संस्कृत शिक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ !इसलिए संस्कृत न बोल पाने वाले
संस्कृतशिक्षकों को तुरंत सेवामुक्त किया जाए !और नए योग्य लोगों को भर्ती
किया जाए !
संस्कृत एक भाषा है और भाषा बोलने से आती है जो शिक्षक बोल ही नहीं
पाते हैं उन्हें संस्कृत आती क्या ख़ाक होगी ! आखिर ऐसे बुद्धू बकस संस्कृत
शिक्षक लोग संस्कृत पढ़ने के लिए बच्चों को प्रेरित कैसे कर पाएँगे !बच्चे तो अपने शिक्षकों से ही प्रेरित होते हैं !
जो शिक्षक अँग्रेज़ी अच्छी बोल लेते हैं उनके विद्यार्थी उनकी नकल करते हैं
और उनकी प्रशंसा में कहते हैं कि अमुक शिक्षक अँग्रेजी फर्राटेदार बोल
लेते हैं इसलिए बच्चे भी उनकी नकल करते करते बोलने लगते हैं
फर्राटेदारअंग्रेजी !किंतु संस्कृत शिक्षकों के पदों की अघोषित नीलामी
होने के कारण योग्य लोग योग्य पदों तक पहुँच ही नहीं पाते हैं अयोग्य लोगों
से संस्कृत पढ़वा रहीं सरकारें किंतु सरकारों की ऐसी मजबूरी क्या है !केवल
खानापूर्ति के लिए अयोग्य शिक्षकों पर खर्च की जा रही है सैलरी !अरे !सरकार
यदि ईमानदार है तो संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति पर पारदर्शी नीति अपनावे
और योग्य लोगों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शन करने का अवसर दिया जाए !
चूंकि समाज संस्कृत समझ
नहीं पाता है इसलिए मंदिरों के पुजारी पंडे बाबा कथा भोगवती आदि लोग मूर्ख
बनाते जा रहे हैं समाज को !किंतु स्कूलों में संस्कृत शिक्षा का स्तर
सुधरते ही ऐसे पाखंडी समाज की भी धाँधली बंद हो जाएगी !अंधविश्वास की
घटनाओं में कमी आएगी ।
मंदिरों के पुजारी और धार्मिक स्थानों या तीर्थ स्थलों के पंडे
शतप्रतिशत संस्कृत से अनजान होते हैं संस्कृत न जानने के कारण उनकी कराई
हुई पूजा का फल क्या मिलता होगा भगवान ही जाने !और यदि वो किसी तरह पूजा
करवा भी लें तो संकल्प नहीं बोल सकते संकल्प का आधा अंश रटकर बोला भी जा
सकता है वो यदि बोल भी लें तो बचा हुआ आधा हिस्सा बोलना उनके बश का इसलिए
नहीं होता है क्योंकि वे जिसकी पूजा करवा रहे होते हैं "उनकी परेशानी क्या
है पूजा कौन सी है किस देवता या ग्रह की है कितनी है किसलिए है "ये सारी
चीजें रटकर नहीं बोली जा सकती हैं और न ही कहीं लिखी मिलती हैं क्योंकि ये
सबकुछ सबका अपना अपना और अलग अलग होता है इतना रट पाना संभव ही नहीं है !
ये बिलकुल उसी तरह की प्रक्रिया है जैसे कोर्ट में रजिस्ट्री आदि के कागज
तैयार करने वाले लोग एक प्रोफार्मा टाइप का बनाए होते हैं उसी में अलग अलग
क्लाइंटों के हिसाब से अलग अलग नाम गाँव पता आदि जोड़ते जाते हैं किंतु
इतना करने के लिए भी तो जैसे अँग्रेजी जानना जरूरी होता है वैसे ही संकल्प
बोलने के लिए संस्कृत जानना जरूरी होता है !
संकल्प के साथ जोड़ी जाने वाली विषय सामग्री का ट्रांसलेशन कर पाना उन पंडे पुजारियों के बश का ही नहीं होता है जिन्होंने संस्कृत नहीं पढ़ी है !यदि किसी को हमारी बात पर संशय हो तो आप अपने घर से संबंधित पंडे पुजारी या पंडित जी को यह कह कर कोई पाँच वाक्य संस्कृत में अनुवाद(ट्रांसलेशन) करने के लिए उन्हें दें कि बच्चे को स्कूल में मिले हैं आप कर दीजिए ! अपने सामने बैठाकर करवाएँ तो उनके हाव भाव लेखन शैली और बातों से ही सच्चाई पता लग जाएगी बाकी बात तो बाद में होगी !
संकल्प के साथ जोड़ी जाने वाली विषय सामग्री का ट्रांसलेशन कर पाना उन पंडे पुजारियों के बश का ही नहीं होता है जिन्होंने संस्कृत नहीं पढ़ी है !यदि किसी को हमारी बात पर संशय हो तो आप अपने घर से संबंधित पंडे पुजारी या पंडित जी को यह कह कर कोई पाँच वाक्य संस्कृत में अनुवाद(ट्रांसलेशन) करने के लिए उन्हें दें कि बच्चे को स्कूल में मिले हैं आप कर दीजिए ! अपने सामने बैठाकर करवाएँ तो उनके हाव भाव लेखन शैली और बातों से ही सच्चाई पता लग जाएगी बाकी बात तो बाद में होगी !
अब आप स्वयं सोचिए कि जैसे रजिस्ट्री ही गलत हो रही हो तो उस जमीन पर
क्रेता का अधिकार कितना होना चाहिए उसी प्रकार से संकल्प गलत होने पर पूजा
कराने वाला तो बिलकुल खाली हाथ होता है ।
हाँ संस्कृत विद्वानों का एक बड़ा वर्ग अभी भी ऐसा है जो संस्कृत जानता है
और वो पूजा पाठ जैसे कर्म काण्ड के कार्यों में रूचि ले रहा है उन पर संदेह
नहीं किया जा सकता है किंतु उनकी पहचान कैसे की जाए !ये कठिन काम है इसके
लिए जैसे आप अच्छे डाक्टर खोज लेते हैं वैसे ही उन विद्वानों तक भी पहुंचा
जा सकता है ।
साधू संतों और कथावाचकों का संस्कृत ज्ञान -
साधू संतों और कथा वाचकों में पाँच प्रतिशत लोग ही संस्कृत के विद्वान हैं
बाकी संस्कृत भाषा के ज्ञान की दृष्टि से बौड़म हैं किंतु उनको कटघरे में
इसलिए नहीं खड़ा किया जा सकता है क्योंकि वो कह देंगे कि हमें तो भजन करना
होता है वो किसी भी भाषा में किया सकता है यहाँ तो मंत्र प्रमुख होते हैं
वो रट कर बोले जा सकते हैं और ध्यान तो किया ही जा सकता है !उनकी ये बात सच
है किंतु जो साधू संत या कथा वाचक वेदों पुराणों शास्त्रों की चर्चा करते
या करना चाहते हैं उनके लिए संस्कृत जानना बहुत जरूरी होता है !अन्यथा वो
पढ़ेंगे कैसे !
वैसे भी आजकल तो भागवत कथाओं में जब से भड़ुए घुस आए और भागवत का बैनर
लगाकर 'भोगवत' कर रहे हैं वो !इस मौज मस्ती के काम में अब तो लवलहे लड़के
लड़कियाँ इसीलिए कूदने लगे हैं कि इसमें कुछ पढ़ना नहीं पड़ता है और धर्म की
आड़ में मौज मस्ती पूरी मिलती है संगीतप्रिय नारद जी को विश्वमोहिनी नहीं
मिलीं किंतु इन्हें क्या पता मिल ही जाती हों !ये बात भी सच है इसमें केवल
सजना सँवरना होता है जो जितना सुन्दर या जो जितना अधिक फूहड़ हो उसे उतने
अधिक पूजने वाले लोग !क्योंकि अच्छे लोगों की भीड़ नहीं होती वो तो बहुत कम
होते हैं रिजर्वेशन कोच में जनरल बोगी की अपेक्षा कितने कम होते हैं लोग !
धर्मगुरुओं का संस्कृत ज्ञान -
इस प्रजाति के अधिकाँश लोग अर्थात 99 प्रतिशत लोग धार्मिक मुद्दों पर
बकवास करने के लिए टी.वी.चैनलों के द्वारा ही लाल पीले कलर करके वहीँ गढ़
लिए जाते हैं वही समझा दिया करते हैं कि किसको कितना भूत बनके आना है किसे
कितने कलरों में आना है किसके गर्दन में कितने दर्जन किस किस बरायटी के
कितने कितने रुद्राक्ष लादकर कर आना है ! कुछ लोगों के पास पैसा अधिक होता
है वो धन नोचने के लिए टी.वी.चैनलों वाले लोग इन्हें मजबूरी में 'कुछनहीं'
तो 'धर्मगुरु' सही वाली कहावत से उन्हें 'धर्मगुरु' या 'धर्माचार्य' कहने
लगते हैं और बहुरूपियों की तरह इन्हें ही वो ज्योतिषी, विद्वान्
,सिद्धयोगी आदि सभी वेदों शास्त्रों पुराणों मान्यताओं परंपराओं
संस्कृतियों का ज्ञाता सिद्ध करके इन्हीं से हर विषय में हुल्लड़ मचवाया
करते हैं !ऐसी बहसों का न कोई उद्देश्य होता है और न ही कोई परिणाम !न कोई
शंका न समाधान !बेशर्मी पूर्वक चीखने चिल्लाने का अभ्यास जिनका जितना होता
है ऐसी जगहों के लिए वही 'धर्मगुरु' और 'धर्माचार्य'आदि बना लिए जाते हैं
!कभी कभी इनके भँवर में पढ़े लिखे साधू संत विद्वान आदि भी पड़ जाते हैं वो
बेचारे इतने शरीफ होते हैं कि वो मौके की तलाश में ही बैठे रहते हैं तबतक
हुल्लड़ी मार ले जाते हैं प्रथम स्थान !
कुल मिलाकर इस प्रकार से चिंता जनक है संस्कृत अध्ययन अध्यापन की स्थिति किंतु स्कूलों में यदि संस्कृत की पढ़ाई की गुणवत्ता प्रयास पूर्वक सुधारी जाए तो जब बच्चे संस्कृत बोलने समझने लगेंगे तो
संस्कृत से जुड़े पंडे पुजारियों पंडितों साधू संतों और बाबाओं का वर्गीकरण
ठीक ठीक कर सकेंगे वे ! साथ ही इन लोगों को भी मजबूरी में ही सही फिर तो
संस्कृत पढ़नी ही पड़ेगी !इसलिए स्कूलों में संस्कृत शिक्षा की गुणवत्ता
बढ़ाना बहुत जरूरी है !इससे भाषा के साथ साथ संस्कृति की भी रक्षा हो सकेगी
क्योंकि भारत का प्राचीन समस्त ज्ञान विज्ञान संस्कृत ग्रंथों में ही है ।
इसी विषय में पढ़िए हमारा ये लेख -
संस्कृत न बोल पाने वाले संस्कृतशिक्षकों को तुरंत सेवामुक्त करके बंद किया जाए संस्कृत शिक्षा के साथ खिलवाड़ !seemore... http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/06/blog-post_6.html
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