सोमवार, 16 मई 2016

जब चन्द्रमा पृथ्वी पर अपने गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव डालता है तो जो उसके सबसे समीप का समुद्र है, उसका पानी चन्द्रमा की ओर उठता है। इस से उस इलाक़े में ज्वार आता है (यानि पानी उठता है)। पृथ्वी के दाएँ और बाएँ तरफ का पानी भी खिचकर सामने की ओर जाता है, जिस से उन इलाक़ों में भाटा आता है (यानि पानी नीचे हो जाता है)। पृथ्वी के पीछे का जो पानी है वह चन्द्रमा से सब से दूर होता है और खिचाव कम महसूस करता है, जिस से वहां भी ज्वार रहता है। चन्द्रमा के ज्वारभाटा बल का असर पानी तक सीमित नहीं। पृथ्वी की ज़मीन पर भी इसका असर होता है। अगर पूरा असर देखा जाए तो ज्वारभाटा बल से पृथ्वी का गोला थोड़ा पिचक सा जाता है।
   चंद्रमा जब पृथ्वी को अपनी ओर खींचता है तो न केवल समुद्र में ज्वार आता है अपितु पृथ्वी का भी आकार बदल जाता है और जितना खिंचाव समुद्र के पानी पर पड़ता है उतना ही खिंचाव धरती के अन्य भागों पर भी पड़ता है किंतु पानी तरल होता है इसलिए उठ जाता है और पृथ्वी के अन्यभागों में वो परिवर्तन उस तरह से नहीं दिखाई पड़ता है !किंतु इसका ये कतई मतलब नहीं है कि उन पर असर नहीं पड़ता होगा !
      अमावश्या और पूर्णिमा पर उच्च ज्वार आता है ज्वार भाटा 24 घंटे में दो बार आता है किंतु ये 12 घंटे बाद नहीं अपितु 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है उसका कारण  चंद्रमा 28 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है इसलिए 24 घंटे में अपने वृत्त का 28 वाँ भाग तय करता है इसलिए पृथ्वी के उस स्थान को चन्द्रमा के सामने पहुँचने में 52 मिनट अधिक लग जाते हैं इसलिए प्रत्येक स्थान पर ज्वार भाटा 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है ।


जैसा कि बताया गया, 24 घंटे में दो बार ज्चार आता है। लेकिन यह हर 12 घंटे के बाद नहीं आता, बल्कि 12 घंटे 26 मिनट के बाद आता है । ज्वार उत्पन्न होने में 26 मिनट का यह अन्तर पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण होता है । होता यह है कि जब पृथ्वी अपनी धूरी का एक चक्कर लगाकर पहले वाले स्थान तक पहुँचती है, तब तक चन्द्रमा भी अपने पथ पर थोड़ा-सा आगे बढ़ जाता है ।
हम जानते हैं कि चन्द्रमा 28 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है । इस प्रकार 24 घंटे में यानी कि एक दिन में वह अपने वृत्त का 1/28 भाग तय करता है । इसके फलस्वरुप पृथ्वी के उस स्थान को चन्द्रमा के सामने पहुँचने में 52 मिनट का समय लग जाता है । इसलिए प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे 26 मिनट बाद दूसरा ज्वार और भाटा उत्पन्न होते हैं ।
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जैसा कि बताया गया, 24 घंटे में दो बार ज्चार आता है। लेकिन यह हर 12 घंटे के बाद नहीं आता, बल्कि 12 घंटे 26 मिनट के बाद आता है । ज्वार उत्पन्न होने में 26 मिनट का यह अन्तर पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण होता है । होता यह है कि जब पृथ्वी अपनी धूरी का एक चक्कर लगाकर पहले वाले स्थान तक पहुँचती है, तब तक चन्द्रमा भी अपने पथ पर थोड़ा-सा आगे बढ़ जाता है ।
हम जानते हैं कि चन्द्रमा 28 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है । इस प्रकार 24 घंटे में यानी कि एक दिन में वह अपने वृत्त का 1/28 भाग तय करता है । इसके फलस्वरुप पृथ्वी के उस स्थान को चन्द्रमा के सामने पहुँचने में 52 मिनट का समय लग जाता है । इसलिए प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे 26 मिनट बाद दूसरा ज्वार और भाटा उत्पन्न होते हैं ।
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हम जानते हैं कि चन्द्रमा 28 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है । इस प्रकार 24 घंटे में यानी कि एक दिन में वह अपने वृत्त का 1/28 भाग तय करता है । इसके फलस्वरुप पृथ्वी के उस स्थान को चन्द्रमा के सामने पहुँचने में 52 मिनट का समय लग जाता है । इसलिए प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे 26 मिनट बाद दूसरा ज्वार और भाटा उत्पन्न होते हैं ।
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पृथ्वी पर स्थित सागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से उपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होती है जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है।

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साभार bhartdiscovery.org
पृथ्वी पर स्थित सागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से उपर उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होती है जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है।

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