शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

साधू संतों का वोट माँगना यदि गलत है तो संन्यासियों का व्यापार करना गलत क्यों नहीं है !

      धर्म के आधार पर वोट माँगना यदि गलत है तो धर्म के आधार पर व्यापार करना गलत क्यों नहीं है !साधू संतों के हाथ का दिया हुआ जहर भी लोग हँसते हँसते  पी जाते हैं इतना उन पर विश्वास होता है फिर साधू संतों का वेष बना लेने से यदि उनका व्यापार चल जाए तो कौन बड़ी बात है !बाबाओं के द्वारा किए जा रहे ऐसे विज्ञापनों को सरकार के काम काज की भद्द पीटना नहीं तो क्या कहेंगे !
      जन सेवा संबंधी कार्यों के बहाने समाज से चंदा माँग माँग कर व्यापार शुरू करना घाटा हो जाए तो जनता से भरपाई कर लेना और फायदा हो जाए तो अपनी संपत्ति मानने लगना !अपने व्यापार को चैरिटी बताते बताते अरबों की संपत्ति का अंबार  लगा लेना !अरे ! चैरिटी के कार्यों में भी कमाई होती है क्या ?
     व्यापारी बाबाओं के द्वारा किया जा रहा है सरकारों  के विरुद्ध अक्सर किया जाता है दुष्प्रचार !वो कहते हैं कि मिलावट के सामानों से भरे हैं बाजार !उनके कहने का मतलब होता है कि मिलावट रोकने में फेल हो गई है सरकार !व्यापारी लोग भरोसा करने लायक नहीं हैं ऐसे भ्रम डालकर चला रहे हैं बाबा लोग चला रहे हैं अपने अपने कारोबार !
     बाबाओं के ऐसे विज्ञापनों का सीधा संदेश होता है कि व्यापारी ईमानदार न होने के कारण वो और उनका सामान भरोसा करने लायक नहीं है !और सरकार भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम है या मिलावट खोरों को संरक्षण दे रही है ।  
     अब व्यापारियों के सामने सबसे बड़ा संकट ये खड़ा हो गया है कि उन्हें यदि व्यापार करना है तो पहले जाएँ हरिद्वार और वहाँ से बाबा बनकर तब शुरू करें व्यापार या फिर वो व्यापार करना ही बंद कर दें !आखिर व्यापार करने के लिए बाबा बनकर पहाड़ों पर घास फूस लकड़ी कंडे पेड़ पौधे तोड़ते बीनते हुए तपस्या करते हुए वीडियो बनवाकर कर जनता को दिखाना जरूरी क्यों है ?क्या इसका मतलब क्या ये नहीं है कि जो लोग बाबाओं की तरह वेष बनाकर नहीं रहते वे  ईमानदार और भरोसे लायक नहीं हैं !
    इससे तो आध्यात्मिक चरित्रवान साधूसंतों की प्रतिष्ठा ही समाप्त होती चली जाएगी व्यापारियों का मुख्यालय तीर्थों में बनाने का प्रचलन यदि ऐसे ही बढ़ता रहा तो घर गृहस्थी के झंझटों से हैरान परेशान लोग ऊभकर शांति की तलाश में तीर्थों में जाते हैं किंतु यदि  ईमानदारी का ठप्पा  लगवाने के लिए हर बड़ा व्यापारी अपने व्यापार का मुख्य केंद्र तीर्थों में ही बनवा कर वहीं से अपना सारा व्यापार आपरेट करने लगा तो तीर्थों की शांति व्यवस्था के वातावरण का  क्या होगा और कैसा हो जाएगा तीर्थों का वातावरण !
   जो व्यापारी बाबा न बनना चाहें वो ईमानदारी का ठप्पा लगवाने के लिए बाबाओं को कमीशन देकर उन्हीं की कंपनियों के तत्वावधान में अपना वही सामान बेचें   केवल साधू संतों की फोटो लगा लें और उन्हीं के रँगों में रँग जाएँ !क्या ये धर्म के साथ खिलवाड़ नहीं है !
      साधू संतों जैसा वेषधारण करके झूठ बोलना पाप क्या महा पाप है किंतु यदि आप व्यापार करेंगे तो व्यापारिक झूठ तो बोलना ही पड़ता है उतना ही व्यापारी लोग भी कर रहे हैं किंतु वो बाबा नहीं हैं इसलिए मिलावट खोर हैं और यदि बाबा बनकर वैसा करते तो ईमानदार होते !
    एक ओर स्वदेशी का उन्माद भड़काने वाले बाबा लोग खुद विदेशी मशीनों और विदेशी पद्धतियों से दवाएँ बनावें इसे कैसे ठीक मान लिया जाए !स्वदेशी पद्धति तो हाथ से दवाएँ बनाने की थी मशीनों से तो नहीं बनाई जाती थीं पहले दवाएँ और न ही मशीनों से वैसी दवाएँ बनाई ही जा सकती हैं जो शास्त्रों में विधि बताई गई है फिर भी यदि किसी को ऐसा लगता हो तो उसे शास्त्रार्थ की खुली चुनौती है वो शास्त्र विधि घोषित करे और प्रमाणित करे अपनी पद्धति को या खुली बहस का सामना करे !
      यदि मशीनों से ही दवाएँ बनानी थीं तो मशीनें विदेशी क्यों ?या फिर विदेशी विरोधी आंदोलन का ड्रामा क्यों ?दोनों चीजें एक साथ कैसे चल सकती हैं !
      चोरी छिनारा या अन्य गलत कामों में पकड़े जाने वाले बाबा लोग भी तो ऐसे ही अपने समर्थन में तर्क गढ़ते हैं और अपने पाप को पवित्र सिद्ध करने लगते हैं भगवान् की बराबरी करने लगते हैं आज देश के कुछ बड़े बाबा लोग जेलों में तपस्या कर रहे हैं वो भगवन को अपना यार बताते सुने जाते थे कई महिलाओं से रमन  कई के बच्चे पैदा करते रहे कई नशे का कारोबार चलाते रहे और सबने समाज को प्रभावित किया सबके पास भारी भारी भीड़ें इकट्ठी होती रहीं किंतु जब वो पकड़े गए तब चरित्रवान विरक्त साधू संतों के साथ साथ सभी प्रकार के धर्म और धार्मिक लोग कटघरे में खड़े गए मीडिया पहले उनके विज्ञापन दिखा दिखा कर पैसे कमाता रहा और उनके  पकड़े जाने पर चरित्रवान विरक्त साधू संतों एवं धर्म और धार्मिक लोगों का महीनों तक मजाक उड़ाता रहा !
           आज आप कसरतों को योग बताने लगे तो सारे विश्व को लगने लगा कि ये कसरतें तो हम बहुत पुराने समय से करते हैं तो आपने कह दिया हाँ ये सच है फिर योग सभी का है !कल को वो पेटेंट करने लगेंगे योग को भी सीधे कह देंगे कि योग की खोज हमने ही की है कौन रोकेगा उन्हें !इसलिए कसरतों को योग बताना जरूरी क्यों लगा ?अरे योग लोग योगाभ्यास करते थे और नटनागर लोग कसरतें करके खेल दिखाया करते थे !दोनों अपनी अपनी जगह ठीक थे किंतु आज योगी और योग को लुप्त करके नट नागरों को स्थापित करने में कौन सी बुद्धिमानी है ।
        ऐसे विज्ञापनों का मतलब है कि समाज की चिंता बाबाओं को तो है किंतु सरकार को नहीं है ! इसका सीधा सा अर्थ है कि बाजार में बिकने वाले अधिकाँश सामानों में तो मिलावट है किंतु केवल बाबा जी वाले सामान शुद्ध हैं । सरकार का काम है मिलावट रोकना फिर भी यदि मिलावट रोकने में सरकार फेल है इसका सीधा सा मतलब है कि सरकार भ्रष्टाचार नहीं रोक पा रही है इसीलिए बाजार के सामानों में मिलावट है और बाबा जी वालों में नहीं है ,अर्थात सरकार भ्रष्टाचार रोक पाने में नाकाम है इसीलिए तो मिलावट है !इसे सरकार की भद्द पीटना नहीं तो क्या कहेंगे ?किंतु ये मीठा जहर सरकार को समझ में कब आएगा !
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