राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान का आह्वान हमें चाहिए आपका योगदान !
जिन बाबाओं का काम संस्कार देना था वो ब्यापार करने लगे , जिन शिक्षकों का
काम शिक्षा देना था वे स्कूलों से बच्चों से पढ़ाने से आँखें चुराने लगे
जिन नेताओं का काम भ्रष्टाचार रोकना था उन्होंने भ्रष्टाचार को ही अपना
व्यापार बनाना शुरू कर दिया । नेता लोग जो सेवक बनने आए थे वे शासक बन गए
किसान आत्म हत्या कर रहे हैं गरीब जनता महँगाई से मर रही है सरकारी कर्मचारी सैलरी लेने के बाद भी घूस लेकर काम कर रहे हैं ।
घूस लेकर फिर भी इन
नेताओं ने उन्हें तो मरने के लिए छोड़ दिया और अपनी सैलरी बढ़ा ली ! विधायक
सांसद मंत्री जनता की सेवा की शपथ लेते हैं वो सैलरी लेने लगे जहाँ
सैलरी वहाँ सेवा कैसी !
अक्सर दिन में भी जला करती हैं रोड लाइटें !जितनी बिजली सरकारी आफिसों में या लापरवाही से बेकार में फुँकती रहती है उतनी बिजली में कितने ग्रामीणों किसानों मजदूरों को मिल सकता था प्रकाश उनके यहाँ भी चल सकता था पंखा !वो भी दिन भर काम करते हैं कम से कम रात में तो आराम से सो सकते थे कितने मच्छर लगते हैं गाँवों में वहाँ तो मच्छरों की दवा भी नहीं छिड़की जा सकती !अखवार समाचार जब डेंगू की सरकारी चेतावनियों से पटे पड़े होते हैं तब भी बच्चे बूढ़े बीमार कितनी बेचैनी से गुजारते हैं रातें कितने मच्छर काटते हैं उन्हें !कई बार बर्षात की अँधियारी रातों में किसी को सांप काट लेता है उस समय गीली माचिस जल नहीं पाती है अँधेले में पता नहीं चल पाता कि साँप ने कटा है या लकड़ी चुभी है और जबतक पता लग पता है तब तक देर हो चुकी होती है ।काश !उनके यहाँ भी एक बल्ब जला पाए होते और चला पाए होते एक पंखा तो धन्य हो जाता अपना भी जीवन !
गरमी के दिनों की तपती दोपहर में भी दिन दिन भर काम करते हैं खेतों में किसान दूसरी ओर सरकारी आफिसों में छाया में पंखे के नीचे बैठे बाबू लोग भी AC के बिना नहीं रह पाते हैं !अंतर इतना है कि किसानों को काम की चिंता होती है और जिसकी काम करने की भावना होती है उसका मन कहाँ होता है आराम करने का !और जो लोग कार्यक्षेत्र में भी आराम खोजते हैं उन्हें काम का अभ्यास ही नहीं होता ऐसे लोग तो अपने पदों पर बोझ बनकर ढो रहे होते हैं जिंदगी !
जो ग्रामीण किसान मजदूर लोग घनघोर बर्षात की अँधेरी रातों में ऊपर से बिजली कड़क रही होती है पैरों के नीचे बढ़ी घास होती हैं जहाँ कहीं कोई बिषैला जीव जंतु हो सकता है काट ले पैरों में !बढ़ी फसलें खड़ी होती हैं कोई हिंसक जानवर छिपा हो सकता है कुलमिलाकर नीचे से ऊपर तक भय ही भय होता है फिर भी कंधे पर फरुहा(कुदाल)लेकर खेतों से पानी निकालने जाता है किसान क्या वो इंसान नहीं है या उसी ख़तरा नहीं है दूसरी ओर साफ सुथरी रोड़ों पर बने आलीशान बँगलों सभी प्रकार से सुरक्षित लोग मरने को डर रहे होते हैं उन्हें अपने जैसे कई लोग चाहिए सिक्योरिटी के लिए ऐसे लोग क्या इंसान समझते होंगे ऐसे किसानों मजदूरों को !
जिनके कमाए हुए अन्न से जीवन यापन होता है जिन मजदूरों के बनाए हुए घरों में लोग रहते हैं जो गरीब मजदूर लोग सभी प्रकार की मुशीबतों में देश और देश वासियों के काम आते हैं पड़ने पर देश के काम आते हैं ऐसे देश भक्तों से भी घूस लेकर उनका काम करते हैं सरकारी सेवा कर्मी जबकि भारी भरकम सैलरी मिलती है उन्हें !
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
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