बाबा रामदेव ज्योतिष शास्त्र को पाखंड और ज्योतिषियों को पाखंडी तो बताते हैं
किंतु वो क्या हैं इसके विषय में भी तो अपने श्रीमुख से कुछ कहें ! बाबा रामदेव ने योगपर्व पर फरीदाबाद में ज्योतिष
शास्त्र को पाखंड और ज्योतिषियों को पाखंडी कह तो दिया अब स्वीकार करें मेरी
शास्त्रार्थ की चुनौती और सिद्ध करें कि कैसे पाखंड है ज्योतिषशास्त्र !वे
जहाँ जब और जैसे चाहें वैसे कर सकते हैं हमारे साथ शास्त्रार्थ !साधू संतों जैसी वेष
भूषा बनाकर वे कैसे दे सकते हैं शास्त्र विरोधी बयान ! उचित तो ये होगा कि इस विषय में बाबा जी अपने शास्त्रीय साहस का परिचय दें और स्वीकार करें हमारी
शास्त्रार्थ की चुनौती !ज्योतिष शास्त्र पर उन्होंने जो आरोप लगाए हैं वो सिद्ध करें !आखिर समाज को पता तो लगना चाहिए कि आधुनिक साधुसंतों की शास्त्रीय सच्चाई क्या है !शास्त्र द्रोही बाबाओं को साधू संतों के रूप में भारतीय समाज स्वीकार कर लेगा क्या !
चिकित्सा के विषय में बाबा रामदेव जी हमारे प्रश्नों का जवाब दें ! बाबारामदेव जी !यदि ज्योतिषशास्त्र को गलत सिद्ध करना चाहते हैं तो दें हमारे कुछ चिकित्सा संबंधी प्रश्नों के उत्तर -
बाबा रामदेव से हमारा पहला प्रश्न - एक बीमारी एक जैसे रोगी एक डॉक्टर और सबका एक जैसा इलाज होने पर भी उसका असर अलग अलग होते क्यों देखा जाता है ?एक रोगी स्वस्थ हो जाता है एक अस्वस्थ रहता है एक मर जाता है आखिर क्यों ?तीनों पर एक जैसा असर क्यों नहीं होता है । बाबा रामदेव से हमारा दूसरा प्रश्न -आयुर्वेद में वर्णित असाध्य(जो बिलकुल ठीक नहीं हो सकते ) और कष्टसाध्य (जिनमें चिकित्सा से केवल कुछ सुधार किया जा सकता है बस !) ऐसी परिस्थिति में किसी रोग के असाध्य और कष्टसाध्य होने के कारण क्या हैं ?
बाबा रामदेव से हमारा पहला प्रश्न - एक बीमारी एक जैसे रोगी एक डॉक्टर और सबका एक जैसा इलाज होने पर भी उसका असर अलग अलग होते क्यों देखा जाता है ?एक रोगी स्वस्थ हो जाता है एक अस्वस्थ रहता है एक मर जाता है आखिर क्यों ?तीनों पर एक जैसा असर क्यों नहीं होता है । बाबा रामदेव से हमारा दूसरा प्रश्न -आयुर्वेद में वर्णित असाध्य(जो बिलकुल ठीक नहीं हो सकते ) और कष्टसाध्य (जिनमें चिकित्सा से केवल कुछ सुधार किया जा सकता है बस !) ऐसी परिस्थिति में किसी रोग के असाध्य और कष्टसाध्य होने के कारण क्या हैं ?
बाबा रामदेव से हमारा तीसरा प्रश्न -
आयुर्वेद की उद्घोषणा है कि असाध्य रोगी को स्वस्थ करना चिकित्सा के बश की
बात नहीं है और कष्टसाध्य रोगी स्वस्थ किए नहीं जा सकते केवल स्थिर रखे जा
सकते हैं जबकि केवल साध्य रोगी ही स्वस्थ किए जा सकते हैं !यदि ये बात
सही है तो साध्य रोगी तो बिना औषधि के भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं फिर
उनकी औषधि करके उन्हें स्वस्थ करने का श्रेय चिकित्सा को क्यों मिलना चाहिए
?बाबा रामदेव से हमारा चौथा प्रश्न - ज्योतिष की दृष्टि से जब जिनका जो समय शुभ होता
है वो जंगल में रहें या राजमहलों में यदि वे रोगी भी हो जाएँ और उन्हें
चिकित्सा की कोई व्यवस्था न मिले तो भी अपने शुभ समय के प्रभाव से वे
स्वस्थ होते देखे जाते हैं । इसी प्रकार से जिनका समय अशुभ होता है ऐसे
राजा महाराजा मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री राष्ट्रपति जैसे सर्व साधन
संपन्न लोग भी बड़े बड़े चिकित्सकों के द्वारा बहुमूल्य औषधियों का प्रयोग
किए जाने के बाद भी बचाए नहीं जा पाते !क्योंकि उनका समय अशुभ था । यदि
स्वस्थ और अस्वस्थ होने में जीवित बचने और न बचने में मूल कारण समय ही है
तो रोगी के स्वस्थ होने पर अपनी पीठ थपथपाने वाले चिकित्सक लोग रोगी के
अस्वस्थ रहने या मृत हो जाने पर उसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर क्यों नहीं लेते
!तब वो जिस क़ुदरत नेचर समय भाग्य आदि को कोसते देखे जाते हैं रोगी के
स्वस्थ होने का श्रेय भी क़ुदरत नेचर समय भाग्य आदि को ही क्यों नहीं देते
हैं ?
बाबा रामदेव से हमारा पाँचवाँ प्रश्न - जब जिसका अच्छा बुरा आदि जैसा भी समय होता है तब उसके ऊपर अच्छा बुरा आदि वैसा ही चिकित्सा अर्थात औषधियों का असर होता है कई बार अच्छी से अच्छी चिकित्सा होने के बाद भी समय के प्रभाव से रोगी मरते जाते हैं इसलिए समय महत्त्व औषधीय चिकित्सा से अधिक क्यों नहीं माना जाना चाहिए !
बाबा रामदेव से हमारा छठा प्रश्न - जिसका समय बुरा होता है उसे कोई भी चिकित्सा व्यवस्था स्वस्थ नहीं कर सकती फिर बाबा रामदेव जैसे कसरती लोगों के हाथ पैर हिलाने डुलाने उलटे सीधे खड़े होने उछलने कूदने पेट फुलाने पिचकाने से कोई कैसे और कितना स्वस्थ हो जाएगा ?
बाबा रामदेव से हमारा सातवाँ प्रश्न -
बाबा राम देव जब योग के नाम पर कसरतें बेचा करते थे तब कसरतों की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रशंसा में विज्ञापन करने के लिए वे सैकड़ों बड़े बड़े भयानक रोगों की लंबी लंबी लिस्टें रटकर समाज को सुनाया करते थे और बताया करते थे कि ये सब ठीक करना है तो कसरत कीजिए !लोगों ने इनकी बातों पर भरोसा कर लिया किंतु फिर भी जब स्वस्थ नहीं हुए तो लोग कानाफूसी करने लगे !चतुर बाबा जी समझ गए कि इससे तो पोल खुल सकती है तो उन्होंने दवाएँ बेचनी शुरू कर दीं बोले रोग इनसे ठीक होंगे किंतु जब उनसे भी नहीं ठीक हुए तब बाबा जी ने फिर एक पैंतरा बदला और आटा दाल चावल सरसों का तेल जैसा खाने पीने का सामान बेचने लगे और कहा कि शुद्ध खाओगे तो रोग होंगे ही नहीं !यदि इससे भी जनता के रोग दूर नहीं हुए तो बाबा जी पचा पचाया (गोबर ) ही खाने की सलाह दोगे क्या ?
भोजन व्यायाम और औषधियाँ आदि इन तीन बातों में हमारा यदि खान पान आदि भोजन शुद्ध है तो रोग होगा ही नहीं !यदि रोग होगा भी तो व्यायाम(योग) से ठीक हो जाएगा !और यदि इन दोनों से न ठीक हो तब औषधियों की बारी आती है । ये हम सबको पता है कि हमारे स्वास्थ्य पर मुख्य असर हमारे भोजन का होता है यदि हम शुद्ध भोजन करेंगे तो स्वस्थ रहेंगे !दूसरा असर व्यायाम(योग) का है गरीबों किसानों मजदूरों जैसे परिश्रमी लोगों को इन तथाकथित व्यायामों (योग)की जरूरत ही नहीं पड़ती है जो खाते तो हैं किंतु पचाने के लिए मेहनत नहीं करते उनके हाथ पैर हिलाने डुलाने को कसरतें करनी पड़ती हैं इन्हीं कसरतों को अज्ञान के कारण कुछ कलियुगी लोग योग भी कहने लगे हैं खैर इनसे डरने की जरूरत नहीं है !
औषधियाँ - हमारे अस्वस्थ शरीरों को स्वस्थ करने में औषधियों की बहुत बड़ी भूमिका होती है इसलिए हमारे जीवन में औषधियों का बहुत बड़ा महत्त्व होता है ।
व्यायाम - हमारे शरीरों को मजबूत बनाता है और अस्वस्थ शरीरों को निरोग बनाता है ।
बाबा रामदेव से हमारा पाँचवाँ प्रश्न - जब जिसका अच्छा बुरा आदि जैसा भी समय होता है तब उसके ऊपर अच्छा बुरा आदि वैसा ही चिकित्सा अर्थात औषधियों का असर होता है कई बार अच्छी से अच्छी चिकित्सा होने के बाद भी समय के प्रभाव से रोगी मरते जाते हैं इसलिए समय महत्त्व औषधीय चिकित्सा से अधिक क्यों नहीं माना जाना चाहिए !
बाबा रामदेव से हमारा छठा प्रश्न - जिसका समय बुरा होता है उसे कोई भी चिकित्सा व्यवस्था स्वस्थ नहीं कर सकती फिर बाबा रामदेव जैसे कसरती लोगों के हाथ पैर हिलाने डुलाने उलटे सीधे खड़े होने उछलने कूदने पेट फुलाने पिचकाने से कोई कैसे और कितना स्वस्थ हो जाएगा ?
बाबा रामदेव से हमारा सातवाँ प्रश्न -
बाबा राम देव जब योग के नाम पर कसरतें बेचा करते थे तब कसरतों की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रशंसा में विज्ञापन करने के लिए वे सैकड़ों बड़े बड़े भयानक रोगों की लंबी लंबी लिस्टें रटकर समाज को सुनाया करते थे और बताया करते थे कि ये सब ठीक करना है तो कसरत कीजिए !लोगों ने इनकी बातों पर भरोसा कर लिया किंतु फिर भी जब स्वस्थ नहीं हुए तो लोग कानाफूसी करने लगे !चतुर बाबा जी समझ गए कि इससे तो पोल खुल सकती है तो उन्होंने दवाएँ बेचनी शुरू कर दीं बोले रोग इनसे ठीक होंगे किंतु जब उनसे भी नहीं ठीक हुए तब बाबा जी ने फिर एक पैंतरा बदला और आटा दाल चावल सरसों का तेल जैसा खाने पीने का सामान बेचने लगे और कहा कि शुद्ध खाओगे तो रोग होंगे ही नहीं !यदि इससे भी जनता के रोग दूर नहीं हुए तो बाबा जी पचा पचाया (गोबर ) ही खाने की सलाह दोगे क्या ?
भोजन व्यायाम और औषधियाँ आदि इन तीन बातों में हमारा यदि खान पान आदि भोजन शुद्ध है तो रोग होगा ही नहीं !यदि रोग होगा भी तो व्यायाम(योग) से ठीक हो जाएगा !और यदि इन दोनों से न ठीक हो तब औषधियों की बारी आती है । ये हम सबको पता है कि हमारे स्वास्थ्य पर मुख्य असर हमारे भोजन का होता है यदि हम शुद्ध भोजन करेंगे तो स्वस्थ रहेंगे !दूसरा असर व्यायाम(योग) का है गरीबों किसानों मजदूरों जैसे परिश्रमी लोगों को इन तथाकथित व्यायामों (योग)की जरूरत ही नहीं पड़ती है जो खाते तो हैं किंतु पचाने के लिए मेहनत नहीं करते उनके हाथ पैर हिलाने डुलाने को कसरतें करनी पड़ती हैं इन्हीं कसरतों को अज्ञान के कारण कुछ कलियुगी लोग योग भी कहने लगे हैं खैर इनसे डरने की जरूरत नहीं है !
औषधियाँ - हमारे अस्वस्थ शरीरों को स्वस्थ करने में औषधियों की बहुत बड़ी भूमिका होती है इसलिए हमारे जीवन में औषधियों का बहुत बड़ा महत्त्व होता है ।
व्यायाम - हमारे शरीरों को मजबूत बनाता है और अस्वस्थ शरीरों को निरोग बनाता है ।
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