राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
Counseling काउंसलिंग कैसे की जाए !"वैदिक काउंसलिंग" सबसे अधिक कारगर प्रक्रिया है !
वैदिक काउंसलिंग(परामर्श) विज्ञान
तनाव जान लेवा भी हो सकता है !
यदि तनाव अधिक लंबे समय से चल रहा है तो नींद नहीं आने लगती है नींद न आने के कारण पेट ख़राब रहने लगता है पेट ख़राब रहने से गैस बनने लगती है उससे घबड़ाहट होती है हार्टबीट बढ़ती है वोमेटिंग लगना ,चक्कर आना ,आँखों में जलन सिर दर्द होना बाल झड़ना ,मुख और पूरे शरीर में जलन होने लगना,नपुंसकता जैसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं । धीरे धीरे ब्लड प्रैशर शुगर आदि से स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है वजन बढ़ने लगता है लीवर किडनी आदि समाप्त होते होते असमय में ही जीवन पूरा हो जाता है !
तनाव की ताकत -
इसके अलावा भी कई लोग आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाते देखे जाते हैं !कई बार तो अपने तनाव के लिए वे किसी और को जिम्मेदार मान कर उससे शत्रुता करते करते उसकी हत्या तक करते देखे जाते हैं !ऐसे ही तनावों के कारण बलात्कार लूट खसोट तक करने लग जाते हैं !ऐसे लोग एक से एक घातक नशे के शिकार बनते भी देखे जाते हैं । ,
तनाव है क्या और होता क्यों है ?
वैदिक विज्ञान का मानना है कि हर किसी के जीवन के सभी क्षेत्रों से सम्बंधित सुख और दुःख निश्चित होते हैं ! शिक्षा में हमें कितनी सफलता मिल सकती है नौकरी रोजगार व्यापार और तरक्की संबंधी सभी कार्यों में हम किस स्तर तक सफल हो सकते हैं !पत्नी या पति का सुख हमें कितने प्रतिशत मिलेगा और कितना संतोष या समझौता करना पड़ेगा !संतान संबंधी सुख कितना होगा ! मकान और वाहन से संबंधित सफलता का स्तर क्या रहेगा !स्वास्थ्य कैसा रहेगा ऐसे सभी सुख और सफलता के विषय में संसार के हर व्यक्ति की सीमा अर्थात लिमिट अलग अलग होती है इस लिमिट को लेकर किसी को किसी से अपनी तुलना नहीं करना चाहिए !ये लिमिट हमारे और आपके पूर्वजन्मों के अच्छे बुरे कर्मों के कारण बनती है वैदिक ग्रंथों में इसी लिमिट को 'भाग्य' कहा गया है !किसी भी मनुष्य की वास्तविक ताकत या उसका भाग्य होता है यही उस स्त्री पुरुष के जीवन के हर क्षेत्र की सीमा रेखा होती है !इसी भाग्य निर्धारित सीमा में ही हमें अपना जीवन व्यवस्थित करना या विकास करना होता है और इसी सीमा में ही हमें सभी सुख सुविधाएँ भोगनी होती हैं अन्यथा तनाव होता है ।
भाग्य से भाग पाना संभव ही नहीं है हर किसी को भोगना ही पड़ता है अपना अपना भाग्य !
भाग्य में समय का महत्त्व -हर किसी का भाग्य उसके समय के आधीन होता है अर्थात किस व्यक्ति का किस विषय से संबंधित भाग्य किस उम्र या वर्ष में अपना फल देगा !अक्सर देखा जाता है कि किसी का विवाह किसी वर्ष होता है संतान किसी वर्ष होती है व्यापार किसी वर्ष और मकान किसी वर्ष !कई बार बहुत कुछ एक साथ भी होते देखा जाता है !
भाग्य में स्थान का महत्त्व - सफलता में स्थान का बहुत बड़ा महत्त्व देखा जाता है किस स्थान(शहर) में किसका भाग्य उदय होगा इसका भी असर होता है !कई बार देखा जाता है कि दिल्ली का कोई व्यक्ति कलकत्ते में किताब या किसी और चीज की दुकान चलाता है और वो सुखी है इसी प्रकार से कलकत्ते का कोई व्यक्ति दिल्ली में उसी चीज की दुकान चलाता है और वो भी सुखी है। इसका सीधा मतलब है कि दोनों के काम दोनों शहरों में चल रहे हैं किंतु दोनों का भाग्योदय अपने अपने शहरों में नहीं बदा है ।
भाग्य में व्यक्ति का महत्त्व - कोई काम जब हम प्रारंभ करते हैं तब अक्सर हमें किसी न किसी व्यक्ति का सहयोग लेना होता है किंतु नाम वाले व्यक्ति के सहयोग से हमारा भाग्य बलवान हो सकता है और किस नाम वाले व्यक्ति से हमारा नुक्सान हो सकता है ।
भाग्य में दिशा का महत्त्व - किसके लिए लिए कौन दिशा कितनी सहायक हो सकती है अर्थात किस दिशा में जाने से किसका कितना विकास हो सकता है ।
भाग्य में कार्य का महत्त्व - सभी को हमेंशा अपने भाग्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए जीवन में किस कार्य से लाभ हो सकता है यदि ऐसा पता हो तो उसी से संबंधित कार्य कर सकते हैं क्योंकि उसके अलावा यदि कुछ भी करेंगे तो हमें उसमें लाभ नहीं होगा अपितु हानि हो सकती है
भाग्य में वास्तु का महत्त्व - जमीन के लक्षण अनेकों प्रकार के होते हैं किंतु हर किसी के भाग्य का उदय हर किसी जमीन पर नहीं हो सकता है !जमीन का अलग अलग स्वभाव का होता है किसका भाग्योदय कैसी जमीन में रहने से या कैसे घर में रहने से होगा ! ये पता करके ही हमेंशा आगे बढ़ा जाना चाहिए !
भाग्य में पति या पत्नी का महत्त्व - सभी पुरुषों और स्त्रियों में अनेकों प्रकार के गुण और दोष होते हैं किंतु किस प्रकार के स्त्री या पुरुष का भाग्योदय किस प्रकार के स्त्री या पुरुष के साथ होगा !इसका पता लगाकर ही विवाह करना चाहिए अन्यथा तनाव होता ही है !
विवाह में भाग्य का महत्त्व - सबके भाग्य में पति या पत्नी का सुख एक जैसा नहीं बदा होता है सबका अलग अलग होता है किसी को कम किसी को बहुत ज्यादा तो किसी को मध्यम होता है इसलिए जो सुख जिसके भाग्य में जितना बदा होता है उसे उतना ही मिलता है अधिक नहीं !जिसके भाग्य में 60 प्रतिशत विवाह का सुख बदा हो वो यदि 80 प्रतिशत विवाह सुख वाले किसी स्त्री या पुरुष से विवाह कर लेता है या लेती है तो वो बचा हुआ 20 प्रतिशत विवाह संबंधित सुख किसी और से लेना होगा !जिससे तनाव होना ही होता है ।
विवाह संबंधी भाग्य में स्थान का महत्त्व- पति या पत्नी के प्रथम मिलन (सेक्स) में स्थान और परिस्थितियों का सबसे अधिक महत्त्व होता है !जितना अच्छा स्थान और जितना प्रसन्न मन होगा उतना अच्छा जीवन बीतता है ! प्रेमी जोड़े टाइप के लोग अक्सर झाड़ों जंगलों आदि गन्दी जगहों में एकांत पाकर वहाँ सेक्स कर लेते हैं वो भी डरते हुए तो उनका सारा जीवन उन्हीं झाड़ों जंगलों आदि गन्दी जगहों की तरह ही तनावपूर्ण हो जाता है !इसलिए पहले संबंध का बहुत महत्त्व होता है जिसने धोखे में या जानकारी में विवाह से पहले किसी से सेक्स संबंध बना लिए हैं तो उसे सारा जीवन उस समय और परिस्थितियों के अनुशार ही तनाव में व्यतीत करना पड़ता है !
विवाह संबंधी भाग्य में समय का महत्त्व- किसी का सारा जीवन एक जैसा नहीं बीतता है कभी सुख और कभी दुःख तो हर किसी को ही लगा रहता है ऐसी परिस्थिति में कौन स्त्री या पुरुष किस पुरुष या स्त्री के साथ कब तक स्वस्थ या जीवित रह पाएगा !कितने दिन सुख पूर्वक रह पाएगा कितने दिन तनाव भोगना होगा या कब संबंध विच्छेद अर्थात तलाक हो जाएगा !ये सब कुछ हर किसी के भाग्य पर आश्रित होता है जो भाग्य के अनुशार नहीं चलता है उसे तनाव होता ही है !
संतानसंबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - पति और पत्नी दोनों को संतान सुख प्रायः अलग अलग होता है एक को 5 संतान का सुख तो दूसरे को 3 संतान का सुख ऐसी परिस्थिति में होगा किसी को कब और कितने बच्चे होंगे ये भाग्य पर आधारित होता है जो भाग्य की परवाह नहीं करते उन्हें कई बार बच्चे होते की बार नहीं होते या होकर बीमार आदि हो जाते हैं या सब कुछ स्वस्थ रहने पर भी वे माता पिता को छोड़कर कहीं दूर चले जाते हैं ऐसी सभी परिस्थितियों में संतान सुख तनाव युक्त माना जाएगा !ये सबकुछ भाग्य पर आधारित है !
रोग संबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - किसी रोगी की चिकित्सा महँगी हो या सस्ती किंतु जैसा जिसका भाग्य वैसा उस पर असर !इसीलिए तो कई बार गरीब से गरीब रोगियों की ,आदिवासियों की ,जंगली पशुओं की बड़ी बड़ी बीमारियाँ साधारण से साधारण चिकित्सा से या बिना चिकित्सा के भी भी ठीक होते देखी जाती हैं वहीँ दूसरी ओर जब भाग्य साथ नहीं देता है तब महँगी से महँगी चिकित्सा और चिकित्सकों के बड़े से बड़े प्रयास निरर्थक चले जाते हैं और इलाज करने के बाबजूद भी रोगी का रोग बढ़ता चला जाता है !भाग्य का ही खेल है !
शिक्षा संबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - जिसका जैसा भाग्य उसकी वैसी शिक्षा ! जिस विषय को पढ़ने लायक जिसका जिस वर्ष जैसा भाग्य होगा उसे उस विषय के अध्ययन में वैसी सफलता मिलती है इसके अलावा महँगे से महँगे शिक्षक स्कूल एवं अज्ञानी कैरिअर काउंसलर आदि बहुत कुछ सिख समझ कर भी क्या कर लेंगे जब उसके दिमाग में ही नहीं घुसेगा !जब शिक्षा की अच्छी व्यवस्थाएँ नहीं थीं न बेचारे काउंसलरही होते थे किंतु बड़े बड़े विद्वान् तब भी होते देखे गए हैं !संसाधनों की अपेक्षा भाग्य ही प्रमुख है।
संबंधों को निर्वाह करने में भाग्य का महत्त्व - भाग्य के बिना हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं हमारा जब जैसा भाग्य होता है तब तैसे सम्बन्ध बनते हैं जब भाग्य खराब होता है तब मित्र भी अच्छे नहीं मिलते जो अच्छे मित्र या संबंधी पहले से जुड़े भी होते हैं वे भी छोड़कर चले जाते हैं !बुरे बुरे लोग अच्छे लगने लगते हैं उन्हीं से मित्रता प्रेम और प्रेम सम्बन्ध भी चलते हैं जिनके परिणाम बुरे होने होते हैं किंतु उस समय अपना भाग्य ख़राब होने के कारण उसे ख़राब लोग ही पसंद होते हैं अच्छे लोगों से घृणा होने लगती है !इसलिए उसके परिणाम भी बुरे ही होते हैं भले वो विवाह से सम्बंधित मित्रता ही क्यों न हो !
चुनाव संबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - पैसा पद प्रतिष्ठा आदि सबको तभी मिलता है जब भाग्य अच्छा होता है
जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब हम अपने भाग्य का अतिक्रमण करके कोई सुख या सफलता पा लेना चाहते हैं चूँकि वो भाग्य में बदा नहीं है इसलिए उसे पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है किंतु जो व्यक्ति इस असंभव को स्वीकार नहीं कर पाता है उसे ये गलत फहमी होती है कि हम इस असंभव को भी संभव करके दिखाएँगे ! किंतु असंभव तो असंभव ही होता है और वो असंभव होकर ही रहता है इसलिए इस असंभव को स्वीकार कर लेने में ही हर किसी की भलाई होती है
वो भी किस विषय में !यदि कोई रुकावट है तो किस वर्ष में उसके लिए सावधानियाँ क्या कुछ बरती जाएँ !
उत्तर : हमें अपने जीवन की शुरुआत करने से पूर्व ये पता होना ही चाहिए कि हम जीवन के किस क्षेत्र में कितना विकास कर सकते हैं वो भी किस उम्र में अथवा किस सन में कब से कब तक !ऐसे हर विषय से जुड़ा भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाना वैदिक विज्ञानं से संभव है !इसलिए हमें अपने जीवन को एक बार टटोलना जरूर चाहिए किंतु यदि हम ऐसा करने से चूक जाते हैं और बिना पूर्वानुमान लगाए ही ऊटपटाँग ढंग से जीना शुरू कर देते हैं !ऐसे में जब तक हमारी इच्छानुशार सफलता मिलती जाती है तब तक तो कुछ नहीं किंतु यदि जहाँ ऐसा नहीं होने लगा तो वहाँ से ही शुरू हो जाता है तनाव !
ज्योतिष योग आयुर्वेद वास्तु एवं वैदिकमंत्र विज्ञान के सामूहिक प्रयोग से किसी भी तनावग्रस्त स्त्री - पुरुष की समस्याओं की जड़ तक पहुँचा जा सकता है और प्रयास पूर्वक समस्याओं के समाधान खोजे जा सकते हैं !कुछ प्रकरणों में परिस्थितियाँ इतनी अधिक बिगड़ चुकी होती हैं कि तुरंत समाधान निकाल पाना संभव नहीं होता है ऐसे में सहनशीलता बढ़ाने के लिए आवश्यक गाइडेंश दिया जाता है !
ई जा सकती है कुछ प्रकरणों में कुछ समय के लिए शांत रह करके समस्या को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है !
तनाव विज्ञान -
के जीवन को सभी प्रकार की से व्यक्ति के जीवन को
"वैदिक काउंसलिंग"की विशेषता यह है कि इसके द्वारा में ?
उत्तर: तनावमुक्त समाज का निर्माण करने की दृष्टि से "वैदिक काउंसलिंग" आधुनिक काउंसलिंग की सभी पद्धतियों से अधिक प्रभावी है क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा किसी व्यक्ति को तनाव में फँसने से पहले ही सूचित कर दिया जाता है कि उसे किस वर्ष के किस महीने की किस तारीख से किस स्तर का तनाव कितने समय के लिए होने वाला है !उस समय को तनाव रहित ढंग से बिताने के लिए उसे किस किस प्रकार की सावधानियाँ बरतनी चाहिए ! दूसरी बात तनाव का समय यदि किसी के जीवन में प्रारम्भ हो चुका हो ऐसे तनाव के संकट से जूझ रहे लोगों की प्रक्रिया दूसरी है उसका असर भी धीरे धीरे होता है किंतु यदि वैदिक काउंसलिंग की प्रक्रिया को यदि फालो किया जाए तो पहली सबसे बड़ी बात यह है कि तनाव के कारण उसके जीवन में कोई दुर्घटना घटने से 70 प्रतिशत तक बचा लिया जाता है दूसरी बात जो तनाव होता भी है वो भी धीरे धीरे घटता चला जाता है !
विशेष : तनाव सकारण भी होता है और अकारण भी किंतु सकारण होने वाले तनाव की अपेक्षा अकारण होने वाला तनाव अधिक खतरनाक होता है क्योंकि इसमें पीड़ित एवं उसके सगे संबंधियों को स्वयं नहीं पता होता है कि उसे तनाव है क्यों और शुरू कब से हुआ और रहेगा कब तक ? किंतु तनाव से होने वाली सारी परेशानियाँ उसे हो रही होती हैं !तनाव के ऐसे अज्ञात कारणों को भी अनुमान लगाने में सक्षम है "वैदिक काउंसलिंग" !
Counseling काउंसलिंग कैसे की जाए !"वैदिक काउंसलिंग" सबसे अधिक कारगर प्रक्रिया है !
वैदिक काउंसलिंग(परामर्श) विज्ञान
तनाव जान लेवा भी हो सकता है !
यदि तनाव अधिक लंबे समय से चल रहा है तो नींद नहीं आने लगती है नींद न आने के कारण पेट ख़राब रहने लगता है पेट ख़राब रहने से गैस बनने लगती है उससे घबड़ाहट होती है हार्टबीट बढ़ती है वोमेटिंग लगना ,चक्कर आना ,आँखों में जलन सिर दर्द होना बाल झड़ना ,मुख और पूरे शरीर में जलन होने लगना,नपुंसकता जैसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं । धीरे धीरे ब्लड प्रैशर शुगर आदि से स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है वजन बढ़ने लगता है लीवर किडनी आदि समाप्त होते होते असमय में ही जीवन पूरा हो जाता है !
तनाव की ताकत -
इसके अलावा भी कई लोग आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाते देखे जाते हैं !कई बार तो अपने तनाव के लिए वे किसी और को जिम्मेदार मान कर उससे शत्रुता करते करते उसकी हत्या तक करते देखे जाते हैं !ऐसे ही तनावों के कारण बलात्कार लूट खसोट तक करने लग जाते हैं !ऐसे लोग एक से एक घातक नशे के शिकार बनते भी देखे जाते हैं । ,
तनाव है क्या और होता क्यों है ?
वैदिक विज्ञान का मानना है कि हर किसी के जीवन के सभी क्षेत्रों से सम्बंधित सुख और दुःख निश्चित होते हैं ! शिक्षा में हमें कितनी सफलता मिल सकती है नौकरी रोजगार व्यापार और तरक्की संबंधी सभी कार्यों में हम किस स्तर तक सफल हो सकते हैं !पत्नी या पति का सुख हमें कितने प्रतिशत मिलेगा और कितना संतोष या समझौता करना पड़ेगा !संतान संबंधी सुख कितना होगा ! मकान और वाहन से संबंधित सफलता का स्तर क्या रहेगा !स्वास्थ्य कैसा रहेगा ऐसे सभी सुख और सफलता के विषय में संसार के हर व्यक्ति की सीमा अर्थात लिमिट अलग अलग होती है इस लिमिट को लेकर किसी को किसी से अपनी तुलना नहीं करना चाहिए !ये लिमिट हमारे और आपके पूर्वजन्मों के अच्छे बुरे कर्मों के कारण बनती है वैदिक ग्रंथों में इसी लिमिट को 'भाग्य' कहा गया है !किसी भी मनुष्य की वास्तविक ताकत या उसका भाग्य होता है यही उस स्त्री पुरुष के जीवन के हर क्षेत्र की सीमा रेखा होती है !इसी भाग्य निर्धारित सीमा में ही हमें अपना जीवन व्यवस्थित करना या विकास करना होता है और इसी सीमा में ही हमें सभी सुख सुविधाएँ भोगनी होती हैं अन्यथा तनाव होता है ।
भाग्य से भाग पाना संभव ही नहीं है हर किसी को भोगना ही पड़ता है अपना अपना भाग्य !
भाग्य में समय का महत्त्व -हर किसी का भाग्य उसके समय के आधीन होता है अर्थात किस व्यक्ति का किस विषय से संबंधित भाग्य किस उम्र या वर्ष में अपना फल देगा !अक्सर देखा जाता है कि किसी का विवाह किसी वर्ष होता है संतान किसी वर्ष होती है व्यापार किसी वर्ष और मकान किसी वर्ष !कई बार बहुत कुछ एक साथ भी होते देखा जाता है !
भाग्य में स्थान का महत्त्व - सफलता में स्थान का बहुत बड़ा महत्त्व देखा जाता है किस स्थान(शहर) में किसका भाग्य उदय होगा इसका भी असर होता है !कई बार देखा जाता है कि दिल्ली का कोई व्यक्ति कलकत्ते में किताब या किसी और चीज की दुकान चलाता है और वो सुखी है इसी प्रकार से कलकत्ते का कोई व्यक्ति दिल्ली में उसी चीज की दुकान चलाता है और वो भी सुखी है। इसका सीधा मतलब है कि दोनों के काम दोनों शहरों में चल रहे हैं किंतु दोनों का भाग्योदय अपने अपने शहरों में नहीं बदा है ।
भाग्य में व्यक्ति का महत्त्व - कोई काम जब हम प्रारंभ करते हैं तब अक्सर हमें किसी न किसी व्यक्ति का सहयोग लेना होता है किंतु नाम वाले व्यक्ति के सहयोग से हमारा भाग्य बलवान हो सकता है और किस नाम वाले व्यक्ति से हमारा नुक्सान हो सकता है ।
भाग्य में दिशा का महत्त्व - किसके लिए लिए कौन दिशा कितनी सहायक हो सकती है अर्थात किस दिशा में जाने से किसका कितना विकास हो सकता है ।
भाग्य में कार्य का महत्त्व - सभी को हमेंशा अपने भाग्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए जीवन में किस कार्य से लाभ हो सकता है यदि ऐसा पता हो तो उसी से संबंधित कार्य कर सकते हैं क्योंकि उसके अलावा यदि कुछ भी करेंगे तो हमें उसमें लाभ नहीं होगा अपितु हानि हो सकती है
भाग्य में वास्तु का महत्त्व - जमीन के लक्षण अनेकों प्रकार के होते हैं किंतु हर किसी के भाग्य का उदय हर किसी जमीन पर नहीं हो सकता है !जमीन का अलग अलग स्वभाव का होता है किसका भाग्योदय कैसी जमीन में रहने से या कैसे घर में रहने से होगा ! ये पता करके ही हमेंशा आगे बढ़ा जाना चाहिए !
भाग्य में पति या पत्नी का महत्त्व - सभी पुरुषों और स्त्रियों में अनेकों प्रकार के गुण और दोष होते हैं किंतु किस प्रकार के स्त्री या पुरुष का भाग्योदय किस प्रकार के स्त्री या पुरुष के साथ होगा !इसका पता लगाकर ही विवाह करना चाहिए अन्यथा तनाव होता ही है !
विवाह में भाग्य का महत्त्व - सबके भाग्य में पति या पत्नी का सुख एक जैसा नहीं बदा होता है सबका अलग अलग होता है किसी को कम किसी को बहुत ज्यादा तो किसी को मध्यम होता है इसलिए जो सुख जिसके भाग्य में जितना बदा होता है उसे उतना ही मिलता है अधिक नहीं !जिसके भाग्य में 60 प्रतिशत विवाह का सुख बदा हो वो यदि 80 प्रतिशत विवाह सुख वाले किसी स्त्री या पुरुष से विवाह कर लेता है या लेती है तो वो बचा हुआ 20 प्रतिशत विवाह संबंधित सुख किसी और से लेना होगा !जिससे तनाव होना ही होता है ।
विवाह संबंधी भाग्य में स्थान का महत्त्व- पति या पत्नी के प्रथम मिलन (सेक्स) में स्थान और परिस्थितियों का सबसे अधिक महत्त्व होता है !जितना अच्छा स्थान और जितना प्रसन्न मन होगा उतना अच्छा जीवन बीतता है ! प्रेमी जोड़े टाइप के लोग अक्सर झाड़ों जंगलों आदि गन्दी जगहों में एकांत पाकर वहाँ सेक्स कर लेते हैं वो भी डरते हुए तो उनका सारा जीवन उन्हीं झाड़ों जंगलों आदि गन्दी जगहों की तरह ही तनावपूर्ण हो जाता है !इसलिए पहले संबंध का बहुत महत्त्व होता है जिसने धोखे में या जानकारी में विवाह से पहले किसी से सेक्स संबंध बना लिए हैं तो उसे सारा जीवन उस समय और परिस्थितियों के अनुशार ही तनाव में व्यतीत करना पड़ता है !
विवाह संबंधी भाग्य में समय का महत्त्व- किसी का सारा जीवन एक जैसा नहीं बीतता है कभी सुख और कभी दुःख तो हर किसी को ही लगा रहता है ऐसी परिस्थिति में कौन स्त्री या पुरुष किस पुरुष या स्त्री के साथ कब तक स्वस्थ या जीवित रह पाएगा !कितने दिन सुख पूर्वक रह पाएगा कितने दिन तनाव भोगना होगा या कब संबंध विच्छेद अर्थात तलाक हो जाएगा !ये सब कुछ हर किसी के भाग्य पर आश्रित होता है जो भाग्य के अनुशार नहीं चलता है उसे तनाव होता ही है !
संतानसंबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - पति और पत्नी दोनों को संतान सुख प्रायः अलग अलग होता है एक को 5 संतान का सुख तो दूसरे को 3 संतान का सुख ऐसी परिस्थिति में होगा किसी को कब और कितने बच्चे होंगे ये भाग्य पर आधारित होता है जो भाग्य की परवाह नहीं करते उन्हें कई बार बच्चे होते की बार नहीं होते या होकर बीमार आदि हो जाते हैं या सब कुछ स्वस्थ रहने पर भी वे माता पिता को छोड़कर कहीं दूर चले जाते हैं ऐसी सभी परिस्थितियों में संतान सुख तनाव युक्त माना जाएगा !ये सबकुछ भाग्य पर आधारित है !
रोग संबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - किसी रोगी की चिकित्सा महँगी हो या सस्ती किंतु जैसा जिसका भाग्य वैसा उस पर असर !इसीलिए तो कई बार गरीब से गरीब रोगियों की ,आदिवासियों की ,जंगली पशुओं की बड़ी बड़ी बीमारियाँ साधारण से साधारण चिकित्सा से या बिना चिकित्सा के भी भी ठीक होते देखी जाती हैं वहीँ दूसरी ओर जब भाग्य साथ नहीं देता है तब महँगी से महँगी चिकित्सा और चिकित्सकों के बड़े से बड़े प्रयास निरर्थक चले जाते हैं और इलाज करने के बाबजूद भी रोगी का रोग बढ़ता चला जाता है !भाग्य का ही खेल है !
शिक्षा संबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - जिसका जैसा भाग्य उसकी वैसी शिक्षा ! जिस विषय को पढ़ने लायक जिसका जिस वर्ष जैसा भाग्य होगा उसे उस विषय के अध्ययन में वैसी सफलता मिलती है इसके अलावा महँगे से महँगे शिक्षक स्कूल एवं अज्ञानी कैरिअर काउंसलर आदि बहुत कुछ सिख समझ कर भी क्या कर लेंगे जब उसके दिमाग में ही नहीं घुसेगा !जब शिक्षा की अच्छी व्यवस्थाएँ नहीं थीं न बेचारे काउंसलरही होते थे किंतु बड़े बड़े विद्वान् तब भी होते देखे गए हैं !संसाधनों की अपेक्षा भाग्य ही प्रमुख है।
संबंधों को निर्वाह करने में भाग्य का महत्त्व - भाग्य के बिना हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं हमारा जब जैसा भाग्य होता है तब तैसे सम्बन्ध बनते हैं जब भाग्य खराब होता है तब मित्र भी अच्छे नहीं मिलते जो अच्छे मित्र या संबंधी पहले से जुड़े भी होते हैं वे भी छोड़कर चले जाते हैं !बुरे बुरे लोग अच्छे लगने लगते हैं उन्हीं से मित्रता प्रेम और प्रेम सम्बन्ध भी चलते हैं जिनके परिणाम बुरे होने होते हैं किंतु उस समय अपना भाग्य ख़राब होने के कारण उसे ख़राब लोग ही पसंद होते हैं अच्छे लोगों से घृणा होने लगती है !इसलिए उसके परिणाम भी बुरे ही होते हैं भले वो विवाह से सम्बंधित मित्रता ही क्यों न हो !
चुनाव संबंधी विषयों में भाग्य का महत्त्व - पैसा पद प्रतिष्ठा आदि सबको तभी मिलता है जब भाग्य अच्छा होता है
जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब हम अपने भाग्य का अतिक्रमण करके कोई सुख या सफलता पा लेना चाहते हैं चूँकि वो भाग्य में बदा नहीं है इसलिए उसे पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है किंतु जो व्यक्ति इस असंभव को स्वीकार नहीं कर पाता है उसे ये गलत फहमी होती है कि हम इस असंभव को भी संभव करके दिखाएँगे ! किंतु असंभव तो असंभव ही होता है और वो असंभव होकर ही रहता है इसलिए इस असंभव को स्वीकार कर लेने में ही हर किसी की भलाई होती है
वो भी किस विषय में !यदि कोई रुकावट है तो किस वर्ष में उसके लिए सावधानियाँ क्या कुछ बरती जाएँ !
उत्तर : हमें अपने जीवन की शुरुआत करने से पूर्व ये पता होना ही चाहिए कि हम जीवन के किस क्षेत्र में कितना विकास कर सकते हैं वो भी किस उम्र में अथवा किस सन में कब से कब तक !ऐसे हर विषय से जुड़ा भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाना वैदिक विज्ञानं से संभव है !इसलिए हमें अपने जीवन को एक बार टटोलना जरूर चाहिए किंतु यदि हम ऐसा करने से चूक जाते हैं और बिना पूर्वानुमान लगाए ही ऊटपटाँग ढंग से जीना शुरू कर देते हैं !ऐसे में जब तक हमारी इच्छानुशार सफलता मिलती जाती है तब तक तो कुछ नहीं किंतु यदि जहाँ ऐसा नहीं होने लगा तो वहाँ से ही शुरू हो जाता है तनाव !
ज्योतिष योग आयुर्वेद वास्तु एवं वैदिकमंत्र विज्ञान के सामूहिक प्रयोग से किसी भी तनावग्रस्त स्त्री - पुरुष की समस्याओं की जड़ तक पहुँचा जा सकता है और प्रयास पूर्वक समस्याओं के समाधान खोजे जा सकते हैं !कुछ प्रकरणों में परिस्थितियाँ इतनी अधिक बिगड़ चुकी होती हैं कि तुरंत समाधान निकाल पाना संभव नहीं होता है ऐसे में सहनशीलता बढ़ाने के लिए आवश्यक गाइडेंश दिया जाता है !
ई जा सकती है कुछ प्रकरणों में कुछ समय के लिए शांत रह करके समस्या को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है !
तनाव विज्ञान -
के जीवन को सभी प्रकार की से व्यक्ति के जीवन को
"वैदिक काउंसलिंग"की विशेषता यह है कि इसके द्वारा में ?
उत्तर: तनावमुक्त समाज का निर्माण करने की दृष्टि से "वैदिक काउंसलिंग" आधुनिक काउंसलिंग की सभी पद्धतियों से अधिक प्रभावी है क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा किसी व्यक्ति को तनाव में फँसने से पहले ही सूचित कर दिया जाता है कि उसे किस वर्ष के किस महीने की किस तारीख से किस स्तर का तनाव कितने समय के लिए होने वाला है !उस समय को तनाव रहित ढंग से बिताने के लिए उसे किस किस प्रकार की सावधानियाँ बरतनी चाहिए ! दूसरी बात तनाव का समय यदि किसी के जीवन में प्रारम्भ हो चुका हो ऐसे तनाव के संकट से जूझ रहे लोगों की प्रक्रिया दूसरी है उसका असर भी धीरे धीरे होता है किंतु यदि वैदिक काउंसलिंग की प्रक्रिया को यदि फालो किया जाए तो पहली सबसे बड़ी बात यह है कि तनाव के कारण उसके जीवन में कोई दुर्घटना घटने से 70 प्रतिशत तक बचा लिया जाता है दूसरी बात जो तनाव होता भी है वो भी धीरे धीरे घटता चला जाता है !
विशेष : तनाव सकारण भी होता है और अकारण भी किंतु सकारण होने वाले तनाव की अपेक्षा अकारण होने वाला तनाव अधिक खतरनाक होता है क्योंकि इसमें पीड़ित एवं उसके सगे संबंधियों को स्वयं नहीं पता होता है कि उसे तनाव है क्यों और शुरू कब से हुआ और रहेगा कब तक ? किंतु तनाव से होने वाली सारी परेशानियाँ उसे हो रही होती हैं !तनाव के ऐसे अज्ञात कारणों को भी अनुमान लगाने में सक्षम है "वैदिक काउंसलिंग" !
किन्तु कोई भी कार्य करते समय उसका परिणाम अच्छा ही होगा या जैसा हम सोचकर कोई कार्य प्रारंभ करते हैं परिणाम वैसा ही होगा !गलती से हम सभीलोग अपने विषय में ऐसा आधार विहीन पूर्वानुमान लगा बैठते हैं किंतु यह हम सब जानते हैं कि हमारे जीवन में हमारे कर काम का परिणाम अच्छा बुरा दोनों हो सकता है चूँकि अपने विषय में बुरा हमने कभी सोचा ही नहीं होता है और भाग्यवश यदि हमारे किए हुए कर्मों का फल वैसा नहीं होता है जैसा हम चाहते हैं या बिना कर्म किए हुए ही हमारे साथ अचानक ही कुछ बुरा होने लगे तो उसको सह पाना हम सभी के लिए बहुत कठिन हो जाता है ।
'कर्म करो तो फल मिलेगा ही ' किंतु फल अच्छा होगा या बुरा इसका निर्णय कौन करे !ये कोई नहीं बताता !क्या ये सच है ?
कई कैरियर काउंसलर या मैरिज काउंसलर जितने भी प्रकार के काउंसलर होते हैं आदि भी हमें पॉजेटिव अर्थात सबकुछ सकारात्मक सोचने के लिए प्रेरित करते हैं उन्हें ऐसा लगता है कि हम जैसा सोचेंगे और उसके लिए प्रयास भी करेंगे तो वैसा हो भी जाएगा !किंतु वे बेचारे बिना पेंदी के लोटे होते हैं उनके द्वारा दी जाने वाली सलाहों का कोई आधार तो होता नहीं है वहाँ तो सब कुछ कोरा और काल्पनिक एवं कुछ लोगों के कोरे अनुभव पर आधारित होता है !उनका मानना होता है कि कुछ लोगों ने वैसा किया इसलिए उनके साथ ऐसा हुआ इसका मतलब कोई भी यदि वैसा करेगा तो उसके साथ भी ऐसा ही होगा किंतु ये सच नहीं है कर्म हम भले ही एक जैसे कर लें किंतु परिणाम तो सबके भाग्य के अनुशार अलग अलग ही होने होते हैं !
सभी प्रकार के काउंसलर लोग कुछ लोगों का अनुभव दूसरे कुछ लोगों पर थोपा करते हैं ऐसे कोरे लोग कर्मवाद की हवा भर भर के लोगों को बड़े बड़े सपने दिखाकर कुदा दिया करते हैं सपनों के समुद्र में किन्तु फल तो उन्हें उनके भाग्य से ही मिलता है प्रायः भाग्य को न मानने वाले काउंसलर कुछ सफल लोगों के उदाहरण दे दे कर सबके दिमाग में फोकट की हवा भरा करते हैं !उन तथाकथित सलाहकारों की बातों में आकर भाग्यवान लोग तो सफल हो जाते हैं किन्तु जिनका भाग्य साथ नहीं देता है वो उनकी हवा हवाई सलाहों में आकर इतना अधिक बर्बाद हो जाते हैं कि वहाँ से उनका सँभल पाना बहुत कठिन हो जाता है जहाँ उन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं होता है !
कई बार बिना कर्मों अर्थात बिना कुछ किए भी लोगों को बीमारी ,व्यापार में घाटा ,एक्सीडेंट आदि तमाम प्रकार की मुशीबतों का अचानक सामना करना पड़ता है हर किसी से बिना किसी कारण के ही अचानक दुश्मनी होने लगती है जिसमें उसका कोई दोष भी नहीं होता है। ऐसे में केवल कर्म करने से ही यदि बात बन बिगड़ सकती होती तो कर्म न करने से भी तो यदि तरक्की न होती तो नुक्सान भी तो नहीं होना चाहिए था !किंतु यदि बिना कुछ किए हुए भी नुक्सान हो सकता है इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे जीवन में सुख और दुःख मिलने का कारण हमारा भाग्य ही है वस्तुतः कर्म तो बहाना हैं ।
यह तो हर कोई सोचता ही है कि उसके साथ सब कुछ अच्छा अच्छा ही होगा !भविष्य में व्यापार बहुत अच्छा होगा नौकरी बहुत अच्छी होगी स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहेगा धन बहुत होगा पद प्रतिष्ठा बहुत बढ़ेगी विवाह बहुत सुंदर सर्वगुण संपन्न लड़के या लड़की से होगी दुनियाँ की सारी सुन्दर चीजें केवल उसी के लिए बनाई गई हैं इसलिए उन्हें ही मिलनी चाहिए या उन्हें हासिल कर लेना उनका अधिकार है ऐसा समझने के कारण ही तो कर्मवादी लोग अपनी पसंद की सारी चीजें प्राप्त करने के लिए उचित अनुचित आदि का विचार किए बिना छीना झपटी से लेकर बलात्कार आदि सभी प्रकार के अपराध तक करना प्रारंभ कर देते हैं क्योंकि वो अपनी इच्छाओं की पूर्ति अपने कर्मों से करना चाहते हैं !
अच्छे और बुरे का सामना तो संसार में सबको ही करना पड़ता है किंतु जो लोग अपने विषय में बुरा कुछ सुनना और सोचना ही नहीं चाहते ऐसे अत्यंत उत्साही लोगों के साथ भी जब बुरा होने लगता है तो वो उसे सह नहीं पाते हैं और कुछ का कुछ कर बैठते हैं जिस पर उन्हें जानने वाले लोग भरोसा ही नहीं करते जैसे जिस लड़की को चाहने लगे उसने यदि मना किया तो या तो बलात्कार पर उतर जाते हैं या फिर उसकी हत्या या आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध करने पर उतर जाते हैं क्योंकि वो केवल कर्म के बल पर उसे हासिल कर लेना चाहते हैं इसलिए उसका अपहरण आदि अपराध करने लगते हैं !
ऐसे लोग न तो मनोरोगी होते हैं और नही भूत प्रेत से ग्रसित होते हैं अपितु इन्हें जीवन में भाग्य संबंधी सही गाइडेंस न मिल पाने के कारण ही ऐसे लोग अपने जीवन में तमाम प्रकार की दुर्दशाएँ भोग रहे होते हैं !ऐसे लोग हर सुंदर चीज को पा लेने के लिए लपकते हैं छीना झपटी करते हैं किंतु सारे अच्छे बुरे कर्म करके भी इन्हें मिलता उतना ही है जितना इनके भाग्य में बदा होता है !उससे ज्यादा कुछ नहीं मिलता है इन्हें !
भाग्य के अनुशार जीवन जीने का मतलब तनाव रहित विकास कारक जीवन शैली !
जो लोग अपने जीवन से संबंधित योजनाएँ अपने भाग्य के अनुसार बनाते हैं उन्हें कभी पछताना नहीं पड़ता है क्योंकि वो अपनी उतनी ही बड़ी इच्छाएँ पालता है जितनी उसके भाग्य में बदी होती हैं उन्हें ही पाने के लिए प्रयास करता है जो आसानी से सुख पूर्वक उसे मिल भी जाती हैं और उनका सुख भी मिलता है उन्हें !किंतु जो लोग अपने जीवन और भविष्य से संबंधित योजनाएँ बनाने में अपने भाग्य बल को समझे बिना ही कदम बढ़ा देते हैं उन्हें सफलता कम और असफलता का सामना अधिक करना पड़ता है । ऐसे लोग अपनी असावधानी की सजा आजीवन भोगा करते हैं !इसलिए ज्योतिष को यदि हम जानते और मानते नहीं हैं तो हमें अपने जीवन से संबंधित हर विषय में हमेंशा अच्छी बुरी दोनों प्रकार की परिस्थितियों को सहने के लिए तैयार होकर चलना चाहिए !
अपने विषय में भविष्य में कुछ गलत भी हो सकता है ऐसा पूर्वानुमान बहुत कम लोग या अपने जीवन से निराश हताश लोग ही लगाते हैं अन्यथा सब यही सोचते हैं कि चूँकि हम कर्म कर रहे हैं इसलिए हमारे साथ सब कुछ अच्छा ही होगा ऐसा सोचने वाले काउंसलरों के चेले लोग उनके कहने पर अपने जीवन को संकट में फँसा लिया करते हैं !
भाग्य के अनुशार जीवन जीने का मतलब तनाव रहित विकास कारक जीवन शैली !
जो लोग अपने जीवन से संबंधित योजनाएँ अपने भाग्य के अनुसार बनाते हैं उन्हें कभी पछताना नहीं पड़ता है क्योंकि वो अपनी उतनी ही बड़ी इच्छाएँ पालता है जितनी उसके भाग्य में बदी होती हैं उन्हें ही पाने के लिए प्रयास करता है जो आसानी से सुख पूर्वक उसे मिल भी जाती हैं और उनका सुख भी मिलता है उन्हें !किंतु जो लोग अपने जीवन और भविष्य से संबंधित योजनाएँ बनाने में अपने भाग्य बल को समझे बिना ही कदम बढ़ा देते हैं उन्हें सफलता कम और असफलता का सामना अधिक करना पड़ता है । ऐसे लोग अपनी असावधानी की सजा आजीवन भोगा करते हैं !इसलिए ज्योतिष को यदि हम जानते और मानते नहीं हैं तो हमें अपने जीवन से संबंधित हर विषय में हमेंशा अच्छी बुरी दोनों प्रकार की परिस्थितियों को सहने के लिए तैयार होकर चलना चाहिए !
अपने विषय में भविष्य में कुछ गलत भी हो सकता है ऐसा पूर्वानुमान बहुत कम लोग या अपने जीवन से निराश हताश लोग ही लगाते हैं अन्यथा सब यही सोचते हैं कि चूँकि हम कर्म कर रहे हैं इसलिए हमारे साथ सब कुछ अच्छा ही होगा ऐसा सोचने वाले काउंसलरों के चेले लोग उनके कहने पर अपने जीवन को संकट में फँसा लिया करते हैं !
भाग्य और कर्म का खेल हर जीवन में हमेंशा से चलता आया है इन दोनों में हर किसी को हमेंशा से संशय बना रहता है इसलिए इसका निराकरण यहीं पर करना बहुत आवश्यक है । दुनियाँ में सभी लोग अपने जीवन के किस किस क्षेत्र में कितना कितना विकास कर सकते हैं ये लिमिट ही उनका पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर निश्चित भाग्य होता है !ये भाग्य वो रोड होता है जिस पर हम अपने कर्मों की गाड़ी जहाँ तक रोड है वहाँ तक दौड़ा सकते हैं किंतु बिना रोड के जैसे गाड़ी नहीं दौड़ सकती वैसे ही बिना भाग्य के हमारे कर्म हमें फल नहीं दे सकते !
इसलिए यदि हम तनाव रहित जीवन चाहते हैं तो हमें हमेंशा याद रखना चाहिए कि हमारे कर्मों की गाड़ी हमारे जीवन में भाग्य के द्वारा निर्धारित सीमा का कहीं अतिक्रमण न कर सके !अन्यथा जैसे बिना रोड के गाड़ी दौड़ाने से दुर्घटना होने की सम्भावना कभी भी कहीं भी बनी रहती है वैसे ही अपने भाग्य के पूर्वानुमान के बिना केवल कर्मवाद हमें कितने भी बड़े संकटों में डाल सकता है समाज में बहुत प्रकार की बहुत सारी आपराधिक दुर्घटनाएँ हमारे केवल कर्मवाद की ही देन होती हैं !एकतरफा प्यार ,लूट ,बलात्कार,अपहरण जैसी दुर्घटनाएँ करने की प्रवृत्ति कोरे कर्मवाद के उन्माद में ही बनती है ।
अपने अपने भाग्य को समझना और उसी के अनुशार कार्यकरना केवल जरूरी ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है !इसके अलावा केवल कर्मों पर भरोसा रखकर कर कर्म करने वालों के अंदर यदि संतोष नहीं है तो वो अपराधी भी हो सकते हैं डिप्रेशन में भी जा सकते हैं ,किसी की हत्या या आत्महत्या जैसी घटनाओं को भी अंजाम दे सकते हैं ।
केवल कर्म करने पर फल की इच्छा न रखे तो ऐसी दुर्घटनाओं की गुंजाइस नहीं रहती हैं किंतु वर्तमान युग में फल की इच्छा पहले प्रकट होती है उसके बाद कर्म करने की प्रवृत्ति बनानी पड़ती है !किसी के मन में सुन्दर मकान या कार लेने की इच्छा का उदय हुआ उसके लिए पैसे चाहिए और पैसों के लिए कर्म करना ही होगा !
कर्म करने के बाद भी पैसे मिलें या न मिलें वो सुरक्षित रहें या न रहें उनका उपयोग कार और मकान में हो पावे या न हो पावे !ये सब भाग्य के आधीन ही है !इसलिए किसी काम को प्रारम्भ करते समय या तो लाभ हानि दोनों पक्षों के विषय में विचार करके कार्य प्रारंभ करे और दोनों प्रकार की परिस्थितियाँ सहने को तैयार रहे और यदि ऐसा नहीं करना चाहते तो कर्म करने के पहले अपने भाग्य को जरूर पहचानो कि जिस लालच के लिए आप जिस काम को करने जा रहे हैं वो सुख आपके भाग्य में बदा भी है या नहीं !यदि नहीं बदा होगा तो नहीं ही मिलेगा वो सुख !
भाग्य से ज्यादा हमें कभी कुछ मिल ही नहीं सकता !
एक पुरुष के भाग्य में यदि साठ प्रतिशत पत्नी का सुख है और वह किसी ऐसी लड़की से विवाह कर लेता है जिसके भाग्य में नब्बे प्रतिशत विवाह सुख है तो उस लड़की को तो नब्बे प्रात्तिशत्त ही विवाह सुख मिलेगा किंतु उसका पति उसे केवल साठ प्रतिशत ही दे पाएगा बाकी की आपूर्ति कहीं और से करनी होगी या फिर सहन करके जीवन काटना होगा !ऐसा ही पुरुषों के विषय में भी जानना चाहिए !
विवाह का सुख जिनके भाग्य में कम बदा होता है !
ऐसे लोग कम उम्र से ही युवा अवस्था जैसी हरकतें करने लगते हैं प्रेम प्यार का नाम देकर कुत्ते बिल्लियों की तरह बेशर्म होकर मेट्रो पार्कों पार्किंगों में किसी लड़के या लड़की को पकड़े चूम चाट रहे होते हैं इस चक्कर में दोनों ही कई बार लोगों से पिट चुके होते हैं घर वालों की गालियाँ कहते हैं और वालों की गालियाँ कहते हैं जगह जगह अपमानित हो रहे होते हैं दूसरी तीसरी जातियों सम्प्रदायों के साथ जोड़े बना बना कर कुत्ते कुतियों की तरह बड़ी बेशर्म भावना से कभी भी कहीं भी सार्वजानिक जगहों पर भी एक दूसरे से लिपटे चिपटे देखे जा सकते हैं ! इनके भाग्य में चूँकि वैवाहिक सुख कम बदा होता है इसीलिए इन्हीं वैवाहिक सुख पाने के लिए बार बार अपमानित होना पड़ता है माता पिता के सामने अपने विवाह के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है फिर भी विवाह नहीं होता होता तो पटरी नहीं खाती झगड़े झंझट आदि समस्याएँ ही समस्याएँ सदैव बनी रहती हैं तलाक हो जाता है कुल मिलकर साड़ी जवानी यूं रट धोते ही निकल जाती है वहीँ दूसरी ओर जिनके भाग्य में विवाह का सुख बदा होता है उनका वैवाहिक सुखों की आवश्यकता पड़ने से पहले ही हो जाता विवाह जैसा चाहते हैं उससे अच्छा हो जाता है ये होता है उत्तम विवाह सुख जिसके भाग्य में बदा होता है उसे ही मिलता है !
भाग्य में जो नहीं बदा है वो किसी उपाय से यदि हमें मिल भी जाए तो भी हमें उसका सुख नहीं मिल पाएगा !
महाराज दशरथ के भाग्य में यदि पुत्र सुख नहीं बदा था तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करके पुत्र तो पा लिए किंतु पुत्र सुख बाधा युक्त बना ही रहा !पहले विश्वामित्र जी माँग ले गए और बाद में बनबास हो गया !यहाँ तक कि अंत काल में चार में से एक भी पुत्र महाराज दशरथ के पास नहीं था सात दिन तक शव रखा गया था तब भरत जी पहुँच पाए थे !
भाग्य से अधिक धन यदि हासिल भी कर लिया जाए तो वो सुख नहीं अपितु दुःख ही देता है !
ऐसा धन बीमारी में लगता है दुःख तकलीफ में लगता है झगड़ा झंझट मुकदमें आदि में लगता है गिर जाता है खो जाता है कोई ले लेता है तो लौटाता नहीं है !और भी बहुत प्रकार की समस्याएँ पैदा करके धीरे से निकल जाता है ऐसा धन !ऐसे पैसे से की गई दवा लाभ नहीं करती है बीमारी बढ़ती ही चली जाती है !
भाग्य से अधिक सुंदरता करके भी उसका सुख नहीं भोगा जा सकता है !
कुछ स्त्री पुरुष तमाम प्रकार के महँगे महँगे श्रृंगार करवाकर यदि अपनी कुछ सुंदरता बढ़ाने में सफल हो भी जाते हैं और अपनी सुंदरता पर कुछ लोगों को प्रभावित कर भी लेते हैं तो भी उन लोगों के फिदा होने से कोई बहुत बड़ा लाभ नहीं मिल पाता है अपितु त्वचा में मुख में या शरीर में कहींकोई कोई ऐसा रोग या दाग आदि हो जाता है जिसके कारण से लोगों का फिदा होना तो दूर अपितु बहुत सारे लोग घृणा करने लगते हैं ।
भाग्य को जाना कैसे जाए !ये सबसे कठिन काम है ।
केवल कर्म करने पर फल की इच्छा न रखे तो ऐसी दुर्घटनाओं की गुंजाइस नहीं रहती हैं किंतु वर्तमान युग में फल की इच्छा पहले प्रकट होती है उसके बाद कर्म करने की प्रवृत्ति बनानी पड़ती है !किसी के मन में सुन्दर मकान या कार लेने की इच्छा का उदय हुआ उसके लिए पैसे चाहिए और पैसों के लिए कर्म करना ही होगा !
कर्म करने के बाद भी पैसे मिलें या न मिलें वो सुरक्षित रहें या न रहें उनका उपयोग कार और मकान में हो पावे या न हो पावे !ये सब भाग्य के आधीन ही है !इसलिए किसी काम को प्रारम्भ करते समय या तो लाभ हानि दोनों पक्षों के विषय में विचार करके कार्य प्रारंभ करे और दोनों प्रकार की परिस्थितियाँ सहने को तैयार रहे और यदि ऐसा नहीं करना चाहते तो कर्म करने के पहले अपने भाग्य को जरूर पहचानो कि जिस लालच के लिए आप जिस काम को करने जा रहे हैं वो सुख आपके भाग्य में बदा भी है या नहीं !यदि नहीं बदा होगा तो नहीं ही मिलेगा वो सुख !
भाग्य से ज्यादा हमें कभी कुछ मिल ही नहीं सकता !
एक पुरुष के भाग्य में यदि साठ प्रतिशत पत्नी का सुख है और वह किसी ऐसी लड़की से विवाह कर लेता है जिसके भाग्य में नब्बे प्रतिशत विवाह सुख है तो उस लड़की को तो नब्बे प्रात्तिशत्त ही विवाह सुख मिलेगा किंतु उसका पति उसे केवल साठ प्रतिशत ही दे पाएगा बाकी की आपूर्ति कहीं और से करनी होगी या फिर सहन करके जीवन काटना होगा !ऐसा ही पुरुषों के विषय में भी जानना चाहिए !
विवाह का सुख जिनके भाग्य में कम बदा होता है !
ऐसे लोग कम उम्र से ही युवा अवस्था जैसी हरकतें करने लगते हैं प्रेम प्यार का नाम देकर कुत्ते बिल्लियों की तरह बेशर्म होकर मेट्रो पार्कों पार्किंगों में किसी लड़के या लड़की को पकड़े चूम चाट रहे होते हैं इस चक्कर में दोनों ही कई बार लोगों से पिट चुके होते हैं घर वालों की गालियाँ कहते हैं और वालों की गालियाँ कहते हैं जगह जगह अपमानित हो रहे होते हैं दूसरी तीसरी जातियों सम्प्रदायों के साथ जोड़े बना बना कर कुत्ते कुतियों की तरह बड़ी बेशर्म भावना से कभी भी कहीं भी सार्वजानिक जगहों पर भी एक दूसरे से लिपटे चिपटे देखे जा सकते हैं ! इनके भाग्य में चूँकि वैवाहिक सुख कम बदा होता है इसीलिए इन्हीं वैवाहिक सुख पाने के लिए बार बार अपमानित होना पड़ता है माता पिता के सामने अपने विवाह के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है फिर भी विवाह नहीं होता होता तो पटरी नहीं खाती झगड़े झंझट आदि समस्याएँ ही समस्याएँ सदैव बनी रहती हैं तलाक हो जाता है कुल मिलकर साड़ी जवानी यूं रट धोते ही निकल जाती है वहीँ दूसरी ओर जिनके भाग्य में विवाह का सुख बदा होता है उनका वैवाहिक सुखों की आवश्यकता पड़ने से पहले ही हो जाता विवाह जैसा चाहते हैं उससे अच्छा हो जाता है ये होता है उत्तम विवाह सुख जिसके भाग्य में बदा होता है उसे ही मिलता है !
भाग्य में जो नहीं बदा है वो किसी उपाय से यदि हमें मिल भी जाए तो भी हमें उसका सुख नहीं मिल पाएगा !
महाराज दशरथ के भाग्य में यदि पुत्र सुख नहीं बदा था तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करके पुत्र तो पा लिए किंतु पुत्र सुख बाधा युक्त बना ही रहा !पहले विश्वामित्र जी माँग ले गए और बाद में बनबास हो गया !यहाँ तक कि अंत काल में चार में से एक भी पुत्र महाराज दशरथ के पास नहीं था सात दिन तक शव रखा गया था तब भरत जी पहुँच पाए थे !
भाग्य से अधिक धन यदि हासिल भी कर लिया जाए तो वो सुख नहीं अपितु दुःख ही देता है !
ऐसा धन बीमारी में लगता है दुःख तकलीफ में लगता है झगड़ा झंझट मुकदमें आदि में लगता है गिर जाता है खो जाता है कोई ले लेता है तो लौटाता नहीं है !और भी बहुत प्रकार की समस्याएँ पैदा करके धीरे से निकल जाता है ऐसा धन !ऐसे पैसे से की गई दवा लाभ नहीं करती है बीमारी बढ़ती ही चली जाती है !
भाग्य से अधिक सुंदरता करके भी उसका सुख नहीं भोगा जा सकता है !
कुछ स्त्री पुरुष तमाम प्रकार के महँगे महँगे श्रृंगार करवाकर यदि अपनी कुछ सुंदरता बढ़ाने में सफल हो भी जाते हैं और अपनी सुंदरता पर कुछ लोगों को प्रभावित कर भी लेते हैं तो भी उन लोगों के फिदा होने से कोई बहुत बड़ा लाभ नहीं मिल पाता है अपितु त्वचा में मुख में या शरीर में कहींकोई कोई ऐसा रोग या दाग आदि हो जाता है जिसके कारण से लोगों का फिदा होना तो दूर अपितु बहुत सारे लोग घृणा करने लगते हैं ।
भाग्य को जाना कैसे जाए !ये सबसे कठिन काम है ।
ज्योतिष शास्त्र के अलावा भाग्य पढ़ने का और कोई दूसरा विकल्प आपके पास है ही नहीं !यदि ज्योतिष को आप मानते नहीं हैं तो भाग्य का पूर्वानुमान आप नहीं लगा सकते और जो लगाएँगे भी वो कपोल कल्पित ही होगा इसलिए उस पर विश्वास करके चलना आपके लिए हितकर नहीं होगा !दूसरीबात यदि ज्योतिष को आप मानते हैं तो विद्वान ज्योतिष वैज्ञानिक तक पहुँच पाना आपके लिए कठिन तो है ही उससे ज्यादा कठिन है ज्योतिष वैज्ञानिक से अपनी इच्छा के अनुसार काम ले पाना !
इसमें दो बड़ी कठिनाइयों का सामना करना होता है पहला तो ये कि समाज में दिखाई पड़ने वाले ज्योतिषी लोग प्रायः वास्तव में ज्योतिष पढ़े लिखे विद्वान ज्योतिषी केवल एक प्रतिशत ही हैं उन्हें पहचान पाना इतना आसान नहीं होता इसलिए सबसे पहले उनकी ज्योतिष क्वालीफिकेशन देखिए कि इन्होंने सरकार के किस विश्व विद्यालय से ज्योतिष सब्जेक्ट में MA ,Ph .D .आदि कौन सी डिग्री ली है !यह निश्चय करके विद्वान ज्योतिष वैज्ञानिक से आप यदि सामान्य पंडितों पुजारियों जैसा वर्ताव करेंगे तो वो आप के कार्य में रूचि ही नहीं लेंगे !ऐसे में आपको वहाँ तक पहुँच कर भी खाली हाथ ही लौटना पड़ेगा !जैसे समुद्र के पास जितना बड़ा बर्तन लेकर जाओगे उतना पानी मिलता है इसी प्रकार जितने बॉड का बल्ब लगाते हो उतना प्रकाश मिलता है ऐसे ही अपने काम के बदले में ज्योतिष वैज्ञानिकों को जितनी धन राशि आप देते हैं अपने काम की भी उतनी ही आशा आपको भी रखनी चाहिए बहुत लोग अपनी कंजूसी और चतुराई आदि के कारण ज्योतिष विद्वानों से ज्योतिष का लाभ नहीं ले पाते हैं इसलिए वो ज्योतिष और ज्योतिष विद्वानों बदनाम करते घूमा करते हैं ।
इसमें दो बड़ी कठिनाइयों का सामना करना होता है पहला तो ये कि समाज में दिखाई पड़ने वाले ज्योतिषी लोग प्रायः वास्तव में ज्योतिष पढ़े लिखे विद्वान ज्योतिषी केवल एक प्रतिशत ही हैं उन्हें पहचान पाना इतना आसान नहीं होता इसलिए सबसे पहले उनकी ज्योतिष क्वालीफिकेशन देखिए कि इन्होंने सरकार के किस विश्व विद्यालय से ज्योतिष सब्जेक्ट में MA ,Ph .D .आदि कौन सी डिग्री ली है !यह निश्चय करके विद्वान ज्योतिष वैज्ञानिक से आप यदि सामान्य पंडितों पुजारियों जैसा वर्ताव करेंगे तो वो आप के कार्य में रूचि ही नहीं लेंगे !ऐसे में आपको वहाँ तक पहुँच कर भी खाली हाथ ही लौटना पड़ेगा !जैसे समुद्र के पास जितना बड़ा बर्तन लेकर जाओगे उतना पानी मिलता है इसी प्रकार जितने बॉड का बल्ब लगाते हो उतना प्रकाश मिलता है ऐसे ही अपने काम के बदले में ज्योतिष वैज्ञानिकों को जितनी धन राशि आप देते हैं अपने काम की भी उतनी ही आशा आपको भी रखनी चाहिए बहुत लोग अपनी कंजूसी और चतुराई आदि के कारण ज्योतिष विद्वानों से ज्योतिष का लाभ नहीं ले पाते हैं इसलिए वो ज्योतिष और ज्योतिष विद्वानों बदनाम करते घूमा करते हैं ।
ज्योतिष बहुत जरूरी है बशर्ते आपका ज्योतिषी भी आपके डॉक्टरों की तरह ही ज्योतिष सब्जेक्ट में डिग्री होल्डर ज्योतिष पढ़ा हो !
अपने जीवन के साथ भविष्य में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाएँ पता तो होनी ही चाहिए जितनी संभव हों उतनी ही सही !
ज्योतिष विशुद्ध विज्ञान है इसके साथ विज्ञान जैसा वर्ताव करना पड़ेगा तभी
इसके वैज्ञानिक लाभ लिए जा सकेंगे !कोई कहे कुछ भी किन्तु समय संबंधी
पूर्वानुमान के बिना किसी का भी जीवन नहीं चल सकता है हम लोग जो भी काम
करने चलते हैं वो हमारे लिए कैसा रहेगा ! भविष्य में सुख होगा यह सोचकर
खुश हो लिया करते हैं और दुःख की परिकल्पना करके दुखी हो लिया करते हैं घर
से बाहर तक जो लोग हमारे साथ जुड़े हैं या जुड़ने जा रहे हैं उनमें हमें
किसके साथ कैसा वर्ताव करने से हम सब लोग साथ साथ खुश रह सकते हैं आदि इस
प्रकार के बहुत सारे महत्त्वपूर्ण विषयों पर एक मोटा मोटी अनुमान तो हम
सब लगाकर चलते ही हैं किंतु उसमें हम अपने साथ पक्षपात यह कर बैठते हैं कि
हम अपने एवं अपनों के विषय में सब कुछ अच्छा अच्छा ही सोच जाते हैं जबकि
होता तो अच्छा बुरा दोनों ही है किंतु हम उस बुरे की परिकल्पना कैसे करें
और क्यों करें सच यह भी यह भी है कि हम कल्पना करें या न करें किंतु भोगना
तो पड़ेगा ही ऐसी परिस्थिति में समय संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए
ज्योतिष शास्त्र के अलावा कोई विधा है ही नहीं ! फिर ज्योतिष को मान लेने
में ही क्या बुराई है !see more....
http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_5.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें