गुरुवार, 12 नवंबर 2015

"गायों का मांस खाने से दूर होते हैं रोग " 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' का बयान ! " सच या साजिश " ? "

  नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के साइंस के बारे में बेहद कम जानकारी रखने का आरोप लगाने वाले 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' जी को यह भी तो  बताना चाहिए था कि उन्हें आयुर्वेद या अन्य शास्त्रों की जानकारी कितनी है !क्योंकि उन्होंने गोमांस खाने के समर्थन के विषय में आयुर्वेद या प्राचीन ग्रंथों के समर्थन की जो बात कही है वो बिलकुल आधार बिहीन है जानिए कैसे - 
  ये है 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' जी का वो बयान जिसके लिए उन्होंने महामहिम राष्ट्रपति जी को पत्र भी लिखा है -
"उन्होंने लिखा है कि गाय का मांस उन लोगों के लिए लाभदायी  होता है जो अधिक मेहनत करने वाले या मौसम बदलने की वजह से बीमार हों या अनियमित बुखार सूखी खाँसी या थकान आदि से पीड़ित हों !इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के साइंस के बारे में बेहद कम जानकारी रखने का आरोपलगाया है  । "
"आयुर्वेद के अनुशार गायों का मांस खाने से दूर होते हैं रोग !- वैज्ञानिक पीएम भार्गव
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   बन्धुओ ! 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव 'जी के इस बयान का उद्देश्य क्या है और इसमें सच्चाई कितनी है और साजिश कितनी ये आप भी जानिए -
   यदि वो कहते हैं कि गायों का मांस खाने के लिए आयुर्वेद में रोका नहीं गया है तो उन्हें समझना चाहिए कि गोमांस खाने की अनुमति भी आयुर्वेद में नहीं दी गई है । वैसे भी आयुर्वेद का काम द्रव्यों का गुण दोष बताना है न कि खाने न खाने की अनुमति देना ! ये आयुर्वेद का नहीं अपितु धर्मशास्त्र का विषय है !इसलिए 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' ने गोमांस खाने के विषय में आयुर्वेद के समर्थन की बात कही है वो गलत है । 
गाय के मांस के गुण और दोष :-
बात रोग जुकाम बिषमज्वर शुष्क कास थकावट अति तीक्ष्णाग्नि मांसक्षय  में हितकर होता है किंतु यदि तीक्ष्णाग्नि और मांसक्षय न हो तो उसके लिए हानिकारक भी होगा गोमांस ,साथ ही ये कफ और पित्त को बढ़ाने वाला भी है !
चरक संहिता -   
 गव्यं केवल वातेषु पीनसे बिषमज्वरे । 
शुष्ककास श्रमात्यग्नि मांसक्षय हितं च तत् ॥ चरक संहिता
सुश्रुत संहिता -
ग्राम्य पशुओं में ही गाय को सम्मिलित किया गया है वहाँ लिखा गया है कि इनका  मांस वातनाशक बृंहण कफपित्त  कारक,मधुर रस मधुर विपाक   होता है । 
ग्राम्या वातकरा सर्वे बृंहणाः कफ पित्तलाः ।
मधुराः रस पाकाभ्यां दीपना बल बर्धनाः ॥- सुश्रुत संहिता -


मांस के सामान्य गुण  चरक संहिता में :- 
  कोई भी मांस बृंहण एवं  बल बर्धक होता है !
"हितं मांसं बृंहणं बल बर्द्धनम् "-चरक संहिता 
 अष्टांग हृदये-
गाय के मांस से सूखी खाँसी थकान तीक्षाणग्नि भस्मक रोग विषम ज्वर पीनस कृशता और वात जनित रोग दूर होते हैं ।
शुष्ककास श्रमात्यग्नि बिषमज्वर पीनसान् |
कार्श्य केवल वातांश्च गोमांसं संनियच्छति ॥ -अष्टांग हृदये

भावप्रकाशनिघंटु -
वातनाशक अग्नि दीपक कफ तथा पित्त कारक रस तथा विपाक में मधुर रस युक्त बृंहण एवं बल को बढ़ाने वाला होता है 
ग्राम्यः वात हराः सर्वे दीपनाः कफ पित्तलाः । 
मधुराः रस पाकाभ्यां बृंहणा बल बर्द्धनः ॥ -भावप्रकाशनिघंटु
    बंधुओ ! इस प्रकार से गोमांस यदि कुछ रोगों में फायदा करता है तो कुछ में नुकसान भी करता है !  किंतु 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव 'जी  ने  गोमांस के गुण तो बताए किंतु गोमांस के दोष क्यों  छिपाए हैं ये उनसे पूछा जाना चाहिए !
       विशेष  बात  एक और है कि यदि चरक संहिता में एक ओर तो गोमांस के गुण बताए गए हैं वहीँ दूसरी ओर गोमांस खाने को महर्षि चरक ने रोका भी है यथा -
 चरक ने गोमांस खाने के लिए रोका  है -यथा -
पशुओं के मांस में गोमांस स्वभाव से ही अन्न पान में सबसे अहितकर माना गया है । 
"गोमांसं मृग मांसानां "प्रकृत्यैव अहित तमानामाहार विकाराणां प्रकृष्टतमानि द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति | - चरक संहिता
       इस प्रकार से  'वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' ने चरक संहिता में वर्णित गोमांस के गुण तो बताए किंतु गोमांस खाने के लिए रोके जाने के विषय में कही गई चरक संहिता की बात की तो चर्चा भी नहीं की आखिर क्यों ?ये बात 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' जी से पूछी जानी चाहिए कि उन्होंने ऐसा क्यों किया !
 द्रव्यों के गुण वर्णन की दृष्टि से ही गोमांस के गुण दोषों के  वर्णन को गोमांस भक्षण के समर्थन के रूप में परोसने का काम 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव 'ने क्यों किया ?
       बंधुओ !प्राचीन शास्त्रों के अर्थ का अनर्थ यदि इसी प्रकार से किया गया तब तो बलात्कारों का भी समर्थन सिद्ध कर दिया जाएगा आयुर्वेद से !
   " आयुर्वेद में आहार (भोजन),निद्रा ,मैथुन (सेक्स ) इन तीनों को ही मानव शरीर का उपस्तम्भ बताया गया है अर्थात ये तीनों ही मानव शरीर के लिए विशेष आवश्यक हैं !"
    बंधुओ ! किंतु मैथुन अर्थात सेक्स के बिषय में ये तो नहीं बताया गया है कि सेक्स अपनी स्त्री से हो या परायी स्त्री से ,उसकी सहमति से हो या असहमति से आदि !वहाँ तो केवल सेक्स जरूरी बताया गया है किंतु कोई अपराधी सेक्स की आपूर्ति तो बलात्कार करके भी कर लेता है जिसका निषेध आयुर्वेद में नहीं है इसका मतलब ये तो नहीं ही है कि बलात्कार को  आयुर्वेद की सहमति मान लिया जाए !ये बात 'वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' जी से पूछी जानी चाहिए कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ?
   इसीप्रकार से बिष के गुण दोष भी बताए गए हैं इसका मतलब ये तो नहीं कि बिष खाने के लिए प्रेरित किया गया है !
    बंधुओ !आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में यह समझाया गया है कि क्या खाने का परिणाम क्या होता है अर्थात छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी हर चीज के गुण एवं दोष बताए गए हैं इसी क्रम में बिष को भी रसायन कहा गया है और उसके भी गुण दोष समझाए गए हैं किंतु इसका मतलब ये कतई नहीं है कि बिष खाने के लिए प्रेरित किया गया है ! 

    असहिष्णुता के विरोध में पुरस्कार लौटाने वाले वैज्ञानिक पीएम भार्गव ' का यह बयान तो  असहिष्णुता के साथ साथ उत्तेजना फैलाने वाला भी है उनके न काल्पनिक कुतर्कों से तो समाज में उत्तेजना फैल सकती है यह जानते हुए भी उन्होंने ऐसा क्यों किया ?
    सा बोलकर  उत्तेजना फैलावें वैज्ञानिक पीएम भार्गव और बढ़ती असहिष्णुता के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा नरेंद्र मोदी जी को ! ये कहाँ का न्याय है ! ऐसी भड़कीली भाषा का जवाब यदि गोभक्त हिंदू देंगे तो असहिष्णुता का रोना रोया जाएगा अन्यथा मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाएगा !            
    शास्त्रों की भाषा समझने की सामर्थ्य हर किसी में नहीं होती इसीलिए शास्त्रों को समझने के लिए गुरु शिष्य संबंधों की परिकल्पना की गई है ,अन्यथा शास्त्रों का अर्थ भले ही कोई समझ भी ले किंतु भावार्थ समझ पाना अत्यंत कठिन होता है । 
     वैज्ञानिक पीएम भार्गव जी जैसे सम्मानित लोग यदि  गायों का मांस खाने के समर्थन में ऊट पटांग तर्क गढ़ने लगेंगे तो आम आदमी क्या सोचेगा !
इस प्रकार से मोदी सरकार के विरुद्ध साहित्यकारों वैज्ञानिकों के द्वारा गढ़े जा रहे हैं कैसे कैसे काल्पनिक कुतर्क !किंतु क्यों ?
    बंधुओ ! अखलाक की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या देश और समाज की एक बड़ी क्षति है इसमें कोई संदेह नहीं किंतु कुछ लोगों के दिमाग में केवल कुछ लोगों का ही जीवन इतना मूल्यवान क्यों है !बाकी लोगों की मौत उनके लिए कोई मायने क्यों नहीं रखती उनके प्रति ऐसे लोगों के मन में कोई संवेदना क्यों नहीं होती है और यदि है तो आज तक प्रकट क्यों नहीं हुई !हत्याएँ तो अन्य सरकारों के शासन काल में भी होती रही हैं किंतु केवल मोदी सरकार के समय ही सहिष्णुता की टोकरियाँ सर पर उठाए क्यों घूम रहे हैं कुछ साहित्यकार और वैज्ञानिक !
     मोदी जी की सरकार को बदनाम करने वाले लोग अपने क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठकर क्यों नहीं सोचना चाहते कि  मोदी जी की जगह अगर हम होते तो आखिर क्या कर लेते ! कोई भी अपराध घटित होने के बाद होने वाली कानूनी कार्यवाही ही तो करते वो आज भी हो रही है फिर भी मोदी सरकार दोषी आखिर क्यों ? मोदी जी के संयमी परिश्रमी एवं ईमानदार जीवन शैली की प्रशंसा होनी चाहिए उनकी सजीव सक्रियता एवं राष्ट्र निष्ठा में उनके किस आचार व्यवहार के कारण संदेह हो रहा है ये स्पष्ट किया जाना चाहिए !वैसे भी इस संशय में देशवासी सम्मिलित नहीं हैं निजी स्वार्थों से केवल मुट्ठीभर लोग ही शंका की दृष्टि से देख रहे हैं मोदी सरकार को !ऐसे ही लोग मोदी सरकार के विरुद्ध पूरे देश में फैला रहे हैं भ्रम !









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