काँग्रेस इसके प्रमाण दे कि 'आर्य बाहर से आए थे '!
"लोकसभा में मल्लिकार्जुन खड्गे साहब कह रहे हैं कि"आर्य बाहर से आए हैं !"किंतु कहाँ हैं उनकी इस बात के प्रमाण ?"
इस देश को पुराने समय से ही 'आर्यावर्त'अर्थात 'आर्य लोगों का आवास'स्थान कहा जाता रहा है और अब देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड्गे साहब आर्यों को बाहर से आया हुआ बता रहे हैं वो भी लोकसभा में वो भी विपक्ष के नेता की हैसियत से !
संसदीय चर्चा की प्रत्येक बात स्वयं में प्रमाण मानी जाती है क्योंकि वहाँ बोलने वाला प्रत्येक सदस्य संवैधानिक शपथप्रतिज्ञ होता है।ऐसा हम भारतीयों का दृढ़ विश्वास है इसी भरोसे की रक्षा के लिए आपसे विनम्र निवेदन !
संसद लोक तंत्र का सबसे अधिक पवित्र मंदिर है जहाँ की चर्चा पर विश्व की निगाहें लगी रहती हैं !संसद के प्रत्येक सदस्य के द्वारा लोकसभा में कही बात स्वयं में प्रमाण मानी जाती है उसमें भी विपक्ष के नेता के बयान को विपक्ष का सामूहिक बयान माना जाता है |ऐसी परिस्थिति में विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड्गे का यह बयान कि "आर्य बाहर से आए हैं !" इसे प्रमाणों के बिना प्रमाणित कैसे मान लिया जाए क्योंकि इसके प्रमाण कहीं नहीं मिलते !दूसरी ओर इस बयान की निंदा कैसे की जाए क्योंकि ये लोकसभा में दिए गए विपक्ष के नेता का बयान है !
लोकतांत्रिक मर्यादाओं के सम्मान के लिए समर्पित मेरे जैसे करोड़ों लोग इस बयान को सह नहीं पा रहे हैं क्योंकि अनंतकाल से हमारे पूर्वज अपने देश के स्वाभिमान के लिए ही जीते और मरते रहे हैं हम सब इस देश की औरस संतानें हैं । मल्लिकार्जुन खड्गे साहब का यह बयान हमारी आस्था का अपमान है और यदि समय रहते अभी ही उनके इस बयान का निराकरण नहीं किया गया और उनसे प्रमाण नहीं पूछे गए तो भविष्य में लोकसभा में विपक्ष के नेता का बयान मानते हुए यदि इसे प्रमाणित मान लिया जाएगा तो बड़ी चूक होगी !अतएव मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ आप श्रीमान खड्गे जी से इस बयान के आधारभूत प्रमाण पूछें और समाज की जिज्ञासा शांत करें !
इस विषय में प्राचीन पौराणिक साहित्य के शोध के अनुशार -
हमारे देश का नाम 'भारत' कैसे पड़ा और यह देश अति प्राचीनकाल से आर्यराष्ट्र ही है इसके प्रमाण क्या हैं जानिए ?
इस देश का नाम 'भारत ' है जो एक प्राचीन हिन्दू सम्राट 'भरत' के नाम पर रखा गया था । जैसे 'कुरु' से 'कौरव' ,वसुदेव' से 'वासुदेव', 'तिल' से 'तैल'आदि शब्द संस्कृत व्याकरण के अनुशार आदि 'अच'की वृद्धि होकर बनाए जाते हैं इसीप्रकार से 'भरत'शब्द से 'भारत'शब्द का निर्माण हुआ है ।भारत (भा+रत) शब्द का मतलब है 'आंतरिक प्रकाश' ।
महाराज 'भरत' मनु के वंशज ऋषभदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे इससे पहले 'भारतवर्ष' को वैदिक काल या आदिकाल से ही 'आर्यावर्त'अर्थात 'आर्य लोगों का आवास' कहा जाता रहा है"अजनाभदेश"और "जम्बूद्वीप" के नाम से भी जाना जाता रहा है यह देश । इस प्रमाण के अनुशार महाराज भरत 'आर्य' ही थे इसलिए भारत आर्यराष्ट्र ही था । आर्यावर्त'का मतलब ही 'आर्य लोगों का आवास' होता है ।
तीसरीबात ---
हमारे देश का एक नाम 'अजनाभदेश' भी था !
पुराणों के अनुशार -महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं-स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक, मनदहरिण,पाञ्चजन्य,सिंहल तथा लंका।
जम्बूद्वीप के वर्ष-इलावृतवर्ष, भारतवर्ष, भद्राश्चवर्ष, हरिवर्ष, केतुमालवर्ष, रम्यकवर्ष , हिरण्यमयवर्ष, उत्तरकुरुवर्ष और किम्पुरुषवर्ष आदि आदि !
अब जानिए भारत देश का नाम 'अजनाभवर्ष' कैसे पड़ा ?
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सँभाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप(वर्तमान भारत) का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन नाम भारतदेश था। राजा अजनाभ भी क्षत्रिय होने के नाते आर्य ही थे इस हिसाब से भी भारत प्राचीन काल से ही आर्यराष्ट्र रहा है ।
इस आर्यराष्ट्र का नाम भारत पड़ने का एक और कारण है इसी प्रकार से राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। भारतवर्ष का नाम पहले ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे !
बंधुओ !जो लोग पुराणों की बातों को सच नहीं मानते हैं तो इन्हें गलत साबित करने का उनके पास आधार क्या है और यदि वो चाहें तो पुराणों को बातों को सच साबित करने के प्रमाण देने के लिए मैं तैयार हूँ मुझे अवसर दिया जाए !
"लोकसभा में मल्लिकार्जुन खड्गे साहब कह रहे हैं कि"आर्य बाहर से आए हैं !"किंतु कहाँ हैं उनकी इस बात के प्रमाण ?"
इस देश को पुराने समय से ही 'आर्यावर्त'अर्थात 'आर्य लोगों का आवास'स्थान कहा जाता रहा है और अब देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड्गे साहब आर्यों को बाहर से आया हुआ बता रहे हैं वो भी लोकसभा में वो भी विपक्ष के नेता की हैसियत से !
संसदीय चर्चा की प्रत्येक बात स्वयं में प्रमाण मानी जाती है क्योंकि वहाँ बोलने वाला प्रत्येक सदस्य संवैधानिक शपथप्रतिज्ञ होता है।ऐसा हम भारतीयों का दृढ़ विश्वास है इसी भरोसे की रक्षा के लिए आपसे विनम्र निवेदन !
संसद लोक तंत्र का सबसे अधिक पवित्र मंदिर है जहाँ की चर्चा पर विश्व की निगाहें लगी रहती हैं !संसद के प्रत्येक सदस्य के द्वारा लोकसभा में कही बात स्वयं में प्रमाण मानी जाती है उसमें भी विपक्ष के नेता के बयान को विपक्ष का सामूहिक बयान माना जाता है |ऐसी परिस्थिति में विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड्गे का यह बयान कि "आर्य बाहर से आए हैं !" इसे प्रमाणों के बिना प्रमाणित कैसे मान लिया जाए क्योंकि इसके प्रमाण कहीं नहीं मिलते !दूसरी ओर इस बयान की निंदा कैसे की जाए क्योंकि ये लोकसभा में दिए गए विपक्ष के नेता का बयान है !
लोकतांत्रिक मर्यादाओं के सम्मान के लिए समर्पित मेरे जैसे करोड़ों लोग इस बयान को सह नहीं पा रहे हैं क्योंकि अनंतकाल से हमारे पूर्वज अपने देश के स्वाभिमान के लिए ही जीते और मरते रहे हैं हम सब इस देश की औरस संतानें हैं । मल्लिकार्जुन खड्गे साहब का यह बयान हमारी आस्था का अपमान है और यदि समय रहते अभी ही उनके इस बयान का निराकरण नहीं किया गया और उनसे प्रमाण नहीं पूछे गए तो भविष्य में लोकसभा में विपक्ष के नेता का बयान मानते हुए यदि इसे प्रमाणित मान लिया जाएगा तो बड़ी चूक होगी !अतएव मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ आप श्रीमान खड्गे जी से इस बयान के आधारभूत प्रमाण पूछें और समाज की जिज्ञासा शांत करें !
इस विषय में प्राचीन पौराणिक साहित्य के शोध के अनुशार -
हमारे देश का नाम 'भारत' कैसे पड़ा और यह देश अति प्राचीनकाल से आर्यराष्ट्र ही है इसके प्रमाण क्या हैं जानिए ?
इस देश का नाम 'भारत ' है जो एक प्राचीन हिन्दू सम्राट 'भरत' के नाम पर रखा गया था । जैसे 'कुरु' से 'कौरव' ,वसुदेव' से 'वासुदेव', 'तिल' से 'तैल'आदि शब्द संस्कृत व्याकरण के अनुशार आदि 'अच'की वृद्धि होकर बनाए जाते हैं इसीप्रकार से 'भरत'शब्द से 'भारत'शब्द का निर्माण हुआ है ।भारत (भा+रत) शब्द का मतलब है 'आंतरिक प्रकाश' ।
महाराज 'भरत' मनु के वंशज ऋषभदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे इससे पहले 'भारतवर्ष' को वैदिक काल या आदिकाल से ही 'आर्यावर्त'अर्थात 'आर्य लोगों का आवास' कहा जाता रहा है"अजनाभदेश"और "जम्बूद्वीप" के नाम से भी जाना जाता रहा है यह देश । इस प्रमाण के अनुशार महाराज भरत 'आर्य' ही थे इसलिए भारत आर्यराष्ट्र ही था । आर्यावर्त'का मतलब ही 'आर्य लोगों का आवास' होता है ।
तीसरीबात ---
हमारे देश का एक नाम 'अजनाभदेश' भी था !
पुराणों के अनुशार -महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं-स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक, मनदहरिण,पाञ्चजन्य,सिंहल तथा लंका।
जम्बूद्वीप के वर्ष-इलावृतवर्ष, भारतवर्ष, भद्राश्चवर्ष, हरिवर्ष, केतुमालवर्ष, रम्यकवर्ष , हिरण्यमयवर्ष, उत्तरकुरुवर्ष और किम्पुरुषवर्ष आदि आदि !
अब जानिए भारत देश का नाम 'अजनाभवर्ष' कैसे पड़ा ?
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सँभाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप(वर्तमान भारत) का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन नाम भारतदेश था। राजा अजनाभ भी क्षत्रिय होने के नाते आर्य ही थे इस हिसाब से भी भारत प्राचीन काल से ही आर्यराष्ट्र रहा है ।
इस आर्यराष्ट्र का नाम भारत पड़ने का एक और कारण है इसी प्रकार से राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। भारतवर्ष का नाम पहले ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे !
बंधुओ !जो लोग पुराणों की बातों को सच नहीं मानते हैं तो इन्हें गलत साबित करने का उनके पास आधार क्या है और यदि वो चाहें तो पुराणों को बातों को सच साबित करने के प्रमाण देने के लिए मैं तैयार हूँ मुझे अवसर दिया जाए !
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
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