भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख !
विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
शनिवार, 6 दिसंबर 2025
विज्ञान या जुगाड़
विज्ञान या जुगाड़
जुगाड़ों को विज्ञान कब तक सिद्ध किया जाता रहेगा | समय की आवश्यकताओं की उपेक्षा करके ! जिन प्राकृतिक घटनाओं को समझने का विज्ञान ही अलग है उन्हें भी इसी प्रत्यक्ष या पदार्थ विज्ञान से समझने का प्रयास किया जा रहा है |
पदार्थविज्ञान ही मूर्तविज्ञान है | जो किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष आँखों से दिखाई पड़ता है या इंद्रियों से अनुभव किया जा सकता है |
इसीप्रकार से अपदार्थ विज्ञान है जो अमूर्त है | इसे न तो देखा जा सकता है और न ही इंद्रियों से अनुभव किया जा सकता है |
तीसरा समयविज्ञान है | समय का प्रभाव मूर्त अमूर्त दोनों पर पड़ता है | समय की किस घटना में क्या भूमिका है इसे समझे बिना उन घटनाओं को समझा जाना संभव नहीं है | इसके बिना उनके बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है |
वर्षा के बिषय को ही लें तो इसमें इन तीनों की क्या क्या भूमिका है | इसे समझने की आवश्यकता है |
बादल जब दिखाई देने लगते हैं तो उनकी गति और दिशा के आधार पर ये पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि ये कितने घंटों या दिनों में कहाँ पहुँच सकते हैं | ऐसे अंदाजा लगाया जाता है | दूरदर्शी यंत्रों से दूरस्थ बादलों को देखने में मदद मिल जाती है | यही पदार्थविज्ञान अर्थात मूर्तविज्ञान है | इसे समझने के लिए प्रत्यक्षविज्ञान की आवश्यकता होती है |
ऐसे ही बादल जिन हवाओं के साथ उड़ रहे होते हैं वे हवाएँ जिधर घूम जाती हैं बादल भी उधर घूम जाते हैं जिसके कारण अक्सर लगाए हुए वर्षा बिषयक अंदाजे गलत निकल जाते हैं |इसलिए आकाश में उड़ रहे बादल जिस दिशा की ओर जिस गति से जा रहे होते हैं| वे उधर ही जाते रहेंगे या उनका रुख किसी अन्य दिशा की ओर मुड़ जाएगा | इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए उन हवाओं का रुख पता होना आवश्यक होता है | हवा अपदार्थ है अमूर्त है | इसे समझने के लिए अप्रत्यक्ष अर्थात परोक्षविज्ञान की आवश्यकता होती है |
इसीप्रकार से वर्षा होने का एक कारण बिल्कुल अज्ञात होता है |जिसके आधार पर वर्षा होने का समय पता लगता है | जिसप्रकार से वर्षाऋतु नाम से वर्ष में एक समय खंड होता है उसीप्रकार से महीनों तथा दिनों में भी वर्षा के छोटे छोटे समय खंड आते जाते रहते हैं |उनमें वर्षा होने की संभावना होती है | इसमें न बादल देखने की आवश्यकता होती है और न ही हवाएँ देखी जाती हैं | इसमें केवल समय संचार के आधार पर ही महीनों वर्षों या सैकड़ों वर्ष पहले ये पता लगाया जा सकता है कि किस किस समय में वर्षा हो सकती है | निकट भविष्य में वह समय कब आएगा | इसके लिए समयविज्ञान की आवश्यकता होती है | वास्तविक रूप से यह ही वर्षा विज्ञान है |
बादल किस गति से किस दिशा की ओर जा रहे हैं | उपग्रहों रडारों की मदद से ये
देख लिया जाता है | उसी के अनुसार ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कितने
घंटों में किस दिशा में कितनी दूर पहुँच सकते हैं | वहाँ जो देश प्रदेश
जिला आदि पड़ते हैं | वहाँ बारिश होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है |यदि
हवाओं का रुख बीच में बदलकर किसी दूसरी ओर चला गया तो बादल भी उधर ही चले
जाते हैं | ऐसी स्थिति में वो भविष्यवाणी गलत हो जाती है |जिसका कारण पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी विज्ञान का न होना होता है | इस कमजोरी को स्वीकार करने की जगह भविष्यवाणी गलत होने का कारण जलवायुपरिवर्तन को बताया जाता है |
जलवायुपरिवर्तन
होता क्या है ये कब होता है कैसे होता है ऐसा होने के कारण क्या होते हैं
|इसमें कब कब कैसे कैसे परिवर्तन होंगे !उनका पूर्वानुमान लगाने की विधि
क्या है विज्ञान कहाँ है| इसे जानने समझने एवं जलवायुपरिवर्तन के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने में सक्षम वैज्ञानिक कहाँ हैं | ये पता नहीं है |ऐसी स्थिति में जलवायुपरिवर्तन के बिषय में यदि पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते हैं तो जलवायुपरिवर्तन के कारण मौसम संबंधी घटनाओं के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है |
समस्याओं के अनुसार हो समाधानों की खोज की जाए ! (BOOK)
जिन प्राकृतिक आपदाओं से समाज की सुरक्षा का लक्ष्य लेकर जो
अनुसंधान प्रारंभ किए जाते हैं | उन आपदाओं के घटित होने पर अनुसंधानों से
यदि ऐसी कुछ सफलता मिल जाती है जो उन अनुसंधानों के बिना संभव न थी |यह
निर्णय उस जनता पर छोड़ा जाए जिसे प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित बचाने के लिए ऐसे अनुसंधान किए जाते हैं |
भूकंप
बज्रपात या बादल फटने की तथा महामारी जैसी घटनाएँ घटित होने
पर जनधन का जितना नुक्सान अभी होता है |उस घटना से संबंधित वैज्ञानिक
अनुसंधानों के प्रारंभ होने के बाद वह संभावित नुक्सान यदि पहले की
अपेक्षा कम होने लगता है तो यह उस घटना से संबंधित अनुसंधानों की सफलता है |
यदि ऐसा नहीं होता है तो उस अनुसंधान को असफल माना जाता है |
जिस प्रकार से भूकंप आने पर बहुत बिल्डिंगें गिरती हैं उसके नीचे दबकर
बहुत सारे लोग घायल होते हैं उनमें से बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हो
जाते हैं | भूकंपों से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ होने से पहले भूकंपों से
जो जनधन का नुक्सान होता रहा है | भूकंपों से संबंधित अनुसंधान
प्रारंभ होने के बाद यदि उतना नुक्सान नहीं होता है| उससे कम होता है तो
वे अनुसंधान सफल माने जाएँगे | यदि ऐसा नहीं होता है तो भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों पर संशय होना स्वाभाविक है | अनुसंधानों से कुछ तो लाभ होना चाहिए |
1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति और 1866 और 1871 के
अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत
आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारत मौसम विज्ञान विभाग
की स्थापना हुई। तब से अब तक अनुसंधान होते होते लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत
चुके हैं | पहले की अपेक्षा कितना परिवर्तन हुआ है | क्या अब ऐसी घटनाओं के
बिषय में सही पूर्वानुमान लगाए सकते हैं | यदि हाँ तब तो अनुसंधानों को
सफल माना जाएगा
वो पहले झटके में ही हो जाता है | ऐसी सभी प्राकृतिक आपदाओं का वेग बहुत अधिक
होने के कारण इनसे जनधन का नुक्सान
तुरंत होने लगता है | इसलिए इनसे लोगों की सुरक्षा तभी हो सकती है जब घटनाओं के घटित होने से पहले उनसे सुरक्षा
के प्रयत्न कर लिए जाएँ | ऐसा किया जाना तभी संभव है ,जब ऐसी
घटनाएँ घटित होने वाली हैं | ये पहले से पता हो| इसे पता करने के लिए घटनाओं के बिषय में पहले से सही पूर्वानुमान लगा लिए जाएँ | पूर्वानुमान लगाया जाना तभी
संभव है जब भविष्यविज्ञान की जानकारी हो | ऐसा विज्ञान कहाँ है जिसके
आधार पर भविष्य में झाँका जाना संभव हो | इसके बिना प्राकृतिक घटनाओं के
बिषय में कोई पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | पूर्वानुमानों के बिना
ऐसी महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं बचाव की तैयारियाँ कैसे की जा सकती
हैं |
इसलिए अब ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता है | जो प्राकृतिक संकटों से समाज को सुरक्षित बचाए रखने में सहायक हों | इसके लिए भारत के उस प्राचीनविज्ञान की भी मदद ली जानी चाहिए | जिसके द्वारा प्राचीनयुग में महामारियों तथा प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्यों की सुरक्षा की जाती रही है |
इसी
उद्देश्य से मैं छोटी
बड़ी सभी लहरों के बिषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए जो प्रयत्न करता आ
रहा हूँ | वे हमारे अनुभव में तो सही निकले हैं | यदि आपको भी ये सही
लगते हैं तो यह कोरोना महामारी
के संदर्भ में भारतीयपरंपरा विज्ञान की इतनी बड़ी सफलता है |जिसकी
तुलना विश्व के किसी दूसरे अनुसंधानों से नहीं की जा सकती है |
मेरे अनुसंधानों के परीक्षण के लिए इस पुस्तक में उन मेलों के चित्रों
को प्रकाशित किया जा रहा है | जो महामारी की प्रत्येक लहर आने से पहले
मेरे द्वारा पीएमओ की मेल पर भेजी जाती रही हैं | उनमें महामारी की आने
वाली लहर के बिषय में पूर्वानुमानों की तारीखें लिखी होती थीं | उन तारीखों
का कोरोना ग्राफ से मिलान करने पर वे सही निकलती रही हैं | उन ग्राफ़ों के
चित्र या अखवारों के चित्र भी प्रमाणरूप में प्रकाशित किए जा रहे हैं | उन पूर्वानुमानों का परीक्षण स्वतंत्र रूप से भी किया या कराया जा सकता है |
महामारी संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों से प्राप्त परिणामों के आधार पर यह
कहा जा सकता है कि महामारी को समझने एवं उसके बिषय में पूर्वानुमान लगाने
में इतनी बड़ी सफलता किसी अन्य प्रकार से नहीं मिल पाई है |जितनी सही
जानकारी प्राचीन विज्ञान के आधार पर खोजी जा सकी है |
ऐसी प्राकृतिकघटनाओं के बिषय में मैं पिछले तीस वर्षों से
अनुसंधान करता आ रहा हूँ | जिससे न केवल प्राकृतिक घटनाओं को समझने में
सहयोग मिला है ,प्रत्युत उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में
भी सफलता मिली है |इसी प्रक्रिया से कोरोना महामारी को समझने एवं इसके बिषय
में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में मुझे सफलता मिली है |यह अनुसंधान प्रक्रिया मानवता के हित में संपूर्ण विश्व के लिए अत्यंत उपयोगी है |
अनुसंधानों से अपेक्षा और आपूर्ति
महामारी संबंधी अनुसंधानों के द्वारा महामारी को रोका जाना भले न
संभव हो किंतु इतनी तो अपेक्षा रहती ही है कि महामारी से जूझते लोगों की
सुरक्षा सुनिश्चित
करने के लिए कुछ तो ऐसा किया जाए | जिससे लोगों को मदद
पहुँचाई जा सके | इतना उन्नत विज्ञान और इतने बड़े बड़े अनुसंधान होने के
बाद भी समाज को यदि उतनी ही पीड़ा सहनी
है | जितनी अनुसंधान न होने पर सहनी पड़ती है तो ऐसे अनुसंधानों को करने
कराने की सार्थकता ही क्या बचती है |
ऐसे अनुसंधानों में लगने वाला धन जिस जनता का होता है | उसे अनुसंधानों का लाभ इतना तो मिले कि अनुसंधान न होने की अपेक्षा अनुसंधान होने के प्रति समाज की भी रुचि बनी और बढ़ती रहे |अनुसंधानों से मिलने वाली मदद केवल गुणागणित तक ही सीमित न रह जाए उसका लाभ जनता को भी मिले |
महामारी संबंधी अनुसंधानों से इतनी अपेक्षा तो रहती ही है कि महामारी आने का पूर्वानुमान महामारी आने से इतने पहले तो लगा
ही लिया जाए ! जितने में महामारी से सुरक्षा के लिए तैयारियाँ पहले से
करके रखी ही जा सकें | कोई
महामारी जब अचानक आ जाती है तो उससे सुरक्षा करने के लिए तैयारियों का समय
नहीं मिल पाता है| इसलिए महामारी से समाज को सुरक्षित बचाया जाना तभी संभव
हो सकता है जब कोरोना महामारी आने से पूर्व उसके बिषय में सही पूर्वानुमान
लगाया जाए |
प्राकृतिकआपदाओं का वेग बहुत अधिक होता है| ऐसी घटनाओं का घटित होना एक बार जब
प्रारंभ हो जाता है तो तुरंत के प्रयासों के बलपर उनसे समाज
की सुरक्षा नहीं की जा सकती है| इसीलिए प्राकृतिकहिंसक घटनाओं ,आपदाओं या
महामारियों से समय समय पर बहुत जनधन हानि होती देखी जाती है | इनसे बचाव के लिए सही पूर्वानुमान
पहले से पता हों तभी कुछ उपाय किए जा सकते हैं | सही अनुमान पूर्वानुमान
आदि लगाने के लिए ऐसे अनुसंधानों की आवश्यकता होती है | जिनके द्वारा अनुसंधान पूर्वक मनुष्यजीवन को सुरक्षित बचाया जा सके |
पूर्वानुमान लगाने के
लिए क्या कोई ऐसा विज्ञान नहीं है | जिसके द्वारा भविष्य में झाँककर प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके |यदि ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं होगा तो प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से लोगों की सुरक्षा संबंधी तैयारियॉं
करने में मदद कैसे मिल सकती है |
विगत कुछ दशकों में पड़ोसी शत्रु देशों से भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े |
उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई होगी उससे कई गुणा
अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |ये न केवल
अत्यंत दुखद बात है |
कोरोना कोरोनामहामारी में अभी तो जितना जनसंहार होना था वो हो ही गया
है भविष्य में किसी महामारी के आने पर ऐसी परिस्थिति दोबारा न पैदा हो | इस
प्रकार की महामारियों से अधिक से अधिक लोगों को सुरक्षित बचाया जा सके
उसके लिए अभी से तैयारी शुरू की जानी आवश्यक है |
किसी रोग या महारोग से मुक्ति दिलाने के लिए उस रोग की सही
पहचान(निदान) आवश्यक होती है | उसके अनुसार जब चिकित्सा की जाती है तब रोग
से मुक्ति मिलती है | रोग की प्रकृति की सही पहचान किए बिना चिकित्सा कैसे की जा सकती है |
इस चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार यदि चिंतन किया जाए तो कोरोनामहामारी
में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने का कारण महामारी की भयंकरता थी
या महामारी से सुरक्षा या बचाव की तैयारियों का अभाव था | महामारी का
विस्तार कितना है प्रसार मध्यम क्या था ,अंतर्गम्यता कितनी थी ! इसपर मौसम
का प्रभाव पड़ता था या नहीं !इस पर तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव पड़ता था या नहीं !इस पर वायु प्रदूषण बढ़ने घटने का प्रभाव
पड़ता था या नहीं ! आदि ऐसे प्रश्नों के सही उत्तर यदि खोजे जा चुके हैं तब
तो भविष्य में होने वाली महामारियों से सुरक्षा की तैयारियाँ अभी से
प्रारंभ की जा सकती हैं अन्यथा जैसा अभी हुआ है लगभग वैसा ही भविष्य में भी
होगा | जब जब महामारियाँ आती रहेंगी तब तब ऐसा ही होता रहेगा |
इसलिए ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजने होंगे | इसी में मानवता का हित होगा
| इसी उद्देश्य से मैंने बिचार किया कि आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से जो कुछ
किया जा सकता है वो तो वैज्ञानिक लोग कर ही रहे हैं फिर भी न तो महामारी
को समझना संभव हो पाया है और न ही समझे हुए ज्ञान विज्ञान के आधार पर लगाए
हुए महामारी बिषयक अनुमान पूर्वानुमान ही सही निकल पा रहे हैं | जिससे समझे
हुए ज्ञान कल्पित अनुभवों पर संशय होना स्वाभाविक ही है | यदि वो सच होता
तो उसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान भी सच निकलते !
मैं विगत 37 वर्षों से प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं महामारी जैसे
संकटों का समाधान भारत के प्राचीन वैज्ञानिक अनुसंधानों में खोजता आ रहा
हूँ | मुझे लगा कि महामारियाँ तो प्राचीनकाल में भी आती
रही होंगी |उस समय जनसंख्या भी कम रही होगी | महामारियों में तब यदि ऐसा
नरसंहार हुआ होता तो सृष्टि का क्रम आगे कैसे बढ़ पाता | इससे ये विश्वास
हुआ कि महामारियों से मनुष्यों की सुरक्षा के लिए कुछ तो प्रबंध अवश्य होते
होंगे | उन्हें खोजने में मैंने अपना सारा जीवन लगा दिया | जिससे प्राप्त हुए अनुभव ऐसे संकटों के समाधान में सहायक हो सकते हैं |
भारत के प्राचीनवैज्ञानिक उस युग में महामारियों से मनुष्यों की
सुरक्षा के लिए जिस प्रकार के प्रयत्न करते रहे होंगे | कोरोना महामारी को
समझने के लिए मैंने भी प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों का सहयोग
लिया | उसके आधार पर महामारी को समझने एवं उसके बिषय में अनुमान
पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए जो जो प्रयत्न किए हैं वे सफल हुए हैं |
महामारी एवं उसकी लहरों के बिषय में मेरे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सही
निकलते रहे हैं |
महामारी अनुसंधान विज्ञान के बिषय में
महामारी संबंधी प्राचीनवैज्ञानिक अनुसंधान की प्रक्रिया को इस अत्यंत लघुकाय ग्रंथ में समेटना
संभव नहीं है |वैसे भी प्राचीन विज्ञान में परोक्ष विज्ञान संबंधी
अनुसंधानों के आधार पर प्रत्यक्ष घटनाओं को समझने की प्रक्रिया वर्णित है |
जलधारा में बहते जा रहे काष्ठखंडों के बहाव एवं गंतव्य का पता लगाने के
लिए जलधारा के प्रवाह एवं गंतव्य को
समझने की प्रक्रिया पर जोर दिया गया है | आकाश में स्थित बादलों के आवागमन
को पहचानने एवं उनके बिषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए बादलों की जगह
हवाओं का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया गया है |
ऋतुएँ जिस प्रकार से समय संचार के साथ घटित होती हैं उसी तरह से सभी प्रकार की
प्रकृति और जीवन संबंधी घटनाएँ समय के साथ पिरोयी हुई हैं |समय जैसे जैसे बीतता जाता है वैसे वैसे घटनाएँ घटित होती जाती हैं | जिस घटना के
घटित होने का जब समय आता है तब वो घटना घटित हो जाती है | इसीप्रकार
से प्रकृति एवं जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को समझने एवं उनके बिषय
में पूर्वानुमान लगाने के लिए समय के संचार को समझने के लिए प्रेरित किया
गया है |
प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की प्रत्यक्ष और
परोक्ष भेद से दो प्रक्रियाएँ होती हैं | प्रत्यक्ष प्रक्रिया में लक्षणों
के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|जिस प्रकार से किसी रेलवे के
स्टेशन पर गाड़ी के आने की जानकारी ट्रेन को दूर से देखकर पता लगाई जा सकती
है | उपग्रहों रडारों से ट्रेन और अधिक दूर से आती हुई दिखाई दे देगी |
उतने पहले ट्रेन के आने की सूचना पाई जा सकती है |
कुलमिलाकर उपग्रहों रडारों से केवल ट्रेन को दूर से देखने में मदद मिल सकती है, किंतु ये पता नहीं लग सकता है कि वह ट्रेन इस स्टेशन पर रुकेगी या नहीं | वो सवारीगाड़ी
है भी या नहीं ये पता नहीं लग पाता है| ट्रेन की तरह ही उपग्रहों रडारों से आकाश
में उड़ते हुए बादल देखे तो जा सकते हैं | जिस गति से जितनी दिशा में जा
रहे हों उसके आधार पर यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कब कहाँ पहुँच
सकते हैं किंतु वहाँ पहुँचकर वे बरसेंगे या नहीं दूसरी बात उस देश या प्रदेश में रुकेंगे या आगे बढ़ते चले जाएँगे | उपग्रहों रडारों से देखकर ये पता नहीं लगाया जा सकता है | इसी कमजोरी के कारण दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान गलत निकल जाते हैं |
प्राचीनविज्ञान से संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया में प्रत्यक्षविधि के साथ साथ परोक्षविधि का भी अनुशरण किया जाता है | इसमें गणित
के आधार पर घटनाओं के बिषय में बहुत पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
लगाकर घटनाओं के तत्कालीन लक्षणों के आधार पर उनका परीक्षण कर लिया जाता है
| ऐसे पूर्वानुमानों की दो प्रकार से पुष्टि हो जाती है |इसलिए सही
निकलने की संभावना अधिक हो जाती है |
ट्रेन की दृष्टि से सोचा जाए तो जिस गणितीय आधार पर समय सारिणी का पता
लगाकर महीनों पहले से ये पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि उस दिन उतने बजे
वह सवारी गाड़ी उस स्टेशन पर पहुँचेगी |इसी प्रकार से गणितीय आधार पर
वर्षों पहले ये पता लगा लिया जाता है कि कौन सूर्य या चंद्र ग्रहण किस वर्ष
किस की किस तारीख को कितने बजे पड़ेगा | इसी गणित के आधार पर भूकंप आँधी
तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान
लगाया जा सकता है | उसी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष विधि के आधार पर मैंने
महामारी को समझने एवं उसके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में
सफल हुआ हूँ |
इस प्रकार से गणित के आधार पर या कुछ प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर कुछ
दूसरी प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि
लगाने की विधि वर्णित है |
के आधार पूर्वानुमान लगाने में सक्षम ज्योतिषशास्त्र के अतिरिक्त कोई दूसरा
विज्ञान नहीं है | इसीलिए प्राचीन काल में ज्योतिष से संबंधित विद्वानों को
ऐसे अनुसंधान करने में सक्षम
माना जाता था |
वर्तमान समय में ऐसे ज्योतिष विद्वानों का अभाव है | इसलिए ज्योतिष पढ़ाने के लिए गुरुकुलों में शिक्षकों की
नियुक्ति में बहुत सावधानी बरती जाती थी | उन ज्योतिषशिक्षकों का
योग्यतापरीक्षण उनके द्वारा की जाने वाली प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित
भविष्यवाणियों के द्वारा किया जाता था | भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बाढ़
चक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के बिषय में उनके द्वारा लगाए गए
पूर्वानुमान यदि सही निकलते थे तो उन्हें ज्योतिषप्रशिक्षण के योग्य समझा
जाता था अन्यथा ऐसे लोगों को ज्योतिष पढ़ाने के योग्य नहीं समझा जाता था
|
वर्तमानसमय में सरकारी संस्कृतविश्व विद्यालयों के ज्योतिषविभागों में ज्योतिष को बिषय के रूप में पढ़ाया जाता है |उनमें पढ़ाने वाले ज्योतिषबिषय के रीडरोंप्रोफेसरों को कोरोना महामारी आने से पूर्व महामारी संबंधी पूर्वानुमान लगाकर सरकारों को उपलब्ध करवाने चाहिए थे |जिससे ये प्रमाणित होता कि जिन्हें ज्योतिष पढ़ाने के लिए शिक्षक रूप में नियुक्त किया गया है | वे भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने में कितने सक्षम हैं |ऐसा यदि ये स्वयं कर पाएँगे तभी तो उनके द्वारा पढ़ाए हुए विद्यार्थियों से ऐसी अपेक्षा की जा सकती है |
ऐसे ही आयुर्वेद के शीर्षग्रंथ चरकसंहिता के जनपदोध्वंस अध्याय में
महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की विधि बताई गई है |आयुर्वेद से
संबंधित जिन सरकारी विश्व विद्यालयों में आयुर्वेद का पठन पाठन होता है |आयुर्वेद विषयक अनुसंधान किया जाता है |ऐसे शिक्षण संस्थानों के आयुर्वेद से
संबंधित रीडरों प्रोफेसरों को कोरोना महामारी आने से पूर्व महामारी बिषयक पूर्वानुमान लगाकर सरकारों को उपलब्ध करवाने चाहिए थे |यही उनकी योग्यता परीक्षण की विधि है | उन आयुर्वेद विशेषज्ञों ने ऐसा किया या नहीं | ये सरकारों को पता होगा |
कुलमिलाकर
भविष्य में महामारियों के आने पर कोरोनामहामारी जैसा जनधन का नुक्सान न हो
| यदि सरकारें ऐसा चाहती हैं तो उसके लिए कुछ ऐसे अनुसंधानों को करने की
परंपरा प्रारंभ करनी होगी | जिसमें रोगों महारोगों (महामारियों) तथा
प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में समय समय पर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगवाए
जाएँ | इसके बाद उनका परीक्षण किया जाए | उसमें से जिसका पूर्वानुमान
जितना सही या सटीक घटित हो | उसे ही उन घटनाओं से संबंधित विज्ञान एवं
वैज्ञानिकों के रूप में मान्यता प्रदान की जाए | उन्हें ही ऐसे अनुसंधानों को करने के योग्य समझा जाए |
इसी प्रकार से विभिन्न वैज्ञानिकों ने बार बार
पूर्वानुमान व्यक्त किए वो कितने सही निकले | ये सरकारों को पता होगा | इसी
उद्देश्य से जिस सूत्र मॉडल का गठन किया गया | ऐसी सभी प्रक्रियाओं के द्वारा महामारी की लहरों के बिषय
में कितना सही पूर्वानुमान लगाया जा सका | ये सरकारों को ही पता होगा |
ऐसे सभी विधि विशेषज्ञों के द्वारा लगाए गए महामारी एवं उसकी लहरों
के बिषय में जो पूर्वानुमान पता लगे हों वे जितने सही निकले हों | ऐसे
विश्व वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमानों से मेरे द्वारा लगाए गए
पूर्वानुमानों की तुलना कर ली जाए | यदि मेरे पूर्वानुमान सबसे सही
निकलें तो संवेदनशील सरकारों को अपना कर्तव्य समझते हुए महामारी संबंधित अनुसंधानों में मेरे अध्ययनों अनुसंधानों एवं पूर्वानुमानों को सम्मिलित करने पर बिचार करना चाहिए | पूर्वानुमान लगाने के लिए जब तक कोई दूसरा विज्ञान नहीं है, तब तक परंपराओं
से प्राप्त अनुभव महामारी जैसे संकटों से लोगों को सुरक्षित बचाने में
मदद कर सकते हैं तो जनहित के उद्देश्य से इनका सहयोग लिया जाना चाहिए |
इसप्रकार से महामारी जब तक रहती है तब तक महामारी से
सुरक्षा के उपाय खोजने के प्रयत्नों में लोग लगे रहते हैं | जब संक्रमण
स्वतः समाप्त होने लगता है तो प्रयत्न भी बंद कर दिए जाते हैं |ऐसे ही भूकंपों के आने पर उनसे बचाव के लिए खोजे गए उपायों से भूकंप आने पर कोई अनुसंधानजनित मदद नहीं मिल पाती है !
ऐसे ही बाढ़ से लोगों की सुरक्षा के लिए खोजे गए उपायों से बाढ़ आने पर
लोगों को मदद नहीं मिल पाती है !जब तक बाढ़ से बचाव के उपाय खोजे जाते हैं
तब तक जो कुछ बहना होता है वो बाढ़ में बह जाता है |
कोरोना महामारी का पूर्ण परिचय
_______________________________________________
19
मार्च 2020 की इस मेल में महामारी के बिषय में विशेष बात :
किसी
महामारी के पैदा होने का कारण क्या होता है | उसकी प्रक्रिया क्या होती
है ,महामारी मनुष्यकृत होती है या प्राकृतिक होती है |कोरोना महामारी का
विस्तार कितना है|प्रसार माध्यम क्या है | अंतर्गम्यता कितनी है,महामारी पर
मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं पड़ता है | वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रभाव
पड़ता है या नहीं | महामारी संक्रमितों पर चिकित्सा
का प्रभाव कितना पड़ता है !महामारी समाप्त होने की प्रक्रिया क्या होती है ! महामारी
काल में भी महामारी से संक्रमित न होने के लिए मनुष्यों को किस प्रकार के
प्रयत्न करने चाहिए | ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर खोजा जाना आवश्यक होता है |
महामारी का स्वभाव प्रभाव संक्रामकता आदि समझने के लिए उसकी लहरों के
बिषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा बहुत प्रयत्न किए
गए होंगे | कोरोनामहामारी के बिषय में अन्य भी बहुत लोगों ने अनुसंधान किए
होंगे |विश्व की अनेकों संस्थाओं एवं सरकारों ने अनुसंधान करवाए होंगे |
इसमें कोई संशय नहीं है किंतु इन सबसे ऐसा क्या प्राप्त किया जा सका जिससे
महामारी से जूझती जनता को थोड़ी भी मदद पहुँचाई जा सकी हो|
ऐसे सभीप्रकार के अनुसंधानों के द्वारा महामारी पीड़ितों को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी !जो इन अनुसंधानों के बिना संभव न थी |ऐसे
अनुसंधान न किए गए होते तो क्या इससे भी अधिक जनधन का नुक्सान हो सकता था
?इसलिए अनुसंधानों के करने करवाने की सार्थकता क्या रही ये कैसे पता लगे |
इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए मैंने वेदविज्ञान का सहारा लिया | उसके आधार पर जो अनुसंधान किए
उनके द्वारा ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर महामारी के प्रारंभिक काल में ही न
केवल खोज लिए थे प्रत्युत पीएमओ की मेल पर भेज भी दिए गए थे |
वेदविज्ञान संबंधी उन्हीं अनुसंधानों के द्वारा महामारी की प्रत्येक लहर के बिषय में सही सही पूर्वानुमान खोजे जा सके हैं | जिन्हें लिखकर 19
मार्च 2020 को ही पीएमओ की मेल पर भेज भी दिया गया था | उस मेल में लिखे गए ऐसे प्रश्नों के उत्तर से संबंधित अंश -
पीएमओ को भेजी गई इस मेल में मैंने लिखा है कि महामारी शुरू और समाप्त कब होती है ?इससे संबंधित अंश -"
" किसी भी
महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही
महामारी की समाप्ति होती है |समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए
अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |"
इसीलिए प्रयास कितने भी किए गए हों किंतु महामारी या उसकी लहरों का आना और
जाना दोनों प्रकार की घटनाएँ समय के साथ ही घटित होती रही हैं | इसमें
मनुष्यकृत प्रयत्नों का प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता है|
इस 19
मार्च की मेल में मैंने लिखी है महामारी पैदा होने की प्रक्रिया ! उससे संबंधित अंश -"
"
कोई भी महामारी तीन
चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते
समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती है |
ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं
पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है
वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों आदि का जल
प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है | इसलिए
शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम
पड़ पाता है |" यही कारण है कि चिकित्सा के लिए प्रयत्न चाहें जितने किए गए हों किंतु उनसे संक्रमितों को कितना लाभ हुआ है | ये कैसे पता लगे |
19
मार्च की इस मेल में मैंने लिखी थी, महामारी से मुक्ति मिलने की प्रक्रिया ! उससे संबंधित अंश -"
" पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से
ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की
वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों आदि का
जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है | " वर्तमान
समय में इसी प्रक्रिया से कोरोना महामारी से भी मुक्ति मिल पाई है |
इस मेल में मैंने लिखा था कि महामारी को पहचानना और चिकित्सा करना संभव नहीं हो पाएगा !उससे संबंधित अंश -"
"इसमें
चिकित्सकीय प्रयासों
का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों
का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |" अर्थात इस
महारोग के लक्षणों को न तो पहचाना जा सकेगा और न ही चिकित्सा के द्वारा इस महारोग से मुक्ति दिलाई जा सकेगी |
19
मार्च 2020 की मेल में मैंने संक्रमण से मुक्ति पाने का उपाय लिखा था | उससे संबंधितअंश -
" ऐसी महामारियों
को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं
ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |" अर्थात ऐसा संयमवरत कर अपने को रोगमुक्त किया जा सकता है |
19 मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल के बिषय में विनम्र निवेदन -
कोरोनामहामारी के अत्यंत प्रारंभिक काल में जब महामारी के बिषय में
किसी को कुछ पता ही नहीं था | उस समय महामारी के बिषय में इतना सब कुछ पता
करके पीएमओ को भेज दिया जाना !ये कोई सामान्य घटना नहीं है | महामारी जैसी
आपदा के बिषय में इतनी विशिष्ट जानकारी भारत के प्राचीनविज्ञान से ही मिल
पाना संभव था | जो संपूर्ण रूप से सही निकली है |इतनी प्रभावी कोई दूसरी पद्धति नहीं हो सकी है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से रोका
तो जा नहीं सकता है | इनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर
समाज की सुरक्षा ही की जा सकती है | ऐसे अनुसंधानों से यदि यह भी न किया
जा सका तो जनहित में इनकी उपयोगिता ही क्या बचती है |
इसलिए भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी
प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं इनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने
में प्राकृतिक घटनाओं से संबंधितविज्ञान से कितनी मदद मिल सकी है | इसकी
समीक्षा की जानी चाहिए |
विज्ञान शब्द को समाज शब्द के साथ जोड़कर समाजविज्ञान एवं राजनीति के साथ जोड़कर राजनीतिविज्ञान शब्द तो बना दिया जाता है ,किंतु समाज और राजनीति में समाजविज्ञान और राजनीतिविज्ञान की भूमिका क्या है |ऐसे विज्ञानों से न तो समाज को कुछ मिला और न ही राजनीति को ! समाजविज्ञान और राजनीतिविज्ञान जैसे शब्द केवल बोलचाल की भाषा में ही प्रयोग किए जाते हैं |
इसीप्रकार से विज्ञान शब्द को भूकंप शब्द के साथ जोड़कर भूकंपविज्ञान बना
दिया गया है |मौसम के साथ जोड़कर मौसमविज्ञान बना दिया गया है |ऐसे ही
महामारीविज्ञान शब्द की रचना कर दी गई है | जिस प्रकार से समाजविज्ञान और राजनीतिविज्ञान के
द्वारा समाज और राजनीति में कोई क्रांति नहीं लाई जा सकी है | उसी प्रकार
से भूकंपविज्ञान से भूकंप के क्षेत्र में मौसमविज्ञान से मौसम के क्षेत्र
में और महामारी विज्ञान से महामारी के क्षेत्र में ऐसा कोई सहारा नहीं मिल
सका है जिसके लिए कहा जा सके कि इन घटनाओं के बिषय में अनुसंधान न हो रहे
होते तो इतना नुक्सान और अधिक हो सकता था |अनुसंधानों के द्वारा बचाव हो
गया |
इसलिए अब सोचने का समय आ गया है कि भूकंपविज्ञान मौसमविज्ञान महामारीविज्ञान भी क्या समाजविज्ञान
और राजनीतिविज्ञान की तरह ही केवल कहने सुनने का ही विज्ञान है |इनसे
सुरक्षा संबंधी आशा छोड़ दी जानी चाहिए | कोरोना महामारी के समय विज्ञान और
वैज्ञानिक अनुसंधानों की क्षमता से संपूर्ण समाज परिचित हो चुका है |
भूकंपों के समय ऐसे अनुसंधानों से समाज को कितनी सुरक्षा मिल पाती है |
इससे वैश्विक समाज सुपरिचित है |
भारत के जिस
प्राचीनविज्ञान के द्वारा मैं महामारी की प्रत्येक लहर के आने से पहले
उसके बिषय में पूर्वानुमान लगाकर पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ | वे सही
भी निकलते रहे हैं | इसके बाद भी उसे विज्ञान न मानकर अभी भी अंधविश्वास
की ही श्रेणी में रखा जा रहा है | दूसरी ओर जिन विज्ञानों की वैज्ञानिकता
प्रमाणित होनी अभी तक बाक़ी है | उसे विज्ञान माना जा रहा है |
कुलमिलाकर अनुसंधानों का उद्देश्य यदि प्राकृतिक संकटों और महामारियों
से जनसुरक्षा करना ही होता है तो समस्त पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर अनुसंधानकार्यों को जनसुरक्षा की ही कसौटी पर कसा जाना चाहिए| जो अनुसंधान जिन घटनाओं से संबंधित हों
उस प्रकार की घटनाएँ घटित होने पर यदि उन अनुसंधानों से लोगों को सुरक्षित
बचाए रखने में मदद मिले तब तो ठीक अन्यथा ऐसे अनुसंधानों को करने कराने का
प्रयोजन ही क्या बचता है |
मेरे
कहने का आशय भूकंपविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों का परीक्षण भूकंप जैसी घटनाओं पर ही किया जाना चाहिए |भूकंप के समय भूकंप
से संबंधित अनुसंधानों से समाज को सुरक्षित बचाने में कुछ तो मदद मिले
अन्यथा ऐसे वैज्ञानिकता विहीन विज्ञानों का जनहित में उपयोग ही क्या बचता
है |
इसी प्रकार से महामारी संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधानों का परीक्षण तभी
हो सकता है जब कोई दूसरी महामारी आवे ऐसे समय उन अनुसंधानों से समाज को
सुरक्षित बचाने में कुछ तो मदद मिले |यदि ऐसा न किया गया तो प्लाज्मा
थैरेपी की तरह यह कैसे पता लग पाएगा कि जो अनुभव अभी हुए हैं उनमें कुछ
सच्चाई है भी या नहीं | कोरोना महामारी की दूसरी लहर न आती तो प्लाज्मा
थैरेपी को महामारी के संक्रमण से मुक्ति दिलाने में समर्थ मान ही लिया गया
था |कोरोना महामारी के बिषय में अभी जो कुछ समझा गया है उसमें सच्चाई
कितनी है | ये तो भविष्य में घटित होने वाली महामारियों के समय ही पता लग
पाएगा |
आधुनिक विज्ञान के आने से पूर्व भारत के जिन प्राचीनवैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं से समाज की सुरक्षा होती रही है | उन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा भूकंप
आँधी तूफानों बाढ़ महामारी आदि प्राकृतिक आपदाओं को समझा जाना अभी भी संभव
है | उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना संभव है,फिर भी उनकी
उपेक्षा होने के कारण प्राचीनअनुसंधानों की कई प्रभावी पद्धतियाँ लुप्त होती जा रही हैं | वे प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी जैसे संकटों के समय समाज की सुरक्षा में सहायक हो सकती हैं |
वर्तमान समय में भूकंप
आँधी तूफानों बाढ़ महामारी आदि घटनाओं के बिषय में न तो प्रभावी अनुसंधान
हो पा रहे हैं | कुछ लोग मिलकर यदि ऐसे अनुसंधान करें भी और उनसे आपदाओं
के समय लाभ मिलने की संभावना भी हो तो भी बिना किसी अनुसंधान के उसे अंध
विश्वास बताकर समाज को उससे मिल सकने वाली सुरक्षा से बंचित कर दिया जा
रहा है |कोरोना महामारी में हुई इतनी बड़ी जनधन हानि प्राचीन विद्याओं की
उपेक्षा का ही परिणाम है |
किसी गर्भिणी स्त्री के गर्भ के प्रारंभिक दिनों में उसके शरीर स्वरूप स्वभाव स्वास्थ्य आदि में कुछ परिवर्तन होते हैं |उन परिवर्तनों को देखकर अनुभवी माताएँ एवं प्रसव कराने वाली दाइयाँ गर्भ होने का अनुमान लगा लिया करती हैं |यही व्यवहारविज्ञान है |
ऐसे ही भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाएँ जब प्रकृति के गर्भ में प्रवेश करती हैं तो गर्भिणी स्त्री की तरह ही संपूर्ण प्राकृतिकवातावरण में कुछ उस प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं |कुछ उसप्रकार के चिन्ह प्रकट होने लगते हैं| जिन्हें पहचानने वाले प्राचीनविशेषज्ञ भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगा लेते रहे हैं | संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में प्रतिपल परिवर्तन होते रहते हैं |भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ भी समय समय पर होते रहने वाले प्राकृतिक परिवर्तन ही हैं |ऐसी प्रत्येक घटना से संबंधित उनके अपने अपने प्राकृतिक चिन्ह होते
हैं |जो प्राकृतिक वातावरण के प्रत्येक अंश में समय समय पर प्रकट और बिलीन होते रहते हैं |
इन चिन्हों में कुछ छोटी तो कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं |जो उन मूल घटनाओं से आगे पीछे घटित होती रहती हैं |उनमें भूकंप
जैसी घटनाएँ भी हैं | जो स्वयं तो घटित हो ही रही होती हैं | इसके साथ ही
साथ उसी क्षेत्र में तैयार हो रही किसी दूसरी घटना की संकेतों में सूचना भी
दे रही होती हैं |
प्राकृतिक संकेतों
के दिखने एवं घटना घटित होने के बीच का जो समय होता है | लोगों की सुरक्षा
की दृष्टि से वो बहुत महत्वपूर्ण होता है | इसलिए ऐसे संकेतों से यदि घटना के बिषय में अनुमान लगा
लिया जाए तो प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के शुरू होने तक लोगों की सुरक्षा की
तैयारियाँ की जा सकती हैं | जहाँ जब जैसी घटनाएँ घटित होनी
होती हैं | उसी के अनुसार वहाँ की प्रकृति में संकेत दिखाई देते हैं | ऐसी घटनाएँ प्रकृति से
लेकर जीवन तक
से संबंधित घटनाओं से संबंधित होती हैं |
प्राकृतिक
वातावरण में जब जिस प्रकार के चिन्ह अधिकता में प्रकट होने लगते हैं, तब
उस प्रकार की घटना के घटित होने की संभावना अधिक बन जाती है |ऐसे चिन्हों
की जैसे जैसे अधिकता बढ़ती जाती है | वैसे वैसे उस प्रकार की घटना के घटित
होने का समय समीप आता जाता है | उसी के आधार पर उनके घटित होने के समय का
अनुमान लगा लिया जाता है |
ऐसी किसी घटना
से संबंधित चिन्ह जिस क्षेत्र विशेष में दिखाई पड़ते हैं | उस घटना के उसी
क्षेत्र में घटित होने की संभावना अधिक होती है | ऐसे प्रत्यक्ष लक्षणों की
पहचान ही व्यवहार विज्ञान है |समय समय पर प्राकृतिक वातावरण में उभरने
वाले ऐसे चिन्हों को भीड़ भाड़ भरी जगहों की अपेक्षा खेतों खलिहानों जंगलों
आदि के खुले प्राकृतिक वातावरण में अधिक स्पष्टरूप से देखा जा सकता है |
प्राकृतिक वातावरण में महामारी से संबंधित प्रत्यक्ष लक्षणों को निरंतर खोजते रहना होता है |जो व्यक्ति ऐसे प्राकृतिक परिवर्तनों को पहचानता है |
उनकी प्रक्रिया को समझता है |परिवर्तन में लगने वाले समय का अनुमान लगा लेता है |वही प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाया सकता है |
कुल मिलाकर प्रकृति के वर्तमानस्वरूप के आधार पर भावी स्वरूप का पूर्वानुमान लगा लेना ही व्यवहार विज्ञान है |"अभी ऐसा तो भविष्य में कैसा !"इसी प्रक्रिया से भविष्य संबंधी सभी अंदाजे लगाए जाते हैं |
व्यवहारविज्ञान में
प्रत्यक्ष लक्षणों के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं
के बिषय में अनुमान लगाना होता है कि भविष्य में कब क्या घटित हो सकता है |वर्षा संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने के लिए अलनीनो लानिना जैसी घटनाओं की जो कल्पना की गई है | वह भी प्राचीन काल के व्यवहारविज्ञान पर ही आधारित है | प्रशांत महासागर में घटित होने वाली अलनीनो और लानिना जैसी घटनाएँ भी प्राकृतिक वातावरण में प्रकट होने वाले ऐसे ही संकेत हैं | जो भविष्य में घटित होने वाली मौसमसंबंधी घटनाओं के बिषय में संकेत दे रहे होते हैं |
प्राकृतिक संकेतों का घटनाओं से संबंध
प्राकृतिक वातावरण ही वो आवरण है जिसमें मनुष्य समेत समस्त जीव सुरक्षित रूप से रहते आ रहे हैं | कोई भी प्राकृतिक आपदा या महामारी उस आवरण का वेधन करती हुई मनुष्यों तक पहुँचती है | इसके बिना मनुष्यों तक पहुँचा जाना संभव नहीं है |
जिस प्रकार से जल
से भरे हुए किसी पात्र आदि में कोई ढेला फेंका जाए या गिर जाए तो उस जल की
छोटी छोटी बूँदें चारों ओर बिखर जाएँगी |उन बूँदों को देखकर ये पता लग
जाएगा कि उस जल में ऐसा कुछ गिरा है | इसीप्रकार से मनुष्यों पर जब जब कोई प्राकृतिक संकट हमला करता है ,तब तब उसका प्रभाव आसपास के प्राकृतिक आवरण पर पड़ता है | जिसके चिन्ह संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में बिखर जाते हैं | यही भविष्य सूचक संकेत होते हैं | ऐसे किसीप्रकार के चिन्ह जब प्राकृतिक
वातावरण में उभरने लगते हैं,तो अच्छी या बुरी कोई न कोई घटना घटित होने वाली होती है | इनमें से बुरे संकेतों को यदि उसीसमय पहचान लिया जाए तो उनसे सुरक्षा की
तैयारियाँ वहीं से प्रारंभ की जानी चाहिए | जिससे ऐसे संकटों के
मनुष्यों तक पहुँचने से पहले ही मनुष्यों की सुरक्षा के प्रबंध किए जा सकें |
इसमें विशेष बात यह है कि प्रकृति में प्रकट होने वाले किसी भी चिन्ह
को किसी भी घटना से नहीं जोड़ा जा सकता है |प्रत्युत जो चिन्ह जिस घटना से
संबंधित होता है | उस चिन्ह को उस घटना के साथ जोड़कर अनुसंधान करना होता
है |
जिस प्रकार से किसी जंगल में धुआँ उठता दिखाई दे आग न भी दिखाई दे
तो भी वहाँ आग होने का अनुमान लिया जाता है |इसका कारण आग और धुएँ का
संबंध पता होना है | इसीलिए धुएँ को देखकर आग होने का अनुमान लगा लिया जाता है |
इसीप्रकार से भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी
घटनाओं से संबंधित प्राकृतिक संकेत यदि प्रकट होने लगें तो उनसे संबंधित
प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगा लिया जाना चाहिए | इसके
लिए पता होना चाहिए कि कौन चिन्ह किस घटना से संबंधित है तो उन चिन्हों या
घटनाओं को देखकर उनसे संबंधित घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगाया जा
सकता है | इसके लिए प्राकृतिक वातावरण में समय समय पर उभरने वाले प्राकृतिक संकेतों का निरीक्षण निरंतर किया जाना चाहिए |
इसी व्यवहारविज्ञान संबंधी पद्धति के आधार पर मैं पिछले
35 वर्षों से प्रकृति को पढ़ने समझने एवं उसकी भाषा को समझने में निरंतर
लगा रहता हूँ | ये लंबे समय तक के अभ्यास एवं अनुभवों का ही परिणाम है कि
मैं प्रकृति के स्वभाव को समझने में सफल हुआ हूँ | इससे संबंधित
अनुसंधानों के बिषय में अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है |
प्राचीनकाल में प्राकृतिक परिवर्तनों का महत्त्व प्रायः सभी को पता होता
था |इसलिए राजा प्रजा सभी लोग प्राकृतिक वातावरण में समय समय पर प्रकट
होने वाले संकेतों पर बहुत ध्यान दिया करते थे |प्रकृति से संबंधित अनुभव अध्ययन अनुसंधान आदि करने के लिए खेत खलिहान जंगल पहाड़ आदि सबसे अधिक उपयुक्त स्थानों के रूप में माने जाते हैं | इसीलिए ऋषि
मुनि इन्हीं प्राकृतिक संकेतों को देखने समझने एवं उनसे संबंधित भावी
घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए सारा जीवन ही जंगलों में बिता दिया
करते थे |ऋषि
मुनियों के अपने अनुभव होते थे | इसके साथ ही साथ राजा स्वयं भी मृगया
अर्थात ऐसी खोजों के लिए जंगलों में स्वयं जाया करते थे | बनबासियों बहेलियों किसानों पशुचारकों मल्लाहों आदि से स्वयं मिला करते थे |उनसे प्राकृतिक परिवर्तनों चिन्हों संकेतों एवं प्रकृतिबिषयक अनुभव पूछा करते थे |
उसयुग में राजकुमारों
को गुरुगृहों आश्रमों में विद्याध्ययन करने के साथ साथ प्राकृतिक अनुभव
सिखाए जाते थे | राज पाठ को सँभालने से पहले प्रजा की सुरक्षा के लिए
प्राकृतिक अनुभव आवश्यक माना जाता था | श्रीराम युधिष्ठिर आदि को भी बारह
वर्ष या उससे अधिक का बनबास हुआ था | उस युग में प्रकृति को समझना सबसे
अधिक आवश्यक माना जाता था |
व्यवहारविज्ञान का प्राचीनकाल में उपयोग !
प्रजा की सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो प्राचीनकाल में
प्रकृतिविषयक अध्ययनों अनुसंधानों को बहुत महत्व दिया जाता था | उस समय
राजालोग प्राकृतिक परिवर्तनों को देखने समझने के लिए आखेट के बहाने जंगलों में स्वयं जाया करते थे |गाँवों खेतों खलिहानों बगीचों जंगलों आदि में जाकर वहाँ के लोगों से
प्रकृति बिषयक अनुभव लिया करते थे | वहाँ के बनबासियों किसानों पशु चारकों
आदि से चर्चा करके प्राकृतिक परिवर्तनों के बिषय में आगे से आगे पता लगाते
रहते थे |
प्राकृतिकपरिवर्तनों के साथ साथ पशुओं पक्षियों का व्यवहार बदलता रहता है |आम लोगों से पशु पक्षियों से संबंधित चेष्टाओं के बिषय में भी राजा लोग अनुभव लिया करते थे | अनेकों
प्रकार से प्राकृतिक परिवर्तनों पर दृष्टि बनाए रखते थे | प्रकृति में कभी
कहीं बिपरीत चिन्ह प्रकट होते सुनते या देखते तो उनके परिणामों पर बिचार
विमर्श किया करते थे | ऐसे बिषयों पर गहन चिंतन मनन करने के लिए जंगलों
में निरंतर निवास करने वाले ऋषिमुनियों के आश्रमों में जाकर उनसे परामर्श
करते | संभावित घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान पता लगाते | उन घटनाओं से
बचाव की
तैयारियाँ करने लग जाते थे |
प्राचीनकाल में ऐसे चिन्हों को देखने तथा उनका संग्रह करने के लिए
ऋषि वैज्ञानिक अपना सारा जीवन जंगलों में बिता दिया करते थे | ऐसे
प्राकृतिक परिवर्तनों को निरंतर देखते रहते |उनके प्रभावों परिणामों पर
बिचार करते | उनसे मनुष्यों को सुरक्षित कैसे बचाया जाए ! आगे से आगे इस
पर बिचार किया करते थे |
सनातन शास्त्रों पुराणों संहिताओं आदि में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं | जिनमें व्यवहारविज्ञान के आधार पर ही महामारी
के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की विधि बताई गई है |इसी
व्यवहारविज्ञान संबंधी अनुसंधान प्रक्रिया को अपनाकर प्राचीनकाल में लोग
प्राकृतिक संकटों से जनधन की
सुरक्षा कर लिया करते थे |
महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की विधि का वर्णन आयुर्वेद
के शीर्षग्रंथ चरकसंहिता के जनपदोध्वंस अध्याय में मिलता है | भगवान
पुनर्वसु अपने शिष्यों को आकाश में प्रकट हुए कुछ खगोलीय चिन्हों को दिखाते
हुए कहते हैं कि ये चिन्ह निकट भविष्य में महामारी पैदा होने के संकेत दे
रहे हैं |
इसलिए महामारी से मनुष्यों की सुरक्षा की तैयारियाँ निरंतर से शुरू कर दी जानी चाहिए |प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर ही उन्होंने भावी महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया था |
इसीप्रकार से उत्तरभारत के प्रसिद्ध महाकवि घाघ ने बहुत सारे ऐसे
प्राकृतिक लक्षणों का वर्णन किया है | जो मौसमसंबंधी घटनाओं के घटित होने
के काफी पहले से घटित होने लगते हैं | वे उन लक्षणों के आधार पर संभावित
घटनाओं को पहचान कर उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया करते थे |
प्राचीनयुग
में इसी व्यवहारविज्ञान के आधार पर लोगों को प्राकृतिकसंकटों एवं
महामारियों से सुरक्षित बचा लिया जाता था | ऐसा न होता तो कोरोनामहामारी के
समय की तरह उससमय यदि इतने इतने लोग प्राकृतिक आपदाओं
महामारियों आदि में मृत्यु को प्राप्त हो जाते तो उस आदि काल में सृष्टि
का आगे बढ़ना कैसे संभव हो पाता | उस समय तो जनसंख्या भी बहुत कम होती थी |
कुल मिलाकर जिस व्यवहार विज्ञान के आधार पर उस युग में प्राकृतिक
आपदाओं एवं महामारियों से समाज की सुरक्षा कर ली जाती थी |उसके आधार पर
वर्तमान समय में भी ऐसे संकटों एवं महामारियों से समाज को सुरक्षित बचाया
जा सकता है |
बिशेष बात
मेरे द्वारा निरंतर किए जाते रहे अनुसंधानों में हुए अनुभवों कभी कभी तो
ऐसा लगने लगता है कि जैसे प्रकृति समय समय पर अपनी सलाह देती रहती है |
महामारी जब प्रारंभ होनी होती है| उसके लगभग बारह वर्ष पहले से ऋतुओं का समय स्वभाव प्रभाव सीमाएँ आदि परिवर्तित होने लगती हैं | कई बार ऋतुओं का
व्यवहार उनके स्वभाव के विरुद्ध होते देखा जाने लगता है |इन्हीं सभी
संकेतों के आधार पर ही भावी रोगों महारोगों को समझना पड़ता है|इनके बिषय में
सूक्ष्म अध्ययन करके भावी महामारी आदि के बिषय
में अनुमान पूर्वानुमान लगाना होता है | लिया जाता है |
मेरे
अनुभव के अनुसार कोरोना महामारी आने के लगभग 12 वर्ष पहले से
प्रकृति में कुछ उस प्रकार के प्राकृतिक लक्षण प्रकट होने लगे थे | जो
प्रकृति में कोई विशेष प्रकार का रोग घटित होने के संकेत देने लगे थे | सन
2016 के बाद यह
स्पष्ट होने लगा था कि प्रकृति का झुकाव प्राकृतिक तत्वों में असंतुलन
पैदा करता जा रहा है |वात पित्त आदि प्राकृतिक तत्वों के संतुलित रहने से
मनुष्य स्वतः रहता है तो इनके असंतुलित रहने से मनुष्य अस्वस्थ होता है |
ये असंतुलन जिन मनुष्यों के शरीरों में हो वो शरीर रोगी होते हैं और यदि
यह असंतुलन प्रकृति में हो तो इसका दुष्प्रभाव संपूर्ण प्रकृति में होता
है | इससे बहुत लोग एक जैसे रोगों से पीड़ित होते हैं | यह असंतुलन यदि
सामान्य हुआ तो सामान्य प्राकृतिक रोग सामूहिक रूप से बहुत बड़े वर्ग को
होते हैं | यदि यह असंतुलन अधिक हुआ तो महारोग अर्थात महामारी जैसे भयंकर
रोग होते देखे जाते हैं | ये असंतुलन जितने बड़े क्षेत्र में होता है ऐसे
रोग महारोग आदि उतने बड़े क्षेत्र को प्रभावित करते हैं |
कुल मिलाकर प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले ऐसे रोगों महारोगों या
कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव प्रभाव या अनुमान पूर्वानुमान आदि पता
लगाने के लिए प्राकृतिक संतुलन असंतुलन आदि का अध्ययन अनुसंधान आदि करना
होता है | सन 2012 से ही प्राकृतिक संतुलन निरंतर बिगड़ते देखकर मैंने सर्व
प्रथम 20 अक्टूबर 2018 को भारत के पीएमओ को मेल भेजी थी |
19
मई 2020 को पीएमओ की मेल में मैंने पहले ही लिख दिया था कि 6 मई के बाद
संक्रमण दिनों दिन कम होता चला जाएगा | ये हमें वेदविज्ञान संबंधी
अनुसंधानों के आधार पर पहले से ही पता था कि 6 मई के बाद समय बदलेगा |उस
बदलाव के कारण लोग संक्रमण से मुक्त होते चले जाएँगे | जून जुलाई आदि महीनों में संक्रमण दिनोंदिन घटते जाने का कारण यदि
समय नहीं था तो दूसरा और क्या हो सकता है | उस समय तो कोई औषधि या चिकित्सा प्रक्रिया भी नहीं थी |
दो संयुक्त लहरों के बिषय में विशेष बात :
वैदिकविज्ञान की दृष्टि से देखा
जाए तो महामारी की पहली लहर 6 मई 2020 को समाप्त हो गई थी |उसके बाद
दूसरी लहर 8 अगस्त 2020 से प्रारंभ होकर 18 सितंबर 2020 तक शिखर पर
पहुँची थी | उसके बाद संक्रमण कम होना प्रारंभ हो गया था जो 13 नवंबर 2020
में समाप्त हुआ था | इसमें विशेष बात यह है कि 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के
बीच के समय में संक्रमण बहुत कमजोर पड़ जाने पर भी पहले संक्रमित होते रहे
लोगों की जाँच रिपोर्टें इस समय में आती रही थीं | इसलिए महामारी जब कमजोर होती जा रही थी ,तब भी लोग संक्रमित पाए जा रहे
थे | इसलिए इन दोनों लहरों को मिलाकर एक करके देखा जाता रहा है |
19
मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल का चित्र |
16 जून 2020 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! (9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )
"इसके बाद यह
महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक
रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और
16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
इस बिषय में वैदिकविज्ञान की प्रामाणिकता :
16 जून 2020 को जब संक्रमण दिनोंदिन घटता जा रहा था | इसके बढ़ने के आसार दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहे थे | उसी 16 जून को वैदिकअनुसंधानों के आधार पर पूर्वानुमान लगाकर मैंने यह सूचना पीएमओ की मेल पर भेजी थी कि महामारी की अगली लहर 9
अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक
रहेगी !उसके बाद समाप्त होना शुरू होगा जो क्रमशः 16 नवंबर 2020 तक जाएगा |
समय संचार में हुए परिवर्तनों के आधार पर मैंने यह पूर्वानुमान लगाया था
|
4 अगस्त 2020 को संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजी गई मेल का अंश !(9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )
"8 अगस्त के बाद कोरोना संक्रमण एक बार फिर बढ़ने लगेगा और यह कहीं भी समाज के बड़े हिस्से को संक्रमित कर सकता है।अगले 50 दिनों में यह संक्रमण इतना बढ़ सकता है कि यह एक बार फिर अपने पुराने स्वरूप में पहुँच सकता है।रिकवरी दर बहुत कम होने लग सकती है।अनुमान है कि 24 सितंबर तक संक्रमण तेज़ी से बढ़ सकता है।इसलिए, सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है।इसलिए, हमें यह आकलन करने के लिए लगभग 50 दिन और इंतज़ार करना चाहिए कि यह महामारी स्थायी रूप से समाप्त होने लगी है या नहीं।"
23 दिस॰ 2020को पीएमओ में भेजी गई मेल के वैक्सीन निषेध संबंधी कुछ अंश !
प्रधानमंत्री जी ! "आपसे मेरा विनम्र
निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को
लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण
विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया
स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |"
"महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या
वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने
की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को
जन्म दिया जा सकता है |"
"यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग
समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ?"
"किसी भी रोग से मुक्ति दिलाने अथवा उसकी दवा या वैक्सीन
बनाने के लिए सबसे पहले चिकित्सा के सिद्धांत के अनुशार उस रोग का स्वभाव
लक्षण संक्रामकता वेग विस्तार आदि समझना आवश्यक होता है अन्यथा उस रोग की
चिकित्सा किस आधार पर की जा सकती है और उसकी दवा या वैक्सीन कैसे बनाई जा
सकती है? "
"मान्यवर !वेदवैज्ञानिक होने के नाते आपसे मैं केवल इतना ही निवेदन करना
चाहता हूँ कि बिना वैक्सीन लाए ही भारतवर्ष में कोरोना लगभग समाप्त हो ही
चुका है जो रहा बचा है वह भी अतिशीघ्र समाप्त हो जाएगा (इसका पूर्वानुमान
मैं 16 जून को ही आपको भेज चुका हूँ |)"
" ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना
अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के
उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को
कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिल्कुल ही नहीं है | यदि
वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने
वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार
कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत
विश्वसनीय नहीं हैं | "
23 दिस॰ 2020की मेल पर विनम्र निवेदन !
वैक्सीन को न लगाने के लिए कहने का मेरा उद्देश्य वैक्सीन के गुण दोष देखना नहीं था !ऐसा
मैं कर भी नहीं सकता था !क्योंकि मेरा वो बिषय भी नहीं है | मुझे इतना पता था कि इस समय यदि ऐसा कोई वैक्सीन लगाने जैसा प्रयत्न किया जाएगा तो उसके दुष्प्रभाव अधिक होंगे | यह काफी कठिन समय था | वैक्सीन लगेगी तो संक्रमण बढ़ेगा ही और जैसे जैसे वैक्सीन लगती
जाएगी वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता जाएगा | वैक्सीन कब कितनी लगेगी या नहीं भी
लगेगी इसका मुझे अनुमान नहीं
था |इसलिए इसके बाद वाली लहर कब आएगी कितनी भीषण होगी !इसके बिषय में
मैंने पहले से कोई पूर्वानुमान
पीएमओ को नहीं भेजा था ,क्योंकि यह लहर वैक्सीन लगाने या न लगाने पर निर्भर
थी | इसलिए जैसे जैसे वैक्सीन लगती गई वैसे वैसे संक्रमण बढ़ते चला गया
|समय और वैक्सीन के प्रभाव से वो बढ़ना ही था | संक्रमण जब अधिक बढ़ गया तो
सरकारों में सम्मिलित मेरे कुछ मित्रों ने व्यक्तिगत तौर पर किसी ऐसे यज्ञ
को करने के लिए मुझसे कहा कहा जिससे महामारी को रोका जा सके | ये 19
अप्रैल 2021 की बात है | इसे से प्रेरित होकर मैंने 19 अप्रैल 2021को ही रात्रि 11. 57 पर पीएमओ को मेल भेजी थी |
19 अप्रैल 2021को पीएमओ को भेजी गई मेल के "यज्ञ के द्वारा महामारी नियंत्रण करने संबंधी कुछ अंश ! "
"महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप
से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल
अर्थात 20 अप्रैल 2021 से
"श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ
करने
जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय'
में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर
क्षमा माँगने का मैंने निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा
करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20
अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के
बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से
पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | "
18 दिस॰ 2021 को पीएमओ को भेजी गई मेल का तीसरी लहर के बिषय में पूर्वानुमान बिषयक अंश ! "
"वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित
नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने
की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख
रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह
सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण
रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |"
20 फ़र॰ 2022 को आगामी लहर के बिषय में पीएमओ को भेजी गई मेल का पूर्वानुमान बिषयक अंश ! "कोरोना महामारी की चौथी लहर
27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी | "
"कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ
होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी |
उसके संपर्क वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की
पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त
2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |"
विशेष जानकारी मैप में है
21 अक्टू॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18
नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी
!इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस
बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी |"
29 दिस॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" कोरोना महामारी की अगली लहर 10 जनवरी 2023 से प्रारंभ होगी !14 जनवरी
2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी और 22 जनवरी 2023
से
महामारी जनित संक्रमण काफी
तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक
संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी ! 21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च
2023 तक बढ़ेगी उसके बाद समाप्त
होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा ! विशेष बात यह है कि संक्रमण बहुत अधिक नहीं बढ़ेगा फिर भी तीसरी लहर से कम भी नहीं रहेगा ! बहुत अधिक
बढ़ने या हिंसक होने से रोकने के लिए आवश्यक सावधानी
बरतना श्रेयस्कर रहेगा | "
विशेष :जानकारी मैप में है |
6 जुल॰ 2023 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद 20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने
का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण
रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के
कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग
5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो पाएगी
|मेरा ऐसा अनुमान है | "
23 मई 2024को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 29 जून 2024 से प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन प्रदूषित होते देखा जा सकता है
|इसी बीच कुछ देशों में महामारी जनित संक्रमण के बढने की प्रक्रिया
प्रारंभ हो सकती है |यद्यपि इसकी गति धीमी होगी फिर भी 14 नवंबर 2024 के पहले पहले महामारी का एक झटका लग सकता है | इसे प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाने वाला महामारी का ट्रायल कहा जा सकता है | 5 अप्रैल 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की दूसरी लहर की तरह ही विशेष डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व का बड़ा भाग संक्रमित हो जाए | वैश्विक
दृष्टि से देखा जाए तो भिन्न भिन्न देशों में महामारी का यह तांडव 2025 के अप्रैल
मई दोनों महीनों में देखने को मिल सकता है | यद्यपि इसके बिल्कुल स्पष्ट
लक्षण सितंबर 2024 तक प्रकट हो जाएँगे | जिन्हें परोक्ष विज्ञान के द्वारा
देखा जा सकेगा |आवश्यकता पड़ी तो उस समय इस पूर्वानुमान की तारीखों में 10
प्रतिशत तक परिवर्तन करना पड़ सकता है |"
19 अग॰ 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
20 अगस्त 2024 से महामारी जैसे महारोगों के बढ़ने का समय शुरू
हो रहा है | इससमय से प्राकृतिक वातावरण तेजी से बिषैला होना प्रारंभ हो
जाएगा | इससे वायु मंडल के साथ साथ खाने पीने की वस्तुएँ संक्रमित होने
लगेंगी |बिषैले वातावरण में साँस लेने से एवं संक्रमित वस्तुओं के खानपान
से लोग स्वतः संक्रमित होते चले जाएँगे | समय प्रभाव से औषधियों के भी
संक्रमित हो जाने के कारण संक्रमितों को औषधियों के सेवन या चिकित्सा आदि
से भी कोई लाभ नहीं होगा | 22 सितंबर 2024 से संक्रमितों की संख्या तेजी से
बढ़ने लगेगी | 11 से 18 अक्टूबर के बीच में यह लहर सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच
जाएगी | 20 अक्टूबर 2024 से संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे कम होनी
प्रारंभ हो जाएगी | इसी क्रम में ये लहर यहीं से समाप्त होनी शुरू हो
जाएगी |
4 मार्च 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 1 मई 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 19 मई 2025 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ हो जाएगा | "
16 मई 2025 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"25 सितंबर 2025 से
कोरोनामहामारी की आगामी लहर प्रारंभ होगी | यह क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |
इससे लोग तेजी से संक्रमित होते चले जाएँगे | ये कई महीनों तक चलेगी |
महामारी की यह लहर 31जनवरी 2026 तक संपूर्ण वायुमंडल को बिषैला करती रहेगी
| उसके बाद विराम लगने लगेगा | 12 फरवरी 2026 के बाद समाज को भी यह भरोसा
होने लगेगा | अब महामारी से मुक्ति मिल जाएगी | "
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच जो ट्रायल सफल हुए वही दूसरी लहर में असफल क्यों ?
बिचारणीय बिषय यह है कि 6
मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच जिन औषधियों टीकों आदि को कोरोना संक्रमण
से मुक्ति दिलाने में सक्षम माना गया था | अप्रैल मई 2021 पहुँचते पहुँचते
उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में यह कहा जाने लगा कि उनमें संक्रमण से मुक्ति दिलाने की क्षमता नहीं है |
जिन औषधियों टीकों आदि के प्रभाव को महामारी से मुक्ति दिलाने पहले सक्षम माना गया| उन्हीं औषधियों टीकों आदि के बिषय में अप्रैल 2021 के बाद में कहा जाने लगा कि उनमें महामारी से मुक्ति दिलाने की उस प्रकार की क्षमता नहीं है |
विज्ञान एकप्रकार का, वैज्ञानिक एक प्रकार के और अनुसंधान एक प्रकार के उनसे प्राप्त जानकारी में इतना अंतर कैसे आया | इस
बिषय में रिसर्च करने के लिए क्या ऐसा कोई सक्षम विज्ञान ही नहीं था |
कहीं ऐसा तो नहीं था कि किसी सक्षम विज्ञान के अभाव में जब जिसप्रकार की
घटना घटित होने लगती थी, तब उसप्रकार की घटना घटित होने की संभावना व्यक्त
कर दी जाती थी |
इससे अलग यदि कोई वास्तविक विज्ञान भी था वैज्ञानिक भी थे और अनुसंधान भी होते थे,तब तो ये यह पता लगा ही लिया जाना चाहिए था कि 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर होते जाने का कारण क्या था ? उससमय तो संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए यदि कोई औषधि इंजेक्शन थैरेपी आदि भी उपलब्ध नहीं थी |
इसका कारण यदि ये माना जाए कि एलोपैथ रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शनों और प्लाज्मा थैरेपी जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं तथा होम्योपैथ की आर्सेनिक एल्बम-30 एवं पतंजलि की कोरोनिल जैसी औषधियों के प्रभाव से 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच दिनोंदिन संक्रमण कमजोर पड़ता जा रहा था तो कोरोना की दूसरी लहर अर्थात अप्रैल मई 2021 में इन्हीं औषधियों इंजेक्शनों थेरेपियों के द्वारा लोगों की महामारी से सुरक्षा क्यों नहीं की जा सकी | संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति क्यों नहीं दिलाई जा सकी ?
6 मई 2020 के बाद 8 अगस्त 2020 बीच संक्रमण घटने का कारण समय था !
इस समय संक्रमण घटने का कारण समय ही था | समय के आधार पर ही अनुसंधान करके 19 अप्रैल 2020
को ही मैंने पीएमओ में मेल भेज दी थी कि 6 मई 2020 के बाद समय के प्रभाव से संक्रमण कमजोर होने लगेगा |
इसके बाद 16 जून 2020
को पीएमओ में दूसरा मेल भेज दिया था कि समय प्रभाव से 8 अगस्त 2020 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लगेगी |जो 24 सितंबर 2020 तक बढ़ती चली जाएगी |उसके बाद संक्रमण कम होना प्रारंभ होगा | संक्रमण धीरे धीरे 13 नवंबर 2020 तक स्वयं ही घटता जाएगा ! ऐसा ही हुआ |
महामारी एवं उसकी लहरों के आने और जाने का कारण समय था | समय
परिवर्तन शील होता है | उसमें अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के परिवर्तन होते
हैं | समय में जब अच्छे परिवर्तन होते हैं तब महामारी का वेग घटने लगता था
और समय में जब बुरे परिवर्तन होते थे तब महामारी का वेग बढ़ने लगता था |
अच्छा समय मनुष्यों के लिए हितकर होता है | इसलिए अच्छे समय के प्रभाव से
मनुष्यों को स्वस्थ होना ही होता है | इसलिए ऐसे समय मनुष्यों को स्वस्थ
करने के लिए जितने भी प्रयत्न किए जाते हैं | उन्हें इसलिए सफल मान लिया
जाता है क्योंकि लोग स्वस्थ हो रहे होते हैं | ऐसे समय कुछ लोग स्वस्थ होने
का प्रयत्न कर रहे होते हैं | उन्हें ये भ्रम हो जाता है कि लोगों के
स्वस्थ होने का कारण उनके द्वारा किए जा रहे प्रयत्न ही हैं |
ऐसे समय जिन जिन औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों
का जहाँ कहीं परीक्षण(ट्रायल) आदि किया जा रहा होता है | समयप्रभाव से
सुधार हो ही रहा होता है | उस सुधार को आधार मानकर उन परीक्षणों को भी सफल
मान लिया जाता है |
ऐसे सुधार समय के कारण हो रहे थे या कि परीक्षण के लिए प्रयोग की जा
रही औषधियों आदिके प्रभाव से संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिल रही है |
इस रहस्य का उद्घाटन तब होता है ,जब उसके बाद समय बदलता है और बुरा समय
प्रारंभ होता है | उसके प्रभाव से कोई दूसरी लहर आती है ,तब उन्हीं औषधियों इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सा पद्धतियों से मनुष्यों की सुरक्षा किया जाना संभव नहीं हो पाता है | संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है | ऐसी परिस्थिति में अंतर स्पष्ट हो जाता है कि यदि औषधियों
इंजेक्सनों पैथियों या अन्य चिकित्सापद्धतियों से लाभ हुआ होता तब तो
उसके लहर में भी उनके प्रभाव से लोगों को संक्रमित नहीं होने दिया जाता |
जो संक्रमित हुए भी थे | उन्हें उन्हीं चिकित्सापद्धतियों के प्रभाव से स्वस्थ
कर लिया जाता ,किंतु ऐसा नहीं हो सका | इससे ये सिद्ध हुआ कि बुरे समय के
प्रभाव से लोग संक्रमित हो रहे थे और अच्छे समय के प्रभाव से स्वस्थ हो
रहे थे | इसके अतिरिक्त किसी अन्य पद्धति की कोई भूमिका ही नहीं सिद्ध हो
रही थी |
संक्रमण घटने और बढ़ने का समय कब कब था !
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक संक्रमण कमजोर होने का समय था | इसके बाद 8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | 24 सितंबर 2020 से 13 नवंबर 2020 तक फिर संक्रमण कमजोर होते जाने का समय था |
6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक एवं 24 सितंबर 2020 से 13
नवंबर 2020 तक संक्रमण से मुक्ति पाने का समय था | इसलिए ऐसे समय किसी ने
कोई औषधि इंजेक्शन चिकित्सा आदि ली या नहीं ली फिर भी अच्छे समय के प्रभाव
से संक्रमित लोग स्वस्थ होते चले गए |
इसीप्रकार से 8 अगस्त 2020 से 24 सितंबर 2020 तक एवं मार्च अप्रैल 2020 तक संक्रमण बढ़ने का समय था | संक्रमण बढ़ने के समय कोई औषधि चिकित्सा आदि ली गई या नहीं ली गई | इस समय संक्रमण
बढ़ना ही था | इसलिए संक्रमण बढ़ता चला गया | पहली लहर में जिन औषधियों
इंजेक्शनों आदि को मनुष्यों की सुरक्षा की दृष्टि से सक्षम माना गया था |
संक्रमितों पर उनका प्रयोग करने के बाद भी संक्रमण बढ़ता चला जा रहा था |
समयसंबंधी मेरे पूर्वानुमानों के आधार पर 6 मई 2020 से 8
अगस्त 2020 तक कोरोना संक्रमण कम होने का समय था | इसलिए इस समय संक्रमण
कम होना ही था |संक्रमण कम करने के लिए जो लोग प्रयत्न कर रहे थे उन्हें भी
लगा कि उनके प्रयत्न सफल हो गए | इस समय में किए गए ट्रायल भी सफल होने ही
थे | जिसने जिस प्रकार के ट्रायल किए वे सब सफल हुए |
इसीसमय कुछ लोगों ने टीकों का परीक्षण किया तो कुछ लोगों ने औषधियों
का कुछ लोगों ने अन्य विभिन्न थेरेपियों का परीक्षण किया | कुछ लोगों ने और
तरह तरह के तीर तुक्के आजमाए सबको लगा कि उन्हीं के प्रयास से कोरोना
संक्रमण कम हो रहा है |कुछ लोग जादू टोना झाड़ फूँक आदि का सहारा ले रहे थे|
समय सुधारा तो उनके स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ | उन्हें लगा कि उन्हें जादू टोना झाड़ फूँक आदि के प्रभाव से स्वास्थ्यलाभ हुआ है | कुल मिलाकर सभी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपाय अलग अलग थे किंतु समय 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक का ही था | यहाँ तक कि वैक्सीनों के ट्रायल भी इसी समय में सफल माने गए |
रेम्डेसिविर : 2 मई 2020 - "कोरोना वायरस के इलाज के लिए लगातार चिकित्सकीय परीक्षण जारी हैं. इसी बीच
एक दवा रेम्डेसिविर को लेकर साकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. Remdesivir
के इस्तेमाल से COVID-19 के रोगियों में तेजी से रिकवरी देखने को मिल रही
है. अमेरिकी नेतृत्व वाले परीक्षण में यह दवा बीमारी के खिलाफ प्रमाणित
फायदे देने वाली पहली दवा बन गई है |- NDTV
कोरोनिल :23 जून 2020 — आज
पतंजलि ने दो दवाएं लॉन्च की हैं जिनके बारे में कंपनी ने दावा किया है कि
ये कोविड-19 की बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज हैं |- बीबीसी
प्लाज्मा थैरेपी : 2 जुलाई 2020 दिल्ली में शुरू हुआ देश का पहला प्लाज्मा बैंक, कोरोना मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी काफी कारगर साबित हो रही है | -आजतक
आर्सेनिक एल्बम-30: 23 -8-2020 होमियोपैथिक मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रामजी सिंह के
अध्ययन में यह साबित भी हो रहा है। पटना के 15 हजार लोगों को वे यह दवा दे
चुके हैं। 21 दिन बाद जब दवा का प्रभाव जानने के लिए फोन किया गया तो
परिणाम उत्साहजनक थे। जिन पांच सौ लोगों का अबतक फीडबैक लिया गया है वे सभी
कोरोना से सुरक्षित हैं। - दैनिक जागरण
वैक्सीन निर्माण की विभिन्न घोषणाएँ भी इसी समय की गईं !
5
मई 2020 से 11
अगस्त 2020 तक
5
मई 2020 :इजरायल के रक्षामंत्री नैफ्टली बेन्नेट ने अपने एक बयान में
कहा कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना
लिया है। उन्होंने कहा कि हमारी टीम ने कोरोना वायरस को खत्म करने के टीके
के विकास को पूरा कर लिया है।
8
मई 2020 :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश
में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन
बना ली है | अमेरिकी फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोरोना वायरस को खत्म करने
वाली दवा बना ली है। अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित
बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस का उपचार करने
वाली एंटीवायरल मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।खास बात ये
है कि इस दवा को अमेरिका के बाद जापान ने भी मंजूरी दे दी है। जापान में
गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल किया जाएगा।
2 जुलाई 2020-भारत
की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च और नेशनल
इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलोजी, पुणे के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने की दिशा में
एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस वैक्सीन को नाम दिया गया है
‘कोवैक्सिन’इसका वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है और ड्रग
कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायलकी
मंज़ूरी भी मिल गई है. हैदराबाद की जीनोम वैली के बायो-सेफ़्टी लेवल 3 में
तैयार हुई इस वैक्सीन का अब जल्द ही पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल
शुरू हो जाएगा |
13 जुलाई 2020 - रूस ने दावा किया है कि 'उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस कीपहली वैक्सीन बना ली है !
20 जुलाई 2020-वैक्सीन बनाने की दिशा में चल रहे प्रयासों की बात करें, तो दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं.कुछ देशों में वैक्सीन्स के ह्यूमन ट्रायल पहले और दूसरे चरण में सफल रहे हैं और अब भारत में भी कोवैक्सीन नाम की वैक्सीन का ट्रायल दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में 20 जुलाई से ही यह ट्रायल शुरू हो जाएगा.शुरू होने जा रहा है |
11
अगस्त 2020-रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन घोषणा की कि कोरोना की
वैक्सीन तैयार कर ली गई है. रूस का कहना है कि वैक्सीन को देश में बड़े
पैमाने पर इस्तेमाल के लिए नियामक मंजूरी मिल गई है |
24 सितंबर 2020 से वैक्सीन लगना शुरू होने तक संक्रमण घटने का समय था !
इस समय संक्रमण से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए जो जो प्रयत्न किए
गए वे सभी सही निकले क्योंकि समय ही संक्रमण घटने का था | इसलिए लोग
प्रयत्न करते जा रहे थे सुधार का समय होने के कारण उनके सुधार संबंधी
प्रयत्नों में सफलता मिलती जा रही थी |
22 नवंबर 2020 -चीन ने कोरोना की एक सुपर वैक्सीन बनाने का दावा किया है।
23
नवंबर 2020 - भारत के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, हम अपने स्वदेशी टीके को विकसित
करने कीप्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं. हम अगले एक-दो महीनों में तीसरे
चरण के परीक्षण को पूरा करने की प्रक्रिया में है|
8 दिसंबर 2020 को ब्रिटेन में फ़ाइज़र ने टीकाकरण शुरू किया है |
अमेरिका
ने फ़ाइज़र-बायोएनटेक कोविड वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दे
दी है इसी दिसंबर में फ़ाइज़र वैक्सीन को ब्रिटेन, कनाडा बहरीन और सऊदी अरब
ने पहले ही मंज़ूरी दे दी है.|
30 दिसंबर 2020 ब्रिटेन
ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी
थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा ब्रिटेन
ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी
थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा चुकी
है. इस बीच ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को भी ब्रिटेन ने मंजूरी दे दी
है. इसका मतलब है कि यह टीका सुरक्षित और प्रभावी दोनों है |
25 जनवरी 2021-भारत
बायोटेक को कोरोना की नेजल स्प्रे वैक्सीन BBV154 के ट्रायल की इजाजत मिली
है. जबकि और भी कई देशों में ट्रायल हो रहे हैं और अच्छे नतीजे देखने को
मिल रहे हैं |
कोरोना की सबसे भयानक दूसरी लहर
इसके बाद समय में ऐसा बदलाव हुआ 23 दिस॰ 2020 को पीएमओ में मेल भेज भेज कर मैंने सूचित किया
था कि "यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही
जाएगा और यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने
वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार
कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत
विश्वसनीय नहीं हैं |" इससे हमारा अनुमान स्पष्ट था कि यदि
वैक्सीन नहीं लगाई जाएगी तो समाज संक्रमण मुक्त हो जाएगा और यदि वैक्सीन
लगाई जाती है तो संक्रमण का विस्तार होगा | इस प्रकार से जैसे जैसे संक्रमण
वैक्सीन लगता चला गया वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता चला गया | इसके बाद
जब संक्रमण काफी बढ़ गया था चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था | उससमय 19 अप्रैल
2020 को पीएमओ को मेल भेजकर मैंने सूचित किया था कि 2 मई 2021 से कोरोना
संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |
19 अप्रैल 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !( 20 अप्रैल 2021 से 2 मई 2021 तक )
" मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर
अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम
होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त
होना प्रारंभ हो जाएगा |"
18 दिसंबर 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित
नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने
की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख
रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह
सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण
रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |"
20 फ़र॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"कोरोना महामारी की चौथी लहर
27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी |"
29 अप्रैल 2022 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ
होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी |
उसके संपर्क वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की
पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त
2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |"
21 अक्टू॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18
नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी
!इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस
बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी |"
29 दिस॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" कोरोना महामारी की अगली लहर 10 जनवरी 2023 से प्रारंभ होगी !14 जनवरी
2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी और 22 जनवरी 2023
से
महामारी जनित संक्रमण काफी
तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक
संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी ! 21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च
2023 तक बढ़ेगी उसके बाद समाप्त
होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा ! विशेष बात यह है कि संक्रमण बहुत अधिक नहीं बढ़ेगा फिर भी तीसरी लहर से कम भी नहीं रहेगा ! बहुत अधिक
बढ़ने या हिंसक होने से रोकने के लिए आवश्यक सावधानी
बरतना श्रेयस्कर रहेगा | "
6 जुल॰ 2023 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद 20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने
का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण
रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के
कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग
5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो पाएगी
|मेरा ऐसा अनुमान है | "
23 मई 2024को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 29 जून 2024 से प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन प्रदूषित होते देखा जा सकता है
|इसी बीच कुछ देशों में महामारी जनित संक्रमण के बढने की प्रक्रिया
प्रारंभ हो सकती है |यद्यपि इसकी गति धीमी होगी फिर भी 14 नवंबर 2024 के पहले पहले महामारी का एक झटका लग सकता है | इसे प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाने वाला महामारी का ट्रायल कहा जा सकता है | 5 अप्रैल 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की दूसरी लहर की तरह ही विशेष डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व का बड़ा भाग संक्रमित हो जाए | वैश्विक
दृष्टि से देखा जाए तो भिन्न भिन्न देशों में महामारी का यह तांडव 2025 के अप्रैल
मई दोनों महीनों में देखने को मिल सकता है | यद्यपि इसके बिल्कुल स्पष्ट
लक्षण सितंबर 2024 तक प्रकट हो जाएँगे | जिन्हें परोक्ष विज्ञान के द्वारा
देखा जा सकेगा |आवश्यकता पड़ी तो उस समय इस पूर्वानुमान की तारीखों में 10
प्रतिशत तक परिवर्तन करना पड़ सकता है |"
19 अग॰ 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
20 अगस्त 2024 से महामारी जैसे महारोगों के बढ़ने का समय शुरू
हो रहा है | इससमय से प्राकृतिक वातावरण तेजी से बिषैला होना प्रारंभ हो
जाएगा | इससे वायु मंडल के साथ साथ खाने पीने की वस्तुएँ संक्रमित होने
लगेंगी |बिषैले वातावरण में साँस लेने से एवं संक्रमित वस्तुओं के खानपान
से लोग स्वतः संक्रमित होते चले जाएँगे | समय प्रभाव से औषधियों के भी
संक्रमित हो जाने के कारण संक्रमितों को औषधियों के सेवन या चिकित्सा आदि
से भी कोई लाभ नहीं होगा | 22 सितंबर 2024 से संक्रमितों की संख्या तेजी से
बढ़ने लगेगी | 11 से 18 अक्टूबर के बीच में यह लहर सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच
जाएगी | 20 अक्टूबर 2024 से संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे कम होनी
प्रारंभ हो जाएगी | इसी क्रम में ये लहर यहीं से समाप्त होनी शुरू हो
जाएगी |
4 मार्च 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
" 1 मई 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई
देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही डरावना
स्वरूप धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 19 मई 2025 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ हो जाएगा | "
16 मई 2025 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
"25
सितंबर 2025 से
कोरोनामहामारी की आगामी लहर प्रारंभ होगी | यह क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |
इससे लोग तेजी से संक्रमित होते चले जाएँगे | ये कई महीनों तक चलेगी |
महामारी की यह लहर 31जनवरी 2026 तक संपूर्ण वायुमंडल को बिषैला करती | उसके
बाद विराम लगने लगेगा | 12 फरवरी 2026 के बाद समाज को भी यह भरोसा
होने लगेगा | अब महामारी से मुक्ति मिल जाएगी | "
जिस प्रकार से छोटी अंबी हरी होती
है, खट्टी होती है उसकी गुठली कोमल होती है | वो अंबी जब थोड़ी बड़ी होती है तो हरी और खट्टी तो होती है किंतु उसकी गुठली नरम नहीं रहती | कुछ समय और बीतने पर उसी अंबी का
रंग पीला और स्वाद मीठा हो जाता है और गुठली कठोर हो जाती है | इसप्रकार
से अंबी में परिवर्तन तो होते हैं किंतु होने वाले परिवर्तनों को देखा जाए तो उनका प्रकार प्रायः एक सा ही होता है | सभी अंबियों के बढ़ने का यही क्रम है | इसलिए अंबी में होने वाले ऐसे परिवर्तनों से परिचित लोग छोटी अंबी के बिषय में अंदाजा लगा लेते हैं कि इसमें कब कैसे परिवर्तन होंगे !यही व्यवहार विज्ञान है |
समस्याओं को समझने में जिस विषय से विज्ञान का अर्थ किसी घटना के बिषय
में विशेष ज्ञान होता है| जिस बिषय से संबंधित अनुसंधानों से जिस घटनाओं के
बिषय में विशेष जानकारी पता की जा सके | उस घटना का वही विज्ञान होता है |
कई बार अपने काल्पनिक धागों से हम किसी घटना को बुन लिया करते हैं | इस
काल्पनिक प्रक्रिया को हम अनुसंधान मानने की गलती कर लेते हैं | जिससे उस
घटना का वास्तविक सच कभी सामने नहीं आ पाता है | जिससे उस घटना के बिषय में
उस प्रक्रिया से लगाए अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकल जाते हैं |
इसीलिए हमारे पास कहने को तो भूकंपविज्ञान है किंतु उससे भूकंप के
बिषय में कुछ पता नहीं लगाया जा सकता है | ऐसे ही प्रत्येक प्राकृतिक घटना
का विज्ञान तो है किंतु उससे उस घटना के बिषय में कुछ पता लगाना संभव नहीं
हो पाता है |
भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
सूखा अतिवर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं का अपना अपना विज्ञान होता है
|वैज्ञानिक होते हैं | अनुसंधान होते हैं | इनके बिषय में अनुमान
पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | ये सब तो होता है किंतु ऐसी आपदाओं से
मनुष्यों को भयमुक्त और सुरक्षित रखने के लिए इनके बिषय में पहले से सही अनुमान पूर्वानुमान आदि पता किया जाना आवश्यक होता है | उस उद्देश्य की पूर्ति ऐसे विज्ञानों अनुसंधानों से नहीं हो पाती है |
इसलिए घटनाओं से संबंधित विज्ञान वैज्ञानिक अनुसंधान होने के बाद भी उन घटनाओं के घटित होने पर जनधन का भारी नुक्सान हो जाता है | ऐसा प्रायः सभी प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर होता है | जिस जनधन
की सुरक्षा का लक्ष्य लेकर ऐसे अनुसंधान किए जाते हैं | वो नुक्सान यदि
सहना ही है तो ऐसे अनुसंधानों को क्यों सहा जाए |जिनसे ऐसी आपदाओं के समय
मनुष्यों को कोई मदद नहीं मिल पाती है |
उदाहरण रूप में देखा जाए तो भूकंप विज्ञान है वैज्ञानिक हैं अनुसंधान
भी होते रहते हैं | भूकंप आने पर उससे जो जनधन हानि होती होती है वो होती
है | वैज्ञानिक प्रयासों से उसे सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं हो पा रहा
है | मनुष्यों के हित का लक्ष्य लेकर सोचने से चिंता तो होती है |
कोरोना महामारी के समय ही देखा जाए तो विगत कुछ दशकों में पड़ोसी
शत्रुदेशों से भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े | उन तीनों युद्धों में मिलाकर
जितने लोगों की मृत्यु हुई होगी | उससे कई गुना अधिक लोग केवल महामारी में
मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | महामारी से इतना बड़ा जनसंहार तब हुआ है जब
महामारी का इतना उन्नत विज्ञान है ,वैज्ञानिक हैं और अनुसंधान भी निरंतर
होते रहते हैं | ये चिंता की बात है |
इसलिए अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो कुछ होता आ रहा है | उसे वैसा ही
होते रहने दिया जाए | इसके साथ ही साथ एक नई अनुसंधान प्रक्रिया प्रारंभ
की जाए |जिसमें किसी प्राकृतिक घटना या आपदा के साथ विज्ञानशब्द को यूँ
ही मनमाने ढंग से चिपकाने की अपेक्षा पहले उस विज्ञान की वैज्ञानिकता का
परीक्षण किया जाए | उसके बाद उसे विज्ञान के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए
|
कुल मिलाकर किसी बिषय को भूकंपविज्ञान
मौसमविज्ञान आदि के रूप में यूँ प्रतिष्ठा प्रदान कर देने की अपेक्षा उसकी
उस रूप में उपयोगिता पर बिचार होना चाहिए |जिस बिषय के द्वारा जिस
प्राकृतिक घटना को सही सही समझा जा सके और उसके आधार पर लगाए गए अनुमान
पूर्वानुमान आदि सही निकल सकें उसे ही उस प्राकृतिक घटना या आपदा से संबंधित विज्ञान माना जाना चाहिए |
आधुनिकविज्ञान का जब उदय ही नहीं हुआ था |
की
परिकल्पना की गई है | करने के लिए सुरक्षित बचाने सुरक्षा एवं बहुत को
समझने एवं उनके बिषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के में
सहायक विशेष ज्ञान को विज्ञान मानते हैं | ऐसे ही प्राकृतिक आपदाओं से
जनधन की सुरक्षा करने में जो सहायक हो उस विशेषज्ञान को विज्ञान मानते हैं |
इसके अतिरिक्त ऐसे किसी बिषय को विज्ञान के रूप में स्थापित करने से समाज
का कोई लाभ नहीं होता है | जिसका उन घटनाओं से कोई संबंध नहीं होता है |
भूकंपविज्ञान को ही देखा जाए तो इस विज्ञान के द्वारा न तो भूकंपों के बिषय
में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही भूकंपों के आने के लिए
जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजा जा सकता है | काल्पनिक रूप से जिन्हें कारण
माना भी गया है | वे कारण हैं भी या नहीं ! ये तो तभी प्रमाणित हो सकता
है,जब उन कारणों के आधार पर भूकंपों के बिषय में पूर्वानुमान लगाए जाएँ और
वे सही निकलें | यही उस घटना के विज्ञान की वैज्ञानिकता होगी |
इस कसौटी पर खरा उतरने वाला अभी तक ऐसा कोई विज्ञान नहीं है | जिसके आधार पर अनुसंधानपूर्वक भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
सूखा अतिवर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं को सही सही समझा जा सके ! इन
घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों को खोजा जा सके और
इनके बिषय में सही सही पूर्वानुमान लगाया जा सके | ऐसे वैज्ञानिकता विहीन विज्ञान के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों के उद्देश्यों को पूरा नहीं किया जा सकता है |
इसीलिए अभी तक भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात सूखा अतिवर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं हो पाया है | कोरोना महामारी के बिषय में ही देखा जाए तो किसी भी लहर के
बिषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं | वर्तमानसमय में अत्यंत
उन्नत विज्ञान है ,फिर भी महामारी सहित सभी प्राकृतिक आपदाओं में समाज को
इतना जनधन का नुक्सान उठाना पड़ा |
कोरोना महामारी की दूसरी लहर प्रारंभ होने का कारण
सन 2020 के दिसंबर महीने में कोरोना संक्रमण प्रायः समाप्त हो चुका था |इसी बीच मुझे जब वैक्सीन लगाए जाने की बात मीडिया से पता लगी तो मुझे बेचैनी इस बात की होने लगी कि यदि इस समय वैक्सीन लगाई जाती है तो संक्रमण
घटने के बजाए बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा ,जैसे जैसे वैक्सीन लगती जाएगी
!वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता चला जाएगा !ऐसा न हो इसलिए 23 दिसंबर 2020 को मैंने पीएमओ को मेल भेज कर निवेदन किया कि यदि वैक्सीन लगाई जाएगी तो संक्रमण बढ़ेगा | देखिए उस मेल का चित्र -
विशेष बात -
मेल भेजकर वैक्सीन न लगाने के लिए मैंने पीएमओ से निवेदन किया था | हमारा
अभिप्राय वैक्सीन को गलत या निष्प्रभावी बताना नहीं था | मुझे केवल इतना
पता था कि इस समय में यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो उसके दुष्प्रभाव होंगे |
जिससे कोरोना संक्रमण बढ़ सकता है | यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तो
यहीं से लोगों को महामारी से मुक्ति मिलती चली जाएगी | मेरे द्वारा
वैक्सीन न लगाने के लिए निवेदन करने के बाद भी वैक्सीन निरंतर लगाई जाती रही | जैसे जैसे वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया बढ़ती गई वैसे वैसे संक्रमितों की संख्या बढ़ती चली गई |ये मेल मैंने पीएमओ को उस समय समय भेजी थी जब संक्रमितों की संख्या अत्यंत कम रह गई थी |
इसीबीच सरकार से संबंधित मेरे कुछ व्यक्तिगत मित्रों के फोन आए | जिसमें
उन्होंने पूछा कि प्राचीन काल में महामारियों से सुरक्षा के लिए यज्ञ आदि
किए जाते थे | इस समय भी ऐसा किया जा सकता है क्या ?मैंने कहा किया तो जा
सकते है किंतु उन्हें करने वाले इतने संयमी साधक कहाँ मिलेंगे | ऐसे लोग जब
खोजने पर भी नहीं मिले तो मैंने ऐसा यज्ञ स्वयं करने का न केवल निर्णय
लिया ,प्रत्युत 19 अप्रैल 2021 को पीएमओ को मेल भेजकर उन्हें सूचित भी
किया कि कोरोना संक्रमण से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए कल से अर्थात 20
अप्रैल 2021 से मैं श्री बिपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ करने जा रहा हूँ | यह
यज्ञ 11 दिनों तक चलेगा | मेरे द्वारा किए जा रहे उस यज्ञ के प्रभाव से कोरोना संक्रमण पर तुरंत अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा | 23 अप्रैल 2021 से संक्रमण कमजोर पढ़ता हुआ दिखाई भी देगा | 11 दिनों बाद अर्थात 2 मई 2021 को जैसे ही यज्ञ पूर्ण होगा वैसे ही कोरोना संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |इसके बाद लोग तेजी से संक्रमण मुक्त होते चले जाएँगे |यज्ञ के प्रभाव से
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