हमारे जीवन में सभी विषयों से संबंधित सुख सुविधाएँ पाने और उन्हें भोगने की एक लिमिट अर्थात सीमा होती है उसे जैसे ही हम लाँघने की कोशिश करने लगते हैं वैसे ही हमें तनाव प्रारंभ होने लगता है क्योंकि हम कितने भी बलवान क्यों न हों किंतु अपने अपने भाग्य के अतिक्रमण की शक्ति ईश्वर ने हममें से किसी को नहीं दी है !किन्तु जब हम अपने मन में ऐसा समझने लगते हैं तब हमें तनाव ही तैयार होने लगता है !
तनाव का सीधा सा संबंध हमारे अपने कर्मों
से ,हमारे अपने समय से और हमारे अपने भाग्य से होता है
हमारे और आपके जीवन में जिस विषय से संबंधित जो सुख जितना बदा होता है न केवल उतना ही मिलता है अपितु हम उतना ही भोग सकते हैं यदि हम उससे अधिक सुख के संसाधन यदि कठोर संघर्ष पूर्वक या किसी अन्य व्यक्ति की मदद से जुटा भी लें तो हम उन्हें भोग नहीं सकते उन सुखों को भोगने से या तो हमारी इच्छा हट जाएगी या फिर उन्हें भोगने लायक हमारी शारीरिक एवं मानसिक परिस्थिति नहीं रहेगी !
कई लोगों के जीवन में देखा जाता है कि गरीबत के कारण पहले उनके पास अच्छा खाने को नहीं होता है और जब खाने को होता है तब उनका स्वास्थ्य वो सब कुछ पचाने लायक नहीं रह जाता है इसलिए डॉक्टर लोग मना कर देते हैं !
क्योंकि तनाव प्रायः ऐसे विषयों का होता है जो सुख जितने हमारे भाग्य में बदे नहीं होते हैं किंतु हम उन्हें पा लेना चाहते हैं ऐसी परिस्थिति में या तो वे बिल्कुल नहीं मिलते हैं या बहुत मुश्किल से वो भी बहुत कम मिलते हैं और तब मिलते हैं जब उन्हें भोगने की शक्ति ईश्वर छीन लेता है ऐसी परिस्थिति में भाग्य के अनुसार न चलने के कारण कदम कदम पर न केवल असफलता मिलती है अपितु उन विषयों में हमेंशा ही नकारात्मक सोच बनी रहती है !इन्हीं सभी बातों के कारण कदम कदम पर तनाव होता रहता है पा चुके
हैं भाग्य के विरुद्ध चल कर कुछ पाने की इच्छा रखना या पा लेना इसके बाद
भी तनाव ही होता है । जैसे -किसी के भाग्य में पत्नी या पति का सुख 50 प्रतिशत बदा इसका सीधा सा मतलब है कि ऐसे स्त्री पुरुष अपने पति या पत्नी में जितनी सुंदरता शिक्षा संस्कार या अपने से जितना प्रेम करने वाला या वाली और अन्य सभी प्रकार के अच्छे गुण चाहते हैं उस सब में उन्हें 50 प्रतिशत कटौती कर देनी पड़ेगी !अर्थता सुंदरता शिक्षा संस्कार आदि जितना चाहते हैं सब कुछ उससे आधा आधा ही मिलेगा इस भाग्य है और उतने में ही उन्हें संतोष कर लेना पड़ेगा !
किंतु कई बार ऐसा होता है कि कुछ लोगों के भाग्य सहयोग से उनके पास धन
बहुत है विद्या बहुत है या सामाजिक पद प्रतिष्ठा बहुत अच्छी है किंतु उनके
भाग्य में पति या पत्नी का सुख मात्र 50 प्रतिशत बदा है ऐसे लोग अपने धन
और पद प्रतिष्ठा के बल से बहुत सुंदर लड़के या लड़की के साथ विवाह तो कर लेते
हैं और जिससे विवाह करते हैं उसके भाग्य में पति या पत्नी का सुख यदि 90
प्रतिशत है तो उन्हें तो उतना मिलेगा ही अब उनके अपने पति या पत्नी से तो
उन्हें 50 प्रतिशत ही मिलेगा क्योंकि उसके भाग्य में है ही 50 प्रतिशत
चूँकि अपने भाग्य में 90 प्रतिशत है इसलिए 40 प्रतिशत किसी और से ही
प्राप्त करना होगा !यदि ऐसे लोग अपने संस्कारों के कारण संयम के कारण
सहनशीलता या ब्रह्मचर्य आदि व्रत के कारण अपने मन में संतोष कर भी लें तो
भी चूँकि साथी के अंदर 50 प्रतिशत ही है इसलिए उसे असंतोष बना ही रहेगा और
वो उसका दोष अपने जीवन साथी पर ही मढ़ता रहेगा !फिर भी ये सब कुछ सहते हुए भी पुराने समय की तरह जो लोग संयम पूर्वक जीवन यापन करते रहते हैं उनका वैवाहिक जीवन चला करता है किंतु जो लोग
कईबार ऐसे केसों में दोनों के भाग्य में चूँकि 50 प्रतिशत सुख तो कामन है
ही तो 50 प्रतिशत तक तो आराम से प्रेम पूर्वक मिलता चला जाएगा इसके बाद 50
प्रतिशत वाले का कोटा पूरा होने पर वो तो शांत होने लगेगा उसकी सेक्स
भावनाएँ भी मुरझाने लगेंगी किंतु उसके जीवन साथी के भाग्य में तो 90
प्रतिशत बदा है इसलिए उसकी भावनाएँ तो अभी जवान होगी उसकी भूख तो दिनोंदिन
बढ़ रही होगी ऐसी में उसे वो भूख बाहर से पूरी करनी होगी या फिर संतोष करके
जीना होगा !
ऐसे विवाहों में
प्रायः 50 प्रतिशत वालों की भूमिका समाप्त होते या कोटा पूरा होते ही या तो
कलह होने लगता है या बीमारी, तलाक या जीवनसाथी के जीवित न रहने जैसी
परिस्थितियों का निर्माण होता है।और अब बचा हुआ 40 प्रतिशत वैवाहिक सुख
किसी और के साथ भोगना होता है या फिर आत्मसंयम से जीना होता है ।
तलाक की परिस्थितियाँ बनने का एक कारण और होता है
माना की आपका जीवन साथी आपके साथ अप्रिय व्यवहार कर रहा है आप धैर्य और क्षमा शीलता का परिचय दें और अपनी गृहस्थ जीवन को बचा लें समाज सबसे बड़ा न्यायाधीश होता है समाज मीन आपके प्रति प्रचलित धारणाएँ आपकी प्रति आस्था निर्माण करेंगी और आपकी संतानें आपका एहसान मानेंगी !आप भरोसा करके देखना !
माना कि आपके पति या पत्नी ने किसी अन्य स्त्री या पुरुष को अपना मूत्रतामित्र बना लिया है और उससे सेक्स का आनंद भोग रहे हैं !यह पाप देख कर भी आप क्षमा भाव अपनाएँ और अपनी नज़रों से गिराते जाएँ किसी की उपेक्षा करना उसके लिए सबसे बड़ा दंड होता है । आप घबड़ाइए मत !ऐसे भोगी लोगों की मूत्रता के लिए बाजारू स्त्री पुरुष तभी तक अपने शरीर परोसते हैं जब तक धन होता है जवानी होती है पद या प्रतिष्ठा होती है और जैसे जैसे ये सब कुछ ढलता है वैसे वैसे यही मूत्रतामित्र उसका तिरस्कार और अपमान करने लगते हैं शरीर भी रोगी होने लगता है । उस समय प्रकृति उसे दंड दे रही होती है तब वो आपसे कृपा की भीख चाहता है तब आप उसे सीख दें जो करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा होगी !
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