शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

chikitsaa

माननीय प्रधानमंत्री जी !
                                सादर प्रणाम !!
विषय :चिकित्सा के क्षेत्र में वैदिकवैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए सहयोग हेतु निवेदन !
           महोदय ,
मैंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से रामचरित और ज्योतिष विषय से संबंधित Ph.D की है ज्योतिष से आचार्य (MA) भी किया है !आयुर्वेद आदि का भी पर्याप्त अध्ययन है।चूँकि ज्योतिष मेरा मुख्यविषय है और ज्योतिष की डिग्री हमारे पास है इसलिए ज्योतिष से सम्बंधित विषय में ही हमारा शोधकार्य होना स्वाभाविक है !
      महोदय !आयुर्वेद की प्राचीन समृद्ध परंपरा के अनुशार चिकित्सक को ज्योतिषशास्त्र का विद्वान होना आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी माना जाता था !किसी भी स्त्री पुरुष को बीमारियाँ दो प्रकार से होती हैं और उनकी चिकित्सा भी दो प्रकार से ही होती है ! 
         एक प्रकार तो ये है कि जब किसी का खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदि बिगड़ जाता है तो इसकी चिकित्सा भी खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदि ठीक करना ही होती है या भर इन्हीं गुणों से युक्त औषधियों का सेवन करना होता है उसी से स्वास्थ्य लाभ होता चला जाता है । 
          दूसरे प्रकार की बीमारियाँ उसका अपना समय बिगड़ जाने के कारण होती हैं अर्थात जिसका जब और जितने दिनों के लिए बुरा समय आता है तब वो उतने दिनों के लिए बीमार रहता है ऐसे समय रोग होने का थोड़ा सा भी कारण बने तो उसी में बड़ी बड़ी बीमारियाँ पकड़ती चली जाती  हैं ऐसे लोगों को जरा सी खरोच तक लग जाए तो वो कितनी बड़ी बीमारी का स्वरूप धारण कर लेगी इसकी चिकित्सा और रोग मुक्ति के विषय में लगाए गए सारे पूर्वानुमान झूठे सिद्ध होते चले जाते हैं ऐसे रोगियों की चिकित्सा में लगे बड़े बड़े योग्य अनुभवी आदि चिकित्सकों की योग्यता और अच्छी से अच्छी विश्वसनीय औषधियों के प्रसिद्ध औषधीय गुणों पर अविश्वास होने लगता है सारे प्रयोग निष्फल होते चले जाते हैं और बीमारियाँ बढ़ती चली जाती हैं !चिकित्सा के लिए किए गए अच्छे से अच्छे प्रयास भी न केवल निरर्थक होते चले जाते हैं अपितु कई बार तो अत्यंत उत्तम कोटि की चिकित्सा होने पर भी ऐसे समयों से पीड़ित रोगियों की मृत्यु तक होते देखी जाती है ।ऐसे रोगियों पर सारी चिकित्सा पद्धति बेबस लाचार सी दिखती है
       ऐसे बुरे समय के कारण होने वाली बीमारियाँ बड़े बड़े राजा रजवाड़ों आदि धनी लोगों के आर्थिक अहंकार को तोड़ती चली जाती हैं बड़ी बड़ी विश्वसनीय औषधियों के गुणों पर संशय पैदा कर देती हैं !बड़े बड़े विद्वान बुद्धिमान चिकित्सकों की योग्यता अनुभव प्रसिद्धि प्रतिष्ठा आदि के घमंड को धूल में मिला देती हैं बुरे समय से पीड़ित ऐसे रोगियों के विषय में कुदरत भाग्य और समय के प्रभाव को न स्वीकार करने वाले बड़े बड़े योग्य और अहंकारी और वैज्ञानिक चिकित्सक भी रोग बढ़ने या मृत्यु होने का कारण कुदरत भाग्य और समय के मत्थे मढ़ दिया करते हैं !जबकि ऐसे ही रोगी यदि स्वस्थ हो जाएँ तो इन्हें स्वस्थ करने के प्रयास में लगे सभी चिकित्सक तांत्रिक  ज्योतिषी आदि लोग इसके लिए अपनी अपनी पीठ थपथपाने लगते हैं । 

की कल्पना कर पाना भी कठिन होता है

कुछ बीमांरियाँ हमारे खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदि बिगड़ जाने से होती हैं इन्हें ठीक करने के लिए हमें खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदि ठीक करना होता है यही उसकी औषधि है जैसे किसी ने शर्दी में शाम के समय ठंडा दही खा लिया इससे खाँसी जुकाम शरीर में दर्द बुखार आदि होने की सम्भावना हो जाती है अतएव इसकी चिकित्सा करने के लिए गर्म खान पान रहन सहन आचार व्यवहार औषधि आदि का सेवन करना ही इसकी चिकित्सा होती है !
         दूसरे प्रकार की बीमारियाँ  समय के दुष्प्रभाव से होती हैं जिसका जब अपना समय बिगड़ता है तो उसे जो बीमारियाँ होती हैं वो एक निश्चित अवधि के लिए होती हैं

उसे ठीक इनका बिगड़ने से होती हैं होने वाली बड़ी बीमारियाँ उसके अपने बुरे समय के प्रभाव से होती हैं वो बीमारियाँ बड़ी इसीलिए होती चली जाती हैं क्योंकि उनमें कोई
औषधियों का असर अच्छे बुरे समय के अनुशार ही होता है समय बुरा होता तो अच्छी से अच्छी औषधि के परिणाम बुरे ही होते हैं और समय बुरा हो तो बुरी परिस्थिति में भी बचाव हो ही जाता है । बड़े बड़े राजाओं महाराजाओं को भी बुरा समय आने पर बीमार होते बीमारी स्थिर रहते एवं मृत्यु तक होते देखा जाता है वहीँ जिनका समय अच्छा होता है वे साधन विहीन गरीब ग्रामीण आदिवासी आदि जंगलों में रहने वाले लोग भी सामान्य औषधियों या कई बार तो बिना औषधियों के भी रोग मुक्त और स्वस्थ होते देखे जाते हैं !
     चिकित्सा शास्त्र में समय को समझे बिना बुरे समय से ग्रस्त किसी रोगी को रोगमुक्त करने के लिए योग्य से योग्य चिकित्सकों के अच्छे से अच्छे प्रयास और अच्छी से अच्छी औषधियाँ निष्प्रभावी होते देखी जाती हैं !किसी भी व्यक्ति को कोई भी रोग या मनोरोग होता या बढ़ता तभी है जब उसका अपना समय खराब होता है और उसे कोई दवा लाभ उसी को करती है जिसका समय या तो अच्छा आ गया होता है या फिर अच्छे समय में औषधि ली गई होती है !इसलिए चिकित्सा के क्षेत्र में समय का महत्त्व चिकित्सा के लिए किए जाने वाले अन्य सभी प्रयासों में सबसे अधिक प्रभावी सिद्ध होता है । चिकित्सा के लिए किए जाने वाले सारे प्रयास रोगी के अच्छे बुरे समय के अनुशार ही फल देते देखे जाते हैं । 
      किसी के अच्छे बुरे समय का अनुमान या पूर्वानुमान लगाने के लिए ज्योतिषशास्त्र के अलावा कोई दूसरी विद्या है ही नहीं ऐसा मानते हुए ही मैंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी से ज्योतिषाचार्य (MA)किया है और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से Ph.D. किया है ।व्यक्तिगत तौर पर भी चिकित्सा के कई आयामों पर मैंने शोधकार्य किया है जिसके परिणाम कुछ मामलों में तो चिकित्सा जगत के लिए काफी सहयोगी सिद्ध होते दिख रहे हैं वैसे भी चिकित्सा की हर विधा में किस रोगी पर चिकित्सा का क्या असर होगा ये ज्योतिष से ही पता लगाया जा सकता है ।  
      अतएव मेरा आपसे निवेदन है कि सरकार चिकित्सा के क्षेत्र में ज्योतिष के महत्त्व को भी समझे और हमारे चिकित्सा संबंधी ज्योतिषीय अनुसंधानों में हमारी मदद करे !



RTI
माननीय प्रधानमंत्री जी !
                                सादर प्रणाम !!
विषय :चिकित्सा के क्षेत्र में वैदिकवैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए सहयोग हेतु निवेदन !
           महोदय ,
 मैंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से रामचरित और ज्योतिष विषय से संबंधित Ph.D की है ज्योतिष से आचार्य (MA) भी किया है!आयुर्वेद आदि का भी पर्याप्त अध्ययन है।चूँकि ज्योतिष मेरा मुख्यविषय है और ज्योतिषकी डिग्री हमारे पास है इसलिए ज्योतिष से सम्बंधित विषय में ही हमारा शोधकार्य होना स्वाभाविक है ! ज्योतिषशास्त्र में रोग और मनोरोग से लेकर वर्षाविज्ञान भूकंपविज्ञान आदि कई प्राकृतिक विषयों का वर्णन मिलता है जिनपर अनुसंधान करके इन क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रहस्य सुलझाए जा सकते हैं जिनसे मानवता का बहुत बड़ा लाभ संभव है !
     महोदय !ज्योतिषशास्त्र अनंतकाल से चिकित्सा आदि हर क्षेत्र में 'समय'संबंधी पूर्वानुमान लगाने में वैदिक विज्ञान का अभिन्न अंग माना जाता रहा है प्राचीनकाल में प्रायः हर कुशल चिकित्सक और वैज्ञानिक ज्योतिषशास्त्र का विद्वान होता ही था ऐसे प्रमाण आयुर्वेद आदि के कई ग्रंथों में मिलते हैं चिकित्सा में ज्योतिष का पर्याप्त उपयोग होने के प्रमाण मिलते हैं ये कहना अतिशयोक्ति नहीं माना जाना चाहिए कि ज्योतिष के बिना चिकित्सा शास्त्र अधूरा है क्योंकि चिकित्सा किसी भी विधा से किसी के द्वारा भी की जाए किन्तु उसके परिणाम हर किसी रोगी पर अलग अलग होते हैं जैसा जिसका समय वैसा उस पर औषधियों का असर होता है ।कई बार अच्छे अच्छे चिकित्सक अच्छी से अच्छी दवाएँ देते हैं किंतु रोगी का समय विपरीत होने के कारण उन दवाओं का असर उल्टा हो रहा होता है और सघन चिकित्सा होते हुए भी समय पीड़ित रोगियों  को मरते देखा जाता है ऐसी परिस्थिति में अच्छे चिकित्सक और अच्छी औषधियों से  लाभ तभी होता है जब समय भी अच्छा हो और यदि समय अच्छा न हो तो सब कुछ बेकार है ।
      ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा की दृष्टि से किसे जाने वाले बड़े बड़े अनुसन्धान हॉस्पिटल्स मशीनें औषधियों आदि का सदुपयोग तभी है जब उन चिकित्सकीय रिसर्च कार्यों में समय संबंधी अध्ययन को भी साथ लेकर चला जाए अन्यथा ऐसे अधिकाँश शोधकार्यों को पूर्ण नहीं माना जा सकता !
       कईबार किसी रोगी का बुरा समय समाप्त हो रहा होता है उस समय उसे स्वस्थ होना ही होता है ऐसे में वो कोई औषधि न ले तो भी धीरे धीरे स्वस्थ हो जाता है या कोई फूल पत्ती आदि कैसे भी ले ले कोई तंत्र मन्त्र कर दे कोई पूजा पाठ या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीज आदि धारण कर ले या एक्युप्रेशर की कोई पद्धति अपना ले या घर में वास्तु के हिसाब से कोई संशोधन कर ले या किसी तीर्थ या साधु संत के पास जाकर उनसे आशीर्वाद ले या बहुत बड़े चिकित्सकों से बहुत महँगी महँगी औषधियाँ खाकर इलाज करवा ले !चूँकि उस रोगी का अपना समय ठीक आ चुका होता है इसलिए उसे स्वस्थ होना ही होता है और वो समय के प्रभाव से ही रोग मुक्त हो जाता है किंतु उसके स्वस्थ होने में उसे रोगमुक्त करने के प्रयास में लगे वे सारे तांत्रिक मांत्रिक वास्तु वाले बाबा बैरागी या बहुत बड़े बड़े वैज्ञानिक चिकित्सक आदि अपनी अपनी पीठ थपथाने लगते हैं और उस रोगी पर प्रयोग की गई औषधियों या प्रयोगों को ही उस रोग की सही चिकित्सा मान बैठते हैं जबकि ये उनकी गलत फहमी ही होती है इसीलिए उसी प्रकार के दूसरे रोगी पर उन्हीं औषधियों या प्रयोगों के करने पर भी रोगी को कोई लाभ नहीं होता यहाँ तक कि वो रोग बढ़ते चला जाता है और रोगी की स्थिति बिगड़ते चली जाती है तब वे सभी लोग कुदरत ,समय या भाग्य को दोष देते देखे जाते हैं !किंतु स्थिति बिगड़ने के लिए ही कुदरत ,समय या भाग्य जिम्मेदार क्यों इसी समय आदि के कारण रोगी स्वस्थ भी तो होते होंगे उस स्वास्थ्य लाभ का संपूर्ण श्रेय (क्रेडिट )अपने रिसर्चों और प्रयासों को दे देना सच कैसे मान लिया जाए !उसका क्रेडिट समय को क्यों नहीं दिया जाना  चाहिए !
   
        




इसी आधार पर मैंने व्यक्तिगत तौर पर चिकित्सा के कई आयामों पर शोधकार्य किया भी है जिसके परिणाम कई मामलों में तो चिकित्सा जगत के लिए काफी सहयोगी सिद्ध होते दिख रहे हैं।  ज्योतिष विद्वान होने के नाते मेरा मनना है कि चिकित्सा की हर विधा में किस रोगी पर चिकित्सा का अच्छा या बुरा आदि कैसा असर होगा ये उस रोगी के अपने अच्छे बुरे समय के अनुशार ही निश्चित होता है और समय संबंधी अनुमान केवल ज्योतिषशास्त्र से ही लगाया जा सकता है ।संभवतः ज्योतिष के इसी महत्त्व को समझते हुए ही काशी हिन्दू विश्व विद्यालय जैसे बड़े विश्व विद्यालयों में अन्य विभागों की तरह ही ज्योतिष का डिपार्टमेंट भी है पाठ्यक्रम भी है कक्षाएँ भी लगती हैं परीक्षाएँ भी होती हैं ज्योतिषाचार्य(MA) और Ph.D.जैसी डिग्रियाँ भी दी जाती हैं ।जिनमें अन्य विषयों की तरह ही न केवल भारी भरकम परिश्रम करना पड़ता है अपितु दस से बारह वर्ष का समय भी लगता है ।
       इस प्रकार से सब कुछ अन्य विषयों की तरह होने पर भी ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों को सम्मान , सुविधाएँ और सहयोग देने में पक्षपात क्यों करती है सरकार !चिकित्सा संस्थानों के चिकित्सासंबंधी अनुसंधानों में ज्योतिषशास्त्र की भूमिका भुलाने के पीछे के मुख्य कारण क्या हैं !

 RTI

  1. भारत सरकार ज्योतिष को विज्ञान मानती है या नहीं ?यदि विज्ञान नहीं मानती है तो ज्योतिष को मानती है आखिर क्या है ?यदि विज्ञान मानती है तो वैज्ञानिकों की तरह ज्योतिष विद्वानों को उनके ज्योतिष विज्ञान संबंधी शोध कार्यों में मदद क्यों नहीं करती है सरकार ? 
  2. BHU जैसे बड़े विश्व विद्यालयों में पाठ्यक्रम पूर्वक ज्योतिष शिक्षण के पीछे सरकार का उद्देश्य क्या है और उस उद्देश्य की पूर्ति ज्योतिष को सब्जेक्ट रूप  में पढ़ाए जाने से हो पा रही है क्या ?
  3. ज्योतिष शास्त्र में चिकित्सा वर्षा एवं भूकंप के विषय में बताई गई बातों पर सरकार भरोसा करती है या नहीं ? यदि नहीं करती है तो क्यों और यदि करती है तो इन पर रिसर्च क्यों नहीं करवाती है सरकार ?
  4. ज्योतिष को विज्ञान मानकर अपने जीवन के बहुमूल्य दस बारह वर्ष लगाकर ज्योतिष की डिग्री हासिल कर लेने के बाद  देने के वाद सरकार उन्हें यदि वैदिक वैज्ञानिक नहीं तो आखिर क्या मानती है ?
  5. ज्योतिष से सम्बंधित चिकित्सा वर्षा एवं भूकंप के विषय में शोधकार्य करने के लिए ज्योतिष छात्र सरकार के किस विभाग से किस प्रक्रिया के तहत मदद माँग सकते हैं ?
  6. ज्योतिष के विद्वान लोग यदि अपने ज्योतिष संबंधी शोध कार्यों को वैदिकविज्ञान के रूप में सरकार के सामने रखना चाहें तो कैसे और किसके सामने रखकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कैसे करें ?
  7. सरकारी BHU जैसे बड़े विश्व विद्यालयों में पाठ्यक्रम पूर्वक दस बारह वर्षों में ज्योतिष की Ph D जैसी बड़ी डिग्री हासिल कर ने वाले ज्योतिष विद्वानों के सामने वो लोग जिन्होंने ज्योतिष पढ़ी ही न हो किंतु अपने को ज्योतिषाचार्य कहते और ज्योतिष की प्रेक्टिस के नाम पर अंधविश्वास  फैलाते घूमते हों ऐसे लोगों को सरकार गलत मानती है या नहीं और यदि मानती है तो उनके विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं करती है ?




इसके साथ साथ प्रकृति से सम्बंधित कई विषयों में मैंने सटीक शोधकार्य किया भी है किंतु मेरे द्वारा किए जा रहे शोधकार्यों चिकित्सा संबंधी किए जा रहे ज्योतिषीय शोधकार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय   !ज्योतिष के द्वारा मैंने कई विषयों पर व्यक्तिगत तौर पर रिसर्च किया है !जिसके आधार पर विश्वास पूर्वक ये कहा जा सकता है कि ज्योतिषशास्त्र के द्वारा जीवन के कई क्षेत्रों की जटिलताओं को न केवल आसान किया जा सकता है अपितु तलाक और आत्महत्या जैसी दुर्घटनाओं की संख्या को बहुत कम किया जा सकता है ! टूटते परिवारों को टूटने से बचाया जा सकता है बिखरते समाज को समेटा जा सकता है अपराधों की दर को घटाया जा सकता है !किसी के जीवन में भविष्य से संबंधित संभावित मानसिक तनाव चिंता आदि घटित होने का  केवल समय से पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता  नियंत्रत भी किया जा सकता है ।
      इसी प्रकार से किसी के भविष्य में होने वाली बीमारी हो या सामूहिक रूप से फैलने वाली संभावित बीमारी हो उसका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और रोकथाम के लिए प्रिवेंटिव चिकित्सा की जा सकती है जिसकी चर्चा आयुर्वेद की चरक संहिता में भी है !

कोई टिप्पणी नहीं: