रविवार, 14 सितंबर 2025

14-9-2025 copy ...........................!

                                           प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित चिंताएँ  

      भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात अतिवर्षा बाढ़ सूखा एवं महामारी जैसी आपदाएँ आती हैं चली जाती हैं | इनमें जनधन का जो नुक्सान होना होता है वो हो जाता है | इन पर किसी का कोई बश नहीं चलता है | इन्हें सहना ही पड़ता है |  

   भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात अतिवर्षा बाढ़ सूखा एवं महामारी जैसी आपदा ओं से पीड़ित होकर बहुतों की जीवन लीला समाप्त हो जाती है | कई बार तो भारी जन धन  हानि हो जाती है | इनसे सुरक्षा के उद्देश्य से यदि कुछ किया जाना हो तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से रोका तो जा नहीं जा सकता है | इनसे बचाव ही किया जा सकता है|इनका वेग इतना अधिक होता है कि तुरंत की तैयारियों के बल पर इनसे सुरक्षा भी नहीं की जा सकती है | इतनी बड़ी प्राकृतिकआपदाओं से सुरक्षा की तैयारियाँ करने के लिए भी कुछ समय तो चाहिए |

     जिसप्रकार से किसी रोगी की  चिकित्सा कितनी भी अच्छी क्यों न कर ली जाए किंतु उसे स्वस्थ होने के लिए आवश्यक  समय तो चाहिए ही | इसी प्रकार से  संसाधन कितने भी जुटा लिए जाएँ किंतु केवल संसाधनों के बलपर प्राकृतिक आपदाओं से जनधन की सुरक्षा नहीं की जा सकती है| संसाधनों के होने के बाद भी इतनी बड़ी प्राकृतिकआपदाओं तथा महामारियों से सुरक्षा करने  के लिए जो आवश्यक तैयारियाँ करनी पड़ती है,सामग्रियाँ जुटानी पड़ती हैं | बड़े स्तर पर प्रयत्न करने पड़ते हैं  | इन सब में जो समय लगता है वो लगेगा ही !कितनी भी अच्छी तैयारियाँ  होने के बाद भी उससे संबंधित प्रयत्नों के लिए जो  समय चाहिए | वो तभी मिल सकता है जब घटनाओं के घटित होने के बिषय में पहले से पता  हो | इसके लिए घटनाओं के बिषय में सही पूर्वानुमान पहले से पता हों |  

    इसलिए पूर्वानुमानों के लगाने के लिए आज तक जितने भी प्रकार के प्रयत्न किए जा रहे हैं | उनके द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात अतिवर्षा बाढ़ बादल फटने सूखा एवं महामारी जैसी आपदाओं के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने में प्रायः सफलता नहीं मिल पा रही  है | ये हम सभी के लिए चिंता का बिषय है |

     इस बिषय में  वैज्ञानिक अनुसंधानों की  ओर देखा जाए तो अभी तक ऐसा कोई विज्ञान नहीं है|  जिसमें भविष्य  में झाँकने  की विधि बताई गई हो | ऐसा कोई वैज्ञानिक नहीं है जो 

          प्रशांत महासागर में घटित होने वाली  अलनीनो और लानिना जैसी घटनाएँ भी तो ऐसे ही प्राकृतिक संकेत हैं |दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान लगाने संबंधी अध्ययनों में उन संकेतों को भी सम्मिलित किया जाता है |ये एक संकेत है | ऐसे ही सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सूचना देने वाले प्राकृतिक वातावरण में घटित होने वाले असंख्य संकेत है  जो प्रशांत महासागर में होते हैं और वैश्विक जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं. अल नीनो में प्रशांत महासागर का पानी गर्म होता है, जबकि ला नीना में यह ठंडा हो जाता है. अल नीनो सूखा और कम बारिश का कारण बनता है, खासकर एशिया में, और ऑस्ट्रेलिया व इंडोनेशिया में बढ़ता है. ला नीना के विपरीत परिणाम होते हैं. दोनों ही घटनाएं मौसम, कृषि, और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डाल सकती हैं.  

                         

                                             मेरी अनुसंधान यात्रा के बिषय में चिंतन  

      प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सही पूर्वानुमान कैसे पता लगाया जाए | इ     स चिंता से चिंतित होकर मैं भारत के प्राचीन साहित्य का अध्ययन अनुशीलन आदि करता रहा | ऐसा अनुसंधान निरंतर करते रहने से विभिन्न ग्रंथों में कुछ संकेत ऐसे मिले | जिनसे ये पता लगा कि प्रकृति में घटित होने वाली प्रत्येक घटना का अपना एक समूह होता है | उस समूह में कुछ छोटी और कुछ बड़ी घटनाएँ सम्मिलित होती हैं | वे सभी कुछ कुछ समय के अंतराल में आगे पीछे ही घटित होती रहती हैं |कई बार आपस में एक दूसरे से संबंधित  कुछ प्राकृतिक घटनाएँ एक समूह की होने पर भी वर्षों के अंतराल में घटित होते देखी जाती हैं | कुछ घटनाएँ तो एक दूसरे से बारह वर्ष तक के अंतराल में  घटित होती हैं | ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ एक दूसरे के बिषय में अग्रिम सूचना दिया करती हैं | जिन्हें पहचानकर  उनसे संबंधित कुछ दूसरी संभावित घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इसमें घटना समूहों की पहचान करना सबसे चुनौती पूर्ण कार्य होता है | कौन घटना किस घटना समूह से संबंधित है |यह पता करना कठिन होता है किंतु  इसके साथ कुछ अन्य घटनाओं का भी सहारा लेना होता है | उससे बात स्पष्ट हो जाती है |  

    पृथ्वी से आकाश तक समस्त प्राकृतिक वातावरण में  घटनाएँ तो दिन रात घटित होती ही रहती हैं | उनमें कुछ छोटी तो कुछ बड़ी होती हैं कुछ प्राकृतिक वातावरण में प्रकट होने वाले अत्यंत छोटे छोटे चिन्ह होते हैं | जो आकाश में पृथ्वी पर पहाड़ों पर पेड़ों पौधों वृक्षों बनस्पतियों फसलों एवं  समुद्रों नदियों तालाबों आदि में ऐसे चिन्ह प्रकट होते रहते हैं | इनमें से कुछ दीर्घकाल तक दिखाई देते रहते हैं तो कुछ प्रतिपल प्रकट और बिलीन होते रहते हैं | जिन्हें निरंतर देखते एवं अनुभव करते रहना होता है |ऐसे कुछ चिन्ह यदि छूट जाते हैं तो उन्हें कुछ दूसरी घटनाओं के आधार पर पहुँचने का प्रयत्न किया जाता है | यदि ऐसा न किया जा सका तो वो तारतम्य टूट जाता है | उससे फिर कुछ आगे जाकर जुड़ना होता है |     

     ऐसे प्राकृतिक चिन्हों को देखने  तथा अनुभव करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान प्राकृतिक वातावरण होता है | प्राचीनकाल के ऋषिवैज्ञानिक  ऐसे चिन्हों को निरंतर देखने अनुभव करने के लिए ही जंगलों में ही निवास किया करते थे | इन्हें प्राकृतिक वातावरण में रहकर जितने अच्छे ढंग से  पहचाना जा सकता है |वैसा और कहीं संभव नहीं हो पाता है | उन वैज्ञानिकऋषियों  से मिलने समय समय पर राजा लोग  भी उनके आश्रमों में जाया करते थे | उन संकेतों के आधार पर भविष्य संबंधी संभावनाओं का पता किया करते थे | 

    कभी कभी अचानक प्रकृति में कुछ बड़े परिवर्तन होने लगते थे |उनमें से कुछ ऐसे परिवर्तन भी हुआ करते थे |जो किसी हिंसक घटना की सूचना दे रहे होते थे | उनसे  बचाव की तैयारियाँ तुरंत शुरू करनी आवश्यक होती थीं |  ऐसी सूचनाएँ राजा को तुरंत बतानी आवश्यक होती थीं | उनके लिए ऋषिवैज्ञानिकों को उसी समय राजदरवारों में पहुँचकर उनकी सूचना  राजा को  देनी होती थी | इसलिए वे पहुँचा वहाँ करते थे |      

      प्राचीनकाल में  ऋषिवैज्ञानिक गृहस्थ भी हुआ करते थे | उनके भी पत्नी बच्चे होते थे |सुख सुविधापूर्ण जीवन की आवश्यकता उन्हें भी होती थी | ऋषिलोग इच्छा व्यक्त करते तो  राजालोग  उन्हें महानगरों में सुख सुविधापूर्ण जीवन दे सकते थे किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया | वे जानते थे कि प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन अनुभव आदि प्राकृतिक वातावरण में रहकर ही किया जा सकता है | ऋषि चाहते तो स्वयं जंगलों में रहकर प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव करते रहते और अपने पत्नी बच्चों को महानगरों में रखकर सुख सुविधा पूर्ण जीवन दे सकते थे | ऐसा इसलिए नहीं किया जाता रहा क्योंकि भविष्य के वैज्ञानिक तैयार करने के लिए बच्चों साथ रखकर ही प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव कराया जाना था | इससे  उन्हें प्राकृतिक अध्ययन अनुभव  आदि कैसे मिल पाते | 



       



 

 उनके बिषय में सही पूर्वानुमान ही पता लगा लिया जाए तो 

 

ऐसा न हो इसके लिए क्या किया जाना चाहिए | इस बिचार से मैं काफी समय तक गंभीर चिंतन में डूबा रहा |इसी प्रकार के चिंतन में निरत एक दिन बिचार आया कि सृष्टि के आरंभ काल में जब जनसंख्या बहुत कम थी|  भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात अतिवर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी हिंसक घटनाएँ तो उस समय भी घटित होती रही होंगी |उस समय के लोग अपनी सुरक्षा किस प्रकार से करते रहे होंगे | इस भावना से सनातनधर्म के प्राचीन अनुसंधानों को देखने समझने का भाव प्रबल होता चला गया | 

                                              समय  प्राकृतिक घटनाएँ और गणितविज्ञान  ! 
 
     मैं पिछले 35 वर्षों से समय के आधार पर  प्राकृतिक घटनाओं एवं रोगों महारोगों के पैदा होने समाप्त होने की प्रक्रिया को समझने के लिए अनुसंधान करता आ रहा हूँ | इसके साथ ही साथ मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं का वेग बढ़ने घटने का कारण खोजने के लिए निरंतर प्रयत्न करता आ रहा हूँ | ऐसे अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारियाँ आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं | वस्तुतः वे प्राकृतिकपरिवर्तन हैं | जो प्रकृति और जीवन में प्रतिपल होते रहते हैं | इनमें कुछ छोटे तो कुछ बड़े  परिवर्तन होते हैं | कुछ जो अत्यंत सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं | वे  दिखाई नहीं देते हैं | कुछ जो दिखाई देते हैं |उनका महत्त्व पता न होने के कारण उधर किसी का  ध्यान नहीं जाता है | ऐसे ही कुछ बड़े परिवर्तन  होते हैं जिन्हें भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारियों के रूप में जाना जाता है | कुछ इससे भी बड़े परिवर्तन होते हैं | जो हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के रूप में घटित होते दिखाई देते हैं |        प्रकृति में होने वाले ऐसे सभी परिवर्तनों के घटित होने का कारण समय होता है| समय हमेंशा बदलता रहता है | समय के प्रभाव से प्रकृति भी बदलती रहती है |इसीलिए भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के पैदा एवं समाप्त होने का कारण भी समय ही होता है |  
     प्रकृति में होने वाला प्रत्येक परिवर्तन अचानक नहीं होता है और न ही किसी भी समय होने लगता है |सभी परिवर्तनों का समय सुनिश्चित होता है| इसीलिए सूर्य चंद्र आदि ग्रहों के उदय या अस्त होने का जो समय निश्चित होता है | उन्हें उसी समय पर उदय या अस्त होते देखा जाता है | संपूर्ण ग्रहसंचार उस समय के अनुसार ही घटित होता रहता है |सभी ऋतुओं का आना जाना समय के अनुसार ही निर्धारित  होता है | प्रकृति में जिसप्रकार का परिवर्तन जिससमय होना होता है | उस समय को खोज लिया जाए तो उस घटना के घटित होने के समय को भी खोजा सा सकता है | जो उस समय में घटित होने वाली होती है | 
    प्रकृति की भाषा गणित है | इसलिए प्रकृति संबंधी परिवर्तनों को गणित से ही समझा जा सकता है | जिस गणितविज्ञान  के आधार पर  सूर्य चंद्र ग्रहणों के बिषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं का घटित होना भी उन्हीं प्राकृतिक परिवर्तनों का ही हिस्सा हैं | इसलिए उसी गणित विज्ञान के आधार पर भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ एवं महामारियों आदि के बिषय में भी अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है| 
     समय संचार संबंधी इन्हीं अनुभवों के आधार पर मैं  लगभग सभी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुसंधान करता रहता हूँ | उसी क्रम में बार बार ऐसा ऐसा प्रतीत होता रहा कि ऐसा कोई महारोग पैदा होने का समय आ रहा है | 
 
                              गणितविज्ञान  व्यवहारविज्ञान और महामारी 
       गणितविज्ञान के आधार पर तो महामारी (कोरोना ) जैसे किसी बड़े रोग की संभावनाएँ काफी पहले पता लग जाती हैं ,किंतु इनसे संबंधित लक्षणों का प्रत्यक्ष परीक्षण  किए बिना किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन  होता है |
      इसलिए किसी भी प्राकृतिकघटना के बिषय में गणित के द्वारा जो बहुत पहले पता लग चुका हो,उसके पूर्व लक्षण प्रत्यक्ष  व्यवहार में भी दिखाई देने चाहिए |प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के अनुसंधानों के आधार पर परीक्षण होने के बाद ही किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है |
      किसी घटना के बिषय में गणित के द्वारा जो पता लग पाता है | वो तो संपूर्ण विश्व से संबंधित जानकारी होती है |गणित के आधार पर बहुत अधिक तो उसकी दिशा के बिषय में अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसी घटना पृथ्वी के मेरु भाग से किस दिशा में घटित हो  सकती है | 
     किसी भी घटना के घटित होने का निश्चित स्थान पता लगाने के लिए उस घटना के घटित होने से पहले वहाँ के प्राकृतिक वातावरण में प्रकट हो रहे प्राकृतिक लक्षणों प्रभावों आदि के चिन्हों की पहचान करनी होती है| उस घटना से संबंधित चिन्ह जिस क्षेत्र में दिखाई पड़ने लगते हैं | उस घटना के उसी क्षेत्र में  घटित होने की अधिक संभावना होती है | ये प्रत्यक्ष लक्षणों की पहचान ही व्यवहार विज्ञान है |  
     कुलमिलाकर गणितविज्ञान के द्वारा घटनाओं के निर्मित होने के समय और प्रक्रिया का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ,किंतु उसके घटित होने का निश्चित स्थान प्रभाव आदि का अनुमान पूर्वानुमान आदि व्यवहार विज्ञान से ही समझा जा सकता है |      
    किसी भी अनुसंधान के लिए आवश्यक होता है  कि किसी घटना के बिषय में एक बार जो अनुभव हुए हों |उसी प्रकार की दूसरी घटनाओं पर उनका पुनः परीक्षण किया जाए ! किंतु महामारियों का आपसी अंतराल काफी अधिक होता है | इसलिए इनका परीक्षण इस प्रकार से किया जाना संभव नहीं होता है | इसलिए लक्षणों के आधार पर इन्हें पहचानना कठिन होता है | 
      व्यवहारविज्ञान से अभिप्राय  प्रत्यक्ष लक्षणों के आधार पर महामारी को पहचानना होता है | जिस प्रकार से कोई स्त्री जब किसी बच्चे को गर्भ में धारण करती है तो उसके शरीर में कुछ ऐसे परिवर्तन होने लगते हैं | जो हमेंशा होते नहीं  देखे जाते हैं | गर्भ के होने के समय की निश्चित जानकारी न होने के बाद भी  अनुभवी माताएँ उन विभिन्न प्रकार के लक्षणों को देखकर गर्भ होने का अनुमान लगा लिया  करती हैं |
     इसीप्रकार से प्रकृति के गर्भ में जब कोई घटना पैदा होकर पलना  बढ़ना प्रारंभ होती है तो उसके गर्भ लक्षण भी प्राकृतिक वातावरण में प्रकट होने लगते हैं | अनुभवी लोग उन लक्षणों के आधार पर ऐसी घटनाओं को आगे से आगे पहचान लिया करते हैं | 
     जिसप्रकार से गर्भिणी स्त्री की भूख प्यास रहन सहन सोने जागने उठने बैठने सोचने समझने आदि व्यवहारों में कुछ ऐसे परिवर्तन होते देखे जाते हैं |जो केवल गर्भकाल में ही प्रकट होते हैं |  गर्भ प्रसव के बाद ये सब स्वतः शांत हो जाते हैं |
     इसीप्रकार से प्रकृति भी स्त्री की तरह ही है और समय ही पुरुष है | विविधप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ ही उनकी संतानें हैं | प्रकृति और समय के संयोग से अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं का गर्भ स्थापन होता है | जिस प्रकार की घटना को प्रकृति जब गर्भ में धारण करती  है | जितने समय तक वह घटना गर्भ में रहती है | उतने समय तक प्रकृति में उसी प्रकार के गर्भ लक्षण  प्रकट होते रहते हैं | ऐसा प्राकृतिक गर्भ होने पर प्रकृति में कुछ उसप्रकार के बदलाव होने लगते हैं | जो उससे संबंधित घटना के घटित होने के बाद स्वतः समाप्त हो जाते हैं | ये गर्भजनित उपद्रव होते हैं | 
    महामारी जब प्रारंभ होनी होती है| उसके कुछ पहले से ऋतुएँ अपनी समय सीमा लाँघने लगती हैं | वे कभी कभी अपने स्वभाव के विरुद्ध व्यवहार करने लगती हैं | अतिवर्षा या सूखा, बार बार भूकंप, बज्रपात, तूफ़ान एवं तापमान का असीमित रूप से घटना बढ़ना आदि | महामारी गर्भित प्रकृति के लक्षण प्रकट होने लगते हैं | इन्हें समझकर ही भावी रोगों महारोगों को समझा जाना संभव है | इनके बिषय में सूक्ष्म अध्ययन करके भावी महामारी या कुछ अन्य प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | 
      किस प्रकार के प्राकृतिक लक्षण किसप्रकार की प्राकृतिक घटना के बिषय में सूचना दे रहे होते हैं | इसे समझकर घटनाओं के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाता है | ऐसे ही प्रायः सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता होती है | कोरोना महामारी के आने के लगभग 12 वर्ष पहले से प्रकृति में  कुछ उस प्रकार के प्राकृतिक लक्षण प्रकट होने लगे थे |जो प्रकृति में कुछ विशेष घटित होने के संकेत देने लगे थे | सन 2016 के बाद यह स्पष्ट  होने  लगा था कि प्रकृति का झुकाव  प्राकृतिक तत्वों में असंतुलन पैदा करता जा  रहा है | ये प्राणियों के स्वास्थ्य  के लिए अच्छे संकेत  नहीं हैं | इस प्रकार के लक्षण बढ़ते देखकर मैंने सर्व प्रथम  20 अक्टूबर 2018 को भारत के पीएमओ को मेल भेजी थी |   
 
                20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल में लिखित स्वास्थ्य संबंधी विशेष अंश  !

    " 10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा !इसमें प्राकृतिक आपदाएँ हों या मनुष्यकृत लापरवाही उत्तेजना उन्माद आदि का अशुभ असर  इस समय विशेष अधिक होगा ! वायु प्रदूषण सीमा से काफी अधिक बढ़ जाएगा !स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !इस समय थोड़ा सा विवाद भी बहुत बड़े संघर्ष का स्वरूप धारण कर सकता है !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !"  
 ये महामारी का पूर्व रूप ही था | जो सन 2018 में थोड़े समय के लिए आया था | इस समय संक्रमण काल कम होने के कारण इसका सामान्य प्रभाव कुछ देशों प्रदेशों में ही दिखाई पड़ा था |     
     मैंने अपने समयसंबंधी अनुसंधान के द्वारा महामारी के बिषय में शुरू से समाप्ति तक वो सबकुछ पता लगाने का प्रयत्न किया है | जो जो महामारी को समझने के लिए आवश्यक था | महामारी संबंधी प्रत्येक लहर की जानकारी एवं अनुमान पूर्वानुमान आदि मेल के माध्यम से भारत के पीएमओ की मेलपर आगे से आगे भेजता रहा हूँ | 
     इसी क्रम में 19 मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने महामारी के स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसार माध्यम अंतर्गम्यता अनुमान पूर्वानुमान आदि के बिषय में जो जो लिखा है | वो सब सही घटित हुआ है |इनकी गणना मैंने समयविज्ञान के अनुसार ही की थी | 


     
                             20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल का चित्र 
 
 ____________________________________________________
 
                              19 मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल 
 
    19 मार्च 2020 की मेल का महामारी पर समय का प्रभाव पड़ने से संबंधित अंश -"
   "  किसी भी महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही महामारी की समाप्ति होती है | समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |"  
  
 19 मार्च 2020 की मेल का महामारी पैदा होने की प्रक्रिया से संबंधित अंश -"
  "  कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती  है |  ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है | इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है |"  

  19 मार्च 2020 की मेल का महामारी से  मुक्ति मिलने की प्रक्रिया से संबंधित अंश -"
    " पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है | "  
 
 19 मार्च 2020 की मेल का निदान एवं चिकित्सा न हो पाने से संबंधित अंश - 
 "इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |" अर्थात इस महारोग के लक्षणों को न तो पहचाना जा सकेगा और न ही चिकित्सा के द्वारा इस महारोग से मुक्ति दिलाई जा सकेगी |       
 19 मार्च 2020 की मेल का व्यक्तिगत तौर पर संक्रमण से मुक्ति पाने के उपाय से संबंधितअंश -
      " ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |" अर्थात ऐसा संयमवरत कर अपने को रोगमुक्त किया जा सकता है |       
     19 मार्च 2020 की मेल में महामारी प्रथम लहर के पूर्वानुमान  संबंधी अंश - 
 "महामारी बढ़ने का यह समय  24 मार्च 2020 तक चलेगा | उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"                                    
   
विशेष बात : 

     19 मई 2020 को पीएमओ की मेल में मैंने पहले ही लिख दिया था कि  6 मई के बाद संक्रमण दिनों दिन कम होता चला जाएगा | ये हमें वेदविज्ञान  संबंधी अनुसंधानों के आधार पर पहले से ही पता था कि 6 मई के बाद समय बदलेगा |उस बदलाव के कारण लोग संक्रमण से मुक्त होते चले जाएँगे  | जून जुलाई आदि महीनों में  संक्रमण दिनोंदिन घटते जाने का कारण यदि समय नहीं था  तो दूसरा और क्या हो सकता है | उस समय तो कोई औषधि या चिकित्सा प्रक्रिया भी नहीं थी | 

दो संयुक्त लहरों के बिषय में विशेष बात : 

    वैदिकविज्ञान की दृष्टि से  देखा जाए  तो महामारी की पहली लहर 6 मई 2020 को समाप्त हो गई थी |उसके बाद दूसरी लहर  8 अगस्त 2020 से प्रारंभ होकर 18 सितंबर 2020 तक  शिखर पर पहुँची थी | उसके बाद संक्रमण कम होना प्रारंभ हो गया था जो 13 नवंबर 2020 में समाप्त हुआ था | इसमें विशेष बात यह है कि 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020  के बीच के समय में संक्रमण बहुत कमजोर पड़ जाने पर भी पहले संक्रमित होते रहे लोगों की जाँच रिपोर्टें इस समय में आती रही थीं | इसलिए महामारी जब कमजोर होती जा रही थी ,तब भी लोग संक्रमित पाए  जा  रहे  थे | इसलिए इन दोनों लहरों को मिलाकर एक करके देखा जाता रहा है |   

  19 मार्च 2020   को पीएमओ को भेजी गई  मेल का चित्र |
 
 
 
 16 जून 2020  को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! (9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )  

   "इसके बाद यह महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और  16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"

इस बिषय में वैदिकविज्ञान की प्रामाणिकता : 

   16 जून 2020 को जब संक्रमण दिनोंदिन घटता जा रहा था | इसके  बढ़ने के आसार दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहे थे | उसी 16 जून को वैदिकअनुसंधानों के आधार पर पूर्वानुमान लगाकर मैंने यह सूचना पीएमओ की मेल पर भेजी थी कि महामारी की अगली लहर 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक रहेगी !उसके बाद समाप्त होना शुरू होगा जो क्रमशः  16 नवंबर 2020 तक जाएगा | समय संचार में हुए परिवर्तनों के आधार पर मैंने यह पूर्वानुमान लगाया था |  

 4 अगस्त 2020 को संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजी गई मेल का अंश !(9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )  

"8 अगस्त के बाद कोरोना संक्रमण एक बार फिर बढ़ने लगेगा और यह कहीं भी समाज के  बड़े हिस्से को संक्रमित कर सकता है। अगले 50 दिनों में यह संक्रमण इतना बढ़ सकता है कि यह एक बार फिर अपने पुराने स्वरूप में पहुँच सकता है। रिकवरी दर बहुत कम होने लग सकती है। अनुमान है कि 24 सितंबर तक संक्रमण तेज़ी से बढ़ सकता है। इसलिए, सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है। इसलिए, हमें यह आकलन करने के लिए लगभग 50 दिन और इंतज़ार करना चाहिए कि यह महामारी स्थायी रूप से समाप्त होने लगी है या नहीं।"  

 23 दिस॰ 2020 को पीएमओ में भेजी गई मेल के वैक्सीन निषेध संबंधी कुछ अंश ! 
 
    प्रधानमंत्री जी ! "आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |"
     "महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को जन्म दिया जा सकता है |"  
"यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ?" 
     "किसी भी रोग से मुक्ति दिलाने अथवा उसकी दवा या वैक्सीन बनाने के लिए सबसे पहले  चिकित्सा के सिद्धांत के अनुशार उस रोग का स्वभाव लक्षण संक्रामकता वेग विस्तार आदि समझना आवश्यक होता है अन्यथा उस रोग की चिकित्सा किस आधार पर की जा सकती है और उसकी दवा या वैक्सीन कैसे बनाई जा सकती है? "
     "मान्यवर !वेदवैज्ञानिक होने के नाते आपसे मैं केवल इतना ही निवेदन करना चाहता हूँ कि बिना वैक्सीन लाए ही भारतवर्ष  में कोरोना लगभग समाप्त हो ही चुका है जो रहा बचा है वह भी अतिशीघ्र समाप्त हो जाएगा (इसका पूर्वानुमान मैं 16 जून को ही आपको भेज चुका हूँ |)"  
       " ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिल्कुल ही नहीं है | यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं | " 
  
23 दिस॰ 2020 की मेल पर विनम्र निवेदन !
      वैक्सीन को न लगाने के लिए कहने का मेरा उद्देश्य वैक्सीन के गुण दोष देखना नहीं था !ऐसा मैं कर भी नहीं  सकता था !क्योंकि मेरा वो बिषय भी नहीं है | मुझे इतना पता था कि इस समय यदि ऐसा कोई वैक्सीन लगाने जैसा प्रयत्न किया जाएगा तो उसके दुष्प्रभाव अधिक होंगे | यह काफी कठिन समय था | वैक्सीन लगेगी तो संक्रमण बढ़ेगा ही और जैसे जैसे वैक्सीन लगती जाएगी वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता  जाएगा | वैक्सीन कब कितनी लगेगी या नहीं भी लगेगी इसका मुझे अनुमान नहीं था |इसलिए इसके बाद वाली लहर कब  आएगी कितनी भीषण होगी !इसके बिषय में मैंने पहले से कोई पूर्वानुमान पीएमओ को नहीं भेजा था ,क्योंकि यह लहर वैक्सीन लगाने या न लगाने पर निर्भर थी | इसलिए जैसे जैसे वैक्सीन लगती गई वैसे वैसे संक्रमण बढ़ते चला गया |समय और वैक्सीन के प्रभाव से  वो बढ़ना ही था | संक्रमण जब अधिक बढ़ गया तो सरकारों में सम्मिलित मेरे कुछ मित्रों ने व्यक्तिगत  तौर पर किसी ऐसे यज्ञ को करने के लिए मुझसे कहा कहा जिससे महामारी को रोका जा सके | ये 19 अप्रैल 2021 की बात है | इसे से प्रेरित होकर मैंने 19 अप्रैल 2021को ही रात्रि 11. 57 पर पीएमओ को मेल भेजी थी | 
 
 
 19 अप्रैल 2021को पीएमओ को भेजी गई मेल के "यज्ञ के द्वारा महामारी नियंत्रण करने संबंधी कुछ अंश ! "  

   "महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से "श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने  ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ करने जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय' में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर क्षमा  माँगने का मैंने  निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर  देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | "  

 18 दिस॰ 2021 को पीएमओ को भेजी गई मेल  का तीसरी लहर के बिषय में पूर्वानुमान बिषयक अंश ! "  

  "वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |"  

20 फ़र॰ 2022 को  आगामी लहर के बिषय में  पीएमओ को भेजी गई मेल  का पूर्वानुमान बिषयक अंश !    "कोरोना महामारी की चौथी लहर 27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी | "  

      समाचारआज तक  : 26-4-2022 :  दुनिया भर में कोरोना का कहर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. कोरोना की तीसरी लहर समाप्त होने के बाद ऐसा लग रहा था मानों अब कोरोना हमेशा के लिए चला चला गया है लेकिन फिर से कोरोना के बढ़ते मामलों ने लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया है. दुनिया समेत भारत में भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं see more.. https://www.aajtak.in/health/story/corona-virus-omicron-fourth-wave-india-preparation-lockdown-restriction-doctor-explain-tlif-1452972-2022-04-26...


 29 अप्रैल 2022 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 
    
 "कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी | उसके संपर्क  वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त 2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |" 
विशेष जानकारी   मैप में है  
 
 21 अक्टू॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 

    "24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18 नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी !इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी |" 

 

 29 दिस॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
  "  कोरोना महामारी की अगली लहर  10  जनवरी 2023  से प्रारंभ होगी !14 जनवरी 2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी  और 22 जनवरी 2023 से महामारी जनित संक्रमण काफी तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी !  21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च 2023 तक बढ़ेगी उसके बाद  समाप्त होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा ! विशेष बात यह है कि संक्रमण बहुत अधिक नहीं बढ़ेगा फिर भी तीसरी लहर से कम भी नहीं रहेगा ! बहुत अधिक बढ़ने या हिंसक होने से रोकने के लिए आवश्यक सावधानी बरतना श्रेयस्कर रहेगा | "
 विशेष :जानकारी मैप में है | 
 
 
 6 जुल॰ 2023 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    "2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद  20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग  5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो पाएगी |मेरा ऐसा अनुमान है | " 
 
   23 मई 2024  को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
     " 29 जून 2024 से प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन प्रदूषित होते देखा जा सकता है |इसी बीच कुछ देशों में महामारी जनित संक्रमण के बढने की प्रक्रिया प्रारंभ हो  सकती है |यद्यपि इसकी गति धीमी होगी फिर भी 14 नवंबर 2024 के पहले पहले महामारी का एक  झटका लग सकता है | इसे प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाने वाला महामारी का ट्रायल कहा जा सकता है | 5 अप्रैल  2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की दूसरी लहर की तरह ही विशेष डरावना स्वरूप  धारण करे | जिसमें विश्व का बड़ा भाग संक्रमित हो जाए | वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो भिन्न भिन्न देशों में महामारी का यह तांडव 2025 के अप्रैल मई दोनों महीनों में देखने को मिल सकता है | यद्यपि इसके बिल्कुल स्पष्ट लक्षण सितंबर 2024  तक प्रकट हो जाएँगे | जिन्हें परोक्ष विज्ञान के द्वारा देखा जा सकेगा  |आवश्यकता पड़ी तो उस समय इस पूर्वानुमान की तारीखों में 10 प्रतिशत तक परिवर्तन करना पड़  सकता है |"
 
 19 अग॰ 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    20 अगस्त 2024 से महामारी जैसे महारोगों के बढ़ने का समय शुरू हो रहा है | इससमय से प्राकृतिक वातावरण तेजी से बिषैला होना प्रारंभ हो जाएगा | इससे वायु मंडल के साथ साथ खाने पीने की  वस्तुएँ संक्रमित होने लगेंगी |बिषैले वातावरण में साँस लेने से एवं संक्रमित वस्तुओं के खानपान से लोग स्वतः संक्रमित होते चले जाएँगे | समय प्रभाव से औषधियों के भी संक्रमित हो जाने के कारण संक्रमितों को औषधियों के सेवन या चिकित्सा आदि से भी कोई लाभ नहीं होगा | 22 सितंबर 2024 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ने लगेगी | 11 से 18 अक्टूबर के बीच में यह लहर सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच जाएगी | 20 अक्टूबर 2024 से संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे कम होनी प्रारंभ हो जाएगी | इसी क्रम में ये लहर यहीं से समाप्त होनी  शुरू  हो  जाएगी | 
 
 4  मार्च  2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
     "   1 मई 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही डरावना स्वरूप  धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 19 मई 2025 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ  हो जाएगा | "
 
 16 मई 2025 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    "25 सितंबर 2025  से कोरोनामहामारी की आगामी लहर प्रारंभ होगी | यह क्रमशः बढ़ती चली जाएगी | इससे लोग तेजी से संक्रमित होते चले जाएँगे | ये कई महीनों तक चलेगी | महामारी की यह लहर 31जनवरी 2026 तक संपूर्ण वायुमंडल को बिषैला करती रहेगी  | उसके बाद विराम लगने लगेगा | 12 फरवरी 2026 के बाद समाज को भी यह भरोसा होने लगेगा | अब महामारी से मुक्ति मिल जाएगी | "       

 

 

 
________________________________________________________________________________ 
 
         6 मई 2020 से  8 अगस्त 2020 के बीच जो ट्रायल सफल हुए वही दूसरी लहर में असफल क्यों ?
                    
       बिचारणीय बिषय यह है कि  6 मई 2020 से  8 अगस्त 2020 के बीच जिन औषधियों टीकों आदि को कोरोना संक्रमण से मुक्ति दिलाने में सक्षम माना गया था | अप्रैल मई 2021 पहुँचते पहुँचते उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में यह कहा जाने लगा कि उनमें संक्रमण से मुक्ति दिलाने की क्षमता नहीं है | 
      जिन औषधियों टीकों आदि के प्रभाव को महामारी से मुक्ति दिलाने पहले सक्षम माना गया| उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में अप्रैल 2021 के बाद में कहा जाने लगा कि उनमें महामारी से मुक्ति दिलाने की  उस प्रकार की क्षमता नहीं है | 
   विज्ञान एकप्रकार का, वैज्ञानिक  एक प्रकार के और अनुसंधान एक प्रकार के उनसे प्राप्त जानकारी में इतना अंतर कैसे आया | इस बिषय में  रिसर्च करने के लिए क्या ऐसा कोई सक्षम विज्ञान ही नहीं था | कहीं ऐसा तो नहीं था कि  किसी सक्षम विज्ञान के अभाव में जब जिसप्रकार की घटना घटित होने लगती थी, तब उसप्रकार की घटना घटित होने की संभावना व्यक्त कर दी जाती थी | 
     इससे अलग यदि कोई वास्तविक विज्ञान भी था वैज्ञानिक भी थे और अनुसंधान भी होते थे,तब तो ये यह पता लगा ही लिया जाना चाहिए था कि 6 मई 2020 से  8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर होते जाने का कारण क्या था ? उससमय तो संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए यदि कोई औषधि  इंजेक्शन थैरेपी आदि भी उपलब्ध  नहीं थी |  
      इसका कारण यदि ये माना जाए कि एलोपैथ रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शनों और प्लाज्मा थैरेपी जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं तथा होम्योपैथ की  आर्सेनिक एल्बम-30 एवं पतंजलि की कोरोनिल जैसी औषधियों के प्रभाव से  6 मई 2020 से  8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर पड़ता जा रहा था तो कोरोना की दूसरी लहर  अर्थात  अप्रैल मई 2021 में इन्हीं औषधियों इंजेक्शनों थेरेपियों के द्वारा लोगों की महामारी से सुरक्षा क्यों नहीं की जा सकी | संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति क्यों नहीं दिलाई जा सकी ?
 
  6 मई 2020 के बाद 8 अगस्त 2020 बीच संक्रमण घटने का कारण समय था ! 
 
    इस समय संक्रमण घटने का कारण समय ही था | समय के आधार पर ही अनुसंधान करके 19 अप्रैल 2020 को ही मैंने पीएमओ में  मेल भेज दी थी कि 6 मई 2020 के बाद समय के प्रभाव से संक्रमण कमजोर होने लगेगा | 
      इसके बाद 16 जून 2020 को पीएमओ में दूसरा मेल भेज दिया था कि समय प्रभाव से  8 अगस्त 2020 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लगेगी |जो 24 सितंबर 2020 तक बढ़ती चली जाएगी |उसके बाद संक्रमण कम होना प्रारंभ होगा | संक्रमण धीरे धीरे 13 नवंबर 2020 तक स्वयं ही घटता जाएगा ! ऐसा ही हुआ |
      महामारी एवं उसकी लहरों के आने  और जाने का कारण समय था | समय परिवर्तन शील होता है | उसमें अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के परिवर्तन होते हैं | समय में जब अच्छे परिवर्तन होते हैं तब महामारी का वेग घटने लगता था और समय में जब बुरे परिवर्तन होते थे तब महामारी का वेग बढ़ने लगता था | अच्छा समय मनुष्यों के लिए हितकर होता है | इसलिए अच्छे समय के प्रभाव से मनुष्यों  को स्वस्थ होना ही होता है | इसलिए ऐसे समय मनुष्यों को स्वस्थ करने के लिए जितने भी प्रयत्न किए जाते हैं | उन्हें इसलिए सफल मान लिया जाता है क्योंकि लोग स्वस्थ हो रहे होते हैं | ऐसे समय कुछ लोग स्वस्थ होने का प्रयत्न कर रहे होते हैं | उन्हें ये भ्रम हो जाता है कि लोगों के स्वस्थ होने का कारण उनके द्वारा किए जा रहे प्रयत्न ही हैं | 
    ऐसे समय जिन जिन औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों का जहाँ कहीं परीक्षण(ट्रायल)  आदि किया जा रहा होता है | समयप्रभाव से सुधार हो ही रहा होता है | उस सुधार को आधार मानकर उन परीक्षणों को भी सफल मान लिया जाता है | 
      ऐसे सुधार समय के कारण हो रहे थे या कि परीक्षण के लिए प्रयोग की जा रही औषधियों आदिके प्रभाव से संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिल रही है | इस रहस्य का उद्घाटन तब होता है ,जब उसके बाद समय बदलता है और बुरा समय प्रारंभ होता है | उसके प्रभाव से कोई दूसरी लहर आती है ,तब उन्हीं औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों से मनुष्यों की सुरक्षा किया जाना संभव नहीं हो पाता है | संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है | 
     ऐसी परिस्थिति में अंतर स्पष्ट हो जाता है कि यदि औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सापद्धतियों से लाभ हुआ होता तब तो उसके  लहर में भी उनके प्रभाव से लोगों को संक्रमित नहीं होने दिया जाता | जो संक्रमित हुए भी थे | उन्हें उन्हीं चिकित्सापद्धतियों के प्रभाव से स्वस्थ कर लिया जाता ,किंतु ऐसा नहीं हो सका |  इससे ये सिद्ध हुआ कि बुरे समय के प्रभाव से लोग संक्रमित हो  रहे थे और अच्छे समय के प्रभाव से  स्वस्थ हो रहे थे | इसके अतिरिक्त किसी अन्य पद्धति की कोई भूमिका ही नहीं सिद्ध हो रही थी | 
 
                                            संक्रमण घटने और बढ़ने का समय कब कब था !
 
     6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020  तक संक्रमण कमजोर होने का समय था | इसके बाद 8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | 24 सितंबर 2020 से 13 नवंबर 2020 तक फिर संक्रमण कमजोर होते जाने का समय था | 
     6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020  तक एवं 24 सितंबर 2020 से 13 नवंबर 2020 तक संक्रमण से मुक्ति पाने का समय था | इसलिए ऐसे समय किसी ने कोई औषधि इंजेक्शन चिकित्सा आदि ली या नहीं ली फिर भी अच्छे समय के प्रभाव से संक्रमित लोग स्वस्थ होते चले गए | 
     इसीप्रकार से  8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक एवं मार्च अप्रैल 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | संक्रमण बढ़ने के समय कोई औषधि चिकित्सा आदि ली गई या नहीं ली गई | इस समय संक्रमण बढ़ना  ही था | इसलिए संक्रमण बढ़ता चला गया | पहली लहर में जिन औषधियों इंजेक्शनों आदि को मनुष्यों की सुरक्षा की दृष्टि से सक्षम माना गया था | संक्रमितों पर उनका प्रयोग करने के बाद भी संक्रमण बढ़ता चला जा रहा था | 
     समयसंबंधी मेरे पूर्वानुमानों के आधार पर 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020  तक कोरोना संक्रमण कम होने का समय था | इसलिए इस समय संक्रमण कम होना ही था |संक्रमण कम करने के लिए जो लोग प्रयत्न कर रहे थे उन्हें भी लगा कि उनके प्रयत्न सफल हो गए | इस समय में किए गए ट्रायल भी सफल होने ही थे | जिसने जिस प्रकार के ट्रायल किए वे सब सफल हुए | 
     इसीसमय  कुछ लोगों ने टीकों का परीक्षण किया तो कुछ लोगों ने औषधियों का कुछ लोगों ने अन्य विभिन्न थेरेपियों का परीक्षण किया | कुछ लोगों ने और तरह तरह के तीर तुक्के आजमाए सबको लगा कि उन्हीं के प्रयास से कोरोना संक्रमण कम हो रहा है |कुछ लोग जादू टोना झाड़ फूँक आदि का सहारा ले रहे थे| समय सुधारा तो उनके स्वास्थ्य में भी  सुधार हुआ | उन्हें लगा कि उन्हें जादू टोना झाड़ फूँक आदि के प्रभाव से स्वास्थ्यलाभ हुआ है |     कुल मिलाकर सभी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपाय अलग अलग थे किंतु समय 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020  तक का ही था | यहाँ तक कि वैक्सीनों के ट्रायल भी इसी समय में सफल माने गए |     

रेम्डेसिविर : 2 मई  2020 - "कोरोना वायरस के इलाज के लिए लगातार चिकित्सकीय परीक्षण जारी हैं. इसी बीच एक दवा रेम्डेसिविर को लेकर साकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. Remdesivir के इस्तेमाल से COVID-19 के रोगियों में तेजी से रिकवरी देखने को मिल रही है. अमेरिकी नेतृत्व वाले परीक्षण में यह दवा बीमारी के खिलाफ प्रमाणित फायदे देने वाली पहली दवा बन गई है |- NDTV 
कोरोनिल :23 जून 2020आज पतंजलि ने दो दवाएं लॉन्च की हैं जिनके बारे में कंपनी ने दावा किया है कि ये कोविड-19 की बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज हैं |- बीबीसी   
प्लाज्मा थैरेपी :  2 जुलाई 2020 दिल्ली में शुरू हुआ देश का पहला प्लाज्मा बैंक, कोरोना मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी काफी कारगर साबित हो रही है | -आजतक  
आर्सेनिक एल्बम-30:  23 -8-2020 होमियोपैथिक मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रामजी सिंह के अध्ययन में यह साबित भी हो रहा है। पटना के 15 हजार लोगों को वे यह दवा दे चुके हैं। 21 दिन बाद जब दवा का प्रभाव जानने के लिए फोन किया गया तो परिणाम उत्साहजनक थे। जिन पांच सौ लोगों का अबतक फीडबैक लिया गया है वे सभी कोरोना से सुरक्षित हैं। - दैनिक जागरण 
 
              वैक्सीन निर्माण की विभिन्न घोषणाएँ  भी इसी समय की गईं !
                                                5 मई 2020   से 11 अगस्त  2020 तक 
 
5 मई 2020 :इजरायल के रक्षामंत्री नैफ्टली बेन्‍नेट ने अपने एक बयान में कहा कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्‍टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना लिया है। उन्‍होंने कहा कि हमारी टीम ने कोरोना वायरस को खत्म करने के टीके के विकास को पूरा कर लिया है।
8 मई 2020 :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन बना ली है | अमेरिकी फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोरोना वायरस को खत्म करने वाली दवा बना ली है। अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस का उपचार करने वाली एंटीवायरल मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।खास बात ये है कि इस दवा को अमेरिका के बाद जापान ने भी मंजूरी दे दी है। जापान में गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल किया जाएगा।
 
  2 जुलाई 2020-भारत की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलोजी, पुणे के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने की दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस वैक्सीन को नाम दिया गया है ‘कोवैक्सिन’इसका वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायलकी मंज़ूरी भी मिल गई है. हैदराबाद की जीनोम वैली के बायो-सेफ़्टी लेवल 3 में तैयार हुई इस वैक्सीन का अब जल्द ही पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा |  
13 जुलाई  2020 - रूस ने दावा किया है कि 'उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस कीपहली वैक्सीन बना ली है ! 
 20 जुलाई 2020-वैक्सीन बनाने की दिशा में चल रहे प्रयासों की बात करें, तो दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं.कुछ देशों में वैक्सीन्स के ह्यूमन ट्रायल पहले और दूसरे चरण में सफल रहे हैं और अब भारत में भी कोवैक्सीन नाम की वैक्सीन का ट्रायल दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में 20 जुलाई से ही यह ट्रायल शुरू हो जाएगा.शुरू होने जा रहा है |  
11 अगस्त 2020-रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन घोषणा की कि कोरोना की वैक्सीन तैयार कर ली गई है. रूस का कहना है कि वैक्सीन को देश में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के लिए नियामक मंजूरी मिल गई है | 
         
            24 सितंबर 2020 से वैक्सीन लगना शुरू होने तक संक्रमण घटने का समय था !

        इस समय संक्रमण से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए जो जो प्रयत्न किए गए वे सभी सही निकले क्योंकि समय ही संक्रमण घटने का था | इसलिए लोग प्रयत्न करते जा रहे थे सुधार का समय होने के कारण उनके सुधार संबंधी प्रयत्नों में सफलता मिलती जा रही थी |  
22 नवंबर  2020 -चीन ने कोरोना की एक सुपर वैक्सीन बनाने का दावा किया है।
23 नवंबर 2020 - भारत के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा, हम अपने स्वदेशी टीके को विकसित करने कीप्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं. हम अगले एक-दो महीनों में तीसरे चरण के परीक्षण को पूरा करने की प्रक्रिया में है|   
8  दिसंबर 2020 को ब्रिटेन में फ़ाइज़र ने टीकाकरण  शुरू किया है | 
अमेरिका ने फ़ाइज़र-बायोएनटेक कोविड वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है इसी दिसंबर में फ़ाइज़र वैक्सीन को ब्रिटेन, कनाडा बहरीन और सऊदी अरब ने पहले ही मंज़ूरी दे दी है.|
 30 दिसंबर 2020  ब्रिटेन ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा ब्रिटेन ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा  चुकी है. इस बीच ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को भी ब्रिटेन ने मंजूरी दे दी है. इसका मतलब है कि यह टीका सुरक्षित और प्रभावी दोनों है | 
25 जनवरी 2021-भारत बायोटेक को कोरोना की नेजल स्प्रे वैक्सीन BBV154 के ट्रायल की इजाजत मिली है. जबकि और भी कई देशों में ट्रायल हो रहे हैं और अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे हैं |  
 

                                        कोरोना की सबसे भयानक दूसरी लहर 
 
      इसके बाद समय में ऐसा बदलाव हुआ  23 दिस॰ 2020 को पीएमओ में मेल भेज भेज कर मैंने सूचित किया था कि "यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा और यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं |" 
     इससे हमारा अनुमान स्पष्ट था कि यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाएगी तो समाज संक्रमण मुक्त हो जाएगा और यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो संक्रमण का विस्तार होगा | इस प्रकार से जैसे जैसे संक्रमण वैक्सीन लगता चला गया वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता चला गया | 
    इसके बाद जब संक्रमण काफी बढ़ गया था चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था | उससमय 19 अप्रैल 2020 को पीएमओ को मेल भेजकर मैंने सूचित किया था कि 2 मई 2021 से  कोरोना संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |

 
19 अप्रैल 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !( 20 अप्रैल 2021 से 2 मई 2021 तक )
     " मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |" 
    

 
18 दिसंबर 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 

     "वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |" 

20 फ़र॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 

    "कोरोना महामारी की चौथी लहर 27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी | 

 29 अप्रैल 2022 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 
    
 "कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी | उसके संपर्क  वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त 2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |"
 21 अक्टू॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 

    "24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18 नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी !इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी |" 

 29 दिस॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
  "  कोरोना महामारी की अगली लहर  10  जनवरी 2023  से प्रारंभ होगी !14 जनवरी 2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी  और 22 जनवरी 2023 से महामारी जनित संक्रमण काफी तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी !  21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च 2023 तक बढ़ेगी उसके बाद  समाप्त होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा ! विशेष बात यह है कि संक्रमण बहुत अधिक नहीं बढ़ेगा फिर भी तीसरी लहर से कम भी नहीं रहेगा ! बहुत अधिक बढ़ने या हिंसक होने से रोकने के लिए आवश्यक सावधानी बरतना श्रेयस्कर रहेगा | "
 
 6 जुल॰ 2023 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    "2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद  20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग  5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो पाएगी |मेरा ऐसा अनुमान है | " 
 
   23 मई 2024  को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
     " 29 जून 2024 से प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन प्रदूषित होते देखा जा सकता है |इसी बीच कुछ देशों में महामारी जनित संक्रमण के बढने की प्रक्रिया प्रारंभ हो  सकती है |यद्यपि इसकी गति धीमी होगी फिर भी 14 नवंबर 2024 के पहले पहले महामारी का एक  झटका लग सकता है | इसे प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाने वाला महामारी का ट्रायल कहा जा सकता है | 5 अप्रैल  2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की दूसरी लहर की तरह ही विशेष डरावना स्वरूप  धारण करे | जिसमें विश्व का बड़ा भाग संक्रमित हो जाए | वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो भिन्न भिन्न देशों में महामारी का यह तांडव 2025 के अप्रैल मई दोनों महीनों में देखने को मिल सकता है | यद्यपि इसके बिल्कुल स्पष्ट लक्षण सितंबर 2024  तक प्रकट हो जाएँगे | जिन्हें परोक्ष विज्ञान के द्वारा देखा जा सकेगा  |आवश्यकता पड़ी तो उस समय इस पूर्वानुमान की तारीखों में 10 प्रतिशत तक परिवर्तन करना पड़  सकता है |"
 
 19 अग॰ 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    20 अगस्त 2024 से महामारी जैसे महारोगों के बढ़ने का समय शुरू हो रहा है | इससमय से प्राकृतिक वातावरण तेजी से बिषैला होना प्रारंभ हो जाएगा | इससे वायु मंडल के साथ साथ खाने पीने की  वस्तुएँ संक्रमित होने लगेंगी |बिषैले वातावरण में साँस लेने से एवं संक्रमित वस्तुओं के खानपान से लोग स्वतः संक्रमित होते चले जाएँगे | समय प्रभाव से औषधियों के भी संक्रमित हो जाने के कारण संक्रमितों को औषधियों के सेवन या चिकित्सा आदि से भी कोई लाभ नहीं होगा | 22 सितंबर 2024 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ने लगेगी | 11 से 18 अक्टूबर के बीच में यह लहर सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच जाएगी | 20 अक्टूबर 2024 से संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे कम होनी प्रारंभ हो जाएगी | इसी क्रम में ये लहर यहीं से समाप्त होनी  शुरू  हो  जाएगी | 
 
 4  मार्च  2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
     "   1 मई 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही डरावना स्वरूप  धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 19 मई 2025 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ  हो जाएगा | "
 
 16 मई 2025 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    "25 सितंबर 2025  से कोरोनामहामारी की आगामी लहर प्रारंभ होगी | यह क्रमशः बढ़ती चली जाएगी | इससे लोग तेजी से संक्रमित होते चले जाएँगे | ये कई महीनों तक चलेगी | महामारी की यह लहर 31जनवरी 2026 तक संपूर्ण वायुमंडल को बिषैला करती रहेगी  | उसके बाद विराम लगने लगेगा | 12 फरवरी 2026 के बाद समाज को भी यह भरोसा होने लगेगा | अब महामारी से मुक्ति मिल जाएगी | " 

कोई टिप्पणी नहीं: