दिनोंदिन ठंढे पड़ने लगे थे | कुछ लोगों ने तो वैक्सीन बनाने का काम रोक भी दिया था | 19 सितंबर 2020 के बाद फरवरी 2021 तक संक्रमितों की संख्या दिनों दिन घटती जा रही थी,उस समय बहुतों ने अपने अपने औषधीय ट्रॉयलों को सफल मान लिया |का कारण क्या है

 प्राकृतिक रूप से

      इसमें महामारी बढ़ने घटने के कारण प्राकृतिक रहे हैं | 

    ऐसे ही       कोरोना महामारी के समय ही देखा जाए तो 6 मई 2020 के बाद जून जुलाई तक बिना किसी विशेष प्रयास के महामारी संक्रमित रोगी जिस अनुपात में स्वतः स्वस्थ होते जा रहे थे|उसी अनुपात में किसी औषधि आदि के ट्रॉयल में सम्मिलित लोग भी स्वस्थ होते जा रहे थे| जिन्हें देखकर बहुत लोगों ने अति उत्साह में अपनी अपनी वैक्सीनों को न केवल सफल मान लिया अपितु वैक्सीन बना लेने के बड़े बड़े दावे किए जाने लगे !  

      इसमें विशेष बात ये है कि दोनोंप्रकार के लोग जब एक ही अनुपात में स्वस्थ होते जा रहे थे तो ये अंतर कैसे किया जाएगा कि वैक्सीनट्रॉयल में सम्मिलित हुए लोगों के स्वस्थ होने में अन्य लोगों की अपेक्षा कुछ विशेषता रही है | जो प्राकृतिक रूप से स्वस्थ होने वालों में नहीं रही है | यदि दोनोंप्रकार के लोग एक जैसे ही स्वस्थ हुए हैं तो किसी एक वर्ग के स्वस्थ होने का श्रेय किसी औषधि के प्रयोग को नहीं दिया जा सकता है | दोनों प्रकार के स्वस्थ हुए लोगों को प्राकृतिक रूप से ही स्वस्थ हुआ माना जाएगा |

        8अगस्त 2020 के बाद जब संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने लगी ! संक्रमण बढ़ने की इस प्रक्रिया में सभी लोग संक्रमित होते जा रहे थे |18 सितंबर 2020 तक यह संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था ! उस समय वैक्सीन सफलता के दावे दिनोंदिन ठंढे पड़ने लगे थे | कुछ लोगों ने तो वैक्सीन बनाने का काम रोक भी दिया था | 19 सितंबर 2020 के बाद फरवरी 2021 तक संक्रमितों की संख्या दिनों दिन घटती जा रही थी,उस समय बहुतों ने अपने अपने औषधीय ट्रॉयलों को सफल मान लिया |
       इसमें  विशेष ध्यान देने वाली बात ये है कि जब महामारीजनित संक्रमण प्राकृतिक रूप से जब काम होने लगता था तभी वैक्सीन ट्रॉयल क्यों सफल होते देखे जाते थे |आखिर जो वैक्सीन ट्रॉयल मई 2020 से जुलाई 2020 तक  सफल होते देखे जा रहे थे उन्हीं में ऐसा क्या हो गया कि अगस्त 2020 से 18 सितंबर 2020 के बीच वैसी सफलता न मिलने का कारण क्या है ?  

___________________________________________________________________________

 रोगी होने या मृत्यु होने के लिए महामारी होना जरूरी नहीं है !

  जिस प्रकार से सूर्य और चंद्र के उदय या अस्त होने को नहीं रोका जा सकता है | सूर्यचंद्र ग्रहणों को नहीं रोका जा सकता है | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ आदि को घटित होने से रोका जाना संभव नहीं है | ऐसे ही महामारी को नहीं रोका जा सकता है | लोगों को संक्रमित होकर रोगी होने से नहीं रोका जा सकता है और महामारी के समय हो रही मौतों को रोका जाना संभव नहीं होता है | 

     महामारी से संक्रमित होने वाले लोगों की समयजनितलिस्ट में जिसका नाम नहीं होता है वो संक्रमित होता भी नहीं है | ऐसे लोग कोरोना नियमों का पालन किए बिना संक्रमितों के पास रहते सोते जागते खाते पीते रहने पर भी संक्रमित नहीं होते हैं | जिनका नाम कोरोना संक्रमितों की समयजनितलिस्ट में है उन्होंने कितने भी कोरोना नियमों का पालन किया फिर भी उन्हें संक्रमित होने से रोका नहीं जा सका | महामारी के समय भी मृत्यु उन्हीं की होती है जिनकी अपनी आयु पूरी हो चुकी होती है | प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का समय और स्थान पूर्व निर्धारित होता है उसी समय उसकी मृत्यु होती है | समय से पहले ऐसे आयुवान लोग बाढ़ में बहकर,अग्निज्वाला में फँसकर, मकानों के मलबे में दबकर,किसी ऐसी बड़ी दुर्घटना का शिकार होकर जिसमें बहुत सारे लोग घायल हुए या मृत्यु को प्राप्त हुए हों वहाँ से भी वे आयुबल से जीवित बच निकलते हैं | यदि वह समय उनके रोगी होने का नहीं है तो उन्हें बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं में फँसकर भी खरोंच तक नहीं आती है | इसलिए किसी के अपने संक्रमित होने या मृत्यु होने लायक समय के आए बिना किसी का संक्रमित होना या किसी की मृत्यु होना संभव ही नहीं है |


 महामारी और पूर्वानुमान                                                    


                                रोग और मृत्यु को टाला जाना संभव है क्या ?    

     जिन रोगों के होने का कारण मनुष्यकृत आहार निद्रा संयम आदि में असंतुलन हो ! उसे तो औषधियों की मदद से संतुलित किया जा सकता है किंतु जिस रोग के होने में मनुष्यकृत कारण न हों, ऐसे समय प्रभाव से होने वाले रोग अपने अपने समय से पैदा होते बढ़ते घटते और समाप्त होते हैं |इनपर चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ता है |ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जो प्रयत्न किए जाते हैं उनका प्रभाव कम प्रदर्शन अधिक होता है |

    वस्तुतः जीवों का रोगी या होना स्वस्थ होना ,पैदा होना या मृत्यु होना आदि तो हमेंशा से होता चला आ रहा है| ये सबकुछ तो प्रकृति विधान के अंतर्गत आता है | इसीलिए ऐसा कोई दिन नहीं बीतता है ,जिस दिन किसी का जन्म या किसी की मृत्यु न होती हो! जिसप्रकार से जन्मदर बढ़ती घटती रहती है उसीप्रकार से मृत्युदर भी कभी कम तो कभी अधिक होती रहती है |प्रत्येक व्यक्ति के जन्म और मृत्यु होने का कारण उसका अपना भाग्य पुण्य प्रारब्ध और समय आदि होता है | किसी की मृत्यु का समय उसके जन्म  समय के अनुशार निर्धारित होता है | 

   बड़ी से बड़ी दुर्घटना घटित होने के बाद उससे भी कुछ लोग जीवित बच निकलते हैं |ऐसा सभी आपदाओं या दर्घटनाओं में होते देखा जाता है | भूकंपों में किसी मकान के मलबे में दबे लोग कई कई दिन बाद जीवित निकलते देखे जाते हैं | ऐसा अन्य प्राकृतिक आपदाओं में भी होते देखा जाता है |इसका कारण किसी भी व्यक्ति की मृत्यु उसके निर्धारित समय से  पहले न होना है | 

    गरीबों मजदूरों आदि को धनी लोगों की तरह न पौष्टिक खाना मिलपाता हैं न औषधियाँ और न चिकित्सा वे कोरोना नियमों का पालन भी नहीं कर पाए !फिर भी वे उन साधन संपन्न धनी लोगों की अपेक्षा अधिक सुरक्षित रह सके |महामारी काल में सक्षम वर्ग सबसे अधिक पीड़ित हुआ है | मृतकों की संख्या भी उस वर्ग की अधिक है | चिकित्सा से मृत्यु को टालना संभव होता तब तो उस वर्ग को अधिक सुरक्षित रहना चाहिए था ,जबकि ऐसा नहीं हुआ |

     इससे  प्राकृतिक संविधान की वह सच्चाई प्रमाणित भी होती है कि  समय से पहले किसी की मृत्यु नहीं होती है और समय आ जाने पर कोई जीवित नहीं बच पाता है |ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का कारण यदि समय ही है तो लोगों की मृत्यु में उन दुर्घटनाओं की क्या भूमिका है जिनके घटित होने के साथ साथ बहुत लोगों की मृत्यु भी हो जाती है | उनकी मृत्यु का कारण उन दुर्घटनाओं को माना जाए या उनके समय को !दुर्घटनाओं का बश चलता तो जितने लोग उनकी चपेट में आते उनमें से कोई बचता ही नहीं ,किंतु  ऐसी दुर्घटनाओं का शिकार  होकर भी उनमें से जो लोग जीवित बच निकलते हैं उसका कारण उनके अपने प्रयास या किसी अन्य के द्वारा किए गए मनुष्यकृत प्रयास तो नहीं होते हैं उनका सुरक्षित बच निकलना इस बात को प्रमाणित करता है कि समय से पहले किसी की मृत्यु नहीं होती है |

      इसीप्रकार से चिकित्सकों के प्रयत्नों से यदि किसी की मृत्यु को टाला जाना संभव होता या चिकित्सकों को ऐसा कर लेने पर भरोसा होता तो वे अस्पतालों में न तो शवगृह बनवाते और न ही अस्पतालों में किसी रोगी की मृत्यु होते देखी जाती | अस्पतालों में गहन चिकित्सा का लाभ लेकर भी रोगियों की मृत्यु होना इस बात को प्रमाणित करता है कि किसी की मृत्यु का समय आ जाने पर उसे बचाया नहीं जा सकता है | यही कारण है कि बड़े बड़े विद्वान चिकित्सकों में से भी कोई अमर नहीं रह पाया |

     दुर्घटनाओं को किसी की मृत्यु का कारण मानना इसलिए भी तर्कसंगत  नहीं होगा,क्योंकि बहुत लोग नहाते धोते खाते पीते पूजा करते नाचते गाते मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं |इनमें से बहुत लोग उम्र में युवा एवं शरीर में हृष्ट पुष्ट  थे इसके बाद भी समय अपनी मृत्यु का समय आने पर मृत्यु को प्राप्त हुए |इससे यह भी  है कि किसी की मृत्यु होने का कारण दुर्घटनाएँ तो नहीं ही होती हैं ! बुढ़ापा ,कमजोरी या रोगी होना भी मृत्यु के लिए   आवश्यक नहीं होता है | 

     अचानक घटित होती दिखने वाली दुर्घटनाएँ भी न तो अचानक होती हैं और न ही स्वयं नहीं घटित होती हैं | उनके घटित होने का कारण भी समय ही होता है |दुर्घटनाओं के कारण भी समय प्रेरित ही होते हैं |भूकंप में गिरने वाले किसी घर के मलबे में दबकर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई होती है | उसमें न भूकंप अचानक आया होता है और न घर अचानक गिरा होता है और न उस व्यक्ति की मृत्यु ही अचानक हुई होती है | भूकंप अपने समय से आया होता है | मकान अपने समय से गिरा होता है क्योंकि जिस समय बनना प्रारंभ होता है उसी समय विंदु के आधार पर उस मकान का नष्ट होना निश्चित होता है | इसलिए वो मकान अपने उसी समय पर नष्ट होता है |इसीलिए तो भूकंप से प्रभावित होने वाले सभी मकान तो नहीं गिरते हैं  !गिरता वही है जिसका अपना गिरने का समय आ जाता है |ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का समय उसके जन्म के समय ही निश्चित हो जाता है| इसलिए मकान के मलबे में दबे बहुत लोगों में मरते वही हैं जिनकी मृत्यु का समय आ जाता है | ऐसी आकस्मिक घटित होती दिखने वाली दुर्घटनाओं में आकस्मिक कुछ नहीं होता है | ये सब कुछ प्रकृतिप्रायोजित होता है |

     कई बार किसी प्लेन के पायलट की अचानक हार्ट अटैक होकर मृत्यु हो जाए इससे प्लेन किसी दुर्घटना का शिकार हो जाए और उसमें सवार सभी यात्रियों की मृत्यु हो जाए ,तो इसमें सबकुछ अचानक होता लगता अवश्य है ,किंतु कुछ भी अचानक न होकर सबकुछ पूर्व निर्धारित एवं प्रकृतिप्रायोजित होता है |ऐसे विमानों में बैठने का अवसर उन्हें ही मिलता है जो न केवल अपनी आयु पूरी कर चुके होते हैं ,प्रत्युत उनकी मृत्यु उस समय पर पृथ्वी से उतनी उँचाई पर होनी निश्चित होती है |  

     ऐसी परिस्थिति में किसी की मृत्यु का कारण उसके अपने मृत्यु के समय को मानने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प बचता भी नहीं  है | समय के संचार को समझे बिना मृत्यु के रहस्य को समझा जाना संभव नहीं है | 

                                  कितनी संभव है चिकित्सा से महामारी पीड़ितों की मदद !

       महामारी में गरीब मजदूर आदि संसाधन विहीन लोगों में से कुछ लोग यदि संक्रमित हो जाते हैं | तो ये सोचकर संतोष कर लेते हैं हैं कि हमारा कोई पारिवारिक चिकित्सक नहीं है | हमारे बचपन से कोई स्वास्थ्य सुरक्षक टीके नहीं लगे हैं | टॉनिक,विटामिन ,घी, दूध, मेवा आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन नहीं किया है |पेटभर भोजन मिलना भी मुश्किल रहा है | संसाधनों के अभाव में महामारी के समय कोरोना नियमों का पालन किया जाना संभव नहीं था | जहाँ जो कुछ जिसने जैसे हाथों से दिया वो खा लेना हमारी विवशता रही है |कई जगह  संक्रमितों के बीच रहना सोना जागना खाना पीना भी पड़ा है | प्रदूषित स्थानों में रहना पड़ा है | किसी औषधि या वैक्सीन आदि को भी नहीं ले पाए हैं | संभव है कि उसकारण  हम संसाधन विहीन लोगों में से कुछ लोग  संक्रमित हो गए हों | हमलोगों के पास स्वास्थ्य सुरक्षक अच्छे साधन होते तो शायद बचाव हो जाता |

      दूसरे वे लोग जो सारे संसाधनों से युक्त थे जिनका जन्म भी चिकित्सकों के हाथ में होता है और  मृत्यु भी चिकित्सकों की गोद (वेंटिलेटर) में होती प्रायः देखी जाती है | ऐसे साधन संपन्न लोग अपना सारा जीवन चिकित्सकों की सलाह के अनुशार जीते हैं | खाना पीना रहन सहन आदि सब कुछ स्वास्थ्य के अनुकूल अपनाते हैं| वातानुकूलित सुख सुविधा संपन्न जीवन जीते रहे | कोरोना नियमों का पूर्ण पालन करते रहे ,बड़े बड़े चिकित्सकों से सलाह लेते और उसके अनुशार चलते रहे | कुछ लोगों ने तो अस्पतालों में अपने लिए निरंतर कमरे बुक करवाकर रखे कि न जाने कब संक्रमित होकर अस्पताल आना पड़े |उन्हें अपने संसाधनों पर भरोसा था कि हमें तो चिकित्सा वैज्ञानिक सुरक्षित बचा ही लेंगे |  इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्हें न संक्रमित होने से बचाया जा सका और न ही मृत्यु को टालना संभव हो पाया !इसीलिए उनमें से भी बहुत लोग संक्रमित होते देखे गए | अनुमान तो ऐसा भी है साधन विहीन गरीब वर्ग के लोगों की अपेक्षा साधन संपन्न लोग अधिक संक्रमित हुए हैं | 

    महामारी के समय जनहितकारिणी सरकारें पूरी ईमानदारी से जनता को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करती हैं |सुख सुविधा  के साधन प्रदान करती हैं | खाद्यपदार्थ उपलब्ध करवाती हैं |समाज को चिकित्सकीय मदद प्रदान करने के लिए वे भी चिकित्सावैज्ञानिकों पर ही निर्भर होती हैं | समाज भी बड़ी आशा से चिकित्सावैज्ञानिकों की ओर देख रहा होता है | चिकित्सक भी समाज की सुरक्षा के लिए पूर्ण प्रयत्न करते हैं | इस सबके बाद निराशा तब होती है जब पूर्ण पथ्य परहेज का पालन करने वाले विद्वान चिकित्सकों को भी संक्रमित होते एवं मृत्यु को प्राप्त होते देखा जाता है | 

     ऐसी परिस्थिति में महामारी के समय चिकित्सकीय संसाधनों के बलपर सुरक्षित रहने की कितनी आशा की जा सकती है इसका निर्णय किया जाना आसान इसलिए नहीं है कि बहुत लोग टीका लगवाने के बाद भी बार बार संक्रमित होते देखे गए,तो बड़ी संख्या में  वे लोग भी हैं जिन्होंने एक भी टीका नहीं लगवाया फिर भी सुरक्षित बने रहे | 

      प्राचीन काल में यदि मान लिया जाए कि वर्तमान समय की तरह चिकित्सा विज्ञान इतना उन्नत नहीं था ! चिकित्सा में सहायक ऐसी मशीनें भी नहीं थीं न ऐसे यातायात के साधन ही थे |न दूरसंचारकी ऐसी व्यवस्था ही थी !वैक्सीन आदि बनाने का प्रचलन नहीं था | महामारियाँ तब भी आती थीं |  लोग तब भी संक्रमित होते होंगे कुछ लोग तब भी मृत्यु को प्राप्त होते होंगे और वर्तमान कोरोना महामारी में भी बहुत लोग संक्रमित हुए हैं मृतकों  की संख्या भी कम नहीं रही है |ऐसी स्थिति में महामारी से निपटने की प्रक्रिया जैसी पहले थी यदि वैसी ही अभी भी है तो इतने सक्षम आधुनिक  विज्ञान से हम ऐसा क्या विशेष लाभ ले पाए जो आधुनिक विज्ञान के बिना संभव न था और यदि विज्ञान ने इतनी अधिक उन्नति न की होती तो महामारी काल में जनधन की हानि इस इस प्रकार से और अधिक हो सकती थी |ऐसा कुछ तर्कसंगत ढंग से कहा जाना क्या संभव है | 

     इसलिए यह सोचना तो आवश्यक है कि महामारी जैसी आपदाओं  के समय मनुष्यकृत प्रयासों से कुछ सुरक्षा मिल भी सकती है या नहीं !कहीं ऐसा तो नहीं है कि जो लोग महामारी में संक्रमित होने से जीवित बचे हैं | वे बिना किसी चिकित्सकीय प्रयास के प्राकृतिक रूप से ही सुरक्षित बचे हैं |उनके द्वारा किए गए चिकित्सकीय प्रयास का परिणाम न होकर महामारी की कृपा के भरोसे ही जीवित रह रहा हो | ऐसी स्थिति में यह पता लगाया जाना बहुत आवश्यक है कि महामारी जैसी आपदाओं के समय मनुष्यों को अपनी सुरक्षा के लिए किस पर भरोसा करना चाहिए या फिर महामारी पर भरोसा करके अपने को भाग्य या भगवान् के भरोसे छोड़ देना चाहिए | 

                                                 महामारी की महौषधि !(वैक्सीन)

    महामारी में बहुत बड़ी संख्या में लोग अचानक संक्रमित हो जाते हैं | उन सभी को चिकित्सा उपलब्ध करा पाना अचानक संभव नहीं हो पाता है | रोग का परीक्षण करके लाभप्रद औषधि का निर्णय किया जाना,इतनी बृहदमात्रा में औषधि निर्माण करके जन जन तक पहुँचाने में उतना समय लग जाता है जितने समय में महामारी स्वतः समाप्त होने लगती है |ऐसी स्थिति में बहुसंख्य लोगों के संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त हो जाने के बाद कोई औषधि तैयार की जा पाती है | उस समय महामारी स्वतः समापत हो जाने के कारण महामारी पर उस औषधि के प्रभाव का परीक्षण भी ठीक से नहीं हो पता है | जिससे यह निश्चय किया जा सके कि यह औषधि महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम है भी या नहीं | वैसे भी इतने सक्षम विज्ञान और  वैज्ञानिकों के होते हुए भी यदि महामारी से करोड़ों लोग संक्रमित हुए और लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हो ही गए  तो क्या लाभ ! अनुसंधानों की सफलता तो तब है जब महामारी आने पर भी समाज को सुरक्षित बचाया जा सके !  

                                              महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !

         प्राचीन विज्ञान की दृष्टि में महामारी के पैदा होने का कारण क्या माना जाता है | यह पता लगाने के लिए  मैंने अनुसंधान प्रारंभ किए  तो पाया कि जिसप्रकार से माचिस की तीली जलाकर डाल देने मात्र से कहीं आग नहीं लग जाती है अपितु आग वहीं लग पाती है जहाँ कोई ज्वलनशील ईंधन होता है| इसलिए महामारी संबंधी बिषाणु यदि मनुष्यकृत प्रयासों से पैदा कर भी दिए जाएँ तो भी उनका विस्तार होना तभी संभव है, जब उन्हें उस प्रकार का वातावरण मिलेगा ! ऐसे वातावरण का निर्माण कैसे होता है | महामारी को समझने के लिए उस प्रकार के वातावरण निर्माण का कारण खोजे जाने की आवश्यकता है |

         अनुसंधान संबंधी अतीत के अनुभवों को ध्यान देने पर पता लगता है कि  कोरोना महामारी प्राकृतिक रूप से पैदा हुई थी और समाप्त भी प्राकृतिक रूप से ही होगी!संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने का कारण भी प्राकृतिक  ही  है| कोरोना  महामारी पर भी ध्यान देने पर महामारी को प्राकृतिक मानने के अतिरिक्त और कोई विशेष विकल्प नहीं है | 

      भारत में सर्व प्रथम 30 जनवरी 2020 को केरल के तीन शहरों में तीन भारतीय मेडिकल छात्र संक्रमित मिले थे| इसके बाद संक्रमितों की संख्या क्रमशः बढ़ती गई थी | 6 मई 2020 के बाद संक्रमितों की संख्या घटते एवं रोगियों को रोगमुक्त होते देखा गया था |इसी क्रम में जून जुलाई तक ये संख्या इतनी अधिक कम होती चली गई थी कि कुछ वैज्ञानिक भी कहने लगे थे कि वैक्सीन ट्रॉयल के लिए अब रोगी भी नहीं मिलने लगे हैं | इसलिए वैक्सीन नहीं बन पाएगी | इसमें ध्यान देने की बात यह है कि  बिना किसी विशेष चिकित्सा के संक्रमित रोगी स्वस्थ होने लगे इसका कोई प्रत्यक्ष मनुष्य कृत कारण नहीं है इसलिए उन्हें प्राकृतिक रूप से ही स्वस्थ माना जाना चाहिए | 

   ऐसे ही 8 अगस्त 2020 में फिर संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी जो 18 सितंबर 2020 तक बढ़ती चली गई | उसके बाद संक्रमितों की संख्या तेजी से घटने लगी , रोगी बिना किसी विशेष औषधि के रोग मुक्त होते चले गए | जनवरी 2021 तक ऐसा लग रहा था कि महामारी समाप्त हो गई है ! अब प्रश्न उठता है कि अगस्त 2020 से महामारी जनित संक्रमण बढ़ने के एवं 19 सितंबर 2020 से संक्रमण कम होते जाने के लिए यदि मनुष्यकृत कोई प्रत्यक्ष कारण दिखाई नहीं पड़ते ! इसलिए महामारी प्राकृतिक थी ऐसा अनुभव होता है | 

    इसीप्रकार से फरवरी 2021 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ने लगा और 8 मई 2021 तक बढ़ता चला गया उसके बाद कम होना शुरू हुआ और धीरे धीरे घटता चला गया और  समाप्त सा हो गया ! यह भारत के लिए सबसे भयंकर लहर थी | ऐसी स्थिति में अचानक महामारी संक्रमितों की संख्या बढ़ने के एवं एवं अचानक कम होने लगने के कोई मनुष्यकृत कारण प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ते ! इससे लगता है कि महामारी प्राकृतिक थी |

       विशेष बात यह है कि 6 मई 2020 से ,तथा 19 सितंबर 2020 से एवं 8  मई 2021  से संक्रमितों की संख्या अचानक कम होने एवं रोगियों के रोगमुक्त होने का मनुष्यकृत प्रत्यक्ष कारण क्या था !क्योंकि इन तीनों समयों में ऐसी कोई विशेष औषधि नहीं थी जिसके लिए यह विश्वास पूर्वक कहा जा सके कि इसके प्रयोग से महामारी जनित संक्रमण कम हुआ था | 

    इसी प्रकार से 30 जनवरी 2020 को या 8 अगस्त 2020 में,या फरवरी 2020 जब महामारी संबंधी संक्रमण अचानक बढ़ने लगा था |उस बढ़ने के लिए जिम्मेदार मनुष्यकृत कारण क्या था !महामारी पैदा होने के लिए यदि किसी देश विशेष के कुकृत्यों को जिम्मेदार मान भी लिया जाए कि उसके प्रयास से महामारी पैदा हुई है तो उसके बाद महामारीजनित संक्रमण कम हो होकर बार बार बढ़ने का कारण क्या था! क्योंकि किसी देश विशेष के कुकृत्यों से पैदा हुई महामारी का वेग एक बार तो कितना भी बढ़ सकता था ,किंतु घट घट कर बार बार बढ़ने के लिए ऐसा कोई प्रयास जिम्मेदार कैसे माना जा सकता है| क्योंकि पहली बार तो विश्व ऐसे किसी प्रयत्न से अनजान बना रहा हो ऐसा हो सकता है किंतु बार बार ऐसा होना संभव नहीं था| उसके बाद तो सभी देश स्वतः सतर्क हो गए थे वे भी आत्मरक्षा में सक्षम थे| चूँकि महामारी प्राकृतिक थी इसलिए उसके पैदा होने बढ़ने एवं कम होने में कोई मनुष्यकृत प्रयत्न काम नहीं आ सका | 

                                            


कोई टिप्पणी नहीं: