मंगलवार, 22 मार्च 2016

होली रंगों का त्यौहार तो है किंतु नंगों का नहीं ! होली कब जलेगी !अबकी तो यहीं से शुरू हो गई है नंगई !!

        हिंदुओं के  त्योहारों को बदनाम करने वाले नंगों पर रखी जानी चाहिए कड़ी नजर !
   जिन्होंने ज्योतिष पढ़ी ही नहीं है ज्योतिष की कोई डिग्री नहीं है कोई प्रमाण देने की क्षमता  ही नहीं है ऐसे बहुरुपिया लोग जारी कर रहे हैं ऊट पटांग फतवे !कहते हैं कि होली बुधवार को जलेगी !किंतु कल बुधवार शाम को पूर्णिमा ही नहीं है तो कल होली कैसे जलाई जा सकती है !
     सनातनधर्म को मानने वाले भाई बहनो !आप अपने शास्त्रों की भाषा स्वयं समझें कि अबकी कब जलेगी होली इस विषय में क्या कहते हैं शास्त्र ?      प्रदोष व्यपिनी ग्राह्या पौर्णिमा फल्गुनी सदा !
   तस्यां भद्रामुखं त्यक्त्वा पूज्याहोला  निशामुखे|| 
अर्थ -संध्याकाल  में जिस दिन पूर्णिमा हो उस दिन होली पूजन हो सकता है यदि भद्रा न हो तो !
     पूर्णिमा यदि दो दिन हो और दोनों दिन संध्या में भी हो तो पहले दिन स्वीकार करनी चाहिए !"यदि पहले दिन सायंकाल भद्रा हो तो अगले सायंकाल करे किंतु अगले सायंकाल पूर्णिमा होनी चाहिए इसमें उदया तिथि वाला सिद्धांत नहीं चलेगा ।
     आधे दिन के बाद यदि पूर्णिमा लगी हो किंतु सायंकाल में भद्रा हो तो भद्रा समाप्त होने पर पूर्णिमा में ही होली जलेगी !यथा-
दिनार्धात्परतोपि स्यात् फाल्गुनी पूर्णिमा यदि । 
 रात्रौ भद्रावसाने तु होलिका दीप्यते तदा ॥ 
  भद्रा में होली जलाई ही नहीं जा सकती !
                भद्रायां दीपिता होली राष्ट्र भंगं करोति वै !   
अबकी बार आज मंगलवार दिन में 2.29 बजे पूर्णिमा लग रही हैऔर कल बुधवार को पूर्णिमा शाम को नहीं होगी 4.8 बजे दोपहर बाद समाप्त हो जाएगी ऐसी परिस्थिति में बुधवार को होली नहीं जलनी चाहिए !ऐसे में मंगलवार की रात्रि में ही 3. 19 बजे भद्रा समाप्ति के बाद होली जलाई जानी चाहिए यही शास्त्रीय विधान है ।
      होली रंगों का त्यौहार है किन्तु नंगों का नहीं इसलिए खबरदार नंगई बर्दाश्त नहीं की जाएगी ! हाँ ,रंग खेलने वालों का स्वागत है !!

बंधुओ ! होली के पावन पर्व पर आप सभी को बहुत बहुत बधाई !!
   बंधुओ !इस त्यौहार की मर्यादा बनाए रखने में ही भलाई है अन्यथा कुछ विधर्मी लोग हमारे पर्वों को बदनाम करने के लिए कीचड़ कैमिकल आदि हानि कारक चीजें भी चलाने लगे हैं बहुत मजनूँ लोगों को तो यह त्यौहार केवल इसीलिए अधिक प्रिय है क्योंकि इस दिन वो लोग कुछ उन लोगों के उन अंगोपांगों को रंग लगाने के बहाने छू पाते हैं जिनके लिए वर्ष भर तरसा करते हैं ऐसे लोगों को तो न तो प्रह्लाद जी से कुछ लेना देना होता है न ही होलिका से उन्हें तो केवल अश्लील हरकतें करने के लिए ये दिन सबसे अधिक सुविधाजनक लगता है जो अशोभनीय है इससे अपने त्योहारों की गलत छवि विधर्मी लोगों तक पहुँचती है जिसका वे उपहास उड़ाते हैं इसलिए हमारा सभी अपने भाई बहनों से अनुरोध है कि हम अपने धर्म की गरिमा बचाए रखें इसी में हम सभी की भलाई है !कुछ लोग होली मनाने के नाम  पर कुछ भी नंगई करना चाहते हैं उन्हें समझा दिया जाना चाहिए कि होली रंगों का त्यौहार तो है किन्तु नंगों का त्यौहार नहीं है इसलिए नंगई बर्दाश्त नहीं की जाएगी !
भाई बहनो !आप सभी को पता ही है कि भक्त प्रह्लाद जी की बुआ होलिका भगवान सूर्य की कृपा से प्राप्त दिव्य वस्त्र को ओढ़ कर अपनी गोद में भतीजे प्रह्लादको लेकर बैठी थीं किन्तु अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही वो दिव्य वस्त्र जिसे ओढ़ने वाला जलता नहीं था प्रभु कृपा प्रसाद से वो दिव्य वस्त्र उड़कर प्रह्लाद जी पर आ गिरा जिससे  प्रह्लाद जी ढक गए और बच गए किंतु होलिका जल गईं अगले दिन प्रातः प्रह्लाद जी से स्नेह करने वाले सखा गण वहाँ आए भस्म (राख) का ढेर देख कर सह नहीं सके प्रह्लादजी जैसे अपने प्रिय मित्र का वियोग धैर्य टूट गया प्रह्लाद जी का गुणानुवाद गाते हुए बेचारे रोने लगे उन्हें व्याकुल देखकर प्रह्लाद जी उसी भस्म (राख)के ढेर से प्रकट हुए जिससे बहुत सारी भस्म (राख)उड़ने लगी यह देखकर प्रसन्नता से झूम उठे साथी भी लिपट गए अपने प्राण प्रिय सखा प्रह्लाद जी से ,ख़ुशी से वही राख धूल उड़ा उड़ा कर सभी आपस में खेलने लगे इसीलिए इसे धुलेठीपर्व के रूप में मनाया जाने लगा तब से यह पर्व बड़े श्रद्धा विश्वास के साथ आज तक मनाया जाता है !
       इस सुदिन पर हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि जैसे प्रह्लाद जी के मित्रों को उनके बिछुड़े प्रह्लाद जी मिल गए ऐसी कृपा ईश्वर सब पर करे और सबके बिछुड़े सबको मिल जाएँ

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