बुधवार, 23 जुलाई 2025

सरांशिका 23-7-2025

 

उदाहरण के लिए यदि ये कहा जाए कि तापमान कम होने से संक्रमण बढ़ता है ,तो देखा भी तो जाए कि तापमान काम होने पर संक्रमण बढ़ता है या नहीं | यदि बढ़ता है तो ठीक अन्यथा जिसने ऐसा कहा है | उसकी जवाब देही सुनिश्चित की जानी चाहिए कि उसने आखिर किस प्रकार के अनुसंधानों के आधार पर ऐसा कहा है | प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में ऐसा होते अक्सर देखा जाता है  | प्राकृतिक घटनाओं के अनुमानों पूर्वानुमानों के नाम पर कहा कुछ जाता है निकलता कुछ और है | ऐसा क्यों हुआ इसके लिए प्राकृतिक घटनाओं को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है | ऐसा हो गया इसलिए वैसा नहीं हुआ आदि आदि | सिद्धांततः जिस बात को कहने का आधार कोई मजबूत अनुसंधानजनित आधार  नहीं था | उसे आपने बोला ही क्यों ? 
     इसके लिए आवश्यक है कि पहले अनुसंधान कीजिए बाद में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाइए | किसी देश पर जब शत्रु देश ने हमला कर दिया हो तो सुरक्षा के लिए नौसिखिया सैनिक नहीं भेजे जाते हैं कि तुम सीख भी लोगे और देश की सुरक्षा भी कर लोगे| मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारी जैसी घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों के बिषय को छोड़कर किसी अन्य क्षेत्र में ऐसी लापरवाही नहीं होती है | 
     किसी का आपरेशन शुरू करने से पहले  ऐसी सारी तैयारियाँ करके रख ली जाती हैं | जिससे  ऑपरेशन  करते समय उत्पन्न होने वाली प्रत्येक परिस्थिति से निपटते हुए सही ऑपरेशन  किया  जा सके |इसी सावधानी एवं मजबूत तैयारी के कारण उनके द्वारा किए गए ऑपरेशन प्रायः सफल होते हैं | 
      महामारी और मौसम से संबंधित घटनाओं में उस प्रकार की तैयारियाँ  न होने के कारण उनके द्वारा लगाए हुए अनुमान पूर्वानुमान प्रायः गलत निकल जाते हैं | जिसका कारण जलवायुपरिवर्तन या महामारी  का स्वरूप  परिवर्तन बताया जाता है | इस बिषय में भी सोचने की आवश्यकता है कि जलवायुपरिवर्तन तथा महामारी  का स्वरूप  परिवर्तन जैसी घटनाएँ घटित होती भी हैं अथवा ये केवल कल्पना मात्र हैं | अनुमानों पूर्वानुमानों के नाम पर कुछ भी बोल दिया जाना उसके सही  निकलने पर उसे सही अनुमान पूर्वानुमान एवं गलत निकलने की दशा में उसे जलवायुपरिवर्तन या महामारी  का स्वरूप परिवर्तन बता दिया जाता है | ऐसी सुविधा जिस किसी भी अन्य क्षेत्र में हो वहाँ भी परिणामप्रद अनुसंधान होना संभव नहीं हो आएगा | 
        सच्चाई तो ये है कि भविष्य में झाँकने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है तो सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया कैसे जा सकता है | अनुमानों पूर्वानुमानों के नाम पर जो कुछ बोला जाता है कोई तुक्का लग जाए तो बात और है वैसे बिना किसी वैज्ञानिक आधार के वो सही कैसे निकल सकता है | वो गलत निकल जाए तो इसमें प्रकृति का दोष कैसे दिया जा सकता है | प्रकृति तो जैसी है वैसी ही रहेगी | वो कैसी है और भविष्य में कैसी रहेगी | यही समझने के लिए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की परिकल्पना की गई है | हम अपनी अनुसंधान संबंधी जिम्मेदारी ठीक से निभा न पावें और अपने द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वानुमानों के गलत निकलने पर प्रकृति को ही दोष देते घूमें |  उसका कारण जलवायुपरिवर्तन या स्वरूपपरिवर्तन होने को बतावें | ये विश्वसनीय कैसे हो सकता है | यदि कहा जाए कि जलवायुपरिवर्तन के लक्षण क्या होते हैं, तो एक ही बात है कि जो हमेंशा ऐसा होता था अब ऐसा हो रहा है | बिषय में प्रकृति की प्रवृत्ति को समझना पड़ेगा | अमावस्या या पूर्णिमा हर बार आती है किंतु ग्रहण किसी किसी  अमावस्या या पूर्णिमा को पड़ता है हर बार नहीं पड़ता है ये  जलवायुपरिवर्तन  नहीं है | ये प्रकृति का क्रम है जिसे  समझा जा चुका है |प्रकृति के जिस परिवर्तन को समझना संभव नहीं हो पाया है| उसे  समझने की  जलवायुपरिवर्तन   बताने की अपेक्षा समझने की आवश्यकता है |  
      किसी बिषय से संबंधित अनुसंधान  करने की यदि जिम्मेदारी ली है तो कुछ तो ऐसा करना पड़ेगा | जिससे ये सिद्ध हो सके कि ऐसे अनुसंधान न हुए होते तो ये ये नुक्सान हो सकता था | कारण गलत निकल गए हैं |ऐसा कैसे हो सकता है कि अनुसंधान भी हों और आवश्यकता पड़ने पर उनका कोई उपयोग भी न हो |ऐसा  कैसे हो सकता है | 

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