आप भी
भूकंप क्यों ?
आधुनिक वैज्ञानिकों का मनना है कि भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं।भूपटल में होने वाली आकस्मिक कंपन या गति जिसकी उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से भूतल के नीचे (भूगर्भ में) होती है। भूगर्भिक हलचलों के कारण भूपटल तथा उसकी शैलों में संपीडन एवं तनाव होने से शैलों में उथल-पुथल होती है जिससे भूकंप उत्पन्न होते हैं। विवर्तनिक क्रिया, ज्वालामुखी क्रिया, समस्थितिक समायोजन तथा वितलीय कारणों से भूकंप की उत्पत्ति होती है। ज्वालामुखी क्रिया द्वारा भूगर्भ से तप्त मैग्मा, जल गैसें आदि ऊपर निकलने के लिए शैलों पर तेजी से धक्के लगाते हैं तथा दबाव डालते हैं जिसके कारण भूकंप उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार भू-आकृतिक प्रक्रमों द्वारा भूपटल की ऊपरी शैल परतों में समस्थितिक संतुलन बिगड़ जाने पर क्षणिक असंतुलन उत्पन्न हो जाता है जिसे दूर करने के लिए समस्थितिक समायोजन होता है जिससे शैल परतों में आकस्मिक हलचल तथा भूकंप उत्पन्न होते हैं।पृथ्वी में होनेवाले इन कंपनों का स्वरूप तालाब में फेंके गए एक कंकड़ से उत्पन्न होने वाली लहरों की भाँति होता है।बड़े बड़े भूकंपों के कुछ पहले, या साथ साथ, भूगर्भ से ध्वनि उत्पन्न होती है। यह ध्वनि भीषण गड़गड़ाहट के सदृश होती है।
वैदिकविज्ञान का मानना है कि "यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे " अर्थात जो पिंड है वही ब्रह्मांड है । शरीर की संरचना की तरह ही ब्रह्मांड की संरचना हुई है इसलिए शरीर और ब्रह्मांड के अध्ययन की प्रक्रिया लगभग एक है !भूकंपों के कंपन का अध्ययन करते समय भी हमें ब्रह्माण्ड विज्ञान को शरीरविज्ञान की दृष्टि से ही समझना होगा !जैसे शरीर के अंदर कितनी भी गैस बन जाए वो बाहर निकले या न निकले उस गैस के कारण शरीर में बड़ी बड़ी बीमारियाँ हो सकती हैं यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है किंतु कभी भी उस गैस के कारण किसी को काँपते हुए नहीं देखा जाता है !इस दृष्टि से शरीर के अंदर भरी हुई गैस यदि शरीर में कंपन नहीं पैदा कर सकती है तो धरती के अंदर भरी गैस धरती में कंपन कैसे पैदा कर सकती है !के अंदर भरी गैस किंतु शरीर के अंदर भरी हुई उस गैस के कारण उस गैस
को की एक जैसेजो प्रक्रिया शरीर की है वही ब्रह्मांड की है भूकंप प्रकरण में समझ जाना चाहिए
किसी भी वस्तु के काँपने का कारण केवल उसके अंदर ही नहीं खोजा जाना चाहिए अपितु बाहरी हवाएँ भी होती हैं ।जैसे काँपते हुए व्यक्ति के काँपने का कारण जानने के लिए उसकी चिकित्सकीय जाँच कितनी भी कैसी भी क्यों न करा ली जाए किंतु उन जाँच रिपोर्टों से उस व्यक्ति के काँपने का कारण नहीं मालूम हो सकता है ठीक इसी प्रकार से धरती के काँपने का कारण भी केवल धरती के अंदर की प्लेटों और गैसों खोजा जाना संपूर्ण रूप से ठीक नहीं है मेरे कहने का अभिप्राय भूकंपन के जिम्मेदार कारण धरती के बाहर भी खोजे जाने चाहिए । बंधुओ ! भूकंप का मतलब पृथ्वी का कंपन तो है किंतु यह आवश्यक नहीं है कि भूकंप आने के कारण धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों में ही विद्यमान हों और बाहरी कारण भी हो सकते हैं शर्दी की ऋतु में किसी व्यक्ति को बाहरी ठंडी ठंडी हवाएँ लगती हैं वो काँपने लगता है !वो कपड़े पहने कंबल रजाई ओढ़े आग सेंके उसके द्वारा उस ठंड को कम किया जा सकता है !वो कंपन उसके बाद धीरे धीरे स्वतः समाप्त होता चला जाएगा
ऐसे प्रकरणों में कंपन का कारण भी शरीर के बाहर है और निवारण भी शरीर के बाहर है ऐसे कंपनों के कारणों और निवारणों के रहस्य को समझे बिना किसी के कंपन के कारणों को खोजने के लिए उसके किडनी लीवर और हार्ट जैसी चीजों को दोषी ठहरा देना कितना तर्क संगत होगा !
तो प्राचीन विज्ञान के अनुशार उनका अध्ययन भी किया जाना चाहिए अन्यथा वैदिकवैज्ञानिक होने की हैसियत से मैं कह सकता हूँ कि संपूर्ण सच्चाई इसके बिना सामने ला पाना कठिन ही नहीं असंभव भी हो सकता है ।
भूकंप शब्द की व्याख्या -
आधुनिक वैज्ञानिकों का मनना है कि भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं।भूपटल में होने वाली आकस्मिक कंपन या गति जिसकी उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से भूतल के नीचे (भूगर्भ में) होती है। भूगर्भिक हलचलों के कारण भूपटल तथा उसकी शैलों में संपीडन एवं तनाव होने से शैलों में उथल-पुथल होती है जिससे भूकंप उत्पन्न होते हैं। विवर्तनिक क्रिया, ज्वालामुखी क्रिया, समस्थितिक समायोजन तथा वितलीय कारणों से भूकंप की उत्पत्ति होती है। ज्वालामुखी क्रिया द्वारा भूगर्भ से तप्त मैग्मा, जल गैसें आदि ऊपर निकलने के लिए शैलों पर तेजी से धक्के लगाते हैं तथा दबाव डालते हैं जिसके कारण भूकंप उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार भू-आकृतिक प्रक्रमों द्वारा भूपटल की ऊपरी शैल परतों में समस्थितिक संतुलन बिगड़ जाने पर क्षणिक असंतुलन उत्पन्न हो जाता है जिसे दूर करने के लिए समस्थितिक समायोजन होता है जिससे शैल परतों में आकस्मिक हलचल तथा भूकंप उत्पन्न होते हैं।पृथ्वी में होनेवाले इन कंपनों का स्वरूप तालाब में फेंके गए एक कंकड़ से उत्पन्न होने वाली लहरों की भाँति होता है।बड़े बड़े भूकंपों के कुछ पहले, या साथ साथ, भूगर्भ से ध्वनि उत्पन्न होती है। यह ध्वनि भीषण गड़गड़ाहट के सदृश होती है।
वैदिकविज्ञान का मानना है कि "यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे " अर्थात जो पिंड है वही ब्रह्मांड है । शरीर की संरचना की तरह ही ब्रह्मांड की संरचना हुई है इसलिए शरीर और ब्रह्मांड के अध्ययन की प्रक्रिया लगभग एक है !भूकंपों के कंपन का अध्ययन करते समय भी हमें ब्रह्माण्ड विज्ञान को शरीरविज्ञान की दृष्टि से ही समझना होगा !जैसे शरीर के अंदर कितनी भी गैस बन जाए वो बाहर निकले या न निकले उस गैस के कारण शरीर में बड़ी बड़ी बीमारियाँ हो सकती हैं यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है किंतु कभी भी उस गैस के कारण किसी को काँपते हुए नहीं देखा जाता है !इस दृष्टि से शरीर के अंदर भरी हुई गैस यदि शरीर में कंपन नहीं पैदा कर सकती है तो धरती के अंदर भरी गैस धरती में कंपन कैसे पैदा कर सकती है !के अंदर भरी गैस किंतु शरीर के अंदर भरी हुई उस गैस के कारण उस गैस
को की एक जैसेजो प्रक्रिया शरीर की है वही ब्रह्मांड की है भूकंप प्रकरण में समझ जाना चाहिए
किसी भी वस्तु के काँपने का कारण केवल उसके अंदर ही नहीं खोजा जाना चाहिए अपितु बाहरी हवाएँ भी होती हैं ।जैसे काँपते हुए व्यक्ति के काँपने का कारण जानने के लिए उसकी चिकित्सकीय जाँच कितनी भी कैसी भी क्यों न करा ली जाए किंतु उन जाँच रिपोर्टों से उस व्यक्ति के काँपने का कारण नहीं मालूम हो सकता है ठीक इसी प्रकार से धरती के काँपने का कारण भी केवल धरती के अंदर की प्लेटों और गैसों खोजा जाना संपूर्ण रूप से ठीक नहीं है मेरे कहने का अभिप्राय भूकंपन के जिम्मेदार कारण धरती के बाहर भी खोजे जाने चाहिए । बंधुओ ! भूकंप का मतलब पृथ्वी का कंपन तो है किंतु यह आवश्यक नहीं है कि भूकंप आने के कारण धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों में ही विद्यमान हों और बाहरी कारण भी हो सकते हैं शर्दी की ऋतु में किसी व्यक्ति को बाहरी ठंडी ठंडी हवाएँ लगती हैं वो काँपने लगता है !वो कपड़े पहने कंबल रजाई ओढ़े आग सेंके उसके द्वारा उस ठंड को कम किया जा सकता है !वो कंपन उसके बाद धीरे धीरे स्वतः समाप्त होता चला जाएगा
ऐसे प्रकरणों में कंपन का कारण भी शरीर के बाहर है और निवारण भी शरीर के बाहर है ऐसे कंपनों के कारणों और निवारणों के रहस्य को समझे बिना किसी के कंपन के कारणों को खोजने के लिए उसके किडनी लीवर और हार्ट जैसी चीजों को दोषी ठहरा देना कितना तर्क संगत होगा !
तो प्राचीन विज्ञान के अनुशार उनका अध्ययन भी किया जाना चाहिए अन्यथा वैदिकवैज्ञानिक होने की हैसियत से मैं कह सकता हूँ कि संपूर्ण सच्चाई इसके बिना सामने ला पाना कठिन ही नहीं असंभव भी हो सकता है ।
भूकंप शब्द की व्याख्या -
भूकंप का अर्थ है भू + कंप अर्थात पृथ्वी का कंपन,इसमें धरती काँपती तो है किंतु हिलती नहीं है !इस अर्थ से मिलते जुलते तीन शब्द होते हैं पहला काँपना दूसरा फड़कना और तीसरा हिलना तीनों में सूक्ष्म सा अंतर होता है हिलने में सर्वांग एक ही दिशा में साथ साथ चलता है !काँपने में कोई कहीं जाता आता नहीं हैअपितु एक ही जगह पर सतहें परस्पर विपरीत दिशा में सूक्ष्म गमन करती हैं जैसे कुछ पकाने के लिए आग पर गया हो उसे ढकने के लिए किसी अन्य सहारे से कई छोटी छोटी से तश्तरियाँ एक दूसरे के सहारे अटका कर रख दी गई हों और नीचे आग जला दी जाए तो भाफ बनेगी ही और वो निकलेगी भी उसे जहाँ जहाँ से जगह मिलेगी वहाँ वहाँ से निकलेगी उससे वे तश्तरियाँ हिलेंगी किंतु सभी एक साथ एक जैसी दिशा में ही नहीं हिलेंगी अपितु उन अलग अलग तश्तरियों का गमन एक दूसरे के विपरीत भी हो सकता है तश्तरियों की ऐसी परिस्थिति को ही कंपन कहते हैं जब सतहें शीघ्र गति से साथ साथ हिलें तो किंतु सभी सतहों का हिलना एक जैसा न हो एक दिशा में न हो और अत्यंत सूक्ष्म हो इसे ही कंपन कहते हैं हिलने और काँपने में बड़ा अंतर यह होता है कि हिलने में न तो गति इतनी सूक्ष्म होती है और न ही सतहें परस्पर विरुद्ध गति ही करती हैं जबकि काँपने में ऐसा ही होता है यही कंपन जब सर्वांग में न होकर किसी किसी अंग या स्थल पर होता है उसे उस अंग का फड़कना या लघुकंपन कहते हैं । जैसे अंगों के फड़कने के शुभ और अशुभ लक्षण होते हैं अर्थात जिसके शरीर का जो अंग जब जैसे फड़कता है उसके अनुशार वो भविष्य में घटने वाली किसी शुभ या अशुभ घटना का संकेत दे रहा होता है ।
ऐसे ही भूकंपों के आने का मतलब होता है धरती के किसी एक हिस्से में कंपन होने लगना !जैसे शरीर का जो अंग काँपता या फड़कता है तो उसके कुछ शुभ या अशुभ लक्षण होते हैं धरती का जो अंग जब जैसे और जितना फड़कता है उसके भी शुभ और अशुभ लक्षण होते हैं । शरीर के अंगों के फड़कने से जो फल शरीर और शरीर से संबंधित लोगों के सुख दुःख से जुड़े हुए घटित होते हैं उसी प्रकार से धरती के फड़कने के शुभ और अशुभ संकेत धरती और धरती से संबंधित सभी वस्तुओं बनस्पतियों जीवों के सुख दुःख से जुड़े संकेत दे रहे होते हैं ।
भूकंप को ही कुछ लोग धरती का हिलना भी कहते हैं किन्तु ये ठीक नहीं है क्योंकि काँपने और हिलने में सूक्ष्म सा अंतर होता ही है कंपन और हिलने के विषय में हमें समझना चाहिए कि हिलने और हिलाने के बहुत सारे कारण हो सकते हैं किसी दूसरे की सहायता से भी कोई चीज हिलाई जा सकती है । इसी प्रकार से किसी हिलते हुए व्यक्ति वस्तु को शक्ति पूर्वक रोका भी जा सकता है किंतु कभी भी किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान आदि में कोई कंपन न तो पैदा किया जा सकता है और न ही उसे रोका जा सकता है क्योंकि काँपने वाले किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान आदि के कंपन का कारण वह स्वयं न होकर कोई दूसरा होता है उसके काँपने के कारण उसके अंदर या उसके आस पास प्रायः नहीं होते अपितु बाहरी होते हैं |
जैसे शर्दी से ठिठुरता व्यक्ति ठंडी हवा लगने से काँपने लगता है किंतु जैसे मेडिकल जाँच करने पर उस व्यक्ति के काँपने का कारण पता लगा पाना कठिन होता है ठीक इसी प्रकार से प्रत्येक भूकंप के कारण केवल धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों में ही विद्यमान नहीं मने जाने चाहिए अपितु बाह्य कारणों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए -
जैसे शर्दी से ठिठुरता व्यक्ति ठंडी हवा लगने से काँपने लगता है किंतु जैसे मेडिकल जाँच करने पर उस व्यक्ति के काँपने का कारण पता लगा पाना कठिन होता है ठीक इसी प्रकार से प्रत्येक भूकंप के कारण केवल धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों में ही विद्यमान नहीं मने जाने चाहिए अपितु बाह्य कारणों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए -
बंधुओ ! कंपन शर्दी से होता है गर्मी से होता है वायु से होता है डर से हो
सकता है । जैसे - समस्त जीवों में देखा जाता है कि जब उन्हें ज्वर होता है तो कंपन होता है सर्दी लगने से कंपन होता है सिंह आदि किसी से भी डर लगने से कंपन होता है ,या घबड़ाहट में कम्पन होता है या वातविकृति से कंपन होता है और गर्मी से भी कंपन होता है !
शरीरों में प्रकट होकर दिखने वाले ऐसे सभी प्रकार के कंपनों के कारण चूँकि पराश्रित और शरीरों के बाहर से आकर शरीरों में अचानक प्रविष्ट हुए होते हैं इसलिए कब कौन किसके शरीर में प्रविष्ट होकर कंपन पैदा करने लगें इसका पूर्वानुमान लगा पाना कठिन ही नहीं अपितु लगभग असंभव भी होता है !विशेष प्रयास करने पर ऐसा कोई पूर्वानुमान लगाने में यदि सफलता मिली भी तो कुछ मिनट कुछ घंटे पहले ही संभव हो पाएगा !बहुत कम कारण ऐसे होंगे जिनमें कुछ दिन पहले पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाए !
" यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे " के सिद्धान्त से सारा ब्रह्माण्ड ही एक शरीर है और पृथ्वी भी एक शरीर की भाँति ही है और हर किसी की अपनी अपनी आयु होती है हर किसी में गुण दोषों के आधार पर इनको भी एक शरीर मानकर इसी दृष्टि से ही इनका अध्ययन किया जाना चाहिए और इसी दृष्टि से इनके वृद्धि और ह्रास की परिकल्पना की जानी चाहिए !
भूकंप के कारणों का पूर्वानुमान लगाने के लिए भी जीवों के शरीरों में कंपन होने के कारणों की तरह ही अनुसन्धान किया जाना चाहिए !शरीरों में कंपन के कारण जैसे बाहर से आकर शरीरों में अचानक प्रविष्ट हुए होते हैं उसी प्रकार से पृथ्वी आदि में होने वाले कंपन के कारण भी पृथ्वी के बाहर से आकर पृथ्वी में कुछ समय पहले ही प्रविष्ट हुए होते हैं जो भूकंप के स्वरूप में अचानक प्रकट होते देखे जाते हैं इसलिए धरती को कँपाने का कब कौन तत्व प्रमुख कारण बनकर कर कंपन पैदा करने लगेगा इसका पूर्वानुमान लगा पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है ! ऐसे लक्षणों का पूर्वानुमान लगाने के लिए विशेष प्रयास पूर्वक यदि कोई अनुसंधान किया भी जाए और उसमें यदि कोई सफलता मिली भी तो भूकंप और उस पूर्वानुमान के बीच का समय कुछ मिनट या कुछ घंटे या कुछ दिन पहले ही संभव हो पाएगा !ऐसे बहुत कम कारण ऐसे होंगे जिनमें कुछ दिन पहले पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाए !
चूँकि सभी प्रकार के भूकंपों के कारण पृथ्वी के अंदर बहुत पहले से विद्यमान नहीं होते हैं इसलिए पृथ्वी के अंदर की स्थितियों का अध्ययन करके भूकंपों का पूर्वानुमान बहुत पहले नहीं लगाया जा सकता है ।पृथ्वी के बाहरी वातावरण में भूकंपों के वास्तविक कारण भूकंपों के आने के लगभग 75 ,80 दिन पहले से बनने लगते हैं जो सूक्ष्माति सूक्ष्म से प्रारम्भ होकर धीरे धीरे भूकंपों के बृहद स्वरूप में हमें देखने को मिलते हैं । प्रारम्भ में इनका अनुभव एवं अध्ययन कर पाना अत्यंत कठिन लगता है किंतु वही कारण जैसे जैसे भूकंपों की ओर बढ़ने लगते हैं वैसे वैसे सूक्ष्म दृष्टि से देखने ,चिंतन करने और अनुभव करने को मिलने लगते हैं ।
भूकंपों के पूर्वानुमानों के लिए आधार :
भूकंप बनते कैसे हैं ? " यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे " के सिद्धान्त से सारा ब्रह्माण्ड ही एक शरीर है और पृथ्वी भी एक शरीर की भाँति ही है और शरीर तो शरीर है ही ! ऐसी परिस्थिति में शरीर हो या कुछ और सबकुछ पञ्चतत्वों से ही निर्मित होता है पञ्च तत्व का आपसी अनुपात थी बना रहे तो सब कुछ ठीक बना रहता हैं किंतु वो अनुपात जैसे ही बिगड़ता है वैसे ही सब कुछ बिगड़ने लगा है !
पञ्चतत्वों का परिचय -
पंचतत्व ही सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं इनमें पृथ्वी (ठोस), आप (जल, द्रव), आकाश (शून्य), अग्नि (प्लाज़्मा) और वायु (गैस) - ये पञ्चमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है । लोकप्रिय तौर पर इन्हें क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा कहते हैं ।
पंचतत्व को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है। ब्रह्मांड में प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में पंचतत्व की अलग-अलग मात्रा मौजूद है। अपने उद्भव के बाद सभी वस्तुएँ नश्वरता को प्राप्त होकर इनमें ही विलीन हो जाती है। यहाँ तत्व के नाम का अर्थ उनके भौतिक रूप से नहीं है - यानि जल का अर्थ पानी से जुड़ी हर प्रकृति या अग्नि का अर्थ आग से जुड़ी हर प्रकृति नहीं है।
योगी आपके छोड़े हुए सांस (प्रश्वास) की लंबाई के देख कर तत्व की प्रधानता पता लगाने की बात कहते हैं। इस तत्व से आप अपने मनोकायिक (मन और तन) अवस्था का पता लगा सकते हैं। इसके पता लगाने से आप, योग द्वारा, अपने कार्य, मनोदशा आदि पर नियंत्रण रख सकते हैं। यौगिक विचारधारा में इसका प्रयोजन (भविष्य में) अवसरों का सदुपयोग तथा कुप्रभावों से बचने का प्रयास करना होता है। लेकिन ये यौगिक विधि, ज्योतिष विद्या से इस मामले में भिन्न है के ग्रह-नक्षत्रों के बदले यहाँ श्वास-प्रश्वास पर आधारित गणना और पूर्वानुमान लगाया जाता है।
पृथ्वी तत्व - भारीपन का स्वभाव एवं वज़न और एकजुटता का गुण
जल तत्व - शीतल स्वभाव एवं द्रव और संकुचन का गुण
अग्नि तत्व - गरम स्वभाव एवं प्रसारण का गुण
वायुतत्व - अनिश्चित स्वभाव एवं गतिशीलता का गुण
आकाश तत्व -मिश्रित स्वभाव एवं फैलाव का गुण
पृथ्वीतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
तत्व दर्शन की प्रक्रिया से भूकंपों के विषय में यदि समझना हो तो हमें ध्यान रखना चाहिए भूकंपों के निर्माण के लिए जिन तत्वों या गुणों की आवश्यकता होती है वे पृथ्वी में नहीं पाए जाते जैसे पृथ्वी में यदि हल्कापन होता तो अपने हलकेपन के कारण कंपन में सहायक तो हो सकता था किंतु अपने आप से पृथ्वी का काँपना तो तब भी संभव नहीं हो सकता था क्योंकि पृथ्वीतत्व का अपना स्वभाव ही भारीपन का होता है और किसी भारी चीज का अपने आप से काँपना कैसे संभव हो सकता है ।
दूसरी बात पृथ्वी में एकजुटता का गुण होने के कारण ही तो इसीलिए तो धूल के छोटे छोटे कणों का समूह ही तो पृथ्वी के स्वरूप में परिवर्तित हो गया है। इन धूलकणों को आपस में चिपकाने के लिए तो कुछ भी नहीं लगाया जाता है फिर भी ये आपस में चिपके हुए हैं ये पृथ्वी के एकजुटता के गुण के कारण ही तो संभव हो सका है ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ऐसी परिस्थिति में कई बार भूकंपों के कारण जमीन में जो दरारें पड़ जाती हैं वो पृथ्वी के अपने गुण के विपरीत हैं !इसलिए पृथ्वीतत्व के कारण नहीं घटित हो सकते हैं भूकंप !
आकाशतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
आकाशतत्व के मिश्रित स्वभाव एवं फैलाव के गुण के कारण कंपन घटित हो पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है !
जलतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
शीतलता और संकुचन जलतत्व के ये दोनों गुण भूकंप घटित होने में सहायक तो हो सकते हैं मुख्य नहीं !भूकंपनिर्माण होने में जल का शीत गुण तो सहायक है किंतु शीत गुण से केवल संकुचन तो हो सकता है किंतु विस्तारण नहीं जबकि कंपन के लिए संकुचन और विस्तारण दोनों ही गुणों की आवश्यकता होती है । किसी भी वस्तु में होने वाला कंपन केवल जलतत्व के बश की बात नहीं है दूसरा जलतत्व द्रवीभूत होने के कारण बह तो सकता है किंतु केवल बहाव के द्वारा कम्पन नहीं पैदा किया जा सकता है इसलिए कंपन के लिए आवश्यक गति निर्माण कर पाना केवल जलतत्व के बश का नहीं है । इसलिए जलतत्व भूकंप निर्माण में सहायक हो सकता है प्रमुख नहीं ! शीतऋतु में भी ठंड से काँपते हुए लोगों को अक्सर कहते हुए सुना जाता है कि जितनी हवा उतना जाड़ा और जितना जाड़ा उतना कंपन ।
अग्नितत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
केवल गरम स्वभाव एवं प्रसारण गुण के द्वारा कंपन पैदा होना कठिन ही नहीं असंभव भी है इसमें प्रसारण गुण तो है किंतु संकोचन नहीं है जबकि कंपन के लिए प्रसारण और संकोचन दोनों की ही आवश्यकता होती है !इसलिए अग्नितत्व भूकंप निर्माण में सहायक हो सकता है प्रमुख नहीं !
वायुतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
संकुचन और आकुंचन ये दोनों गुण वायु के हैं इसके अलावा किसी भी वस्तु में होने वाली किसी भी प्रकार की गति केवल वायु के द्वारा ही संभव हो सकती है इसलिए वायु के कारण ही सभी वस्तुओं में सभी प्रकार का कंपन घटित हो पाना संभव है यही कारण है कि वायु के द्वारा ही घटित हो सकते हैं सभी प्रकार के भूकंप !
वायु तीन प्रकार की होती है -सामान्य ,गर्म और ठंडी ! इसलिए भूकंप के भी मुख्य तीन प्रकार ही होते हैं वायु के इन्हीं तीन प्रकारों को आयुर्वेद में वात पित्त कफ के रूप में पहचाना जाता है।इस वात पित्त कफ के उचित अनुपात में होने से शरीर निरोग रहता है और इन तीनों का अनुपात बिगड़ते ही शरीर रोगी होने लगता है जैसे शरीर के अंदर विचरण करने वाले वायु के ये तीन मुख्य स्वरूप होते हैं इसी प्रकार से शरीर के बाहर बिचरण करने वाले वायु के भी तीन स्वरूप होते हैं इनका अनुपात बिगड़ने से जनपदोद्ध्वंसक रोग होते हैं इसमें पूरा का पूरा शहर क्षेत्र समाज आदि एक जैसी बीमारियों या महामारियों से पीड़ित हो जाता है ।
यही प्रकुपित एवं असंतुलित वायु जब बहुत बृहद रूप धारण कर लेता है तब प्राकृतिक उपद्रव होते हैं और वही बहुत विशेष बढ़ जाने पर भूकंप जैसी बड़ी घटनाएँ घटती चली जाती हैं।
कंपन(शरीर) - शरीर में वायु प्रेरित मांसपेशियों के अनैच्छिक आंदोलन को ही कम्पन कहते हैं ये भिन्न भिन्न अंगों में कुछ कुछ समय तक लयबद्ध होता है ये मांसपेशियों के संकुचन और विस्तार या विश्राम की प्रक्रिया है जैसे शरीर के एक या अधिक भागों में एक साथ कंपन हो सकता है या होते देखा जाता है कंपन अनैच्छिक आंदोलन है जो शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है ।
भूकंपन - शरीर कंपन की तरह ही वायु से प्रेरित होकर पृथ्वी की सतहों में अनैच्छिक आंदोलन होता है ये पृथ्वी के भिन्न भिन्न स्थानों में कुछ कुछ समय तक लयबद्ध होता है ये पृथ्वी की सतहों के संकुचन और विस्तार या विश्राम की प्रक्रिया है !
कंपनों का कमाल - वैदिक विज्ञान का मानना है कि कंपन चाहें शरीर के किसी स्थान में हो या पृथ्वी के किसी भाग में किंतु सभी प्रकार के कंपन कोई न कोई संकेत या सूचना जरूर दे रहे होते हैं कोई कंपन अकारण या निरर्थक नहीं होता है।कंपन यदि शरीर के किसी भाग में हों तो शरीर और जीवन से संबंधित किसी न किसी शुभ या अशुभ फल के घटित होने की सूचना दे रहे होते हैं । ऐसा ही कंपन यदि पृथ्वी के किसी भी भाग में होता है तो उस क्षेत्र में निकट भविष्य में कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होने वाली होती हैं जिनकी सूचना देने आया या आ रहा होता है भूकंप ! ऐसी भूकंपीय घटनाएँ निकट भविष्य में वर्षा बाढ़ आँधी तूफान शर्दी गर्मी आदि के कम या अधिक होने की सूचनाएँ दे रही होती हैं। भूकंप जैसी घटनाएँ हमें संकेत दे रही होती हैं कि निकट भविष्य में उस क्षेत्र के लोगों ,पशुओं एवं बनस्पतियों के साथ प्रकृति कैसा वर्ताव करने जा रही है ।
कंपन का फल - मानव शरीर के भिन्न भिन्न अंगों में समय समय पर होने वाले कंपनों को अंगों का फड़कना कहते हैं उन अंगों के फड़कने का भी अच्छा बुरा फल होता है अर्थात संबंधित व्यक्ति के जीवन से जुड़ी निकट भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना दे रहे होते हैं !
हमारा शरीर अन्य प्राणियों की तुलना में काफी संवेदनशील होता है। यही कारण है कि भविष्य में होने वाली घटना के प्रति हमारा शरीर पहले ही आशंका व्यक्त कर देता है। शरीर के विभिन्न अंगों का फड़कना भी भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी देने का एक माध्यम है। अंगों के फड़कने से भी शुभ-अशुभ की सूचना मिलती है। प्रत्येक अंग की एक अलग ही विशेषता है
धरती के काँपने के कारण जरूरी नहीं कि धरती के अंदर ही हों धरती के बाहर भी हो सकते हैं -
धरती के काँपने के कारण चक्रवात की तरह होते हैं जो इसी वायुमंडल में बनते और इसी में विलीन हो जाते हैं पृथ्वी तल पर या वायुमंडल में एक चक्रवात की तरह विद्यमान होते हैं और यहीं विलीन हो जाते हैं । भूकंप आने से कुछ सप्ताह पहले से इन लक्षणों के अनुभव होने लगते हैं ।
शरीरों में प्रकट होकर दिखने वाले ऐसे सभी प्रकार के कंपनों के कारण चूँकि पराश्रित और शरीरों के बाहर से आकर शरीरों में अचानक प्रविष्ट हुए होते हैं इसलिए कब कौन किसके शरीर में प्रविष्ट होकर कंपन पैदा करने लगें इसका पूर्वानुमान लगा पाना कठिन ही नहीं अपितु लगभग असंभव भी होता है !विशेष प्रयास करने पर ऐसा कोई पूर्वानुमान लगाने में यदि सफलता मिली भी तो कुछ मिनट कुछ घंटे पहले ही संभव हो पाएगा !बहुत कम कारण ऐसे होंगे जिनमें कुछ दिन पहले पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाए !
" यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे " के सिद्धान्त से सारा ब्रह्माण्ड ही एक शरीर है और पृथ्वी भी एक शरीर की भाँति ही है और हर किसी की अपनी अपनी आयु होती है हर किसी में गुण दोषों के आधार पर इनको भी एक शरीर मानकर इसी दृष्टि से ही इनका अध्ययन किया जाना चाहिए और इसी दृष्टि से इनके वृद्धि और ह्रास की परिकल्पना की जानी चाहिए !
भूकंप के कारणों का पूर्वानुमान लगाने के लिए भी जीवों के शरीरों में कंपन होने के कारणों की तरह ही अनुसन्धान किया जाना चाहिए !शरीरों में कंपन के कारण जैसे बाहर से आकर शरीरों में अचानक प्रविष्ट हुए होते हैं उसी प्रकार से पृथ्वी आदि में होने वाले कंपन के कारण भी पृथ्वी के बाहर से आकर पृथ्वी में कुछ समय पहले ही प्रविष्ट हुए होते हैं जो भूकंप के स्वरूप में अचानक प्रकट होते देखे जाते हैं इसलिए धरती को कँपाने का कब कौन तत्व प्रमुख कारण बनकर कर कंपन पैदा करने लगेगा इसका पूर्वानुमान लगा पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है ! ऐसे लक्षणों का पूर्वानुमान लगाने के लिए विशेष प्रयास पूर्वक यदि कोई अनुसंधान किया भी जाए और उसमें यदि कोई सफलता मिली भी तो भूकंप और उस पूर्वानुमान के बीच का समय कुछ मिनट या कुछ घंटे या कुछ दिन पहले ही संभव हो पाएगा !ऐसे बहुत कम कारण ऐसे होंगे जिनमें कुछ दिन पहले पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाए !
चूँकि सभी प्रकार के भूकंपों के कारण पृथ्वी के अंदर बहुत पहले से विद्यमान नहीं होते हैं इसलिए पृथ्वी के अंदर की स्थितियों का अध्ययन करके भूकंपों का पूर्वानुमान बहुत पहले नहीं लगाया जा सकता है ।पृथ्वी के बाहरी वातावरण में भूकंपों के वास्तविक कारण भूकंपों के आने के लगभग 75 ,80 दिन पहले से बनने लगते हैं जो सूक्ष्माति सूक्ष्म से प्रारम्भ होकर धीरे धीरे भूकंपों के बृहद स्वरूप में हमें देखने को मिलते हैं । प्रारम्भ में इनका अनुभव एवं अध्ययन कर पाना अत्यंत कठिन लगता है किंतु वही कारण जैसे जैसे भूकंपों की ओर बढ़ने लगते हैं वैसे वैसे सूक्ष्म दृष्टि से देखने ,चिंतन करने और अनुभव करने को मिलने लगते हैं ।
भूकंपों के पूर्वानुमानों के लिए आधार :
भूकंप बनते कैसे हैं ? " यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे " के सिद्धान्त से सारा ब्रह्माण्ड ही एक शरीर है और पृथ्वी भी एक शरीर की भाँति ही है और शरीर तो शरीर है ही ! ऐसी परिस्थिति में शरीर हो या कुछ और सबकुछ पञ्चतत्वों से ही निर्मित होता है पञ्च तत्व का आपसी अनुपात थी बना रहे तो सब कुछ ठीक बना रहता हैं किंतु वो अनुपात जैसे ही बिगड़ता है वैसे ही सब कुछ बिगड़ने लगा है !
पञ्चतत्वों का परिचय -
पंचतत्व ही सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं इनमें पृथ्वी (ठोस), आप (जल, द्रव), आकाश (शून्य), अग्नि (प्लाज़्मा) और वायु (गैस) - ये पञ्चमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है । लोकप्रिय तौर पर इन्हें क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा कहते हैं ।
पंचतत्व को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है। ब्रह्मांड में प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में पंचतत्व की अलग-अलग मात्रा मौजूद है। अपने उद्भव के बाद सभी वस्तुएँ नश्वरता को प्राप्त होकर इनमें ही विलीन हो जाती है। यहाँ तत्व के नाम का अर्थ उनके भौतिक रूप से नहीं है - यानि जल का अर्थ पानी से जुड़ी हर प्रकृति या अग्नि का अर्थ आग से जुड़ी हर प्रकृति नहीं है।
योगी आपके छोड़े हुए सांस (प्रश्वास) की लंबाई के देख कर तत्व की प्रधानता पता लगाने की बात कहते हैं। इस तत्व से आप अपने मनोकायिक (मन और तन) अवस्था का पता लगा सकते हैं। इसके पता लगाने से आप, योग द्वारा, अपने कार्य, मनोदशा आदि पर नियंत्रण रख सकते हैं। यौगिक विचारधारा में इसका प्रयोजन (भविष्य में) अवसरों का सदुपयोग तथा कुप्रभावों से बचने का प्रयास करना होता है। लेकिन ये यौगिक विधि, ज्योतिष विद्या से इस मामले में भिन्न है के ग्रह-नक्षत्रों के बदले यहाँ श्वास-प्रश्वास पर आधारित गणना और पूर्वानुमान लगाया जाता है।
पृथ्वी तत्व - भारीपन का स्वभाव एवं वज़न और एकजुटता का गुण
जल तत्व - शीतल स्वभाव एवं द्रव और संकुचन का गुण
अग्नि तत्व - गरम स्वभाव एवं प्रसारण का गुण
वायुतत्व - अनिश्चित स्वभाव एवं गतिशीलता का गुण
आकाश तत्व -मिश्रित स्वभाव एवं फैलाव का गुण
पृथ्वीतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
तत्व दर्शन की प्रक्रिया से भूकंपों के विषय में यदि समझना हो तो हमें ध्यान रखना चाहिए भूकंपों के निर्माण के लिए जिन तत्वों या गुणों की आवश्यकता होती है वे पृथ्वी में नहीं पाए जाते जैसे पृथ्वी में यदि हल्कापन होता तो अपने हलकेपन के कारण कंपन में सहायक तो हो सकता था किंतु अपने आप से पृथ्वी का काँपना तो तब भी संभव नहीं हो सकता था क्योंकि पृथ्वीतत्व का अपना स्वभाव ही भारीपन का होता है और किसी भारी चीज का अपने आप से काँपना कैसे संभव हो सकता है ।
दूसरी बात पृथ्वी में एकजुटता का गुण होने के कारण ही तो इसीलिए तो धूल के छोटे छोटे कणों का समूह ही तो पृथ्वी के स्वरूप में परिवर्तित हो गया है। इन धूलकणों को आपस में चिपकाने के लिए तो कुछ भी नहीं लगाया जाता है फिर भी ये आपस में चिपके हुए हैं ये पृथ्वी के एकजुटता के गुण के कारण ही तो संभव हो सका है ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ऐसी परिस्थिति में कई बार भूकंपों के कारण जमीन में जो दरारें पड़ जाती हैं वो पृथ्वी के अपने गुण के विपरीत हैं !इसलिए पृथ्वीतत्व के कारण नहीं घटित हो सकते हैं भूकंप !
आकाशतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
आकाशतत्व के मिश्रित स्वभाव एवं फैलाव के गुण के कारण कंपन घटित हो पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है !
जलतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
शीतलता और संकुचन जलतत्व के ये दोनों गुण भूकंप घटित होने में सहायक तो हो सकते हैं मुख्य नहीं !भूकंपनिर्माण होने में जल का शीत गुण तो सहायक है किंतु शीत गुण से केवल संकुचन तो हो सकता है किंतु विस्तारण नहीं जबकि कंपन के लिए संकुचन और विस्तारण दोनों ही गुणों की आवश्यकता होती है । किसी भी वस्तु में होने वाला कंपन केवल जलतत्व के बश की बात नहीं है दूसरा जलतत्व द्रवीभूत होने के कारण बह तो सकता है किंतु केवल बहाव के द्वारा कम्पन नहीं पैदा किया जा सकता है इसलिए कंपन के लिए आवश्यक गति निर्माण कर पाना केवल जलतत्व के बश का नहीं है । इसलिए जलतत्व भूकंप निर्माण में सहायक हो सकता है प्रमुख नहीं ! शीतऋतु में भी ठंड से काँपते हुए लोगों को अक्सर कहते हुए सुना जाता है कि जितनी हवा उतना जाड़ा और जितना जाड़ा उतना कंपन ।
अग्नितत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
केवल गरम स्वभाव एवं प्रसारण गुण के द्वारा कंपन पैदा होना कठिन ही नहीं असंभव भी है इसमें प्रसारण गुण तो है किंतु संकोचन नहीं है जबकि कंपन के लिए प्रसारण और संकोचन दोनों की ही आवश्यकता होती है !इसलिए अग्नितत्व भूकंप निर्माण में सहायक हो सकता है प्रमुख नहीं !
वायुतत्व के कारण क्या घटित हो सकते हैं भूकंप !
संकुचन और आकुंचन ये दोनों गुण वायु के हैं इसके अलावा किसी भी वस्तु में होने वाली किसी भी प्रकार की गति केवल वायु के द्वारा ही संभव हो सकती है इसलिए वायु के कारण ही सभी वस्तुओं में सभी प्रकार का कंपन घटित हो पाना संभव है यही कारण है कि वायु के द्वारा ही घटित हो सकते हैं सभी प्रकार के भूकंप !
वायु तीन प्रकार की होती है -सामान्य ,गर्म और ठंडी ! इसलिए भूकंप के भी मुख्य तीन प्रकार ही होते हैं वायु के इन्हीं तीन प्रकारों को आयुर्वेद में वात पित्त कफ के रूप में पहचाना जाता है।इस वात पित्त कफ के उचित अनुपात में होने से शरीर निरोग रहता है और इन तीनों का अनुपात बिगड़ते ही शरीर रोगी होने लगता है जैसे शरीर के अंदर विचरण करने वाले वायु के ये तीन मुख्य स्वरूप होते हैं इसी प्रकार से शरीर के बाहर बिचरण करने वाले वायु के भी तीन स्वरूप होते हैं इनका अनुपात बिगड़ने से जनपदोद्ध्वंसक रोग होते हैं इसमें पूरा का पूरा शहर क्षेत्र समाज आदि एक जैसी बीमारियों या महामारियों से पीड़ित हो जाता है ।
यही प्रकुपित एवं असंतुलित वायु जब बहुत बृहद रूप धारण कर लेता है तब प्राकृतिक उपद्रव होते हैं और वही बहुत विशेष बढ़ जाने पर भूकंप जैसी बड़ी घटनाएँ घटती चली जाती हैं।
कंपन(शरीर) - शरीर में वायु प्रेरित मांसपेशियों के अनैच्छिक आंदोलन को ही कम्पन कहते हैं ये भिन्न भिन्न अंगों में कुछ कुछ समय तक लयबद्ध होता है ये मांसपेशियों के संकुचन और विस्तार या विश्राम की प्रक्रिया है जैसे शरीर के एक या अधिक भागों में एक साथ कंपन हो सकता है या होते देखा जाता है कंपन अनैच्छिक आंदोलन है जो शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है ।
भूकंपन - शरीर कंपन की तरह ही वायु से प्रेरित होकर पृथ्वी की सतहों में अनैच्छिक आंदोलन होता है ये पृथ्वी के भिन्न भिन्न स्थानों में कुछ कुछ समय तक लयबद्ध होता है ये पृथ्वी की सतहों के संकुचन और विस्तार या विश्राम की प्रक्रिया है !
कंपनों का कमाल - वैदिक विज्ञान का मानना है कि कंपन चाहें शरीर के किसी स्थान में हो या पृथ्वी के किसी भाग में किंतु सभी प्रकार के कंपन कोई न कोई संकेत या सूचना जरूर दे रहे होते हैं कोई कंपन अकारण या निरर्थक नहीं होता है।कंपन यदि शरीर के किसी भाग में हों तो शरीर और जीवन से संबंधित किसी न किसी शुभ या अशुभ फल के घटित होने की सूचना दे रहे होते हैं । ऐसा ही कंपन यदि पृथ्वी के किसी भी भाग में होता है तो उस क्षेत्र में निकट भविष्य में कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होने वाली होती हैं जिनकी सूचना देने आया या आ रहा होता है भूकंप ! ऐसी भूकंपीय घटनाएँ निकट भविष्य में वर्षा बाढ़ आँधी तूफान शर्दी गर्मी आदि के कम या अधिक होने की सूचनाएँ दे रही होती हैं। भूकंप जैसी घटनाएँ हमें संकेत दे रही होती हैं कि निकट भविष्य में उस क्षेत्र के लोगों ,पशुओं एवं बनस्पतियों के साथ प्रकृति कैसा वर्ताव करने जा रही है ।
कंपन का फल - मानव शरीर के भिन्न भिन्न अंगों में समय समय पर होने वाले कंपनों को अंगों का फड़कना कहते हैं उन अंगों के फड़कने का भी अच्छा बुरा फल होता है अर्थात संबंधित व्यक्ति के जीवन से जुड़ी निकट भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना दे रहे होते हैं !
हमारा शरीर अन्य प्राणियों की तुलना में काफी संवेदनशील होता है। यही कारण है कि भविष्य में होने वाली घटना के प्रति हमारा शरीर पहले ही आशंका व्यक्त कर देता है। शरीर के विभिन्न अंगों का फड़कना भी भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी देने का एक माध्यम है। अंगों के फड़कने से भी शुभ-अशुभ की सूचना मिलती है। प्रत्येक अंग की एक अलग ही विशेषता है
धरती के काँपने के कारण जरूरी नहीं कि धरती के अंदर ही हों धरती के बाहर भी हो सकते हैं -
धरती के काँपने के कारण चक्रवात की तरह होते हैं जो इसी वायुमंडल में बनते और इसी में विलीन हो जाते हैं पृथ्वी तल पर या वायुमंडल में एक चक्रवात की तरह विद्यमान होते हैं और यहीं विलीन हो जाते हैं । भूकंप आने से कुछ सप्ताह पहले से इन लक्षणों के अनुभव होने लगते हैं ।
वैदिक भूकंप विज्ञान -
भूकंप के विषय में भारतीय प्राच्य विज्ञान का गंभीर अध्ययन
एवं गहन शोध के बाद निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर कहा जा सकता है कि कोई
भी भूकंप वायु के प्रकोप के बिना तैयार होना संभव ही नहीं है इसलिए भूकंप के पूर्वानुमान के विषय में धरती के अंदर की प्लेटों का परीक्षण करने की अपेक्षा वायुसमूहों का अध्ययन अधिक महत्त्व रखता है !क्योंकि भूकंप आने के कुछ समय पहले तक धरती के अंदर इसके लक्षण विद्यमान ही नहीं होते हैं तो इसलिए उसका अध्ययन किया कैसे जा सकता है ये घटनाएँ तो घटती ही कुछ सेकंडों में हैं फिर उसका अध्ययन कैसे संभव है !जबकि वायुमंडल में इसके लक्षण महीनों पहले से संचित होने लगते हैं और भूकंप आने के कुछ दिन पहले तो बिल्कुल प्रकट ही होने लग जाते हैं जिनका निरंतर अभ्यास करके ही अनुभव किया जा सकता है ।
प्राकृतिक प्रकुपित वायु के दुष्प्रभाव से ही प्रकृति में अनेकों प्रकार के उपद्रव घटित होते हैं और इसी प्राकृतिक प्रकुपित वायु के विशेष बलवती हो जाने पर भूकंप जैसी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं !इसीलिए भूकंपों के भय को कम करने के लिए हमें वायुमंडल शुद्ध रखना चाहिए !प्राचीन काल में भारतीय ऋषि मुनि इसीलिए तो यज्ञ आदि वायु शोधक क्रियाओं का सहारा लिया करते थे !वायुशोधन होते ही प्राकृतिक दुर्घटनाओं की संभावनाएँ बहुत कम हो जाया करती थीं !यज्ञ कर्म भूकंप टालने की अमोघ औषधि है !
पुराने ऋषि वायु मंडल शुद्ध रखने के लिए यज्ञ करते थे यज्ञों से
वायु मंडल शुद्ध रहता था उससे बादल बनते थे ऐसे जिम्मेदार बादल प्रजा के
हित में वृष्टि करते थे अर्थात जहाँ जितने पानी की आवश्यकता होती थी वहाँ
उतनी वर्षा हुआ करती थी वर्तमान समय में यज्ञ कर्म धीरे धीरे बंद होते जा रहे हैं ।अभाव
में डीजल पेट्रोल से चलने वाले बाहनों से निकलने वाले प्रदूषित धुएँ से
बनने वाले गैर जिम्मेदार बादल कहीं तो फट पड़ते हैं उससे बाढ़ आ जाती है
बिजली गिर जाती है तो कहीं सूखा पड़ जाता है आदि आदि !
भूकंप में धरती हिलती नहीं अपितु काँपती है !
भूकंप का मतलब धरती का हिलना ही नहीं अपितु धरती का काँपना भी होता है !जैसे शर्दी से ठिठुरता व्यक्ति ठंडी हवा लगने से काँपने लगता है किंतु जैसे मेडिकल जाँच करने पर उस व्यक्ति के काँपने का कारण पता लगा पाना कठिन होता है ठीक इसी प्रकार से प्रत्येक भूकंप के कारण धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों में विद्यमान नहीं हो सकते बाह्य कारणों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए -
भूकंप का मतलब धरती का हिलना ही नहीं अपितु धरती का काँपना भी होता है !जैसे शर्दी से ठिठुरता व्यक्ति ठंडी हवा लगने से काँपने लगता है किंतु जैसे मेडिकल जाँच करने पर उस व्यक्ति के काँपने का कारण पता लगा पाना कठिन होता है ठीक इसी प्रकार से प्रत्येक भूकंप के कारण धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों में विद्यमान नहीं हो सकते बाह्य कारणों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए -
बंधुओ ! कंपन शर्दी से होता है गर्मी से होता है वायु से होता है डर से हो
सकता है किसी और के धक्के से हो सकता है किंतु जैसे सर्दी के समय ठंडी
हवाएँ लगने से यदि कोई काँपता है तो उसके काँपने का कारण बाहरी हवाएँ होती
हैं न कि अंदर के कोई विकार ।इसलिए ऐसी परिस्थिति में उसकी चिकित्सकीय जाँच
कितनी भी कैसी भी करा ली जाए किंतु उन जाँच रिपोर्टों से उस व्यक्ति के
काँपने का कारण नहीं मालूम हो सकता है ठीक इसी प्रकार से धरती के काँपने
का कारण भी केवल धरती के अंदर की प्लेटों और गैसों खोजा जाना संपूर्ण रूप
से ठीक नहीं है मेरे कहने का अभिप्राय भूकंपन के कारण धरती के बाहर भी
खोजे जाने चाहिए ।
यज्ञ कर्म में प्रयोग किए जाने वाले द्रव्य उर उनके गुण -(भाव प्रकाश )
आम की लकड़ी घी तिल जौं चावल का धुआँ वायुमंडल को शुद्ध करता है तथा प्रज्वलित यज्ञाग्नि का वायुमंडल पर सबसे अधिक असर होता है !
25-4-2015 को दिन में
11.56 पर आए भूकंप का ज्योतिष की दृष्टि से मुख्यकारण 21 -04-15 को आया भीषण आँधी तूफान था आँधी तूफान भी नेपाल से ही उठा था और भूकंप का केंद्र भी नेपाल में ही रहा !यथा -""केंद्र के निदेशक आरके गिरि
का कहना है कि नेपाल में कम दबाव का क्षेत्र बना होने के कारण आंधी आई।" 'इस तूफान में 40 लोग बेमौत मारे गए। बड़ी संख्या में
कच्चे-पक्के मकान और झोपड़ियों के गिरने की सूचना है।' बंधुओ !भयानक तूफान की तरह ही भूकंप भी भयंकर था !
बंधुओ !मैं प्राचीन विज्ञान के द्वारा प्राप्त संकेतों के आधार पर कह सकता
हूँ कि इस बार नेपाल से लेकर भारत तक आए इस भूकंप से
पृथ्वी काँपी अवश्य है किन्तु इसके कारण केवल पृथ्वी
के अंदर उतने नहीं मिल सकेंगे जितने बाहर हैं । भारत के प्राचीन
शास्त्रीय विज्ञान से प्राप्त संकेतों के आधार पर यदि अनुमान लगाया जाए तो
धरती के अंदर होने वाली हलचल या प्लेटों की असहजता की अपेक्षा इस बार
भूकंप
के कारण पृथ्वी के ऊपर के वायु संघातों में अधिक विद्यमान थे और वायु
समूहों की आपसी टकराहट के
कारण ही आया था ये भयावना भूकम्प ।
प्राचीन विज्ञान में जिन चार प्रकार के भूकंपों का वर्णन है वो इस प्रकार से हैं -
सामान्य रूप से वायु, अग्नि, इंद्र और वरुण इन चार को भूकम्पों का कारण माना गया है जो
समय समय पर पृथ्वी को कँपाते रहते हैं इन्हीं चारों के कारण भूकंप आते हैं
! 25- 4 -2015 को दिन में 11.56 पर आए भूकंप के लक्षणों का मिलान
ज्योतिष शास्त्र के भूकंप लक्षणों से किए जाने पर नेपाल में आए हुए इस
भूकंप को वायु प्रकोप से आया हुया भूकंप मानने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं
जो कहीं भी आवश्यकता पड़ने पर प्रस्तुत किए जा सकते हैं ।
वायु प्रकोप से आने वाले भूकंपों के शास्त्रीय लक्षण -
" सूर्योदय से लेकर मध्यदिन अर्थात लगभग दिन के बारह बजे तक आने वाला
भूकंप वायु देवता के प्रकोप से माना
जाना चाहिए इसकी सूचना केन संकेत वायु देवता एक सप्ताह पहले सभी प्राणियों
को दे देते हैं !सूचना के संकेत इस प्रकार के होते हैं -एक सप्ताह पहले से
आकाश में धुआँ धुँआ
सा दिखाई पड़ने लगता है ,नेपाल जैसा भयंकर भूकंप आने से एक सप्ताह पहले से
भयंकर आँधी तूफान आने लगते हैं पृथ्वी से धूल उड़ाती हुई वृक्षों को तोड़ती
तहस नहस
करती हुई हवा अर्थात आँधी चलने लगती है सूर्य की किरणें मंद होने लग
जाती हैं
आनाज,जल और औषधियों का नाश होने लगता है, लोगों के शरीरों में
सूजन होने लगती है,गले में सूखा जमा हुआ सा बलगम बनने लगता है जो बहुत
खाँसने पर भी निकालना कठिन होता है ,दमा होने लगता है,उन्माद रोग,ज्वर रोग
तथा खाँसी से
उत्पन्न पीड़ा होने लगती है ।
ऐसे भूकंप आने के दिन से तीसरे ,चौथे,सातवें,पंद्रहवें ,तीसवें और पैंतालीसवें दिन यदि फिर भूकंप आने की सम्भावनाएँ अधिक होती हैं इससे देश के राजा का विनाश होता है अर्थात देश के शासक के लिए बहुत हानि कर होता है जिसके प्रभाव की अवधि 180 दिनों की होती है ।
यह वायु जनित भूकंप सबसे अधिक भूभाग को प्रभावित करता है शेष भूकंप
इससे कम क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। इस भूकंप के आने के कुछ निश्चित स्थान होते हैं जैसे अबकी ये भूकंप मगध अर्थात पटना गया नेपाल से बियतनाम तक का क्षेत्र
,कुरुक्षेत्र,सौराष्ट्र ,दशार्ण अर्थात मध्य प्रदेश के विदिशाजिले के आसपास का
क्षेत्र और मत्स्य देश में विशेष प्रभाव डालता है । मत्स्य देश का
केन्द्र आधुनिक जयपुर नगर है इसकी राजधानी विराटनगर थी।इस प्रकार से ये
संपूर्ण क्षेत्र इस भूकंप से प्रभावित होता है ।ऐसा शास्त्र में वर्णन मिलता है । "
इन शास्त्रीय लक्षणों में 25-4 -2015 के भूकंप में कितने मिलते हैं आप स्वयं देखिए और अनुभव कीजिए -
इन शास्त्रीय लक्षणों में 25-4 -2015 के भूकंप में कितने मिलते हैं आप स्वयं देखिए और अनुभव कीजिए -
बंधुओ !इन शास्त्रीय लक्षणों को मिलाकर यदि देखा जाए तो प्रकाशित
समाचारों के आधार पर इस भूकंप में मिलते जुलते ये लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं जैसे
शास्त्र में उपर्युक्त लक्षणों के विषय में लिखा गया है कि ये एक सप्ताह
पहले से भयंकर आँधी तूफान आदि आने लगते हैं तो यहाँ भी यह बड़ा भूकम्प आने
के तीन दिन पहले अर्थात 22-04-15 को ही भयंकर तूफान आया था इस तूफान का उद्गम स्थल भी नेपाल में ही माना गया है "केंद्र के निदेशक आरके गिरि
का कहना है कि नेपाल में कम दबाव का क्षेत्र बना होने के कारण आंधी आई।" बाद
में यह तूफान जैसे जैसे जहाँ जहाँ जितने प्रभाव से गया भूकंप भी उसी नेपाल
से उठा और तूफान वाले क्षेत्रों में कंपन करता चला गया था कुलमिलाकर जैसे
तूफान से नेपाल और भारत दोनों प्रभावित हुए उसी प्रकार से भूकम्प से भी
नेपाल और भारत दोनों प्रभावित हुए चूँकि भूकंप का केंद्र नेपाल था इसलिए
उसका अधिक प्रभावित होना स्वाभाविक ही था ।
तूफान के विषय में अखवारों में छपे समाचारों को पढ़िए और मिलाइए शास्त्रीय लक्षणों को -
"लोगों के शरीरों में सूजन होने लगती है,गले में सूखा जमा हुआ सा बलगम बनने लगता है जो बहुत खाँसने पर भी निकालना कठिन होता है ,दमा होने लगता है,उन्माद रोग,ज्वर रोग तथा खाँसी से उत्पन्न पीड़ा होने लगती है ।"
"लोगों के शरीरों में सूजन होने लगती है,गले में सूखा जमा हुआ सा बलगम बनने लगता है जो बहुत खाँसने पर भी निकालना कठिन होता है ,दमा होने लगता है,उन्माद रोग,ज्वर रोग तथा खाँसी से उत्पन्न पीड़ा होने लगती है ।"
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