रविवार, 5 मार्च 2017

मानसिक तनाव में घबड़ाएँ नहीं अपितु लें उसका भी आनंद ! जानिए कैसे ?
   
        हम जब जैसा चाह रहे होते हैं तब वैसा नहीं होता है तो हमें तनाव होता है या फिर हमारी चाहत के विरुद्ध कुछ होने की आशंका होती है तो तनाव होता है !यहाँ दो बातें हमें बड़े ध्यान से समझनी होंगी पहली बात ये कि हर कोई अपने  विषय में सब कुछ अच्छा ही अच्छा सोचता है !अपने विषय में बुरा कोई सोचता ही नहीं है। इसलिए किसी के भी साथ जब बुरा होगा तो वो सह नहीं पाएगा ये स्वाभाविक ही हैं क्योंकि उसने बुरा सहने के लिए कभी अपने  को  तैयार ही नहीं किया है। 
      किसी के भी जीवन में सबकुछ अच्छा हो ही नहीं सकता क्योंकि जो कुछ भी होता है वो हमारे चाहने से नहीं अपितु हमारे अपने किए हुए अच्छे बुरे कर्मों से होता है । इस संसार में आकर बहुत लोग बहुत अच्छे कर्म करने में सफल हो भी जाते हैं उन्हें सारा जीवन तनाव रहित जीने का सौभाग्य प्राप्त होता है यद्यपि अक्सर देखा जाता है कि कोई कितने भी अच्छे कर्म करने का प्रयास क्यों न कर ले किंतु कुछ न कुछ गलतियाँ तो सबसे हो ही जाती हैं जिनका फल मानसिक तनाव बीमारी या अन्य सभी प्रकार के दुःखों के रूप में ही भोगना पड़ता है ऐसे दुखों को सहने का अभ्यास किसी भी व्यक्ति को हमेंशा करते रहना चाहिए जिससे हर प्रकार की परिस्थिति एवं हर प्रकार की मनस्थिति सहने के लिए तैयारी होती चलती है और जीवन की गाड़ी उतार चढ़ाव सहते चली जाती है किंतु जो लोग शारीरिक मानसिक आर्थिक ऐंद्रिक आदि सुविधाओं अनुकूलताओं आदि भोगने एवं सोचने के आदी हो जाते हैं उसके विरुद्ध कुछ सहना तो दूर सोच भी नहीं पाते हैं ऐसे लोगों को प्रतिकूलताओं का सामना करने  सहने सोचने आदि में तनाव होता ही है !
      सुख और दुःख का कारण हमारे अपने पूर्व जन्म के संचित अच्छे बुरे कर्म होते हैं उन्हीं अच्छे कर्मों से हमें सुख एवं बुरे कर्मों से दुःख मिलता है !यहाँ ध्यान देने लायक विशेष बात ये है समय का चक्र हमेंशा घूमता रहता है उसमें किसी पहिए के आरे या तीलियों की तरह हर भाग बार बार आता  जाता  रहता है ऐसी परिस्थिति में जो तीली साफ सुथरी होगी वो अच्छी लगेगी और जो गन्दी होगी वो बुरी लगेगी ही !देखा जाए तो कोई तीली साफ हो या गंदी वो अपने आप से नहीं हो सकती जिसे हम साफ रखती हैं वो साफ रहती है और जिसे हम गन्दा रखते हैं वो गन्दी दिखती है इसी प्रकार से ही हर किसी के अपने अपने समय का भी चक्कर होता है समय के जिस खंड को हम अपने अच्छे कर्मों से अच्छा बना लेते हैं वो समय जब घूम कर दोबारा आता है तो उसमें जो जो कुछ हमें दिखता है मिलता है या हम सोचते हैं वो सब अच्छे कर्मों का फल होने के कारण हमें सुख देता है इसी प्रकार से हमारे बुरे कर्मों से प्रभावित जो समय घूम कर जब आता है तब हमें बुरी परिस्थितियों मनस्थितियों आदि को सहना सोचना आदि पड़ता है यह तो निश्चित है !
        किसी के भी जीवन में बुरे समय के बाद जब अच्छा समय आता है तब तो वो आसानी से सह लेता है किंतु जब अच्छे समय के बाद बुरा समय आता है वो देखना सहना  सोचना आदि बहुत कठिन हो जाता है ऐसी परिस्थितियों में मानसिक तनाव होना स्वाभाविक ही है बहुत सुकोमल नाजुक प्रवृत्ति के लोग ऐसी परिस्थितियों को सहने में कई बार बहुत अधिक घबड़ाकर कई ऊटपटाँग कदम उठा लेते हैं किंतु जैसे चीनी अधिक खाने से शुगर रोग होगा पूर्वानुमान प्रायः लगा लिया जाता है शराब पीने से नाश होगा आदि उसी प्रकार से बुर काम करने से उसका फल भी बुरा ही होगा ऐसा सोचकर यदि हम जीवन जीने का अभ्यास करें तो हमें सुख दुःख मय जीवन को जीने में विशेष कठिनाई नहीं होगी । 
      समय का पूर्वानुमान : 
 यदि हमें लगता है कि हमसे कुछ बुरे कर्म हो ही गए हैं तो उन्हें अच्छाई में बदलने के कोई उपाय हो सकते हैं क्या या उनके बुरे फल को सहने के लिए ही केवल अपनी को तैयार करना होगा !यदि हाँ तो कब ?
     ऐसी परिस्थितियों में समय संबंधी पूर्वानुमान लगाने का एक मात्र रास्ता है ज्योतिष !



तो हमें सुख समय का 


इसके लिए हमें उसका हम सभी को तनाव होता है ।
 तनाव का सीधा सा संबंध हमारे अपने कर्मों समय या भाग्य से है क्योंकि तनाव प्रायः ऐसे विषयों का होता है जो हमारे भाग्य में बदे नहीं होते हैं और हम उन्हें पा लेना चाहते हैं या पा चुके हैं भाग्य के विरुद्ध चल कर कुछ पाने की इच्छा रखना या पा लेना  इसके बाद भी तनाव ही होता है । जैसे -
       किसी के भाग्य में पत्नी या पति का सुख 50 प्रतिशत बदा इसका सीधा सा मतलब है कि ऐसे स्त्री पुरुष अपने पति या पत्नी में जितनी सुंदरता शिक्षा संस्कार या अपने से जितना प्रेम करने वाला या वाली और अन्य सभी प्रकार के अच्छे गुण चाहते हैं उस सब में उन्हें 50 प्रतिशत कटौती कर देनी पड़ेगी !अर्थता सुंदरता शिक्षा संस्कार आदि जितना चाहते हैं सब कुछ उससे आधा आधा ही मिलेगा इस भाग्य है और उतने में ही उन्हें  संतोष कर लेना पड़ेगा !
      किंतु कई बार ऐसा होता है कि कुछ लोगों के भाग्य सहयोग से उनके पास धन बहुत है विद्या बहुत है या सामाजिक  पद प्रतिष्ठा बहुत अच्छी है किंतु उनके भाग्य में  पति या पत्नी का सुख मात्र 50 प्रतिशत बदा है ऐसे लोग अपने धन और पद प्रतिष्ठा के बल से बहुत सुंदर लड़के या लड़की के साथ विवाह तो कर लेते हैं और जिससे विवाह करते हैं उसके भाग्य में पति या पत्नी का सुख यदि 90 प्रतिशत है तो उन्हें तो उतना मिलेगा ही अब उनके अपने पति या पत्नी से तो उन्हें 50 प्रतिशत ही मिलेगा क्योंकि उसके भाग्य में है ही 50 प्रतिशत चूँकि अपने भाग्य में 90 प्रतिशत है इसलिए 40 प्रतिशत किसी और से ही प्राप्त करना होगा !यदि ऐसे लोग अपने संस्कारों के कारण संयम के कारण सहनशीलता या ब्रह्मचर्य आदि व्रत के कारण अपने मन में संतोष कर भी लें तो भी चूँकि  साथी के अंदर 50 प्रतिशत ही है इसलिए उसे असंतोष बना ही रहेगा और वो उसका दोष अपने जीवन साथी पर ही मढ़ता रहेगा !फिर भी ये सब कुछ सहते हुए भी पुराने समय की तरह जो लोग संयम पूर्वक जीवन यापन करते रहते हैं उनका वैवाहिक जीवन चला करता है किंतु जो लोग 
       कईबार ऐसे केसों में दोनों के भाग्य में चूँकि 50 प्रतिशत सुख तो कामन है ही तो 50 प्रतिशत तक तो आराम से प्रेम पूर्वक मिलता चला जाएगा इसके बाद 50 प्रतिशत वाले का कोटा पूरा होने पर वो तो शांत होने लगेगा उसकी सेक्स भावनाएँ भी मुरझाने लगेंगी किंतु उसके जीवन साथी के भाग्य में तो 90 प्रतिशत बदा है इसलिए उसकी भावनाएँ तो  अभी जवान होगी उसकी भूख तो दिनोंदिन बढ़ रही होगी ऐसी में उसे वो भूख बाहर से पूरी करनी होगी या फिर संतोष करके जीना होगा !
      ऐसे विवाहों में प्रायः 50 प्रतिशत वालों की भूमिका समाप्त होते या कोटा पूरा होते ही या तो कलह होने लगता है या बीमारी, तलाक या जीवनसाथी के जीवित न रहने जैसी परिस्थितियों का निर्माण होता है।और अब बचा हुआ 40 प्रतिशत वैवाहिक सुख किसी और के साथ भोगना होता है या फिर आत्मसंयम से जीना होता है ।   
      तलाक की परिस्थितियाँ बनने का एक कारण और होता है
       
      

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