शुद्ध मावे की शुद्ध मिठाइयाँ जाती आखिर कहाँ हैं !कौन है इसके लिए जिम्मेदार ? बड़े लोगों का छोटों पर आर्थिक अत्याचार !ये कैसे संस्कार !ऐसे कब तक मनाए जा पाएँगे त्यौहार !
दीपावलीपर्व पर त्योहार भावना का अपमान करने वाले लोगों पर लगाई जाए लगाम !सबको सबका हिस्सा मिलने दिया जाए !ब्लैकमनी वालों ने महँगे किए बाजार उन्हें समझाकर रोकने के प्रयास किए जाएँ ! !
दीवाली बाँटने के नाम पर शुद्ध मिठाइयों के सैकड़ों हजारों लाखों करोड़ों डिब्बे उपहार स्वरूप उन्हें बाँट दिए जाते हैं जिन्हें खाने के लिए प्रायः या तो डॉक्टर मना कर चुके होते हैं या फिर उन्हें खाने में अच्छी नहीं लगती हैं मिठाइयाँ !
दूसरी ओर जिन गरीबों या माध्यम वर्गीय लोगों को मिठाइयाँ खाने में भी अच्छी लगती हैं और डॅाक्टरों ने भी उन्हें मना नहीं किया होता है ऐसे लोगों को मिलती हैं सिंथेटिक मिठाइयाँ !क्योंकि उनके मार्केट में पहुँचने से पहले ही शुद्ध मावे की शुद्ध मिठाइयाँ मार्केट से गायब की जा चुकी होती हैं !
अब साल माल मीठा बेचने वाले लोग अपनी दुकानों में कुछ तो मीठा बनाकर रखेंगे ही किंतु उसके लिए कहाँ से आवे मावा !दीपावली देखकर भैंसे तो अधिक दूध देने से रहीं तथा मावा अधिक दिन तक स्टोर किया नहीं जा सकता ऐसे में सिंथेटिक मावा और सिंथेटिक मिठाइयों का कारोबार ख़ुशी ख़ुशी करते हैं हलवाई और प्रेम से खरीदते हैं ग्राहक जिसे खाकर बाद में भले बीमार हों !
धनी भाई बहनों को सोचना चाहिए कि असली मावे की बनी शुद्ध मिठाइयों को यदि व्यवहार में ही बड़े बड़े लोगों में बाँट डालोगे तो वो लोग तो बेचारे खा नहीं पाएँगे क्योंकि पूर्वजन्म में पैसे के बलपर ऐसे ही मिठाइयाँ सड़ाई होंगी खूब बाँटा होगा व्यवहार और जिन्हें दिया होगा उन्होंने न खाया होगा न किसी को दिया होगा अपितु बर्बाद कर दिया होगा तभी तो इस जन्म में होती हैं शुगर जैसी बीमारियाँ !
बंधुओ !खाद्य पदार्थों में गरीब अमीर सब का हिस्सा होता है यदि ईश्वर ने हमें अधिक धन दे भी दिया है तो उचित हैं कि हम ईश्वर समर्पित भावना से उस धन का उपयोग अपनी इच्छानुशार करें किंतु ध्यान ये भी रखें कि गरीबों के हिस्से हड़पने जैसा अपराध न होने पाए हमसे !
बंधुओ !आपने भी देखा होगा कि दवाली बाँटने के नाम पर सेठ साहूकारों जैसे बड़े लोग सौ दो सौ पाँच सौ आदि डिब्बे अपने बड़े बड़े व्यवहारियों को बाँटते हैं। येशुद्ध मावे (खोवे) से बनी शुद्ध मिठाइयाँ महँगी से महँगी कीमत पर मार्केट से उठा ली जाती हैं और जिन बड़े लोगों को दी जाती हैं उन्हें खाने के लिए या तो डाक्टरों ने मना कर रखा होता है या फिर उन्हें अच्छी नहीं लगती हैं ।
बंधुओ ! मावे के उत्पादन एवं स्टॉक की एक टाइम लिमिट होने के कारण ये जितना चाहो उतना नहीं मिल सकता !इसमें दूध जितना वैसे होता होगा उतना ही त्योहारों पर भी होगा कोई ऐसा तो है नहीं कि दिवाली देखकर पशु ज्यादा दूध देने लगेंगे !दूसरी बात मावा एक समय सीमा तक ही स्टॉक किया जा सकता है उसके अधिक पहले से रखा जाएगा तो सड़ जाएगा ।
क्या गरीब लोग कभी कभी ऐसा नहीं सोचते होंगे कि त्योहारों पर उपहार बाँटने वाले अहंकारी सेठ साहूकार लोग गरीबों पर अत्याचार कर रहें हैं !हे भगवान इन्हें इतना धन क्यों दिया कि ये धरती पर पैर रखने को को ही तैयार नहीं हैं !ये मिटाते चले जा रहे हैं त्योहारों का आनंद !
ये सर्व विदित है कि दूध और दूध से बनी वस्तुएँ मिठाइयाँ आदि लम्बे समय तक स्टोर करके नहीं रखी जा सकती हैं दूसरी बात प्रकृति की ओर से ये चीजें प्राणियों की आवश्यकता के अनुशार ही उपलब्ध होती हैं बहुत अधिक नहीं हो पाती हैं ।
इधर कुछ दशकों वर्षों से दिनों दिन बड़े बड़े धनी लोग अपने समकक्ष या अपने से बड़े व्यापारियों अफसरों तथा और भी बड़े बड़े लोगों को मिठाई बाँटते हैं जो एक एक आदमी दो सौ पाँच सौ हजार आदि डिब्बे बाँटने लगे हैं इन्हें स्वाभाविक है पैसे की चिंता नहीं होती है किसी भी भाव मिले अच्छा मिले !कुल मिलाकर प्रकृति के द्वारा उपलब्ध कराया गया सारा उत्तम मीठा पैसे के बल पर बड़े लोग समेट कर बैठ जाते हैं बाजारों से ।कुल मिलाकर त्योहारी व्यस्तता में ये सर्वोत्तम मिठाई बड़े लोगों के घरों में कैद रहती है कुछ ख़राब हो चुकी होती है कुछ हो जाती है किंतु वो उन लोगों तक तो कम ही पहुँच पाती है जिन्हें वास्तव में आवश्यकता है या यूँ कह लें कि जिन्हें खाने के लिए डॉक्टरों ने मना नहीं किया है
अच्छा मावा वाली मिठाइयों के महँगे महँगे आर्डर पूरे करते करते हलवाई खाली हो चुके होते हैं अब त्योहारों पर अपनी पहचान बनाए और बचाए रखने के लिए उन्हें जो जुगाड़ करने होते हैं उनमें सिंथेटिक मावा जैसी नुक्सान देह चीजों का भरपूर उपयोग होते देखा जाता है
सिंथेटिक मावा की बनी मिठाइयाँ पहुँचती घर घर हैं कहीं कुछ कम और कहीं कुछ ज्यादा !जिसे खाकर लोग उसी अनुपात में बीमार भी होते हैं । कुल मिलाकर जो वर्ग मीठा खा सकता है उसे अच्छा मीठा मिलने नहीं दिया जाता और जिन्हें मीठा खाना मना होता है उनके यहाँ प्रकृति के द्वारा उपलब्ध कराया गया सर्वोत्तम मीठा सड़ रहा होता है ।
दीपावली आदि त्योहारों पर उपहार बाँटने और मिठाई खाने खिलाने की अपनी पुरानी परम्परा है किंतु ये व्यवस्था दिनोंदिन विकराल रूप लेती जा रही है इधर कुछ दशकों वर्षों से दिनों दिन बड़े बड़े धनी लोग अपने समकक्ष या अपने से बड़े व्यापारियों अफसरों तथा और भी बड़े बड़े लोगों को मिठाई बाँटते हैं जो एक एक आदमी दो सौ पाँच सौ हजार आदि डिब्बे बाँटने लगे हैं इन्हें स्वाभाविक है पैसे की चिंता नहीं होती है किसी भी भाव मिले अच्छा मिले इनकी बुकिंग पहले ही हो जाती है और जिसको जो देने जाएगा लगभग ऐसा सभी बड़े बड़े लोग करते हैं व्यापारी तो करते हैं ! इस प्रक्रिया से लगभग सभी बड़े लोगों के यहाँ सौ दो सौ पाँच सौ आदि डिब्बे इकट्ठा हो जाते हैं अर्थात वो खा सकते हैं किंतु जब वो माध्यम वर्गी या गरीब लोग बाजार में पहुँचते हैं तो साल माल मिठाई बेचने वाले दूकानदार त्योहारों पर सब्जी या कुछ और तो नहीं बेचने लगेंगे अच्छा मावा वाली मिठाइयों के महँगे महँगे आर्डर पूरे करते करते वो खाली हो चुके होते हैं अब त्योहारों पर अपनी पहचान बनाए और बचाए रखने के लिए उन्हें जो जुगाड़ करने होते हैं उनमें सिंथेटिक मावा जैसी नुक्सान देह चीजों का भरपूर उपयोग होते देखा जाता है कितनी भी जाँच हो किंतु धनी लोगों को ईश्वर सद्बुद्धि दे और वो दिवाली बाँटने के नाम पर दिवाली काली करना बंद करें साथ साथ गरीबों और माध्यम वर्गीय लोगों के हिस्से का मीठा उन तक पहुँचने दें अन्यथा खाद्य सामग्री का खिलवाड़ करने वालों से प्रकृति रुष्ट हो सकती है जिसके उन्हें भुगतने पड़ सकते हैं भयंकर परिणाम !हो न हो पिछले जन्मों में पैसों के बल पर मीठे की ऐसी ही छीछालेदर की गई हो इसी कारण इस जन्म में हुई है सुगर और खाने को बंद करना पड़ा है मीठा !
दीपावलीपर्व पर त्योहार भावना का अपमान करने वाले लोगों पर लगाई जाए लगाम !सबको सबका हिस्सा मिलने दिया जाए !ब्लैकमनी वालों ने महँगे किए बाजार उन्हें समझाकर रोकने के प्रयास किए जाएँ ! !
दीवाली बाँटने के नाम पर शुद्ध मिठाइयों के सैकड़ों हजारों लाखों करोड़ों डिब्बे उपहार स्वरूप उन्हें बाँट दिए जाते हैं जिन्हें खाने के लिए प्रायः या तो डॉक्टर मना कर चुके होते हैं या फिर उन्हें खाने में अच्छी नहीं लगती हैं मिठाइयाँ !
दूसरी ओर जिन गरीबों या माध्यम वर्गीय लोगों को मिठाइयाँ खाने में भी अच्छी लगती हैं और डॅाक्टरों ने भी उन्हें मना नहीं किया होता है ऐसे लोगों को मिलती हैं सिंथेटिक मिठाइयाँ !क्योंकि उनके मार्केट में पहुँचने से पहले ही शुद्ध मावे की शुद्ध मिठाइयाँ मार्केट से गायब की जा चुकी होती हैं !
अब साल माल मीठा बेचने वाले लोग अपनी दुकानों में कुछ तो मीठा बनाकर रखेंगे ही किंतु उसके लिए कहाँ से आवे मावा !दीपावली देखकर भैंसे तो अधिक दूध देने से रहीं तथा मावा अधिक दिन तक स्टोर किया नहीं जा सकता ऐसे में सिंथेटिक मावा और सिंथेटिक मिठाइयों का कारोबार ख़ुशी ख़ुशी करते हैं हलवाई और प्रेम से खरीदते हैं ग्राहक जिसे खाकर बाद में भले बीमार हों !
धनी भाई बहनों को सोचना चाहिए कि असली मावे की बनी शुद्ध मिठाइयों को यदि व्यवहार में ही बड़े बड़े लोगों में बाँट डालोगे तो वो लोग तो बेचारे खा नहीं पाएँगे क्योंकि पूर्वजन्म में पैसे के बलपर ऐसे ही मिठाइयाँ सड़ाई होंगी खूब बाँटा होगा व्यवहार और जिन्हें दिया होगा उन्होंने न खाया होगा न किसी को दिया होगा अपितु बर्बाद कर दिया होगा तभी तो इस जन्म में होती हैं शुगर जैसी बीमारियाँ !
बंधुओ !खाद्य पदार्थों में गरीब अमीर सब का हिस्सा होता है यदि ईश्वर ने हमें अधिक धन दे भी दिया है तो उचित हैं कि हम ईश्वर समर्पित भावना से उस धन का उपयोग अपनी इच्छानुशार करें किंतु ध्यान ये भी रखें कि गरीबों के हिस्से हड़पने जैसा अपराध न होने पाए हमसे !
बंधुओ !आपने भी देखा होगा कि दवाली बाँटने के नाम पर सेठ साहूकारों जैसे बड़े लोग सौ दो सौ पाँच सौ आदि डिब्बे अपने बड़े बड़े व्यवहारियों को बाँटते हैं। येशुद्ध मावे (खोवे) से बनी शुद्ध मिठाइयाँ महँगी से महँगी कीमत पर मार्केट से उठा ली जाती हैं और जिन बड़े लोगों को दी जाती हैं उन्हें खाने के लिए या तो डाक्टरों ने मना कर रखा होता है या फिर उन्हें अच्छी नहीं लगती हैं ।
बंधुओ ! मावे के उत्पादन एवं स्टॉक की एक टाइम लिमिट होने के कारण ये जितना चाहो उतना नहीं मिल सकता !इसमें दूध जितना वैसे होता होगा उतना ही त्योहारों पर भी होगा कोई ऐसा तो है नहीं कि दिवाली देखकर पशु ज्यादा दूध देने लगेंगे !दूसरी बात मावा एक समय सीमा तक ही स्टॉक किया जा सकता है उसके अधिक पहले से रखा जाएगा तो सड़ जाएगा ।
क्या गरीब लोग कभी कभी ऐसा नहीं सोचते होंगे कि त्योहारों पर उपहार बाँटने वाले अहंकारी सेठ साहूकार लोग गरीबों पर अत्याचार कर रहें हैं !हे भगवान इन्हें इतना धन क्यों दिया कि ये धरती पर पैर रखने को को ही तैयार नहीं हैं !ये मिटाते चले जा रहे हैं त्योहारों का आनंद !
ये सर्व विदित है कि दूध और दूध से बनी वस्तुएँ मिठाइयाँ आदि लम्बे समय तक स्टोर करके नहीं रखी जा सकती हैं दूसरी बात प्रकृति की ओर से ये चीजें प्राणियों की आवश्यकता के अनुशार ही उपलब्ध होती हैं बहुत अधिक नहीं हो पाती हैं ।
इधर कुछ दशकों वर्षों से दिनों दिन बड़े बड़े धनी लोग अपने समकक्ष या अपने से बड़े व्यापारियों अफसरों तथा और भी बड़े बड़े लोगों को मिठाई बाँटते हैं जो एक एक आदमी दो सौ पाँच सौ हजार आदि डिब्बे बाँटने लगे हैं इन्हें स्वाभाविक है पैसे की चिंता नहीं होती है किसी भी भाव मिले अच्छा मिले !कुल मिलाकर प्रकृति के द्वारा उपलब्ध कराया गया सारा उत्तम मीठा पैसे के बल पर बड़े लोग समेट कर बैठ जाते हैं बाजारों से ।कुल मिलाकर त्योहारी व्यस्तता में ये सर्वोत्तम मिठाई बड़े लोगों के घरों में कैद रहती है कुछ ख़राब हो चुकी होती है कुछ हो जाती है किंतु वो उन लोगों तक तो कम ही पहुँच पाती है जिन्हें वास्तव में आवश्यकता है या यूँ कह लें कि जिन्हें खाने के लिए डॉक्टरों ने मना नहीं किया है
अच्छा मावा वाली मिठाइयों के महँगे महँगे आर्डर पूरे करते करते हलवाई खाली हो चुके होते हैं अब त्योहारों पर अपनी पहचान बनाए और बचाए रखने के लिए उन्हें जो जुगाड़ करने होते हैं उनमें सिंथेटिक मावा जैसी नुक्सान देह चीजों का भरपूर उपयोग होते देखा जाता है
सिंथेटिक मावा की बनी मिठाइयाँ पहुँचती घर घर हैं कहीं कुछ कम और कहीं कुछ ज्यादा !जिसे खाकर लोग उसी अनुपात में बीमार भी होते हैं । कुल मिलाकर जो वर्ग मीठा खा सकता है उसे अच्छा मीठा मिलने नहीं दिया जाता और जिन्हें मीठा खाना मना होता है उनके यहाँ प्रकृति के द्वारा उपलब्ध कराया गया सर्वोत्तम मीठा सड़ रहा होता है ।
दीपावली आदि त्योहारों पर उपहार बाँटने और मिठाई खाने खिलाने की अपनी पुरानी परम्परा है किंतु ये व्यवस्था दिनोंदिन विकराल रूप लेती जा रही है इधर कुछ दशकों वर्षों से दिनों दिन बड़े बड़े धनी लोग अपने समकक्ष या अपने से बड़े व्यापारियों अफसरों तथा और भी बड़े बड़े लोगों को मिठाई बाँटते हैं जो एक एक आदमी दो सौ पाँच सौ हजार आदि डिब्बे बाँटने लगे हैं इन्हें स्वाभाविक है पैसे की चिंता नहीं होती है किसी भी भाव मिले अच्छा मिले इनकी बुकिंग पहले ही हो जाती है और जिसको जो देने जाएगा लगभग ऐसा सभी बड़े बड़े लोग करते हैं व्यापारी तो करते हैं ! इस प्रक्रिया से लगभग सभी बड़े लोगों के यहाँ सौ दो सौ पाँच सौ आदि डिब्बे इकट्ठा हो जाते हैं अर्थात वो खा सकते हैं किंतु जब वो माध्यम वर्गी या गरीब लोग बाजार में पहुँचते हैं तो साल माल मिठाई बेचने वाले दूकानदार त्योहारों पर सब्जी या कुछ और तो नहीं बेचने लगेंगे अच्छा मावा वाली मिठाइयों के महँगे महँगे आर्डर पूरे करते करते वो खाली हो चुके होते हैं अब त्योहारों पर अपनी पहचान बनाए और बचाए रखने के लिए उन्हें जो जुगाड़ करने होते हैं उनमें सिंथेटिक मावा जैसी नुक्सान देह चीजों का भरपूर उपयोग होते देखा जाता है कितनी भी जाँच हो किंतु धनी लोगों को ईश्वर सद्बुद्धि दे और वो दिवाली बाँटने के नाम पर दिवाली काली करना बंद करें साथ साथ गरीबों और माध्यम वर्गीय लोगों के हिस्से का मीठा उन तक पहुँचने दें अन्यथा खाद्य सामग्री का खिलवाड़ करने वालों से प्रकृति रुष्ट हो सकती है जिसके उन्हें भुगतने पड़ सकते हैं भयंकर परिणाम !हो न हो पिछले जन्मों में पैसों के बल पर मीठे की ऐसी ही छीछालेदर की गई हो इसी कारण इस जन्म में हुई है सुगर और खाने को बंद करना पड़ा है मीठा !
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