बुधवार, 2 दिसंबर 2015

शैलजा जी ने मंदिर में किए गए जातिसंबंधी प्रश्न का उत्तर मंदिर वालों से ही क्यों नहीं पूछ लिया ? सदन में ऐसे प्रश्नों का औचित्य क्या है ?

जाति का फायदा उठाने वालों को जाति  बताने में आपत्ति क्यों ?
 किसी सांसद के पेट में  दर्द हो तो उस सम्मानित सदस्य को दवा के लिए डॉक्टर से मिलना चाहिए या वो प्रश्न भी सदन की चर्चा में ही पूछा जाएगा ?
शैलजा जी को मंदिर से संबंधित अपनी शंका का समाधान मंदिर में ही कर लेना चाहिए था या फिर किसी संस्कृत विद्वान से मिलकर समझनी चाहिए थी सच्चाई !अन्यथा धर्म शास्त्रों को खुद पढ़ना चाहिए था !किंतु सदन की चर्चा में ऐसे प्रश्नों का क्या औचित्य ?वह कोई धर्म शास्त्रीय मंच तो है नहीं !
     दूसरी बात धर्म शास्त्रों में हर जगह जातियों की चर्चा है इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता !आयुर्वेद में तो सर्पों तक की जातियों का वर्णन है । वास्तु में तो जमीन के रंग के आधार पर जातियों का वर्गीकरण किया गया है सनातन धर्म के सभी धर्म कर्मों में जाति  और गोत्र की चर्चा होती ही है क्योंकि हर प्रकार के कर्मकांड में संकल्प बोला ही जाएगा और संकल्प में गोत्र ,नाम और जाति बोलनी ही पड़ती है ।
   मंदिर हों या धर्म ग्रंथ जातियों की चर्चा हर जगह मिलती है धर्मशास्त्रों से कैसे और क्यों मिटा दी जाएँ जातियाँ ?संकल्प बोलने के लिए जाति गोत्र 
      न केवल धर्म शास्त्रों में जातियों का वर्णन है अपितु सरकारों की बनाई हुई भी आरक्षण जैसी  अधिकाँश योजनाएँ हों या सुख सुविधाएँ सब मनुवाद से प्रभावित हैं  सारे चुनाव जातियों के आधार पर लड़े जा रहे हैं चुनावी टिकटें जातियों के आधार पर दी जाती हैं अपराधों की गंभीरता भी जातियों के आधार पर ही आँकी जाती है सवर्णों के साथ घटित होने वाली बड़ी से बड़ी घटनाएँ यूँ ही दफन कर दी जाती हैं कौन पूछता है सवर्णों को !
      भूख सबको लगती है किंतु सरकारें भोजन जातियों के आधार पर देती हैं स्कूलों में बच्चे साथ साथ पढ़ते हैं किंतु बच्चों को मिलने वाली सहायता राशि जातियों के आधार पर मिलती है !सभी जगह जातियों के आधार पर सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ माँगने और लेने में शर्म नहीं लगती है तो मंदिर में जाति  पूछ ली गई तो कौन सा पहाड़ टूट गया !
      आज ब्राह्मणों के साथ जिस प्रकार सी दुश्मनी निबाही जा रही है वो निंदनीय है पुराणों में भी ब्राह्मणों को हमेंशा गरीब लिखा मिलता है और आज की सरकारें भी ब्राह्मणों को ही दोषी ठहराती हैं  सवर्णों में भी क्षत्रिय और वैश्य तो अन्य युगों में संपन्न रहे किंतु ब्राह्मण तब भी गरीब थे अब भी हैं यहाँ तक कि स्त्रियों को मिलने वाली सुविधाएँ ब्राह्मणस्त्रियों को तो मिलजाती होंगी किंतु विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि ब्राह्मणों से सरकार ने पूरी तरह ही किनारा कर रखा है वो तो भगवान भरोसे ही जी रहे हैं ।   

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