गुरुवार, 24 मार्च 2016

vipra gatha !

                       सवर्णों  के दुर्भाग्य से दलितों का भाग्योदय !
    सबके  साथ अच्छा करने के बाद भी बुराई ही हाथ लगी !  ब्राह्मणों का हमेंशा  त्याग तपस्या पूर्ण जीवन रहा इसीलिए हमेंशा से गरीब माने जाते रहे पुराने समय की कोई कथा कहानी देखी सुनी जाए उसमें ब्राह्मण को गरीब ही दिखाया बताया गया है । ब्राह्मणों ने यदि कभी किसी का शोषण किया होता तो गरीब क्यों होते !विगत समय के राष्ट्रवादी युद्धों में ब्राह्मणों ने अपना भारी बलिदान दिया जिससे ब्राह्मणों की संख्या बहुत घट गई सुना जाता है कि मनों जनेऊ जलाए गए थे इसीलिए अन्यजातियों की अपेक्षा ब्राह्मणों की संख्या आज बहुत कम हो गई ये उस समय ब्राह्मणों के  दिए बलिदान का सशक्त उदाहरण है पूर्वजों के मारे जाने के बाद जो  बच पाए उनकी संख्या इतनी कम थी कि उनके पूर्वजों के द्वारा परिश्रम पूर्वक संचित की गई उनकी अपनी सम्पत्तियाँ बचे खुचे ब्राह्मणों की संख्या के हिसाब से देखने में ज्यादा लगने लगीं !जबकि अन्य जाति के लोगों की संपत्तियाँ संख्या के हिसाब से बहुत कम लगने लगीं !
धीरे धीरे समय बीता लोग ब्राह्मणों के बलिदान की गाथाएँ भूलने लगे उन्हें केवल सवर्णों की संपत्तियाँ दिखाई पड़ने लगीं वे दिन रात करक रहीं थीं उनकी आँखों में ।उनसे गलती ये हुई कि उन्होंने ये समझने में दिमाग लगाने की जरूरत नहीं समझी कि हम लोगों की संख्या इतनी अधिक और ब्राह्मणों क्षत्रियों वैश्यों की संख्या इतनी घटी आखिर कैसे !यदि ये बात उन्हें ठीक से समझाई  जा सकी होती और बताई गई होती देश हित में सवर्णों के महान बलिदान की गाथा तो शायद उन्हें इतना बुरा नहीं लगता किंतु बलिदानों से बचने के लिए जिन्होंने युद्धों में लड़ने जाने की अपेक्षा खेती किसानी और मेहनत मजदूरी को अपनी इच्छा से चुना इससे वे सवर्णों की तरह बलिदान होने से बच गए और अपने लोगों को बचाने में सफल हो गए। यदि  ब्राह्मणों क्षत्रियों वैश्यों ने भी  इस चालाकी का आश्रय लिया होता तो आज सवर्णों की संख्या भी उन जातियों के बराबर या कुछ कम ज्यादा होती !इतना अंतर तो नहीं ही होता । 
  बताया जाता है कि सवर्ण लोग जब बड़ी संख्या में  गए और बंश के बंश ही समाप्त होने लगे तो सवर्ण लोग भी लड़ाइयों में जाने से कतराने लगे उस परिस्थिति में अन्य जातियों के बुड्ढे बुड्ढे लोग उम्र में अपने से बहुत छोटे छोटे सवर्णों के पैर छूकर हाँ हुजूरी करके जिस किसी भी तरह सवर्ण माने उसी तरह उन्हें युद्धों में लड़ने के लिए भेज दिया जाता था जब  दिए जाते थे तो वही नीति उनके छोटे छोटे बच्चों के साथ अपनाई जाने लगी अन्य जातियों के बुड्ढे बुड्ढे लोग सवर्णों के छोटे छोटे बच्चों के पैर पकड़ लिया करते थे उन्हें समझाते थे कि तुम्हारे पिता ओर दादा जी जब तक जिन्दा रहे तब तक हमें कोई चिंता नहीं रही मालिक आप लोगों के रहते  हमें आज भी क्या चिंता है उन छोटे छोटे बच्चों से बुड्ढे लोग बोलैं पैर पकड़ लें और चढ़ा दें झाड़ पर !जब वो अपने कामों का बहाना करें तो कह देते थे कि तुम्हारी खेती पाती हम कर देंगे । कुल मिलाकर युद्ध में जाने से बचने के लिए छोटा से छोटा काम करने को तैयार थे !बच्चे बातों में आ जाया करते थे ।

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