मंगलवार, 3 नवंबर 2015

रावण जैसे राक्षसों की सोच इतनी गिरी हुई कभी नहीं दिखी जितना साईं को गिरा दिया साईं वालों ने !

साईं जैसों से करोड़ों अरबों गुना ज्यादा  अच्छा था रावण! इतनी सारी  अच्छाइयाँ होते हुए भी उसने भगवान बनने की हरकत तो कभी नहीं की !वैसे तो साईं सनातन धर्मियों के शत्रु नहीं थे किंतु साईं व्यापारियों ने बदनाम कर दिया उन्हें अपने लड्डू बेचने और चढ़ावी चंदा इकठ्ठा करने के चक्कर में !
   इतनी सारी शक्ति सामर्थ्य ,सभी विद्याओं का धनी  एवं भगवान शंकर का उपासक था वह !रावण ने साईं की तरह कभी भगवान बनने की कोशिश नहीं की । इतना ही नहीं रावण में और भी करोड़ों धार्मिक अच्छाइयाँ थीं साईं जैसे लोग कहाँ ठहरते हैं  उस महान तपस्वी रावण के सामने !साईं जैसों की भगवान बनने वाली बात यदि रावण भी कहीं देख रहा होगा तो बुरा उसे भी बहुत लगा होगा वह जरूर सोच रहा होगा कि कलियुग में राक्षसों में भी मिलावट होने लगी देवीदेवताओं के मंदिरों में बैठाकर देवीदेवताओं के सामने ऐरे गैरे लोग पुजवा रहे हैं अपनी प्रतिमाएँ और राक्षसों के विरुद्ध धार्मिकता की बड़ी बड़ी डींगें मारने वाले सनातनधर्मी अपने  ईश्वर का अपने मंदिरों में अपमान होता देखकर भी ज़िंदा हैं क्या किसी अन्य धर्म के लोग सह जाते अपने देवी देवताओं का ऐसा अपमान !

रावण बहुत धनी  था विद्वान था  बलवान था पराक्रमी था प्रसिद्ध था भक्त था ब्रह्मा जिसके यहाँ वेद पढ़ते थे शिव जी पूजा करवाने आते थे इंद्र माली बने थे वायु देवता बुहारू देते थे  नवग्रह सीढ़ियाँ बने थे काल को भी बाँध रखा था उसने !बृहस्पति नारद तुम्बुरु जैसे देवताओं को डाँट कर यह कहते हुए चुप करा दिया जाता था कि आज लंकेश्वर स्वस्थ नहीं हैं । षष्ठी और कात्यायनी देवियाँ रावण के बच्चों का पालन पोषण करती थीं उसके यहाँ वेदों का उद्घोष सुन कर ब्रह्म मुहूर्त में हनुमान जी भी दो घड़ी  अर्थात 48 मिनट तक ऐसा मुग्ध हुए कि ये होश ही नहीं रहा कि मेरे यहाँ आने का प्रयोजन क्या है कितना सुन्दर लगा उन्हें वह  वेदोद्घोष !

   इच्छित मृत्यु के लालच में भगवती सीता का हरण करते समय भी रावण ने प्रणाम किया था माता सीता को !उनकी इच्छा के अनुरूप ही उन्हें अशोक वाटिका में रखा गया था ! भगवान स्वयं पधारे थे रावण को मुक्ति देने के लिए  ! उस सर्वगुण संपन्न रावण को तो  हमने राक्षस मानकर मरवा डाला प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करके आखिर क्या कभी थी उसमें ?दूसरी ओर साईं को भगवान मानने जा रहे हैं क्या अच्छाई है उनमें ?धिक्कार है हमें और हमारी गिरी हुई सोच को !

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