रविवार, 21 अप्रैल 2024

22-4-2024

   वैज्ञानिक क्षमता से अधिक भार और उससे भी अधिक अपेक्षाएँ !

   प्रकृति विज्ञान अधूरा है !

       संपूर्णविज्ञान से संपूर्ण अनुसंधान होने चाहिए जिससे संपूर्ण सच सामने लाया जा सके ,किंतु प्रकृति विषयक अनुसंधानों से ऐसा नहीं हो पा रहा है | जिन घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अनुसंधान प्रारंभ किए गए थे |

   प्राकृतिक क्षेत्र में मौलिकअनुसंधानों (Fundamental Research ) का इतना अभाव है, कि जिस विषय से संबंधित अनुसंधान किया जाता है उससे संबंधित अनुसंधान एक तरफ चला ही करते हैं दूसरी तरफ उस प्रकार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं उनसे संबंधित जो जनधन हानि होती है वो हो ही जाती है|उनके विषय में पूर्वानुमान तो नहीं ही लगाए जा सके अनुमान भी नहीं लगाना संभव नहीं हो पा रहा है | उन घटनाओं को घटित होते प्रत्यक्ष देखकर भी उन्हें एवं उनकी प्रकृति को समझना संभव नहीं हो पा रहा है| एक से एक भयानक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं | उनमें अधिक मात्रा में जनधन हानि होती है | जब तक घटनाएँ घटित हो रही होती हैं तब तक जहाँ तहाँ चर्चा होती है, कुछ समय तक वैज्ञानिक उछलकूद दिखाई सुनाई देती है| उन विषयों में रिसर्च करने की आवश्यकता जताई जाती है|इसके बाद उसकी चर्चा भी नहीं होती है | 

     ऐसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं जिनके घटित होने के लिए उस घटना का स्वरूप परिवर्तन या जलवायुपरिवर्तन जैसे कुछ काल्पनिक(Hypothetical) कारण बता दिए जाते हैं |उन किस्से कहानियों में न तो मौलिक चिंतन होता है और न ही गणितागत कोई आधार होता है और न ही अनुसंधानजनित तर्कसंगत कोई विश्वसनीयता होती है |जिस प्रकार की घटनाओं के विषय में इतनी बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं हैं | वही घटनाएँ जब दोबारा घटित होने लगती हैं तब वो मनगढंत कहानियाँ स्वतः ही गलत निकल जाती हैं |जिसका कारण अपने अनुसंधानों की असफलता न मानकर उस घटना का स्वरूपपरिवर्तन या जलवायुपरिवर्तन जैसा कुछ भी बोल दिया जाता है | वह स्वरूपपरिवर्तन या वह जलवायुपरिवर्तनआखिर क्या है इसके लक्षण क्या हैं इसका स्वभाव क्या है इसका प्रभाव क्या है इसका क्रम क्या है| ये परिवर्तन कितने कितने दिनों में कैसे कैसे दिखाई पड़ते हैं | इनका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं होता है | सबकुछ इतना भ्रामक होता है कि उससे केवल इतना ही निष्कर्ष निकल पाता है कि लगाए हुए अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकल गए थे | इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है |

    ऐसे अनुसंधानों में समय लगता है संसाधन भी लगते हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया है इसलिए समाज उस पर भरोसा करता है और बाद में वह भरोसा टूट जाता है |उस संकटकाल में ऐसे चोट बहुत गहरा घाव देती है | अपने संकट से दुखी अनुसंधानों से निराश समाज अपनी पीड़ा व्यक्त करे उससे पहले ही उस प्रकार की घटनाओं को समाज के ऊपर लाकर छोड़ दिया जाता है कि यदि समाज ऐसा करना बंद कर दे तो उस प्रकार की घटनाएँ घटित होनी बंद हो सकती हैं |वैसा किया जाना समाज के लिए बहुत आवश्यक होता है इसलिए उसके लिए वो बंद किया जाना संभव नहीं कर पाता है |  समाज यदि वो करना बंद कर भी दे तो ऐसा कुछ आवश्यक तो नहीं है कि वैसी घटनाएँ घटित होनी बंद ही हो जाएँगी ,क्योंकि उन कारणों के पीछे कोई तर्क संगत मौलिक सिद्धांत नहीं होते कुछ काल्पनिक कारण होते हैं | 

      उदाहरण स्वरूप महामारीजनित संक्रमण बढ़ने और घटने के लिए कोविड नियमों के पालन करने और न करने को जिम्मेदार बता दिया गया |इसके समर्थन में यहाँ तक कहा जाता रहा कि दिल्ली मुंबई सूरत से निकले श्रमिक जहाँ जहाँ जाएँगे वहाँ संक्रमण तेजी से बढ़ेगा !ऐसा ही बिहार एवं बंगाल की चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ों के विषय में कहा जाता रहा !दिल्ली के किसान आंदोलन एवं हरिद्वार कुंभ की भीड़ के विषय में भी ऐसी ही आशंका जताई गई थी,किंतु ईश्वर की ऐसी कृपा रही कि कहीं से ऐसा कोई अप्रिय समाचार नहीं मिला |अब यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक ही है कि किन अनुसंधानों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया था कि छुआछूत से कोरोना संक्रमण बढ़ता है | यदि बढ़ता है तो उन लोगों में ऐसा क्यों नहीं दिखाई पड़ा जो किसी मजबूरीवश कोविडनियमों का पालन करने में असमर्थ रहे | 

    प्रायः सभी प्रकार के प्रकृति संबंधी अनुसंधान इसी अनिश्चितता के शिकार हैं !विज्ञान अधूरा है यह कहने का हमें कोई अधिकार नहीं है | हम तो केवल निवेदन ही कर सकते हैं कि जिस किसी भी प्रकार से संभव हो ये अनिश्चितता दूर होनी चाहिए !ताकि समाज का वह भरोसा सुरक्षित रखा जा सके जो बहुत सारे क्षेत्रों में अत्यंत तपस्या पूर्वक इतने वर्षों में वैज्ञानिकों ने बनाया है | 

    यदि हमारे पास विज्ञान भी है वैज्ञानिक भी हैं अनुसंधान करने के संसाधन भी हैं धनराशि भी है सरकारों का सहयोगी स्वभाव भी है समाज का अपने वैज्ञानिकों के प्रति समर्पण भी है ,फिर ऐसा अभाव क्या है कि ऐसे अनुसंधानों से आवश्यकता के अनुरूप परिणाम नहीं निकल पा रहे हैं | 

                    विज्ञान के अभाव में प्राकृतिक अनुसंधानों में दुविधाएँ ही दुविधाएँ हैं !   

    भूकंप आने का कारण संपूर्ण कोरोना काल में इतने अधिक भूकंप क्यों आते रहे ? बताया जाता है कि एक वर्ष में 38,816 भूकंप आए | हमेंशा तो ऐसा नहीं होता है |इतने अधिक  भूकंप आने का क्या कारण है ! वैसे भी किसी किसी वर्ष में भूकंप काफी अधिक संख्या में घटित होते हैं तो कुछ वर्षों में बहुत कम घटित होते हैं ? भूगर्भगत लावा पर तैरती टैक्टोनिक प्लेटों के आपस में टकराने के कारण या भूगर्भगत ऊर्जा के अधिक संचित हो जाने के कारण यदि भूकंप आते हैं तो टैक्टोनिक प्लेटों के कुछ वर्षों में अधिक टकराने एवं कुछ वर्षों में भूगर्भगत ऊर्जा के बार बार बाहर निकलने का कारण क्या है ? महामारी काल में इतने अधिक भूकंप आने का कारण क्या था ?25 अप्रैल 2015 को इसी स्थान पर 22  अप्रैल 2015 को ही उसी स्थान पर भीषण तूफ़ान आया था जिसमें नेपाल और भारत के बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | केंद्र दोनों का एक ही था | इस तूफ़ान का उस भूकंप से कोई संबंध था या नहीं !इसका कोई मौलिक उत्तर नहीं मिला है | 

    आँधी तूफ़ान आने का कारण क्या है ?बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का तापमान बढ़ जाता है, जिससे आंधी-तूफान आने की संभावना भी बढ़ती है | प्रश्न उठता है कि जब जलवायु परिवर्तन नहीं होता था तब क्या आँधी तूफ़ान नहीं आते थे | वैसे भी किसी वर्ष आँधी तूफ़ान कम आते हैं और किसी वर्ष काफी अधिक आते हैं| तूफ़ान आने का कारण यदि जलवायुपरिवर्तन ही है तब तो एक जैसा ही रहना चाहिए ,क्योंकि जलवायु परिवर्तन किसी वर्ष कम तो किसी वर्ष अधिक तो होता नहीं है | सन 2018 के अप्रैल मई में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में बार बार हिंसक तूफ़ान आए थे ! इसी वर्ष  इसी समय में इतने अधिक तूफ़ान आने का कारण क्या था ?

                     भूकंप  वर्षा आँधी तूफ़ान आदि को समझने के लिए कहाँ है विज्ञान !

     वर्षा होने का कारण क्या है ?किसी वर्ष  वर्षाऋतु में वर्षा अधिक होती है और किसी वर्ष कम !किसी वर्ष तो सूखा पड़ जाता है |किसी किसी वर्ष सर्दी और गर्मी की ऋतुओं में भी बार बार वर्षा होती रहती है | इसका कारण क्या है ? सन 2020 \ 21 में सर्दी से लेकर मार्च अप्रैल तक वर्षा होती रही !इसका कारण क्या था ? 16 अप्रैल 2024 को दुबई में इतनी अधिक बारिश होने का कारण क्या था ?विज्ञान के अभाव में ऐसे प्रश्नों का कोई मौलिक उत्तर नहीं दिया जा सका है | जो विश्वास करने योग्य हो !

    मानसून कब आएगा कब जाएगा !इस वर्ष वर्षाऋतु में  कितनी वर्षा होगी,वर्षा होने की संभावना कब कब बनेगी !कम वर्षा होने या बाढ़ आने की संभावना कब बनेगी |ऐसे प्रश्नों के आवश्यक उत्तर खोजने लायक विज्ञान की कहाँ है ? ऐसी घटनाओं का निर्माण प्रकृति के जिस भी स्तर पर होता होगा | उस अप्रत्यक्ष प्रक्रिया को उपग्रहों रडारों आदि के द्वारा देखा जाना ही संभव नहीं है | इसलिए ऐसे दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान उपग्रहों रडारों आदि के द्वारा कैसे लगाए जा सकते हैं | 

     अलनीनो लानिना जैसी समुद्री घटनाओं के आधार पर यदि मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी की जाए तो ऐसी घटनाओं का वर्षा या आँधी तूफानों आदि के निर्मित होने में योगदान क्या है | इनका उन घटनाओं से संबंध क्या है | ये मात्र एक कल्पना है जिसके आधार पर अभी तक लगाए गए पूर्वानुमान कई बार सही नहीं निकले हैं |ऐसी स्थिति में इनके आधार पर विश्वासनीयता पूर्वक पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | 

    कोरोना महामारी के समय कुछ वैज्ञानिकों का मत था कि महामारी से पीड़ितों की संख्या बढ़ने घटने का कारण मौसम संबंधी घटनाओं का प्रभाव भी हो सकता है | ऐसी स्थिति में महामारी पर  मौसम संबंधी प्रभाव का आकलन करने के लिए मौसमसंबंधी पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता थी| उस समय विमानों का परिचालन बंद कर दिए जाने से उनसे मिलने वाला डेटा बंद हो गया था |जो मौसम संबंधी अनुसंधानों में बड़ी बाधा थी ,जबकि ऐसे समय मौसम संबंधी  पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता थी ! 

     मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने में उपग्रहों से तो अधिक से अधिक इतनी ही मदद मिल सकती है कि किसी एक स्थान पर हो रही वर्षा या उठे हुए बादलों को या आँधी तूफ़ानों को उपग्रहों रडारों की मदद से दूर से ही देख लिया जाए वे जिस दिशा में जितनी गति से जाते दिखें उसी के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाए कि ये कितने समय में किस देश प्रदेश आदि में पहुँच सकते हैं | उसी हिसाब से अंदाजा लगाकर भविष्यवाणी की जा सकती है कि इतने दिनों या घंटों में ये बादल या आँधी तूफ़ान आदि किस देश प्रदेश आदि में पहुँच सकते हैं |

     कई बार हवाएँ अचानक अपनी दिशा बदल लेती हैं तो बादल या आँधी तूफ़ान आदि भी अपनी दिशा बदल लेते हैं | जिससे ऐसी भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं | कई बार ऐसी घटनाएँ बीच में ही शांत हो जाती हैं तो भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |

   ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी घटनाओं का निर्माण जिन परोक्ष परिस्थितियों में होता है | उन्हें देखने समझने एवं उसके आधार पर आगे से आगे सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की क्षमता अर्जित किए बिना ऐसा कोई विश्वसनीय विज्ञान नहीं है जिसके आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो |     इसके लिए ऐसा कोई सक्षम विज्ञान कहाँ है |जिससे ऐसे उत्तर पाने की अपेक्षा रखी जा सके,ऐसी घटनाओं के पैदा होने के कारण प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं पड़ते | कारण अप्रत्यक्ष होने के कारण उनके लिए परोक्ष विज्ञान की आवश्यकता होती है |जिसके बिना मौसम के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है | ऐसा किए बिना महामारी पर पड़ने वाले मौसम के प्रभाव का आकलन कैसे किया जा सकता है |

 महामारी  पर मौसम के प्रभाव को समझने के लिए विज्ञान कहाँ है ?

    वैज्ञानिक हैं विज्ञान है अनुसंधान के लिए सारे संसाधन भी हैं और अनुसंधान होते भी हैं | उनसे निकलता क्या है ?ये बिचार किए जाने की आवश्यकता है | महामारी  पर मौसम के प्रभाव को समझने संबंधी वैज्ञानिकों या अन्य विशेषज्ञों के जितने भी वक्तव्य आए हैं | वे सबके सब भ्रमित हैं | विशेषज्ञों के वक्तव्यों में इतना अधिक विरोधाभास है कि उनके आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचा पाना संभव नहीं है | ऐसे वक्तव्यों को आधार मानकर महामारी संबंधी अनुसंधान कैसे किए जा सकते हैं | किए भी जाएँ तो उनसे निकलने वाला निष्कर्ष कितना विश्वसनीय एवं जनहितकारी होगा ! 

   बारिश होने या न होने का कोरोना संक्रमण पर क्या प्रभाव पड़ेगा !तापमान बढ़ने या घटने का महामारी पर क्या प्रभाव पड़ेगा !तापमान का महामारी पर कोई प्रभाव पड़ेगा भी या नहीं !इस विषय में भी स्पष्टतौर पर कुछ कहा नहीं जा सका है | आप स्वयं देखिए समय समय पर विभिन्न मीडिया माध्यमों में प्रकाशित विशेषज्ञों के वक्तव्य ! 

 
बारिश होने से कोरोना संक्रमण घटेगा !
 30 अप्रैल 2021-मौसम विज्ञानी प्रोफेसर एचएन मिश्रा ने बताया कि वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया है कि तेज गर्मी के बाद तेज बारिश होने से वायुमंडल से वायरस का प्रभाव कम होगा। -   अमर उजाला
बारिश होने से कोरोना संक्रमण बढ़ेगा !

04 मार्च 2020,-बारिश होने से बढ़ सकता है कोरोना वायरस का खतरा !तापमान घटने-बढ़ने से कोरोना वायरस पर क्या असर पड़ेगा, इस बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है - आजतक 

 बारिश का कोरोना पर प्रभाव पड़ता है किंतु साक्ष्य नहीं हैं !
27 मई 2020 -राहुलगाँधी  से बोले एक्सपर्ट- मौसम से कोरोना की रफ्तार पर फर्क पड़ता है, लेकिन पुख्ता सबूत नहीं !  -  आज तक
                                       तापमान
 
   तापमान घटने से नहीं बढ़ेगा कोरोना !
 06 मार्च 2020--भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के प्रमुख डाॅ. बलराम भार्गवने कहना है कि बारिश के कारण तापमान में गिरावट से वायरस का खतरा और नहीं बढ़ेगा।-पत्रिकान्यूज 
तापमान घटने से कोरोना बढ़ेगा -
  17  मार्च 2020- बारिश से बढ़ सकता है संक्रमण खतरा !बारिश के कारण तापमान में गिरावट के चलते कोरोनावायरस संक्रमण के खतरे बढ़ने की आंशका जताई जा रही है।-वन इंडिया   
14 अगस्त 2020- सर्दियों में कोरोना के कहर का ख़तरा बढ़ रहा है?- बीबीसी लंदन 
10 अक्टूबर 2020-सर्दियों में रोज 15 हजार नए मरीजों के हिसाब से तैयारी करनी होगी: डॉक्टर पॉल !नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने दिल्ली सरकार को इस स्तर पर तैयारी करने की सलाह दी है। एनबीटी से डॉक्टर पॉल ने कहा कि सर्दियों में कोरोना के मामले बढ़ सकते हैं।    -नवभारतटाईम्स
 
तापमान बढ़ने से नहीं घटेगा कोरोना !
4 अप्रैल 2020 -अमेरिका की नेशनल एकेडमिक्स ऑफ साइंसेज ने अपनी स्टडी में कहा है कि ज्यादा तापमान से कोरोना पर कोई असर नहीं पड़ेगा | कोविड 19 ऑस्ट्रेलिया और ईरान में चीन और यूरोपीय देशों के मुकाबले फिलहाल गर्म मौसम है लेकिन वहां वायरस का  प्रसार अपने चरम पर है.  ऐसे में ज्यादा टेंपरेचर से यह ना माना जाए कि मामलों में कमी आएगी.  - न्यूज 18
20 मार्च 2020 - द एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. पी. रघु राम ने कोरोना वायरस के के विषय में कहा , "अगर कोरोना वायरस गर्मी से मरता तो ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे देशों में कोरोनावायरस की घटना कम होनी चाहिए थी| - NDTV
 
 तापमान बढ़ने से कोरोना घटेगा !
  24 अप्रैल 2020-सनलाइट से जल्दी खत्म हो जाता है कोरोना वायरस, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया रिसर्च में दावा किया है कि सूरज की किरणें वायरस पर डालती हैं |सनलाइट से कोरोना वायरस तेजी से मर जाता है।  होमलैंड सुरक्षा सचिव के विज्ञान और तकनीकी विभाग के सलाहकार विलियम ब्रायन ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों कहा कि सरकारी वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया है कि सूरज की पराबैंगनी किरणें पैथोगेन यानी वायरस पर प्रभावशाली असर डालती हैं। उम्मीद है कि गर्मियों में इसका प्रसार कम होगा। विलियम ब्रायन ने कहा कि हमारी रिसर्च में अब तक सबसे खास बात यह पता चली है कि सोलर लाइट सतह और हवा दोनों में इस वायरस को मारने की क्षमता रखता है।- हिंदुस्तान न्यूज़
12 जून 2020 गर्म मौसम में कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम, स्टडी में दावा !भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि गर्म और शुष्क मौसम में सतह पर कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम हो जाती है।-हिंदुस्तान न्यूज़ 
तापमान बढ़ने पर भी बढ़ रही है महामारी - WHO
10 अगस्त 2020-डब्ल्यूएचओ ने किया आगाह  गर्मी में भी बढ़रही महामारी!इसके चलते इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है। कोरोना से लगभग पूरी दुनिया जूझ रही है।-दैनिक जागरण
03 जून 2020 -गर्म मौसम में कोरोना वायरस का संक्रमण थम जाएगा, इस उम्मीद में इस बार सर्दी के मौसम में ही गर्मियों को बड़ी बेसब्री से इंतजार हो रहा था। अब जबकि तेज गर्मी का एक महीना यानी मई बीत चुका है |गर्म मौसम का कोरोना पर कोई प्रभाव नहीं पढ़ रहा है!कैंब्रिज के माउंट ऑबर्न हॉस्पिटल के नए अध्ययन में पाया गया है कि पिछला 52 डिग्री फ़ारेनहाइट तक गर्म मौसम कोरोनो वायरस को बिल्कुल प्रभावित नहीं कर पाया। लेकिन इस वायरस के संक्रमण में काफी हद तक कमी आई है। मतलब, कोरोना वायरस अभी भी उतना ही घातक है लेकिन इसके फैलने की दर कुछ धीमी हो गई है।-नवभारतटाइम्स
27 मई 2020-लापरवाही ना बरतें, गर्मी में और अधिक जानलेवा हो गया है कोरोना वायरस !कानपुर मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. जेएस कुशवाहा और डॉ. ब्रजेश कुमार का कहना है कि गर्मी लगने पर मस्तिष्क में तापमान नियंत्रित करने वाला सिस्टम ध्वस्त हो जाता है। इसके साथ ही कोरोना संक्रमण अधिक घातक हो सकता है।-पत्रिकान्यूज 

>>>>>>>>>>>>>>>>



 

 

 

 

 वायु प्रदूषण 

     वायुप्रदूषण  बढ़ने का कारण क्या है ?सामान्य तौर पर धुआँ और धूल जहाँ कहीं उड़ता दीखता है |वहीं वायु प्रदूषण बढ़ता है या  इसके कारण कुछ और दूसरे भी हैं |उद्योग,वाहन,पटाखे जब नहीं थे जब पराली नहीं जलाई जाती थी|वायुप्रदूषण तब वहाँ बढ़ता था या नहीं ? वैसे भी ऐसे किसी कारण से यदि वायु प्रदूषण बढ़ेगा तो वो तो फिर तब तक बढ़ा रहेगा जब तक कारण समाप्त नहीं होंगे | कुछ स्थानों पर और कुछ दिनों में वायु प्रदूषण विशेष अधिक बढ़ जाने का विशेष कारण क्या होता है ?

      महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए वायुप्रदूषण को भी जिम्मेदार बताया जाता रहा है |इसका निश्चय तो तभी हो सकता है जब ये पता लगे कि महामारी पैदा कैसे हुई थी ! इसके लिए जिम्मेदार कारण क्या हैं ?उन कारणों का वायुप्रदूषण से संबंध कैसे जुड़ता है |वायु प्रदूषण महामारी को पैदा करने में सहायक कैसे होता है | महामारी के बनने की प्रक्रिया न तो प्रत्यक्ष दिखाई देती है और न ही  वायुप्रदूषण से महामारी का कोई प्रत्यक्ष संबंध जुड़ते दिखाई देता है | 

    दूसरी कठिनाई ये है कि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए यदि वायुप्रदूषण को जिम्मेदार मान भी लिया जाए तो वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार तत्वों को खोजकर न केवल सामने लाना होगा प्रत्युत ये भी निश्चित  करना होगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण यही हैं | 

      वर्तमान समय में वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जो घटक जिम्मेदार बताए जाते रहे हैं उनमें उद्योगों वाहनों से निकलने वाले धुएँ का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है | इसके लिए यह निश्चित करना होगा कि उद्योगों और वाहनों प्रचलन जब नहीं था उस समय वायु प्रदूषण बढ़ता था या नहीं बढ़ता था | 

     ऐसे ही पराली जलाने से उठाने वाले धुएँ से वायु प्रदूषण बढ़ने के बात कही जाती है तो ऐसा पंजाब आदि कुछ प्रदेशों में ही होता है किंतु वायु प्रदूषण तो देश के अधिकाँश भाग में बढ़ता है |दूसरी बात पराली जलाने की बात तो बहुत थोड़े समय की होती है किंतु वायुप्रदूषण तो वर्ष के अधिकाँश समय में बढ़ता है | उसका कारण क्या है ? 

    दिवाली के समय पटाखे या साँप की टिकिया जलाने को प्रदूषण बढ़ने का कारण माना जाता है किंतु ये तो एक दो दिन की बात  होती है किंतु चीन एवं ईरान जैसे जिन देशों में दीपावली नहीं  मनाई जाती है | वायु प्रदूषण तो उन देशों में भी बढ़ता है !उसका कारण क्या है ?

     विशेष बात यह है कि उद्योगों वाहनों से निकलता धुआँ हो या पराली जलाने से निकलने वाला धुआँ अथवा दीपावली में पटाखे या साँप की टिकिया जलाने से निकलने वाला धुआँ ही क्यों न हो !यदि इसे वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया जाता है तो उन देशों के लिए क्या कहा जाए जिनमें मिसाइल आदि एक से एक घातक हथियारों से युद्ध किया जाता है और वर्षों तक युद्ध चला करता है | वहाँ तो वायु प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाना चाहिए था और वर्षों तक बढ़ा रहना चाहिए था किंतु व्यवहार में ऐसा देखने को नहीं मिला था | 

     वायुप्रदूषण को यदि महामारी बढ़ने के लिए जिम्मेदार मान भी लिया जाता है तो  युद्धरत देशों में युद्ध के बाद महामारी पैदा होनी और बढ़नी चाहिए ,किंतु युद्धरत देशों में ऐसा कुछ होते तो नहीं देखा जाता है | 

    ईंट भट्ठों से निकलने वाले धुएँ से यदि वायु प्रदूषण बढ़ता तो ईंट भट्ठों के आसा पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण अधिक बढ़ना चाहिए एवं महामारी संबंधी संक्रमण वहाँ बहुत अधिक होना चाहिए ,किंतु ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया | 

  धूल उड़ने से यदि वायु प्रदूषण बढ़ता तो ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के द्वारा किए जाने वाले अधिकाँश कार्य धूल उड़ाने वाले होते हैं | इसलिए वहाँ वायु प्रदूषण अधिक बढ़ना चाहिए था एवं हमेंशा से धूल में काम करने वाले किसानों मजदूरों को महामारी संबंधी संक्रमण से अधिक परेशानी हुई होती किंतु व्यवहार में ऐसा होते नहीं देखा गया !

   सर्दी की ऋतु में वायु तेज न चलने को यदि वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण माना जाता है तो सर्दी की ऋतु में महामारी संबंधी संक्रमण अधिक बढ़ना चाहिए था किंतु तीसरी लहर को छोड़कर पहली दूसरी चौथी आदि लहरें सर्दी की ऋतु में नहीं आई हैं |ये सब गरमी में ही आई हैं | 

     वायु प्रदूषण बढ़ने से यदि कोरोना संक्रमण को बढ़ना होता तो सन 2020 के अक्टूबर नवंबर में कोरोना बढ़ा होता क्योंकि भारत में उस समय वायु प्रदूषण काफी अधिक बढ़ा था | दूसरी बात भारत में दूसरी लहर नहीं आनी चाहिए थी | क्योंकि उस समय वायु प्रदूषण बहुत कम था इसीलिए तो पंजाब के अमृतशर से एवं बिहार के सीतामढ़ी जिले से हिमालय के दर्शन हो रहे थे आकाश इतना साफ था | इसके बाद भी मार्च अप्रैल 2021 में महामारी की अत्यंत भयंकर लहर आई थी | 

      कुल मिलाकर ऐसा कौन सा विज्ञान है जिसके द्वारा यह पता लगाया जा सके कि महामारी संबंधी संक्रमण के बढ़ने में वायु प्रदूषण की कोई भूमिका है या नहीं ! दूसरी बात ऐसा कौन सा विज्ञान है जिसके द्वारा यह पता लगाया जा सके कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार निश्चित कारण क्या है ?उस कारण को खोजे बिना वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है और इस पूर्वानुमान के बिना महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना तब संभव नहीं होगा |यदि संक्रमण बढ़ने का कारण वायु प्रदूषण होगा,किंतु ऐसा है या नहीं यह जानने के लिए विज्ञान कहाँ है | 

  महामारी पैदा होने का कारण जलवायुपरिवर्तन  है तो जलवायुपरिवर्तन  क्या है ?

      कोरोना महामारी के पैदा होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा था | ऐसे ही  कोई महामारी या प्राकृतिक रोग फैलने लगे तो इसके लिए जलवायु परिवर्तन को दोषी माना जाता है | डेंगू मलेरिया जैसे रोग बढ़ने लगें तो उसका भी कारण जलवायु परिवर्तन ! 

       जिस विज्ञान के द्वारा के दस बीस दिन पहले की मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में या मानसून आने जाने संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है | आज तक जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं उनमें से किसी के विषय में भी पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | महामारी आने के विषय में एवं उसकी लहरें आने और जाने के विषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | इसका कारण भविष्य में झाँकने के लिए किसी विज्ञान का न होना बताया जा रहा है | उसी विज्ञान के द्वारा आज के सौ दो सौ वर्ष बाद के विषय में की जा रही भविष्यवाणियों का वैज्ञानिक आधार क्या है ? |यह कैसे पता लगाया गया कि जलवायुपरिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद ग्लेशियर पिघल जाएँगे,समुद्र का जलस्तर कुछ ऊपर उठ जाएगा, भीषण सूखा पड़ेगा, वर्षा नहीं होगी या बहुत अधिक होगी या कहीं कम और कहीं बहुत अधिक वर्षा होगी | बार बार भूकंप आएँगे | बार बार आँधी तूफ़ान आएँगे !अत्यंत तेजी से संक्रामक रोग फैलेंगे | बार बार बादल फटेंगे ,बज्रपात होंगे,वायु प्रदूषण बढ़ जाएगा  आदि आदि !

     ऐसा विज्ञान कहाँ है जिसके द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के विषय में पता लग पाता है |आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ यदि बार बार घटित होने लगें या तेज आँधी तूफ़ान आने लगें, अधिक वर्षा होने लगे  ,लगातार वर्षा हो रही हो ,बाढ़ आ जाए, लंबे समय तक वर्षा न हो,वर्षा ऋतु में कम वर्षा हो,सूखा पड़ जाए ,  कहीं कम और कहीं अधिक वर्षा हो,कुछ वर्षों में कम वर्षा और कुछ वर्षों में अधिक वर्षा हो जाए |कुछ स्थानों पर कम और कुछ स्थानों पर अधिक वर्षा हो ,सर्दी या गर्मी की ऋतु में अधिक वर्षा हो जाए,मानसून आने और जाने के लिए निर्धारित की गई तारीखों के आगे या पीछे मानसून आवे या जाए ,बादल फटने की घटना घटे,ओले गिरें तो ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जाता है | 

    ऐसे ही गर्मी की ऋतु में तापमान कम रहे या अधिक हो जाए ,लू कम चले या अधिक चले,सर्दी की ऋतु में सर्दी कम पड़े या अधिक पड़े !आग लगने की घटनाएँ अधिक घटित हों,ग्लेशियर तेजी से पिघलते दिखें,बज्रपात या चक्रवात जैसी घटनाएँ घटित होती दिखें या बार बार भूकंप आने लगें,या वायुप्रदूषण बढ़ने लगे तो ऐसी समस्त घटनाओं के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है | 

     कोरोना काल में अधिक टिड्डियों का आना, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में चूहों का अधिक उपद्रव मचाना,यूपी बिहार के किसानों का आवारा पशुओं से परेशान होना ,वृक्षों में अपनी ऋतु से पहले या बाद में फूल फल फूलने या फलने लगे या फूलों फलों का आकार घट या बढ़ जाए,उनके स्वाद में अंतर आ जाए तो इन सबका कारण जलवायु परिवर्तन बताया जाता है |

       प्रकृति और जीवन को प्रभावित करने में जिस जलवायु परिवर्तन की इतनी बड़ी भूमिका मानी जा रही हो,       उस जलवायुपरिवर्तन का स्वभाव,प्रभाव,लक्षण,क्रम आदि क्या है! इसके प्रभाव से मौसम में कितने कितने समय बाद कैसे कैसे परिवर्तन होते दिखाई देते हैं|जलवायुपरिवर्तन और मौसमसंबंधी घटनाओं का आपस में संबंध कैसे जोड़ा जाता है !मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के निर्माण में जलवायु परिवर्तन की भूमिका क्या है |जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मौसम पर कैसे पड़ता है | उससे मौसम संबंधी घटनाओं में किस किस प्रकार के बदलाव हो सकते हैं|जलवायुपरिवर्तन होने पर मौसम संबंधी घटनाएँ असंतुलित होती हैं या मौसम संबंधी घटनाओं के असंतुलित होने पर जलवायुपरिवर्तन होता है | ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर खोजा जाना चाहिए | 

      ऐसा किए बिना जलवायुपरिवर्तन की अवधारणा ही काल्पनिक लगती है| ऐसा लगता है कि जिन प्राकृतिक घटनाओं को घटित होते पहली बार देखा गया हो या जिनके विषय में पूर्वानुमान न लगाया जा सका हो,जिनके विषय में लगाया गया पूर्वानुमान गलत निकल गया हो !जिस प्राकृतिक घटना के विषय में जैसा अंदाजा लगाया गया हो वो वैसी न घटित हुई हो,उससे अलग या बिल्कुल बिपरीत घटित हो गई हो,जिस घटना को समझने में कोई  चूक हो गई हो,प्राणियों का स्वभाव अचानक उन्मादित होने लगा हो ,या बड़ी संख्या में लोग अचानक असहनशील होने लगें हों ,पशु पक्षी अपने स्वभाव से अलग हटकर व्यवहार करते देखे जा रहे हों !समस्त प्राकृतिक वातावरण में यदि कुछ ऐसा घटित होने लगा जो अक्सर घटित होते नहीं देखा जाता है | इन्हें समझने लायक सक्षम विज्ञान न होने के कारण ऐसा सबकुछ होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया जाता है | 

     वस्तुतः  जिन आँधी तूफ़ानों अतिवृष्टि अनावृष्टि तथा तापमान के असंतुलन आदि के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है | उस प्रकार की घटनाएँ तो हमेंशा से घटित होती रही हैं |इनका कारण उस समय जलवायु परिवर्तन तो नहीं था अब क्यों है ?संभव है कि  यह  प्रकृति का सहज स्वभाव ही हो !इसका भी कोई क्रम होता हो कि कब किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कितने कितने अंतराल में कितने कितने वेग से घटित होंगी !वो अपने सहज क्रम से ही घटित हो रही हों ,जिसे हम  जलवायु परिवर्तन का प्रभाव समझ रहे हों | ऐसी स्थिति में जलवायुपरिवर्तन की संपूर्ण प्रक्रिया को वैज्ञानिक आधार पर तर्कसंगत ढंग से प्रमाणित किए बिना मौसम पर उसके प्रभाव को किस आधार पर मानना उचित होगा !

 अनुमान लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है ?

 पूर्वानुमान लगाने के लिए कहाँ है विज्ञान ?

                                महामारी में चिकित्सा विज्ञान की भूमिका क्या है ?

 कोरोना महामारी के समय ही देखा जाए तो महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !महामारी का विस्तार कितना है !प्रसार माध्यम क्या है! इसमें अंतर्गम्यता कितनी है! मौसम का महामारी से कोई संबंध है या नहीं है | तापमान का महामारी से कोई संबंध है या नहीं है | वायु प्रदूषण का महामारी से कोई संबंध है या नहीं है | कोविड नियमों के पालन का महामारी संक्रमितों पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं पड़ता है !आदि प्रश्नों के अनुसंधानजनित मौलिक उत्तर नहीं खोजे जा सके हैं | कुछ काल्पनिक उत्तर अंदाजे से दे दिए जाते रहे वे सही नहीं निकलते रहे  |

   चिकित्सा की दृष्टि से संक्रमितों पर प्लाज्माथैरेपी, रेमडेसिविर, टोसिलीजुमैबइंजेक्शन, डेक्सामेथासोन, हाइड्रोक्लोरोक्वीन आदि औषधियों का प्रयोग लाभप्रद समझकर किया गया होगा | बाद में इनका ऐसा कोई प्रभाव प्रमाणित नहीं हो पाया | ऐसे ही कोविडनियमों का पालन करवाया गया | इनसे कितना किसको लाभ हुआ या नहीं हुआ ये अलग बात है !बड़ी बात ये है कि उपायों को लेकर चिकित्सकीय बयानों में बहुत विरोधाभास रहा ! जिसे जो मन आया वो वैसा बताता रहा |वो उपाय कितने मौलिक थे कितने काल्पनिक थे ये तो बताने वाले जाने किंतु ऐसा कैसे हो सकता है कि एक ही देश में एक दवा को किसी प्रदेश में रोक दिया जाए और दूसरे प्रदेश में लाभप्रद समझा जाए | बताया जाता है कि  आइवरमेक्टिन दवा पर तमिलनाडु में प्रतिबंध लगा दिया गया जबकि गोवा और उत्तराखंड में इसे लाभप्रद समझा जाता  रहा था |

    विज्ञान है वैज्ञानिक हैं अनुसंधान के लिए पर्याप्त संसाधन हैं सभीप्रकार की अनुसंधान योग्य सुविधाएँ पाकर भी अनुसंधान क्यों नहीं हैं | दुबई की बारिश क्यों हुई ?किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सका है ?

  कोरोना संक्रमितों के स्वस्थ होने का कारण समय का प्रभाव है या औषधि का  ?

    पहली लहर : देश में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी 2020 को केरल में सामने आया था. पहली लहर का पीक 17 सितंबर 2020 को आया था. उस दिन करीब 98 हजार केस सामने आए थे|16 फरवरी 2021 को पहली लहर के सबसे कम 9,121 मामले आए थे | 
दूसरी लहर  :17 फरवरी 2021 से संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी थी | 6 मई 2021 भारत में संक्रमण के क़रीब 4,14,000 नए मामले दर्ज किए गए थे. महामारी के दौरान एक दिन में संक्रमितों की ये सबसे अधिक संख्या थी.20 दिसंबर 2021 को सबसे कम 5336 मरीज पाए गए थे। यहाँ से  दूसरी लहर पूरी तरह से खत्म हुई |
तीसरी लहर :देश में 27 दिसंबर 2021 से कोरोना की तीसरी लहर शुरू हुई | 21 जनवरी 2022 को 3,47,000 मामले सामने आए थे जो तीसरी लहर की सबसे अधिक संख्या थी | इसके बाद फरवरी 2022 में ये लहर शान हो गई थी |
__________________________________________________________________________
                    बचाव के लिए उपाय नंबर -1 कोविड नियमों का अनुपालन  

_________________________________________________________________________

                                                   लॉकडाउन:
 लॉकडाउन का पार्ट-1 : 24 मार्च 2020 से 15  अप्रैल 2020 तक 21 दिनों के लिए |
 लॉकडाउन का पार्ट-2 :15 अप्रैल 2020 से  3मई  2020 तक 19 दिनों के लिए !
 लॉकडाउन का पार्ट-3 :3मई  2020 से  17 मई  2020 तक 14  दिनों के लिए !
 लॉकडाउन का पार्ट-4 : 18 मई 2020 से 31मई  2020 तक 14  दिनों के लिए !
इसके बाद धीरे धीरे चरण बढ़ ढंग से अनलॉक किया जाना शुरू हुआ |

  अनलॉक:- अनलॉक पहला .0 (1-30 जून),अनलॉक दूसरा .0 (1-31 जुलाई), अनलॉक तीसरा .0 (1-31 अगस्त)अनलॉक चौथा .0 (1-30 सितंबर) अनलॉक पाँचवाँ .0 (1-31 अक्टूबर) अनलॉक छठवाँ .0 (1-30 नवंबर) हुआ | 

 विशेष बात :1 सितंबर 2020 ( 2020-09 ... इसमें कहा गया , ''कंटेनमेंट जोन में 30 सितंबर 2020 तक लॉकडाउन लागू रहेगा।
दूसरी लहर : दिल्ली में 6 अप्रैल 2021 को नाइट कर्फ्यू लगाया गया था|नाइट कर्फ्यू के अलावा दिल्ली में 15 अप्रैल 2021 को वीकेंड कर्फ्यू का ऐलान किया गया था |19 अप्रैल को दिल्ली में लॉकडाउन लगाया गया था |

तीसरी लहर : 4 जनवरी 2022 को लगा वीकेंड कर्फ्यू 

                                                 दोगज दूरी ,मास्क जरूरी  !

   वस्तुतः कोविडनियमों के पालन का मतलब ही था कि  एक दूसरे को छूना नहीं है - "दो गज दूरी मास्क जरूरी" 

इसीलिए भारत में सर्वप्रथम पहले 22 मार्च 2020 को 14 घंटों के लिए जनता कर्फ्यू किया गया था।

____________________________________________________________________
                    बचाव के लिए उपाय नंबर - 2       प्लाज्मा प्रयोग   

_________________________________________________________________________


 

__________________________________________________________________
                    बचाव के लिए उपाय नंबर -3
रेमडेसिविर प्रयोग

__________________________________________________________________

   बताया जाता है कि दिसंबर 2020  में कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने कोरोना वायरस से संक्रमित और कमजोर इम्युन सिस्टम वाले एक मरीज को रेमडेसिविर दवा दी थी। इलाज के दौरान पाया गया कि उस मरीज के स्वास्थ्य में जबरदस्त सुधार हुआ है |  यही नहीं, उसके शरीर से कोरोना वायरस का खात्मा भी हो गया। इस अध्ययन को नेचर कम्युनिकेशन्स ने प्रकाशित किया था। उसी के बाद भारत सहित कई देशों में रेमडेसिविर के इस्तेमाल की खबरें आईं। रेमडेसिविर पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा था कि यदि संक्रमण के आरम्भिक चरण में इसे मरीज को दिया जाए तो उस समय यह अधिक कारगर होती है।


__________________________________________________________________
                    बचाव के लिए उपाय नंबर -
4 वैक्सीन प्रयोग

__________________________________________________________________

वैक्सीन :भारत ने 16 जनवरी 2021 को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (कोविशील्ड) और स्वदेशी कोवैक्सीन के साथ अपना टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया ।बाद में, स्पुतनिक वी और मॉडर्ना वैक्सीन को भी आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई।30 जनवरी 2022 को, भारत ने घोषणा की कि उसने टीकों की लगभग 1.7 अरब खुराकें दीं और 720 मिलियन से अधिक लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया।
__________________________________________________________________
                                     बचाव के लिए कुछ अन्य उपाय

_________________________________________________________________

   संक्रमितों पर रेमडेसिविर,प्लाज्माथैरेपी, वैक्सीन, आदि के प्रयोग के साथ साथ टोसिलीजुमैब इंजेक्शन,  डेक्सामेथासोन, हाइड्रोक्लोरोक्वीन  आदि औषधियों का प्रयोग किया गया | कोविडनियमों का पालन करवाया गया | उपायों को लेकर चिकित्सकीय बयानों में विरोधाभास रहा ! आइवरमेक्टिन दवा पर तमिलनाडु में प्रतिबंध लगा दिया गया जबकि गोवा और उत्तराखंड में इसे लाभप्रद समझा जाता  रहा था |

  महामारी संक्रमितों की संख्या घटते समय जो औषधि दी जाए उसे परीक्षण में सफल मान लिया जाए और वही औषधि संक्रमितों की संख्या बढ़ते समय दी जाए तो उसी औषधि को अनुपयोगी मानकर चिकित्सा के प्रयोग से बाहर कर दिया जाए |

    ये सर्व विदित है कि भारत में मई 2020 की शुरुआत से जुलाई 2020 तक संक्रमितों की संख्या घटने का समय चल रहा था | इस समय बिना किसी औषधि के संक्रमितों को स्वस्थ होते देखा जा रहा था |इसी समय अनेकों वैज्ञानिकों के द्वारा वैक्सीनों का ट्रायल चलाया जा रहा था |उसमें भी सफलता मिलते देखी जा रही थी  | जिससे विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बना लेने के दावे करने शुरू कर दिए !जबकि संक्रमितों के स्वस्थ होने का कारण अच्छे  समय का प्रभाव था |
                                             महामारी और प्रतिरोधक क्षमता : 
    कोरोना महामारी के विषय में एक बात समझ में नहीं आती है कि लोग कोरोना महामारी से संक्रमित हो रहे हैं या इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण ! वैक्सीन लगने के बाद भी जब लोग संक्रमित होने लगे तो कहा गया कि इम्युनिटी समय के साथ कमज़ोर हो जाती है?  यदि समय के साथ कमज़ोर हो ही जाती है तो हमेंशा तो वैक्सीन नहीं लगती है इसलिए उसे बार बार संक्रमित होते रहना चाहिए |




 

 

 

 

 

 

 

 

 प्रत्यक्षविज्ञान और  परोक्षविज्ञान !

     (महामारी पर अंकुश लगाने की प्रत्यक्ष शक्ति और परोक्ष शक्ति -प्रत्यंगिरा आदि )

 
      प्रत्यक्षविज्ञान में जो सामने दिखाई सुनाई पड़ता है,ऐसे प्रत्यक्षसाक्ष्यों को एक दूसरे से जोड़ते हुए एक साक्ष्य श्रृंखला बनाई जाती है |उसके आधार पर किसी प्राकृतिक घटना को समझा जाता है उसके विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जाता है |

    परोक्षविज्ञान में किसी घटना के घटित होने के ऐसे साक्ष्यों को आधार बनाया जाता है जो वहाँ प्रत्यक्ष दिखाई नहीं दे रहे होते हैं किंतु उस घटना के घटित होने का मुख्यकारण वही होते हैं |ऐसे परोक्षकारणों का अनुसंधान करके उनके आधार पर किसी घटना के घटित होने का कारण खोजा जाता है | उस घटना के स्वभाव को समझा जाता है | उस मुख्य घटना से संबंधित उसके आगे पीछे घटित हुई कुछ छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का उस मुख्य घटना के साथ मिलान किया जाता है | ऐसे परोक्षसाक्ष्यों के साथ प्रत्यक्षसाक्ष्यों को सम्मिलित करते हुए संयुक्त रूप से अनुसंधान किए जाते हैं | उसके आधार पर भविष्य के विषय में कुछ अनुमान पूर्वानुमान आदि व्यक्त किए जाते हैं | इनके सही निकलने की संभावना काफी अधिक होती है | केवल  प्रत्यक्षसाक्ष्यों के आधार पर प्राकृतिक विषयों में किए गए अनुसंधान अधूरे होते हैं |उनके सही निकलने की संभावना काफी कम होती है |

      किसी तालाब में रोपी गई सिंघाड़े की एक बेल से बहुत शाखाएँ निकलकर दूर दूर तक फैल जाती हैं |ऐसी ही बहुत सारी बेलें लगाई जाती हैं और सबकी शाखाएँ दूर दूर तक फैली होती हैं | सभी बेलों की जड़ें एक दूसरे से अलग अलग होने पर भी ऊपर एक दूसरे के साथ मिलकर दूर दूर तक फैली होती हैं | दूर से देखने में सभी बेलें बराबर लगती हैं किंतु कोई व्यक्ति यदि यह पता लगाना चाहे कि सिंघाड़े की कौन सी बेल किस दूसरी बेल से संबंधित है | यह पता लगाने के लिए उस एक बेल की जड़ तक जाना पड़ेगा और वहाँ से पता लगाना पड़ेगा कि इस एक जड़ से कितनी बेलें निकली हैं और वे किस किस तरफ गई हैं | उसी जड़ से सभी बेलों के शिखरों तक पहुँचकर यह निश्चित किया जा सकता है कि बाहर दिखने वाली सिंघाड़े की बेलों में से कौन कौन सी बेलें एक जड़ से निकलने के कारण एक दूसरे से संबंधित हैं | उस एक जड़ के सूखने या टूटने से बाहर दिखने वाली वे सभी शाखाएँ  सूख सकती हैं |  

    इस घटना में देखा जाए तो तालाब में प्रत्यक्ष दिख रही सिंघाड़े की उन बहुत सारी बेलों को कैसे भी देखकर यह पता लगाया जाना संभव नहीं है कि कौन बेल किससे संबंधित है | इसके लिए उस जड़ तक जाना पड़ा जो प्रत्यक्ष न होकर परोक्ष है |उसके आधार पर उन बेलों के आपसी संबंध का पता लगाया जा सका !इसी प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं का भी अपना समूह होता है ! कुछ भिन्न भिन्न प्रकार की घटनाएँ एक ही समूह से संबंधित होती हैं | उनमें से किसी एक घटना के विषय में पता लगाना हो तो उसकी जड़ तक जाना पड़ेगा | जहाँ वे घटनाएँ पैदा हुई होती हैं एवं एक दूसरे से जुड़ी होती हैं | वह देखने के लिए परोक्ष विज्ञान के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान नहीं है | परोक्ष विज्ञान के अभाव में जो तीर तुक्के लगाए जाते हैं वे गलत होते हैं | सिंघाड़े की बेलों के आपसी संबंधों का पता तीर तुक्कों से कैसे लगाया जा सकता है |

    ऐसे ही जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं उनसे संबंधित बहुत सारी छोटी बड़ी घटनाएँ उन मुख्य घटनाओं से आगे या पीछे घटित होती हैं | जिन्हें देखकर उस मुख्य घटना के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है|जो परोक्ष विज्ञान से ही संभव है |

      किसी नहर में बहते जा रहे किसी मोटी लकड़ी के कुछ टुकड़े कभी आपस में टकराते हैं कभी एक साथ बहने लगते हैं तो कभी एक दूसरे से दूर चले जाते हैं | उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये सारी कलाएँ वे लकड़ी के टुकड़े कर रहे हैं ,जबकि इसमें लकड़ी के टुकड़ों का कोई योगदान नहीं है वो जिस धारा में बहे जा रहे हैं| उस धारा के ही अनुशार उन्हें बहना पड़ता है |लकड़ी के टुकड़े कितनी गति से आगे बढ़ेंगे ये बहकर कहाँ तक जाएँगे | यदि ये पता किया जाना है तो उन लकड़ी के टुकड़ों को देखकर नहीं पता लगाया जा सकता है | इसके लिए इन टुकड़ों के बहने का वास्तविक कारण खोजना होगा | चूँकि टुकड़े पानी की धारा में बह रहे हैं | इसलिए टुकड़ों के बहने या एक दूसरे के पास तथा नजदीक आने का कारण उस नहर की जलधारा है | इसके बाद देखना होगा कि वह जलधारा किसके आधीन है!तो पता लगा कि उस नहर में जो कर्मचारी पानी छोड़ते हैं ये उन्हें पता होगा | उनसे मिला गया तो वे कहते हैं कि हमें तो समयसारिणी  दे दी गई है कि हमें कब कब कितना पानी किस नहर में पानी छोड़ना है |ऐसी स्थिति में उन लकड़ी के टुकड़ों के बहने का मुख्यकारण वह समय सारिणी होती है |जिसके अनुसार नहर में पानी छोड़ा जाता है और उसी जल में लकड़ी के टुकड़े तैरते चले जा रहे होते हैं |वह मुख्यकारण पता लग जाने के बाद यह  लकड़ी के टुकड़े कितनी गति से आगे बढ़ेंगे और बहकर कहाँ तक जाएँगे |इसका अनुमान या पूर्वानुमान उस समयसारिणी के आधार पर लगाया जा सकता है |

      ऐसे ही किसी ट्रैन को किसी दिशा में जाते हुए देखकर यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि ये ट्रैन किस स्टेशन से चली है और किस स्टेशन तक जानी है | इसे किस किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँचना है और किस स्टेशन पर कितनी देर के लिए रुकना है| इस विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए ट्रैन के चालक से मिलकर पूछा जा सकता है | चालक वह  समय सारिणी दिखा देगा कि हमें तो इसके अनुशार चलना होता है | ऐसी स्थिति में ट्रेन के पास जाए बिना उसके चालक से मिले बिना भी केवल ट्रेन की समय सारिणी देखकर घर बैठे ट्रेन के विषय में सब कुछ पता लगाया जा सकता है | 

    जिस प्रकार से किसी भी उपग्रह रडार आदि से देखकर एवं किसी सुपर कंप्यूटर से गणना करके तालाब में तैरती सिंघाड़े की बेलों को देखकर उनकी जड़ से जुड़ी संबंधित बेलों के विषय में पता नहीं लगाया जा सकता है | ऐसे ही यंत्रों की मदद से नहर के पानी में बहते काष्ठ खंडों को देखकर उनके बहने एवं एक दूसरे के पास आने तथा दूर जाने तथा इनकी गति और गंतव्य को नहीं समझा जा सकता है और इनके विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि भी  नहीं लगाया जा सकता है |इसी प्रकार से किसी रूट पर जाती हुई ट्रेनों को देखकर ये नहीं  पता लगाया जा सकता है कि  ट्रैन किस स्टेशन से चली है और किस स्टेशन तक जानी है | इसे किस किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँचना है और किस स्टेशन पर कितनी देर के लिए रुकना है|                                                     ऐसी परिस्थिति में आकाश में उठे बादलों या आँधी  उपग्रहों रडारों की मदद से देखकर वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवातों  बज्रपातों आदि के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है| ऐसे ही पृथ्वी में गहरा गड्ढा खोदकर उसके आधार पर भूकंप आने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है | 

   कोरोना महामारी आ जाने के बाद लोगों के संक्रमित होने लगने के बाद कुछ लोगों के मृत्यु को प्राप्त होने लगने के बाद ये सब प्रत्यक्ष होता देखकर उसके आधार पर महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है | 

    कुल मिलाकर जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना है |इसका मतलब उन घटनाओं की जड़ तक जाकर उनके उनके स्वभाव को समझना है |उनके पैदा होने का कारण खोजना एवं पैदा होने की प्रक्रिया को समझना होगा | उन परोक्ष कारणों को खोजना होगा जिनसे ऐसी घटनाएँ जन्म लेती हैं | घटनाओं को समझकर उनका प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली प्राकृतिक घटनाओं के साथ मिलान करना होगा |  इसके बाद ही उन सब के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो पाएगा |

                                              प्राकृतिक रोगों एवं रोगियों के विषय में -

     महामारी जैसे  प्राकृतिक रोगों के पैदा और समाप्त होने के कारण प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ते !ऐसे रोग अपने निर्द्धारित समय पर पैदा होते हैं और निर्धारित समय तक रहते हैं और अपने निर्द्धारित समय पर ही समाप्त होते हैं |

       किसी स्वस्थ बलिष्ठ युवा व्यक्ति के शरीर में अचानक कोई रोग होने लगे और वो दिनोंदिन बढ़ता चला जा रहा हो !ऐसे रोगी की चिकित्सा यदि प्रत्यक्ष साक्ष्यों के आधार पर ही की जानी है तो उसके शरीर की जाँच की जाएगी !उन्हीं रिपोर्टों के आधार पर चिकित्सा की जाएगी | विशेष बात यह है कि कई बार रोग और रोगी की वर्तमान स्थिति का अच्छी प्रकार से आकलन करके चिकित्सा किए जाने पर भी उससे कोई लाभ नहीं होता है और रोग बढ़ता चला जाता है |ऐसा क्यों हो रहा है ? इस प्रश्न का उत्तर प्रत्यक्ष विज्ञान के आधार पर खोजना काफी कठिन होता है | 

    इसे ही परोक्ष विज्ञान के आधार पर देखना हो तो सबसे पहले ये पता करना होगा कि इस स्वस्थ बलिष्ठ युवा व्यक्ति के बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के अचानक रोगी होने का कारण क्या है | उस कारण को खोजने के बाद यह पता लगाना होगा कि उस व्यक्ति के रोगी होने का वह परोक्ष कारण उस व्यक्ति को कब तक रोगी रखेगा !उसके रोगी रखने की अवधि जब तक रहेगी तब तक उसे किसी औषधि से थोड़ा बहुत लाभ भले मिल जाए किंतु रोग मुक्ति मिलनी संभव नहीं होगी | वैसे भी जो परोक्ष कारण उस स्वस्थ बलिष्ठ युवा व्यक्ति को अचानक रोगी कर सकता है उसके रोग को दिनोंदिन बढ़ाने में सक्षम है | वह कमजोर कारण तो होगा नहीं उसे चिकित्साबल से समाप्त कैसे किया जा सकता है |वे अपनी अवधि पूरी होने पर ही जाते हैं | 

     ऐसे रोगों की अवधि जब पूरी हो रही होती है | उस समय उस रोग से बिना किसी प्रयत्न के ही मुक्ति मिल जाती है !इस लिए परोक्ष समयबल से वह रोगी स्वस्थ होने लगता है !किंतु परोक्षविज्ञान की जानकारी के अभाव में वह व्यक्ति उस परोक्षऊर्जा को समझ नहीं पाता है,जिसके बल पर वह स्वस्थ हो रहा होता है |इसलिए उस समय वह व्यक्ति जो औषधि ले रहा होता है |उसे ही वह अपने स्वस्थ होने का कारण मान लेता है | ऐसे समय लोग अपने या अपनों के स्वस्थ होने के लिए अनेकों प्रकार की औषधियाँ उपाय पूजा पाठ दानधर्म जादू टोना आदि  कर रहे होते है !कुछ लोग किसी विशेष डॉक्टर  से दवा ले रहे होते हैं कुछ लोग कुछ बड़े अस्पतालों में एडमिट होते हैं | जो जिस प्रकार के उपाय करता हुआ स्वस्थ होता है वो अपने स्वस्थ होने का कारण उसी उपाय  औषधि चिकित्सक धर्माचरण आदि को मानने  लगता है | 

     कुछ समय बाद उसीप्रकार के रोग से पीड़ित कोई दूसरा रोगी पहले स्वस्थ हो चुके रोगियों से  पूछता है कि आप कैसे स्वस्थ हुए थे तो वो अपने वही सब उपाय  औषधि चिकित्सक धर्माचरण आदि उपायों को अपने स्वस्थ होने का कारण बताता है, तो वह दूसरा रोगी भी वही सब उपाय करने लगता है किंतु उनसे उसे स्वास्थ्य लाभ नहीं होता है | उसका कारण उसके उस रोग की अवधि उस समय तक पूरी नहीं हो पाई होती है | इसलिए उसे उस समय स्वस्थ नहीं होना होता है | इसलिए वह स्वस्थ नहीं होता है |अपने स्वस्थ होने की अवधि आने पर ही वह स्वस्थ होगा !किसके स्वस्थ होने की अवधि कब आएगी | इसका ज्ञान परोक्ष विज्ञान के द्वारा ही किया जा सकता है !इसे समझे  बिना केवल चिकित्सा आदि उपायों के बलपर प्राकृतिक रोगों से मुक्ति नहीं मिल सकती है | 

      महामारी आदि प्राकृतिक रोगों के समय संक्रमण के बढ़ने का कारण पता नहीं लग पाता है | ऐसे समय लगता है कि संक्रमितों का स्पर्श करने से संक्रमण बढ़ता है,किंतु  बहुत लोग संक्रमितों के बीच सोते जागते खाते पीते नहाते धोते रहने के बाद भी संक्रमित नहीं होते हैं | इसका कारण  परोक्ष ऊर्जा से संपन्न लोगों को उस समय अस्वस्थ नहीं होना होता है| इसलिए वे रोगी नहीं होते हैं |उन्हें बाद में होना होता है तो बाद में रोगी होते हैं | जिन्हें महामारी के उन महीनों वर्षों में रोगी होना ही नहीं होता है | वे बाद में भी रोगी नहीं होते हैं |  






        परोक्षविज्ञान का मतलब ही परंपराविज्ञान होता है | किसी भी घटना के घटित होते समय जो दिखाई पड़ता है है अक्सर वो होता नहीं है ने   प्रत्यक्ष विज्ञान की अपेक्षा परोक्षविज्ञान की भूमिका कम नहीं होती है |इतने महत्वपूर्ण विज्ञान की उपेक्षा का ही परिणाम है कि प्राकृतिक रहस्य  अभी तक अनुद्घाटित हैं |उनके विषय में जो  

     विज्ञान में प्रत्यक्ष साक्ष्यों को ही  स्वीकार किया जाता है ,जबकि परंपरा विज्ञान में प्रत्यक्ष के साथ साथ परोक्ष विज्ञान का भी उपयोग किया जाता है|प्रत्यक्ष विज्ञान की अपेक्षा परोक्ष विज्ञान की भूमिका कम नहीं होती है | प्रत्यक्ष विज्ञान के  सहयोग से अच्छे से अच्छे संसाधन जुटाकर कार्य किया जा सकता  है ,किंतु उस कार्य को होना है या नहीं होना है | यह जानकारी परोक्ष विज्ञान के बिना कैसे मिल सकती है | 

      प्रत्यक्ष विज्ञान के बलपर अच्छी से अच्छी चिकित्सा की जा सकती है किंतु उसे स्वस्थ होना है या नहीं ये पता लगाने के लिए परोक्ष विज्ञान का ही सहारा लेना पड़ेगा | महामारी आ गई है ये प्रत्यक्ष विज्ञान से पता लगाया जा  सकता  है किंतु किसे संक्रमित होना है किसे नहीं ये तो परोक्ष विज्ञान से ही पता लगाया जा सकता है |

 

 

प्राचीन काल में पूर्वानुमान लगाने के लिए जो अनुसंधान किए जाते थे उनकी दो प्रमुख विधाए हैं | एक प्रत्यक्ष साक्ष्य आधारित अनुसंधान और दूसरे समय आधारित अनुसंधान !इनमें साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में अपनी आँखों से प्रत्यक्ष या किसी यंत्र की सहायता से देखकर,या किसी संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करके जो जानकारी जुटाई गई होती है और समय आधारित अनुसंधानों में सभी परोक्ष जानकारियाँ जुटानी होती हैं | उसका प्रत्यक्ष दीखने वाले परिवर्तनों से मिलान करते जाना होता है |

    अलनीनो लानिना जैसे समुद्री परिवर्तन हों या मौसम संबंधी जलवायु परिवर्तन इनके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि इनके स्वभाव के विषय में अभी तक कोई निश्चित जानकारी नहीं की जा सकी है | इसमें अंदाजे से कुछ भी नहीं चलेगा |मौसम संबंधी पूर्वानुमान ऐसे ही अंदाजे के आधार पर लगाए जाते हैं जिनमें से अधिकाँश सही नहीं निकल पाते हैं |     

     जिसप्रकार से कुछ खगोलीय कारणों से आकाश में अष्टमी को चंद्रमंडल आधा दिखाई दे रहा होता है,किंतु उसके बाद नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्र मंडल बढ़ेगा या घटेगा |ये वहाँ उस समय प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ रहा होता है |  इस विषय में कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है | यह घटना शुक्ल और कृष्ण पक्ष के आधार पर घटित होती है|जिसे केवल परोक्ष विज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है |  जिसका निर्णय गणित के द्वारा ही किया जा सकता है |

       जिस प्रकार से परोक्षविज्ञान का सहारा लिए बिना केवल अर्द्धचंद्र मंडल को प्रत्यक्ष देखकर उसके भावी स्वरूप के बढ़ने या घटनेके विषय में निर्णय नहीं लिया जा सकता है | उसीप्रकार से आँधी तूफानों या बादलों के प्रत्यक्ष स्वरूप को उपग्रहों रडारों की मदद से आगे से आगे देखा तो जा सकता है किंतु उनके भावी स्वरूपों के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | महामारी आदि जिस भी घटना के परोक्ष सिद्धांत की जानकारी नहीं होगी |उसके विषय में कोई अंदाजा भले ही लगा लिया जाए किंतु सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |

     परोक्ष विज्ञान की जानकारी के अभाव में जो गलतियाँ स्वयं की  जाती हैं उसके लिए जलवायु परिवर्तन या महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता है,जबकि परंपरा विज्ञान की दृष्टि से ऐसी कल्पनाओं का  कोई वैज्ञानिक आधार इसलिए नहीं है क्योंकि इसका परोक्ष विज्ञान ही नहीं पता है | जिसके बिना ये अनुमान किस आधार पर लगाया जा सकता है कि मौसम में हो रहा परिवर्तन उसका स्वाभाविक परिवर्तन है या ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन है | ऐसे ही महामारी में आने वाला बदलाव उसका स्वाभाविक परिवर्तन है या उसका स्वरूप परिवर्तन है |छोटे आम का रंग हरा एवं स्वाद खट्टा गुठली नरम होती है किंतु बड़ा होने पर रंग पीला,स्वाद मीठा एवं  गुठली कठोर हो जाती है |ये उसका स्वाभाविक परिवर्तन है जो  उसमें होना ही होता है |इसका पता तभी लग सकता है जब इसके परिवर्तन का स्वभाव पता हो! जिसे जानना परोक्ष विज्ञान के बिना संभव नहीं है |आम में ऐसा ऐसा बदलाव होगा ये उसे केवल प्रत्यक्ष देखकर ही पता नहीं लगाया जा सकता है |  

      परोक्षविज्ञान के आधार पर चंद्रमा के स्वभाव को समझे बिना यदि केवल प्रत्यक्ष के आधार पर नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्रमंडल के बढ़ने की भविष्यवाणी कर दी गई हो किंतु उस समय कृष्णपक्ष होने के कारण चंद्रमंडल घटने लगा हो तो भविष्यवाणी गलत निकल गई जिसका कारण उस कृष्ण पक्ष का पता न होना है |  जिसका पूर्वानुमान परोक्ष विज्ञान के आधार पर केवल  गणित के द्वारा ही लगाया जा सकता है | यदि परोक्ष विज्ञान और गणितविज्ञान दोनों की उपेक्षा करके पूर्वानुमान लगाया गया हो तो वो सही या गलत दोनों निकल सकता है | गलत निकलने में गलती अपनी यह है कि पूर्वानुमान लगाने के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया |अपने अज्ञान को छिपाने के लिए घटना को दोषी ठहराया जाना उचित नहीं है कि अक्सर ऐसे प्रकरणों में जलवायुपरिवर्तन को अनावश्यक रूप से घसीटा जाता है | 

      ऐसी भविष्यवाणियों के गलत निकलने का कारण उस परोक्षविज्ञान का पता न होना है जिसके आधार पर ऐसी सही भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं| परोक्षविज्ञान  संबंधी अनुसंधानों के द्वारा यदि इसकी समयसारिणी खोजी गई होती तो ये पता लगाया जा सकता था कि शुक्लपक्ष की अष्टमी के बाद चंद्रमा बढ़ता है और कृष्णपक्ष की अष्टमी के बाद घटता है | अबकी बार किस पक्ष की अष्टमी है यह भी पता लगा लिया जाता !इसके बाद चंद्रमंडल बढ़ेगा या घटेगा वह भी पता लगा लिया जाता | इसके आधार पर जो भविष्यवाणी की जाती वो बिल्कुल सही निकलती | 

     वस्तुतः शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष  दो अलग अलग समयखंडों  के नाम है| इन्हें और इनके प्रभाव को समय आधारित अनुसंधानों से ही समझा जा सकता है | इसके अतिरिक्त ऐसा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है जिसके आधार पर  उपग्रहों रडारों आदि से चंद्रमा या आकाशीय वर्तमान परिस्थितियों को प्रत्यक्ष रूप में देखकर यह पता लगाया जा सकता हो कि आगामी नवमी दशमी के बाद चंद्रमंडल बढ़ेगा या घटेगा |
       कुल मिलाकर समयआधारित अनुसंधानों  में ये मानकर चलना होता है कि प्रत्येक प्राकृतिक  घटना के घटित होने की  अपनी प्राकृतिक समयसारिणी होती है|जिसमें प्रत्येक घटना के घटित होने  का निश्चित समय दिया होता है ,कि किस घटना को कब घटित होना है | ऐसी सभी घटनाएँ उसी समयसारिणी के अनुशार घटित हुआ करती हैं | वो समय सारिणी यदि एकबार  खोज ली जाए तो उससे संबंधित सही जानकारी आगे से आगे मिलती चली जाएगी कि किस वर्ष के किस महीने के किस दिन आदि में कौन सी घटना घटित होनी है |

     सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में जो समय सारिणी प्राचीनकाल में खोजी गई थी | उसी समय सारिणी के आधार पर ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाया गया पूर्वानुमान आज भी पूरी तरह सही निकलता है |वही समय सारिणी यदि भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में भी खोज ली जाए तो इनमें से किस घटना को किस वर्ष के किस महीने के किस दिन में कितने समय पर घटित होना है | इसकी सही जानकारी सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाई जा सकती है |इससे मानवता की बहुत बड़ी मदद हो सकती है |इससे संबंधित अनुसंधान प्रत्येक घटना से संबंधित समय सारिणी को खोजने के लिए ही किए जाते हैं |   

     ये दोनों विधाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग होती हैं ,किंतु पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों विधाओं का संयुक्त अनुसंधान किया जाए तो अधिक सटीक होता है |

        उदाहरण : किसी ट्रेन के विषय में पता करना हो कि वो किस दिन कितने बजे किस स्टेशन से चलकर चलेगी | कितने कितने बजे किन किन स्टेशनों पर पहुँचेगी ! 

 इसका पूर्वानुमान यदि समय आधारित अनुसंधानों के अनुशार लगाया जाए तो रेलवे द्वारा पूर्वनिर्द्धारित समयसारिणी देखकर कर ट्रेनों  को देखे बिना भी उनके  विषय में संपूर्ण जानकारी जुटा ली जाएगी |भविष्य में उनका संचालन किस दिन किस प्रकार का होगा उसके विषय में भी जानकारी मिल जाएगी जो बिल्कुल सही होगी | यही पूर्वानुमान है | 

   इसी घटनाओं को यदि साक्ष्य आधारित अनुसंधानों की दृष्टि से देखा जाए तो ट्रेन को जाते हुए देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये ट्रेन इतनी गति से इस दिशा में जा रही है इसलिए इतने समय अमुक स्टेशन पर पहुँच सकती है | बादलों या आँधी तूफानों की तरह ही उपग्रहों रडारों से यदि ट्रेनों को भी दूर से देखने की सुविधा हो तो उन ट्रेनों को कुछ पहले से देखकर कुछ बाद तक देखे रहा जा सकता है |जिससे कुछ अधिक अनुभव मिल सकते हैं और कुछ अन्य स्टेशनों पर भी ट्रेन को देखा जा सकता है उसके आधार पर कुछ आगे की स्टेशनों के विषय में भी अंदाजा लगाया जा सकता है | ये संपूर्ण प्रक्रिया लगभग उसी प्रकार की है  जिस प्रकार से उपग्रहों रडारों की मदद से बादलों या आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुशार उनके विषय में अंदाजा लगा  लिया जाता है ,कि यदि ये इसी दिशा में इतनी ही गति से आगे बढ़ते रहे तो इतने दिनों में वहाँ पहुँच सकते हैं | उसके आधार पर अंदाजा लगाकर भविष्यवाणी कर दी जाती है | यदि इनकी गति और दिशा में  बदलाव हुआ तो भविष्यवाणी बदल जाती है या गलत निकल जाती है | 

      इस प्रक्रिया में पूर्वानुमान लगाने के नाम पर केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है | जिनके सच निकलने की संभावना जितने प्रतिशत होती है उतने ही प्रतिशत गलत निकलने की भी संभावना होती है | इसमें सच्चाई कितने प्रतिशत होगी कहा जाना कठिन है |

       इस विधा में आज का ट्रेन संचालन देखकर उसी के अनुशार कल परसों आदि के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है |कुछ ट्रेनों में ऐसा अंदाजा सही भी घटित होता है | कुछ ट्रेनों का एक सप्ताह में तीन तीन दिनों के लिए रोड बदल जाता है | उस समय ऐसे अंदाजे गलत निकल  जाते हैं |जिनके लिए हम ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं | यदि ऐसा न होता तो हम अंदाजा गलत न होता !पहले इसी रूट से  बजे इतनी ही गति से ट्रेन आती थी|आज इस रूट से ट्रेन नहीं आई इसलिए अंदाजा गलत निकल गया|मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत होने पर अक्सर ऐसी बातें सुनी जाती हैं | पहले ऐसा होता था अब वैसा नहीं हुआ| इसलिए हमारी मौसम संबंधी भविष्यवाणी गलत निकल गई | इस बात को कहा इसी प्रकार से जाता है किंतु प्रदर्शित यह किया जाता है कि गलती हमारे पूर्वानुमान लगाने की नहीं अपितु उस घटना की है जो उस प्रकार से नहीं घटित हुई जैसा सोचकर हमने अंदाजा लगाया था|प्राकृतिक घटनाओं के विषय में प्रकृति को अपने अनुशार नहीं चलाया जा सकता है, प्रत्युत प्रकृति के अनुशार चलकर ही हमें प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान करना होगा | 

     इस घटना को समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो यदि  ऐसी घटनाओं की समयसारिणी पता होती तो ट्रेन को प्रत्यक्ष देखे बिना भी यह पता होता कि ट्रेन सप्ताह के किन दिनों में किस रूट से जाएगी | यह सही जानकारी मिल सकती थी | मौसम के क्षेत्र में भी यदि समयसारिणी खोज ली जाए तो ये पहले से पता होता कि पिछले वर्ष इस महीने के इस सप्ताह में इस स्थान पर इतनी बारिश हुई थी अबकी बार उसकी अपेक्षा कब या अधिक बारिश होने की संभावना क्यों है और उसका कारण क्या है | 

     ऐसे पूर्वानुमानों के गलत निकलने का कारण उन घटनाओं से संबंधित समयसारिणी के विषय में जानकारी न होना  होता है ,जबकि अनुसंधान संबंधी ऐसी अपनी गलतियों का दोष उन प्राकृतिक घटनाओं के मत्थे मढ़ा जाता है | ट्रेन संबंधी समय सारिणी पता न होने के कारण हम उसके रूट परिवर्तन को नहीं समझ सके और गलत अंदाजा लगा बैठे वैसा घटित नहीं हुआ तो अपनी कमी न स्वीकार करते हुए इसके लिए ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में लगाए गए अंदाजे गलत निकल जाने पर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | महामारी के विषय में ऐसे अंदाजे गलत निकल जाने पर उसके लिए महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | 

    ऐसी घटनाओं में परिवर्तनों का कोई दोष नहीं होता है परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है ! हमारे  साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में वो क्षमता ही नहीं है जिसके आधार पर इसप्रकार के परिवर्तनों को आगे से आगे समझा जा सके और उनके विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके | 

     समयआधारित अनुसंधानों के द्वारा ऐसा किया जा सकता है | समयविज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाए हुए पूर्वानुमान जिसप्रकार से अभी भी सही निकलते हैं|उसीप्रकार  से  उसी समयविज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में,महामारी के विषय में अनुसंधान पूर्वक यदि वह समयसारिणी खोज ली जाती है ,जिसके आधार पर ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं,तो ऐसी घटनाओं के विषय में न केवल सही सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं,अपितु उनके घटित होने के आधारभूत कारण भी खोजने में सफलता मिल सकती है |

कोई टिप्पणी नहीं: