- मनोरोग -
- सुश्रुत संहिता में शारीरिक रोगों के लिए तो औषधियाँ बताई गई हैं किंतु मनोरोग के लिए किसी औषधि का वर्णन न करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए शब्द स्पर्श रूप रस गंध आदि का सुखकारी प्रयोग करना चाहिए !
- यथा - "मानसानां तु शब्दादिरिष्टो वर्गः सुखावहः |'
- कुल मिलाकर विश्व की किसी भी चिकित्सा पद्धति में मनोरोगियों को स्वस्थ करने की कोई दवा नहीं होती नींद लाने के लिए दी जाने वाली औषधियाँ मनोरोग की दवा नहीं अपितु नशा हैं उन्हें मनोरोग की दवा नहीं कहा जा सकता है ! अब बात आती है काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा की !
- काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा -
- काउंसलिंग के नाम पर चिकित्सावैज्ञानिक मनोरोगी को जो बातें समझाते हैं उनमें उस मनोरोगी के लिए कुछ नया और कुछ अलग से नहीं होता है क्योंकि स्वभावों के अध्ययन के लिए उनके पास कोई ठोस आधार नहीं हैं और बिना उनके किसी को कैसे समझा सकते हैं आप !कुछ मनोरोगियों पर किए गए कुछ अनुभव कुछ अन्य लोगों पर अप्लाई किए जा रहे होते हैं किंतु ये विधा कारगर है ही नहीं हर किसी की परिस्थिति मनस्थिति सहनशीलता स्वभाव साधन और समस्याएँ आदि अलग अलग होती हैं उसी हिसाब से स्वभावों के अध्ययन की भी कोई तो प्रक्रिया होनी चाहिए !इस विषय में मैं ऐसे कुछ समझदार लोगों से मिला भी उनसे चर्चा की किंतु वे कहने को तो मनोचिकित्सक थे किंतु मनोचिकित्सा के विषय में बिलकुल कोरे और खोखले थे !मैंने उनसे पूछा कि मन के आप चिकित्सक है तो मन होता क्या है तो उन्होंने कई बार हमें जो समझाया उसमें मन बुद्धि आत्मा विवेक आदि सबका घालमेल था किंतु मनोचिकित्सा की ये प्रक्रिया ठीक है ही नहीं क्योंकि इसके लिए हमें मन बुद्धि आत्मा आदि को अलग अलग समझना पड़ेगा और चोट कहाँ है ये खोजना होगा तब वहाँ लगाया जा सकता है प्रेरक विचारों का मलहम ! इसलिए ऐसी आधुनिक काउंसलिंग से केवल सहारा दे दे कर मनोरोगी का कुछ समय तो पास किया जा सकता है बस इससे ज्यादा कुछ नहीं !
'समयशास्त्र' (ज्योतिष) -के द्वारा मनोचिकित्सा के क्षेत्र में किसी मनोरोगी का विश्लेषण करने के लिए उसके जन्म समय तारीख़ महीना वर्ष आदि पर रिसर्च कर के सबसे पहले उस मनोरोगी का
स्थाई स्वभाव खोजना होता है इसके बाद उसी से उसका वर्तमान स्वाभाव निकालना
होता है फिर देखना होता है कि रोगी का दिग्गज फँसा कहाँ है ये सारी चीजें
समय शास्त्रीय स्वभाव विज्ञान के आधार पर तैयार करके इसके बाद मनोरोगी से
करनी होती है बात और उससे पूछना कम और बिना बताना ज्यादा होता है उसमें
उसे बताना पड़ता है कि आप अमुक वर्ष के अमुक महीने से इस इस प्रकार की
समस्या से जूझ रहे हैं उसमें कितनी गलती आपकी है और कितनी किसी और की ये सब
अपनी आपसे बताना होता है उसके द्वारा दिया गया डिटेल यदि सही है तो ये
प्रायः साठ से सत्तर प्रतिशत तक सही निकल आता है जो रोगी और उसके घरवालों
ने बताया नहीं होता है इस कारण मनोरोगी को इन बातों पर भरोसा होने लगता है
इसलिए उसका मन मानने को तैयार हो जाता है फिर वो जानना चाहता है कि ये तनाव
घटेगा कब और घटेगा या नहीं !ऐसे समय इसी विद्या से इसका उत्तर खोजना होता
है यदि घटने लायक संभावना निकट भविष्य में है तब तो वो बता दी जाती है और
विश्वास दिलाने के लिए रोगी से कह दिया जाता है कि मैं आपके बीते हुए जीवन
से अनजान था मेरा बताया हुआ आपका पास्ट जितना सही है उतने प्रतिशत फ्यूचर
भी सही निकलेगा !इस बात से रोगी को बड़ा भरोसा मिल जाता है और वह इसी सहारे
बताया हुआ समय बिता लेता है !
दूसरी बात इससे विपरीत अर्थात निकट भविष्य में या भविष्य में जैसा वो
चाहता है वैसा होने की सम्भावना नहीं लगती है तो भी उसका पास्ट बताकर पहले
तो विश्वास में ले लिया जाता है फिर फ्यूचर के विषय में न बताकर अपितु
घुमा फिरा कर कुछ ऐसा समझा दिया जाता है जिससे तनाव घटे और वो धीरे धीरे
भूले इसके लिए कईबार उसके साथ बैठना होता है । आदि
इस प्रकार से मनोचिकित्सा के विषय में भी 'समयशास्त्र' (ज्योतिष)की बड़ी भूमिका है
मनोरोगियों में पनप जाते हैं कई प्रकार के शारीरिक रोग -
मनोरोग
के कारण शारीरिक बीमारियाँ भी पैदा होने लगती हैं उसी के साथ एक एक पर एक
जुड़ती चली जाती हैं धीरे धीरे मनोरोग तो पीछे पड़ बाक़ी शारीरिक बीमारियों
का समूह बन जाता है मनोरोगी !ऐसे रोगों का इलाज शारीरिक चिकित्सा
पद्धति की दृष्टि से अत्यंत कठिन एवं काम चलाऊ होता है ऐसे लोगों को
समयशास्त्र (ज्योतिष)की पद्धति से कुछ समय तक यदि लगातार काउंसलिंग दी जाए और उसके बाद
चिकित्सा की जाए तो घट सकती हैं जीवन से जुडी अनेकों बीमारियाँ !
- 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना अधूरा है चिकित्साशास्त्र !
ऐसे लोगों पर कोई भी इलाज बहुत अधिक कारगर नहीं होते हैं इलाज की
प्रक्रिया तो ऐसी है कि आप गैस बताएँगे तो वो गैस की गोली दे देंगे ,दाँत
दर्द बताएँगे तो दाँत दर्द की गोली दे देंगे किंतु ये पर्याप्त इलाज नहीं
है धीरे धीरे वो भी यही बताने लगेंगे कि सलाद खाओ,पानी अधिक पियो ,सैर
करो,कहीं घूमने फिरने जाया करो मौज मस्ती करो आदि आदि ! इससे आंशिक लाभ
तो होता है किंतु वो स्थाई नहीं होता और बहुत अधिक कारगर नहीं रहता है थोड़े
दिन बाद फिर वैसे ही हो जाते हैं क्योंकि ये सब उपाय बहुत अधिक कारगर नहीं
रहते !
चिकित्सा करते समय ऐसे लोगों का मानसिक तनाव सर्व प्रथम कम करना चाहिए
जब मानसिक तनाव घटकर चिंतन सामान्य हो जाए!ऐसे लोगों की चिकित्सा में
धीरे धीरे कुछ महीना या अधिक दिक्कत हुई तो वर्ष भी लग सकते हैं ठीक ढंग
से सविधि चिकित्सा करने में समय तो लगता है किंतु धीरे धीरे सब कुछ नार्मल
होता चला जाता है !कंडीशन पर डिपेंड करता है ! सबसे पहले तो हमें ऐसे लोगों
के विषय में गंभीर रिसर्च इस बात के लिए करनी होती है कि ये परिस्थिति
पैदा क्यों हुई !दिमागी तनाव बढ़ा क्यों और कब से बढ़ा तथा रहेगा कब तक और
उसे ठीक करने के लिए क्या कुछ उपाय किए जा सकते हैं !
दूसरी स्टेज वो आती है जब पता करना होता है कि इतने दिनों तक तनाव बना
रहने से सम्बंधित व्यक्ति के शरीर में किस प्रकार से कितना नुक्सान हुआ और
उसे रिकवर कैसे किया जाए !ये खान पान औषधि टॉनिक आदि चीजों के साथ साथ
उचित आहार व्यवहार से उचित समय से उचित मात्रा में देना होता है । इन सबके
साथ साथ अपने विरुद्ध सोचने की आदत ऐसे लोगों की इतनी जल्दी नहीं छूटती है
ये डर हमेंशा बना रहता है कि ये कहीं पुरानी स्थिति में फिर न लौट जाएँ
इसलिए ऐसे लोगों समय समय पर आवश्यकतानुशार उचित काउंसेलिंग करनी होती है ।योगासन करने से लाभ - ऐसे में ये निरुत्साही लोग योगासन भी नहीं कर पाते करें तो थोड़ा डैमेज कंट्रोल हो सकता है किन्तु अधिक नहीं कुछ पाखंडी लोग ऐसे सपने दिखाते हैं कि योगासनों से मनोरोग दूर हो जाएंगे ये सच नहीं हैं इसमें एकमात्र भूमिका निभा सकता है तो समयशास्त्र (ज्योतिष)इसकी पद्धति ही मनोरोग में सबसे अधिक प्रभावी है ।
मानसिक तनाव और बढ़ते मनोरोगों को नियंत्रित करने में सक्षम है 'समयविज्ञान " !
मानसिक शारीरिक आदि रोगों से बचाव के लिए बहुत बड़ा विकल्प है समय विज्ञान ।
मैंने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से "तुलसी साहित्य और ज्योतिष" सब्जेक्ट
से Ph.D.की है!मैंने मानसिक तनाव से शांति के विषय में योग आयुर्वेद आधुनिक
चिकित्सा पद्धति से लेकर ज्योतिष शास्त्र तक गहन शोध किया है !इन सबके
अनुसंधान के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मनोरोग हों या
सामान्य रोग या अन्य प्रकार के सुख दुःख उनके घटने बढ़ने में समयविज्ञान की
बहुत बड़ी भूमिका होती है।अपने इस चिकित्सकीय रिसर्च वर्क के आधार पर मैं
विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि चिकित्सा की अन्य पद्धतियों के साथ साथ
चिकित्सा के क्षेत्र में समयवैज्ञानिकी रिसर्च को भी प्रोत्साहित किया जाना
चाहिए । समयविज्ञान के बिना चिकित्सा शास्त्र अपूर्ण है ऐसा महर्षि चरक
,सुश्रुत आदि ने चिकित्सा विज्ञान में अनेकों स्थलों पर स्वीकार किया है
जिसका वर्णन सुश्रुत और चरक संहिता आदि ग्रंथों में मिलता है ।
समय विज्ञान के द्वारा जीवन के
सभी क्षेत्रों की सीमाएँ समझकर उसी दायरे में अपना जीवन व्यवस्थित करके
समाप्त की जा सकती है जीवन की अनिश्चितता !
समय विज्ञान के महत्त्व को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जिस रोगी का
समय ही प्रतिकूल अर्थात बुरा हो उसे बड़े से बड़े बैद्य डॉक्टर महँगी से
महँगी दवाएँ देकर भी बचा नहीं सकते !समय प्रभावी होता है दवाएँ नहीं
!अच्छे अच्छे चिकित्सकों को कहते सुना जाता है कि समय ही ऐसा आ गया था
!इसी प्रकार से जिसका समय अनुकूल अर्थात अच्छा हो उन्हें समय स्वयं ठीक कर
लेता है समय सबसे बड़ी औषधि है । इसीकारण तो जंगलों में रहने वाले लोग भी
बीमार तो होते ही होंगे जंगली पशु आपस में लड़ झगड़ कर एक दूसरे को घायल भी
कर देते होंगे किंतु बिना किसी चिकित्सा के ही वे धीरे धीरे समय के साथ
स्वतः स्वस्थ होते देखे जाते हैं और जिनका समय साथ न दे वे राजमहलों में
भी बचाए नहीं जा पाते !इसलिए समय के महत्त्व को स्वीकार करते हुए समय
विज्ञान संबंधी रिसर्च कार्यों को सरकार के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना
चाहिए !
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