बेचारा धर्म !बाबाओं के पीछे घूमने वाले लोग केवल बाबाओं के ही भक्त होते हैं न कि भगवान के ! मन रूपी बिल से संशय रूपी सर्प निकलने के लिए गुरू रूपी डंडा चाहिए सर्प निकलने के बाद डंडे का क्या काम !और जो इतने दिन तक न निकाल पाए हों उनके पीछे भटकने से क्या लाभ !
समाज में बढ़ते जा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध और असहिष्णुता के लिए जिम्मेदार हैं केवल धार्मिक लोग !यदि समाज की अच्छाइयों का श्रेय वो लेते रहे हैं तो समाज की बुराइयाँ भी उन्हीं की देन हैं ये स्वीकार करना पड़ेगा ! जप तप धर्म कर्म यज्ञ अनुष्ठान ऋषिकुलों कथा भागवतों आदि की परंपराएँ धीरे धीरे नष्ट होती जा रही हैं आखिर क्यों ?क्या अब उनकी जरूरतें खत्म हो गई हैं !क्या समाज में रामराज्य आ गया है ! आखिर किस साजिश के तहत आश्रमों की प्रतिष्ठा धार्मिक वेश्यालयों के रूप में परिवर्तित होती जा रही है जप तप धर्म कर्म यज्ञ अनुष्ठान ऋषिकुलों कथा भागवत सारे केवल ये दिखाने मात्र के लिए उपयोग किए जा रहे हैं जिससे ये आश्रम हैं समाज को इस बात का भ्रम बना रहे !जैसे किसी बरगद की छाँव में उगे पेड़ दिनों दिन कमजोर होकर नष्ट होते जाते हैं वही स्थिति आज आश्रमों में बासना रूपी पर्वताकार बटवृक्षों की छाया में पनप रहे जप तप धर्म कर्म यज्ञ अनुष्ठान आदि ज्ञान विज्ञान साधना संयम आदि की होती जा रही है !
पहले
यज्ञ होते थे यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता था सहनशीलता बढ़ती थी लोग एक
दूसरे के काम आते थे एक दूसरे की बहन बेटियों के प्रति अपनेपन से समर्पित
रहते थे इतनी हत्याएँ और अपराध नहीं होते थे समाज का वातावरण हमारे पूज्य
शास्त्रीय संतों ने पहले इतना कभी नहीं बिगड़ने दिया कि ये समाज रहने लायक न
रह जाता !आज कानून से बलात्कार रोके जा रहे हैं अरे बाबाओ ! ये होते क्यों
हैं आखिर क्या कर रहे हैं आप समाज में ?आखिर समाज की कमाई खाते आप हैं तो
समाज के लिए आपका कोई दायित्व नहीं है क्या ?पहले यज्ञों से बादल बनते थे
वे बादल फटते नहीं थे !कहीं बाढ़ और कहीं सूखा नहीं होता था इतने भूकंप
नहीं सुने जाते थे !अब तो हर ओर आपदा महामारी ये डेंगू तो वो कैंसर हार्ड
अटैक आदि क्या क्या नहीं हो रहा है आज !कहीं से कोई शुभ सूचना नहीं मिल रही
है !भागवत और रामायण की कथाएँ लोगों को उनके अच्छे बुरे आचरणों का आईना
दिखाती थीं किंतु इन कथाओं के क्षेत्र में जब से जिगोलो या डाँसवारों के
रिजेक्टेड लोग घुस आए हैं तब से कथाओं का मतलब केवल नाच गाना हो गया है हर
लैला मजनूँ अपने को भागवत और रामायणका कथा बाचक कहने लगा !इतना ही नहीं
धार्मिक दया भावनाओं को कैस करने के लिए लोग अपने छोटे छोटे बच्चों को
इन्हीं कथाओं के मंचों पर नाचने गाने भेज रहे हैं इनका लालच केवल इतना कि
ये बड़े होकर बेकार हो जाएँगे अभी इनकी तोतली भाषा सुनकर लोग दो पैसे दे
देगें !इसी प्रकार जिन्हें अपनी सुंदरता का घमंड है ऐसे लोग अपनी जवानी का
सदुपयोग करने के लिए भगवती मंचों पर नाच गा रहे हैं उन्हें पता है कि जो
भागवत हम बाँच लेते हैं वो जवानी में ही चलती है गालों में झुर्रियाँ पड़ते
ही कौन सुनेगा ये रोना धोना !दूल्हा दुल्हन शादी के मंडप में इतना सजधज कर
नहीं जाते हैं जितने सज धज कर ये जिगोलो पहुँचते हैं भागवती मंचों पर !
बंधुओं पहले भी कथाएँ ऐसे ही होती थीं क्या ?यदि नहीं तो जैसा करोगे वैसा
भरोगे भगवती मंचों से परोसा जा रहा है सेक्स !ऐसे लोगों को बर्बादकरने वाले
केवल वो स्त्री पुरुष हैं जो या तो इनकी सुंदरता पर मर मिटे या फिर इन्हें
इस एय्याशी के लिए धन देते हैं !इनसे बोलकर क्यों नहीं पूछते दुनियां तो
पश्चिमी संस्कृति की और बहा रही है समझ में आता है किंतु तुममे बदलाव क्यों
तुम्हें तो पश्चिमी दुष्प्रभाव रोकने के लिए धन दिया जाता है तुम लैला
मजनूँ क्यों बन रहे हो !किंतु ऐसे लोगों की ऐय्याशी में सम्मिलित लोग कैसे
हिम्मत कर सकते हैं उनसे इतना बड़ा प्रश्न करने की उससे पोल तो अपनी और
अपनों की भी खुलने का भय है !
हमें ये भूलना नहीं चाहिए कि बाबाओं
के पाप उन्हें ही भोगने पड़ेंगे जिन्होंने अनाप शनाप धन देकर बाबाओं को बिलासी और आश्रमों को
एय्याशी का अड्डा बना दिया है ! धनी लोगों ने जप तप धर्म कर्म यज्ञ
अनुष्ठान आदि समाज शोधक पवित्र क्षेत्र को इतना गंदा कर दिया है कि
चरित्रवान तपस्वी साधक संत अब आश्रमों में रहने से डरने लगे हैं क्योंकि वो
पवित्र पुरुष उन प्रश्नों का सामना नहीं कर सकते जिन्हें सुनकर जवाब देने
की जगह केवल मर जाने का मन होता हो उन पर भी उठाई जाने लगी हैं अँगुलियाँ !उनके स्तर को अब तप प्रभाव की जगह पैसे के प्रभाव से आँका जाने लगा है !जिसे चरित्रवान संत लोग सुनना पसंद नहीं करते हैं ! पहले धनी लोग भी धर्म कर्म को अपनी आँखों से देखते थे जो अब केवल बाबाओं की आँखों से देखा जाने लगा है अन्यथा वो लोग जिसे धन देते थे उसकी कसे रहते थे लगाम किन्तु आज जब वही भटक रहे हैं तो किसी से क्या कहा जाए !
भगवान के भक्त इतने
अंधे कभी नहीं हो सकते कि उन्हें ग़रीबों ,किसानों मजदूरों की भुखमरी
लाचारी अशिक्षा बीमारी न दिखाई पड़े और धन देकर देकर आश्रमों को एय्याशी के
अड्डे बनाते जाएँ !बहुत परिवारों में ग़रीबों के बच्चों को खुले आसमान के
नीचे शर्दी बर्षात गर्मी की गुजारनी पड़ती है रातें !भगवान ने उनके हिस्से का
भी धन रईस लोगों को ये सोचकर थोड़े दिया था कि उसे बाबाओं और आश्रमों को माध्यम
बनाकर अकेले भोगा जाएगा !गरीबों में भी तो भगवान हैं अरे धनियों !तुम्हें उनके
बच्चों के कुम्हलाते चेहरे क्यों नहीं दिखते !देश के सैनिकों की विधवाएँ
पेट्रोल पंपों के लिए सरकारी कार्यालयों के धक्के खाया करती हैं उन राष्ट्र
साधकों के बच्चों को देखकर तुम्हारी आत्मा क्यों नहीं पिघलती ! बाबाओं को क्या करने के लिए देते हो धन ?वो तुम क्यों नहीं कर सकते !तपस्या में धन की क्या और कितनी आवश्यकता ये सोचते हो कभी !इसके आलावा धन का क्या काम !
बाबाओं को भजने वाले लोग धार्मिक ही होते हैं क्या ?बाबाओं के बौनेपन से कौन परिचित नहीं है ?धर्म की आड़ में बहुत बड़ी एय्याशी हो रही है आजकल !अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट लोग आश्रमों में ही हैं आजकल !यहाँ सभी बरायटी के स्त्रीपुरुषों को आने जाने रहन सहन में सामाजिक बदनामी का भय नहीं रहता साधना के नाम पर वर्षों टिके रहो !जवान जवान लडके लड़कियां बाबा जी का लाकेट पहनते ही भक्त बन जाते हैं ऐसे आश्रमों में सत्संग शिविरों के नाम पर माता पिता को भी भेजने में कोई दिक्कत नहीं होती हैऔर वो अविवाहित जोड़े वहाँ सप्ताहों तक तक रह जाते हैं बिना रोक टोक !क्या आश्रम इसीलिए बनते थे !कई आश्रमों को आपने देखा होगा कि उस आश्रम के मालिक बाबा कभी साल दो साल में चक्कर मारते हैं किंतु वो आश्रम साल माल चमकाए जाते हैं इन पर आने वाला लाखों रूपए महीने का खर्च आखिर बाबा जी क्यों देंगे जो आते ही साल में एक दो दिनों के लिए हैं ऐसे धार्मिक वेश्यालयों पर धन वही लोग खर्च करते हैं जिन्हें इनकी जरूरत होती है ये उन्हीं शहरों के सफेदपोश लोग होते हैं !जिन्हें केवल बाबा का नाम और फोटो चाहिए होती है ! रजनीश के आश्रमों के विषय में तो समय समय पर जो जानकारी छन छन कर आती रहती है वो इसी दिशा की ओर जाती है !
कुलमिलाकर इन पैसे वालों ने धर्म का बेडा इतना गर्क कर दिया है कि जो साधू संत पहले विरक्त थेअब संसाधन जुटाने की इच्छा उनकी भी अँगड़ाई मारने लगी है । जो बाबा जेलों में हैं उनके अनुयायियों की संख्या भी तो बहुत अधिक थी इसलिए
बाबाओं को भजने वाले लोग धार्मिक ही होते हैं क्या ?ये कैसे पता लगे
!क्योंकि बाबा लोग अपने भक्तों को अपनी ही माया में भरमाए रहते हैं भगवान
की ओर तो फटकने भी नहीं देते हैं ! जो
शास्त्रों के अनुशार चलें वे संत और जो शास्त्रों को अपने अनुशार चलावें
वे बाबा !संत तो अभी भी समाज को दिशा देने लगे हुए हैं किन्तु बाबाओं ने
नरक फैला रखा है ।देखो निर्मल बाबा टाइप के लोगों को भाग्य बदलने की फ्रेंचायजी लिए घूम रहे हैं !
किसी बाबा की आलोचना से धार्मिक भावनाओं को कैसे लग जाती है ठेस क्या बाबा लोग ही धर्म होते हैं ? माना कि बाबाओं
से करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं किंतु बाबाओं के अनुयायियों की बढ़ती
संख्या का कारण उनके द्वारा किए जा रहे पुण्य हैं या पाप ! इसका मूल्यांकन
कैसे हो !इसी प्रकार से ऐसे लोगों के फालोवर उनके गुणों पर प्रभावित हैं
या दुर्गुणों पर इसे कैसे जाना जाए ?
कुछ बाबा लोग अपने कुकर्मों के कारण बदनाम हुए फॉलोवर तो उनके भी हैं आखिर
उनकी भावनाओं को लगने वाली ठेसों की परवाह क्यों नहीं है !जो जेलों में
अदालतों में दंडवत करते घूम रहे हैं आस्था तो उनकी भी है वो भी तो जब तक
पकड़े नहीं गए थे तब तक कितने मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री फिरते थे
उनके आगे पीछे और जब पकड़े गए तब मीडिया से लेकर चारों ओर केवल उनके पापों
का ही जिक्र था !ऐसा पकड़े गए लगभग हर बाबा के साथ हुआ है तलाशी में
उनके आश्रमों से कुछ और निकला हो न निकला हो किंतु सेक्स सामग्री जरूर
निकलती रही !कुल मिलाकर जो पकड़ा गया वहाँ पाप मिला जो पकड़ा नहीं गया उस पर
भरोसा इतना कैसे कर लिया जाए कि उसे क्लीनचिट दे दी जाए !
पैसे का सम्बन्ध पाप से भी होता
है शार्टकट रास्ते से कम समय में पैसे वाला बनने के लिए पाप करना पड़ता है
कम समय में अरबपति बनने का रास्ता तो अपराधों के जंगल से ही होकर गुजरता है
यदि यह सिद्धांत सच है तो अरबपति बने बाबाओं ने इससे कितना परहेज किया
होगा ये तो वे ही जानते होंगे या फिर भगवान !
कई बार ऐसा
भी देखने में आता है कि चरित्रवान शास्त्रीय साधक साधू संतों के पास उतनी
भीड़ें नहीं होती हैं और न ही उतना धन होता है । क्योंकि वो अपने अनुयायियों को
गलत कामों से धन कमाने को रोकते हैं इसीलिए गलतकमाई या पाप कामों से
अंधाधुंध कमाई करने वाले लोग चरित्रवान शास्त्रीय साधक साधू संतों के पास
या देवी देवताओं के पास जाते ही नहीं हैं ये देवी देवताओं के नामपर साईं
बाबा जैसे किसी बाबा को ही अपना देवता बना लेते हैं और बड़े बड़े पापों से
कमाई करते जाते हैं कहीं कोई रुकावट डालने वाला ही नहीं होता है ।
कई बाबा तो प्रेमी जोड़ों को मौका
मुहैया कराने के लिए बाकायदा सत्संग शिविर या योग शिविर लगाते हैं कई लोगों
को तो इससे अधिक सुविधाएँ भी मुहैया करा दी जाती हैं क्योंकि आश्रम वालों
को पता होता है कि कौन पत्नी से परेशान है और कौन पति से !उन्हें आपस में
किसी न किसी से जोड़ दिया करते हैं और आश्रम के नाम पर घर से लेकर बाहर तक
किसी को एतराज भी नहीं होता है बाबा जी को ये भी पता होता है कि किसे
प्रेमी चाहिए और किसे प्रेमिका इसी प्रकार से ऐसे ऐसे बाबा लोग भी हैं जो
तरह तरह के नशे भी मुहैया कराते हैं धर्म की आड़ में वो भी चल जाता है वैसे
भी बड़े बड़े आश्रमों में धर्म तो दिखावा मात्र होता है ।
आज किसी धन हीन आदमी का मन फ़िल्म बनाने का है तो बाया बाबा वो फ़िल्म
बना सकता है अर्थात पहले कुछ वर्ष तक धन इकठ्ठा करने के लिए उसे बबई करनी
अर्थात बाबा बनना पड़ेगा !और इसप्रकार से धन संग्रह हो जाने के बाद वो
फिल्में बना सकता है बेच सकता है दवा बेच सकता है ज्योतिष वास्तु योग आदि
कुछ भी बेच सकता है और कितना भी धन जुटा सकता है उसके बाद कितने भी सुख
साधन बना सकता है गाड़ी घोड़ा ट्रेन जहाज तक सब कुछ !वो टीवी चैनलों पर कुछ
भी बक या बया सकता है ऐसे लोग एक नहीं हजार विवाह कर लें किन्तु कोई क्या
कर लेगा इनका !पैसा हो तब विवाह तो बुढ़ापे में भी हो जाता है और जैसा चाहो
वैसा हो जाता है ।बाबा बनने के बाद किए गए व्यापार में सबसे बड़ा लाभ यह
होता है कि इसमें घाटा होने पर किसी का कुछ देना नहीं होता है फिर नया शुरू
किया जा सकता है जबकि कोई ईमानदार गृहस्थ व्यापारी यहीं पर टूट जाता है
क्योंकि उसे मूल भी देना होता है और ब्याज भी !
समाज की स्थिति यह है कि अभ्यास
न होने के कारण जप तप व्रत उपवास आदि के शास्त्रीय कठिन विधानों से भयभीत
लोग चाहते हैं कि उन्हें कुछ छूट मिले किंतु छूट मिले कहाँ से शास्त्र
लिखने वाले तो लिखकर चले गए अब छूट दे कौन !जबकि सनातन हिन्दू धर्म का मूल
तो शास्त्र ही है जो वेद शास्त्र आदि में नहीं है वो धर्म कैसा !इसलिए यहाँ
तो शास्त्रीय विधानों का पालन ही होता है इसलिए धार्मिक दृष्टि से आलसी
लोग अपनी पुजास शांत करने के लिए अपना आचरण बदलने की अपेक्षा अपना भगवान
बदल लेते हैं - ऐसे आलसी लोग तो श्री राम के स्थान पर साईंराम, आशाराम,
कांशीराम, रामरहीम, रामदेव ,राम विलास आदि किसी को भी अपनी अपनी श्रद्धा
विश्वास के अनुशार भगवान मानने लग जाते हैं ।
यदि उनके पुण्य का प्रभाव होता तो
समाज में भी उसका असर दिखाई देना चाहिए अर्थात अपराधों का ग्राफ घटना
चाहिए था समाज में सात्विकता का विस्तार होना चाहिए था किंतु रोज रोज हो
रहे बलात्कार जैसे और भी अनेकों अपराध धर्म के नाम पर किए जा रहे कलियुगी
बाबाओं के हाईटेक आचरण के ही साइडइफेक्ट हैं !माना कि चीटियाँ मिठाई में
अधिक होती हैं किन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मिठाई से अधिक
चीटियाँ
गंदगी में भी होती हैं इस बात को झुठलाया कैसे जा सकता है !इसलिए जैसे
सुगंध और दुर्गन्ध के द्वारा हम अच्छाई बुराई का ज्ञान कर लेते हैं उसी
प्रकार से समाज में बढ़ती अच्छाइयों से भीड़ को अच्छी एवं बुराइयों से बाबाओं
की भीडों को बुराई के लिए इकठ्ठा हुआ जन समूह समझना चाहिए !
जो चीज जितनी ज्यादा घटिया मिलावटी सस्ती सरल सहज ग्राह्य होगी विस्तार उसी का उतना अधिक
होगा ! जबकि हितकारी औषधि कड़वी होती है उसे लेने वालों की भीड़ कहाँ देखी
जाती है भीड़ें तो जनरल कोच में होती हैं रिजर्वेशन में नहीं !रही बात
धार्मिक लोगों के विदेशों तक प्रचारित होने की तो जहाँ लोग हिंदी भी न बोल पाते हों वहां
योग जैसे शास्त्रीय विज्ञान को समझेगा कौन !वहां तो जो बक आओ वह शास्त्र
ही है !
देव मंदिरों में लोग जाते हैं तो उन्हें पाप छोड़कर जाने की सीख दी जाती है
इसपर साईं वालों ने नारा दिया कि कैसे भी कर्म करो साईं सब माफ कर देते हैं
क्योंकि बाबा बड़े दयालू हैं !इससे पाप न छोड़कर धर्म करने की इच्छा रखने
वाले लोगों के लिए धार्मिक डालडा के रूप में साईं की छत्रछाया मिल गई या
यूँ कह लें कि पाप करते हुए धर्मात्मा कहलाने का लाइसेंस मिल गया !
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